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 Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : एक बदलाव

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 9 भारतीय राजनीति : एक बदलाव

Bihar Board Class 12 Political Science भारतीय राजनीति : एक बदलाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उन्नी मुन्नी ने अखबार की कुछ कतरनों को बिखेर दिया। आप इन्हें कालक्रम के अनुसार व्यवस्थित करें।

  1. मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा
  2. जनता दल का गठन
  3. बाबरी मस्जिद का विध्वंस
  4. इंदिरा गांधी की हत्या
  5. राजग सरकार का गठन
  6. गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम
  7. संप्रग का गठन

उत्तर:

  1. इंदिरा की हत्या – 1984
  2. जनता दल का गठन – 1989
  3. मंडल आयोग की सिफारिश और आरक्षण विरोधी हंगामा – 1990
  4. बाबरी मस्जिद का विधवंश – 1992
  5. राजग सरकार का गठन – 1999
  6. गोधरा की दुर्घटना और उसके परिणाम – 2002
  7. सप्रंग का गठन – 2004

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में मेल करें



उत्तर:
(क) – (4)
(ख) – (2)
(ग) – (1)
(घ) – (3)

प्रश्न 3.
1989 के बाद की अवधि में भारतीय राजनीतिक के मुख्य मुद्दे क्या रहे? इन मुद्दों से राजनीतिक दलों के आपसी जुड़ाव के क्या रूप सामने आए हैं?
उत्तर:
1989 के चुनाव में भ्रष्टाचार का मुद्दा मुख्य था जिसके आधार पर नव गठित जनता दल की सरकार बनी जिसमें श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमन्त्री बने। जनता दल व इसके सहयोगी दलों ने राष्ट्रीय मोर्चा बनाया परन्तु राष्ट्रीय मोर्चा को भी पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ अतः राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार को दो विरोधी विचारधारा रखने वाली पार्टियों भारतीय जनता पार्टी व वामपंथी दलों ने बाहर से समर्थन दिया। यह व्यवस्था अधिक समय तक सुचारू रूप से ना चल सकी व जल्द ही इसमें मतभेद उभर कर सामने आने लगे।

विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार द्वारा मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए शिक्षण संस्थाओं व रोजगार में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने से भारतीय राजनीति में एक बड़ा तूफान सा आया जिसने आरक्षण की राजनीतिक के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों में राजनीतिक जागरूकता का विकास कर राजनीतक सत्ता में एक नए संघर्ष को जन्म दे दिया। पिछड़े वर्ग की जो राजनीति दक्षिण में चल रही थी वह अब उत्तर भारत में भी प्रारम्भ हो गई जिसके आधार पर कई राज्यों कई क्षेत्रीय दलों का गठन किया गया। इस प्रकार से 1989 के बाद भारतीय राजनीति में आरक्षण व अन्य पिछड़ा वर्ग का राजनीतिकरण एक प्रमुख मुद्दा उभर कर सामने आया।

आरक्षण के अलावा जो दूसरा मुद्दा भारतीय राजनीति में उभर कर आया वह था बाबरी मस्जिद विवाद जिसको 6 दिसम्बर 1992 में लाखों की संख्या में पहुँचे हिन्दू कट्टर पंथियों ने ध्वस्त कर दिया था व इसके बाद उत्तर प्रदेश की सरकार को केन्द्र ने बर्खास्त कर दिया। परन्तु इस घटना में साम्प्रदायिक हिंसा व तनाव रहा। इस पूरे घटना चक्र से धार्मिक ध्रुवीकरण हुआ जिसका परिणाम 2002 में गोधरा कांड व गुजरात में मुसलमानों की नियोजित तरीके से की गई हत्याएँ। इस पूरे घटना चक्र ने हिन्दू ध्रुवीकरण किया जिसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को 1996 के चुनाव में मिला। तीसरा महत्त्वपूर्ण परिवर्तन भारतीय राजनीति में हुआ कि राष्ट्रीय दलों का घटता हुआ प्रभाव जिसने गठबन्धन की राजनीति को जन्म दिया।

प्रश्न 4.
“गठबन्धन की राजनीति के इस नए दौर में राजनीतिक दल विचारधारा को आधार मानकर गठजोड़ नहीं करते” इस कथन के पक्ष में आप कौन-से तर्क देंगे।
उत्तर:
वैसे तो 1977 में जनता पार्टी की सरकार भी एक गठबन्धन की ही सरकार थी क्योंकि इसमें कई राजनीतिक दलों के विलय होकर जाता पार्टी का गठन किया था परन्तु 1989 में गठबन्धन की राजनीति का युग अधिक स्पष्ट रूप से सामने आया है जो आज तक भी जारी है। जनता पार्टी में घटकदलों ने विलय के बाद अपना अस्तित्व समाप्त कर दिया था परन्तु 1989 के बाद गठबन्धनों की सरकार में प्रायः एक राष्ट्रीय दल व अन्य क्षेत्रीय दल शामिल है जिसमें कोई भी दल अपने अस्तित्व को समाप्त नहीं करता। जनता पार्टी की सरकार केवल 1979 तक ही चली जबकि 1996 के बाद अब गठबन्धन सरकारें लगातार चल रही हैं।

गठबन्धन के इस नए दौर में विशेष बात यह है कि हलाँकि राजनीतिक दल गठबन्धन सरकार बनाने के लिए अपना अस्तित्व तो समाप्त नहीं करते परन्तु अपनी विचारधाराओं को या तो नई परिस्थितियों के अनुसार समायोजित कर लेते है। जिन पर सभी दलों, घटकों की सहमति होती है जिसे न्यूनतम साझा कार्यक्रम कहते हैं। एन.डी.ए. की सरकार चलाने के लिए भारतीय जनता पार्टी (जो सबसे बड़ा घटक था) ने अपनी विचारात्मक मसलों जैसे कश्मीर का अनुच्छेद 370, बाबरी मस्जिद मसला व यूनिफार्म सिविल कोड़ को न्यूनतम साझा कार्यक्रम से अलग रखकर सभी दलों की अन्य विषयों पर सहमति व सहयोग प्राप्त किया। इस कारण एन.डी.ए. की सरकार पूरे पाँच वर्ष चली।

इसी प्रकार से 2004 में यू.पी.ए. का गठन किया गया जिसमें कांग्रेस सबसे बड़ा राष्ट्रीय दल है व अन्य दल सभी क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं। यू.पी.ए. को बाहर से वामपंथियों का समर्थन है। इस गठबन्धन में अलग-अलग विचारों के राजनीतिक दल है जैसे ऐसे अनेक विषय हैं जिस पर कांग्रेस व वामपंथी दल गम्भीर मतभेद रखते हैं व जो सामने भी आए हैं। जैसे उदारीकरण की नीति पर निजीकरण की प्रक्रिया पर व हाल ही में नाभकीय समझौते को लेकर। परन्तु सभी दलों में न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति है जिसके आधार पर गठबन्धन सरकार 2014 तक चली।

