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 bihar board class 9 science notes | हमारे आस-पास के पदार्थ

bihar board class 9 science notes | हमारे आस-पास के पदार्थ

हमारे आस-पास के पदार्थ
                                  पाठ के आधार बिन्दु
1. पदार्थ-वस्तुओं के निर्माण में उपयोगी कणों के वैसे समूह को पदार्थ कहते हैं जो दर्शनीय
जड़त्व गुणवाले, भारयुक्त, स्थान घेरने वाले होते हैं।
2. विसरण-दो भिन्न पदार्थों के कणों का एक-दूसरे के साथ अन्त:मिश्रित हो जाने की
क्रिया विसरण कहलाती है जिसकी गति तापमान बढ़ने पर बढ़ जाती है।
3. वाष्पीकरण ऊष्मा पाकर किसी द्रव को गैसीय अवस्था में बदलने की प्रक्रिया को
वाष्पीकरण कहते हैं।
4. अन्तराण्विक दूरी-किसी पदार्थ के कणों के बीच की दूरी अर्थात् रिक्त स्थानों की माप
को अन्तराण्विक दूरी कहते हैं।
5. अन्तराण्विक बल-किसी पदार्थ के कणों के बीच क्रियाशील आकर्षण बल को
अन्तराण्विक बल कहा जाता है।
6. पदार्थ की अवस्थाएँ–पदार्थ दृढ़ता, तरलता, संपीड्यता, प्रत्यास्थता आदि गुणों के
आधार पर आयतन और आकार आदि को प्रभावित करते हुए ठोस, द्रव और गैस जैसी तीनों
अवस्थाओं में से किसी एक अवस्था में रहते हैं। बर्फ (ठोस), तरल (द्रव) तथा भाप (गैस)
एक ही पदार्थ की तीन अवस्थाएंँ हैं।
                                       पाठ का प्रायोगिक अध्ययन
क्रियाकलाप 1.1(पृष्ठ-1)
● एक 100 मि. ली. का बीकर लें। इस बीकर को जल से आधा भरकर जल के स्तर पर
निशान लगा दें।
● दिए गए नमक या शर्करा को काँच की छड़ की मदद से जल में घोल दें।
● जल के स्तर में आए बदलाव पर ध्यान दें।
प्रश्न-
● आपके अनुसार, नमक या शर्करा का क्या हुआ?
● ये कहाँ गायब हो गए?
● क्या जल के स्तर में कोई बदलाव आया?
समाधान-नमक या शर्करा अत्यन्त सूक्ष्म कणों में टूटकर जल के कणों के बीच वाले रिक्त
स्थानों में समा गए। फलत: विलयन बन जाने पर जल के स्तर में कोई बदलाव नहीं आया।
                            क्रियाकलाप 1.2
● पोटैशियम परमैंगनेट के दो या तीन क्रिस्टल को 100 मि. ली. पानी में घोल लें।
● इस घोल में से लगभग 10 मि. ली. घोल निकालकर उसे 90 मि. ली. जल में मिला दें।
● फिर इस उपरोक्त घोल में से 10 मि. ली निकालकर उसे भी 90 मि. ली. जल में मिला दें।
● इसी प्रकार इस घोल को 5 से 8 बार तक तनुकृत करते रहें।
प्रश्न-
क्या जल अब भी रंगीन है?
चित्र-प्रत्येक बार तनुकृत करने पर घोल का रंग हल्का होता जाता है,
फिर भी पानी रंगीन नजर आता है।
समाधान—पदार्थ (पोटैशियम परमैंगनेट) के क्रिस्टल में अति सूक्ष्म कणों में टूटने की क्षमता
होती है जो सीमाबद्ध होती है। इसी कारण रंगीन विलयन तनुकृत होकर भी रंगीन बना रहता है।
निष्कर्ष-(i) पदार्थ अति सूक्ष्म कणों का समूह होता है।
(ii) जल मिलाने पर विलयन तनुकृत हो जाता है।
(iii) पदार्थों के कणों के बीच खाली स्थान होता है।
                                क्रियाकलाप 1.3
● अपनी कक्षा के किसी कोने में एक बुझी हुई अगरबत्ती रख दें। इसकी सुगंध लेने के लिए
आपको इसके कितने समीप जाना पड़ता है?
