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 bihar board 9th class history notes | प्रथम विश्वयुद्ध (1914)

bihar board 9th class history notes | प्रथम विश्वयुद्ध (1914)

bihar board 9th class history notes

class – 9

subject – history

lesson 4 – प्रथम विश्वयुद्ध (1914)

प्रथम विश्वयुद्ध (1914)

महत्वपूर्ण तथ्य : विश्व के इतिहास में 1914 का वर्ष एक ऐसे युद्ध के लिए जाना जाता है जिसने विश्व के सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया था । इस युद्ध में इन देशों ने अपने सम्पूर्ण संसाधन इसमें झोक दिए थे । इससे सम्पूर्ण विश्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूपसे प्रभावित हुआ था । इस युद्ध ने कई देशों के राजनैतिक आर्थिक स्थिति एवं सामाजिक ढाँचा ही बदल दिया था ।
इस युद्ध के निम्नलिखित कारण थे :
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा के फलस्वरूप अपने बाजारों के विस्तार के लिए उपनिवेशों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। इस दौड़ में जर्मनी एवं इटली का प्रवेश बहुत बाद हुआ। 1914 ई. तक जर्मनी औद्योगिक क्षेत्र में बहुत प्रगति कर चुका था । जर्मनी को कच्चे माल तथा
फिर तैयार माल के खपत के लिए बाजार अर्थात् नए उपनिवेशों की जरूरत थी । अधिकांश उपनिवेश पुराने साम्राज्यवादी देशों के बीच बँट चुके थे । इसलिए जर्मनी ने पतनशील तुर्की साम्राज्य पर अपना अधिकार करना चाहा । 1905 ई. के रूस-जापान युद्ध में जापान के विजय से जापान की साम्राज्यवादी लालसा परवान चढ़ने लगी थी । दूसरी तरफ अमेरिका भी शक्तिशाली राष्ट्र रूप में उभर चुका था । दूसरी ताकत के उभरने से उसके हितों को खतरा था ।
(ii) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता के विकास के कारण समान जाति, धर्म, भाषा तथा ऐतिहासिक परम्परा के लोग मिलकर एक साथ अलग राष्ट्र का निर्माण चाहने लगे थे । तुर्की साम्राज्य तथा आस्ट्रिया-हंगरी के अधिकांश निवासी स्लाव जाति के निवासी थे । इसलिए उन्होंने सर्वस्लाव आंदोलन शुरू कर दिया । इसी तरह सर्वजर्मन आंदोलन शुरू हुआ जिसका लक्ष्य बाल्कन प्रायद्वीप का विस्तार करना था । इस प्रकार उग्र राष्ट्रवाद ने यूरोपीय देशों के आपसी संबंधों को तनावग्रस्त बना दिया ।
(iii) यूरोपीय देशों ने अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अपना सारा ध्यान सैनिक शक्ति पर केन्द्रित कर रहे थे । फ्रांस, जर्मनी आदि प्रमुख यूरोपीय देश अपनी राष्ट्रीय आय का 85% सैनिक तैयारियों पर व्यय कर रहे थे। 1913-14 ई. में फ्रांस के पास 8 लाख, जर्मनी के पास 7 लाख 60 हजार और रूस के पास लगभग 15 लाख की स्थायी सेना थी। जल सेना के क्षेत्र में शुरू से ही इंग्लैंड का वर्चस्व रहा जिसे कम करने के लिए जर्मनी ने जहाजी बेड़ा बनाना
शुरू कर दिया। 1912 ई० में जर्मनी ने इम्परेटर नामक जहाज बनाया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था।
(iv) उपनिवेश विस्तार की अभिलाषा के लिए शक्तिशाली देश अपने-अपने हितों के अनुसार गुटों का निर्माण करने लगे । परिणामस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप गुटों में बँट गया । सन् 1879 ई० में जर्मनी ने आस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली के साथ मिलकर त्रिगुट संधि का निर्माण किया । यह त्रिगुट जर्मनी
ने फ्रांस के विरुद्ध बनाया था । इस त्रिगुट के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने 1904 ई० में एक त्रिदेशीय सन्धि बनाई । इन दोनों गुटों की उपस्थिति ने युद्ध को अनिवार्य कर दिया था । घटनाक्रम-1904 ई. में आपसी समझौते के फलस्वरूप ब्रिटेन को मिस्र उपनिवेश स्थापित करने की छूट दी तथा फ्रांस को मोरक्को प्राप्त हुआ। 1911 ई० में फ्रांस ने मोरक्को पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया । 1904 ई० में आस्ट्रिया ने तुर्की पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। जर्मनी का चांसलर फ्रांस को पंगु बना दिया । उसने फ्रांस के धनी प्रदेशों पर कब्जा कर रखा था।

युद्ध की शुरुआत-28 जून, 1914 को आर्क ड्यूक फर्डिनेण्ड की बोस्निया की राजधानी साराजोवो में हत्या हो गई । आस्ट्रिया ने इस घटना के लिए सर्बिया को जिम्मेदार ठहराया तथा सर्विया के समक्ष कुछ माँगें रखीं । सर्विया ने उन्हें मानने से इनकार कर दिया । अत: 28 जुलाई,
1914 ई० को आस्ट्रिया ने सर्विया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी । रूस उसका मित्र देश था। अत: वह भी युद्ध में शामिल हो गया । जर्मनी ने 1 अगस्त, 1914 को रूस और 3 अगस्त, 1914 को फ्रांस के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी । फ्रांस पर दबाव डालने के लिए 4 अगस्त
को सेना बेल्जियम में घुस गई । इस तरह यह युद्ध व्यापक रूप से शुरू हो गया ।
युद्ध का अन्त-1914 तक रूस के 6 लाख से अधिक सैनिक मारे जा चुके थे । रूस की अर्थव्यवस्था भी खस्ता हो चुकी थी, बोल्शेविक सत्ता के सरकार में आते ही इसके प्रमुख लेनिनने दूसरे के क्षेत्रों को हथियार तथा हर्जाने के बिना ही शान्ति स्थापित के प्रस्ताव रखे । जर्मनी ने इसे रूस की कमजोरी माना और कुछ मुश्किल शर्ते रूस के सामने रख दी । इसके बावजूद रूस ने इसे स्वीकार कर लिया । मार्च 1918 में रूस-जर्मनी में एक शान्ति सन्धि हुई तथा रूस युद्ध
से अलग हो गया। जर्मनी के यू-नौका नामक पनडुब्बियों ने ब्रिटिश बन्दरगाह की तरफ जाने वाले जहाजों को डुबोना शुरू कर दिया जिसमें लुसीतानिया नामक जहाज था इसमें कुछ अमेरिकी यात्री भी सवार थे । अमेरिका ने 6 अप्रैल, 1914 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। 1 जुलाई
1918 में ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका ने संयुक्त सैनिक अभियान शुरू कर दिया । इससे जर्मनी तथा उसके सहयोगी देशों की हार होने लगी। 3 नवम्बर, 1918 को आस्ट्रिया तथा हंगरी के सम्राट ने आत्मसमर्पण कर दिया । नई जर्मन सरकार ने 11 नवम्बर, 1918 को युद्ध विराम सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिया । इस प्रकार युद्ध समाप्त हो गया ।इसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने एक चौदह सूत्री शांति कार्यक्रम प्रस्तुत किया जो वर्साय की सन्धि के नाम से विख्यात हुआ ।