प्रश्न 5.
आपातकाल के बाद के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास क्रम का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारतीय जनता पार्टी वास्तव में जनवरी 1980 में अस्तित्व में आयी। इससे पहले यह भारतीय जनसंघ के नाम से जानी जाती थी। आपातकाल में जनसंघ के भी प्रमुख नेता व कार्यकर्ता जेल में बंद थे। जनता पार्टी के गठन की प्रक्रिया में जनसंघ ने भी सक्रिय व महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जय प्रकाश नारायण के परामर्श व आशीर्वाद से तत्कालीन प्रमुख विरोधी दलों ने अपने-अपने दलों का एक-दूसरे में विलय कर जनता पार्टी का गठन किया। भारतीय जनसंघ जो कि एक हिन्दुवादी पार्टी मानी जाती थी, अपनी विचारधारा में उदारवादी दृष्टिकोण का समायोजन करते हुए, सोसालिस्ट, कांग्रेस (ओल्ड) व भारतीय लोकदल जैसी पार्टियों के साथ विलय करना स्वीकार कर जनता पार्टी का गठन किया।

1977 में जनता पार्टी ने आपातकाल के बाद चुनाव में हिस्सा लिया व भारी सफलता प्राप्त की। प्रधानमन्त्री के पद पर कांग्रेस (ओल्ड) के नेता श्री मुरारजी भाई देसाई, को नियुक्त किया गया। जनता पार्टी में सरकार बनने के बाद ही मतभेद व विवाद उत्पन्न होंगे। जनसंघ के आर. एस. एस. के साथ सम्बन्धों को लेकर विवाद उत्पन्न हो गए। उधर चौधरी चरण सिंह व बाबू जगजीवन राम को भी दबाव की राजनीति के चलते उप-प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करना पड़ा।

इस प्रकार जनता पार्टी आए दिन नए-नए विवादों में घिरती रही व अन्त में 1979 में जनता पार्टी टूट गयी। जनवरी 1980 को जनसंघ को दोबारा जीवित ना करते हुए भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया। इस बार की भारतीय जनता पार्टी पुरानी जनसंघ से भिन्न थी। इस बार भारतीय जनता पार्टी का आधार व्यापक किया गया। यह जनसंघ की अपनी हिन्दुवादी, पूँजीपतियों की पार्टी व शहर से सम्बन्ध रखने वाली पार्टी की छवि को दूर कर सभी वर्गों के समर्थन को प्राप्त करना चाहती थी। भारतीय जनता पार्टी ने अपना ग्रामीण क्षेत्र में भी अपना जनाधार बनाया व किसानों के हितों को भी अपने कार्यक्रमों में शामिल किया भारतीय जनता पार्टी ने गाँधीवाद समाजवाद को अपना एजेन्डा बनाया। यहाँ तक कि अल्पसंख्यकों का भी भरोसा जीतने का निर्णय लिया गया। इस प्रकार आपातकाल के बाद भारतीय जनता पार्टी एक व्यापक विचारधारा वाली पार्टी बनी।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर समाप्त हो गया है। इसके बावजूद देश की राजनीति पर कांग्रेस का असर लगातार कायम है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
1952 के चुनाव से कांग्रेस का प्रभुत्व लगातार कायम रहा है। 1967 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस को झटका लगा जब 1967 के चुनाव में कांग्रेस 9 राज्यों में सरकार नहीं बना सकी व केन्द्र में भी साधारण बहुमत से ही सरकार बना पायी राजनीतिक क्षेत्र में यह माना जाता है कि 1967 में कांग्रेस का प्रभुत्व समाप्त हो गया। यह सच है कि 1947 से लेकर 1967 तक कांग्रेस का प्रभुत्व कायम था क्योंकि कांग्रेस के पास राष्ट्रीय आन्दोलन के समय का पंडित जवाहर लाल नेहरू व सरदार पटेल जैसा करिश्माई नेतृत्व था व राष्ट्रीय आन्दोलन को लड़ने व स्वतन्त्रता प्राप्त करने की गौरवमई विरासत भी थी।

1967 के चुनाव से 1971 तक कांग्रेस बड़े संघर्ष से गुजरी क्योंकि इस बीच कांग्रेस आन्तरिक मन्थन से चल रही थी। 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ। कांग्रेस ने श्रीमति इन्दिरा गाँधी के नेतृत्व में कई क्रान्तिकारी कार्यक्रम प्रारम्भ किए। 1971 में चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस ने गरीबी हटाओ जैसे नारे लगाए। 1971 में संयुक्त विरोधी दलों के बावजूद कांग्रेस को भारी सफलता मिली। 1971 से लेकर 1975 तक विभिन्न राज्यों विशेषकर बिहार व गुजरात में कांग्रेस विरोधी आन्दोलन चले जो इतने अधिक हो गए कि 25 जून 1975 को आपातकाल स्थिति की घोषणा करनी पड़ी। 1975 से लेकर 1977 तक आपातकाल की स्थिति रही। 1977 के चुनाव में कांग्रेस को आपातकाल का गुस्सा झेलना पड़ा व कांग्रेस को फिर सफलता मिली। 1984 में श्रीमति इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद 1984 के चुनावों में कांग्रेस को फिर सफलता मिली 1989 के चुनाव में फिर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। 1989 से लेकर 1996 तक फिर कांग्रेस सबसे बड़ी विरोधी दल रही। परन्तु पुनः 2004 से यू.पी.ए. सरकार का नेतृत्व कांग्रेस ही कर रही है।

प्रश्न 7.
अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतन्त्र के लिए दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले बीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं।
उत्तर:
भारत एक संघीय समाज है जिसमें अनेक जाति, धर्म, भाषा, बोली, संस्कृति व भौगोलिकताओं के लोग रहते हैं अत: लोगों के विभिन्न प्रकार के सामाजिक, आर्थिक, व्यवसायिक व क्षेत्रीय हित हैं जिनको विकसित करने के लिए व इनकी रक्षा करने के लिए इनके अर्थात् नागरिकों के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। अपनी बात को कहने, विचारों को व्यक्त करने, संघ व समुदाय बनाने का भी अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं। इसी आधार पर भारत में बहुदलीय प्रणाली है।

बहुदलीय प्रणाली होते हुए भी भारत में कांग्रेस का प्रभुत्व एक लम्बे समय तक रहा है। एक लम्बे समय तक बहुत सारी विरोधी पार्टियाँ होते हुए भी भारत में मजबूत विरोधी दल का अभाव रहा है। भारत में बहुदलीय प्रणाली के कारण वैचारिक कम है बल्कि सामाजिक धार्मिक वे क्षेत्रीय अधिक है। 1984 के बाद भारत में भारतीय दलीय व्यवस्था एक नए दौर से गुजर रही है। क्षेत्रीय दलों की सरकारें सफलता पूर्वक कार्य कर रही है। 1984 से लेकर 2004 तक विभिन्न राजनीतक दल विरोधी दलों व शासक दलों के रूप में कार्य कर रहे हैं। यह बहुदलीय प्रणाली की सबसे बड़ी उपयोगिता है कि शासक दल पर कई और से दबाव बना रहता है व सरकार गिरने की स्थिति में विरोधी दल सरकार बनाने के लिए तैयार रहते हैं।

1989 के बाद भारत के गठबंधन सरकारों का दौर चल रहा है जिसमें बहुदलीय प्रणाली का अपना अलग प्रभाव है। क्षेत्रीय दल गठबन्धन सरकारों में प्रान्तीय स्तर व केन्द्रीय स्तर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। क्षेत्रीय दल ना केवल अपने राज्यों के हितों की रक्षा कर रहे हैं व अपने क्षेत्र के लोगों का विकास कर रहे हैं बल्कि राष्ट्रीय हितों व क्षेत्रीय हितों में एक सामंजस्य पैदा करने में सहायक होते हैं। बहुदलीय प्रणाली भारत की विभिन्नता में एकता की युक्ति को चरितार्थ करती है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।
उत्तर:
“भारत की दलगत राजनीति ने कई चुनौतियों का सामना किया है। कांग्रेस प्रणाली ने अपना खात्मा ही नहीं किया बल्कि कांग्रेस के जमावड़े के बिखर जाने से आत्म-प्रतिनिधित्व की कई नई प्रवृत्ति का जोर बढ़ा। इससे दलगत व्यवस्था और विभिन्न हितों की कमाई करने की इसकी क्षमता पर भी सवाल उठे। राज व्यवस्था के सामने एक महत्वपूर्ण काम एक ऐसी दलगत व्यवस्था खड़ी करने अथवा राजनीतिक दलों को गढ़ने की है जो कारगर तरीके से विभिन्न हितों को मुखर और एकजुट करें।”

