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 bihar board 11 biology solutions | शरीर द्रव तथा परिसंचरण

bihar board 11 biology solutions | शरीर द्रव तथा परिसंचरण

शरीर द्रव तथा परिसंचरण
                          (BODY FLUID AND CIRCULATION)
                                           अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
1. रक्त समूह का खोज किसने किया था?
उत्तर-लैंडस्टीनर ने 1900 ई. में।
2. मानव रक्त में W.B.C. की संख्या वतायें।
उत्तर-6000-8000 कण/घन मिलि रक्त में।
3. एक स्वस्थ मनुष्य के रक्त में R.B.C. की संख्या बतायें।
उत्तर-45-50 लाख कण प्रति घन मिलि. रक्त में।
4. एक स्वस्थ मनुष्य के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा बतायें।
उत्तर-12-16gm प्रति 100 मिली. रक्त में।
5. शरीर का सैनिक किसे कहा जाता है?
उत्तर-W.B.C.
6. रक्त का तरल भाग क्या कहलाता है?
उत्तर-प्लाज्मा या प्लविका।
7. एक ऐसी कोशिका जिसमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है?
उत्तर-R.B.C.
8. W.B.C. का जीवनकाल बतायें।
उत्तर-केवल एक दिन।
9. मनुष्य में लाल तथा श्वेत रुधिर कोशिकाओं का अनुपात कितना होता है
उत्तर-600:1
10. रक्त का कौन-सा भाग रक्त को थक्का बनने में मदद करता है?
उत्तर-बिम्बाणु (Plateletes)।
11. किस रक्त समूह को सार्वत्रिक ग्राही (Universal acceptor) कहा जाता है?
उत्तर-रक्त समूह AB को।
12. किस रक्त समूह को सार्वत्रिक दाता (Universal Donor) कहा जाता है?
उत्तर-रक्त समूह O को।
13. मानव हृदय में कितने चैम्बर होते हैं?
उत्तर-चार चैम्बर, जिन्हें क्रमशः दायाँ अलिन्द, बायाँ अलिन्द, दायाँ निलय एव बायाँ
निलय कहा जाता है।
14. रक्त दाब (Blood Pressure) मापने वाले यंत्र को क्या कहा जाता है?
उत्तर-स्फिग्नोमैनोमीटर।
15. E.C.G. का पूरा नाम बताये।
उत्तर-ECG-Electrocardiograph (हृदय धड़कन मापक यंत्र)।
16. किस धमनी में अशुद्ध रक्त बहता है?
उत्तर-फुफ्फुसीय धमनी (Pulmonary Artery)।
17. किस शिरा में शुद्ध रक्त बहता है?
उत्तर-फुफ्फुसीय शिरा (Pulmonary vein)।
18. सबसे बड़े लसिका अंग का नाम बतायें।
उत्तर-प्लीहा (Spleen)।
19. लसिका के प्रवाह की दिशा बतायें।
उत्तर-ऊतकों से हृदय की ओर।
20. लसिका का रंग कैसा होता है?
उत्तर-हल्का पीला।
21. रक्त का pH मान क्या होता है?
उत्तर-रक्त एक क्षारीय तरल पदार्थ है। इसका pH मान 7.4 होता है।
22. मानव शरीर में कौन-सा रक्त समूह पाया जाता है?
उत्तर-मानव शरीर में चार रक्त समूह उपस्थित होते हैं-
A, B, AB एवं O रक्तसमूह।
                                            लघु उत्तरीय प्रश्न
1. प्लाज्मा प्रोटीन का क्या महत्व है?                         [N.C.E.R.T.(Q.1)]
उत्तर- रक्त के प्लाज्मा में 6-8 प्रतिशत प्रोटीन पदार्थ होते हैं। फ्राइब्रिनोजेन, ग्लोबुलिन
तथा एल्बुमिन प्लाज्मा में उपस्थित मुख्य प्रोटीन हैं। फाइब्रिनोजन रक्त को थक्का बनाने में
सहायक होता है। ग्लोबुलिन का उपयोग शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र तथा एल्बुमिन का उपयोग
परासरणी संतुलन के लिए होता है।
2. स्तंभ 1 का स्तंभ ॥ से मिलान करें-                        [N.C.E.R.T.(Q.3)]
       स्तंभ  I                                             स्तंभ ॥
(i) इयोसिनोफिल्स                          (a) रक्त जमाव (स्कंदन)
(ii) लाल रुधिर कणिकाएँ                 (b) सर्व अदाता
(iii) AB रक्त समूह                         (c) संक्रमण प्रतिरोधन
(iv) पाट्टकाणु (प्लेटलेट्स)                (d) हृदय संकुचन
(v) ग्रंकुचन (सिस्टोल)                      (e) गैसीय परिवहन (अभिगमन)
उत्तर-(i)-(c); (ii)-(e); (iii)-(b); (iv)-(a); (v)-(d).
3. रक्त को संयोजी ऊतक क्यों मानते हैं?
