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 Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण वाक्य और उपवाक्य

Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण वाक्य और उपवाक्य

वाक्य

मनुष्य के विचारों को पूर्णता से प्रकट करनेवाले पदसमूह को वाक्य कहते हैं। वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित रूप है। यदि शब्द भाषा की प्रारम्भिक अवस्था है, तो वाक्य, उसका विकास। सभ्यता के विकास के साथ ही वाक्यों के विकास की वृद्धि होती गई, क्योंकि मनुष्य के भाव या विचार की पूर्ण अभिव्यक्ति वाक्यों में ही होती है। शब्द तो साधन है, जो वाक्य की संरचना में सहायक होते हैं। वाक्य वह सार्थक ध्वनि है, जिसके माध्यम से लेखक लिखकर तथा वक्ता बोलकर अपने भाव या विचार पाठक या श्रोता पर प्रकट करता है। वाक्य की उपयोगिता व्याकरण में तो है ही, सर्वसाधारण के दैनिक जीवन में भी कम नहीं। अतः, सामान्य जीवन में वाक्य का विशेष महत्व है।

वाक्यों में प्रयुक्त पदों या शब्दों की विधिवत् स्थापना को ‘क्रम’ कहते हैं। जैसे- रोटी मैंने खायी।’ यह वाक्य ठीक नहीं है, क्योंकि ‘रोटी’ शब्द को ‘मैंने’ के बाद आना चाहिए।

सामान्य तौर पर वाक्य सार्थक शब्द का समूह है, जिसमें कर्ता और क्रिया दोनों होते हैं। जैसे-

‘मोहन, सोहन, बाग, घर, मैदान।’

यह एक शब्द-समूह है, पर क्रियापद एक भी नहीं है। अतएव, इसे हम वाक्य नहीं कह सकते। इसी प्रकार, खाता है, रोता है, पढ़ता है, नाचता है’ आदि क्रियापदों के समूह को भी वाक्य नहीं कह सकते। वाक्य उसी शब्दसमूह को कहेंगे, जब उसमें क्रिया (विधेय) और कर्ता (उद्देश्य) दोनों होंगे। जैसे-मोहन खेलता है।

गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट इसमें ‘मोहन’ कर्ता के रूप में है और ‘खेलता है’ क्रिया। इस वाक्य से पूरा अर्थबोध होता है। अतः, यह एक वाक्य है।

कभी-कभी हम देखते हैं कि एक वाक्य में अनेक वाक्य होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि . उसमें एक वाक्य तो प्रधान वाक्य होता है और शेष उपवाक्य। एक उदाहरण लीजिए-

मोहन ने कहा कि मैं खेलूँगा।

इसमें ‘मोहन ने कहा’ प्रधान वाक्य है और ‘कि मैं खेलूंगा’ उपवाक्य। इस प्रकार हम देखते हैं कि उपवाक्य भी दो या दो से अधिक पदों का समूह है, जो किसी वाक्य का एक अंश है और उसमें उद्देश्य और विधेय भी हैं। इसे हम इस ढंग से परिभाषित कर सकते हैं-ऐसा पदसमूह, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उद्देश्य और विधेय हों, उपवाक्य कहलाता है।

उपवाक्यों के आरम्भ में अधिकतर कि, जिससे, ताकि, जो, जितना, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि होते हैं।

उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. संज्ञा-उपवाक्य,
  2. विशेषण-उपवाक्य,
  3. क्रियाविशेषण-उपवाक्य।

1. संज्ञा-उपवाक्य (Noun Clause) जो आश्रित उपवाक्य संज्ञा की तरह व्यवहत हों, उसे ‘संज्ञा-उपवाक्य’ कहते हैं। यह कर्म (सकर्मक क्रिया) या पूरक (अकर्मक क्रिया) का काम करता है, जैसा संज्ञा करती है। ‘संज्ञा-उपवाक्य’ की पहचान यह है कि इस उपचाक्य के पूर्व ‘कि’ होता है। जैसे-‘राम ने कहा कि मैं पढूँगा’ यहाँ ‘मैं पढूंगा’ संज्ञा-उपवाक्य है। ‘मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है’-इस वाक्य में ‘वह कहाँ है’ संज्ञा-उपवाक्य है।

2. विशेषण-उपवाक्य (Adjective Clause)-जो आश्रित उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे ‘विशेषण-उपवाक्य’ कहते हैं। जैसे-वह आदमी, जो कल आया था, ‘. आज भी आया है। यहाँ ‘जो कल आया था’ विशेषण-उपवाक्य है। इसमें ‘जो’, ‘जैसा’, ‘जितना’. . इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।