(क) इस तथ्य को पढ़ने के बाद क्या आप दलगत व्यवस्था की चुनौतियों की सुचि बना सकते हैं?
(ख) विभिन्न हितों का समाहार और उनमें एक जुटता का होना जरूरी है।
(ग) इस अध्याय में आपने अयोध्या विवाद के बारे में पढ़ा। इस विवाद ने भारत के राजनीतिक दलों की समाहार की क्षमता के आगे क्या चुनौती पेश की?
उत्तर:
(क) भारतीय दलीय प्रणाली की निम्न चुनौतियाँ हैं –

  • आन्तरिक प्रजातन्त्र का अभाव
  • व्यक्ति पूजा
  • अनुशासनहीनता
  • अवसरवादिता
  • गुटबाजी
  • राष्ट्रीय दलों का घटता प्रभाव
  • क्षेत्रीय दलों का बढ़ता प्रभाव
  • जाति के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन
  • धर्म के आधार पर राजनीतिक दलों का गठन
  • गठबन्धन की राजनीति
  • सिद्धान्त हीन समझौते
  • धन की बढ़ती भूमिका
  • हिंसा की बढ़ती भूमिका
  • संस्थाओं की गरिमा में गिरावट
  • दल-बदल की प्रवृति

(ख) बहुल समाज में लोगों के विभिन्न आधारों पर भिन्न-भिन्न हित होते हैं, जिनका पूरा होना लोगों के विकास के लिए व प्रजातन्त्र की सफलता के लिए अति आवश्यक है। प्रजातन्त्रीय विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता है कि शक्तियों का विकेन्द्रीकरण इस प्रकार से हो कि लोगों की क्षेत्रीय आवश्यकताएं पूरी हो उनकी सांस्कृतिक मान्यताएँ व आकांक्षाएँ विकसित हो। बहुल समाज में लोगों के दो प्रकार के हित होते हैं एक क्षेत्रीय हित दूसरे राष्ट्रीय हित अत: राष्ट्रीय एकता अखंडता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों के क्षेत्रीय, निजी हितों व राष्ट्रीय हितों में सामंजस्य हो व समायोजन हो।

(ग) अयोध्या में बाबरी मस्जिद बनाम राम मन्दिर विवाद ने भारतीय राजनीति को अत्यधिक प्रभावित किया है व भारतीय दलीय प्रणाली के सामने अनेक प्रश्न खड़े कर उन्हें अग्नि परीक्षा देने के लिए मजबूर किया। बाबरी मस्जिद व राम मन्दिर निर्माण का विवाद एक ऐसा विवाद है जिसको ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर राष्ट्रीय भावना के आधार पर सुलझाना चाहिए परन्तु इस विषय का हमेशा रोजनीतिकरण व साम्प्रदायिकरण किया गया। इस विवाद पर कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं रहा जिसने इस विवाद पर व्यापक सोच के आधार पर अपनी प्रतिक्रिया दी हो। सभी राजनीतिक दलों ने इस विवाद से राजनीतिक लाभ ही निकालने का प्रयास किया है।

सर्वप्रथम श्री राजीव गाँधी ने 1986 में बाबरी मस्जिद के विवादित जगह के आहते का ताला खुलवा कर हिन्दुओं को पूजा पाठ करने की स्वीकृति दी जिसका उद्देश्य हिन्दुओं की वोटों को सुरक्षित करना था। मुस्लिम लीग व अन्य मुस्लिम संगठनों ने भी इस विषय को केवल धार्मिक/साम्प्रदायिक सोच के आधार पर ही देखा। भारतीय जनता पार्टी जो पहले हिन्दुवादी जनसंघ थी, ने इस विवाद का सबसे अधिक राजनीतिक लाभ उठाया व साम्प्रदायिकरण किया। 1992 में विवादित ढाँचा ध्वंस करने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनीतिक आधार पर इस प्रकार से बढ़ाया है कि लोकसभा ने इसके सदस्यों की संख्या में वृद्धि हुई है। 1999 से 2004 में एन.डी.ए. सरकार भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में ही चली।

Bihar Board Class 12 Political Science भारतीय राजनीति : एक बदलाव Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1989 के बाद के भारतीय राजनीति की प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1989 के चुनाव के बाद में घटनाचक्र बहुत तेजी से चला जिससे राजनीतिक माहौल में व्यापक परिवर्तन हुए। इस बीच में जो प्रमुख घटनाएं घटी वे निम्न थी –

  1. इस समय की महत्त्वपूर्ण घटना थी 1989 के चुनाव परिणाम जिसमें कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा। 1984 के चुनाव में लोकसभा की 415 सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी को 1989 के चुनाव में केवल 197 सीटें ही प्राप्त हुई।
  2. गठबन्धन की राजनीति का आरम्भ वे केन्द्र में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका।
  3. मंडल व कमंडल की राजनीति जिसने भारतीय राजनीति को जातिकरण व साम्प्रदायिकरण को बढ़ाया। आरक्षण की राजनीति का आरम्भ व 1991 में नई आर्थिक नीति व आर्थिक सुधार प्रारम्भ।

प्रश्न 2.
गठबन्धन की राजनीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1989 के चुनाव के बाद एक दल की सरकार का केन्द्र में लगभग अन्त हो गया। 1989 के चुनाव में किसी भी एक दल को बहुमत नहीं मिला। इस स्थिति में एक ऐसी सरकार बनी जिसमें राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी जिसको बाहर से वामपंथी दलों व भाजपा का समर्थन रहा। इस प्रकार से कई राजनीतिक दलों की मिली-जुली सरकारों को गठबन्धन की सरकार कहते। हैं भारत में 1989 के चुनाव के बाद यह स्थिति जारी है। गठबन्धन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय मोर्चा का गठन समझाइए।
उत्तर:
1989 के चुनाव में जनता दल चुनाव से पहले हुए लोकदल, जनमोर्चा, कांग्रेस (एस) व जनता पार्टी के विलय का परिणाम था। जनता दल ने फिर कई अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया। इन क्षेत्रीय दलों में थे तमिलनाडू की डी.एम.के. पार्टी, आन्ध प्रदेश की टी.डी.पी. आदि राष्ट्रीय मोर्चा ने 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में वामपंथी दलों व भाजपा के बाहरी समर्थन से सरकार बनायी।