IN.C.E.R.T.(Q.4)]
उत्तर–रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है क्योंकि इसमें द्रव्य अघात्री (मैट्रिक्स), प्लाज्मा,
तथा अन्य संगठित संरचनाएँ (कोशिकाएँ पायी जाती है। यह पूरे शरीर में फैली होती हैं
तथा शरीर के विभिन्न अंगों, अंगतंत्रों के बीच सम्पर्क भी बनाये रखती है।
4. लसिका एवं रुधिर (रक्त) में अंतर स्पष्ट करें।                 [(N.C.E.R.T. (Q.5)]
उत्तर-लसिका एवं रुधिर में अंतर-
5. दोहरे परिसंचरण से क्या तात्पर्य है? इसकी क्या महत्ता है? [N.C.ER.T. (Q.6)]
उत्तर-हृदय के दायें अलिन्द में अशुद्ध रक्त तथा बायें अलिन्द में शुद्ध रक्त जमा
रहता है। शुद्ध रक्त धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में एवं शरीर के विभिन्न भागों का
अशुद्ध रक्त दायें अलिन्द में शिराओं द्वारा तथा हृदय का अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय धमनी द्वारा
फेफड़ों में एवं फेफड़ों का शुद्ध रक्त फुफ्फुसीय शिरा द्वारा बायें अलिन्द में पहुँचता है। अर्थात्
परिसंचरण के दौरान हृदय से होकर यह दो बार गुजरता है, इसी कारण इसे दोहरा परिसंचरण
कहते हैं। इसके बारे में 1916 ई. में विलियम हार्वे ने बताया था।
यह क्रमबद्ध परिसंचरण पोषक पदार्थ ऑक्सीजन तथा अन्य जरूरी पदार्थों को ऊतकों
तक पहुँचता है तथा वहाँ से CO2 तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने के लिए
ऊतकों से दूर ले जाता है।
6. अंतर स्पष्ट करें-                                                [N.C.E.R.T.(Q.7)]
(a) रक्त एवं लसिका, (b) खुला एवं बंद परिसंचरण तंत्र,
(c) प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन, (d) P तरंग एवं T तरंग।
उत्तर-(a) रक्त एवं लसिका उत्तर के लिए प्रश्न-संख्या 4 देखें।
(b) खुला एवं बंद परिसंचरण तंत्र-
(d) P तरंग एवं T तरंग-
7. कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिर्वतनों का वर्णन करें।    [N.C.ER.T. (Q.8)]
उत्तर-सभी कशेरुकी जंतुओं में कक्षों से बना हुआ पेशी हदय पाया जाता है। मछलियों
में दो पक्षीय हदय होता है, जिसमें एक अलिंद एवं एक निलय होता है। उभयचरों तथा
सरीसृपों (मगरमच्छ को छोड़कर) हृदय तीन कक्षों से बना होता है, जिसमें दो अलिन्द एवं
एक निलय होता है। मगरमच्छ, पक्षियों एवं स्तनधारियों में हृदय चार कक्षों का बना होता है
जिसमें दो अलिन्द एवं दो निलय होते है।
मछलियों में हृदय विऑक्सीजनित रुधिर को बाहर पंप करता है जो क्लोम ऑक्सीजनित
होकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुंँचाया जाता है तथा वहाँ से विऑक्सीजनित होकर शरीर
के विभिन्न भागों में पहुंँचाया जाता है तथा वहाँ से विऑक्सीजनित रक्त हृदय में वापस आ
जाता है इस क्रिया को एकल परिसंचरण कहते हैं।
पक्षियों एवं स्तनधारियों में O2 विऑक्सीजनित रक्त क्रमशःबायें एवं दायें आलिन्दों में
आता है जहाँ से वह उसी क्रम से बायें एवं दायें निलयों में जाता है। निलय बिना रक्त को
मिलाये इन् पंप करता है। इसे दोहय परिसंचरण कहते हैं।
8. हम अपने हदय को पेशीजनक (मायोजेनिक) क्यों कहते हैं?[N.C.E.R.T. (Q.91
उत्तर-क्योकि हमारे हृदय की सामान्य क्रियाविधि एक विशेष प्रकार की मांसपेशी द्वारा
स्वतः नियंत्रित होती है। इस पेशी को उदय पेशी कहते है। इन पेशियों की गति का नियंत्रण
विशेष प्रकार के उत्तक द्वारा होता है जिसे नोडल ऊतक कहते हैं। इसी ऊतक का बना हुआ
SA नोड एवं A.V. नोट दायां अलिन्द में पाया जाता है। पुनः इनसे कई शाखाएँ निकलकर अंतर निलय पट के साथ पश्च भाग में बढ़ती है। इन शाखाओं से संक्षिप्त रेशे निकलते हैं जो पूरे निलयी पेशीविन्यास में दोनों तरफ फैले रहते हैं, जिसे पुरकिंजे तंतु कहते हैं। दायीं एवं बायीं शाखाओं सहित ये तंतु हिंज के बंडल (Bundle of hinz) कहलाते हैं। नोडल उत्तक बिना किसी बाह्य प्रेरणा के क्रियाविभव पैदा करने में सक्षम होते हैं।