3. क्रियाविशेषण-उपवाक्य (Adverb Clause)जो उपवाक्य क्रियाविशेषण की तरह व्यवहत हो, उसे “क्रियाविशेषण-उपवाक्य’ कहते हैं। जैसे-जब पानी बरसता है, तब मेढक बोलते हैं। यहाँ ‘जब पानी बरसता है’ क्रिया-विशेषण उपवाक्य है। इसमें प्रायः ‘जब’, ‘जहाँ’, ‘जिधर’, ‘ज्यों’, ‘यद्यपि’ इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है। इसके द्वारा समय, स्थान, कारण, उद्देश्य, फल, अवस्था, समानता, मात्रा इत्यादि का बोध होता है।

वाक्य-भेद

वाक्यों का वर्गीकरण मुख्यत: दो दृष्टियों से होता है-

  • रचना या स्वरूप की दृष्टि से और
  • अर्थ की दृष्टि से।

रचना की दृष्टि से वर्गीकरण-रचना के अनुसार वाक्य के तीन प्रकार हैं-

  • सरल या साधारण वाक्य,
  • मिश्र वाक्य और
  • संयुक्त वाक्य।

सरल वाक्य-जिस वाक्य में एक क्रिया होती है और एक कर्ता होता है, उसे ‘साधारण या सरल वाक्य’ कहते हैं। इसमें एक ‘उद्देश्य’ और एक विधेय रहते हैं। जैसे-‘बिजली चमकती है’, ‘पानी बरसा’। इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात् कर्ता और विधेय अर्थात् क्रिया है। अतः, ये साधारण या सरल वाक्य है।

मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में एक साधारण वाक्य के अतिरिक्त उसके अधीन कोई दूसरा अंगवाक्य हो, उसे मिश्र वाक्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे ‘मिश्र वाक्य’ कहते हैं। जैसे–‘वह कौन-सा मनुष्य है, जिसने महाप्रतापी राजा भोज का. नाम न सुना हो’।

संयुक्त वाक्य-जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता है, उसे ‘संयुक्त वाक्य’ कहते हैं। ‘संयुक्त वाक्य’ उस वाक्य-समूह को कहते हैं, जिसमें दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों। इस प्रकार के वाक्य लम्बे और में उलझे होते हैं। जैसे–’मैं रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।’

अर्थ की दृष्टि से वर्गीकरण-अर्थ के अनुसार वाक्य के आठ भेद हैं-

  1. विधिवाचक,
  2. निषेधवाचक,
  3. आज्ञावाचक,
  4. प्रश्नवाचक,
  5. विस्मयवाचक,
  6. सन्देहवाचक,
  7. इच्छावाचक और
  8. संकेतवाचक।

1. विधिवाचक वाक्य (Affirmative Sentence)—जिससे किसी बात के होने का बोध हो। जैसे-

  • सरल वाक्य-हम खा चुके।।
  • मिश्र वाक्य-मैं खाना खा चुका, तब वह आया।
  • संयुक्त वाक्य-मैंने खाना खाया और मेरी भूख मिट गयी।

2. निषेधवाचक वाक्य (Negative Sentence)—जिससे किसी बात के न होने का बोध हो। जैसे-

  • सरल वाक्य-हमने खाना नहीं खाया।
  • मिश्र वाक्य-मैंने खाना नहीं खाया, इसलिए मैंने फल नहीं खाया।
  • संयुक्त वाक्य-मैंने भोजन नहीं किया और इसलिए मेरी भूख नहीं मिटी।

3. आज्ञावाचक वाक्य (Imperative Sentence)-जिससे किसी तरह की आज्ञा का बोध हो। जैसे-

  • तुम खाओ। तुम पढ़ो।

4. प्रश्नवाचक वाक्य (Interrogative Sentence)-जिससे किसी प्रकार के प्रश्न किए जाने का बोध हो। जैसे-

  • क्या तुम खा रहे हो?
  • तुम्हारा नाम क्या है?

5. विस्मयवाचक वाक्य (Exclamatory Sentence)-जिससे आश्चर्य, दु:ख या सुख का बोध हो। जैसे-

  • ओह ! मेरा सिर फटा जा रहा है।

6. सन्देहवाचक वाक्य-जिससे किसी बात का सन्देह प्रकट हो। जैसे-

  • उसने खा लिया होगा। मैंने कहा होगा।

7. इच्छावाचक वाक्य-जिससे किसी प्रकार की इच्छा या शुभकामना का बोध हो। जैसे तुम अपने कार्य में सफल रहो।
8. संकेतवाचक वाक्य-जहाँ एक वाक्य दूसरे की सम्भावना पर निर्भर हो। जैसे पानी न बरसता तो धान सूख जाता। यदि तुम खाओ तो मैं भी खाऊँ।

