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 bihar board 12 biology | जैव विविधता एवं सरंक्षता

bihar board 12 biology | जैव विविधता एवं सरंक्षता

जैव विविधता एवं सरंक्षता 

[ BIODIVERSITY AND CONSERVATION ]
महत्त्वपूर्ण तथ्य
• आनुवंशिक विविधता – एक जाति आनुवंशिक स्तर पर अपने वितरण क्षेत्र में बहुत विविधता दर्शा सकती है , आनुवंशिक विविधता कहलाती है ।
• जातीय विविधता – जातीय स्तर पर भिन्नता , जातीय विविधता कहलाती है ।
• पारिस्थितिकीय विविधता – पारितंत्र स्तर पर विविधता , पारिस्थितिकीय विविधता कहलाती है।
• आई . यू . सी . एन . – इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेस । •अक्षांशीय प्रवणता – अक्षांशों पर विविधता में क्रमबद्ध प्रवणता ( उतार – चढ़ाव ) , अक्षांशीय प्रवणता कहलाती है ।
•आवासीय क्षति तथा विखंडन – जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण , आवासीय क्षति तथा विखंडन कहलाता है ।
• पृथ्वी का फेफड़ा – विशाल अमेजन वर्षा वन को विशाल होने के कारण पृथ्वी का फेफड़ा कहा जाता है ।
• सहविलुप्ता – जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती है ।
• स्वस्थाने तथा बाह्य स्थाने – एक बाघ को सुरक्षित रखने के लिए सारे जंगल को सुरक्षित रखना होता है । यह स्वस्थाने संरक्षण कहलाता है ।
   जब कभी किसी जीव को विलोपन के संकट से बचाने के लिए त्वरित सहायता की आवश्यकता होती है , तब इस स्थिति को हम बाह्य स्थाने संरक्षण कहते हैं ।
• हॉट – स्पॉट – हॉट – स्पॉट वे क्षेत्र होते हैं , जहाँ पर जातीय समृद्धि बहुत अधिक और उच्च स्थानिकता होती है , और जातियाँ अन्य स्थानों पर नहीं होती हैं ।
NCERT पाठ्यपुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
अभ्यास ( Exercises )
1. जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों ( कंपोनेंट ) के नाम बताइए ?
उत्तर – जैव विविधता के तीन आवश्यक घटक हैं- ( 1 ) अकशेरुकी , ( 11 ) कशेरुकी , ( iii ) पादप । 2. पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आकलन करते हैं ?
उत्तर – पारिस्थितिकीविद् विश्व की कुल जातियों का आकलन अक्षांशों पर तापमान के आधार पर करते हैं । सामान्यत : भूमध्य रेखा से भुवों की ओर जाने पर जाति विविधता घटती जाती है । उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में शीतोष्ण या ध्रुव प्रदेशों से अधिक जातियाँ पाई जाती हैं । उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक सौर – ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता पाई जाती है ।
3. उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति – समृद्धि क्यों मिलती है ? इसकी तीन परिकल्पनाएं दीजिए ।
उत्तर – उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में सबसे अधिक जाति – समृद्धि मिलती हैं । पारिस्थितिक तथा जैव विकास विदों ने बहुत सी परिकल्पनाएँ की हैं । इनमें तीन परिकल्पनाएँ इस प्रकार हैं-
( i ) जाति उद्भवन ( स्पीशिएशन , आमतौर पर समय का कार्य है शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन समय रो बार – बार हिमनदन ( ग्लेशिएशन ) होता रहा जबकि उष्ण कटिबंध क्षेत्र लाखों वर्षों से अपेक्षाकृत अबाधित रहा है , इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए बहुत समय मिला ।
( ii ) उष्ण कटिबंध पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण से भिन्न तथ कम मौसमीय परिवर्तन दर्शाता है । यह स्थिर पर्यावरण निकेत विशिष्टीकरण ( निकस्पेशिएलाइजेशन ) को प्रोत्साहित करता रहा जिसकी वजह से अधिकाधिक जाति विविधता हुई । ( iii ) उष्ण कटिबंध क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है । जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता होती है। 4. जातीय क्षेत्र संबंध में समाश्रयण ( रिगेशन ) की ढलान का क्या महत्त्व है ?