9. शिरा अलिंद पर्व (कोटरअलिंद गांठ SAN) को हृदय का गति प्रेरक (पेश मेकर)
क्यों कहा जाता है?                                               [N.C.ER.T. (Q.10)]
उत्तर-हृदय चैम्बर में डायस्टोल एवं सिस्टोल की क्रिया एक विशेष प्रकार के तंत्रिका
ऊतक द्वारा सम्पन्न होती है जो हृदय में बंडल के रूप में पाया जाता है इनमें से एक को
S-A नोड एवं दूसरे को A-V नोड कहा जाता है।
हृदय के धड़कन (Heart beat) की शुरुआत S-A नोड से ही होती है जो AV नोड
और पुरकिंजे तंत्र द्वारा विलय भित्तियों तक पहुँच जाता है। इसी कारण S-A नोड का पेसमेकर
कहा जाता है।
10. अलिंद निलय गांठ (AVN) तथा आलिंद निलय बंडल (AVB) का हृदय के कार्य
में क्या महत्व है?                                                    [N.C.ER.T. (Q.11)]
उत्तर हृदय की धड़कन की शुरुआत S-A नोड से होती है परंतु AV नोड एवं
AVB या हिंज का बंडल के बिना यह पूर्ण नहीं हो पाता है।
जब S-A नोड से संकुचन तरंगें उत्पन्न होती है तो सर्वप्रथम दोनों आलिन्द में सकुंचन
होता है। संकुचन A.V. नोड से शुरू होता है तथा Bundle of hinz एवं पुरकिंजे तंत्र में
फैल जाता है जिससे दोनों निलय में एक साथ संकूचन होता है।
11. हृदय चक्र (Cardiac cycle) एवं हृदय निकास (Cardiac output) परिभाषित
करें।                                                                  [N.C.E.R.T.(Q.12)]
उत्तर- हृदय चक्र (Cardiac cycle)- एक हृदय स्पंदन के आरंभ से दूसरे स्पंदन
के आरंभ होने के बीच के घटना क्रम को हृदय चक्र कहते हैं।
इस क्रिया में दोनों आलिन्दों तथा दोनों निलयों का प्रकुंचन एवं अनुशिथिलन सम्मिलित
होता है। अलिन्द के प्रकुंचन में 0.15 सेकेण्ड एवं निलय के प्रकुंचन (Systole) में 0.30
सेकेण्ड और दोनों के अनुशिथिलन (Diastole) में 0.40 सेकेण्ड का समय लगता है। इस
प्रकार एक हदय स्पंदन में 0.85 सेकेण्ड का समय लगता है। अर्थात् हदय स्पंदन एक मिनट
में 72 बार होता है।
हृदय निकास (Cardiacput)-प्रत्येक हृदय चक्र में निलय से 70 मिली. रक्त बाहर
निकलता है। जिसे प्रवाह आयतन कहते हैं। प्रवाह आयतन एवं हृदय स्पंदन की दर के
गुणनफल को हृदय निकास कहते हैं। अर्थात्-प्रति मिनट निलय द्वारा रक्त की जो मात्रा बाहर
निकलती है वही हृदय निकास कहलाता है, जो एक स्वस्थ मानव में औसतन 5 हजार मिली.
या 5 लीटर होती है।
12. हृदय ध्वनियों की व्याख्या करें।                         [N.C.ER.T.(Q.13)]
उत्तर -प्रत्येक हृदय चक्र के दौरान दो महत्पूर्ण ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रथम ध्वनि
जो लब (LUV) होती है वह द्विदलीय (Bicuspid), एवं त्रिदलीय (Tricuspid) कपाट
(value) के बंद होने समय उत्पन्न होती है। इसी प्रकार दूसरी ध्वनि डब (DUV) होती है
जो अर्धचंद्राकार कपाट (Semilunar valve) के बंद होने समय उत्पन्न होती है।
इन ध्वनियों को स्टेथोस्कोप द्वारा स्पष्ट सुना जा सकता है, जिससे चिकित्सीय निदान
में सहायता मिलती है।
13. मनुष्य के चार रुधिर वर्गों का उल्लेख करें।
उत्तर-सन् 1900 ई. में लैण्डस्टीनर ने एंटीजेन एवं एंटीबॉडी की उपस्थिति एवं
अनुपस्थिति के आधार पर रुधिर को चार वर्गों में बाँटा-
पुनः 1940 में लैण्डस्टीनर के साथ वीनर ने मिलकर रीसस मस्का (Phaesus-
mascaca) नामक बंदर के रक्त में एक विशेष एंटीजेन Rh की उपस्थिति का पता लगाया।
मनुष्यों के रक्त में इस एंटीजन की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर रक्त समूह को
पॉजीटिव एवं निगेटिव दो भागों में बाँटा गया। अतःकुल मिलाकर आठ रक्त समूह होता है।
विश्व में 14% लोगों का ही रक्त समूह निगेटिव होता है।
14. एंटीजन एवं एंटीबॉडी क्या है?
