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 Bihar Board 10th Sanskrit Objective Answers  भीष्म-प्रतिज्ञा

Bihar Board 10th Sanskrit Objective Answers  भीष्म-प्रतिज्ञा

class – 10

subject – sanskrit

lesson 7 – भीष्म – प्रतिज्ञा

भीष्म – प्रतिज्ञा

प्रथमं दृश्यम्

स्थानं राज – भवनम्

( उदासीनः चिन्तानिमग्नश्च देवव्रतः प्रविशति )

देवव्रतः- ( स्वगतम् ) अहो , न जाने केन कारणेन अद्य में पितृचरणा : चिन्ताकुला उदासीनाश्च विलोक्यन्ते । किं तेषां काचित् शारीरिकी पीड़ा अथवा किमपि मानसिकं कष्टं वर्तते । तत् अमात्यसमीपे गत्वा पितुः शोककारणं पृच्छामि । पितुश्चिन्ताया अपनयनं तस्य प्रसादनं च पुत्रस्य प्रधानं कर्तव्यं भवति ।
पिता स्वर्गः पिता धर्मः पिता हि परमं तपः ।
पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः ।।
धिक् तं सुतं यः पितुरीप्सितार्थ क्षमोऽपि सत्र प्रतिपादयेद् यः ।
जातेन किं तेन सुतेन कामं पितुर्न चिन्तां हि समुद्धरेद् यः ।।

द्वितीयः दृश्यम्
स्थानम् – अमात्यभवनम्

अमात्यः- ( आयान्तं भीष्मं दृष्ट्वा ) अहो , राजकुमारः देवव्रतः । आगम्यताम् , अलंप्रियतामासनमिदम् । ( देवव्रतः प्रणम्य उपविशति ) राजकुमार ! कुतो नाम एतस्मिन् असमये अन्न आगमनं भवत 😕
देवव्रत : -अमात्यवर्याः ! अद्य किमपि नूपतनं वृत्तं दृष्ट्वा विस्मितमानसः तन्समाधानाय भवत्समीपं समुपागतोऽस्मि ।
अमात्यः- ( साश्चर्यम् ) तत् किमिति ?
देवव्रतः – विद्यमानेष्वपि समस्तेषु सुखसाधनेषु न जाने अद्य केन हेतुना मम पितृपादाः दुखिताः चिन्ताकुलचेल्सश्व प्रतीयन्ते । तदेतत्य कारणमहं ज्ञातुमिच्छामि , ज्ञात्वा च तस्य प्रतीकार कर्तुमिच्छामि ।

अमात्यः उचितमेवैतद् भवादृशानामार्यपुत्राणाम् ।
देवव्रत : -तद् यदि भवन्तः एतस्य कारणं जानन्ति तर्हि तत्प्रकाशनेन अनुग्रहीतव्योऽस्मि ।
अमात्य : -राजकुमार ! वाहं जानामि । एतस्य कारणं तु आर्यपुत्र एकस्ति ।
देव्रतः- ( साश्चर्यम् ) अहमेव कारणम् ? हा धिक । तत् कथमिव ? साष्टं निगद्यताम् । अमात्यः राजकुमार ! एकस्मिन् दिने महाराजः सन्याविहार खेलाथां यमुनानदीतीरे परिभ्रमति स्म ।
तदानीं दूरादेव स्वशरीरसुगन्धेन निखिलमपि वन सुवासयीन्त एका सत्यवती नाम्नी परमसुन्दरी धीवराजकन्या तस्य अकस्मात् दृष्टिपथ गता । ततस्तस्या अद्भुतेन रूपेण विस्मयजनकेन सुगन्धेन च सुग्धे महाराजस्तया सह विवाहं कर्तुकामस्तस्याः पितरम् अचायत ।
देववतः ततस्तेन किं कथितम् ?
अमात्यः – ततस्तेन कथितम् महाराज ! ईदृशः सम्बन्धः कस्य अप्रिया भविष्यत्ति परन्तु अहं भवता सह सत्यवत्याः तदैव विवाहं करिष्यामि यदा भवदनन्तरं अस्याः एव पुत्रो राजा भविष्यति ” इति भवान् प्रतिज्ञा कुर्यात् ।।
देवव्रतः – ततो महाराजः किम् अवोचत् ?
अमात्यः ततो महाराजः किमपि उत्तरं न दत्त्वान् । ततश्च आगत्य ” कथं ज्येष्ठं पुत्रं विहाय सत्पवतीसुताय राज्यं देयम् प्रतिज्ञाऽभावे च कथं सत्यवती लभ्यते इत्यमेव अहर्निश चिन्तयति । इदमेव तस्य चिन्तायाः दुःखस्य च कारणं वर्तते ।
देवव्रतः – महामात्य ! यदि एतावन्मत्रमेव कारणं वर्तते तहि सर्वथा अकिश्चित्करमेतत् । इदानीमेव अहं तस्य अपनयनाय उपायं करोमि ।