प्रश्न 4.
1989 के चुनाव में मुख्य मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
1984 के चुनाव में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। कांग्रेस को इस चुनाव में 415 सीटें प्राप्त हुई। परन्तु धीरे-धीरे सरकार का ग्राफ गिरता गया। कई प्रकार के स्केन्डल सामने आए। राजीव गाँधी की सरकार में रहे वित्त मंत्री व रक्षा मंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने विभिन्न रक्षा सौदों में हुई किमबैक यानि रिश्वत की चर्चाओं के सन्दर्भ में ना केवल अपने पद से त्याग पत्र दे दिया बल्कि कांग्रेस से त्याग पत्र देकर नया दल जन मोर्चा बना लिया जो बाद में अन्य प्रमुख विरोधी दलों के साथ विलय होकर जनता दल का गठन किया। 1989 के चुनाव के परिणामों ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा प्रदान की। 1989 के चुनाव में प्रमुख मुद्दा भ्रष्टाचार था। श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जो पहले ही एक ईमानदार छवि वाले व्यक्ति थे मिस्टर क्लीन बन कर उभरे कांग्रेस को इस चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा।

प्रश्न 5.
मंडल आयोग का विषय क्या था?
उत्तर:
1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी तो जनता पार्टी में रहे गृहमंत्री श्री चरण सिंह ने पिछड़े वर्ग के लोगों की पहचान करने व उनके लिए आरक्षण की सीमा तय करने के लिए वी.पी. मंडल की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसको मंडल आयोग के नाम जाना जाता है। मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट जनता पार्टी के टूटने के बाद इंदिरा गांधी सरकार के समय में पेश की व जिसको रख दिया गया। 1989 में समय पड़ने पर इस रिपोर्ट को जनता दल की सरकार ने लागू कर दिया। इस रिपोर्ट के लागू करने से पूरे देश में हिंसा का महौल हो गया व अंत में राजनीतिक दलों का विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के खिलाफ इस प्रकार से ध्रुवीकरण हुआ कि जनता दल सरकार को गद्दी छोड़नी पड़ी।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय मोर्चा व संयुक्त मोर्ग के गठन में अन्तर समझाइए।
उत्तर:
1977 के बाद 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में पहली गैर कांग्रेस सरकार बनी जिसमें प्रमुख रूप से जनता दल व कुछ क्षेत्रीय दल शामिल थे। इनको बाहर से बी.जे.पी. व वामपंथियों का समर्थन प्राप्त था। जबकि यूनाइटेड फ्रंट की सरकार 1996 में बनी जिसमें प्रमुख रूप से क्षेत्रीय दल थे व बाहर से कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था।

प्रश्न 7.
1989 में कांग्रेस के प्रभाव में कमी के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर:
1984 के चुनाव में कांग्रेस को 415 सीटें प्राप्त हुई जबकि 1989 के चुनावों में केवल 197 सीटें प्राप्त हुई। इस मिरावट के निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. करिश्माई व अनुभवी नेता का अभाव
  2. कांग्रेस में गुटबाजी
  3. विश्वनाथ प्रताप सिंह का करिश्माई नेतृत्व व ईमानदारी की छवि
  4. गैर कांग्रेसी दलों का संगठित होना
  5. कांग्रेस शासन में भ्रष्टाचार का मुद्दा
  6. क्षेत्रीय दलों का बढ़ता हुआ प्रभाव।

प्रश्न 8.
1991 में मध्यावधी चुनाव के क्या कारण थे?
उत्तर:
1989 के चुनावों के बाद जनता दल अर्थात् राष्ट्रीय मोर्चा भी सरकार एक संगठित राजनीतिक समूह के रूप में कार्य नहीं कर सकी ब 1991 में सरकार गिर गई जिससे 1991 में मध्यावधि चुनाव आवश्यक हो गए। इस घटनाक्रम के निम्न कारण थे –

  1. मंडल आयोग की सिफारिशों का लागू करना
  2. पूरे देश में आरक्षण का विरोध व आरक्षण की राजनीति
  3. बाबरी मस्जिद व राम मन्दिर निर्माण विवाद
  4. साम्प्रदायिक वातावरण
  5. राष्ट्रीय मोर्चा के घटकों में आपसी खींच-तान
  6. भारतीय जनता पार्टी द्वारा राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार से समर्थन लेना।

प्रश्न 9.
1989 के बाद भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका के कारण समझाइए।
उत्तर:
1989 के बाद भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका केन्द्र स्तर पर व प्रान्त स्तर पर भी बढ़ी है। इसके निम्न कारण प्रमुख हैं –

  1. बढ़ता हुआ क्षेत्रवाद
  2. राष्ट्रीय दलों के प्रभाव में कमी
  3. राष्ट्रीय स्तर पर करिश्माई नेतृत्व का अभाव
  4. राज्यों में नए नेतृत्व का विकास
  5. क्षेत्रीय भेदभाव
  6. संविधान के प्रावधानों का दुरुपयोग

प्रश्न 10.
एन.डी.ए. के गठन को समझाइए।
उत्तर:
1991 से 1996 तक कांग्रेस ने नरसिम्हा राव के नेतृत्व में अल्पमत सरकार चलायी। 1996 के चुनावों में कांग्रेस का प्रभाव घटा व भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आयी व अल्पमत सरकार बनायी जो मात्र 13 दिन चली। भारतीय जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद यूनाइटेड फ्रंट ने काँग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई जो 1999 तक चली। इस बीच दो प्रधानमंत्री रहे। पहले श्री एच.डी. देवगोडा व बाद में इन्द्र कुमार गुजराल। 1999 में एन.डी.ए. का गठन किया गया। जिसमें भारतीय जनता पार्टी के साथ अन्य 22 क्षेत्रीय दल व छोटी पार्टियाँ थी। 1999 में एन.डी.ए. की सरकार बनी जो 2004 तक चली। 2004 के चुनाव में यू.पी.ए. ने सरकार बनायी।

प्रश्न 11.
पिछड़े वर्ग की राजनीतिक सत्ता में बढ़ती हुई भागीदारी को समझाइए।
उत्तर:
भारत का पिछड़ा वर्ग परम्परागत रूप से कांग्रेस पार्टी का समर्थन रहा है परन्तु मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 27% आरक्षण लागू होने के बाद पिछड़ा वर्ग राजनीतिक रूप से जागरूक हो गया व आरक्षण की राजनीति ने अन्य पिछड़ा वर्ग को चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण बना दिया। मंडल आयोग ने सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान कर विभिन्न जातियों को पिछड़ा वर्ग के रूप में अंकित किया। पिछड़ा वर्ग की राजनीति इतनी अधिक तेज हुई कि जातियों में पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की होड़ लग गई। इस प्रकार से राजनीतिक सत्ता में पिछड़ा वर्ग के लोगों की भागीदारी बढ़ गयी। इनके हितों को आगे बढ़ाने के लिए अनेक दल अस्तित्व में आए। इसी प्रक्रिया में पिछड़ा वर्ग में नेतृत्व का विकास हुआ।

प्रश्न 12.
भारतीय राजनीति में बहुजन समाज पार्टी के उदय को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय राजनीति में बहुजन समाज पार्टी कई राज्यों विशेषकर उत्तर प्रदेश व केन्द्र में भी अहम भूमिका निभा रही है। बहुजन समाज में जागृती का आन्दोलन करने व बहुजन समाज पार्टी बनाने में श्री कांशीराम का अहम योगदान है। बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस की परम्परागत रूप से समर्थन करने वाले वोट बैंक को तोड़ दिया जिनमें प्रमुख रूप से हरिजन, मुस्लिम व पिछड़ा वर्ग शामिल थे। कुमारी मायावती बहुजन समाज पार्टी को नेतृत्व प्रदान कर रही है।