उत्तर-शरीर की वह क्षमता, जो शरीर में रोग पैदा करने वाले जीवों या पदार्थों के
हानिकारक प्रभावों का विरोध करते हुए शरीर को स्वस्थ रखता है, प्रतिरक्षा (Immunity)
कहलाता है। कोई भी वह पदार्थ जो प्रतिरक्षी पदार्थों के प्रति अनुक्रिया उत्पन्न करता है,
प्रतिजन (एंटीजन) कहलाता है।
इस प्रतिजन के अनुरूप शरीर को रोगों से बचाने के लिए WBC द्वारा एक विशेष पदार्थ
का निर्माण किया जाता है, इसी को प्रतिपिंड (एंटीबॉडी) कहते हैं।
15. रक्त को धक्का बनने (Blood Clotting) की प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर- हॉवेल नाम वैज्ञानिक के अनुसार रक्त के थक्का बनने की प्रक्रिया निम्नलिखित
है-(i) शरीर के किसी भाग में चोट लगने या कटने से रक्त बाहर निकलता है और हवा
के सम्पर्क में आने से प्लेटलेट्स टूटने लगते हैं, जिससे प्रोथोम्बोप्लास्टिन नामक रसायन
निकलता है। (ii) प्रोथाँम्योप्लास्टिन Ca++ से संयोग कर थ्रोम्बोप्लास्टिन में बदल जाता है।
(iii) थ्रोम्बोप्लास्टिन हिपैरिन को निष्क्रिय कर प्रोपॉम्बिन को सक्रिय कर उसे थॉम्बिन में बदल
देता है। (iv) थ्राँम्बिन प्लाज्माप्रोटीन फ्राइब्रिनोजिन को अघुलनशील फाइब्रिन में बदल देता
है। (v) फाइब्रिन महीन तंतुओं का निर्माण करती है, जिसमें रक्त कोशिकाएँ उलझकर जमने
लगती हैं। रक्त के थक्का बनने में लगभग 5-6 मिनट का समय लगता है।
16. धमनी और शिरा में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-धमनी और शिरा में अन्तर-
                                       दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. रक्त के संगठित पदार्थों के अवयवों का वर्णन करें तथा प्रत्येक अवयव के एक
प्रमुख कार्य के बारे में लिखें।                                           [N.C.E.R.T.)
उत्तर- रक्त के संगठित पदार्थ के अवयव हैं-
(i) R.B.C., (ii)W.B.C., (iii) पट्टिकाणु।
(i) R.B.C. (लाल रुधिर कणिका) या इरिथ्रोसाइट-यह सिर्फ कोशेरूकी
(vertebrates) के रक्त में ही पाये जाते हैं और रक्त कणिकाओं में इसकी संख्या सबसे
अधिक होती है। यह रक्त को लाल रंग प्रदान करता है। स्तनधारियों के R.B.C. में केन्द्रक
नहीं पाया जाता है। इसका लाल रंग एक लौहयुक्त जटिल प्रोटीन हीमोग्लोबिन की उपस्थिति
के कारण होता है। एक स्वस्थ्य मनुष्य के प्रति 100 मिली. रक्त में लगभग 12-16 ग्राम
हीमोग्लोबिन पाया जाता है।
स्वस्थ्य मनुष्य में R.B.C. की संख्या-नर में 50 लाख कण एवं मादा में 45 लाख
कण/घन मिली. रक्त में।
निर्माण स्थल-लाल अस्थि मज्जा।
जीवनकाल–90-120 दिनों का।
विनाश स्थल-प्लीहा (Spleen)।
कार्य-(a)O2 CO2 भोज्य पदार्थों इत्यादि का परिवहन करना।
(b) W.B.C. (श्वेल रुधिर कणिका) या ल्यूकोसाइट-ये अनियमित आकार के
केन्द्रयुक्त और हीमोग्लोबिन रहित श्वेत या पीले रक्त कण हैं। इसमें केन्द्रक उपस्थित
होता है।
(ii) संख्या-6000-8000 कण/घन मिली. रक्त में।
(iii) जीवनकाल-मात्र एक दिन।
कोशिका द्रव्य में सूक्ष्मकणों की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर इसे दो श्रेणियों
मे बाँटा जाता है-
(i) ग्रेनुलोसाइट-सूक्ष्मकण उपस्थित होता है यह भी तीन प्रकार कर होता है-
(a) न्यूट्रोफिल-केन्द्रक घोड़े के नाल के आकार का एवं संख्या W.B.C. का 60-70%
                                       रक्त में संगठित पदार्थ
(b) इयोसिनोफिल-केन्द्रक दो पिण्डों का बना, संख्या W.B.C. का 2-4%
(c) बेसोफिल्स-केन्द्रक बड़ा और अनियमित, संख्या W.B.C. का 5 से 1%
(ii) एग्रेन्यूलोसाइट-सूक्ष्मकण नहीं होते हैं, यह दो प्रकार का होता है-
(a) लिंफोसाइट-केन्द्रक बड़ा और गोल, संख्या 20-28%
(b) मोनोसाइट-केन्द्रक किडनी के आकार का संख्या 3-8%
कार्य-शरीर को रोगनिरोधी बनाना एवं जीवाणुओं को नाश करना।
(3) पट्टिकाणु (Platlets) या थ्रोम्बोसाइट-सूक्ष्म रंगहीन और लगभग 2-4u व्यास
