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 Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 4

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
उदासीन वक्र के निर्माण की विधि लिखें।
उत्तर:
उदासीन वक्र का निर्माण (Construction of Indifference Curve)- उदासीन वक्र के निर्माण के लिए तटस्थता तालिका की आवश्यकता होती है। तटस्थता तालिका ऐसी तालिका को कहते हैं जिसमें दो वस्तुओं के ऐसे दो वैकल्पिक संयोगों को प्रदर्शित किया जाता है जिसमें उपभोक्ता को समान संतुष्टि प्राप्त होती है। जब तालिका के विभिन्न संयोगों को एक वक्र में प्रस्तुत किया जाता है तो उसे तटस्थता वक्र ऋणात्मक ढलान वाला होता है क्योंकि उपभोक्ता दोनों वस्तुओं का उपभोग करना चाहता और कम वस्तुओं की तुलना में अधिक वस्तुओं को प्राथमिकता देता है।

प्रश्न 2.
एक देश में भूकंप से बहुत से लोग मारे गये उनके कारखाने ध्वस्त हो गए। इसका अर्थव्यवस्था के उत्पादन संभावना वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर:
बहुत से लोगों के मरने तथा कारखानों के ध्वस्त होने से संसाधनों में कमी होगी। संसाधनों की कमी होने पर संभावना वक्र बाईं ओर खिसक जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
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प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र में संतुलन से क्या अभिप्राय है ? समझायें।
उत्तर:
संतुलन (Equilibrium)- भौतिक विज्ञान में संतुलन का अर्थ स्थिर अवस्था से लिया जाता है। संतुलन की अवस्था में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होती या किसी प्रकार की गति नहीं होती किन्तु अर्थशास्त्र में संतुलन का अर्थ स्थिर अथवा अर्थव्यवस्था में गतिहीनता से नहीं लिया जाता। अर्थशास्त्र में संतुलन की अवस्था उस स्थिति को कहते हैं जिसमें गति तो होती है परन्तु गति की दर में परिवर्तन नहीं होता। यह वह अवस्था है जिसमें अर्थव्यवस्था की कोई एक इकाई या भाग या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अपने इष्ट बिन्दु पर होती है और उनमें उस बिन्दु से हटने की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।

प्रश्न 4.
उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
उपयोगिता (Utility)- उपयोगिता पदार्थ का वह गुण है जिसमें किसी आवश्यकता की संतुष्टि होती है। प्रो. एडवर्ड के शब्दों में “अर्थशास्त्र में उपयोगिता के अर्थ उस संतुष्टि आनन्द या लाभ से है जो कसी व्यक्ति को धन या सम्पत्ति के उपभोग से प्राप्त होती है।” उपयोगिता का सम्बन्ध प्रयोग मूल्य (value use) से होता है। जिन वस्तुओं में प्रयोग मूल्य होता है, उसमें उपयोगिता विद्यमान होती है। उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता का फलन है।

उपयोगिता की विशेषताएँ (Characteristics of utility)-

  • उपयोगिता भावगत (subjective) है। यह व्यक्ति के स्वभाव, आदत व रुचि पर निर्भर करती है।
  • वस्तुओं की उपयोगिता समय तथा स्थान के साथ बदलती रहती है।
  • उपयोगिता का लाभदायकता से कोई निश्चित सम्बन्ध नहीं होता।
  • उपयोगिता कारण है तथा संतुष्टि परिणाम है।
  • उपयोगिता का किसी वस्तु को स्वादिष्टता से कोई सम्बन्ध नहीं होता।

प्रश्न 5.
प्रारम्भिक उपयोगिता, सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
(i) प्रारंभिक उपयोगिता (Initial Utility)- किसी वस्तु की प्रथम इकाई के उपभोग करने से जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उसे प्रारम्भिक उपयोगिता कहते हैं। मान लो एक संतरा खाने में 10 इकाइयों (यूनिटों) की उपयोगिता प्राप्त होती है तो यह उपयोगिता प्रारम्भिक उपयोगिता कहलाएगी।

(ii) सीमान्त उपयोगिता (Marginal Utility)- किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है, उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं। मान लो एक आम खाने से कुल उपयोगिता 10 यूनिट है और दो आम खाने से कुल उपयोगिता 18 यूनिट है। ऐसी अवस्था में दूसरे आम से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता 8 (18-10) होगी। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।