वर्साय की सन्धि-जनवरी और जून 1919 के बीच विजयी शक्तियों का एक सम्मेलन पेरिस में हुआ। अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लायड जार्ज तथा फ्रांस के प्रधानमंत्री जॉर्ज क्लीयमेंशु ही प्रमुख थे जो शांति संधि की शर्ते तय कर रहे थे तथा पराजित राष्ट्रों
के सिर मढ़ रहे थे । इसके अन्तर्गत कई प्रतिबन्ध लगाए गए। जैसे फ्रांस को अव्सास-लारेन का क्षेत्र वापस दे दिया गया, जर्मनी के सार क्षेत्र की कोयला खदानों 15 वर्षों के लिए फ्रांस को दे दी गई । जर्मनी को अपना कुछ भाग अन्य देशों को भी दे दिया गया जर्मनी की सेना 1 लाख तक सीमित कर दी गई, जर्मनी के सारे उपनिवेश विजयी राष्ट्रों में बाँट लिया । युद्ध में मित्र-राष्ट्रों को जो हानि हुई उसका हर्जाना भी जर्मनी को ही 6 अरब 10 करोर पौंड के रूप में भरना था । आस्ट्रिया-हंगरी को विभाजित कर दिया गया । बाल्टिक राज्य स्वतंत्र घोषित कर दिए गए। तुर्की
को एक छोटे से राज्य के रूप में सीमित कर दिया गया ।
युद्ध और शांति संधियों के परिणाम-पूर्व के युद्धों की अपेक्षा प्रथम विश्वयुद्ध सबसे भयावह था । विभिन्न अनुमानों के अनुसार इससे लगभग 45 करोड़ लोग प्रभावित हुए, मरने वाली संख्या लगभग 90 लाख बतलाई गई है । लाखों लोग अपंग हो गए, हवाई हमलों तथा अकालों,महामारियों से भारी संख्या में असैनिक लोग मारे गए । राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई । प्रथम विश्वयुद्ध तथा इसके बाद की शांति संधियों के फलस्वरूप कई राजतंत्र नष्ट हो गए।
लोकतंत्र व्यवस्था का उदय हुआ एवं नई साम्यवादी सरकार से विश्व जनमत रू-ब-रू हुआ। रूस, जर्मनी तथा आस्ट्रिया-हंगरी के शासक वंश समाप्त हो गए । आस्ट्रिया एवं हंगरी दो अलग-अलग राज्य बन गए । चेकोस्लोवाकिया तथा युगोस्लोवाकिया स्वतंत्र देशों के रूप में उभरे । यूरोप का वर्चस्व समाप्त हो गया तथा संयुक्त राज्य अमेरिका. विश्व शक्ति बनकर उभरा । कुछ ही समय
के बाद सोवियत-रूस भी विश्व शक्ति के रूप में उभरा ।
इस युद्ध से यूरोप की श्रेष्ठता का दावा भी धूमिल हो गया क्योंकि वह हमेशा इस बात को प्रचारित करता रहता था कि यूरोप तथा यूरोपीय लोग श्रेष्ठ हैं।

(द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि)
सभी राष्ट्र भविष्य में प्रथम विश्वयुद्ध की भयावता से बचना चाहते थे। इसके लिए अन्तर्राष्ट्रीय संगठन भी बनाया गया लेकिन वर्साय तथा पेरिस की संधियों ने अगले विश्वयुद्ध की
पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी। इन संधियों के द्वारा जिस तरह से पराजित राष्ट्रों पर निर्णय थोपे गए थे तथा उनका अपमान किया गया था, यह निश्चित था कि पराजित तथा अपमानित राष्ट्र अपने अपमान का बदला जरूर लेंगे। युद्ध को रोकने के लिए राष्ट्रसंघ नामक संस्था की स्थापना की
गई थी लेकिन वह युद्ध रोकने में असफल रहा।

(द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945)
शांति समझौतों से असंतुष्ट राज्यों ने 1936 के अंत तक इस व्यवस्था के अंतर्गत अपने कर्तव्यों से अपने को मुक्त कर लिया था। वे अपने अपमान तथा क्षति-पूर्ति का दावा कर रहे थे। ब्रिटीश सरकार ने नि:शस्त्रीकरण का उदाहरण पेश करने के लिए दावा करने का इरादा छोड़कर प्रतिरक्षा के नाम पर सशस्त्रीकरण में जुट गई। युद्ध को रोकने के लिए गठित राष्ट्रसंघ भी इन सभी घटनाओं पर मौन बना रहा।
अतः पेरिस संधि से लेकर 1939 तक की घटनाओं के फलस्वरूप द्वितीय विश्वयुद्ध भी निश्चित हो गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेदार कुछ प्रमुख कारण निम्न हैं-
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण वर्साय की संधि में हो चुका था। शांति सम्मेलन के सिद्धांतों को विजयी राष्ट्र गुप्त संधियों के माध्यम से झुठलाते रहते थे जिसका भंडाफोड़ सोवियत रूस ने किया। विजयी राष्ट्रों की हकीकत जानकर पराजित राष्ट्र गुस्से से भर गए।
(ii) राष्ट्रसंघ के विधान पर हस्ताक्षर कर सभी राज्यों ने वादा किया था कि वे सामूहिक रूप से सबकी प्रादेशिक स्वतंत्रता की रक्षा तथा सम्मान करेंगे लेकिन व्यवहार में यह बिल्कुल विपरीत था। रूस को सदस्य नहीं बनाया गया था, अमेरिका ने सदस्य बनने से इंकार कर दिया। हिटलर चेक राज्यों को हड़पता रहा । चीन, जापान की साम्राज्यवादी नीतियों का शिकार होता रहा। धोखेबाजी की नीति से आक्रामक नीतियों को प्रोत्साहन मिला। मुसोलिनी को सफलता प्राप्त करता देख हिटलर ने भी आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया तथा पोलैंड पर चढ़ाई कर दी तथा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया।
(iii) गुटबंदी और सैनिक संधिया भी द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए जिम्मेवार थीं। परिणामस्वरूप यूरोप दो गुटों में बँट गया था। इटली, जापान और जर्मनी एक ही सिद्धांत फासिज्म का अनुसरण करते थे। ये सभी वर्साय की संधि से क्षुब्ध थे तथा इसे तोड़ना चाहते थे। इसके विपरीत फ्रांस,
चेकोस्लोवाकिया तथा पोलैंड हर हाल में वर्साय की संधि को कायम रखना चाहते थे क्योंकि उन्हें इससे लाभ मिलता था। इस तरह गुटबंदी से पूरा माहौल विषाक्त तथा अविश्वासभरा हो गया था।
(iv) गुटबंदी तथा संशय के माहौल में प्रत्येक राष्ट्र अपने-आप को असुरक्षित महसूस कर रहा था इसलिए सभी देशों की रक्षा बजट बढ़ता जा रही थी। ब्रिटिश सरकार के वित्त मंत्री चेम्बरलिन ने 1937 में घोषणा की कि प्रतिरक्षा व्यय की पूर्ति अब केवल कर लगाकर नहीं की
जाएगी बल्कि इसके लिए चालीस करोड़ पौंड का ऋण लेने तथा पाँच वर्ष की अवधि में इसका बजट बढ़ा कर डेढ़ अरब पौंड करने का निर्णय लिया गया था। नौ सेना तथा वायु सेना पर जोर दिया जाने लगा, नये-नये हथियारों से प्रत्येक राष्ट्र अपनी सेना को सुसज्जित कर रहा था।
(v) राष्ट्रसंघ की असफलता भी कुछ हद तक इसके लिए उत्तरदायी थी। छोटे राज्यों की समस्या को तो राष्ट्रसंघ ने आसानी से सुलझा लिया। लेकिन समर्थ तथा शक्तिशाली राष्ट्रों के सहयोग न मिलने के कारण वह बड़े राष्ट्रों के मसलों को सुलझा न सका।
(vi) प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929-30 के काल में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी आ गई थी। 1929 के शरद काल में अमेरिका से यूरोप को ऋण मिलना बंद हो गया था। सारे विश्व में क्रय शक्ति का हास हो गया। कीमतों में व्यापक और अनिष्टकारी गिरावट आ गई थी।
(vii) प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी में हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार बनी तथा इटली में मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवादी सरकार बनी। ये दोनों सिद्धांत राष्ट्र के गौरव तथा शक्ति पर बल देते थे। अतः अपने राष्ट्र के प्रसार के लिए इन लोगों ने दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुरू
कर दिय। जापान, जर्मनी और इटली अपने साम्राज्य का विस्तार कर अपने-आपको आर्थिक रूप से सुदृढ़ बनाना चाहते थे। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् जापान को प्रादेशिक लाभ हुआ था जिसके कारण उसका साम्राज्यवाद विस्तार आवश्यक हो गया। इस प्रकार जर्मनी, इटली तथा जापान की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा द्वितीय विश्वयुद्ध का कारण बनी।