उत्तर – जर्मनी के महान प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों के गहन अन्वेषण के समय दर्शाया कि कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है । वास्तव में , जाति समृद्धि और वर्गको ( अनावृत्तबीजी पादप , पक्षी , चमगादड़ , अलवणजलीय मछलियाँ ) की व्यापक किस्मों के क्षेत्र में बीच संबंध आयताकार अतिपरवलय ( रेक्टंगुलर हाइपरबोल ) होता है । लघुगणक पैमाने पर यह संबंध एक सीधी रेखा दर्शाती है जो कि निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित है- log S = log C + Z log A
जहाँ पर S = जातीय समृद्धि , A = क्षेत्र
Z=रेखीय ढाल ( समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएट ) ,
C = Y- अंत : खंड ( इंटरसेप्ट )
चित्र : जातीय और संबंध का प्रदर्शन । लॉग पैमाने पर संबंध रेखीय हो जाते हैं । पारिस्थितिक वैज्ञानिकों ने बताया कि Z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है भले ही वर्गीकी समूह अथवा क्षेत्र ( जैसे कि ब्रिटने के पादप , कैलिफोर्निया के पक्षी या न्यूयार्क के मोलस्क ) कुछ भी हो । समाश्रयण रेखा ( रिग्रेसन लाइन ) की ढलान आश्चर्यजनकरूप से एक जैसी होती है । लेकिन यदि हम किसी बड़े समूह , जैसे संपूर्ण महाद्वीप , के जातीय क्षेत्र संबंध का विश्लेषण करते हैं तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीन रूप से तिरछी खड़ी है ( Z का मान की परास 0.6 से 1.2 है )।
उदाहरणार्थ – विभिन्न महाद्वीपों के उष्ण कटिबंध वनों के फलाहारी पक्षी तथा स्तनधारियों की रेखा की ढलान 1.15 है ।
5. किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर – जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर रहा है वह मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है । इसके चार मुख्य कारण हैं-
( क ) आवासीय क्षति तथा विखंडन – यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है । उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों से होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है । एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे , लेकिन अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं । ये तेजी से नष्ट हो रहे हैं विशाल अमेजन वर्षा वन , ( जिसे विशाल होने के कारण ‘ पृथ्वी का फेफड़ा ‘ कहा जाता है )। इसमें संभवतः करोड़ों जातियाँ ( स्पीशीज ) निवास करती हैं । इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है । संपूर्ण आवासीय क्षति के अलावा प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन ( फ्रैग्मेंटेशन ) हुआ है , जिससे बहुत – सी जातियों के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है । जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे – छोटे खंडों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए तथा प्रवासी ( माइग्रेटरी ) स्वभाव वाले कुछ प्राणी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि ( पॉपुलेशन ) की कमी होती है ।
( ख ) अतिदोहन – मानव हमेशा भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है , लेकिन जब ‘ आवश्यकता ‘ ‘ लालच ‘ में बदल जाती है तव इस प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन ( ओवर एक्सप्लाइटेशन ) शुरू हो जाता है । मानव द्वारा अतिदोहन से पिछले 500 वर्षों में बहुत – सी जातियाँ ( स्टीलर समुद्री गाय , पैसेंजर कबूतर ) विलुप्त हुई हैं । आज बहुत सारी समुदी मछलियों आदि की जनसंख्या शिकार के कारण कम होती जा रही है जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की जातियाँ खतरे में हैं ।
( ग ) विदेशी जातियों का आक्रमण – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती हैं । जैसे जब नील नदी की मछली ( नाइल पर्च ) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से वेजोड़ सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई । हम गाजर घास ( पार्थेनियम ) , लैंटाना और हायसिंथ ( आइकार्निया ) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियों से पर्यावरण को होने वाली क्षति और हमारी देशज जातियों के लिए पैदा हुए खतरे से अच्छी तरह से परिचित है । मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश कलरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया , लेकिन ये मछलियाँ नदियों की मूल अशल्कमीन ( कैटफिश जातियों ) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
( घ ) सहविलुप्ता – जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं । जव एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवियों का भी वही भविष्य होता है । दूसरा उदाहरण विकसित ( कोइवाल्वड ) परागणकारी ( पॉलिनेटर ) सहोपकारिता ( म्यूयुआलिज्म ) का है जहाँ एक ( पादप ) के विलोपन से दूसरे ( कीट ) का विलोपन भी निश्चित रूप से होता है ।
6. पारितंत्र के कार्यों के लिए जैव विविधता कैसे उपयोगी है ?