प्रश्न 13.
2004 के लोक सभा चुनाव के परिणाम समझाइए।
उत्तर:
2004 के चुनाव में एन.डी.ए. बहुमत प्राप्त नहीं कर पायी व कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आया क्योंकि कांग्रेस की वोट प्रतिशत के आधार पर सीटें एन.डी.ए. से अधिक थी। एन.डी.ए. (यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलाइंस) का गठन किया व वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनायी। 2004 के चुनावों ने एक तथ्य को निश्चित कर दिया कि भारत में राष्ट्रीय दलों की स्थिति अभी भी ऐसी नहीं है कि वे स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार बना सके। अतः गठबन्धन की सरकारों का दौर भारत में अभी चलेगा।

प्रश्न 14.
गठबन्धन की राजनीति के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1989 से भारत में गठबन्धन सरकारें लगभग निरन्तर चल रही है। जिसके निम्न प्रमुख कारण हैं –

  1. क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की बढ़ती संख्या
  2. राष्ट्रीय दलों के प्रभाव मे गिरावट
  3. त्रिशंकु संसद व विधान सभाएँ
  4. समाज का विभिन्न सामाजिक आर्थिक वर्गों में बँटवारा
  5. सत्ता की राजनीति का बढ़ता प्रभाव
  6. न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति
  7. क्षेत्रीय दलों का दबाव की राजनीति

प्रश्न 15.
बाबरी मस्जिद के 1992 में ध्वंश होने का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विवादित स्थान को कार सेवकों में व हिन्दू कट्टरवादियों ने ध्वंश कर दिया जिससे सारे देश में दंगे व साम्प्रदायिक तनाव फैल गया। सभी राजनीतिक दलों व बुद्धिजीवियों ने इसकी निंदा की परन्तु इस घटना ने हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया जिसका लाभ भारतीय जनता पार्टी को 1996 के चुनाव में मिला जिसमें वह लोकसभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आयी। बाबरी मस्जिद का टूटना भारत के इतिहास में एक काला अध्याय जुड़ गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या आप समझते हैं कि 1989 के चुनाव में कांग्रेस की सफलता के बाद कांग्रेस का सफाया हो गया?
उत्तर:
इस प्रश्न का सीधा उत्तर यह दिया जा सकता है कि कांग्रेस का 1989 के चुनाव में असफलता का अर्थ यह. नहीं लगाया जा सकता कि कांग्रेस का हमेशा के लिए सफाया हो गया। कांग्रेस भारत का एक बड़ा प्रमुख राजनीतिक दल है जिसकी जड़ें सारे देश में गइराई हुई हैं। बाद के चुनावों के परिणाम ने इसको सिद्ध भी कर दिया। 1989 में बनी राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार 1990 तक ही चली व 1991 में चुनाव कराना आवश्यक हो गया जिसमें फिर कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी जबकि इस चुनाव के दौरान कांग्रेस के प्रभावकारी नेता श्री राजीव गाँधी की हत्या हो गई थी।

1991 से लेकर 1996 तक कांग्रेस ने श्री नरसिम्हा राव के नेतृत्व में सरकार चलाई हालांकि बहुत बड़ा बहुमत कांग्रेस के साथ नहीं रहा। 1996 के चुनाव में कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी परन्तु कांग्रेस के समर्थन से ही 1996 से लेकर 1999 तक यूनाइटिड फ्रंट की सरकार चली। 2004 के चुनाव में फिर गठबन्धन की सरकार बनी तथा फिर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी व इसके ही नेतृत्व में यू.पी. ए. की सरकार डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 2014 तक चली। अतः यह प्रमाणित होता है कि कांग्रेस आज भी प्रभावकारी राजनीतिक दल है।

प्रश्न 2.
मंडल आयोग की सिफारिशों का भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
मंडल आयोग का गठन जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में पिछड़े वर्ग के लोगों की पहचान करने व उनके शिक्षण संस्थाओं व सरकारी नौकरियों में आरक्षण निश्चित करने के लिए किया था। जिसमें शैक्षणिक व सामाजिक पिछड़ेपन को आधार माना गया था। मंडल आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1980 में ही दे दी थी। परन्तु इसको वी.पी. सिंह की सरकार ने 1989 में लागू किया। इस रिपोर्ट के लागू होने से जिसमें 27% के आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, पूरे देश में हिंसात्मक झगड़े प्रारम्भ हो गए। इस रिपोर्ट के लागू होने के बाद भारत में आरक्षण की राजनीति प्रारम्भ हो गई जिसने समाज का व राजनीति का ध्रुवीकरण कर दिया। पिछड़ा वर्ग राजनीतिक सत्ता के लिए संघर्षमय हो गया। इससे प्रान्तों व केन्द्र की राजनीति दोनों प्रभावित हुई।

प्रश्न 3.
1989 के चुनावों के बाद की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर:
1989 के बाद भारतीय राजनीति में घटनाचक्र बहुत तेजी के साथ चला। एक प्रकार से 1989 में भारतीय राजनीति का स्वरूप ही बदल गया। निम्न प्रमख घटनाएँ बड़ी तेजी से घटीं।

  1. सबसे महत्त्वपूर्ण घटना 1989 में कांग्रेस की पराजय। जिस पार्टी को 1989 के चुनाव में 415 सीटें मिली थी 1989 के चुनाव में इसे केवल 197 सीटें ही प्राप्त हुई। 1989 के चुनाव कई पार्टियों की मिली-जुली सरकार बनी।
  2. एक अन्य महत्वपूर्ण घटना क्षेत्रीय दलों का विकास/जनता दल व कुछ क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रीय मोर्चा बनाया व विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में गठबन्धन सरकार बनी।
  3. एक अन्य विशेषता यह रही कि विपरीत विचारधारा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी व वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार चली।
  4. गैर कांग्रेसवाद के प्रचार का युग प्रारम्भ हुआ।
  5. आरक्षण की राजनीति का प्रारम्भ।
  6. बाबरी मस्जिद व राम मन्दिर विवाद।
  7. 1991 में आर्थिक सुधार व आर्थिक उदारीकरण की नीतियाँ प्रारम्भ।
  8. क्षेत्रीय दलों की केन्द्र की राजनीति में बढ़ती भूमिका।

प्रश्न 4.
राजीव गाँधी के बाद कांग्रेस की स्थिति समझाइए।
उत्तर:
1991 के चुनाव में तमिलनाडू में चुनाव प्रचार करते समय राजीव गाँधी की लिट्टे के उग्रवादियों ने हत्या कर दी जिससे कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। कुछ समय के लिए कांग्रेस नेतृत्वहीन हो गयी। राजीव गाँधी के अभाव का 1991 के चुनावों पर भी प्रभाव पड़ा क्योंकि कांग्रेस को अल्पमत की सरकार बनानी पड़ी। कांग्रेस में नेतृत्व संकट उत्पन्न हो गया। अन्ततः ये श्री नरसिम्हा राव जी को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया गया जो एक कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में जाने जाते हैं हालांकि उन्हीं के कार्यकाल में ही नई आर्थिक नीतियाँ लागू की व स्थानीय संस्थाओं को मजबूत करने के लिए संविधान में 73 वाँ 74 वाँ संविधान संशोधन भी पारित किए गए। 1989 से लेकर 2004 तक के चुनाव तक कांग्रेस एक करिशमाई नेतृत्व की तलाश में रहा।

प्रश्न 5.
1989 के चुनाव बाद कांग्रेस के प्रभाव में कमी के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
1989 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभाव में गिरावट आयी जिसके प्रमुख कारण थे –