युक्त कण। संख्या 1.5 से 3.5 लाख कण/घन मिली रक्त में।
कार्य-रक्त का थक्का बनने में सहायता करना।
2. एक मानक ई सी जी. (ECG) को दर्शायें एवं उसके विभिन्न खंडों का वर्णन करें।
                                                                             [N.C.ER.T. (Q.14)]
उत्तर- हृदय में होनेवाले विद्युतीय क्रियाकलापों का आरेखीय प्रस्तुतीकरण जिस मशीन
द्वारा किया जाता है उसे ECG (Electro Cardio graphy) कहा जाता है।
1887 ई. में सर्वप्रथम ‘Waller’ ने इस आरेख को रिकार्ड किया था, परंतु इस मशीन
का अविष्कार Enithoven (1903) में किया था, अतः Einthoven को Father of ECG
कहा जाता है। इसके लिए इन्हें 1924 में नॉबेल पुरस्कार दिया गया था।
बीमार व्यक्ति में ECG को प्राप्त करने के लिए रोगी को तीन विद्युत लीड से (दोनों
कलाइयों तथा बायीं ओर की एडी) जोड़कर लगातार निगरानी करके प्राप्त किया जाता है।
हृदय क्रियाओं की विस्तृत जानकारी के लिए कई तारों (लीड्स) को सीने से जोड़ दिया
जाता है।
सामान्य ECG में पाँच प्रकार की तरंगें दिखाई देती हैं जिन्हें PORS एवं T कहा
जाता है।
(i) P-तरंग-इसकी उत्पति S-A नोड में संक्रियण के फलस्वरूप होता है जिससे
दोनों आलिंदों का संकुचन होता है।
(ii) QRS तरंग-यह NV नोड के संक्रियण से उत्पन्न होता है जो निलय के संकुचन
को शुरू करता है।
(iii) T-तरंग-यह निलय का उत्तेजना से सामान्य अवस्था में वापस आने की स्थिति
को प्रदर्शित करता है। इसका अंतः प्रकुंचन (systole) अवस्था ही समारित का द्योतक है।
उपयोग-(i) हृदय से संबंधित बीमारियों जैसे-Coronay artery Disease,
Coronary thrombosis, Pericarditis, Cardiomyopathy एवं Mycarditis इत्यादि
के पहचान में सहायक होता है। (ii) एक निश्चित समय में QRS समिश्र की संख्या गिनकर
मनुष्य के हृदय स्पंदन की दर निकाली जाती है! (iii) यह हृदय पर विभिन्न दवाओं के प्रभाव
और Electrolyte imbalance की भी सूचना देता है।
3. परिसंचरण की विकृतियों से उत्पन्न बीमारियों का नाम बतायें।
उत्तर- (i) उच्च रक्त दाब (High blood Pressure)-यदि किसी व्यक्ति का रक्त
दाब बार-बार मापने पर भी 140/90 या इससे अधिक होता है तो वह अति तनाव प्रदर्शित
करता है। उच्च रक्त चाप हृदय की बीमारियों को जन्म देता है तथा अन्य महत्वपूर्ण अंगों
जैसे मस्तिष्क, वृक्क इत्यादि अंगों को प्रभावित करता है।
(ii) हृदय धमनी रोग (Coronary Artery Disease)-इस बीमारी को एथिरोस
सक्लेरोसिस के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसमें हृदय पेशी को रक्त की आपूर्ति करने
वाली वाहिनियाँ प्रभावित होती हैं। यह बीमारी धमनियों के अंदर कैल्सियम, वसा तथा अन्य
रेशीय ऊतकों के जमा होने से होता है, जिसमें धमनी की अवकोशिका (Lumen) संकरी हो
जाती है।
(iii) हृदयशूल (एंजाइना)-इसको एंजाइना पेक्टोरिस भी कहते हैं। हदय पेशी में
जब पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंचती है तब सीने में दर्द होता है जो एंजाइना की पहचान है।
यह स्त्री या पुरुष दोनों में किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन मध्यावस्था तथा वृद्धावस्था
में यह सामान्य होता है। यह अवस्था रक्त बहाव के प्रभावित होने से होती है।
(iv) हृदयपात (Heart Failure)-इसमें हृदय. शरीर के विभिन्न भागों को
आवश्यकतानुसार रक्त की प्रर्याप्त आपूर्ति नहीं कर पाता है। इसमें फेफड़े का संकुलन हो
जाता है। अतः इसे संकुलित हृदयपात भी कहते हैं। हृदयपात, हदयघात में हृदयपेशी को
रक्त आपूर्ति अचानक अपर्याप्त हो जाने से एकाएक क्षति पहुंँचती है।
4. मानव हृदय की संरचना का वर्णन करें।
उत्तर-हृदय की उत्पत्ति मीसोडर्म से होती है। यह एक त्रिभुजाकार रचना है जो दोनों
फेफड़ों के बीच वक्षगुहा में स्थित होता है जो थोड़ा बायीं ओर झुका रहता है। यह एक दोहरी
भित्ति के झिल्लीमय थैली, हृदयावरणी (Pericardium)द्वारा ढंका रहता है जिसमें हदयावरणी