उत्तर – डेविड टिलमैन द्वारा प्रयोगशाला के बाहर के भूखंडों पर लंबे समय तक पारितंत्र पर किए गए प्रयोग इस विषय में कुछ प्रारंभिक उत्तर देते हैं । टिलमैन ने पाया कि उन भूखंडों ने जिस पर अधिक जातियाँ थीं , साल दर साल कुल जैवभार में कम विभिन्नता मिली । उन्होंने अपने प्रयोगों द्वारा यह भी बताया कि विविधता में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है।
  समृद्ध जैव विविधता केवल अच्छे पारितंत्र के लिए ही आवश्यक नहीं है , बल्कि इस ग्रह पर मानव जीवन को जीवित रखने के लिए भी आवश्यक है ।   प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता की अनक पारितंत्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है । वन ” पृथ्वी के वायुमंडल को लगभग 20 % ऑक्सीजन प्रकाश – संश्लेषण द्वारा प्रदान करते हैं , परागण जिसके बिना पौधे एवं फल बीज नहीं दे सकते , पारितंत्र की दूसरी सेवा है जो कि कीट – पतंगों द्वारा नुफ्त दी जाती है । प्रकृति हमें अप्रत्यक्ष सौंदर्य प्रदान करती है । पारितंत्र पर्यावरण को शुद्ध बनाता है , पीड़क आधुनिक वातावरण और बाढ़ आदि को नियंत्रित करने में हमारी मदद करता है ।
सामान्यतः किसी क्षेत्र की जैव विविधता की हानि होने से ( 1 ) पादप उत्पादकता घट जाती है । ( 2 ) पर्यावरणीय समस्याओं जैसे सूखा आदि के प्रति प्रतिरोध ( रेजिस्टेंस ) में कमी आती है । ( 3 ) कुछ पारितंत्र की प्रक्रियाओं जैसे – पादप उत्पादकता , जल उपयोग , पीड़क और रोग चक्रों की परिवर्तनशीलता बढ़ जाती है ।
7. पवित्र उपवन क्या है ? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है ?
उत्तर – भारत में सांस्कृतिक व धार्मिक परंपरा का इतिहास जो प्रकृति की रक्षा करने पर जोर देता है । बहुत – सी संस्कृतियों में वनों के लिए अगल भू – भाग छोड़े जाते थे और उनमें सभी पौधों तथा वन्य जीवों की पूजा की जाती थी । इस प्रकार के पवित्र उपवन या आश्रय मेघालय की खासी तथा जयंतियाँ पहाड़ी , राजस्थान की अरावली , कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट व मध्य प्रदेश की सरजा , चंदा व वस्तर क्षेत्र हैं । मेघालय के पवित्र उपवन बहुत – सी दुर्लभ व संकटात्पन्न की पादपों अंतिम शरणस्थली है ।
8. पारितंत्र सेवा के अंतर्गत बाढ़ व भू – अपरदन ( सॉयल – इरोजन ) नियंत्रण आते हैं । हैं ? यह किस प्रकार पारितंत्र के जीवीय घटकों ( बायोटिक कंपोनेट ) द्वारा पूर्ण होते
उत्तर – पारितंत्र को संरक्षित करके हम बाढ़ व भू – अपरदन जैसी समस्याओं पर नियंत्रण पा सकते हैं । पारितंत्र निम्न तरीकों से अपनी सेवाएँ देकर बाढ़ व मृदा अपरदन पर नियंत्रण करते हैं घने पेड़ों वाले वन बाढ़ तथा मृदा अपरदन को नियंत्रण कर सकते हैं । वृक्षों तथा अन्य पौधों की जड़ें मिट्टी को जकड़ें रहती हैं । यह जल तथा वायु के प्रवाह में भी अवरोध उत्पन्न करती हैं । पैड़ों के अधिक कटने से यह अवरोध समाप्त हो जाता है तथा मृदा की सबसे ऊपरी परत जो जैव पदार्थों से समृद्ध होती हैं , वर्षा के जल तथा तेज के साथ बहकर लुप्त होने लगती है । इससे मृदा अपरदन होने लगता है । पेड़ों के कटने से वातावरणीय परिस्थितियाँ बदल जाती हैं जो कि बाढ़ तथा मृदा अपरदन का मुख्य कारण बनती है ।
9. पादपों की जाति विविधता ( 22 प्रतिशत ) जंतुओं ( 72 प्रतिशत ) की अपेक्षा बहुत कम है ; क्या कारण है कि जंतुओं में अधिक विविधता मिलती है ?