  1. कांग्रेस सरकार में बढ़ता भ्रष्टाचार
  2. करिश्माई नेतृत्व का अभाव
  3. कांग्रेस में बढ़ती अनुशासनहीनता
  4. विश्वनाथ प्रताप सिंह का एक करिश्माई नेता के रूप में उदय
  5. 1991 में कांग्रेस में नेतृत्व का संकट
  6. क्षेत्रीय दलों का विकास
  7. केन्द्र में अनिश्चितता का दौर
  8. केन्द्र की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की बढ़ती हुई भूमिका
  9. केन्द्र की कांग्रेस सरकारों के द्वारा संविधान के प्रावधानों का दुरुपयोग
  10. कांग्रेस की परम्परागत वोट बैंक का इससे दूर हो जाना
  11. दलित राजनीति का विकास
  12. अन्य पिछड़ा वर्ग की राजनीति का विकास

प्रश्न 6.
गठबन्धन की राजनीति से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार किस प्रकार बनी समझाइए।
उत्तर:
जब चुनाव के बाद किसी एक राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत ना मिले तो कई सारे राजनीतिक दलों में इस प्रकार से समझौता होता है कि न्यूनतम साँझा कार्यक्रम की सहमति के आधार पर मिली-जुली सरकार बनाते हैं, ऐसी सरकार को गठबन्धन सरकार कहते हैं। 1989 के चुनाव में कांग्रेस को पर्याप्त बहुमत ना मिलने पर राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी जो एक गठबन्धन सरकार थी क्योंकि इसमें जनता दल प्रमुख पार्टी थी व इसके साथ कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने मिलकर राष्ट्रीय मोर्चे में गठन कर भारतीय जनता पार्टी व वामपंथी दलों के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। 1989 से ही भारत में गठबन्धन सरकारों का प्रचलन चला जो आज भी चल रहा है। 1996 से 1999 तक यूनाइटेड फ्रंट की सरकार 1999 से 2004 तक एनडीए की गठबन्धन सरकार व अब 2004 से 2014 तक यू.पी.ए. की 2014 से अब तक एन.डीए. गठबन्धन सरकार चल रही है।

प्रश्न 7.
भारत की राजनीतिक व्यवस्था पर गठबन्धन की राजनति का प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
1989 के बाद देश में गठबन्धन की राजनीति का दौर जारी है। गठबन्धन सरकारें ना केवल केन्द्र में चल रहा है बल्कि अनेक राज्यों में भी गठबंधन की सरकारें चल रही है जैसे पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर, पंजाब में गठबन्धन की सरकारें चल रही है। गठबन्धन की सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम रही है। गठबन्धन की राजनीति ने भारतीय राजनीति को दोनों तरह से अर्थात् नकारात्मक तरीके से भी व सकारात्मक तरीके से प्रभावित किया है जिसको निम्न क्षेत्रों में समझ सकते हैं –

  1. राजनीतिक अस्थिरता
  2. क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका
  3. क्षेत्रीय हितों व आकांक्षाओं की पूर्ति
  4. केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों पर प्रभाव
  5. राज्यों की राजनीति पर प्रभाव
  6. भारतीय संघीय प्रणाली के स्वरूप पर प्रभाव
  7. राजनीतिक अवसरवाद में वृद्धि
  8. राजनीति संस्थाओं व पदों की स्थिति में परिवर्तन

प्रश्न 8.
बाबरी मस्जिद विवाद ने भारतीय राजनीति को किस प्रकार से प्रभावित किया?
उत्तर:
साम्प्रदायिक भारतीय राजनीति की एक नकारात्मक विरासत रही है जो वास्तव में अंग्रेजी शासन की ही देन है साम्प्रदायिकता आज भी भारतीय समाज व राजनीति को प्रभावित कर रही है। बाबरी मस्जिद व राम मन्दिर विवाद ने भारतीय समाज व राजनीति को विभाजित किया। कुछ एक राजनीतिक दलों ने इस विवाद का राजनीतिकरण किया है। इसका उन्माद इस प्रकार बढ़ा कि 6 नवम्बर 1992 को कट्टरवादियों ने विवादित ढाँचे को ध्वंस कर दिया। जिससे साम्प्रदायिक झगड़ों की झड़ी लग गई। गोधराकांड व गुजरात में 2002 में हुए साम्प्रदायिक दंगे इसी चिंगारी का परिणाम है। इस विवाद ने समाज को बाँटा है व आपस में नफरत व तनाव को बढ़ाया है जिसका राजनीतिक दलों ने अपने-अपने हित में प्रयोग किया है।

प्रश्न 9.
मंडल विवाद से आप क्या समझते हैं? भारत में राजनीतिक सत्ता परिवर्तन को इसने किस प्रकार से प्रभावित किया?
उत्तर:
मंडलवाद का सम्बन्ध उस राजनीतिक व सामाजिक माहौल से है जो 1990 में मंडल आयोग की पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों व शैक्षणिक संस्थाओं में 27% आरक्षण के सिफारिशों को लागू करने के बाद पूरे देश में उत्पन्न हुआ। शैक्षणिक रूप से व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण के बाद पूरे देश में सामाजिक तनाव हो गया जिसको राजनीतिक दलों ने आने-अपने तरीके से परिभाषित व प्रचारित किया।

इसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह रहा कि जिस सरकार ने इस आदेश को लागू किया था अर्थात् विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में चल रही राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। देश ऊंची जाति व पिछड़ी जातियों के वर्गों में बँट गया व इसने पूरे सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था को इस प्रकार से प्रभावित किया कि पिछड़े वर्ग के लोगों में जागरूकता बढ़ी व इनका सामाजिक व राजनीतिक ध्रुवीकरण हो गया। पिछड़े वर्ग के लागों ने संख्या के अनुपात में ना केवल आर्थिक श्रोतों पर हिस्सेदारी की बात करी बल्कि राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदारी की बात की। अनेक क्षेत्रीय दलों का विकास इस संघर्ष पर ही आधारित है।

प्रश्न 10.
पिछड़ी जातियों के राजनीतिकरण का भारतीय राजनीति पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
मंडल की देन आरक्षण की राजनीति है जिसने भारत में पिछड़े वर्ग की राजनीति को जन्म दिया जिसके आधार पर पिछड़ा वर्ग एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभर कर आया। इस आधार पर कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों का गठन किया जो विभिन्न राज्यों में सरकार में शामिल है। केन्द्र की राजनीति को भी आरक्षण की राजनीति ने प्रभावित किया। पिछड़े वर्ग का सामाजिक आर्थिक व राजनीति विकास हुआ। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि मंडल आयोग कि सिफारिशों के आधार पर किए गए 27% आरक्षण के कारण समाज के जीवन में हर पक्ष में परिवर्तन हुआ। पिछड़ा वर्ग विभिन्न दलों के लिए केवल वोट बैंक ही नहीं बल्कि एक राजनीतिक शक्ति है जिसने भारतीय समाज व राजनीति में गतिशीलता को जन्म दिया है।

प्रश्न 11.
भारतीय समाज में राजनीतिक गतिशीलता व सक्रियता लाने में बाबरी मस्जिद विवाद की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
भारत में प्रजातन्त्रीय लोकतन्त्र को अपनाया गया है। चुनावी प्रक्रिया व राजनीतिक प्रक्रिया के प्रभाव में समाज के विभिन्न वर्गों, क्षेत्रों व समुदायों में जागरूकता का विकास हुआ। इसी प्रक्रिया में दुर्भाग्यवश कुछ नकारात्मक संकीर्ण प्रवृत्तियों व सोच ने भी जन्म लिया है। जिससे समाज के विभिन्न वर्गों में तनाव व आपसी द्वेष बड़ा है। बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद भी एक ऐसा ही विवाद है जिसने भारतीय समाज में साम्प्रदायिक तनाव व विभाजन को जन्म दिया।

