डी.एन.ए. टीका (DNAVaccine) 



मनुष्य में विभिन्न रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिये डी.एन.ए. टीके बनाए जाते हैं। ये टीके परंपरागत टीकों की तुलना
में प्रभावशाली एवं सुरक्षित होने के साथ-साथ सस्ते भी होते हैं, क्योंकि इन टीकों में जीवाणु या मृत रोगाणुओं (Pathogens) का प्रयोग न करके इनसे प्राप्त किये गए विशेष जीन का उपयोग शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय बनाने के लिये किया जाता है। किसी रोगाणु के विरुद्ध डी.एन.ए. टीका विकसित करने के लिये सर्वप्रथम उस रोगाणु के उस जीन की पहचान की जाती है जो प्रतिजन (Antigen) की तरह कार्य करने वाले प्रोटीन को कूटबद्ध (Coded) करता है। ये जीन जीवाणु (Bacteria) से प्राप्त किये गए प्लाज्मिड नामक डी.एन.ए. की छोटी शृंखला में समाहित करा दिये जाते हैं। इस तरह से तैयार प्लाज्मिड ही डी.एन.ए. टीके होते हैं। डी.एन.ए. टीका एक घोल के माध्यम से अथवा सूई द्वारा त्वचा की कोशिकाओं या माँसपेशियों की कोशिकाओं में प्रविष्ट कराया जाता है। इन टीकों के प्रयोग से किसी अनैच्छिक संक्रमण की आशंका भी नहीं रहती, पोंकि डी.एल.ए, टीक में रोगाणु को पुनः उत्पन कर सकने वाले जीन नहीं होते है। डी.एन.ए टीकों में अब ऐसी बीमारियों को भी साध्य बना दिया है, जिन्हें अब तक असाध्य माना जाता रहा है। उदाहरणस्वरूप वैज्ञानिकों 'प्रोटिएज इनहिबिटर' नामक ऐसी दवा की खोज शुरू की जो एड्स : के विषाणुओं को रोगी की कोशिकाओं के साथ संबंध नहीं बनाने देती है।।

डी.एन.ए. टीके के लाभ (Advantages of DNAVaccines)

● डी.एन.ए. टीके अत्यधिक स्थिर एवं सुरक्षित होते हैं।
● डी.एन.ए, टीके दीर्घकाल तक प्रभावी रहने वाली प्रतिक्रिया उपलब्ध कराते हैं।
● इन टीकों का ठोस अथवा घोल के रूप में पंडारण किया जा सकता है।
● इस तरह के समस्त टीके एक ही तरह की तकनीक से बनाए जा सकते हैं।

ऑप्टोजेनेटिक्स (Optogenetics)

आप्टोजेनेटिक्स एक जैविक तकनीक है जो जीवित मतकों में कोशिकाओं, विशेषकर प्रकाश संवेदनशील आयन चैनलों को व्यक्त करने
के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित न्यूरोन्स के नियंत्रण के लिये प्रकाश के उपयोग पर केंद्रित होती है।
● यह जेनेटिक्स (Genetics) और ऑपटिक्स (Optics) के सिद्धांतों के संयोजन पर आधारित होती है।
● यह एक न्यूरोमॉड्यूलेशन (Neuromodulation) विधि है, जिसका प्रयोग तंत्रिका विज्ञान में किया जाता है। इसका प्रयोग जीवित ऊतकों
में अलग-अलग न्यूरॉन्स की गतिविधियों का विश्लेषण करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिये किया जाता है। इसके महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोगों को हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं-
● आप्टोजेनेटिक्स के क्षेत्र में हुए शोध ने हमारी आधारभूत वैज्ञानिक समझ को बढ़ाया कि किस प्रकार कोई विशिष्ट कोशिका समूह
जैविक ऊतकों में अपनी भूमिका निर्वाह करता है।
● इस क्षेत्र में शोध ने पार्किसन, अल्जाइमर तथा अन्य न्यूरोलॉजिकल रोगों के संबंध में हमारी समझ को विकसित किया।
● हाल के वर्षों में ऑप्टोजेनेटिक्स पर कुछ शोधों ने सीजोफ्रेनिया (Schizophrenia), नशीली दवाओं की लत, चिंता, अवसाद आदि
के संबंध में भी एक नई अंतर्दृष्टि प्रदान की है।
● इसका अनुप्रयोग दृष्टिबाधित के इलाज में भी किया जा रहा है।

जीनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation)