(iii) कल उपयोगिता (Total Utility)- किसी निश्चित समय में कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता कुल उपयोगिता होती है। कुल उपयोगिता की गणना करने के लिए सीमान्त उपयोगिताओं को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 6.
व्यक्तिगत माँग वक्र की सहायता से बाजार माँग वक्र का निर्माण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
व्यक्तिगत माँग वक्र (Individual demand curve)- व्यक्तिगत माँग वक्र वस्तु की उन मात्राओं को प्रकट करता है जिन्हें एक उपभोक्ता किसी विशेष समय पर विभिन्न कीमतों पर खरीदता है।

बाजार माँग वक्र (Market demand curve)- यह वह वक्र है जो किसी वस्तु को विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्राओं के जोड़ को प्रकट करता है। यह व्यक्तिगत माँग वक्रों को जोड़कर बनाया जाता है। जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है-
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प्रश्न 7.
सीमान्त उपयोगिता तथा उपयोगिता में क्या संबंध है ?
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में सम्बन्ध (Relationship between Marginal Utility and Total Utility)-

  • कुल उपयोगिता आरम्भ में लगातार बढ़ती है और एक निश्चित बिन्दु के पश्चात् यह घटनी शुरू हो जाती है, परन्तु सीमान्त उपयोगिता आरम्भ से ही घटना शुरू कर देती है।
  • जब कुल उपयोगिता बढ़ती है तो सीमान्त उपयोगिता धनात्मक होती है।
  • जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है।
  • जब कुल उपयोगिता घटती है तब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 8.
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम समझाएँ।
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम (Law of diminishing marginal utility)- सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य की विवेचना करता है कि जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई का उपभोग करता है अन्य बातें समान रहने पर उसे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। एक बिन्दु पर पहुँचने पर यह शून्य हो जाती है और यदि उपभोक्ता इसके पश्चात् भी वस्तु की सेवन जारी रखता है तो यह ऋणात्मक हो जाती है।

इस नियम के लागू होने के दो मुख्य कारण हैं-

  • वस्तुएँ एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न नहीं होती तथा
  • एक विशेष समय पर एक विशेष आवश्यकता की पूर्ति की जा सकती है।

प्रश्न 9.
माँग में वृद्धि तथा माँग में कमी में अन्तर बताएँ।
उत्तर:
माँग में वृद्धि तथा माँग में कमी (Increase in demand and decrease in demand)-
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प्रश्न 10.
माँग की लोच मापने की कुल व्यय विधि समझाएँ।
उत्तर:
माँग की लोच को मापने की कुल व्यय विधि (Total outlay method to measure the elasticity of demand)- इस विधि के अन्तर्गत कीमत परिवर्तन के फलस्वरूप वस्तु एवं होने वाले कुल व्यय पर प्रभाव का अध्ययन किया जाता हैं इस विधि से केवल यह ज्ञात किया जा सकता है कि माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर है, इकाई से अधिक है अथवा इकाई से कम। इस प्रकार इस विधि के अनुसार माँग की लोच तीन प्रकार की होती है- (i) इकाई से अधिक लोचदार, (ii) इकाई के बराबर लोच तथा (iii) इकाई से कम लोचदार माँग।

  • इकाई से अधिक लोचदार माँग (Greater than unit)- जब कीमत के कम होने पर कुल व्यय बढ़ता है और उसके बढ़ने पर कुल व्यय घटता है तब माँग की लोच इकाई से अधिक होती है।
  • इकाई के बराबर लोच (Unitary elastic)- जब कीमत में परिवर्तन होने पर कुल व्यय स्थिर रहता है, तब माँग की लोच इकाई के बराबर होती है।
  • इकाई से कम लोचदार माँग (Less than unit)- जब कीमत बढ़ने से कुल व्यय बढ़ता है और कीमत के कम होने पर कुल व्यय घटता है तो उस समय माँग की लोच इकाई से कम होती है।

प्रश्न 11.
प्रतिस्थापन प्रभाव और कीमत प्रभाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
प्रतिस्थापन प्रभाव (Substitution Effect)- किसी वस्तु (चाय) की कीमत बढ़ने पर जब उपभोक्ता उसकी माँग पर कम और उसकी प्रतिस्थापन वस्तु (कॉफी) की माँग अधि क करते हैं तो इसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं।

