फॉरेंसिक साइंस (Forensic Science)
फॉरेंसिक साइंस भिन्न-भिन्न प्रकार के विज्ञानों का उपयोग करके न्यायिक प्रक्रिया से संबंधित प्रश्नों का उत्तर देने वाला विज्ञान है। ये न्यायिक प्रश्न किसी आपराधिक या दीवानी मामले से संबंधित हो सकते हैं। फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपनी जाँच के क्रम में घटनास्थल से विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक साक्ष्यों को जमा कर, विश्लेषित करते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं।
फॉरेंसिक वैज्ञानिक अपराध स्थल से एकत्र किये जाने वाले प्रभावित व्यक्ति के शारीरिक सबूतों का विश्लेषण करते हैं तथा संदिग्ध
व्यक्ति से संबंधित सबूतों से उसकी तुलना करते हैं और न्यायालय में प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। इन सबूतों में रक्त के चिह्न, लार,
शरीर का कोई अन्य तरल पदार्थ, बाल, उँगलियों के निशान, जूते तथा टायरों के निशान, विस्फोटक, विष, रक्त और मूत्र के ऊतक
आदि सम्मिलित हो सकते हैं। वर्तमान समय में अपराध अनुसंधान की भूमिका काफी बढ़ी है। इसे हम निम्न रूपों में देख सकते हैं-
● कई बार किसी अपराध/घटना का कोई गवाह नहीं होता है। ऐसे में फॉरसिक साइंस की महत्ता काफी बढ़ जाती है।
● यौन और विष आदि से संबंधित अपराध में फॉरेंसिक साइंस की महत्ता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
● हथियारों की जाँच के आधार पर फॉरसिक वैज्ञानिक हत्या में हथियार के प्रयोग आदि के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाता
है, जिससे कई मामलों में अपराधी को पकड़ने में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त होती है।
● फॉरेंसिक विज्ञान साइबर क्राइम में भी अपराधी की पहचान सुनिश्चित करने में मददगार होता है। इस प्रकार हम पाते हैं कि फॉरेंसिक
साइंस अपराध अनुसंधान में कई अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर देने में सक्षम है।
विशेष
● भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 45 व धारा 46 फॉरेंसिक साइंस की विधि मान्यता से संबंधित है, इसके अनुसार-
◆ यदि न्यायालय आवश्यक समझे तो वह प्राप्त तथ्यों से संबंधित विशेषज्ञों के मत को संबंधित मामले में मान्यता प्रदान कर
सकता है।
◆ वैसे साक्ष्य जो अप्रासंगिक प्रतीत होते हैं उन्हें प्रासंगिक माना जा सकता है, यदि विशेषज्ञों की राय साक्ष्य की प्रासंगिकता के संबंध
में संगत हो।
● डी.एन.ए. टेस्ट या अन्य फॉरेंसिक विधियों के संबंध में किसी स्पष्ट प्रावधान का अभाव है। CrPC की धारा-53 पुलिस जाँच अधिकारी
को शारीरिक द्रव्य
(रक्त, वीर्य या योनिस्राव)आदि को घटनास्थल से किसी वैध चिकित्सा विशेषज्ञ की मदद से जमा करने तथा इस संबंध में जाँच कर रिपोर्ट
प्रस्तुत करने की अनुमति देती है तथापि कई बार न्यायालयों द्वारा इसे कानूनी या संवैधानिक बाध्यता के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है।