उत्तर – पादपों की जाति विविधता ( 22 प्रतिशत ) जंतुओं ( 72 प्रतिशत ) की अपेक्षा बहुत ही कम है । जंतुओं में अधिक विविधता का कारण –
( i ) विश्व में बढ़ती जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र कम हो गए । मानव ने वनों को अपने उपयोग के लिए काट दिया है । जिस कारण बहुत सी पादप जातियाँ नष्ट हो गई हैं । सी पादप जातियों की खोज नहीं हो पाई है ( यानि उन्हें पहचाना नहीं जा सका है ) । एक लाख शीतोष्ण क्षेत्र के वनों में 10 गुना अधिक जातियाँ हैं । इसका कारण अक्षांशों पर विविधता में क्रमबद्ध उतार चढ़ाव है ।
10. क्या आप ऐसी स्थिति के बारे में सोच सकते हैं , जहाँ पर हम जानबूझकर किसी जाति को विलुप्त करना चाहते हैं ? क्या आप इसे उचित समझते हैं ? उत्तर – मानव द्वारा प्रशांत उष्ण कटिबंधीय द्वीपों पर आवासीय बस्तियाँ स्थापित करने से वहाँ के मूल पक्षियों की 2 हजार से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई हैं । जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी बिलुप्ति का कारण बन जाती हैं । जैसे जब नील नदी की मछली ( नाइल पर्च ) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से बेजोड़ सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई । गाजर घास ( पार्थेनियम ) , लैंटाना और हायसिंथ ( आइकार्निया ) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियों से पर्यावरण को होने वाली क्षति और हमारी देशज अफ्रीकन कैटफिश कलैरियम गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया , लेकिन अब ये मछली हमारी नदियों की अशल्कमीन ( कैटफिश जातियों ) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं ।
 परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्णप्रश्न एवं उत्तर
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न :
1. खेती योग्य फसल की औसत आयु है
( a ) 1-2 वर्ष
( b ) 5-15 वर्ष
( c ) 10-20 वर्ष
( d ) 20-30 वर्ष
उत्तर- ( b ) 5-15 वर्ष ।
2. वे जातियाँ जिनकी संख्या बहुत कम हो गयी हैं और विलुप्तता के कगार पर हैं , उन्हें कहते हैं
( a ) भेद्य जातियाँ
( b ) दुर्लभ जातियाँ
( c ) संकटमयी
( d ) क्षति – आशंकित
उत्तर- ( c ) संकटमयी ।
3. आरक्षित जीवमंडल की अवधारणा किसने विकसित की ?
( a ) DST
( b ) UGC
( c ) CRIS
( d ) MAB
उत्तर- ( d ) MAB |
4. शीतोष्ण सदाबहार वन कहाँ मिलते हैं ?
( a ) हिमालय
( b ) पश्चिमी घाट
( c ) अरावली
( d ) असम
उत्तर- ( b ) पश्चिमी घाट ।
5. वन कटने के दुष्प्रभाव हैं
( a ) वायु प्रदूषण में वृद्धि
( b ) वन जीवन का नाश
( c ) मरुस्थलीकरण
( d ) उपरोक्त सभी
उत्तर- ( a ) उपरोक्त सभी ।
6. वन संरक्षण के उपाय हैं
( a ) सामाजिक वनीकरण परियोजनाएं
( b ) कृषि वनीकरण परियोजनाएं
( c ) शहरी वनीकरण परियोजनाएँ
( d ) उपरोक्त सभी
उत्तर- ( d ) उपरोक्त सभी ।
7. निम्न में से कौन वन संरक्षण कार्य के विरोध में हैं ?
( a ) लकड़ी काटने में बचाव
( b ) प्रकाश की प्राप्ति
( c ) आग लगने पर नियंत्रण
( d ) जंगली जंतु से सुरक्षा
उत्तर- ( b ) प्रकाश की प्राप्ति ।
8. वनों के काटने से खतरनाक प्रभाव होगा
( a ) चरागाह क्षेत्र में वृद्धि
( b ) प्रकाश की प्राप्ति
( c ) अपतृण नियंत्रण
( d ) मृदा अपरदन
उत्तर- ( d ) मृदा अपरदन ।
9. निम्न में से कौन विदेशी प्रजाति है ?
( a ) कतला
( b ) रोहू
( c ) नील पर्च
( d ) हिप्पोकैम्पस
उत्तर- ( c ) नील पर्च ।
10. भारत में कितने जैवभौगोलिक क्षेत्र हैं ?