कीमत प्रभाव (Price Effect)- आय प्रभाव और प्रतिस्थापन प्रभाव के योग को कीमत प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 12.
माँग के नियम की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
माँग के नियम की विशेषताएँ (Characteristics of law of demand)-

  • माँग के नियम के अनुसार किसी वस्तु की कीमत और माँग की गई मात्रा में विपरीत संबंध होता है।
  • यह नियम माँग में परिवर्तन की दिशा का बोध कराता है, न कि उसकी मात्रा में परिवर्तन का।
  • इस नियम के अनुसार कीमत और माँग में आनुपातिक संबंध नहीं है।
  • यह नियम वस्तु की कीमत में परिवर्तन का उसकी माँगी गई मात्रा पर प्रभाव बताता है, न कि माँग में परिवर्तन का वस्तु की कीमत पर।

प्रश्न 13.
माँग के नियम के मुख्य अपवाद लिखें।
उत्तर:
माँग के नियम के मुख्य अपवाद (Exceptions to the law of demand)-माँग के नियम के मुख्य अपवाद निम्नलिखित हैं-

  • घटिया वस्तुएँ (Inferior Goods)- प्रायः घटिया वस्तुओं पर माँग का नियम लागू नहीं होतः। घटिया वस्तुओं की माँग उनकी कीमत गिरने से कम हो जाती है।
  • दिखावे की वस्तुएँ (Prestigious Goods)- माँग का नियम प्रतिष्ठामूलक वस्तुओं जैसे-हीरे-जवाहरात तथा अन्य वस्तुएँ जैसे कीमती वस्त्र, ए० सी०, कार आदि पर लागू नहीं होता।
  • अनिवार्य वस्तुएँ (Essential Goods)- अनिवार्य वस्तुएँ जैसे अनाज, नमक, दवाई आदि पर माँग का नियम लागू नहीं होता।
  • फैशन (Fashion)-फैशन में आ’ वाली वस्तुओं पर भी माँग का नियम लागू नहीं होता।

प्रश्न 14.
माँग की कीमत लोच का एकाधिकारी, वित्तमंत्री तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
(i) एकाधिकारी के लिए महत्त्व (Importance for Monopolist)- एकाधिकारी वस्तु की कीमत का निर्धारण वस्तु की माँग की लोच के आधार पर करता है। यदि वस्तु की माँग लोचदार है तो वह नीची कीमत निर्धारित करेगा। इसके विपरीत यदि माँग बेलोचदार है तो एकाधिकारी ऊँची कीमत निर्धारित करेगा।

(ii) वित्त मंत्री या सरकार के लिए महत्व (Importance for Finance Minister or Government)- सरकार अधिकतर उन वस्तुओं पर कर लगाती है जिनकी माँग बेलोचदार होती है ताकि अधिक से अधिक आगम प्राप्त हो सके। इसके विपरीत लोचदार वस्तुओं पर कर लगाने से उनकी माँग कम हो जाती है जिससे सरकार को करों के रूप में कम आगम प्राप्त हो सकती है।

(iii) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्व (Importance in International Trade)- जिन वस्तुओं की माँग बेलोचदार है उनके लिए एक देश अन्य देशों से अधिक कीमत ले सकता है।

प्रश्न 15.
व्यक्तिगत माँग वक्र तथा बाजार माँग वक्र में क्या अन्तर बताएँ।
उत्तर:
व्यक्तिगत माँग वक्र तथा बाजार माँग वक्र में अन्तर (Difference between individual demand curve and market demand curve)- व्यक्तिगत माँग वक्र वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर एक उपभोक्ता द्वारा उस वस्तु की माँगी गई मात्राओं को प्रकट करता है। इसके विपरीत बाजार माँग वह वक्र है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई मात्राओं को प्रकट करता है। बाजार माँग वक्र को व्यक्तिगत वक्रों के समस्त जोड़ के द्वारा खींचा जाता है।

प्रश्न 16.
माँग की आय लोच समझाइयें।
उत्तर:
माँग की आय लोच से अभिप्राय इस बात की माप करने से है कि उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उसकी माँगी गई मात्रा में कितना परिवर्तन होता है। माँग की आय लोच को मापने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
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यहाँ ∠Q = माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
ΔY = माँगी गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन
Y = प्रारम्भिक परिवर्तन
Q = प्रारम्भिक माँग