युद्ध का आरंभ-
1 सितम्बर, 1939 को जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया तथा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ हो गया। ब्रिटेन तथा फ्रांस ने दो दिन के बाद 3 सितम्बर, 1939 को जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। रूस अपनी सुरक्षा के लिए वाल्टिक के तीन प्रदेशों एस्टोनिया,
लैटविया और लिथुआनिया पर अपना प्रभाव जमाना चाहता था। अत: तीनों विदेश मंत्रियों तथा सोवियत संघ के बीच एक संधि हुई तथा रूस को इन राज्यों में अपनी सेना रखने की अनुमति मिल गई। 12 मार्च, 1940 को फिनलैंड ने भी रूस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तथा रूस
को वे सारी सुविधाएँ प्राप्त हो गईं जिन्हें वह अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक समझता था। 9 अप्रैल, 1940 को जर्मनी में नार्वे तथा डेनमार्क और जून 1940 तक बेल्जियम तथा फ्रांस पर कब्जा जमा लिया। 22 जून, 1941 को जर्मनी ने रूस पर आक्रमण कर दिया। अगस्त, 1942 को जर्मन सेना स्टालिनवाद तक पहुँच गई। यह युद्ध करीब 5 महीनों तक चला। इसके उपरांत रूसी सेनाओं ने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर जर्मनी के विरुद्ध प्रबल आक्रमण शुरू कर दिए। फरवरी, 1943
ई. के हजारों जर्मन अफसर तथा सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
जापान ने 7 दिसम्बर, 1941 को हवाई द्वीप स्थित पर्ल हार्बर के अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर जबरदस्त हमला किया जिसके जवाब में अमेरिका ने 8 दिसम्बर, 1941 को जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 7 मई, 1945 को जर्मनी सेना के आत्मसमर्पण के बाद मित्र राष्ट्रों ने
जुलाई, 1945 को जापान पर भीषण आक्रमण कर दिया। 6 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने युद्ध के दौरान अत्यधिक विकसित हथियार एटम बम हिरोशिमा नामक शहर पर गिराया तथा 9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर एटम बम गिराया। अत: जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हो गया।

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध में लगभग 5 करोड़ से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिए गए। इसमें लगभग 2.2 करोड़ सैनिक 2.8 करोड़ नागरिक शामिल थे। लगभग 1.2 करोड़ लोग यंत्रणा शिविरों में मारे गए। जापान पर की गई बमबारी से हुई क्षति का आकलन संभव नहीं था। मानवीय क्षति से अलग बड़े पैमाने पर भौतिक तथा आर्थिक संसाधनों का क्षय हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध की अनुमानित लागत लगभग 13 खरब 84 अरब 90 करोड़ डालर थी।
(ii) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया महाद्वीप में यूरोपीय राष्ट्रों की प्रभुता समाप्त हो गई। कहा जाता था कि इंग्लैंड के राज्य में कभी सूरज नहीं डूबता था लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वह डुबने लगा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, श्रीलंका, बर्मा, मलाया, हिंदेशिया तथा बर्मा आदि
राष्ट्रों ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
(iii) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी शक्ति नहीं रह गय। इंग्लैंड के उपनिवेश मुक्त हो गए। उसकी शक्ति तथा संसाधन सीमित हो गए। दूसरी तरफ अमेरिका तथा रूस अपनी असीम आर्थिक संसाधनों के कारण शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरे।
(iv) द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण कर विश्व शांति को स्थापित रखने की चेष्टा की गई जो आज भी कायम है।
(v) द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व साम्यवादी तथा पूँजीवादी खेमों में बँट गया। साम्यवादी खेमे का नेतृत्व रूस कर रहा था तथा पूँजीवादी खेमे का नेतृत्व अमेरिका कर रहा था। तीसरे खेमे के रूप में नवोदित स्वतंत्र तथा विकासशील राष्ट्र थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
1. प्रथम विश्वयुद्ध कब आरंभ हुआ?
(क) 1941 ई.
(ख) 1952 ई.
(ग) 1950 ई.
(घ) 1914 ई.
उत्तर-(घ)
2.प्रथम विश्वयुद्ध में किसकी हार हुई?
(क) अमेरिका की
(ख) जर्मनी की
(घ) इंग्लैंड की
(ग) रूस की
उत्तर-(ख)
3. 1917 ई० में कौन देश प्रथम विश्वयुद्ध से अलग हो गया ?
(क) रूस
(ख) इंग्लैंड
(घ) जर्मनी
(ग) अमेरिका
उत्तर-(क)
4. वर्साय की संधि के फलस्वरूप इनमें किस महादेश का मानचित्र बदल गया ?
(क) यूरोप का
(ख) ऑस्ट्रेलिया का
(घ) रूस का
(ग) अमेरिका का
उत्तर-(क)
5. त्रिगुट समझौते में शामिल थे-
(क) फ्रांस, ब्रिटेन और जापान (ख) फ्रांस, जर्मनी और आस्ट्रिया
(ग) जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली (घ) इंग्लैंड, अमेरिका और रूस
उत्तर-(ग)
6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब आरंभ हुआ ?
(क) 1939 ई० में (ख) 1941 ई. (ग) 1936 ई० (घ) 1938 ई० उत्तर-(क)