( a ) 10
( b ) 13
( C ) 4
( d ) 5
उत्तर- ( a ) 10 ।
11. विश्व में तप्त स्थलों की संख्या है
( a ) 25
( b ) 10
( c ) 15
( d ) 13
उत्तर- ( a ) 25 ।
II . रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
1. सन् 2002 में…………..के जोहान्सबर्ग में सतत् विकास पर विश्व शिखर सम्मेलन हुआ था ।
2. विशाल अमेजन वर्षा – वन , को विशाल होने के कारण ………. कहा जाता है ।
3. किसी क्षेत्र की जैव विविधता की हानि होने से……… घटती है ।
4 ………………. में ही पृथ्वी की आधी जातियाँ विलुप्त हो जायेंगी ।
5. जाति समृद्धि और वर्गकों को व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच संबंध…………अतिपरवलय होता है । 6 . ………………क्षेत्र में शीतोष्ण या ध्रुव प्रदेशों की तुलना में अधिक जातियाँ पाई जाती हैं ।
उत्तर -1 . दक्षिण अफ्रीका , 2. ‘ पृथ्वी का फेफड़ा ‘ , 3 . पादप उत्पादकता , 4 . 100 वर्षो ,
5. आयताकार , 6. उष्ण कटिबंधीय ।
III . निम्नलिखित में से कौन – सा कथन सत्य है और कौन – सा असत्य
1. संसार में 15 लाख से अधिक जातियों के साक्ष्य एकत्रित्र किए जा चुके हैं , लेकिन पृथ्वी पर लगभग 60 लाख जातियाँ खोज तथा नामकरण के इंतजार में हैं ।
2. भारत लगभग 45,000 पादप जातियों तथा इससे दो गुनी जंतु जातियों के साथ विश्व के 12 महाविविधता वाले देशों में से एक है ।
3. जातीय – समृद्धि किसी प्रदेश के क्षेत्र पर आधारित होती हैं
4. जाति क्षेत्र संबंध सामान्यतः एक आयताकार अतिपरवलयिक कार्य है ।
5. ऐसा माना जाता है की उच्च विविधता वाले समुदाय कम परिवर्तनशील अधिक उत्पादक तथा जैविक आक्रमण के प्रति प्रतिरोधी होते हैं ।
6. प्राकृतिक वृद्धि की इंट्रीनिजक दर r किसी समष्टि की वृद्धि करने की जन्मजात शक्ति की माप है । उत्तर -1 , सत्य , 2. सत्य , 3. सत्य , 4. सत्य , 5. सत्य , 6. सत्य ।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वनीय जीवन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर – वनीय जीवन , हमारी जीव सम्पदा एवं स्रोत के मुख्य घटक हैं ।
प्रश्न 2. वनीय जीवन का सबसे बड़ा शत्रु कौन है ? उत्तर – मानव , मानव की क्रियाएँ हमारे वनीय जीवन को नष्ट करने में प्रमुख भूमिका निभाती है । प्रश्न 3. मानवीय जीवन को क्यों खतरा पैदा हो गया है ?
उत्तर – सुरक्षा , भोजन , मनोरंजन तथा आवास आदि के लिए वन्य जीवन का नाश मनुष्य के स्वयं के जीवित रहने के लिए खतरा बन गया है ।
प्रश्न 4. जातियों के विलुप्त हो जाने का कोई एक कारण क्या हो सकता है ?
उत्तर – आर्थिक महत्त्व के लाभकारी जन्तुओं को धन कमाने के लिए मारने से भी जातियाँ विलुप्त हो जाती हैं ।
प्रश्न 5. T , E , V , R से आपका क्या तात्पर्य है ? उत्तर – पौधों और जन्तुओं की क्षति – आशंकित ( T ) जातियों को संकटमयी ( E ) , भेद्य जातियाँ ( V ) तथा दुर्लभ जातियों को ( R ) में विभक्त किया जाता है ।
प्रश्न 6. वन जीवन के संरक्षण के लिए क्या अवधारणा विकसित की गई है ?
उत्तर – वन जीवन के संरक्षण के लिए ही क्षति – आशंकित जाति ( T ) अवधारणा विकसित की गई है ।
प्रश्न 7. वनीय जीवन का सरंक्षण हम कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर – सभी क्षति – आशंकित जातियों की सुरक्षा करके , पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण करके तथा सभी आवासों की सुरक्षा करके वनीव जीवन का संरक्षण किया जा सकता है ।
प्रश्न 8. प्रवासी जातियों के संरक्षण के लिए कोई एक सुझाव दीजिए ।
उत्तर – प्रवासी जातियों के संरक्षण के लिए दो या अनेक देशों के मध्य समझौते होने चाहिए ।
प्रश्न 9. वन हमारे लिए क्यों महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर – वन मृदा अपरदन रोकते हैं , वन जल के तीव्र बहाव को रोक कर बाढ़ पर नियंत्रण रखते हैं । वन असंख्य जंतुओं को आवास , भोजन आदि प्रदान करते हैं । वनों से सुन्दरता बढ़ती है और मनोरंजन भी होता है ।
प्रश्न 10. वन समाप्त होने के क्या मुख्य कारण हैं ? उत्तर – पशुओं के चरने से , कृषि , औद्योगीकरण , सड़कों , बाँध , भवन आदि के निर्माण से हमारे वन समाप्त हो रहे हैं ।
प्रश्न 11. वन संरक्षय के उपाय बताइए ।
उत्तर – हमें ईंधन के रूप में लकड़ी का कम उपयोग करना चाहिए , वनों के कटने के बाद उन स्थानों को पुनः वनीकरण करना चाहिए , आधुनिकतम तकनीक तथा वन प्रबन्ध रीति अपनानी चाहिए । वनों के महत्त्व के बारे में जनसाधारण को शिक्षित करना चाहिए ।
प्रश्न 12. पारिस्थितिकीय विविधता क्या है ?
उत्तर – यह विविधता पारितंत्र स्तर पर है , जैसे कि भारत के रेगिस्तान , वर्षा वन , गरान ( मैंग्रोव ) , प्रवाल भित्ति , आर्द्र भूमि , ज्वारनदमुख तथा एल्पाइन शाद्वल ( मीडोज ) की पारितंत्र विभिनता स्कैंडीनेवियाई देश नार्वे से अधिक है ।
प्रश्न 13. जैव विविधता का प्रतिरूप ( पैटर्न ) पूरे विश्व में कैसा है ?