माँग की आय लोच की तीन श्रेणियाँ हैं-

  • ऋणात्मक,
  • धनात्मक तथा
  • शून्य।

प्रश्न 17.
उत्पादन फलन की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
उत्पादन फलन की विशेषतायें-

  • उत्पादन के साधन एक दूसरे के स्थानापन्न हैं अर्थात् एक या कुछ साधनों में परिवर्तन होने पर कुल उत्पादन में परिवर्तन हो जाता है।
  • उत्पादन के साधन एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात् चारों साधनों के संयोग से ही उत्पादन होता है।
  • कुछ साधन विशेष वस्तु के उत्पादन के लिये विशिष्ट होते हैं।

प्रश्न 18.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल में अन्तर बताएँ।
उत्तर:
अल्पकाल यह समयावधि है जिसमें उत्पादन के कुछ साधन परिवर्ती होते हैं और कुछ स्थिर। अल्पकाल में केवल परिवर्ती साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है। इसके विपरीत दीर्घकाल एक लम्बी समयावधि है। इसमें उत्पादन के सभी साधन परिवर्ती होते हैं।

प्रश्न 19.
औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में क्या संबंध है ?
उत्तर:
औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में सम्बन्ध (Relationship between AP and MP)-

  • औसत उत्पाद तब तक बढ़ता है जब तक सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  • औसत उत्पाद उस समय अधिकतम होता है जब सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद के बराबर होता है।
  • औसत उत्पाद तब गिरता है जब सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से कम होता है।

प्रश्न 20.
औसत उत्पाद तथा कुल उत्पाद में सम्बन्ध बतायें।
उत्तर:
औसत उत्पाद एवं कुल उत्पाद में सम्बन्ध (Relationship between AP and TP)-

  • जब कुल उत्पाद बढ़ती दर से बढ़ता है तो औसत उत्पाद भी बढ़ता है।
  • जब कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है तो औसत उत्पाद घटता है।
  • कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद हमेशा धनात्मक रहते हैं।

प्रश्न 21.
कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में सम्बन्ध (Relation between TP, AP)-

  • आरम्भ में कुल उत्पाद, सीमान्त उत्पाद तथा औसत उत्पाद सभी बढ़ते हैं। इस स्थिति में सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  • जब औसत उत्पाद अधिकतम व स्थिर होता है तो सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद के बराबर होता है।
  • इसके बाद औसत उत्पाद और सीमान्त उत्पाद कम होता है, सीमान्त उत्पाद औसत उत्पाद से कम होता है, शून्य होता है और ऋणात्मक होता है परन्तु औसत उत्पाद तथा कुल उत्पाद हमेशा धनात्मक होते हैं।
  • जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तब कुल उत्पाद अधिकतम होता है।

प्रश्न 22.
अल्पकाल तथा अति अल्पकाल में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
अल्पकाल तथा अति अल्पकाल में अन्तर (Difference between short period and very short period)- अति अल्पकाल से अभिप्राय उस समय-अवधि से है जब बाजार में पूर्ति बेलोचदार होती है जैसे-सब्जियाँ, दूध आदि की पूर्ति। ऐसी अवधि में कीमत के घटने-बढ़ने से पूर्ति को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता। पूर्ति अपरिवर्तनशील रहती है।

प्रश्न 23.
प्रतिफल के नियम से क्या अभिप्राय है ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
प्रतिफल के नियम (Laws of Returns)- साधन आगतों में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से सम्बन्धित नियम को प्रतिफल के नियम कहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रतिफल के नियम साधन आगतों और उत्पादन के बीच व्यवहार विधि को बताते हैं। प्रतिफल के नियम इस बात का अध्ययन करते हैं कि साधनों की मात्रा में परिवर्तन करने पर उत्पादन की मात्रा में कितना परिवर्तन होता है।

प्रतिफल के नियम के प्रकार (Types of Law of returns)- प्रतिफल के नियम दो प्रकार के होते हैं- (i) साधन के प्रतिफल के नियम। पैमाने के प्रतिफल के नियम साधन के प्रतिफल के नियम अल्पकाल से संबंधित हैं जबकि पैमाने के प्रतिफल के नियम दीर्घकाल से संबंध रखते हैं।

