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 डीएनए प्रोफाइलिंग विधेयक (DNA Profiling Bill)



भारत में सर्वप्रथम वर्ष 1985 में अदालतों ने डी.एन.ए. को साक्ष्य के तौर पर स्वीकार करना आरंभ किया था। इसके बाद वर्ष 2005 में
जाकर कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) में कुछ संशोधन किये गए। इन संशोधनों के अनुसार, कोई भी मान्यता प्राप्त डॉक्टर किसी
पुलिस अधिकारी (जो कम से कम सब-इंस्पेक्टर के पद पर होना चाहिये) की अनुमति लेकर किसी अपराध में पकड़े गए अपराधी का डी.एन.ए. विश्लेषण कर सकता है। यह शर्त भी जोड़ी गई कि ऐसा तभी होगा, जब संबंधित व्यक्ति के परीक्षण से कुछ नई बातें सामने आनी हों। हालांकि इन संशोधनों में यह स्पष्ट किया गया था कि डी.एन.ए. नमूने इकट्ठा करने के लिये आधिकारिक अनुमति आवश्यक होगी। इसलिये केवल पंजीकृत चिकित्सा अधिकारी को ही डी.एन.ए. के नमूने लेने का प्रावधान किया गया। लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि इकट्ठा किये गए नमूनों का बाद में रख-रखाव कैसे किया जाएगा? डी.एन.ए. विश्लेषण के बाद नमूनों का क्या होगा?

इन अस्पष्टताओं के चलते ही डी.एन.ए. नमूनों के संग्रहण, उनके इस्तेमाल और विश्लेषण के लिये एक समग्र कानून की आवश्यकता
महसूस की गई। वैसे देखा जाए तो अपराध संबंधी मामलों में डी.एन.ए. नमूनों के विनियमन के लिये कानून बनाने की कवायद वर्ष 2003 में ही आरंभ हो गई थी। इसी क्रम में बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग बिल-2006 का प्रारूप बनाने के लिये एक डी.एन.ए.
प्रोफाइलिंग सलाहकार समिति गठित की गई। इस समिति के सुझावों के आधार पर 2007 में ह्यूमन डी.एन.ए. प्रोफाइलिंग बिल तैयार हो सका। 2007 में इस बिल का ड्राफ्ट सार्वजनिक हुआ, लेकिन इसे संसद में पेश नहीं किया जा सका। वर्ष 2012 में इस प्रस्तावित बिल का एक और संस्करण सार्वजनिक दायरे में आया। इसके बाद निजता के अधिकार से जुड़ी चिंताओं को संबोधित करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर टी.एस. राव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। 2015 में भी इससे संबंधित विधेयक का एक प्रारूप तैयार किया गया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अगस्त 2018 में डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी (उपयोग एवं अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2018 को मंजूरी दे दी गई जो कानून प्रवर्तन एजेंसियों को डी.एन.ए. के नमूने एकत्र करने, डी.एन.ए. प्रोफाइल बनाने और अपराधियों की फॉरेंसिक जाँच के लिये विशेष डेटाबेस तैयार करने की अनुमति देता है। इस विधेयक का उद्देश्य अपराधों की जाँच दर में बढ़ोतरी के साथ देश की न्यायिक प्रणाली को समर्थन देने एवं उसे सुदृढ़ बनाने के लिये डी.एन.ए. आधारित फॉरेंसिक प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग को विस्तारित करना है।

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