● अब अगरबत्ती जला दें। क्या होता है? क्या दूर से ही इसकी सुगंध आपको मिलती है ?
● अपने प्रेक्षण को नोट करें।
प्रश्न
● तब जब अगरबत्ती नहीं जल रही हो, इसकी गंध पाने के लिए आपको इसके
कितने नजदीक जाना पड़ता है?
● अगरबत्ती जलाने पर क्या होता है? क्या कुछ दूरी पर बैठे-बैठे आपको इसकी
गंध मिल जाती है?
● इस प्रक्रिया का नाम बताइए। इस प्रक्रिया में वृद्धि कब देखी जाती है?
समाधान-विभिन्न पदार्थों के कण स्वतः एक-दूसरे में घुल-मिल जाते हैं जिसे विसरण
कहते हैं। किसी भी पदार्थ के कण सर्वदा गतिशील होते हैं जिसे तापमान बढ़ाकर तेज किया जा
सकता है। बुझी हुई अगरबत्ती के कणों में इतनी गति नहीं होती कि वह दूर तक पहुंचकर अपनी
गंध दे सके। गर्म करने पर (जलाने पर) विसरण की गति बढ़ जाती है जिससे अगरबत्ती को
गंध दूर बैठे व्यक्ति तक पहुंँच जाती है।
                                     क्रियाकलाप 1.4
● जल से भरे दो गिलास या दो बीकर लें।
● पहले बीकर के एक सिरे पर सावधानी से एक बूंद लाल या नीली स्याही डाल दें और दूसरे
में शहद डाल दें।
● इनको अपने घर में या कक्षा के एक कोने में रख दें।
● अपने प्रेक्षण को नोट करें।
प्रश्न-
● स्याही की बूंँद पानी में डालने के तुरंत बाद आपने क्या देखा?
● शहद की बूंँद डालने के तुरंत बाद आपने क्या देखा?
● स्याही का रंग पूरे जल में एक समान रूप से फैलने में कितने दिन या घंटे लगते हैं?
समाधान–स्याही की तुलना में मधु का घनत्व अधिक होता है। मधु के कण देर से टूटते
हैं। फलतः स्याही के कण पानी के साथ जल्दी घुल-मिल जाते हैं जबकि मधु के कण कुछ क्षणों
के लिए नीचे जमा हो जाते हैं।
स्याही को रंग पूरे जल में एक समान रूप से फैलने में मिनट दो मिनट लगते हैं।
                                   क्रियाकलाप 1.5
● एक गिलास गर्म पानी से और दूसरा ठंडे पानी से भरे गिलास में कॉपर सल्फेट या पोटैशियम
परमैंगनेट का एक क्रिस्टल डालें और एक ओर रख दें। हिलाएँ नहीं।
● क्रिस्टल को सतह पर बैठने दें।
प्रश्न-
● गिलास में ठोस क्रिस्टल के ठीक ऊपर क्या दिखाई देता है?
● समय बीतने पर क्या होता है?
● इससे ठोस और द्रव के कणों के बारे में क्या पता चलता है?
● क्या तापमान के साथ मिश्रित होने की दर बदलती है? क्यों और कैसे?