( प्रणम्य निष्क्रान्तः )
तृतीय दृश्यम्
( वने धीवरराजस्य समीपं देवव्रतस्व गमनं वार्ता च )

धीवर : -जलनिरीक्षण – परायणस्तिष्ठति
धीवरः- ( देवव्रतं दृष्ट्वा – स्वगतम् ) अहो तेजस्विता अस्य कुमारस्य । ( प्रकटम् ) कुमार । भवतः परिचयं आगमनकारणं च धातुमिच्छामि ।
देवव्रत : -दाशराज ! महाराजस्य शन्तनोः प्रियः पुत्रोऽहं देवव्रतनामा । इदश्च मम आगमनकारणाम् । अस्ति काचित् भवतो दुहिता सत्यवती नाम परमसुन्दरी ।
धीवर : -आम् , अस्ति एक ।
देवव्रतः — तया सह विवाहार्थम् अस्माकं तातपादाः चिन्ताकुलाः सन्ति । तद् भवान् सत्यवतीप्रदानेन महाराज चिन्तामुक्तं करोतु इति निवेदनं कर्तुम् अहं भवतः समीपमुपागतोऽस्मि ।
धीवरः – महाराजकुमार ! भवतः पितृश्चिन्ताया अपनयनस्य उपायस्तु भवतामेव हस्ते वर्तते ।
देवव्रत : -तत् कथमिव ?
धीवर : -यतो हि महराजशन्तनो : पश्चात् सत्यवतीपुत्र एवं यदा राज्याधिकारी भविष्यति तदैव अहं तस्या महाराजेन सह विवाहं करिष्यामि इति में प्रतिज्ञा अस्ति । भवन्तश्च महाराजश्च ज्येष्ठपुत्रा इति धर्मत एव राज्याधिकारिणः । तत् कथमहं सत्यवतीपुत्रस्य राज्यलाभ सम्भावयामि ? इयमेव सत्यवतीप्रदाने महती बाधा अस्ति ।
देवव्रतः ( सदाढर्यम् ) दाशराज ! इयं काचिद् बाधा नास्ति । भवतः प्रतिज्ञापूरणाय अहं बद्धपरिकरोऽस्मि । महाराजाऽनन्तरं सत्यवतीपुत्र एव राज्याधिकारी भविष्यति । इत्यहं शतश : सर्वषां पुरस्तात् उद्घोषयमि । तद् भवान् निर्भयो भूत्वा विवाहाय कृतनिश्चयो भवतु ।
धीवरः- सत्यमेतत् । नास्ति भवतः प्रतिज्ञायां मम सन्देहलेशोऽपि । परन्तु भवदनन्तरं यदि भवतः कश्चित् पुत्रो भवत्प्रतिज्ञाभङ्ग कुर्यात् तर्हि सत्यवतीपुत्रस्य का गतिः भविष्यति ?
देवव्रतः – अस्तु नाम , इममपि भवतो भयं सन्देहं च अहं निवारयामि । सत्यवतीसूनुरेव राज्याधिकारी भविष्यति इति पूर्वमेव प्रतिज्ञातं मया । तथापित यदि ते मनसि एतादृशी आशङ्का वर्तत तर्हि पुनरपि अहं भीषणं प्रणं करोमि यत् अहं कदापि विवाहं न करिष्यामि , आजीवन च अखण्डितं ब्रह्मचर्यव्रतं धारयिष्यामि ।
अद्य प्रभृत मे दाश ! ब्रह्मचर्य भविष्यति ।
अपुत्रस्यापि मे लोका भविष्यन्तक्षया दिवि ।।
अपि च परित्यजेदं त्रैलोक्यं राज्यं देवेषु वा पुन । यद्वाऽप्यधिकमेताभ्यां न तु सत्यं कदाचन ।।
त्यजेच्च पृथिवी गनधम् आपश्च रसमात्मनः । ज्योतिस्तथा त्यजेद् रूपं वायुः श्पर्शगुणं त्यजेत् ।। प्रभां समुत्सृजेदकों धूमकेतुस्तथोष्मताम् ।
त्यजेत् शब्द तथाऽकाशः सोमः शीतांशुतां त्यजेत् । विक्रमं वृत्रहा जगात् धर्म जह्याच्च धर्मराट् ।।
न त्वहं सत्यमुत्रष्टुं व्यनसेयं कथञ्चव ।।
( नेपथ्ये साधुवदः आकाशात् पृष्यवृष्टिश्च भवति ) धीवर 🙁 बद्वाञ्जलिः ) अहो राजकुमार ! धन्योऽसि , आदर्शपुत्रोऽसि । भवादृशैरेव पुत्रैः इयं भारतवसुन्धरा आत्मानं धन्यधन्यां मनुते । महानुभाव । गम्यतामिदानीम् । अचिरादेव अहं महाराजस्य मनोरथं पूरयामि ।