वाक्य का रूपान्तर-

किसी वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में, बिना अर्थ बदले, परिवर्तित करने की प्रक्रिया को ‘वाक्यपरिवर्तन’ कहते हैं। हम किसी भी वाक्य को भिन्न-भिन्न वाक्य-प्रकारों में परिवर्तित कर सकते हैं और उनके मूल अर्थ से तनिक विकार नहीं आयेगा। हम चाहे तो एक सरल वाक्य को मिश्र या संयुक्त वाक्य में बदल सकते हैं।

  • सरल वाक्य-हर तरह के संकटों से घिरा रहने पर भी वह निराश नहीं हुआ।
  • संयुक्त वाक्य-संकटों ने उसे हर तरह से घेरा, किन्तु वह निराश नहीं हुआ।
  • मिश्र वाक्य-यद्यपि वह हर तरह के संकटों से घिरा था, तथापि निराशा नहीं हुआ।

वाक्यपरिवर्तन करते समय एक बात खास तौर से ध्यान में रखनी चाहिए कि वाक्य का मूल अर्थ किसी भी हालत में विकृत न हो। यहाँ कुछ और उदाहरण देकर विषय को स्पष्ट किया।

(क) सरल वाक्य से मिश्र वाक्य

सरल वाक्य-उसने अपने मित्र का पुस्तकालय खरीदा।
मिश्र वाक्य-उसने उस पुस्तकालय को खरीदा, जो उसके मित्र का था।
सरल वाक्य-अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं।
मिश्र वाक्य-जो लड़के अच्छे होते हैं, वे परिश्रमी होते हैं।
सरल वाक्य-लोकप्रिय कवि का सम्मान सभी करते हैं।
मिश्र वाक्य-जो कवि लोकप्रिय होता है, उसका सम्मान सभी करते हैं।

(ख) सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य

सरल वाक्य-अस्वस्थ रहने के कारण वह परीक्षा में सफल न हो सका।
संयुक्त वाक्य-वह अस्वस्थ था और इसीलिए परीक्षा में सफल न हो सका।
सरल वाक्य-सूर्योदय होने पर कुहासा जाता रहा।
संयुक्त वाक्य-सूर्योदय हुआ और कुहासा जाता रहा।
सरल वाक्य-गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी।
संयुक्त वाक्य-उसने न केवल गरीब को लूटा, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी।

(ग) मिश्र वाक्य से सरल वाक्य

मिश्र वाक्य-उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ।।
सरल वाक्य-उसने अपने को निर्दोष घोषित किया।
मिश्र वाक्य-मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था।
सरल वाक्य-तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ।
मिश्र वाक्य-जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी।
सरल वाक्य-परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे।

(घ) कर्तृवाचक से कर्मवाचक वाक्य

कर्तृवाचक वाक्य-लड़का रोटी खाता है।
कर्मवाचक वाक्य-लड़के से रोटी खाई जाती है।
कर्तृवाचक वाक्य-तुम व्याकरण पढ़ाते हैं।
कर्मचाचक वाक्य-तुमसे व्याकरण पढ़ाया जाता है।
कर्तृवाचक वाक्य-मोहन गीत गाता है।
कर्मवाचक वाक्य-मोहन से गीत गाया जाता है।

(ङ) विधिवाचक से निषेधवाचक वाक्य

विधिवाचक वाक्य-वह मुझसे बड़ा है।
निषेधवाचक-मैं उससे बड़ा नहीं हूँ।
विधिवाचक वाक्य-अपने देश के लिए हरएक भारतीय आदमी जान देगा।
निषेधवाचक वाक्य-अपने देश के लिए कौन भारतीय अपनी जान न देगा?

(iii) सामान्य वाक्य :
अशुद्धियाँ एवं उनके संशोधन
वाक्यरचना के कुछ सामान्य नियम-वाक्य को सुव्यवस्थित और संयत रूप देने को व्याकरण में ‘पदक्रम’ कहते हैं। निर्दोष वाक्य लिखने के कुछ नियम है। इनकी सहायता से शुद्ध वाक्य लिखने का प्रयास किया जा सकता है। सुन्दर वाक्यों की रचना के लिए-

(क) क्रम (order),
(ख) अन्वय (co-ordination) और
(ग) प्रयोग (use) से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है।

