पुनर्संयोजी डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी | Recombinant DNA Technology
जीन अभियांत्रिकी के अंतर्गत जीन का संकरण (Hybridization), संलयन (Fusion), प्रतिलोपन (Inversion) एवं स्थानांतरण (Transfer) किया जाता है। उपर्युक्त सभी प्रक्रियाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण जीन का संकरण है जिसे पुनर्संयोजी डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA Technology) कहा जाता है। इस तकनीक के अंतर्गत किसी एक जीव के डी.एन.ए. को किसी अन्य जीव के डी.एन.ए. के साथ रोपित करके ऐच्छिक गुणों वाले जीन प्राप्त किये जाते हैं। इसके लिये सबसे पहले किसी जीव के डी.एन.ए. को स्थानांतरित करने के लिये प्रोटीनेज एंजाइम
(बायो सेंसर) की मदद से डी.एन.ए. को काटा जाता है तथा डी.एन.ए. के कटे हुए भाग में वांछित गुणों वाले जीन को जोड़ दिया जाता है। इस तरह जीवों के आनुवंशिक आधार में परिवर्तन या संशोधन हो जाने की वजह से उनकी आकृति एवं आकार के साथ-साथ मूलभूत गुणों में भी अंतर आ जाता है। इस तरह की तकनीक से पूर्णतः नए जीवों का सृजन किया जाना भी संभव हो गया है। इस तकनीक के तहत जीनों को विलगित एवं परिष्कृत करने के पश्चात् जीन के अंश को एक जीव से निकालकर दूसरे जीव में स्थानांतरित कर दिया जाता है।
पुनर्संयोजी डी.एन.ए. तकनीक में तीन विधियों को अपनाया जाता है-
• रूपांतरण (Transformation)
• पराक्रमण (Transduction)
• प्लाज्मिड (Plasmid)
रूपांतरण (Transformation) विधि में कोशिका, ऊतक या जीव किसी विलगित डी.एन.ए. अंश पर संकेतक के रूप में विद्यमान रहते हैं, जबकि पराक्रमण (Transduction) विधि में डी.एन.ए, अंश फेज (Phage) के माध्यम से एक कोशिका से दूसरी कोशिका में मिल जाता है। इसके अतिरिक्त, प्लास्मिड (Plasmid) जीवाणु में पाए जाने वाले ऐसे अतिरिक्त क्रोमोजोनल डी.एन.ए. तत्त्व हैं जिन पर केवल लिंग भेद एवं 'प्रतिजैवरोधी जीन' होते हैं। प्लाज्मिड के द्वारा होने वाले स्थानांतरण हेतु दो एंजाइम की आवश्यकता होती है- प्रतिरोधी एंडोन्यूक्लिएज तथा लिगासेज।
जहाँ प्रतिरोधी एंडोन्यूक्लिएज प्लाज्मिड एवं दाता (Donor) जीव के डी.एन.ए. अणु को विशिष्ट बिंदुओं पर तोड़ देता है, वहीं लिगासेज इन्हीं टूटे हुए सिरों पर नए डी.एन.ए. अंशों को स्थायी रूप से जोड़ने का कार्य करता है। इस तरह से प्राप्त किये गए नवीन संकर प्लाज़िमड को जीवाणु में डालने के उपरांत जीवाणु कोशिका विभाजित हो जाती है
और साथ ही प्लाज्मिड भी विभाजित होकर बहुगुणित हो जाता है।
पुनर्संयोजी डी.एन.ए. तकनीक के लाभ
(Advantages of Recombinant DNA Technology)
पुनर्संयोजी डी.एन.ए. तकनीक ने मानव के लिये उपयोगी अनुसंधान के रास्ते खोल दिये हैं। सर्वप्रथम इस तकनीक का उपयोग इंटरफेरॉन, हॉर्मोन एवं इन्सुलिन जैसे चिकित्सकीय प्रोटीन के उत्पादन में किया गया। इसके अतिरिक्त इस तकनीक का सबसे महत्त्वपूर्ण उपयोग वांछित टीकों के निर्माण में भी किया गया है। यद्यपि अच्छे, सस्ते एवं सुरक्षित टीके प्राप्त करना हमेशा से एक प्रमुख समस्या रही है, लेकिन डी.एन.ए. पुनर्संयोजी तकनीक ने इस कार्य को आसान बना दिया है। प्रचलित तरीकों की तुलना में जीन अभियांत्रिकी के अंतर्गत डी.एन.ए. पुनर्संयोजी तकनीक
के माध्यम से अपेक्षाकृत अधिक स्थायी एवं सुरक्षित टीके प्राप्त किये जा सकते हैं। इस तकनीक के अंतर्गत किसी जीव के वांछित गुणों वाले जीन को निकालकर उसे उपयुक्त तरीके से संयोजित करके एस्केरीशिया कॉली (Escherichia Coli) जीवाणु में प्रविष्ट कराके इच्छित प्रतिरक्षी (Antibody) प्राप्त किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त डी.एन.ए पुनर्संयोजी तकनीक के माध्यम से बड़ी मात्रा में प्रोटीन का उत्पादन भी किया जा सकता है। पुनर्संयोजी डी.एन.ए, तकनीक से इंटरफेरॉन नामक प्रतिरोधक प्रोटीन प्राप्त करने में भी सफलता प्राप्त हुई है। इंटरफेरॉन मानव शरीर द्वारा निर्मित शक्तिशाली प्रतिविषाणुकारक एजेंट के रूप में कार्य करता है।