प्रथमं दृश्यम् ( प्रथम दृश्य )
स्थानं राज – भवनम्
( स्थान – राजभवन )

हिन्दी रूपान्तरः
( उदासीन और चिन्त निमग्न देवव्रत का प्रवेश )

देवव्रत- ( स्वयं से ) अहो , न जाने किस कारण से आज मेरे पिताजी का पैर चिन्ताकुल और उदासीन दिखाई पड़ रहा है । क्या उनमें कोई शारीरिक पीड़ा अथवा कुछ मानसिक कष्ट है । इसलिए अमात्य के समीप जाकर पिता के शोक का कारण पूछता हूँ । पिता की चिन्ता दूर करना और उनको खुश करना पुत्र का प्रधान कर्तव्य होता है ।
पिता ही स्वर्ग है पिता ही धर्म है , पिता ही सबसे बड़ा तप है । पिता में प्रीति आने पर सभी देवता प्रसन्न हो जाते हैं ।
धिक्कार है , उस बेटा को जो पिता की प्रसन्नता के लिए सक्षम होकर भी वैसा नहीं करता है । उस बेटा को जन्म लेना ही किस काम का जो पिता को चिन्ता से नहीं उबार सके ।

द्वितीय दृश्य
( स्थान – अमात्य भवन )