इस विषय को दलगत व स्वार्थी राजनीति व कट्टरवादी तत्वों ने और अधिक हवा दी। इस विवाद का साम्प्रदायिक आधार वोट बैंक बनाने में प्रयोग किया। 1986 को राजीव गाँधी सरकार ने विवादित जगह के अहाते का ताला खोलकर हिन्दुओं को पूजा करने की अनुमति दे दी जिससे इस विवादित स्थान का विवाद बढ़ने लगा। भारतीय जनता पार्टी ने विवादित स्थान पर राम मन्दिर निर्माण करने का वायदा कर लोगों की भावनाओं को भड़का कर इस विषय को और अधिक गर्म कर दिया जिससे इस विषय का तेजी के साथ समाजीकरण व राजनीतिकरण हो गया। परिणाम स्वरूप 1992 में बाबरी मस्जिद को कट्टरवादियों ने ध्वंस कर दिया जिससे पूरे देश में उत्तेजना का वातावरण हो गया जिसको वोट बैंक में प्रयोग कर भारतीय जनता पार्टी ने सर्वोच्च राजनीतिक सफलता प्राप्त की।

प्रश्न 12.
गठबन्धन की राजनीति के कुछ प्रमुख गुण बताइए।
उत्तर:
गठबन्धन की राजनीति विश्व के अनेक देशों में प्रचलित है। भारत में इसकी उत्पत्ति 1989 के बाद हुई। आज भारत के अनेक राज्यों व केन्द्र में गठबन्धन सरकारें चल रही हैं। इसके कुछ अवगुणों के बावजूद कुछ गुण भी अवश्य है जो निम्न हैं –

  1. त्रिशंकु संसद व विधान सभाओं की स्थिति में सरकार बनने की संभावनाएँ निश्चित करता है।
  2. संघीय प्रणाली को मजबूत किया है।
  3. केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।
  4. क्षेत्रीय दलों का विकास व क्षेत्रीय आकांक्षाओं व हितों की पूर्ति में सहायक।
  5. राज्यों की स्थिति मजबूत हुई है।

प्रश्न 13.
गठबन्धन सरकारों के दौर में उन क्षेत्रों पर प्रकाश डालिए जिन पर लगभग सभी दलों की प्रायः सहमति होती है।
उत्तर:
भारत में गठबन्धन सरकारें पहली संसद का परिणाम नहीं है व ना ही भारत में गठबन्धन सरकार बनाने व चलाने की संस्कृति रही। वास्तव में भारत में गठबन्धन सरकारें निश्चित परिस्थितियों का परिणाम है और वह परिस्थितियाँ ही सत्ता को साझा करने की स्थिति जब किसी भी दल को इतना बहुमत ना मिले कि सरकार बन सके।

सत्ता को साझा करने के लिए वह आवश्यक हो जाता है दल अपनी नीतियों व कार्यक्रमों में भी समझौता करें। व मतभेदों को मुद्दों को अलग रख कर कुछ मुद्दों पर आम सहमति बनाए भारत में चल रही गठबन्धन सरकारों के न्यूनतम साझा कार्यक्रम इसी सहमति का ही परिणाम है। भारतीय गठबन्धन सरकारों में निम्न मुद्दों पर आम सहमति प्रतीत नजर आती है –

  1. आरक्षण
  2. नई आर्थिक नीतियाँ
  3. गठबन्धन सरकारें
  4. विचारधाराओं को व्यवहारिक धरातल के साथ जोड़ना
  5. राजनीतिक स्थिरता के लिए वैचारिक मतभेदों में तालमेल करना

प्रश्न 14.
भारत में गठबन्धन सरकारों का भविष्य क्या है?
उत्तर:
1989 में विभिन्न राज्यों व केन्द्र में गठबन्धन सरकारें चल रही हैं। दलीय प्रणाली का स्वरूप इस प्रकार से बदला है कि भारत में दो दलीय प्रणाली तो नहीं बल्कि दो प्रमुख दो यानि कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी दलों की प्रमुखता के साथ गठबन्धन रहे जिनमें भारतीय जनता पार्टी अथवा कांग्रेस ने प्रमुख भूमिका अदा की है।

भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस का जनाधार घटता बढ़ता रहा है। विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दलों की सरकार कार्य कर रही है व ये क्षेत्रीय दल केन्द्र में भी सरकार बनाने व चलाने में भूमिका अदा कर रहे हैं चाहे कांग्रेस के साथ या भारतीय जनता पार्टी के साथ। आज स्थिति यह है कि कोई भी राजनीतिक दल स्वतंत्र स्वरूप से अकेले सरकार बनाने की स्थिति यह है कि कोई भी राजनीतिक दल स्वतंत्र से अकेले सरकार बनाने की स्थिति में नहीं लगता अत: अभी भारत में गठबन्धन की सरकारें चलेगी इनका अभी भी भविष्य है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
गठबन्धन सरकार से आप क्या समझते हैं? गठबन्धन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
जब चुनाव के बाद किसी भी राजनीतिक दल को सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत ना मिले व कई राजनीतिक दल मिलाकर अपने विवादित मुद्दों को अलग कर एक न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर सहमति के आधार पर साझा सरकार बनाते हैं तो इसे गठबन्धन सरकार कहते हैं। यह स्थिति बहुदलीय प्रणाली में उस समय आ जाती है जब राष्ट्रीय दलों का प्रभाव कम हो जाता है व कई सारे क्षेत्रीय दलों का प्रभाव बढ़ जाता है जिससे वोट अनेक राजनीतिक दलों में विभाजित होने के कारण किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता।

1980 के बाद भारत में क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ने लगी है। इससे पहले बहुदलीय प्रणाली होते हुए भी कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। कुछ राष्ट्रीय दल रहे परन्तु उनकी स्थिति काँग्रेस के सामने कमजोर ही रही। 1950 से लेकर 1980 तक के काल में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। 1980 के दशक के बाद विभिन्न कारणों से क्षेत्रवाद का विकास हुआ जिसके आधार पर क्षेत्रीय दलों का गठन किया गया। इन क्षेत्रीय दलों की संख्या विभिन्न कारणों से लगातार बढ़ती ही रही। धीरे-धीरे स्थिति ऐसी रही कि 1990 के दशक में राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों के सामने बौने पड़ गए। क्षेत्रीय दलों ने केवल अपने राज्यों में सरकारें बनायी बल्कि केन्द्र में भी सरकार बनाने व चलाने में अहम भूमिका निभायी। निम्न मुद्दे ऐसे रहे जिन्होंने समाज को विभाजित किया जिसके आधार पर लोगों के राजनीतिक व्यवहार में परिवर्तन हुआ व क्षेत्रीय दलों की संख्या में वृद्धि हुई। ये मुद्दे थे –

  1. आरक्षण
  2. मन्दिर मस्जिद विवाद (बाबरी मस्जिद व राम मन्दिर)
  3. पिछड़ा वर्ग की राजनीति
  4. महिला राजनीति
  5. अल्प संख्यकों की राजनीति
  6. आदिवासी राजनीति
  7. दलित राजनीति
  8. क्षेत्रवाद