7. जर्मनी को पराजित करने का श्रेय किस देश को है ?
(क) फ्रांस को (ख) रूस को (ग) चीन को (घ) इंग्लैंड को उत्तर-(क)
8. द्वितीय विश्वयुद्ध में कौन-सा देश पराजित हुआ ?
(क) चीन
(ख) जापान
(ग) जर्मनी
(घ) इटली
उत्तर-(ख)
9. द्वितीय विश्वयुद्ध में पहला एटम बम कहाँ गिराया गया था ?
(क) हिरोशिमा पर
(ख) नागासाकी पर
(ग) पेरिस पर
(घ) रूस पर
उत्तर-(क)
10. द्वितीय विश्वयुद्ध का कब अन्त हुआ ?
(क) 1939 ई० को
(ख) 1941 ई० को
(ग) 1945 ई. को
(घ) 1938 ई० को
उत्तर-(ग)

उपयुक्त शब्दों द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :
(i) द्वितीय विश्वयुद्ध के फलस्वरूप…… साम्राज्यों का पतन हुआ।
उत्तर-राजतंत्री
(ii) जर्मनी का……….. पर आक्रमण द्वितीय विश्वयुद्ध का तत्कालीन कारण था।
उत्तर-पोलैंड
(iii) धुरी राष्ट्रों में……ने सबसे पहले आत्मसमर्पण किया।
उत्तर-इटली
(iv) ……….की संधि की शर्ते द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-वर्साय
(v) अमेरिका ने दूसरा एटम बम जापान के………….. बन्दरगाह पर गिराया था।
उत्तर-नागासाकी
(vi)…………की संधि में ही द्वितीय विश्वयुद्ध के बीज निहित थे।
उत्तर-वर्साय
(vii) प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ……… एक विश्वशक्ति बनकर उभरा।
उत्तर-अमेरिका
(viii) प्रथम विश्वयुद्ध के बाद मित्रराष्ट्रों ने जर्मनी के साथ ……….संधि की।
उत्तर-वर्साय
(ix) राष्ट्रसंघ की स्थापना का श्रेय अमेरिका के राष्ट्रपति…….को दिया गया।
उत्तर-वुडरो विल्सन
(x) राष्ट्रसंघ की स्थापना…..ई०में कई गयी।
उत्तर-1919