डी.एन.ए. अनुक्रमण (DNA Sequencing)
DNA में उपस्थित न्यूक्लियोटाइड क्षार (Nucleotide Bases) एडिनीन (A), थायमीन (T), साइटोसीन (C) तथा गुआनिन (G) को चरणबद्ध करने की क्रिया ही डी.एन.ए, अनुक्रमण (DNA Sequencing) कहलाती है। इसके निम्नलिखित लाभ हैं-
• ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट एक बड़ा उदाहरण है- DNA अनुक्रमण का।
• इसकी सहायता से विभिन्न आनुवंशिक बीमारियों (Genetic Diseases), जैसे- अल्जाइमर (Alzheimer's), सिस्टिक फाइब्रोसिस (Cystic Fibrosis), मायोटोनिक डिस्ट्रोफी (Myotonic Dystrophy) और कैंसर (Cancer) आदि से निजात पाने में सहायता मिलेगी।
• जीन अनुक्रम (Gene Sequence) के माध्यम से पशुधन की वंशावलियों को जानने में मदद मिलेगी।
• इस प्रणाली की मदद से मानव जीन से संबंधित रोगों के कारणों का पता लगाया जा सकेगा, परंतु सभी रोगों का ज्ञान केवल जीन अनुक्रमण से संभव नहीं है।
• पशुओं में रोगों से लड़ने वाली प्रजातियों का विकास किया जा सकेगा।
• यह प्रणाली रोगों के उपचार के लिये नई विधियों का पता लगाने में उपयोगी सिद्ध होगी।
• किसी भी व्यक्ति में रोग लक्षण दिखने के पूर्व ही उसकी रोकथाम की जा सकेगी।
जीन चिकित्सा (Gene Therapy)
हमारे शरीर में अनेक बीमारियाँ ऐसी हैं जो या तो किसी जीन की संरचना में आए विकार के परिणामस्वरूप होती हैं या फिर किसी आवश्यक जीन की अनुपस्थिति के कारण। जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से ऐसी बीमारियों का उपचार अब संभव हो गया है। जीन चिकित्सा के माध्यम से अनुपस्थित अथवा विकृत जीन की पहचान करके उसे काटकर उसकी जगह दोषमुक्त जीन को प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। जीन चिकित्सा के अंतर्गत मुख्य रूप से तीन विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं-
• जीन प्रतिस्थापन (Gene Replacement)
• जीन सुधार (Gene Correction)
• जीन ऑग्मेंटेशन (Gene Augmentation)
विकृत अथवा दोषयुक्त जीन के स्थान पर विकृतिहीन जीन को प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया जीन प्रतिस्थापन (Gene Replacement) कहलाती है, जबकि जीन सुधार (Gene Correction) के अंतर्गत जीन में आए आणविक विकारों को थोड़ा परिवर्तित करके उसे ठीक किया जाता है। कोशिका के अंतर्गत विकृत जीन के साथ एक पूरी तरह से कार्य करने वाले जीन को डाल दिया जाता है जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हुए विकारों को दूर कर देता है, इस विधि को जीन ऑग्मेंटेशन कहा जाता है।
जीन चिकित्सा के लाभ (Benefits of Gene Therapy)
• राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा मेटास्टैटिक मेलानोमा का उपचार;
• माइलॉयड कोशिकाओं को प्रभावित करने वाले रोगों का उपचार; पार्किसन रोग का उपचार;
• हंटिंगटन कोइया का उपचार;
• थैलेसेमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस और कैंसर के कुछ प्रकारों का उपचार;
• चुहिया में सिकल सेल रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया है;
• एससीआईडी (सीवियर कंबाइंड इम्यूनो डिफिसिएंसी या 'बबल ब्वाय' रोग) के उपचार का विकास 2002 में किया गया।
जीन चिकित्सा की सीमाएँ (Limitations of Gene Therapy)
विभिन्न तकनीकी अवरोधों के कारण वैज्ञानिकों को जीन चिकित्सा का सतत और सफलतापूर्वक उपयोग करने में बाधाएँ आई हैं, फिर भी अनेक अध्ययनों से स्पष्ट होता है कि विभिन्न रोगों में उपचार के तौर पर जीन चिकित्सा का उपयोग सफलता के साथ किया जा सकता है।