उत्तर – सामान्यतः भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर जाति विविधता घटती जाती है । उष्णा कटिबंधीय क्षेत्र में अधिक विविधता पाई जाती है । प्रश्न 14. जैव विविधता की क्षति के क्या कारण हैं ? उत्तर – जैव विविधता की क्षति के चार मुख्य कारण हैं- ( i ) आवासीय क्षति तथा विखंडन ,
( ii ) अतिदोहन ,
( iii ) विदेशी जातियों का आक्रमण ,
( iv ) सह विलुप्तता ।
प्रश्न 15. जैव विविधता का संरक्षण कैसे संभव है ? उत्तर – जब हम संपूर्ण पारितंत्र को सुरक्षित तथा संरक्षित करते हैं तब इसकी जैव विविधता के सभी स्तर भी संरक्षित तथा सुरक्षित हो जाते हैं ।
प्रश्न 16. हॉट – स्पॉट से आप क्या समझते हैं ? उत्तर – हॉट – स्पॉट वे क्षेत्र होते हैं , जहाँ पर जातीय समृद्धि बहुत अधिक और उच्च स्थानिकता होती है , जातियाँ अन्य स्थानों पर नहीं होती हैं ।
प्रश्न 17. आनुवंशिक विविधता क्या है ?
उत्तर – किसी जाति में जीनों या गुणसूत्रों की संरचना में भिन्नता आनुवंशिक विविधता कहलाती है । प्रश्न 18. “ जैविक विविधता ‘ का प्रयोग सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने किया ?
उत्तर – ई.ए . नोर्स एवं आर . ई . मैंक मैनस ने । प्रश्न 19. बीटा विविधता क्या है ?
उत्तर – आवासों या समुदायों के एक प्रवणता के साथ जातियों के विस्थापित होने की दर ।
प्रश्न 20. विश्व संरक्षण मॉनीटरिंग केन्द्र के अनुसार पिछले वर्षों में कितने जंतु तथा .पादप जातियों का विलोपन हुआ है ?
उत्तर -533 जंतु तथा 384 पादप ।
प्रश्न 21. आई . यू . सी . एन . की लाल सूची प्रणाली कब शुरू की गई थी ।
उत्तर -1963 ई . में ।
प्रश्न 22. लाल पांडा किस श्रेणी में आता है ?
उत्तर – संकटाग्रस्ता
प्रश्न 23. हिमांकमितीय संरक्षण कायिक जनन द्वारा उगाई गई फसलों के नाम लिखें ।
उत्तर – आलू ।
  लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आई . यू . सी . एन . के लाल सूची के क्या लाभ हैं ?
उत्तर- ( i ) संकटग्रस्त जैव विविधता के महत्त्व के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना । ( ii ) संकटापन्न प्रजातियों की पहचान व उनका अभिलेखन करना । ( iii ) जैव विविधता के ह्रास की लिखित सूची तैयार करना । ( iv ) स्थानीय स्तर पर संरक्षण की प्राथमिकताओं को परिभाषित करना तथा संरक्षण कार्यों को निर्देशित करना ।
प्रश्न 2. जैव विविधता आधुनिक कृषि के लिए किस प्रकार उपयोगी है ?
उत्तर – जैव विविधता तीन प्रकार से उपयोगी है- ( i ) नई फसलों से स्रोत के रूप में ,
( ii ) उन्नत किस्मों के प्रजनन के लिए सामग्री के रूप में और
( iii ) नए जैव निम्नकरणीय पीड़कों के स्रोत के रूप में ।
प्रश्न 3. जैव विविधता का औषधीय गुणों वाले पादपों के साथ किस प्रकार का संर्व है ?
उत्तर – वर्तमान में औषधि निर्माण में दवाओं का 25 % पादपों की मात्रा 120 जातियों से प्राप्त होता है । उष्णकटिबंधीय , वर्षा वनों के पादपों में उच्च स्तर की औषधियाँ पाई जाती हैं बोटानोकेमिकल्स के तौर पर इनका उपयोग कई चीजों में होता है । जैसे मार्फीन ( Papaver somniferum ) – दर्द निवारक , कुनैन ( Cinchona ladgeriana ) – मलेरिया उपचार , टैक्सोल ( Taxus brevifolia ) – कैंसर को दवा । प्रश्न 4. जैव विविधता का सौन्दर्य में योगदान का उल्लेख करें ।
उत्तर – पारिस्थितिक पर्यटन , पक्षी निरीक्षण , वन्य जीवन , पालतू जीवन की देखभाल , वागवानी आदि मानव जाति के अस्तित्व से जुड़ा है । इसमें सांस्कृतिक व धार्मिक विश्वास का भी सम्मिश्रण है । तुलसी ( Ocimum sanctum ) , पीपल ( Ficus religiosa ) , खेजड़ी ( Prosopis cinereria ) आदि को पवित्र मानकर पूजा जाता है ।
प्रश्न 5. जैव विविधता की प्रवणता से क्या समझते हों?