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के उत्तरदायी किन्हीं चार कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-प्रथम विश्वयुद्ध के उत्तरदायी के चार कारण निम्नलिखित हैं-
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा
(ii) उग्र राष्ट्रवाद
(iii) सैन्यवाद
(iv) गुटों का निर्माण
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्ध-औद्योगिक क्रांति के बाद बाजारों के विस्तार के लिए उपनिवेशों का निर्माण शुरू होने लगा। साम्राज्यवादी आधिपत्य को चुनौती दिए बिना उपनिवेशों का, निर्माण करना संभव नहीं था। उपनिवेशों के निर्माण में जर्मनी और इटली सबसे पीछे थे। पर चूँकि
जर्मनी औद्योगिक क्षेत्र में काफी प्रगति कर चुका था। इसलिए जर्मनी को उद्योगों के लिए कच्चे माल और तैयार माल को बेचने के लिए बाजार की आवश्यकता थी। लेकिन एशिया और अफ्रीका के अधिकांश भाग पर साम्राज्यवादी देश के कब्जा होने के कारण वहाँ उपनिवेशों की स्थापना नहीं हो पाया। तब जर्मन साम्राज्यवादियों ने तुर्की की अर्थव्यवस्था पर अपना नियंत्रण करना चाहता था।
इससे जर्मनी ने तुर्की के सुल्तान से बर्लिन से बगदाद तक रेलवे लाइन बिछाने की योजना पर स्वीकृति चाही। जर्मनी की इस योजना का फ्रांस तथा रूस ने विरोध किया। फिर 1905 के रूस जापान युद्ध में जापान की विजय से वहाँ की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा और बढ़ने लगी। उन्नीसवीं
शताब्दी के अंत तक में अमेरिका भी एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में सामने आ चुका था तथा व्यापार की स्वतंत्रता बनाए रखना चाह रहा था, और दूसरी ताकत के उभरने से उसके हितों को खतरा था।
(ii) उग्र राष्ट्रवाद-19वीं शताब्दी के अंतिम चरणों में यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का संचार हो चुका था। वहाँ समान जाति, धर्म, भाषा और ऐतिहासिक परम्परा के लोग एक साथ मिलकर एक अलग देश का निर्माण चाहते थे। तुर्की साम्राज्य तथा ऑस्ट्रिया हंगरी के अधिकांश स्लाव जाति
के थे। उनलोगों ने सर्वस्लाव आन्दोलन की शुरूआत की जिसका सिद्धान्त था कि यूरोप के सभी स्लाव जाति एक राष्ट्र हैं। इसी तरह सर्वजर्मन आन्दोलन शुरू हुआ जिसका लक्ष्य बाल्कन प्रायद्वीप में जर्मन साम्राज्य का विस्तार था। इसी प्रकार, उग्र राष्ट्रवाद ने यूरोप के देशों के बीच आपसी संबंध को बिगाड़ दिया।
(iii) सैन्यवाद-यूरोपीय देश अपनी सैनिक शक्ति को मजबूत करने में लगे थे। फ्रांस, जर्मनी इत्यादि प्रमुख यूरोपीय देश अपनी देश के राष्ट्रीय आय का 85% सैनिक तैयारियों पर खर्च कर रहे थे। 1913-14 ई० में फ्रांस के पास लगभग 8 लाख, जर्मनी में 7 लाख 60 हजार और
रूस में 15 लाख की स्थायी सेना थी। जल सेना के क्षेत्र में इंग्लैंड का आधिपत्य था। जर्मनी ने भी जहाजी बेड़ा बनाना शुरू कर दिया था। 1912 ई. में जर्मनी ने इम्परेटर नामक जहाज बनाया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज था। इस प्रकार इंग्लैंड के बाद जर्मनी दूसरा शक्तिशाली राष्ट्र
बन गया।
(iv) गुटों का निर्माण-शक्तिशाली देश अपने-अपने हितों के लिए गुटों का निर्माण करने लगा था। एक समान स्वार्थ को केन्द्र में रखकर राष्ट्र रणनीति तय करने लगे थे। जिसका परिणाम यह हुआ कि सारा यूरोप गुटों में बँट गया। यूरोप में गुटबंदी को जन्म देने वाला जर्मनी के चांसलर
बिस्मार्क को माना जाता है। गुटबन्दी से यूरोप धीरे-धीरे सैनिक शिविर का रूप लेने लगा। बिस्मार्क ने सन् 1879 में आस्ट्रिया के साथ द्वैध संधि की। 1882 ई. में एक त्रिगुट (ट्रिपल एलायंस) बना जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली शामिल हुए। यह त्रिगुट बिस्मार्क ने फ्रांस के विरुद्ध
बनायी थी। इस त्रिगुट के विरोध में फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने 1907 ई. एक त्रिदेशीय संधि बनाई।
प्रश्न 2. त्रिगुट तथा त्रिदेशीय संधि में कौन-कौन से देश शामिल थे ? इन गुटों की स्थापना का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-त्रिगुट संधि में शामिल देश-जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली। उद्देश्य-फ्रांस के विरुद्ध अपने हितों की रक्षा करना। त्रिदेशीय संधि में शामिल देश-फ्रांस, रूस और ब्रिटेन।उद्देश्य-जर्मनी के विरुद्ध अपने हितों की रक्षा करना।
प्रश्न 3. प्रथम विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर-28 जून, 1914 को आर्क ड्यूक फर्डिनेण्ड की बोस्निया की राजधानी साराजेवो में हत्या हो गई। ऑस्ट्रिया ने इस घटना के लिए सर्निको जिम्मेदार ठहराया और सर्निया के सामने कुछ माँगें रखीं। सर्विया ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अत: 28 जुलाई, 1914 को आस्ट्रियाने सर्बिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी और सर्बिया की सहायता रूस ने की। ऑस्ट्रिया की सहायता के लिए जर्मनी आगे आया। जर्मनी ने 1 अगस्त 1914 को रूस और 3 अगस्त को फ्रांस के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। जर्मन सेनाएँ फ्रांस पर दबाव डालने के लिए 4 अगस्त को बेल्जियम में घुस गई। उसी दिन ब्रिटेन ने भी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। जापान
ने भी जर्मनी के उपनिवेश हथियाने के लिए उसके विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और इस तरह यह युद्ध व्यापक रूप धारण करने लगा। इस प्रकार आर्क ड्यूक फर्डिनेण्ड की हत्या युद्ध का तात्कालिक कारण बना।
प्रश्न 4. सर्वस्लाव आन्दोलन का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-सर्वस्लाव आन्दोलन की शुरुआत तुर्की साम्राज्य तथा ऑस्ट्रिया, हंगरी में निवास करने वाले स्लाव जाति के लोगों के द्वारा की गयी थी। इस आन्दोलन का सिद्धांत था कि यूरोप के सभी स्लाव जाति के लोग एक राष्ट्र हैं।
प्रश्न 5. उग्र राष्ट्रीयता प्रथम विश्वयुद्ध का किस प्रकार एक कारण था ?