तकनीकी पहलुओं के साथ-साथ अनेक नैतिक एवं धार्मिक प्रश्न भी इस चिकित्सा तकनीक के उपयोग से जुड़े हुए हैं। भले ही इस चिकित्सा तकनीक के जरिये भविष्य में उन्नत मानसिक और भौतिक क्षमताओं से युक्त 'सुपर ह्यूमन्स' तैयार किये जा सकते हैं, परंतु वर्तमान में प्रयुक्त जीन चिकित्सा तकनीकों की महत्त्वपूर्ण सीमाएँ भी हैं-
• जीन चिकित्सा की लघु आवधिक प्रकृति- शरीर के अंदर संकलित डी.एन.ए. के जरिये किसी प्रकार का सतत दीर्घावधिक लाभ मुश्किल है, क्योंकि अनेक कोशिकाओं की प्रकृति तीव्र विभाजन की होती है। किसी भी प्रकार के उपचार के लिये अक्सर जीन चिकित्सा के अनेक चक्रों की आवश्यकता पड़ती है।
• प्रतिरक्षी प्रतिक्रिया- शरीर अक्सर ऐसे वाहकों की पहचान करता है जो बाह्य पदार्थ के रूप में परिवर्तन योग्य जीन का वहन करते हैं और इस पर आघात करने के लिये एंटिबॉडी उत्पन्न करते हैं।
• विषाणु वाहकों से संबंधित समस्या- अक्रियाशील विषाणु वाहकों के उपयोग को लेकर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ हैं, जैसे- प्रतिरक्षी और उत्तेजनशील प्रतिक्रियाओं की संभावना, जीन नियंत्रण और विशिष्ट ऊतकों को लक्षित करने में कठिनाई तथा रोगजन्यता को बनाए रखने, उसे प्राप्त करने या उपचारित करने की विषाणुओं की क्षमता।
• जीन बहुल विकृति- जीन बहुल विकृति की प्रकृति और उपचार संबंधी जानकारी के अभाव में जीन चिकित्सा के ज़रिये 'एकल जीन विकृति' का उपचार ही उपयुक्त समझा जाता है, परंतु अनेक सामान्य बीमारियाँ, जैसे- हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, जोड़ों का दर्द और मधुमेह आदि बहुल जीन संपर्क के कारण हो सकती हैं। वस्तुतः जब तक इन बीमारियों के आनुवंशिक अवयवों से संबद्ध हमारी तकनीक और समझ विकसित नहीं हो जाती, तब तक जीन चिकित्सा के ज़रिये इनका उपचार नहीं किया जा सकता है।
जीन चिकित्सा के पक्ष में तर्क
• व्यक्ति में रोग के लक्षण दिखने के पूर्व ही उसकी रोकथाम की जा सकती है।
• जर्मलाइन जीन चिकित्सा के ज़रिये व्यक्ति और उसकी भावी पीढ़ी से संबद्ध बीमारी को समाप्त किया जा सकता है अर्थात् कुछ बीमारियाँ न केवल एक पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी से भी पूर्णत: उपचारित की जा सकती हैं।
• रोग उपचारों की नई विधियों का पता लगाने में उपयोगी।
जीन चिकित्सा के विरुद्ध तर्क
• रोगियों और उनकी भावी पीढ़ी पर जीन चिकित्सा के प्रभावों की दशकों तक निगरानी करनी पड़ेगी।
• यदि अविकसित भ्रूण या बच्चों पर शोध किया जाना हो तो पूर्वसूचनायुक्त सहमति का प्रश्न सामने दिखता है।
• साथ ही वैज्ञानिक अनिश्चितता, चिकित्सकीय जोखिम और दीर्घावधि में अज्ञात प्रभाव जैसे अवरोध भी दृष्टिगत होते हैं।
जीन चिकित्सा से संबंधित नैतिक मुद्दे
(Ethical Issues Related to Gene Therapy)
जीन चिकित्सा के परीक्षण को लेकर कुछ नैतिक मुद्दे उभरे हैं। ये मुद्दे अपने साथ कई आशंकाओं को समाहित किये हुए हैं, जैसे- जब कोई व्यक्ति जीन चिकित्सा के मद्देनज़र मानवीय अनुप्रयोग हेतु हस्ताक्षर करता है तो उससे पूर्वसूचनायुक्त सहमति लेना कितना महत्त्वपूर्ण है? किसे 'सामान्य' माना जाता है और किसे अयोग्यता या विकृति माना जाता है? 'सामान्य' का निर्धारण कौन करता है? क्या सोमैटिक जीन चिकित्सा, जर्मलाइन जीन चिकित्सा से अधिक नैतिकतापूर्ण है? क्या बीमा कंपनियाँ जीन चिकित्सा के लिये भुगतान करेंगी?
यदि जर्मलाइन जीन चिकित्सा के परिणाम नुकसानदेह हों तो भावी पीढ़ी पर इसका दीर्घावधिक प्रभाव क्या होगा?
क्या हम बिना भावी पीढ़ी की सहमति के उनके आनुवंशिक अवयवों में परिवर्तन कर सकते हैं?