उत्तर – उच्च से निम्न नीचे अक्षांश की ओर चलने पर जैविक विविधता बढ़ती है । ऐसा सहसंबंध चींटियों में पाया गया है । अर्पटिल में जलवायु अत्यंत कठिन होती है । यह विस्तृत रूप से घटती – बढ़ती है ।
विपरीत परिस्थितियों में अनुकूलन का मुख्य उद्देश्य संक्षिप्त अनुकूल काल में वृद्धि एवं प्रजनन के लिए आवश्यक संसाधनों को प्राप्त करना एवं लंबी प्रतिकूल प्रावस्था में जीवित बने रहना जरूरी होता है ।
निम्न ग्राफ द्वारा इसे ही प्रदर्शित किया गया है-
चित्र : अक्षांशीय प्रवणता के साथ चीटी जातियों की संख्या का घटना ( निम्न उच्च अक्षांश की ओर ) प्रश्न 6. आवास हास एवं विखंडन से जैव विविधता को किस प्रकार खतरा हो रहा है ?
उत्तर – जिस आवास में कोई जीव रहता है वहाँ उसके जीवित रहने , प्रजनन करने के लिए अनुकूल वातावरण पाया जाता है । जब प्राकृतिक आवास को मानवीय क्रियाओं यथा वनोन्मूलन , आग , निम्नभूमि की भराई आदि द्वारा खत्म कर दिया जाता है तो जीव को दो मुश्किलों का सामना करना पड़ता है-
प्रजनन दर में कमी , पलायन ( स्थानांतरण ) ।
दोनों ही परिस्थितियों में जीव का अस्तित्व संकट में होता है ।
दूसरी जगह पर स्थानांतरण से नए परिवेश में नए प्रकार के प्रतियोगियों के साथ संघर्ष उन्हें तितर – बितर कर देता है ।
वन का एक टुकड़ा जो शस्यभूमि , फलोहान , रोपित पेड़ – पौधों या शहरी क्षेत्र से घिरा हो , विखंडित आवासों का उदाहरण है । अधिशोषण के फलस्वरूप किसी जाति विशेष का माप इतना घट जाता है कि वह जाति विलुप्त हो जाती है ।
प्रश्न 7. विलोपन कितने प्रकार होते
उत्तर – विलोपन एक नैसर्गिक प्रक्रिया है । यह तीन प्रकार के होते हैं-
( क ) नैसर्गिक विलोपन – पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन के कारण कम अनुकूल प्राणी विलुप्त हो जाते हैं ।
( ख ) समूह विलोपन – प्राकृतिक आपदाओं के कारण जातियों के एक बड़े समूह का विलुप्त हो जाना समूह विलोपन कहलाता है ।
( ग ) मानवोद्मवी विलोपन – बड़ी संख्या में जातियों के विलोपन का कारण जब मानवीय हो तब इसे मानवोद्भवी विलोपन कहलाता है ।
प्रश्न 8. जातियों की तीन प्रमुख संकट श्रेणियाँ कौन – कौन सी हैं ? उदाहरण सहित वर्णन कीजिए । उत्तर – जातियों की तीन मुख संकट श्रेणियाँ हैं-
प्रश्न 9. प्रमुख वातावरणीय प्रवणताओं के समानान्तर जैव विविधता का वितरण कैसे होता है ?
उत्तर – ऊँचे से नीचे अक्षांश अर्थात् ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलने पर जैविक विविधता बढ़ती है । उष्ण कटिबंधीय वर्षा वाले वन में उष्ण एवं आई जलवायु एक बड़ी संख्या में जातियों का रहना एवं वृद्धि करना संभव बनाती है ।
प्रश्न 10. जैव विविधता क्या है ? हाल ही में यह इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों हो गई है ?