प्रश्न 2.
भारतीय राजनीति में 1990 से 2004 तक की विभिन्न प्रमुख घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1989 के चुनाव के बाद भारत में गठबन्धन की राजनीति प्रारम्भ हुई। 1989 से लेकर 2004 में यू.पी.ए. सरकार बनने तक घटनाचक्र बड़ी तेजी के साथ चला जिससे भारतीय राजनीति में व्यापक परिवर्तन आए। पिछले 20 वर्षों में भारतीय राजनीति में निम्न प्रमुख विषय छाए रहे हैं –

1. कांग्रेस के प्रभाव में उतार चढ़ाव:
कांग्रेस भारत का एक प्रमुख राजनीतिक दल रहा है जिसके साथ गौरवमय इतिहास रहा है। 1970 के दशक में भारतीय राजनीति पर कांग्रेस का प्रभुत्व रहा है केन्द्र व प्रान्तों कांग्रेस की सरकारें लगातार रही हैं परन्तु 1970 के बाद कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आयी है। 1989 से 90 तक कांग्रेस सत्ता से बाहर रही, परन्तु 1991 में पुनः सत्ता में आ गई। 1996 से लेकर 2004 तक कांग्रेस का जनाधार कम हुआ व 2004 तक सत्ता से बाहर रही। 2004 में पुनः कांग्रेस संसद में सबसे बड़े दल के नेता के रूप में उभर कर आयी व गठबन्धन सरकार का नेतृत्व 2014 तक की।

2. आरक्षण की राजनीति:
1989 से देश की राजनीति में आरक्षण का मुद्दा छाया रहा है वास्तव में आरक्षण की राजनीति हो रही है जिसने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को अत्यधिक प्रभावित किया है। 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर 27% आरक्षण की व्यवस्था की जिसका प्रारम्भ में बहुत विरोध हुआ व देश में हिंसा हुई परन्तु कुछ समय के बाद इसको सभी ने स्वीकार कर लिया है व पिछड़ा वर्ग में शामिल होने की होड़ में सब लगे हैं।

3. राम मन्दिर व बाबरी मस्जिद विवाद-भारतीय राजनीति को 1990 के बाद बाबरी मस्जिद विवाद ने अत्यधिक प्रभावित किया है व साम्प्रदायिक तनाव व द्वेष को जन्म दिया जिसका भारतीय जनता पार्टी ने लाभ उठाया।

4. गठबन्धन सरकारों का उदय

5. क्षेत्रीय पार्टियों की केन्द्र व राज्यों में बढ़ती भूमिका

6. केन्द्र व प्रान्तों में रिस्तों की पुनः व्याख्या का प्रश्न

7. आर्थिक उदारीकरण

8. अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग व महिलाओं का सशक्तिकरण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय मोर्चा में सबसे बड़ा दल कौन-सा था?
(अ) जनता दल
(ब) डी.एम.के.
(स) बी.जे.डी.
(द) तेलगू देशम
उत्तर:
(अ) जनता दल

प्रश्न 2.
तेलगू देशम पार्टी किस राज्य में है?
(अ) आन्ध्र प्रदेश
(ब) तमिलनाडू
(स) उड़ीसा
(द) मध्यप्रदेश
उत्तर:
(अ) तमिलनाडू

प्रश्न 3.
मंडल आयोग की रिपोर्ट किस वर्ष में लागू की गई?
(अ) 1989
(ब) 1990
(स) 1991
(द) 1992
उत्तर:
(ब) 1990

प्रश्न 4.
बाबरी मस्जिद को किस दिन व वर्ष में ध्वंश किया गया?
(अ) 4 जनवरी 1991
(ब) 5 जनवरी 1992
(स) 6 दिसम्बर 1992
(द) 10 दिसम्बर 1992
उत्तर:
(स) 6 दिसम्बर 1992

प्रश्न 5.
भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था –
(अ) 25 जून, 1975
(ब) 6 अप्रैल, 1980
(स) 25 जुलाई, 1978
(द) 6 मार्च, 1982
उत्तर:
(ब) 6 अप्रैल, 1980

प्रश्न 6.
देश में घटित 26.11.2008 की घटना किससे संबंधित है।
(अ) क्षेत्रवाद
(ब) जातिवाद
(स) नक्सलवाद
(द) आतंकवाद
उत्तर:
(द) आतंकवाद

प्रश्न 7.
स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में गृहमंत्री कौन था?
(अ) सरदार बल्लभ भाई पटेल
(ब) चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
(स) जगजीवन राम
(द) डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
उत्तर:
(अ) सरदार बल्लभ भाई पटेल

प्रश्न 8.
भारत ने श्रीलंका से अपनी शांति सेना कब बापस बुला ली?
(अ) 1987 में
(ब) 1989 में
(स) 1992 में
(द) 1991प्र
उत्तर:
(ब) 1989 में

प्रश्न 9.
गठबंधन सरकारों के होने से संसदीय व्यवस्था में क्या प्रमुख खामियाँ आयी है?
(अ) राष्ट्रपति की दुर्बल स्थिति
(ब) प्रधानमंत्री की सबल स्थिति
(स) क्षेत्रीय दलों का उदय
(द) सामूहिक उत्तरदायित्व के सूत्र की अवहेलना
उत्तर:
(द) सामूहिक उत्तरदायित्व के सूत्र की अवहेलना

प्रश्न 10.
राजीव गांधी की हत्या कब हुई?
(अ) अक्टूबर, 1984
(ब) मई, 1991
(स) जुलाई, 1993
(द) अगस्त, 1996
उत्तर:
(ब) मई, 1991

प्रश्न 11.
6 दिसम्बर, 1992 के इनमें से कौन-सी घटना हुई है?
(अ) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(ब) जनता दल का गठन
(स) राजग सरकार का गठन
(द) गोधरा कांड
उत्तर:
(अ) बाबरी मस्जिद का विध्वंस

प्रश्न 12. डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के गठबंधन का क्या नाम है?
(अ) संप्रग
(ब) राजग
(स) पंजाब गठबंधन
(द) सभी
उत्तर:
(अ) संप्रग

प्रश्न 13.
विधायिका में महिलाओं को कितना प्रतिशत आरक्षण देने हेतु विधेयक पर लंबे समय से संसद में निर्णय नहीं हो पाया है?
(अ) 50 प्रतिशत
(ब) 33 प्रतिशत
(स) 40 प्रतिशत
(द) 25 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 33 प्रतिशत

प्रश्न 14.
कांशीराम राजनीतिक दल के संस्थापक थे?
(अ) बहुजन समाज पार्टी
(ब) शिव सेना
(स) राष्ट्रीय जनता दल
(द) लोक जनशक्ति पार्टी
उत्तर:
(अ) बहुजन समाज पार्टी

प्रश्न 15.
भारतीय संसद पर आक्रमण किया गया था –
(अ) 2005
(ब) 2006
(स) 2001
(द) 2002
उत्तर:
(स) 2001

प्रश्न 16.
भारतीय शांति सेना को श्रीलंका कब भेजा गया?
(अ) 1987
(ब) 1988
(स) 1989
(द) 1990
उत्तर:
(अ) 1987

प्रश्न 17.
भारत में नई आर्थिक नीतिके संचालक हैं –
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह
(ब) यशवंत सिन्हा
(स) वी. पी. सिंह
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) डॉ. मनमोहन सिंह

II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर



उत्तर:
(1) – (य)
(2) – (स)
(3) – (अ)
(4) – (द)
(5) – (ब)

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