कुछ आवश्यक निर्देश

  1. एक वाक्य से एक ही भाव प्रकट हो।
  2. शब्दों का प्रयोग करते समय व्याकरण-सम्बन्धी नियमों का पालन हो।
  3. वाक्यरचना से अधूरे वाक्यों को नहीं रखा जाये।
  4. वाक्य-योजना में स्पष्टता और प्रयुक्त शब्दों में शैली-सम्बन्धी शिष्टता हो।
  5. वाक्य में शब्दों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हो। तात्पर्य यह कि वाक्य में सभी शब्दों का प्रयोग एक ही काल में, एक ही स्थान में और एक ही साथ होना चाहिए।
  6. वाक्य में ध्वनि और अर्थ की संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
  7. वाक्य में व्यर्थ शब्द न आने पाये।।
  8. वाक्य-योजना में आवश्यकतानुसार जहाँ-तहाँ मुहावरों और कहावतों का भी प्रयोग हो।
  9. वाक्य में एक ही व्यक्ति या वस्तु के लिए कहीं ‘यह’ और कहीं ‘वह’, कहीं ‘आप’ और कहीं ‘तुम’, कहीं ‘इसे’ और कहीं ‘इन्हें’, कहीं ‘उसे’ और कहीं ‘उन्हें’, कहीं ‘उसका’ और कहीं ‘उनका’, कहीं ‘इनका’ और कहीं ‘इसका’ प्रयोग नहीं होना चाहिए।
  10. वाक्य में पुनरुक्तिदोष नहीं होना चाहिए। शब्दों के प्रयोग में औचित्य पर ध्यान देना चाहिए।
  11. वाक्य में अप्रचलित शब्दों का व्यवहार नहीं होना चाहिए।
  12. परोक्ष कथन (Indirect narration) हिन्दी भाषा की प्रवृत्ति के अनुकूल नहीं है। यह वाक्य अशुद्ध है-उसने कहा कि उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसमें ‘उसे’ के स्थान पर ‘मुझे’ होना चाहिए।

वाक्यों की अशुद्धियाँ



9 शेक्सपियर के नाट्य-दृश्यों का प्रयोग होना चाहिए। – शेक्सपियर के नाटकों का अभिनय होना चाहिए।
10. मैं गाने की कसरत कर रहा हूँ। – मैं गाने का रियाज या अभ्यास कर रहा हूँ।
11. वह गीत की दो-चार लड़ियाँ गाती है। – वह गीत की दो-चार कड़ियाँ गाती हैं।
12. हमारी सौभाग्यवती कन्या का विवाह होने जा रहा है। – हमारी आयुष्मती कन्या का विवाह होने जा रहा है। (विवाह के बाद ही कन्या ‘सौभाग्यवती’ होती है, पहले नहीं।)
13. वहाँ भारी-भरकम भीड़ जमा थी। – वहाँ भारी भीड़ लगी थी।
14. शोक है कि आपने मेरे पत्रों का कोई उत्तर नहीं दिया। – खेद है कि आपने मेरे पत्रों का कोई उत्तर नहीं दिया।
15. साहित्य और जीवन का घोर सम्बन्ध है। – साहित्य और जीवन का अभिन्न संबंध है।
16. आपका पत्र सधन्यवाद या धन्यवाद- सहित मिला। – आपका पत्र मिला। धन्यवाद।
(‘धन्यवाद’ के अशुद्ध प्रयोगवाले वाक्य का अर्थ हो जायेगा-पत्र तो मिला ही, साथ में धन्यवाद भी मिला।)
17. पति-पत्नी के झगड़े का हेतु क्या हो सकता है? – पति-पत्नी में झगड़े का कारण क्या हो सकता है?
(‘हेतु’ विशिष्ट अर्थ में और ‘कारण’ साधारण अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘हेतु’ का मुख्य अर्थ है-वह उद्देश्य जिससे कोई कार्य किया जाय।)
18. लड़का मिठाई लेकर भागता हुआ घर आया। – लड़का मिठाई लेकर दौड़ता हुआ घर आया।
(‘भागना’ भय या आशंका के कारण और ‘दौड़ना’ साधारण अर्थ में लिया जाता है।)
19. वर्तमान महासमर विश्व की सर्वप्रमुख समस्या है। – वर्तमान महासमर संसार की सबसे बड़ी समस्या
(अंगरेजी में जो अर्थ world और universe का है, उन्हीं अर्थों से क्रमशः ‘संसार’ और ‘विश्व’ का प्रयोग होता है।)
20. इस समय आपकी आयु चालीस वर्ष की है। – इस समय आपकी अवस्था चालीस वर्ष है।
(‘आयु’ समस्त जीवन-काल और ‘अवस्था’ साधारण ‘वय’ या ‘उम्र’ को कहते हैं।)