उत्तर-19वीं शताब्दी के अंतिम चरण तक यूरोप के देशों में राष्ट्रीयता का संचार होने लगा। वहाँ समान जाति, धर्म, भाषा और ऐतिहासिक परम्परा के लोग एक साथ मिलकर अलग देश का निर्माण चाहते थे। तुर्की तथा ऑस्ट्रिया हंगरी के अधिकांश स्लाव जाति के थे। उनलोंगों ने सर्वस्लाव
आन्दोलन की शुरुआत की जो इस सिद्धान्त पर आधारित था कि यूरोप के सभी स्लाव जाति के लोग एक राष्ट्र हैं। इसी तरह सर्वजर्मन आन्दोलन शुरू हुआ जिसका लक्ष्य बाल्कन प्रायद्वीप में जर्मन साम्राज्य का विस्तार था। इस प्रकार उग्र राष्ट्रवाद ने यूरोप के देशों के आपसी संबंध में तनाव पैदा किया।
प्रश्न 6. “द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी।” कैसे ?
उत्तर-“द्वितीय विश्वयुद्ध प्रथम विश्वयुद्ध की ही परिणति थी।” क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तो प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के साथ ही तैयार हो चुकी थी।
जिस तरह से पराजित राष्ट्रों पर निर्णय थोपे गए थे तथा उनका अपमान किया गया था उससे द्वितीय विश्वयुद्ध का होना तो तय था। प्रथम विश्वयुद्ध साम्राज्यवाद को समाप्त नहीं कर सका बल्कि उसके वेग को और प्रचंड कर गया।
प्रश्न 7. द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए हिटलर कहाँ तक उत्तरदायी था ?
उत्तर-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में नाजीवाद तथा फासीवाद नामक दो सिद्धांतों का उदय हुआ। हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार जर्मनी में बनी। ये सिद्धांत राष्ट्र के गौरव पर बल देते थे। जर्मनी ने हिटलर के नेतृत्व में दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया। हिटलर ने
राष्ट्रीय गौरव के लिए साम्राज्यवादी हिस्सा को ही आधार बनाया। जर्मनी अपने उपनिवेशों को आध पर बनाकर अपने राष्ट्र को गौरवान्वित करना चाहते थे। जर्मनी हिटलर के नेतृत्व में जापान तथा इटली के साथ मिलकर बर्मा इत्यादि को जीतता हुआ आगे बढ़ने लगा। अतः हिटलर की
महत्वाकांक्षा द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए काफी हद तक उत्तरदायी थी।
प्रश्न 8. द्वितीय विश्वयुद्ध के किन्हीं पाँच परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के पाँच परिणाम निम्नलिखित हैं-
(i) धन-जन की हानि।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता और उपनिवेशों का अंत
(ii) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना
(iv) विश्व का गुटों में बँट जाना
(v) इंग्लैंड की शक्ति का ह्रास और रूस तथा अमेरिका की शक्ति में वृद्धि।
(i) धन-जन की हानि-इस युद्ध में धन-जन की बहुत-हानि हुई। यह इतिहास का सबसे विनाशकारी युद्ध था। इस युद्ध में साठ (60) लाख यहूदियों को जर्मनी ने मौत के घाट उतार दिया था। लाखों लोगों की हत्या यंत्रणा शिविर में कर दी गयी। इस युद्ध में 5 करोड़ से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिए गए थे। इसमें लगभग 2.2 करोड़ सैनिक और 2.8 करोड़ से अधिकनागरिक शामिल थे। 1.2 करोड़ लोग फासिवादियों के आतंक के कारण मारे गए। पोलैंड में 60
लाख लोग, जो वहाँ की कुल जनसंख्या का लगभग 20% थी, मारे गए।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता और उपनिवेशों का अंत-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोपीय राष्ट्रों की प्रभुता लगभग समाप्त हो गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, श्रीलंका, बर्मा, मलाया, हिंदेशिया आदि देश स्वतंत्र हो गए।
(iii) संयुक्त राष्ट्र की स्थापना-द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के पश्चात विश्व में शांति कायम रखने की चेष्टा की गई। इसके लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई जो आज भी विश्व में शान्ति स्थापना के लिए प्रयासरत है।
(iv) विश्व का दो गुटों में बँटना-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो गुटों में बँट गया। पहला गुट पूँजीवादी तथा दूसरा गुट साम्यवादी कहलाया। पूँजीवादी रवैये का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका तथा साम्यवादी रवैये का नेतृत्व सोवियत रूस कर रहा था। तीसरे गुट के रूप में नवोदित स्वतंत्र राष्ट्र एवं विकासशील राष्ट्र सामने आए।
(v) इंग्लैंड की शक्ति में ह्रास तथा रूस एवं अमेरिका की शक्ति में वृद्धि-युद्ध के बाद इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी ताकत नहीं रह गया। इंग्लैंड के उपनिवेश मुक्त हो गए। इंग्लैंड की शक्ति तथा साधन सीमित हो गए। दूसरी तरफ अमेरिका तथा रूस अपनी असीम आर्थिक संसाधनों की वजह से विश्व में शक्तिशाली राष्ट्र बन कर उभरे।
प्रश्न 9. तुष्टिकरण की नीति क्या है ?
उत्तर-तुष्टिकरण की नीति इंग्लैंड द्वारा विकसित की गई थी। पश्चिमी पूँजीवादी देश रूस को घृणा तथा नफरत की दृष्टि से देखता था। वे चाहते थे कि किसी भी तरह हिटलर रूस पर आक्रमण कर दे जिससे दोनों कमजोर हो जाएँ और तब वे हस्तक्षेप कर के दोनों शक्तियों को बर्बाद कर दे। इसलिए शुरुआत में पश्चिम के राष्ट्र हिटलर की माँगों को स्वीकार करते रहे और जब इन राष्ट्रों ने देखा कि हिटलर की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ती जा रही हैं तो इनकार करना शुरू कर दिया। तुष्टीकरण की दिशा में अंतिम कदम म्युनिख समझौता था, जब 1938 ई. में म्युनिख में हिटलर
और मुसोलिनी मिले तथा वहाँ इंग्लैंड तथा फ्रांस ने उन्हें सुडेटनलैंड पर अधिकार की मान्यता दे दी। इसके बाद हिटलर ने डेजिंग बन्दरगाह और पोलिश गलियारे की माँग पोलैंड से की जिसे पोलैंड ने अस्वीकार कर दिया। अतः जर्मनी ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया।
प्रश्न 10. राष्ट्रसंघ क्यों असफल रहा?
उत्तर-राष्ट्रसंघ छोटे-छोटे राज्यों के मामलों को आसानी से सुलझा देता था लेकिन समर्थ तथा शक्तिशाली के सहयोग न मिल पाने की वजह से वह बड़े तथा महत्वपूर्ण मसलों को सुलझा पाने में असफल रहा।




(दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-प्रथम विश्वयुद्ध के कारण-
(i) साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा-औद्योगिक क्रांति के बाद से बाजारों के विस्तार के लिए उपनिवेशों की छीना-झपटी शुरू हो गई थी। इस दौड़ में जर्मनी तथा इटली का प्रवेश बहुत बाद में हुआ, इस कारण उन्हें कम ही उपनिवेश मिले। 1914 ई. तक जर्मनी औद्योगिक क्षेत्र में काफी
प्रगति कर चुका था। इसलिए उसे बाजार की आवश्यकता थी। इसलिए जर्मनी ने पतनशील तुर्की साम्राज्य पर अधिकार करना चाहा। इधर 1905 ई. के रूस-जापान युद्ध में जापान की विजय ने उसकी महत्वाकांक्षा को काफी बढ़ा दिया था। उन्नीसवीं सदी के अंत तक अमेरिका भी एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में स्थापित हो चुका था तथा दूसरी ताकतों के उभरने से उसे खतरा था।
(ii) उग्र राष्ट्रवाद-19वीं शताब्दी के अंत तक यूरोप में राष्ट्रीयता के प्रभाव की वजह से समान जाति, धर्म, भाषा तथा ऐतिहासिक परम्परा के लोग एक साथ मिलकर अलग देश का निर्माण करना चाहते थे। उदाहरण के लिए तुर्कीया तथा ऑस्ट्रिया-हंगरी के अधिकांश निवासी स्लाव जाति के थे। अतः उनलोगों ने सर्वस्लाव आंदोलन की शुरुआत की जिसका अर्थ था कियूरोप के सभी स्लाव जाति के लोग एक राष्ट्र हैं। इसी प्रकार सर्वजर्मन आंदोलन की शुरुआत हुई जिसका मकसद था बाल्कन प्रायद्वीप में जर्मन साम्राज्य का विस्तार करना। इस प्रकार राष्ट्रवाद ने यूरोपीय राष्ट्रों के आपसी संबंध कटु बना दिया।
(iii) सैन्यवाद-यूरोपीय देश सुरक्षा के नाम पर अपना सारा ध्यान सैनिक शक्ति बढ़ाने पर केन्द्रित कर रहे थे। कहते हैं 1913-14 ई. में फ्रांस के पास लगभग 8 लाख, जर्मनी के पास 7 लाख 60 हजार तथा रूस के पास 15 लाख की स्थायी सेना थी। जल सेना में शुरू से ही इंगलैंड का प्रभाव अधिक था। अत: उसके प्रभाव को कम करने के लिए जर्मनी ने 1912 ई. में इम्परेटर नामक जहाजी बेड़ा बनाया जो उस समय का सबसे प्रमुख जहाजी बेड़ा था। इस प्रकार जर्मनी, इंग्लैंड के बाद दूसरा शक्तिशाली राष्ट्र बन गया।
(iv) गुटों का निर्माण-साम्राज्यवादी राष्ट्र अपने-अपने एक समान स्वार्थ को ध्यान में रखकर गुटों का निर्माण करने लगे। यूरोप में गुटबन्दी का जन्मदाता जर्मनी के चांसलर बिस्मार्क को माना जाता है। 1882 ई. में जर्मनी, इटली तथा ऑस्ट्रिया-हंगरी ने आपस में मिलकर एक त्रिगुट
का निर्माण किया। इस त्रिगुट के विरोध में फ्रांस, ब्रिटेन तथा रूस ने 1907 ई. में एक त्रिदेशीय संधि बनाई। यह सामान्य हितों तथा समझदारी पर आधारित एक ढीला-ढाला गठजोड़ था जिसकी उपस्थिति ने युद्ध की संभावना को प्रबल कर दिया था।
प्रश्न 2. प्रथम विश्वयुद्ध के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर-विश्वयुद्धों से पूर्व के युद्धों की अपेक्षा प्रथम विश्वयुद्ध अधिक भयावह था। लगभग 45 करोड़ लोग इस युद्ध से प्रभावित हुए थे। लड़ाई में मरनेवालों की संख्या 90 लाख थी। लाखों लोग अपंग हो गए। हवाई हमलों, बमबारी तथा महामारियों से भारी संख्या में असैनिक लोग मारे गए। विभिन्न देशों की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई। अनेक सामाजिक समस्याएँ शुरू हो गयीं। प्रथम विश्वयुद्ध और इसके बाद हुए शांति संधियों से राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन हुए। कई राजतंत्र नष्ट हो गए। कई देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था का उदय हुआ एवं
नई साम्यवादी सरकार से विश्व जनमत परिचित हुआ। रूस के रोमानोव, जर्मनी का होहेनजोर्लन तथा ऑस्ट्रिया हंगरी का हेब्सबर्ग शासक वंश समाप्त हो गए। ऑस्ट्रिया हंगरी दो अलग-अलग राज्य बन गए। यूरोप का वर्चस्व समाप्त हुआ तथा विश्व जनमत में अमेरिका महाशक्ति बनकर उभरा। कुछ ही समय बाद सोवियत रूस की विश्व शक्ति के रूप में उभरा। रूस जापान का 1905 का युद्ध तथा इसमें रूस की पराजय से यूरोपियों का यह भ्रम भी टूट गया कि यूरोपीय लोग श्रेष्ठ हैं। इसके साथ ही एशिया तथा अफ्रीकी देशों में स्वाधीनता आंदोलन तीव्र हो गए।
प्रश्न 3. क्या वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी ?
उत्तर-हाँ, वर्साय की संधि एक आरोपित संधि थी। इस संधि के निर्णय विजयी राष्ट्रों के द्वारा निर्धारित थे तथा हारे हुए राष्ट्रों पर थोपे गए थे। जनवरी तथा जून 1919 के बीच विजयी राष्ट्रों का एक सम्मेलन पेरिस के उपनगर वर्साय
में और फिर पेरिस में हुआ। हालांकि इस सम्मेलन में 27 देश भाग ले रहे थे लेकिन तीन देश ब्रिटेन, फ्रांस तथा अमेरिका ही निर्णायक भूमिका निभा रहे थे। अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लायड जॉर्ज तथा फ्रांस के प्रधानमंत्री जार्ज क्लीमेंशु ही शांति संधियों की शर्तों को तय करने में प्रमुख थे। मुख्य संधि जर्मनी के साथ 28 जून, 1919 को हुई। इसे वर्साय की संधि कहते हैं-
इसके अंतर्गत-
(i) जर्मनी को युद्ध के लिए जिम्मेवार बताया गया। फ्रांस को अल्सास-लारेन का क्षेत्र वापस दे दिया गया।
(ii) जर्मनी की सार क्षेत्र की कोयला खदानों को 15 वर्ष के लिए फ्रांस को दे दिया गया
तथा इसका प्रशासन राष्ट्रसंघ के अधीन कर दिया गया।
(iii) जर्मनी को अपने युद्ध पूर्व का कुछ क्षेत्र डेनमार्क, बेल्जियम, पोलैंड तथा चेकोस्लाविया
(iv) राइन नदी की घाटी को सेनारहित रखने का फैसला किया गया।
(v) संधि के तहत जर्मनी की सेना 1 लाख तक सीमित कर दिया गया।
(vi) जर्मनी से वायुसेना तथा पनडुब्बियाँ रखने का अधिकार छीन लिया गया।
(vii) जर्मनी के सारे उपनिवेश विजयी राष्ट्रों ने आपस में बाँट लिए। टोगा और कैमरून को ब्रिटेन तथा फ्रांस ने आपस में बाँट लिया। दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका तथा पूर्वी अफ्रीका में स्थित जर्मन उपनिवेश ब्रिटेन, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका तथा पुर्तगाल ने आपस में बाँट लिए। प्रशांत क्षेत्र में स्थित उपनिवेश तथा चीन में उसके सारे अधिकार क्षेत्र जापान को दे दिए गए।
(viii) युद्ध में मित्र राष्ट्रों को जो हानि हुई थी उसके लिए जर्मनी से हर्जाने के तौर पर 6 अरब 10 करोड़ पौंड की भारी भरकम रकम निश्चित की गई।
अत: वर्साय की संधि के द्वारा पराजित राष्ट्रों का अपमान किया गया था।
प्रश्न 4. बिस्मार्क की व्यवस्था ने प्रथम विश्वयुद्ध का मार्ग किस तरह प्रशस्त किया ?
उत्तर-जर्मनी के चांसलर बिस्मार्क को गुटबंदी का जन्मदाता माना जाता है। साम्राज्यवादी देश अपने-अपने हितों के अनुरूप गुटों का निर्माण करने लगे थे। अतः सम्पूर्ण
यूरोप गुटों में बँट गया था। यूरोप में गुटबंदी का जन्मदाता बिस्मार्क को माना जाता है। उसने सन् 1879 में ऑस्ट्रिया के साथ द्वैध संधि की। 1882 ई. में एक त्रिगुट बना जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी तथा इटली शामिल हुए। इस त्रिगुट का मुख्य उद्देश्य फ्रांस के विरुद्ध कार्य करना था लेकिन इसमें इटली की विश्वसनीयता संदिग्ध थी क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य ऑस्ट्रिया-हंगरी से कुछ इलाकों को छीनना तथा फ्रांस की सहायता से त्रिपोली को जीतना था। इस त्रिगुट के विरोध में फ्रांस, रूस तथा ब्रिटेन ने 1907 ई. में एक त्रिदेशीय संधि की जो सामान्य हितों तथा समझदारी