समाधान–(i) बीकर में रखे जल में डाले गये क्रिस्टल पेंदी पर बैठकर गुलाबी रंग की लकीर
के रूप में ऊपर उठकर पानी को रंगीन बनाने लगते हैं।
(ii) समय बीतने पर पानी का रंग बढ़ता जाता है। धीरे-धीरे पानी का पूरा भाग रंगीन हो
जाता है।
(iii) द्रव (जल) के कणों के बीच वाले रिक्त स्थानों में ठोस के सूक्ष्म कणों का समावेश
होता हुआ पाया जाता है। अर्थात् द्रव के कण अन्तराण्विक दूरी बनाये रखते हैं जिसमें ठोस के
कण समावेशित होकर कुछ समय में विसरित हो जाते हैं।
(iv) तापमान बढ़ने से अन्तराण्विक दूरी बढ़ती है जबकि अन्तराण्विक बल कमजोर पड़ता
जाता है। फलत: गर्म करने पर विसरण तेज हो जाता है। अर्थात् तापमान के साथ मिश्रित होने
की दर बदलती है।
निष्कर्ष–उपर्युक्त तीनों क्रियाकलापों (1.3,1.4 और 1.5) से हम निम्नलिखित निष्कर्ष
निकाल सकते हैं-
(i) पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं।
(ii) तापमान बढ़ने से कणों की गतिज ऊर्जा भी बढ़ जाती है।
(iii) दो पदार्थों के स्वतः दिशा में (विसरण) के क्रम में तापमान का सीधा प्रभाव पड़ता
है।
                                      क्रियाकलाप 1.6 (पृष्ठ-3)
● इस खेल को एक मैदान में खेलें। आगे बताए गए ढंग से चार समूह बनाकर मानव-श्रृंखला
बनाएँ :
● पहला समूह ‘बीहू नर्तकों’ की तरह एक-दूसरे को पीछे से कसकर पकड़ ले।
● दूसरा समूह एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मानव-श्रृंखला बना ले।
● तीसरा समूह केवल उंगली के सिरे से छूकर एक श्रृंखला बना ले।
● अब चौथा समूह उपर्युक्त वर्णित तीनों मानव श्रृंखलाओं को तोड़कर छोटे समूहों में बाँटने
का प्रयास करे।
प्रश्न-
● किस समूह को तोड़ना आसान था? और क्यों ?
● यदि हम प्रत्येक विद्यार्थी को पदार्थ का एक कण मानें, तो किस समूह के कणों ने एक-दूसरे
को सबसे अधिक बल से पकड़ रखा था?
समाधान-(i) तीसरे समूह के विद्यार्थियों को तोड़ना आसान था क्योंकि उनमें परस्पर
आकर्षण बल का अभाव था। अधिक दूरी और कमजोर पकड़ के कारण ऊंगली के सिरे से
छूकर बनाई गई श्रृंखला को तोड़ना आसान था।
(ii) अन्तराण्विक दूरी घटने से अन्तराण्विक बल मजबूत होता है। प्रथम समूह के विद्यार्थी
एक-दूसरे को पीछे से कसकर पकड़ने के कारण सबसे अधिक बल से पकड़ा हुआ जाना जाता है।
                               क्रियाकलाप 1.7 (पृष्ठ-3-4)
● एक लोहे की कील, एक चॉक का टुकड़ा और एक रबड़ बैंड लें।
● इन पर हथौड़ा मारकर, काटकर या खींचकर उसे भंगुर करने का प्रयास करें।
प्रश्न-
● इन तीनों में से किसके कण अधिक बल से एक-दूसरे से जुड़े हैं ?
समाधान-कणों के बीच की अन्तराण्विक दूरी कम रहने के कारण लोहे की कील के कण
सर्वाधिक अन्तराण्विक बल लगकर कणों के पारस्परिक आकर्षण बल को बढ़ा देते हैं। अर्थात्
लोहे की कील के कण अधिक बल से एक-दूसरे से जुड़े हैं।
                                क्रियाकलाप 1.8 (पृष्ठ-4)
● जल का नल खोलकर जल की धारा को अपनी ऊँगली से काटने का प्रयास करें।
प्रश्न-
● क्या जल की धार करती है?
● जल की धार न करने का क्या कारण है?