द्रव भरा रहता है।
हमारे हृदय में चार चैम्बर होते हैं जिसमें दो कक्ष छोटे तथा ऊपर रहता है जिसे अलिन्द
(अर्ट्रिया) कहते हैं तथा दो कक्ष बड़े होते हैं जिन्हें निलय (वेंट्रिकल) कहते हैं। अलिन्द के
बीच में एक लम्बवत अंतर अलिंद पट (Septum) पाया जाता है जो अलिन्द को दाएँ एवं
बाएँ दो भागों में बाँटती है। इसी प्रकार अंतर निलय पट निलय को दायें एवं बायें दो-दो
भागों में बाँटती है। अलिन्द और निलय के बीच एक अनुप्रस्थ पट्टी पायी जाती है जिसे अंतर
अलिंद निलय पट कहते हैं। इस पट में दायें एवं बायें दोनों साइड में एक-एक छिद्र होता
है। दाहिनी ओर के छिद्र पर तीन पेशी फ्लैप्स से बना हुआ एक वाल्ब पाया जाता है जिसे
ट्राइकसपिड वाल्ब कहते हैं। इसी प्रकार बाँयी ओर के छिद्र पर एक बाइकसपिड वाल्ब या
मिट्रल वाल्ब पाया जाता है। दायें एवं बायें निलयों से निकलने वाली क्रमशः फुप्फुसीय धमनी
तथा महाधमनी का निकास द्वार सेमील्यूनर वाल्ब से युक्त रहता है। वाल्ब रक्त को एक दिशा
में ही जाने देते हैं अर्थात् अलिन्द से निलय की ओर निलय से फुप्फुस या महाधमनी में या
वाल्ब उल्टे प्रवाह को रोकते हैं।
हृदय पेशियों से बना होता है। निलयों की भिति अलिंदों की भिति से बहुत मोटी होती
है। हृदय में एक विशेष प्रकार की हृदय पेशीन्यास पाया जाता है। जिसे नोडल ऊतक कहते
हैं। इस ऊतक का एक हिस्सा दाहिने आलिंद के दाहिने ऊपरी कोने पर स्थित होता है जिसे
S-A नोड कहते हैं। इस ऊतक का दूसरा हिस्सा दाहिने अलिन्द में नीचे के कोने पर अलिंद
निलय पट के पास स्थित होता है जिसे AV नोड कहते हैं। अंतर निलय पट के ऊपरी भाग
में S-A नोड से रेशों का एक बंडल प्रारंभ होता है जो शीघ्र ही दो शाखाओं में बँटकर अंतर
निलय पट के साथ पश्च भाग में बढ़ता है जिसे पुरकिंजे तंतु कहते हैं। दायीं एवं बायीं
शाखाओं सहित ये तंतु हिंज के बंडल (Bundle of Hinz) कहलाते हैं। नोडल ऊतक बिना
किसी बाह्य प्रेरणा के क्रिया विभव पैदा करने में सक्षम होते हैं। अतः इसे ओटो एक्साइटेबल
(स्वउत्तेजनशील) कहते हैं।
मनुष्य में हृदय 12 सेमी लम्बा 9 सेमी चौड़ा होता है और इसका वजन लगभग 300
ग्राम होता है।
5. मनुष्य में रक्त परिसंचरण किस प्रकार होता है? वर्णन करें।
उतर- हृदय शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त को एकत्रित कर फिर उसे शुद्ध
करने के लिए फेफड़ों में भेज देता है तथा पुनः शुद्ध रक्त को फेफड़ों से ग्रहण कर शरीर के
विभिन्न भागों में पंप कर देता है, जिससे संपूर्ण शरीर में रक्त का परिसंचरण होता है। हृदय
की क्रिया इसकी पेशीय भित्ति के संकुचन के द्वारा संपादित होती है। अर्थात् मानव में रक्त
परिसंचरण मायोजेनिक (Myogenic) होता है।
हृदय के चारों कोष्ठों में बारी-बारी से संकुचन और अनुशिथिलन होते हैं, जिन्हें क्रमशः
सिस्टॉल एवं डायस्टॉल कहते हैं। दोनों मिलकर हृदय की धड़कन कहलाता है। हृदय की
धड़कन का तालबद्ध, संकुचन एक विशेष प्रकार के तंत्रिका ऊतक द्वारा होता है, जिसे
साइनुऑरिकुलर नोड (S -A नोड) या पेस-मेकर कहते हैं। यह दायें अलिन्द की भित्ति में
स्थित होता है।
सिस्टोल एवं डायस्टोल की क्रिया द्वारा शरीर के विभिन्न भागों का रक्त दो
अग्रमहाशिराओं एवं एक पश्चमहाशिराओं द्वारा दायें अलिन्द में पहुँचता है। फेफड़ों का शुद्ध
रक्त फुप्फुसीय शिराओं द्वारा बायें अलिन्द में पहुँचता है। इसके दोनों आलिन्दों में सिस्टोल
एवं दोनों निलयों में डायस्टोल होता है। फलस्वरूप अशुद्ध रक्त दायें आलिंद से दायें निलय
में तथा शुद्ध रक्त बायें अलिन्द में बाये निलय में अलिन्द-निलय छिद्रों द्वारा चला जाता है।
इसके बाद दोनों निलय में सिस्टोल एंव दोनों अलिन्द में डायस्टोल की क्रिया होती है, जिससे
दायें निलय का अशुद्ध रक्त फुफ्फुसीय शिराओं द्वारा फेफड़ों एवं बायें निलय का शुद्ध रक्त
विभिन्न धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में चला जाता है। इस प्रकार परिवहन के एक