अमात्य- ( आते भीष्म को देखकर ) अहो , राजकुमार , देवव्रत । आवें , इस आसन की शोभा बढ़ावें ।
( देवव्रत प्रणाम कर बैठता है ) राजकुमार ! क्या कारण है इस असमय पर आपके आने का ।
देवव्रत – अमात्य श्रेष्ठ ! आज कुछ नई बात देखकर विस्मित मन से उसके समाधान के लिए आपके समीप उपस्थित हूँ ।
अमात्य- ( आश्चर्य से ) वह क्या है?
देवव्रत – सारे सुख – साधनों के होते हुए भी न जाने आज किस कारण से मेरे पिताजी का पैर दु : खी और चिन्ताकुल लग रहा है । उसी कारण को जानना चाहता हूँ और जानकर उसे दूर करना चाहता हूँ । अमात्य – आप जैसे आर्यपुत्र के लिए यह उचित हो है ।
देवव्रत – इसलिए यदि आप इसका कारण आनते हैं तो उसे बताने से मैं धन्य हो  जाऊँगा ।
अमात्य – राजकुमार ! सही जानता हूँ । इसका कारण तो आर्यपुत्र आप ही हैं ।
देवव्रत- ( आश्चर्य से ) मैं ही कारण हूँ ? हाय , धिक्कार है मुझको । वह किस प्रकार का है ? स्पष्ट करें ।
अमात्य – राजकुमार ! एक दिन महाराज नौका विहार खेलते समय यमुना नदी के तीर पर घूम रहे थे । उस समय दूर से ही अपने शरीर की सुगन्ध से सम्पूर्ण वन को सुगन्धित करती हुई सत्यवती नाम की परम सुन्दरी धीवर राज की कन्या अकस्मात् उनकी नजर में आ गई । उसके बाद उसकी अद्भुत रूप और विस्मय पैदा करने वाली सुगन्ध से मुग्ध महाराज ने उसके साथ विवाह करने की इच्छा से उसके पिता से याचना की ।

देवव्रत – इसके बाद उनके द्वारा क्या कहा गया ? अमात्य – इसके बाद उनके द्वारा कहा गया – महाराज ! इस प्रकार के सम्बन्ध से किसका अप्रिय होगा , परन्तु मैं आपके साथ सत्यवती का विवाह तभी करूंगा जब आपके बाद इसका ही पुत्र राजा होगा । ” यह आप प्रतिज्ञा करें ” ।
देवव्रत – इसके बाद महाराज ने क्या बोला ?
अमात्य – इसके बाद महाराज ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया और इसके बाद आकर ” कैसे ज्येष्ठ पुत्र को छोड़कर सत्यवती पुत्र को राज्य देना इस प्रतिज्ञा के अभाव में और कैसे सत्यवती को पाया जा सकता है , इसी विषय में दिन – रात चिन्तन करते रहते हैं । यही उनकी चिन्ता और दुःख का कारण है ।
देवव्रत – हे महामंत्री । यदि मात्र इतना कारण है तो इसके लिए कुछ नहीं करना है । इसी समय मैं उसको दूर करने का उपाय करता हूँ । ( प्रणाम कर निकलता है । )