21. उसकी पत्नी बड़ी लजीज है। – पुलाव बहुत लजीज है।
(‘सिर्फ खाने-पीने की चीजें ही ‘लजीज’ हो सकती हैं।)
22. एक प्रलयी प्रचण्ड हुंकार हुआ। – एक प्रलयंकर हुंकार हुआ।
(प्रलय का विशेषण ‘प्रलयंकार’ है प्रलयी नहीं।)
23. मेरा नाम श्री आनन्दकुमारजी है। – मेरा नाम आनन्दकुमार है।
(अपने नाम के पहले और अन्त में क्रमशः ‘श्री’ और ‘जी’ लगाना अहंकार और शिष्टाचारहीनता का परिचय देना है।)
24. मैं इसका वह अर्थ नहीं लगाता, जो कि आप लगाते हैं। – मैं इसका एक अर्थ नहीं लगाता जो आप लगाते हैं।
(यहाँ ‘प्रकार का’ अपप्रयोग है। अतः, यहाँ ‘अधिकपदत्व’ दोष आता है।)
25. अभंग एक प्रकार का मराठी छन्द होता हैं। – अभंग एक मराठी छन्द है।
(यहाँ ‘प्रकार का’ अपप्रयोग है। अतः, यहाँ ‘अधिकपदत्व’ दोष्ज्ञ है।)
26. उनकी अपनी प्रखर बुद्धिशक्ति उनके हर काम में प्रकट होती है। – उनके हर काम में प्रखर बुद्धिशक्ति प्रकट होती है।
(सोचने का काम पराये मन से नहीं होता। अतः ‘अपनी’ शब्द अनावश्यक है।)
27. दो वर्षों के बीच भारत और ब्रिटेन के बीच कटुता-उत्पन्न हो गयी। – दो वर्षों के बीच भारत और ब्रिटेन में कटुता उत्पन्न हो गयी।
(यहाँ ‘बीच’ शब्द की द्विरुक्ति के कारण ‘कथितपदत्व’-दोष आ गया है।)
28. उस वन में प्रात:काल के समय बहुत ही सुहावना दृश्य होता था। – उस वन में प्रात:काल का दृश्य बहुत ही सुहावना होता था।
(वाक्य में एक ही अर्थ या भाव सूचित करनेवाले दो शब्द प्रयुक्त नहीं होने चाहिए। यहाँ ‘प्रात:काल’ और ‘समय’ का प्रयोग दोषपूर्ण है। अतः, यहाँ भी कथितपदत्व-दोष है। नीचे कुछ
और उदाहरण दिये गये हैं।)
29. आपका भवदीय। – आपका या भवदीय।
30. आजकल वहाँ काफी सरगर्मी दृष्टिगोचर हो रही है। – आजकल वहाँ काफी सरगर्मी दिखायी देती है।
(‘सरगर्मी’ के साथ ‘दृष्टिगोचर’ का प्रयोग भाषा के नाते बेमेल है।)

31. वकीलों ने कागजात का निरीक्षण किया। – वकीलों ने कागजों की जाँच की।
(यहाँ भी ‘कागजात’ और ‘निरीक्षण’ का बेमेल प्रयोग है।)
32. ऐसे चित्रों में से किसी व्यक्ति या घटना के दृश्य या रूप का ही अंकन प्रधान होता है। – किसी व्यक्ति या घटना के रूप या दृश्य का अंकन ही ऐसे चित्रों में प्रधान होता है।
(अशुद्ध वाक्य में पदों का क्रम शिथिल है 1)
33. वहाँ बहुत-से पशु और पक्षी उड़ते और चरते हुए दिखायी दिये। – वहाँ बहुत-से पशु और पक्षी चरते और उड़ते दिखायी दिये।।
(अशुद्ध वाक्य में पशु और पक्षी के क्रम में क्रियाएँ नहीं आयीं.।)
34. यह चित्र श्री शारदाजी जब नागौर पधारे थे उस समय लिया गया था। – यह चित्र उस समय लिया गया था, जब श्री शास्दाजी नागौर पधारे थे।
(अशुद्ध वाक्य में उपवाक्य अंगरेजी ढंग पर है हिन्दी ढंग पर नहीं।)
35. नारायण, जिसे छह महीने की सजा हुई थी की अपील मंजूर की गयी। – छह महीने की सजा पानेवाले नारायण की अपील मंजूर हो गयी।
(अशुद्ध वाक्य में ‘की’ विभक्ति यथास्थान प्रयुक्त नहीं है। इसे ‘अक्रमत्वदोष’ कहते हैं)
36. उसने ‘निवेदिता’ शीर्षक कविता लिखी गई थी, खड़ी बोली की। – उसने खड़ी बोली में ‘निवेदिता’ शीर्षक कविता लिखी थी।
37. भारतीयों को चाहिए कि वे अपने बच्चों को बताएँ कि भारत उनका है। अशुद्ध अंगरेजी का ‘परोक्ष कथन’ है। – भारतीयों को चाहिए कि अपने बच्चों को बताएँ कि भारत हमारा है। यह अन्धानुकरण, हिन्दी में ठीक नहीं।)
38. मैं अपनी बात का स्पष्टीकरण करने के लिए तैयार हूँ। – मैं अपनी बात के स्पष्टीकरण के लिए तैयार है
(अशुद्ध वाक्य में ‘करना क्रिया का वाचक ‘करणे माल से ही मौजूद है। साधारण वाक्य में दो-दो क्रियावाचक पदों का प्रयोग नहीं होता।).
39. यह काम आप पर निर्भर करता है। – यह कामे आप पर निर्भर है।
(‘निर्भर’ के साथ ‘करना’ क्रिया का प्रयोग दोषपूर्णः है।)
40. मैं आपकी भक्ति या श्रद्धा करता हूँ। – मैं आप पर श्रद्धा (या भक्ति) रखता हूँ।
(श्रद्धा, भक्ति आदि के साथ ‘करना’ क्रिया नहीं खपती।)

Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण वाक्य और उपवाक्य 2

Bihar Board Class 12th Hindi व्याकरण वाक्य और उपवाक्य 3

57. थोड़ी देर बाद वह वापस लौट आये। – थोड़ी देर बाद वे लौट आये। या, थोड़ी देर बाद वे वापस आये।
58. प्रधानाध्यापक लड़के चुनेंगे। – प्रधानाध्यापक लड़कों का चुनाव करेंगे।
59. मैं हल करने की तलाश में हूँ। – मैं इस सवाल के हल की तलाश में हूँ।
60. तब शायद यह काम जरूर हो जायेगा। – तब यह काम जरूर हो जायेगा।
(‘शायद’ और ‘जरूर’ का प्रयोग एक साथ नहीं होता।)
61. प्रायः ऐसे अवसर आते हैं, जिसमें लोगों को कभी-कभी अपना मत बदलना पड़ता – प्रायः ऐसे अवसर आते हैं जबकि लोगों को अपना मत बदलना पड़ता है।
(‘प्रायः’ के साथ ‘कभी-कभी’ का प्रयोग अनुचित है। दोनों विरोधी अव्यय हैं।)

(iv) समानार्थक वाक्यों का अर्थभेद

हिन्दी की वाक्यरचना कभी-कभी विशेष चमत्कार उत्पन्न करती है। कुछ ऐसे वाक्यों का प्रयोग होता है, जो ऊपर से तो समानार्थक लगते हैं दोनों में कोई खास अन्तर नहीं दीखता, किन्तु थोड़ी गम्भीरता से विचार करने पर उनमें सूक्ष्म अर्थभेद प्रकट होता है। यहाँ कुछ ऐसे ही समानार्थक वाक्यों के उदाहरण और उनके अर्थभेद दिये जा रहे हैं-




(v) वाक्य-विश्लेषण

किसी वाक्य के सभी अंगों को अलग-अलग कर उसके पारस्परिक सम्बन्ध दिखाने की क्रिया को वाक्यविश्लेषण कहते हैं। हिन्दी व्याकरण में वाक्यविग्रह को ‘वाक्यविग्रह’, ‘वाक्यविभाजन’ और ‘वाक्यपृथकरण’ भी कहते हैं। इसमें तीन काम करने पड़े हैं-1. वाक्य के उपवाक्यों को अलग किया जाता है, 2. उपवाक्यों का नामरकण होता है; 3. अन्त में पूरे वाक्य का नामकरण होता है। ‘उपवाक्य’ किसी वाक्य का एक अंश होता है। इसमें कर्ता और क्रिया का होना आवश्यक है। जैसे-प्रदीप कल स्कूल नहीं गया; क्योंकि वह बीमार था। इस वाक्य में दो उपवाक्य है-‘प्रदीप कल स्कूल नहीं गया’ और ‘क्योंकि वह बीमार था।’ कभी-कभी वाक्य में कर्ता छिपा रहता है और कभी क्रिया छिपी रहती है।

रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के हैं-

  • सरल वाक्य,
  • मिश्र वाक्य और
  • संयुक्त वाक्य।

इस प्रकार के वाक्यों का विग्रह अलग-अलग ढंग से होता है। सरल वाक्य में उद्देश्य और उद्देश्य का विस्तार एवं विधेयं और उसका वितार बताना चाहिए। यदि मिश्र वाक्य हो तो प्रधान वाक्य (Principal Clause) और उसके सभी उपवाक्यों को बताकर सरल वाक्य की तरह ही सबका विग्रह करना चाहिए। संयुक्त वाक्य में प्रत्येक वाक्य को अलग-अलग कर उपर्युक्त रीति से ही वाक्य-विश्लेषण करना चाहिए।

वाक्यविग्रह के दो प्रकार सामान्यतः वाक्यविश्लेषण दो तरह से होता है। वाक्य के सभी अंगों को या तो ‘तालिका’ बनाकर, उद्देश्य और विधेय के अधीन रखकर दिखाया जाता है या केवल उपवाक्यों को अलग-अलग कर उनके पारस्परिक सम्बन्ध बताये जाते हैं। सामान्यतः सरल वाक्यों का विश्लेषण पहले ढंग से और अन्य प्रकार के वाक्यों का विश्लेषण दूसरे ढंग से होता है।

