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 जैविक हथियार अभिसमय (Biological Weapons Convention-BWC)



विश्व जैविक हथियार अभिसमय पर अप्रैल 1972 में हस्ताक्षर किये गए थे और मार्च 1975 में इस संधि को लागू कर दिया गया था। इंसानों
को बड़े स्तर पर खत्म करने के तमाम तरह के जैविक हथियारों से छुटकारा पाने की यह पहली बहुराष्ट्रीय संधि अस्तित्व में आई थी। इस
संधि का मूल उद्देश्य वैश्विक स्तर पर जैविक युद्ध की संभावना को न्यूनतम करना है और इसके तहत किसी भी स्थिति में ऐसे जैविक हथियारों को उत्पादित, विकसित और संगृहीत करने की इजाजत नहीं है, जिनका-
• किसी रोग निरोधी, प्रतिरोधक और शांतिपूर्ण उद्देश्यों में कोई उपयोग न हो (भले ही उनका उत्पादन कैसे भी किया गया हो)।
• युद्ध आदि के दौरान शत्रु पक्ष के विरुद्ध ऐसे किसी भी हथियार, संयंत्र का उपयोग नहीं किया जा सकता।

जैव नकल (Biopiracy)

किसी देश के जैविक संसाधनों, उनसे प्राप्त उत्पादों तथा उन संसाधनों के बारे में परंपरागत ज्ञान का अनेक कंपनियाँ उस देश की
अनुमति के बिना व्यावसायीकरण करती हैं और उस देश को क्षतिपूरक भुगतान भी नहीं देतीं। साथ ही उत्पाद व प्रक्रिया पर पेटेंट भी हासिल करती हैं। इसे 'बायोपायरेसी' के अंतर्गत रखा जाता है।

बायोपायरेसी के उदाहरण

• यू.एस. के कृषि विभाग तथा एक अमेरिकी कंपनी W.R.Grace ने नीम के पौधे से कवक रोधी गुणों को हासिल करने की विधि पर
पेटेंट हासिल करने का प्रयास किया था, परंतु अनेक संस्थानों के विरोध के कारण इस पेटेंट को नहीं दिया गया।
• यू.एस. की एक कंपनी ने बासमती चावल की संकर (Hybrid) प्रजातियों पर पेटेंट हासिल करने का प्रयास किया था, जिसे भारत
सरकार के हस्तक्षेप के कारण मंजूरी नहीं दी गई।
• एनोला बीन (Enola Bean) की एक मैक्सिकन पीली रंग की प्रजाति पर पेटेंट हासिल करने वाली कंपनी की हार हुई तथा पेटेंट खारिज
करना पड़ा।

बायोपायरेसी के प्रति बढ़ती चिंताओं के कारण ही भारत सरकार द्वारा देशज ज्ञान को अनुवाद कर प्रकाशित करवाया जाता है। इस ज्ञान
को इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध करवाने के लिये TKDL (Traditional Knowledge Digital Library) बनाई गई, जहाँ देशज ज्ञान को
ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है।

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