चक्र को पूरा करने में रक्त हृदय से होकर दो बार गुजरता है। अतः इस प्रकार के परिवहन
को द्विगुण परिवहन कहते हैं, जिसके बारे में सर्वप्रथम 1916 ई. में विलयम हार्वे ने बतलाया
था।
6. रक्त की संरचना एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है।
रक्त का निर्माण निम्नलिखित घटकों द्वारा होता है-(i) प्लाज्मा, (ii) रक्तकोशिकाएँ
(Elood Corpuscles)।
(i) प्लाज्मा (Plasma)यह रक्त का तरल हिस्सा है, जो रक्त के 55% भाग को
बनाता है। इसका 90% भाग जल का बना होता है. शेष 10% भाग में प्रोटीन (एल्यूमीन)
एवं ग्लोब्यूलीन), कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा अन्य कार्बनिक एवं अकार्बनिक लवण भी उपस्थित
होते हैं।
(ii) रक्तकोशिकाएँ—यह रक्त के 45% भाग को बनाता है। रक्तकोशिकाएँ
निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-(a) R.B.C. (लाल रक्तकणिकाएँ या
इरिथ्रोसाइट-यह गोल उभयोनतोदर डिस्क के समान केन्द्रक विहीन कण है। मनुष्य के एक
घन मिलिमीटर रक्त में इसकी संख्या नर में 50 लाख कण तथा मादा में 45 लाख कण
होती है। इसका लाल रंग हीमोग्लोबिन के कारण होता है, जो लौहयुक्त प्रोटीन वर्णक है।
इसका जीवनकाल 90-120 दिनों का होता है तथा यह लाल अस्थिमज्जा में बनता है।
(b) W.B.C. (श्वेत रक्तकणिकाएँ) या ल्यूकोसाइट-यह रंगहीन, केन्द्रकयुक्त,
अनियमित आकार का कण है। मनुष्य के रक्त में प्रतिघनमिलिलीटर रक्त में इसकी संख्या
लगभग 6 हजार कण होती है। इसका जीवनकाल मात्र एक दिन का होता है तथा श्वेत
अस्थिमज्जा में बनता है।
(c) बिम्बाणु (Plalets) या थ्राम्बोसाइट-यह केन्द्रक रहित गोलाकार कण है। मनुष्य
के प्रति घन मिलिलीटर रक्त में इसकी संख्या लगभग 2.5 लाख कण तक होती है।
रक्त के कार्य-(i) रक्त का R.B.C.-O2 CO2 एवं अन्य पदार्थों के परिवहन में
सहायक होता है। (i) रक्त का W.B.C. शरीर के प्रतिरक्षी क्षमता को मजबूत करता है।
(ii) रक्त का बिम्बाणु रक्त को थक्का बनने में सहायक होता है। (iii) रक्त शरीर के तापक्रम
को संतुलित रखता है। (iv) रक्त जख्मों या कटे-छंटे अंगों के मरम्मत में भी सहायक
होता है।
7. नाड़ी एवं रक्तदाब से आप क्या समझते हैं? एक मिनट में नाड़ी की गति कितनी
होती है? नाड़ी की गिनती चिकित्सक कैसे करते हैं?
उत्तर-(i) नाड़ी या पल्स-बायें अलिन्द में सिस्टोल होने से धमनी में रक्त झटके
से बहता है, जिससे रुक-रुक कर धमनियों की भित्तियों पर दबाव पड़ता है। धमनियों के
फैलने और सिकुड़ने में उसमें एक लहर का स्पंदन उत्पन्न होता है, जिसे नाड़ी या पल्स
कहते हैं। पल्स को गिनकर हृदय की स्पंदन-दर ज्ञात की जाती है।
नाड़ी की गति उम्र एवं स्वास्थ्य पर निर्भर करती है। सामान्यतः नाड़ी की गति प्रति
मिनट 72 बार होती है।
चिकित्सक नाड़ी की गिनती कलाई में स्थित रेडियल धमनी पर अंगुली रखकर करते हैं।
(ii) रक्तचाप (Blood Pressure)-महाधमनियों एवं उसकी शाखा में रक्त जिस
दबाव के साथ बहता है, उसे रक्तचाप कहते हैं।
सिस्टोल के धमनी के भीतर दबाव अधिकतम होता है, जिसे सिस्टोलिक प्रेशर कहते
हैं। इसका मान पारे के 120 mm स्तम्भ द्वारा बने दाब के बराबर होता है। डायस्टोल के
समय का दाब न्यूनतम होता है, जिसे डायस्टोलिक प्रेशर कहते हैं। इसका मान पारे के 80
mm स्तम्भ द्वारा बने दाब के बराबर होता है। अतः स्वस्थ व्यक्ति का रक्तचाप 120/80
होता है। रक्तचाप को स्फिग्नोमैनोमीटर एवं नाड़ी-स्पंदन को स्टेथोस्कॉप से मापा जाता है।
                                      80 + Age in year
सामान्य तौर पर रक्त चाप =—————————
                                       50+ Age in year
8. लसिकातंत्र की रचना एवं कार्य का वर्णन करें।
उत्तर- लसिका भी रक्त के समान ही एक तरल संयोजी ऊतक है। यह रंगहीन होता,
क्योंकि इसमें R.B.C. नहीं पाया जाता। इसमें अल्प प्रोटीन एवं अत्यधिक W.B.C.