सरल वाक्य का विश्लेषण-इसमें वाक्य का उद्देश्य, उद्देश्य का विस्तार, विधेय और उसका विस्तार बताये जाते हैं। यदि विधेय सकर्मक है तो उसका कर्म और उसका विस्तार भी दिखाना पड़ता है। निम्नांकित तालिका में एक साधारण वाक्य का विग्रह दिखाया गया है-

सरल वाक्य-भारत के राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रधर्मविषयक भाषण करेंगे।


उदाहरण के लिए यहाँ अन्य दो वाक्यों का विग्रह किया जाता है सरल वाक्य-

  • मोहन का भाई मेरी पुस्तक धीर-धीरे पढ़ता है।
  • मोहन का बड़ा भाई सोहन महाभारत की कथाएँ पढ़ता है।


यहाँ याद रखना चाहिए कि सरल वाक्य से एक उद्देश्य और विधेय का होना बहुत जरूरी है। ये उद्देश्य और विधेय अपने विस्तार के साथ भी रह सकते हैं।

उपरिमुद्रित सरल वाक्यों का विश्लेषण निम्नांकित ढंग से भी किया जा सकता है-
भाई-उद्देश्य (कर्ता) पुस्तक-कर्म पढ़ता है–क्रिया

मोहन का उद्देश्य का विस्तार मेरी-कर्म का विस्तार धीरे-धीरे-क्रिया का विस्तार उद्देश्य के विभिन्न रूप सरल वाक्यों में उद्देश्य और विधेय की पहचान आसानी से करने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए। इन वाक्यों में उद्देश्य (कर्ता) अनेक रूपों में आते हैं। जैसे-

  • संज्ञा-श्याम हँसता है।
  • सर्वनाम-मैं खाता हूँ।
  • विशेषण-गरीब आदमी दुःख पाता है।
  • क्रियार्थक संज्ञा-नाचना लाभदायक है।
  • वाक्यांश-आपकी परीक्षा लेना अनुचित होगा।
  • वाक्य-क्रान्ति चिरंजीवी हो, यह हमारा नारा है।

उद्देश्य का विस्तार-उद्देश्य का विस्तार भिन्न-भिन्न रूपों के विशेषणों से किया जाता है। कुछ उदाहरण इस प्रकार है

  • विशेषण-सुशील बालक बैठा है।
  • सार्वनामिक विशेषण-वह बालक बैठा है।
  • सम्बन्धकारक-माँ का लड़का कहाँ गया?
  • वाक्यांश-प्रकृति की गोद में खेलता बालक बड़ा मोहक है।
  • विधेय का विस्तार-विधेय का विस्तार निम्नलिखित स्थितियों में होता है
  • कारक से-तीर से मारा।
  • क्रियाविशेषण से जल्दी-जल्दी चलता है।।
  • वाक्यांश-राम पांच बजे के बाद ही घर पहुँचता है।
  • पूर्वकालिक क्रिया से–वह हँसकर विदा हुआ।
  • क्रियाद्योतक से-मोटर पों-पों करती हुई निकल गयी।

मिश्र वाक्य का विश्लेषण-जिस वाक्यरचना में एक से अधिक सरल वाक्य हों और उनमें एक प्रधान हो और शेष उसके आश्रित हों उसे ‘मिश्र वाक्य’ कहते हैं। इस प्रकार के वाक्य में एक प्रधान वाक्य’ रहता है और शेष वाक्यांश जिन्हें ‘-आश्रित उपवाक्य’ कहते हैं उसपर आश्रित होते हैं : जब वाक्य पूरे वाक्य से अलग अर्थ को खण्डित किये बिना लिखा जाये तब वह ‘प्रधान उपवाक्य होता है। ये दूसरे उपवाक्यों पर आश्रित है। ऐसे वाक्यों का आरम्भ कि, ताकि, जिससे, जो, जितना, ज्योंही, ज्यों-ज्यों, चूँकि, क्योंकि यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि से होता है।

आश्रित उपवाक्य (Subordinate Clause) तीन प्रकार के होते हैं-

  • संज्ञा-उपवाक्य,
  • विशेषण-उपवाक्य और
  • क्रियाविशेषण उपवाक्य।

नीचे मिश्र वाक्य का एक उदाहरण विग्रहसहित दिया जाता है-

मिश्र वाक्य-जो व्यक्ति महान् हो चुके हैं उनके जीवन की दिनचर्या और रहन-सहन से पता चलता है कि उनका जीवन सादगी से व्यतीत होता था।

यहाँ निम्नलिखित उपचादय (Clause) हैं-
(क) उनके जीवन की दिनचर्या तथा रहन-सहन से पता चलता है-मुख्य उपवाक्य (Principal Clause)
(ख) जो व्यक्ति महान् हो चुके हैं-विशेषण उपवाक्य। (‘क’ में प्रयुक्त “उनके’ सर्वनाम की विशेषता बतलाता है।)
(ग) कि उनका जीवन सादगी से व्यतीत होता था-संज्ञा उपवाक्य।
(‘क’ में प्रयुकत ‘पता’ संज्ञा का समानाधिकरण है।)