तृतीय दृश्य
( वन में धीवर राज के समीप देवव्रत का जाना और पुकारना , धीवर जल निरीक्षण में लगा है । )
धीवर- ( देवव्रत को देखकर अपने – आप ) इस राजकुमार की तेजस्विता तो अजीब है । ( प्रकट होकर ) कुमार ! आपका परिचय और आने का कारण जानता चाहता हूँ ।
देवव्रत – हे दाशराज । महाराज का प्रिय पुत्र , देवव्रत मेरा नाम है और यह है मेरे आगमन का कारण आपकी कोई सत्यवती नाम की परम सुन्दरी कन्या है ।
घीवर – हाँ , है एक ।
देवव्रत – उसके साथ विवाह के लिए मेरे पिता की चरणे चिन्ताकुल है । इसलिए आप सत्यवती को प्रदान कर महाराज को चिन्तामुक्त करें , यही निवेदन करने के लिए मैं आपके समीप आया हूँ ।
धीवर – महाराज कुमार ! आपके पिता को चिन्ता दूर करने का उपाय आपके ही हाथ देवव्रत – वह किस प्रकार का ?
धीवर – यही कि महाराज शान्तनु के पश्चात् सत्यवती का पुत्र ही जब राज्याधिकारी होगा तब ही मैं उसको महाराज के साथ विवाह करूंगा , यह मेरी प्रतिज्ञा है और आप महाराज के ज्येष्ठ पुत्र हैं । धार्मिक रूप से आप ही राज्य के अधिकारी हैं । इसलिए मैं सत्यवती पुत्र के राज्य लाभ की सम्भावना कैसे मान लू । यही सत्यवती प्रदान के मार्ग में बड़ी बाधा है ।
देवव्रत- ( दृढ़ स्वर में ) दाशराज ! यह कोई बाधा नहीं है । आपकी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मैं दृढ़ संकल्प हूँ । महाराज के बाद सत्यवती का पूत्र ही राज्याधिकारी होगा यह मैं सैकड़ों बार सबों के सामने उद्घोषणा करता हूँ । इसलिए आप निर्भय होकर विवाह के लिए निश्चय कर लें ।
धीवर – यह सत्य है । आपकी प्रतिज्ञा में मेरा तनिक भी संदेह नहीं है । परन्तु आपके बाद यदि आपका कोई पुत्र आपकी प्रतिज्ञा भंग कर दिया तो सत्यवती पुत्र की क्या गति होगी ।
देवव्रत – ऐसा नहीं होगा । यह भी आपका भय और संदेह को मैं दूर कर देता हूँ । सत्यवती के पुत्र ही राज्याधिकारी होगा ऐसा मेरे द्वारा पहले ही प्रतिज्ञा की जा चुकी है । इसके बाद भी यदि आपके मन में इस प्रकार की शंका है तो पुन : मैं भीषण प्रण करता हूँ कि मैं कभी भी विवाह , नहीं करूँगा और आजीवन अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत धारण करूंगा ।
हे दाश । आज दिन से मैं ब्रह्मचर्य को धारण करूँगा । बिना पुत्र का भी मुझे अक्षय स्वर्ग लोक प्राप्त होगा । और भी इससे भी अधिक बात है तो मैं पुनः घोषण करता हूँ तीनों लोकों को छोड़ सकता हूँ , देव लोक में स्थान का त्याग कर सकता है फिर यह राज्य क्या है । लेकिन मेरी सत्य प्रतिज्ञा कभी असत्य नहीं होगी । भले ही – पृथ्वी गन्ध को छोड़ दे , जल अपने में रस का परित्याग कर दे , प्रकाश अपना रूप त्याग दे , वायु अपना स्पर्श गुण त्याग दे , सूर्य अपनी प्रभा त्याग दे , धूमकेतु अपनी गर्मी त्याग दे , आकाश शब्द को त्याग दे , इन्द्र अपना पराक्रम त्याग दे , धर्मराज अपना धर्म छोड़ दें । लेकिन मैंने जो आपको सत्य कहा है वह कभी असत्य नहीं होगा ।
( नेपथ्य में ‘ धन्य हो ‘ आकाश से पुष्पवृष्टि होती है )
धीवर – ( हाथ जोड़कर ) हे राजकुमार ! तुम धन्य हो , आदर्श पुत्र हो । आप जैसे ही पुत्र से यह भारत की भूमि अपने – आपको धन्य – धन्य मानती है । महानुभाव ! इस समय आप जाएं । शीघ्र ही मैं महाराज की मनोरथ को पूरा करता हूँ ।

अभ्यास

प्रश्न : 1. देवव्रतः कः आसीत् ?
उत्तरम् – देववतः महाराजस्य शान्तनोः प्रियः ज्येष्ठः च पुत्रः आसीत् ।
प्रश्न : 2 , देवव्रतः का प्रतिज्ञाम् अकरोत् ?
उत्तरम् – देवव्रतः प्रतिज्ञा अकरोत् यत – अह राज्याधिकारी न भविष्यामि विवाह न करिष्यामि आजीवन अखण्डितं ब्रह्मचर्य व्रतं च धारयिष्यामि । प्रश्न : 3. सत्यवती कस्य दुहिता आसीत ?
उत्तरम् – सत्यवती दाशराजस्य दुहिता आ

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