(लिम्फोसाइट्स) उपस्थित होता है। इसमें प्लेटलेट्स नहीं पाया जाता।
लसिकातंत्र के अंतर्गत निम्नलिखित अवयव आते हैं-(i) लसिका, (ii) लसिका
वाहिनी एवं कोशिका, (iii) लिम्फ साइनस एवं (iv) लसिका गांठ।
लसिका के कार्य-i) यह पचे भोजन O2 एवं हॉर्मोन इत्यादि को रक्त से ऊतक में
पहुँचता है तथा उत्सर्जी पदार्थों को रक्त में ले जाता है। (ii) लसिकातंत्र के द्वारा रक्तवाहिनी
और ऊतकों के बीच पदार्थो का विनिमय होता है। (iii) यह रक्त के आयतन को स्थिर
रखता है।
9. लसिका वाहिकाएँ तथा लसिका ग्रंथियों का आरेख बनायें।
उत्तर-
10. मनुष्य में द्विगुण परिवहन को आरेख द्वारा दर्शाएँ।
उत्तर-
                                               वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. खुला परिवहन तंत्र पाया जाता है-
(क) आर्थोपोड्स में
(ख) आर्थोपोड्स एवं मोलस्क में
(ग) मनुष्य में
(घ) इनमें से सभी में                              उत्तर-(ख)
2. जिस रक्त समूह में Rh एंटीजेन पाया जाता है, उसे कहते हैं-
(क) निगेटिव
(ख) पॉजिटिव
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं                                       उत्तर-(क)
3. R.B.C. को………..भी कहा जाता है-
(क) इरिथ्रोसाइट
(ख) ल्यूकोसाइट
(ग) लिंफोसाइट
(घ) थ्रोम्बोसाइट                                     उत्तर-(क)
4. मानव हृदय होता है-
(क) मायोजेनिक
(ख) न्यूरोजेनिक
(ग) स्ट्रेप्टोजेनिक
(घ) कोई नहीं                                         उत्तर-(क)
5. पेस मेकर को कहते हैं-
(क) S-A नोड
(ख) A-B नोड
(ग) पुरकिंजे-तंतु
(घ) हिंज का बंडल                                    उत्तर-(क)
6. फेफड़ों से शुद्ध रक्त लाकर फुफ्फुसीय शिरा खुलती है?
(क) बायाँ निलय में
(ख) बायाँ अलिन्द में
(ग) दायाँ निलय में
(घ) दायाँ अलिन्द में                                  उत्तर-(ख)
7. विम्बाणु निम्न में से किसका स्रोत है-
(क) कैल्सियम
(ख) फाइब्रिनोजेन
(ग) हीमोग्लोबीन
(घ) थ्रोम्बोप्लास्टिन                                    उत्तर-(घ)
8. किसमें वंद परिवहन तंत्र पाया जाता है?
(क) केंचुआ
(ख) कॉकरोच
(ग) हाइड्रा
(घ) मच्छर                                                उत्तर-(क)
9. वयस्क मनुष्य में हृदय के धड़कन की औसत दर होती है-
(क) 80/मिनट
(ख) 72/मिनट
(ग) 60/मिनट
(घ) 100/मिनट                                          उत्तर-(ख)
10. सामान्य स्वस्थ मनुष्य का रक्तचाप होता है-
(क) 200/110
(ख) 120/80
(ग) 100/60
(घ) 150/100                                            उत्तर-(ख)
11. किसमें हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला रहता है?
(क) केचुआ
(ख) मेढक
(ग) कॉकरोच
(घ) खरगोश                                               उत्तर-(क)
12. लसिका (Lymph) में क्या नहीं पाया जाता है?
(क) इरिथ्रोसाइट
(ख) प्लाज्माप्रोटीन
(ग) बिम्बाणु
(घ) उपर्युक्त सभी                                        उत्तर-(घ)
13. E.C.G. का पिता किन्हें कहा जाता है?
(क) वालर
(ख) इंथोवेन
(ग) साल्टन
(घ) हेंस बर्गर                                    उत्तर-(ख)
14. किसमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है?
(क) W.B.C.
(ख) बिम्बाणु
(ग) R.B.C.
(घ) उपर्युक्त सभी                                 उत्तर-(ख)
15. कौन-सा पदार्थ रक्त को जमने से रोकता है?
(क) हिपेरिन
(ख) हिस्टोमीन
(ग) ग्लोबुलिन
(घ) सेक्रेटिन                                           उत्तर-(क)
16. किसके हृदय में पूर्ण चार चैम्बर नहीं होता है?
(क) उभयचर
(ख) पक्षी
(ग) मत्स्य
(घ) सरीसृप                                           उत्तर-(घ)
17. स्तनधारियों में द्विगुण परिवहन का खोज किया था-
(क) हार्वे ने
(ख) लैंडस्टिनर ने
(ग) वाण्डरवाल ने
(घ) हिंज ने                                             उत्तर-(क)
18. अशुद्ध रक्त हृदय दे. किस चैम्बर में जमा होता है?
(क) बायाँ अलिन्द
(ख) दायाँ अलिन्द
(ग) बायाँ निलय
(घ) दायाँ निलय                                      उत्तर-(ख)
                                                      □□□
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