पर आधारित था।
अतः बिस्मार्क की पहल के फलस्वरूप पूरा यूरोप गुटों में विभक्त हो चुका था। इन गुटों की उपस्थिति ने युद्ध को अनिवार्य कर दिया था।
प्रश्न 5. द्वितीय विश्वयुद्ध के क्या कारण थे ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण-
पेरिस के शांति समझौते से असंतुष्ट राज्यों ने 1936 के अंत तक अपने-आप को कर्तव्यों से मुक्त कर लिया था और अब वे हर्जाने की मांग कर रहे थे तथा हर्जाना न देने पर युद्ध अनिवार्य था। ब्रिटिश सरकार भी निःशस्त्रीकरण के सिद्धांत को छोड़कर प्रतिरक्षा के नाम पर सशस्त्रीकरण
में जुट गई थी। राष्ट्रसंघ भी इन तमाम घटनाओं का मौन तथा मूक साक्षी बना रहा। और अंततः 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(i) वर्साय की संधि की विसंगतियाँ-द्वितीय विश्वयुद्ध का बीजारोपण वर्साय की संधि के द्वारा हो चुका था। वर्साय की संधि के नियम तथा सिद्धांत केवल पराजित राष्ट्रों के लिए थे
तथा विजयी राष्ट्र गुप्त संधियों के द्वारा इसे झुठलाते रहते थे। इस गुप्त संधि का भंडाफोड़ रूस ने किया था जिससे पराजित राष्ट्र गुस्से से भर गए।
(ii) वचन विमुखता-राष्ट्रसंघ के विधान पर हस्ताक्षर कर सभी सदस्य राज्यों ने वादा किया था कि वे सामूहिक रूप से सबको प्रादेशिक अखंडता तथा स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे। लेकिन वास्तविक तौर पर हुआ इसके विपरीत। चीन, जापान की साम्राज्यवादी नीति का शिकार बना, इटली, अबीसीनिया को रौंदता रहा। फ्रांस, चेकोस्लाविया के विनाश में सहायक हुआ, हिटलर चेक राज्यों को हड़पता रहा तथा ब्रिटेन एवं फ्रांस देखते रहे। जापान ने चीन पर आक्रमण कर मंचूरिया पर अधिकार कर लिया। अबीसीनिया मुसोलिनी की आक्रामक नीति का शिकार बना। मुसोलिनी की सफलता से हिटलर भी उत्साहित हो गया तथा उसने आस्ट्रिया तथा चेकोस्लोवाकिया
पर धावा बोल दिया। उसने पोलैंड पर भी चढ़ाई कर दी तथा इसके साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो गया।
(iii) गृहयुद्ध-शांति बनाए रखने के नाम पर यूरोप में अनेक संधियाँ हुईं जिससे यूरोप पुनः दो गुटों में बँट गया। एक गुट का नेता जर्मनी बना तथा दूसरे गुट का नेता फ्रांस था। यह गुटबाजी सैद्धान्तिक समानता तथा हितों पर आधारित था। इटली, जापान तथा जर्मनी एक समान सिद्धांत यानि फासिज्म में विश्वास करते थे। उनकी नीति समान रूप से प्रसादवादी थी। ये राष्ट्र वर्साय की संधि से क्षुब्ध थे तथा हर हाल में छुटकारा चाहते थे। इसके विपरीत फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया तथापोलैंड हर हाल में उन्हें कायम रखना चाहते थे क्योंकि इनसे उन्हें लाभ था। इंग्लैंड तथा रूस शुरू में इनमें शामिल नहीं था लेकिन परिस्थितिवश उन्हें भी इस गुटबन्दी में शामिल होना पड़ा। इस प्रकार गुटबंदी की वजह से पूरा माहौल विषाक्तपूर्ण हो चुका था।
(iv) हथियारबंदी-गुटबंदी के माहौल में प्रत्येक राष्ट्र अपने-आप को असुरक्षित महसूस कर रहा था। ब्रिटेन जो निशस्त्रीकरण का उदाहरण पेश करना चाहता था उसके वित्तमंत्री चेम्बरलिन 1937 में घोषणा की कि रक्षा व्यय की पूर्ति केवल कर लगाकर ही नहीं बल्कि इसके लिए चालीस करोड़ पौंड का ऋण लेने का फैसला किया। प्रत्येक देश का रक्षा बजट बढ़ रहा था और नए-नए हथियारों से प्रत्येक राष्ट्र अपनी सेना को सुसज्जित कर रहा था। इस सैनिक तैयारी ने असुरक्षा की भावना का संचार कर दिया।
(v) राष्ट्रसंघ की असफलता-राष्ट्रसंघ छोटे-छोटे राज्यों के मसलों को तो आसानी से सुलझा लेता था लेकिन समर्थ तथा शक्तिशाली राष्ट्रों के सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से बड़े राष्ट्रों के मामले वह नहीं सुलझा पाता था। हर निर्णायक कार्रवाई के समय बड़े राष्ट्र अपने हित में अंधे होकर हाथ खड़े कर दिया करते थे।
अतः राष्ट्रसंघ की असफलता भी इस युद्ध का महत्त्वपूर्ण कारण थी।
(vi) विश्वव्यापी आर्थिक मंदी-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929-30 के काल में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का दौर आया जो 1931 में अपने चरम सीमा पर था। 1929 के शरद काल में अमेरिका से यूरोप को ऋण मिलना बंद हो जाने की वजह से सारे विश्व में क्रय-शक्ति का ह्रास होने लगा, कीमतों में व्यापक तथा अनिष्टकारी गिरावट हुई। बेकारी के आँकड़े दिन-दूने, रात-चौगुने बढ़ गए।
(vii) नवीन विचारधाराओं का उदय-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद नए सिद्धांतों के आधार पर हिटलर के नेतृत्व में नाजी सरकार बनी और मुसोलिनी के नेतृत्व में इटली में फासी सरकार बनी। ये दोनों सिद्धांत राष्ट्र के गौरव तथा शक्ति में विश्वास रखते थे। अतः इन दोनों ने दूसरे राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया जिससे विश्वयुद्ध की परिस्थितियाँ शुरू हो गईं।
प्रश्न 6. द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर-द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम-
(i) धन-जन की हानि-इस युद्ध में जन तथा धन की व्यापक हानि हुई। लगभग 60 लाख यहूदियों को जर्मनी ने मौत के घाट उतार दिया। लाखों लोगों की हत्या यंत्रणा शिविरों में कर दी गई। द्वितीय विश्वयुद्ध में 5 करोड़ से अधिक लोग मौत के घाट उतार दिए गए। इसमें लगभग 2.2 करोड़ सैनिक, 2.8 करोड़ असैनिक लोग थे। मानवीय क्षति से अलग बड़े पैमाने पर भौतिक संसाधनों का क्षय हुआ। अनुमान के अनुसार 13 खरब 84 अरब 90 करोड़ डालर का नुकसान हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध की तबाही के दौरान नए-नए भयानक हथियारों का विकास तथा उपयोग हुआ जिनमें सबसे भयानक था परमाणु बम।
(ii) यूरोपीय श्रेष्ठता तथा उपनिवेशों का अंत-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यूरोप की श्रेष्ठता तथा प्रभुता समाप्त हो गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत, श्रीलंका, बर्मा, मलाया, हिंदेशिया इत्यादि ने स्वतंत्रता पाई। यूरोपीय श्रेष्ठता का भी अंत हो गया।
(iii) इंग्लैंड की शक्ति का ह्रास और रूस तथा अमेरिका की शक्ति में वृद्धि-युद्ध के बाद इंग्लैंड विश्व की सबसे बड़ी शक्ति नहीं रह गया। इंग्लैंड के कई उपनिवेश मुक्त गए,
इंग्लैंड की शक्ति तथा संसाधन सीमित हो गए। दूसरी ओर अमेरिका तथा रूस अपनी असीम आर्थिक संसाधनों की वजह से शक्तिशाली देश के रूप में उभरे।
(iv) संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना-द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरांत संयुक्त राष्ट्रसंघ का निर्माण कर विश्व शांति को कायम रखने की चेष्टा की गई। जो आज भी विश्व को
नियंत्रित-निदेशित कर रहें हैं।
(v) विश्व में गुटों का निर्माण-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो खेमों में बँट
गया-साम्यवादी तथा पूँजीवादी। साम्यवादी देशों का नेतृत्व सोवियत रूस कर रहा था तथा पूँजीवादी देशों का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। एक गुटनिरपेक्ष राज्यों के संघ के रूप में तीसरा खेमा सामने आया जिसमें नवोदित राष्ट्र और विकासशील राष्ट्र थे |

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