प्रश्न 24.
साधन के प्रतिफल किसे कहते हैं ? ये कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
साधन के प्रतिफल (Returns to Factor)- जब उत्पादक अन्य साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए उत्पादन के एक ही साधन में परिवर्तन करके उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन करना चाहता है तो उत्पादन के साधनों तथा उत्पादन के संबंध को साधन के प्रतिफल कहते हैं। साधन के प्रतिफल का सम्बन्ध परिवर्तनशील साधनों में परिवर्तन होने के कारण उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, जबकि स्थिर साधनों में परिवर्तन नहीं होता, परन्तु परिवर्तनशील तथा स्थिर साधनों के अनुपात में परिवर्तन हो जाता है। इसे परिवर्ती अनुपात का नियम भी कहते हैं।

साधन के प्रतिफल के प्रकार (Types of Returns to Factor) इसे बढ़ते (वर्धमान) सीमान्त प्रतिफल भी कहते हैं। साधन के बढ़ते प्रतिफल वह स्थिति है जब स्थिर साधन की निश्चित इकाई के साथ परिवर्तनशील साधन अधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। इस स्थिति में परिवर्तनशील साधनों का सीमान्त उत्पादन बढ़ता जाता है और उत्पादन की सीमान्त लागत कम होती जाती है इसलिए इसे ह्रासमान लागत का नियम भी कहते हैं। साधन के बढ़ते प्रतिफल को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है-
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प्रश्न 25.
साधन के समान प्रतिफल के तीन कारण लिखें।
उत्तर:
साधन के समान प्रतिफल के तीन कारण (Causes of constant returns of factor)- साधन के समान प्रतिफल के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(i) स्थिर साधनों का अनुकुलतम प्रयोग (Optimum Utilisation of Fixed Factors)- नियम स्थिर साधनों का अनुकूलतम उपयोग होने के कारण क्रियाशील होता है। जैसे-जैसे परिवर्ती साधन की अधिक इकाइयाँ प्रयोग में लायी जाती हैं, एक ऐसी अवस्था आ जाती है जब स्थिर साधनों का अनुकूलतम उपयोग होता है। इससे आगे परिवर्ती साधन की और अधिक इकाइयों के उपयोग से उत्पादन की मात्रा में समान दर में वृद्धि होगी।

(ii) परिवर्तित साधनों का अनुकूलतम प्रयोग (Most Efficient Utilisation of Variable Factors)- जब स्थिर साधन के साथ परिवर्तनशील साधन की बढ़ती हुई इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो एक ऐसी स्थिति आती है जिसमें सबसे अधिक उपर्युक्त श्रम विभाजन सम्भव होता है। इसके फलस्वरूप परिवर्तनशील साधन जैसे श्रम का सबसे अधिक उपयुक्त प्रयोग संभव होता है तथा सीमान्त उत्पादन अधिकतम मात्रा पर स्थिर हो जाता है।

(iii) आदर्श साधन अनुपात (Ideal Factor Ratio)- जब स्थिर तथा परिवर्तनशील साधन का आदर्श अनुपात में प्रयोग किया जाता है तो समान प्रतिफल की स्थिति होती है। इस स्थिति में साधन का सीमान्त उत्पादन अधिकतम मूल्य पर स्थिर हो जाता है।

प्रश्न 26.
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को समझायें।
उत्तर:
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल (Increasing returns to scale)- पैमाने के बढ़ते प्रतिफल उस स्थिति को प्रकट करते हैं जब उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाये
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साधनों की मात्रा (प्रतिशत में) जाने पर उत्पादन में वृद्धि अनुपात से अधिक होती है। दूसरे शब्दों में उत्पादन के साधनों में 10 प्रतिशत की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। ऊपर चित्र में पैमाने के बढ़ते प्रतिफल को दर्शाया गया है।

चित्र से पता चलता है कि उत्पादन के साधनों में 10 प्रतिशत की वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है। वह पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की स्थिति है।

प्रश्न 27.
आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में निम्नलिखित अन्तर हैं-
आन्तरिक बचतें:

  1. ये वे लाभ हैं जो किसी फर्म को अपने निजी प्रयत्नों के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं।
  2. आन्तरिक बचतों से प्राप्त होने वाले लाभ एक व्यक्तिगत फर्म तक ही सीमित होते हैं।
  3. आन्तरिक बचतें केवल बड़े पैमाने की फर्मों को प्राप्त होती हैं।
  4. आन्तरिक बचतों के उदाहरण हैं- तकनीकी बचतें, प्रबन्धकीय बचतें, विपणन बचतें आदि।