जीवित कोशिका, कतक एवं अंगों का एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में प्रत्यारोपण जीनोट्रांसप्लांटेशन कहलाता है। इस प्रकार प्रत्यारोपित
कोशिका, कतक व अंग जीनोग्राफ्ट (Xenografts) या जीनोट्रांसप्लांट्स (Xenotransplants) कहलाते हैं। इसके विपरीत एलोट्रांसप्लांटेशन
(Allotransplantation) समान प्रजाति के जीवों के बीच कोशिका, कतकों या अंगों का प्रत्यारोपण होता है।  जीनोट्रांसप्लांटेशन हाल के वर्षों (2016) में उस वक्त चर्चा में आया जब अमेरिकी और जर्मन वैज्ञानिकों ने एक सूअर के हृदय को बवून (मानव का प्राइमेट कजन) में प्रत्यारोपित कर रिकॉर्ड ढाई वर्षों तक ने रखा। यह एक बड़ी उपलब्धि है जो भविष्य में एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में अंग प्रत्यारोपण को संभव बनाएगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रयोग को मानव हृदय पर भी किया जा सकता है, क्योंकि सूअर का हृदय मानव हृदय के सर्वाधिक समरूप है। जीनोट्रांसप्लांट्स द्वारा वैसे मानव जीवन को बहुत हद तक बचाया जा सकता है, जिसकी क्षति प्रत्यारोपण के लिये अनुपलब्ध मानवीय अंगों के कारण होती है। ध्यातव्य है कि प्रतिवर्ष हजारों लोग मानवीय अंगों की अनुपलब्धता के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं।

प्रोटिऑमिक्स (Proteomics)

प्रोटिऑमिक्स एक आधुनिक विज्ञान है, जिसके अंतर्गत मानव शरीर में पाए जाने वाले प्रोटीनों की विभिन्न अवस्थाओं का एक ही समय में
तीव्र गति से विश्लेषण किया जाता है तथा कोशिकाओं में प्रोटीनों की अंत:स्थिति व उनके परस्पर संबंधों का मानचित्र तैयार किया जाता है।
इस विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति से कैंसर व हृदय रोग जैसी बीमारियों को समझने, पोषण स्तर का अध्ययन करने, पौधों और उनकी प्रजातियों के लक्षणों को पहचानने तथा पौधों में आनुवंशिक भिन्नता का पता लगाने आदि में हमें काफी सहायता मिली है। इससे हमें यह जानने में भी सहायता मिली है कि किस प्रकार विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं तथा किस प्रकार इनके विरुद्ध नई दवाइयाँ निर्मित की जा सकती हैं? इस प्रकार कहा जा सकता है कि आने वाले समय में चिकित्सा जगत में प्रोटिऑमिक्स की भारी उपयोगिता संभव है।

बायोमार्कर (Biomarker)

बायोमार्कर वैसे पदार्थ होते हैं जो किसी रोग या अन्य जैविक व क्रियात्मक अवस्था का संकेत करते हैं। बायोमार्कर के विशेष गुणों के
प्रयोग से किसी सामान्य जैविक क्रिया, रोगजनक प्रक्रिया, फार्मेकोलॉजिक (Pharmacologic) प्रतिक्रिया आदि की जाँच की जाती है। इसके महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोगों को हम निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं-
● नैदानिक परीक्षण (Clinical Trial): जैवरासायनिक बायोमार्कर का प्रयोग प्राय: नैदानिक परीक्षण में किया जाता है।
● कई आनुवंशिक रोगों की जाँच बायोमार्कर की मदद से की जाती है। उदाहरण के लिये सिजोफ्रेनिया के आनुवंशिक कारकों की जाँच
एक विशेष प्रकार के बायोमार्कर इंडोफेनोटाइप (Endophenotype) की मदद से की जाती है।
● अंगों की क्रियात्मकता की जाँच के लिये भी बायोमार्कर का प्रयोग होता है। रुबिडियम क्लोराइड नामक रेडियोएक्टिव आइसोटोप का
प्रयोग हृदय की माँसपेशियों की क्रियात्मकता की जाँच हेतु किया जाता है। 
● कुछ बायोमार्कर मस्तिष्क की विद्युत गतिविधि तथा अन्य प्रकार की जाँच में भी प्रयुक्त होते हैं।
● एंटीबॉडी की उपस्थिति की जाँच कर कुछ बायोमार्कर संक्रमण को इंगित करते हैं।
● भूगर्भ विज्ञान व एस्ट्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में भी बायोमार्कर का प्रयोग होता है। बायोमार्कर भूत में या वर्तमान में किसी जीव की उपस्थिति
को भी इंगित करता है।
● कई बायोमार्कर प्रारंभिक अवस्था में ही रोगों की संभावना को इंगित करते हैं, जिससे रोगों का समय रहते इलाज किया जा सके।
● यद्यपि चिकित्सा के क्षेत्र में बायोमार्कर के कई फायदे हैं तथापि परिणामों में विचलन एक चिंता का विषय है। यह विचलन अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकता है क्योंकि अलग-अलग व्यक्तियों में किसी खास रसायन के लिये उपापचय की प्रक्रिया भिन्न हो सकती है, फिर बायोमार्कर का एक्सपोज़र (Exposure) आदि भी परिणामों में विचलन का एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। अत: बायोमार्कर के अनुप्रयोगों के संदर्भ में इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।

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