जैव प्रौद्योगिकी की विभिन्न तकनीकें | Various Techniques of Biotechnology


(Various Techniques of Biotechnology)

आर.एन.ए. हस्तक्षेप (RNA interference-RNAI)

आर.एन.ए. हस्तक्षेप (RNA interference-RNAi) एक जीन साइलेंसिंग तकनीक है जो कि 'डबल स्टैंडेड आर.एन.ए.' के माध्यम से
लक्षित कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण को रोकती है और उनकी गतिविधियों को घटा या बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिये, ये एक मैसेंजर
आर.एन.ए. को प्रोटीन उत्पादन में रोक सकते हैं। कोशिकाओं को जेनेटिक पारासाइट्स (वायरस एवं ट्रांसपोसोन) से बचाने में आर.एन.ए. हस्तक्षेप की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

भारत के लिये उपयोगी क्यों?

● बीटी कपास और आनुवंशिक रूप से संशोधित अन्य फसलों के हो रहे विरोध को देखते हुए भारतीय संदर्भ में 'आर.एन.ए. हस्तक्षेप'
का व्यापक महत्त्व है।
●  यह अपेक्षित है कि भारत आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों के विनियमन के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करे। इन
परिस्थितियों में आर.एन.ए. आधारित समाधान एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है।
● ORNAi प्रौद्योगिकियों पर आधारित दवाओं के माध्यम से लोगों के कोलेस्ट्रॉल के स्तर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
● भारत सहित विश्व के कई देशों में मोटापा एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। ऐसे में यह तकनीक अत्यंत ही उपयोगी प्रमाणित हो
सकती है।
● यह तकनीक एड्स जैसे संक्रमणों के उपचार में भी बहुत महत्त्व रखती है। भारत सहित एशिया के कई देशों में एड्स एक गंभीर
और लाइलाज बीमारी है। अतः आर.एन.ए. तकनीक पर आधारित दवाओं को बढ़ावा मिलना चाहिये।

एंटीसेंस तकनीक (Antisense Technology)

● कुछ विकारों, जैसे- कैंसर, परजीवी और वायरल संक्रमण जो रोज़मर्रा के जीवन में विशिष्ट प्रोटीन का अत्यधिक उत्पादन करते हैं, के लिये
एक वैकल्पिक उपचार एंटीसेंस तकनीक के रूप में जाना जाता है।
● एंटीसेंस आर.एन.ए. एक सिंगल स्टैंडेड आर.एन.ए, है जो कि किसी कोशिका के अंदर प्रतिलिखित mRNA स्टैंड का पूरक
● Translation प्रक्रिया को बाधित करने के लिये एंटीसेंस आर.एन.ए, को कोशिका में प्रवेश कराया जाता है। यह प्रक्रिया सेंस mRNA के
साथ बेस पेयरिंग तथा RNase एंजाइम की सक्रियता से संपन्न होती है।
● उल्लेखनीय है कि जीन अभिव्यक्ति को बाधित करने के लिये एंटीसेंस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
● एंटीसेंस तकनीक की सहायता से टमाटर की एक नई किस्म के उत्पादन में आशाजनक परिणाम देखने को मिले हैं। टमाटर की इस
किस्म को सामान्यत: 'फ्लेवर सेवर' (Flavr Savr) के नाम से जाना जाता है जो जल्द खराब नहीं होती है।
● भविष्य में एंटीसेंस तकनीक की सहायता से कैंसर के इलाज की संभावनाएँ व्यक्त की जा रही हैं।

जीन अभिव्यक्ति (Gene Expression)

जीन अभिव्यक्ति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जीन की जानकारी का उपयोग कार्यात्मक जीन के उत्पाद के संश्लेषण में की जाती है।

जीन साइलेंसिंग (Gene Silencing)

● जीन साइलेंसिंग का अर्थ जीन की अभिव्यक्ति को रोकने से है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रोटीन की प्रति (Copy) जीन के स्तर
पर नहीं बननी होती है।
● ज्ञातव्य है कि डबल स्टैंडेड डी.एन.ए. में transcription की प्रक्रिया से RNA बनता है तथा RNA के translation से प्रोटीन का
निर्माण होता है।
● जीन साइलेंसिंग मुख्यत: तीन स्तर पर होती है-
◆ DNA को हटाकर
◆ Transcription स्तर पर
◆ Translation स्तर पर

एंटीसेंस थेरेपी (Antisense Therapy)

● यह आनुवंशिक विकार या संक्रमण के उपचार का एक तरीका है।
● इसमें एक पूरक mRNA स्टैंड ज्ञात रोगजनक अनुक्रम पर संश्लेषित किया जाता है और जो अपचयनीय RNase को सक्रिय करके पैथोजेनिक जीन को बंद कर देता है।

● कैंसर, एचआईवी, साइटोमेगालोवायरस (CMV) आदि के इलाज के लिये एंटीसेंस दवाओं की खोज की जा रही है।
● 'Fomivirsen', CMV के इलाज के लिये विकसित की गई पहली एंटीसेंस एंटीवायरल दवा है। इसे अगस्त 1998 में एफडीए (Food
and Drug Administration) द्वारा लाइसेंस प्राप्त हुआ था।

जीन अभियांत्रिकी (Genetic Engineering)

जीन अभियांत्रिकी वस्तुतः एक तकनीक है जिसके अंतर्गत किसी जीव के किसी विशेष लक्षण अथवा लक्षणों में वांछित सुधार लाने के
उद्देश्य से उस विशेष लक्षण अथवा लक्षणों को नियंत्रित करने वाले जीन में कृत्रिम तरीके से परिवर्तन किया जाता है। इसलिये किसी विशेष
डी.एन.ए. खंड को या किसी विशिष्ट जीन या जीनों को अलग करके उन्हें नए जीवों में आरोपित कर दिया जाता है, जैसे- किसी जीन या
जीनों का किसी जीवाणु से मनुष्य में अथवा पौधों, जंतुओं में हस्तांतरित करना या इसकी विपरीत प्रक्रिया। इससे जीनों का एक बिल्कुल नए
प्रकार का पुनर्संयोजन (Recombination) बनता है या दूसरे शब्दों में कहें तो पुनर्संयोजित डी.एन.ए. (Recombinant DNA) बनता है। इस प्रकार जीन अभियांत्रिकी तकनीक के माध्यम से किसी जीव में वांछित लक्षणों को प्राप्त किया जा सकता है।
जीन अभियांत्रिकी का एक महत्त्वपूर्ण एवं प्रत्यक्ष लाभ यह है कि इसकी सहायता से असाध्य एवं आनुवंशिक बीमारियों का निराकरण किया
जा सकता है। इसके अतिरिक्त, इसके माध्यम से पशुओं की अधिक उत्पादक एवं उपयोगी नस्लों का विकास भी संभव है। वर्तमान समय में
जीन अभियांत्रिकी का उपयोग मुख्य रूप से एड्स, हृदय से संबंधित रोगों, मलेरिया, हीमोफीलिया एवं अन्य घातक बीमारियों आदि के लिये
वैक्सीन निर्माण में किया जा रहा है।

नोट: जेनेटिक इंजीनियरिंग का पहला व्यावसायिक प्रयोग 1982 में हुआ जब जीन इंजीनियरों ने मधुमेह के उपचार के लिये कृत्रिम इंसुलिन
का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की थी।

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