बाह्य बचतें:

  1. ये वे लाभ हैं जो समस्त उद्योग के विकसित होने पर सभी फर्मों को प्राप्त होते हैं।
  2. बाह्य बचतों से प्राप्त होने वाले लाभ उद्योगों की फर्मों को प्राप्त होते हैं।
  3. बाह्य बचतें छोटे प्रकार पैमाने की फर्मों को प्राप्त होती हैं।
  4. बाह्य बचतों के उदाहरण हैं-उत्तम परिवहन एवं संचार सुविधाओं की उपलब्धि, सहायक उद्योगों की स्थापना, कच्चे माल का सुगमता से प्राप्त होना आदि।

प्रश्न 28.
किसी साधन के सीमान्त भौतिक उत्पाद में परिवर्तन होने पर कुल भौतिक उत्पाद में परिवर्तन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
कुल भौतिक उत्पाद और सीमान्त भौतिक उत्पाद परस्पर संबंधित हैं। अन्य आगतों को स्थिर रखकर जब परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग किया जाता है तो कुल भौतिक उत्पाद में जो परिवर्तन हाता है, उसे सीमान्त भौतिक उत्पाद कहते हैं। कुल भौतिक उत्पाद सीमान्त भौतिक उत्पाद का जोड़ होता है। जब सीमान्त भौतिक उत्पाद धनात्मक होता है तो कुल भौतिक उत्पाद में वृद्धि होती है। जब सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक होता है तो उत्पाद कम होने लगता है। सीमान्त भौतिक उत्पाद में परिवर्तन उत्पादन की तीन अवस्थाओं को प्रकट करता है। उत्पादन की प्रथम अवस्था में सीमान्त भौतिक उत्पाद में वृद्धि होती है। उत्पादन की दूसरी अवस्था में यह धनात्मक तो रहता है, लेकिन कुल उत्पाद में वृद्धि घटती हुई दर से होती है। उत्पादन की तीसरी अवस्था में सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है और कुल उत्पाद में गिरावट आती है।

प्रश्न 29.
निजी लागत और सामाजिक लागत में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निजी लागत (Private Cost)- निजी लागत वह लागत है जो किसी फर्म को एक वस्तु के उत्पादन में खर्च करनी पड़ती है। वस्तु के उत्पादक में उत्पादन द्वारा आगतों के खरीदने और किराए पर लेने के लिए किया गया खर्चे निजी लागत कहलाती है। जैसे-ब्याज, मजदूरी, किराया आदि।

सामाजिक लागत(Social Cost)- सामाजिक लागत वह लागत है जो सारे समाज को वस्तु के उत्पादन के लिए चुकानी पड़ती है। सामाजिक लागत पर्यावरण प्रदूषण के रूप में होती है। जैसे-कारखाने द्वारा गंदे पानी को नदी में बहाना। इससे नदी की मछलियाँ मर जाती हैं और पानी को पीने योग्य बनाने के लिए नगर निगम को अधिक खर्च करना पड़ता है।

इसी प्रकार शहर में स्थिर फैक्टरी के धुएँ से पर्यावरण के दूषित होने पर शहरी नागरिकों के डॉक्टरी खर्च और लांडरी खर्च में वृद्धि सामाजिक लागत है।

फर्म के उत्पादन की लागत से हमारा आशय निजी लागत से है, न कि सामाजिक लागत से।

प्रश्न 30.
सीमान्त तथा औसत लागत में संबंध बतायें।
उत्तर:
सीमान्त लागत (MC) तथा औसत लागत (AC) में संबंध (Relationship between AC and MC)-

  1. जब औसत लागत कम होती है, तब सीमान्त लागत औसत लागत से कम होती है।
  2. जब औसत लागत बढ़ती है सीमान्त लागत औसत लागत से अधिक होती है।
  3. सीमान्त लागत वक्र सीमान्त लागत वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।