उत्तर – जैव विविधता किसी क्षेत्र विशेष की समस्त जीनों , जातियों एवं पारितंत्रों का संग्रह है । इसके तीन स्तर हैं- ( i ) जीन स्तर , ( ii ) जाति स्तर तथा ( iii ) सामुदायिक या पारितंत्र स्तर । हाल में इसके महत्त्वपूर्ण होने के निम्न कारण हैं-
( i ) जैविक विविधता का अमाप जाने बिना ही हम इसे खोते जा रहे हैं ।
( ii ) जैव विविधता का ह्रास जीवों के विकास की क्षमता , जो पर्यावरणीय परिवर्तनों का सामना करने के लिए आवश्यक है , को रोकेगा ।
( iii ) जैव विविधता मानव को भोजन तथा नई फसलें स्रोत देती है ।
( iv ) यह हमें कई दवाएँ तथा पेट्रोलियम के स्थानापन्न स्रोत देती है ।
प्रश्न 11. किस प्रकार के संकटों से जैव विविधता का ह्रास होता है ।
उत्तर- ( i ) आवास का ह्रास तथा विखंडन जैव विविधता का नाश करता है । वृक्षोन्मूलन , नमभूमि का भराव आदि आवास का ह्रास करते हैं ।
( ii ) नैसर्गिक बाधाओं प्रजातियाँ यथा आग , वृक्षापात , कीटों के आक्रमण द्वारा भी समुदाय की जाति बाधित होती है ।
( iii ) संवेदनशील प्रजातियाँ प्रदूषण से कम होती हैं तथा समष्टि हटा भी दी जाती है ।
( iv ) शीशाविषाक्तन के कारण भी जलीय जीवों की विविधता नष्ट होती है ।
( v ) विदेशी जातियों के नए भौगोलिक क्षेत्रों में पुनर्स्थापन के प्रभाव से देशी जातियाँ लुप्त हो रही हैं।
प्रश्न 12. विलोपन विधियों का व्यापक वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर – नैसर्गिक विलोपन – पर्यावरणीय दशाओं में परिवर्तन के साथ कुछ जातियाँ अदृश्य हो जाती हैं और अन्य जो बदली हुई दशाओं के लिए अधिक अनुकूलित होती हैं , उनका स्थान ले लेती हैं । जातियों का वह ह्रास जो भूगर्भी अतीत में अत्यंत धीमी दर से हुआ , नैसर्गिक या पृष्ठभूमिक विलोपन कहलाता है ।
   समूह विलोपन – जातियों की एक बड़ी संख्या का प्राकृतिक पृथ्वी की सतह से बड़ी संख्या में जातियाँ अदृश्य हो रही है । भूगर्भीय अतीत के समूह विलोपन की तुलना में , मानव जनित विलोपन जैव विविधता के गंभीर अवक्षय को दर्शाती है क्योंकि यह अल्प समय में हो रहा है ।
  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
( क ) आई . यू . सी . एन . की लाल आंकड़े पुस्तिका ।
( ख ) सुरक्षित क्षेत्र ।
उत्तर- ( क ) आई . यू . सी . एन . की लाल आंकड़े पुस्तिका – ऐसे जीव वर्गों की सूची जो विलुप्त होने के कगार पर हैं । इन संकटग्रस्त वर्गों को निम्न श्रेणियों में बांटा गया है-
( ख ) सुरक्षित क्षेत्र – स्थल एवं समुद्र के ऐसे क्षेत्र जो जैविक विविधता की तथा प्राकृतिक एवं संबंध सांस्कृतिक स्रोतों की सुरक्षा एवं निर्वहन के लिए विशेष रूप से समर्पित हैं । सुरक्षित क्षेत्रों में उदाहरण राष्ट्रीय उद्यान एवं वन्य जीवाश्रम स्थल हैं । विश्व संरक्षण बोधन केंद्र ने पूरे विश्व में 37,000 सुरक्षित क्षेत्रों की पहचान की है । भारत में 581 क्षेत्र सुरक्षित हैं जिनमें 89 उद्यान एवं 492 वन्य जीवाश्रम स्थल हैं । उत्तरांचल स्थित जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान भारत में स्थापित पहला राष्ट्रीय उद्यान है ।
प्रश्न 2. आई . यू . सी . एन . की खतरनाक सूची क्या है , वर्णन करें ।
उत्तर – विलुप्त होने की कगार पर खड़े वर्गों को आई . यू . सी . एन . की खतरनाक सूची में लिपिबद्ध किया गया है ताकि उनकी पहचान तथा सुरक्षा हो सके ।
  आई . यू . सी . एन . की लाल सूची प्रणाली के अनुसार जातियों की आठ श्रेणियाँ हैं । यह सूची प्रणाली 1963 में शुरू की गई थी । सन् 2000 की लाल सूची अच्छे ढंग से प्रस्तुत की गई है , जिसमें 18,000 जातियों का विसरण है । इस सूची में अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में भी सहायता मिलती है ।
लाल सूची में आवृत्तबीजी , उभयचर , सरीसृप , पक्षी तथा स्तनधारियों का प्रतिशत जो कि गंभीर रूप से विलुप्तप्राय , विलुप्तप्राय सुभेद्य तथा कम जोखिम वाले वर्गों में वर्गीकृत किया गया है ।
चित्र : आई . यू . सी . एन . की लाल सूची में वर्गीकृत संकटग्रस्त श्रेणियाँ आई . यू . सी . एन . की आठ संकटग्रस्त श्रेणियाँ निम्नलिखित हैं
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