संयुक्त वाक्य का विग्रह-जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अव्यय द्वारा होता है उसे ‘संयुक्त वाक्य’ (Compound Sentence) कहते हैं। एक-दो उदाहरण इस प्रकार है-

उदाहरण-
1. रात हुई और तारे निकले।

इसमें दो सरल वाक्यों का प्रयोग हुआ है ! इन दोनों को संयुक्त करनेवाला संयोजक अव्यय ‘और’ है। पहला वाक्य- रात हुई’ मुख्य वाक्य है और दूसरा वाक्य उससे सम्बद्ध है। यदि ‘और’ को हटा दिया जाय तो दोनों वाक्य अपने में पूर्ण स्वतन्त्र हो जायेंगे। दोनों वाक्यों का विग्रह सरल वाक्य के विग्रह के अनुसार करना चाहिए।

वाक्य 2. तुमने इस. बार अधिक परिश्रम किया है, इसलिए सफलता की अधिक आशा है। परन्तु मनुष्य के भाग्य का निर्णय ईश्वर के अधीन है।
(क) तुमने इस बार अधिक परिश्रम किया है-मुख्य वाक्य।
(ख) इसलिए सफलता की अधिक आशा है-‘क’ का समानाधिकरण वाक्य।
(ग) परन्तु मनुष्य के भाग्य का निर्णय ईश्वर के अधीन है-‘क’ का समानाधिकरण वाक्य।

संयोजक-इसलिए, परन्तु।
यहाँ तीन सरल वाक्यों का व्यवहार हुआ है, जिन्हें संयुक्त करनेवाले दो संयोजक अव्यय हैं-‘इसलिए’ और ‘परन्तु’। इनके बिना रक्त वाक्यों का सम्बन्ध टूट जायेगा।

पदबन्ध
डॉ. हरदेव बाहरी ने ‘पदबन्ध’ की परिभाषा इस प्रकार दी है-वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक से अधिक पद परस्पर सम्बद्ध होकर अर्थ तो देते हैं, किन्तु पूरा अर्थ नहीं देते-पदबन्ध या वाक्यांश कहते हैं। इस प्रकार रचना की दृष्टि से पदबन्ध में तीन बातें आवश्यक है-एक तो यह कि इसमें एक से अधिक पद होते हैं। दूसरे, ये पद इस तरह से सम्बद्ध होते हैं कि उनसे एक इकाई बन जाती है। तीसरे, पदबन्ध किसी वाक्य का अंश होता है। शब्द-भेदों की तरह इसके आठ प्रकार माने गये हैं। यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि पदबन्ध का शब्दक्रम निश्चित होता है।

पदबन्ध के. कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
संज्ञा-पदबन्ध-वाक्य में संज्ञा का काम करनेवाला पदसमूह :

इतने धनी-मानी व्यक्ति, भारत के प्रधानमंत्री, गोली से घायल बच्चे, रात को पहरा देनेवाला, मिट्टी का तेल इत्यादि।

विशेषण-पदबन्ध-किसी संज्ञा की विशेषता बतानेवाला पदसमूह :
नाली में बहता हुआ (पानी), चाँद से भी प्यारा (मुखड़ा), शेर के समान बलवान् (आदमी), एक किलोभर (आटा), गज-दो गज (रस्सी), कुल चार (आदमी), ध्यान में मग्न (साधक), काम में लगा हुआ (आदमी) इत्यादि।

सर्वनाम-पदबन्ध-सर्वनाम का काम देनेवाला पदसमूह :
मुझ अभागे ने, दैव का मारा वह।

क्रिया-पदबन्ध-क्रिया का काम देनेवाला पदसमूह :
लौटकर कहने लगा, जाता रहता था, कहा जा सकता है इत्यादि।

क्रियाविशेषण-पदबन्ध-क्रियाविशेषण का काम करनेवाला पदसमूह :
घर से होकर (जाऊँगा), पहले से बहुत धीरे (बोलनेवाला), जमीन पर लौटते हुए (चिल्लाया), दोपहर ढले, किसी-न-किसी तरह इत्यादि।

पदबन्ध और उपवाक्य में अन्तर है। उपवाक्य (clause) भी पदबन्ध (phrase) की तरह पदों का समूह है, लेकिन इससे केवल आंशिक भाव प्रकट होता है, पूरा नहीं। पदबन्ध में क्रिया नहीं होती, उपवाक्य में क्रिया रहती है; जैसे-‘ज्योंही वह आया, त्योंही मैं चला गया।’ यहाँ ‘ज्योंही . वह आया’ एक उपवाक्य है, जिससे पूर्ण अर्थ की प्रतीति नहीं होती।

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