प्रश्न 31.
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की क्या प्रकृति होती है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की प्रकृति (Nature of price line under perfect competition)- पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज (Horizontal) अर्थात् X-अक्ष के समान्तर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत का निर्धारण करता हैं फर्म उस कीमत को स्वीकार करती है। दी हुई कीमत पर एक फर्म एक वस्तु की जितनी भी मात्रा बेचना चाहती है, बेच सकती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा न केवल OX-अक्ष के समान्तर होती है, अपितु औसत आगम तथा सीमान्त आगम वक्र को भी ढकती है। कीमत रेखा को पूर्ण प्रतियोगिता फर्म का माँग वक्र भी कहा जाता है।
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प्रश्न 32.
औसत स्थिर लागत वक्र किस प्रकार का दिखाई देता है ? यह ऐसा क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC) उतनी ही कम होती जाती है जितनी अधिक इकाइयों का उत्पादन किया जाता है। अतः औसत स्थिर लागत वक्र हमेशा बायें से दायें को नीचे की ओर झुकता हुआ होता है परन्तु यह कभी X अक्ष को स्पर्श नहीं करता क्योंकि औसत स्थिर लागत कभी भी शून्य नहीं हो सकती और उत्पादन का स्तर शून्य होने पर स्थिर लागत बनी रहती है।

प्रश्न 33.
एकाधिकारी प्रतियोगिता में सीमान्त आगम तथा औसत आगम में सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगिता में सीमान्त आगम तथा औसत आगम में सम्बन्ध (Relationship between MR and AR under Monopolistic Competition)- एकाधिकारी प्रतियोगिता में फर्म अपनी कीमत कम करके अधिक माल बेच सकती है। अत: माँग वक्र (औसत आगम वक्र) ऊपर से नीचे की ओर ढाल होता है। जब AR वक्र नीचे की ओर होता है तो MR वक्र इसके नीचे होता है। इस बात का स्पष्टीकरण नीचे तालिका तथा रेखाचित्र से किया गया है-
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प्रश्न 34.
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा तथा कुल आगम में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा तथा कुल आगम में सम्बन्ध (Relation between price line and perfect competition under perfect competition)- पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत तथा कुल आगम में महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध है। कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्र कुल आगम के बराबर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म कीमत को स्वीकार करती है। उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत को इसे स्वीकार करना पड़ता है वह दी हुई कीमत पर अपने उत्पाद की जितनी चाहे इकाइयाँ बेच सकती है। अतः कुल आगम कीमत तथा बेची गई इकाइयों का गुणनफल होगा। रेखाचित्र में वस्तु की कीमत OP है। PA कीमत रेखा है। फर्म की विक्रय की मात्रा OQ है। अतः कुल
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आगम OP × OQ होगा। यह OQRP आयत के क्षेत्रफल को प्रदर्शित करता है। अतः हम कह सकते हैं कि पूर्ण प्रतियोगिता में कुल आगम कीमत रेखा के नीचे का क्षेत्रफल के बराबर है।

प्रश्न 35.
पूर्ति के नियम के अपवाद बताइये।
उत्तर:
अपवाद (Exceptions)-

  • कीमत में और परिवर्तन की आशा।
  • कृषि वस्तुओं की स्थिति में-चूँकि कृषि मुख्य रूप से प्रकृति पर निर्भर करती हैं जो अनिश्चित होती है।
  • उन पिछड़े देशों में जिनमें उत्पादन के लिए पर्याप्त साधन नहीं पाये जाते।
  • उच्च स्तर की कलात्मक वस्तुएँ।।

प्रश्न 36.
पूर्ति के नियम की व्यवस्था कीजिए।
उत्तर:
पूर्ति का नियम (Law of supply)- अन्त बातें पूर्ववत् रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने पर उनकी पूर्ति बढ़ जाती है और कीमत घटने पर उसकी पूर्ति घट जाती है। वस्तु की कीमत और वस्तु की पूर्ति में सीधा सम्बन्ध होता है। वस्तु की कीमत बढ़ने पर उत्पादक के लाभ बढ़ने लगते हैं। इसलिए उत्पादक वस्तु की अधिक पूर्ति करते हैं। इसके विपरीत, कीमत कम होने पर लाभ कम होने लगते हैं, जिससे उत्पादक वस्तु की पूर्ति को कम कर देता है।

पूर्ति के नियम को निम्नलिखित सारणी और चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-
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प्रश्न 37.
बाजार पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? इसे कैसे प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर:
बाजार पुर्ति (Market Supply) – बाजार पूर्ति से अभिप्राय विभिन्न कीमतों पर बाजार के सभी विक्रेताओं की एक सामूहिक पूर्ति से है। व्यक्तिगत पूर्ति के जोड़ने से बाजार पूर्ति प्राप्त होती है। मान लो एक बाजार में गेहूँ के तीन विक्रेता (A, B तथा C) हैं। इनकी पूर्ति को जोड़ने से हमें बाजार पूर्ति प्राप्त होगी। बाजार पूर्ति को नीचे तालिका की सहायता से समझाया गया है-
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प्रश्न 38.
क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित कीमत-
(i) संतुलन कीमत से अधिक है, (ii) संतुलन कीमत से कम है ?
उत्तर:
(i) बाजार में प्रचलित कीमत के संतुलन कीमत से अधिक होने पर यह सोचते हुए कि दूसरे स्थानों से यहाँ पर अधिक लाभ कमा सकते हैं, फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। परिणामस्वरूप प्रचलित कीमत पर बाजार में आधिक्य पूर्ति होगी। यह आधिक्य पूर्ति बाजार मूल्य में कमी लाएगी और बाजार कीमत कम होकर संतुलन कीमत के बराबर हो जाएगी।

(ii) इस स्थिति में बहुत सी फर्मे जिन्हें हानि हो रही होगी वे फर्मे इस उद्योग से बाहार निकल आएँगी। परिणामस्वरूप प्रचलित बाजार मूल्य पर आधिक्य माँग की स्थिति उत्पन्न होगी। आधिक्य माँग बाजार मूल्य में वृद्धि लाएगी और बाजार मूल्य संतुलन कीमत कम हो जाएगी।

प्रश्न 39.
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम के श्रेष्ठ चयन की शर्त क्या है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी फर्म में श्रम में श्रेष्ठ चयन की शर्त (Condition for optimal choice of labour in perfectly competitive firm)- श्रम बाजार मे श्रम की माँग फर्मों द्वारा की जाती है। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों के कार्य के घंटों से है न कि श्रमिकों की संख्या से। प्रत्येक फर्म का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना है। फर्म को अधिकतम लाभ तभी प्राप्त होता है जबकि नीचे दी गई शर्त पूरी होती है-
W = MRPL  MRPL = MR × MPL

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार में सीमान्त आगम कीमत के बराबर होता है और कीमत सीमान्त उत्पाद के मूल्य के बराबर होती है। अतः श्रम के आदर्श (श्रेष्ठ) चयन की शर्त मजदूरी दर तथा सीमान्त उत्पाद के मूल्य में समानता है।

प्रश्न 40.
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
निजी आय तथा वैयक्तिक आय में निम्नलिखित अंतर है-
निजी आय:

  1. निजी उद्यमों तथा कर्मियों द्वारा समस्त स्रोत से प्राप्त आय।
  2. यह विस्तृत अवधारणा है।
  3. इसमें निगम कर, अवितरित लाभ इत्यादि शामिल हैं।
  4. निजी आय = NI – सार्वजनिक क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय + समस्त चालू अंतरण

वैयक्तिक आय:

  1. व्यक्तियों तथा परिवारों को प्राप्त होने वाली आय
  2. यह संकुचित अवधारणा है।
  3. इसमें ये सब शामिल नहीं हैं।
  4. वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – अवितरित लाभ

प्रश्न 41.
स्थानापन्न वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
स्थानापन्न वस्तुएँ वे सम्बन्धित वस्तुएँ हैं जो एक-दूसरे के बदले एक ही उद्देश्य के लिए प्रयोग की जा सकती है। उदाहरण के लिए चाय और कॉफी। स्थानापन्न वस्तुओं में से एक वस्तु की माँग तथा दूसरी वस्तु की कीमत में धनात्मक सम्बन्ध होता है। अर्थात् एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग बढ़ती है तथा कीमत कम होने पर माँग कम होती है।

प्रश्न 42.
चालू जमा खाता क्या है ?
उत्तर:
चालू खाते की जमाएँ चालू जमाएँ कहलाती हैं। चालू खाता वह खाता है जिसमें जमा की गई रकम जब चाहे निकाली जा सकती है। चूंकि इस खाते में आवश्यकतानुसार कई बार रुपया निकालने की सुविधा रहती है, इसलिए बैंक इस खाते का धन प्रयोग करने में स्वतंत्र नहीं होता। यही कारण है कि बैंक ऐसे खातों पर ब्याज बिल्कुल नहीं देता। कभी-कभी कुछ शुल्क ग्राहक से वसूल करता है।

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