समाधान–(i) नल से निकलने वाली जल-धारा से होकर अंगुली को पार किया जा सकता
है क्योंकि उसके कणों के बीच कम आकर्षण बल होता है लेकिन वे तुरंत मिल जाने की क्षमता
भी रखते हैं। फलतः जल की धार को खंडित करना संभव नहीं हो पाता है।
(ii) जल की धार के न कटने के कारण उनमें परस्पर जल्दी मिल जाने की क्षमता (श्यानता)
है। वास्तव में यह जल के कणों के बीच क्रियाशील आकर्षण बल का परिणाम है।
निष्कर्ष-(i) अन्तराण्विक दूरी के घटने से अन्तराण्विक बल बढ़ जाता है।
(ii) पदार्थ के कणों का पारस्परिक आकर्षण बल एक साथ रखता है।
                      पाठ्य पुस्तकीय प्रश्नों के उत्तर (पृष्ठ-4)
1. निम्नलिखित में से कौन से पदार्थ हैं-
कुर्सी, वायु, स्नेह, गंध, घृणा, बादाम, विचार, शांत, शीतल पेय, इत्र की सुगंध ।
उत्तर-भार एवं जड़त्व से युक्त सामग्रियों को पदार्थ कह सकते हैं।
जैसे—कुर्सी, वायु, बादाम, शीतल पेय आदि पदार्थ कहलाते हैं।
2. निम्नलिखित प्रेक्षण के कारण बताएंँ-
गर्मा-गरम खाने की गंध कई मीटर दूर से ही आपके पास पहुंँच जाती है लेकिन ठंडे
खाने की महक लेने के लिए आपको उसके पास जाना पड़ता है।
उत्तर-खाने की गंध उसमें संयुक्त कणों पर आधारित है जो वायु के कणों से स्वत: मिलकर
हमारे नाक तक पहुंँच जाती है। ऊंँचे तापमान पर विसरण की गति बढ़ जाने के कारण गरमा-गरम खाने की गंध कई मीटर दूर तक वायु के कणों में समावेशित होते हुए हमारे पास पहुंँच जाती है। परन्तु ठंडे खाने की महक तापमान कम होने के कारण विसरित नहीं हो पाती है। फलतः महक लेने के लिए हमें उसके पास जाना पड़ता है।
3. स्वीमिंग पूल में गोताखोर पानी काट पाता है। इससे पदार्थ का कौन-सा गुण प्रेक्षित
होता है?
उत्तर-जल के कणों के लिए अन्तराण्विक दूरी अधिक लेकिन अन्तराण्विक बल कमजोर
होता है। फलतः गोताखोर जल के कणों को आसानी से बिखेरते हुए अन्दर पहुंँच जाते हैं । अर्थात् द्रव के कणों के बीच क्रियाशील आकर्षण बल की कमी होती है।
4. पदार्थ के कणों की क्या विशेषताएंँ होती हैं ?
उत्तर-पदार्थ के कणों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं।
(i) पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं। अर्थात् उसमें गतिज ऊर्जा होती है।
(ii) तापमान बढ़ने से कणों की गति (गतिज ऊर्जा) भी बढ़ जाती है।
(iii) पदार्थों के कण स्वतः एक-दूसरे के साथ अन्त:मिश्रित हो जाते हैं।
(iv) पदार्थों के कण दूसरे अन्य कणों के बीच रिक्त स्थानों में समावेशित हो जाते हैं।
(v) गर्म करने पर पदार्थों के कण का विसरण तेज हो जाने के कारण बढ़े हुए रिक्त स्थानों
में सरलता से समावेशित हो जाते हैं।
(vi) पदार्थ के कण एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। (अन्तराण्विक बल)
(vii) अन्तराण्विक बल (पारस्परिक आकर्षण बल) के कारण पदार्थ के कण एक साथ
रहते हैं।
(viii) अन्तराण्विक बल का मान पदार्थों के बदलने से बदल जाता है।
                             क्रियाकलाप 1.9 (पृष्ठ-4)
● निम्नलिखित वस्तुओं को एकत्रित करें-पेन, किताब, सूई और लकड़ी की छड़।
● इन वस्तुओं के चारों ओर पेंसिल घुमाकर इनके आकार का रेखाचित्र बनाएँ।
प्रश्न-
● क्या इन सभी का निश्चित आकार, स्पष्ट सीमाएँ तथा स्थिर आयतन है?
● इन पर हथौड़ा मारने, खींचने या गिराने से क्या होता है ?
● क्या इनका एक-दूसरे में विसरण संभव है ?
● बल लगाकर इनको संपीडित करने का प्रयास करें। क्या इनका संपीडन होता है?
समाधान-मजबूत अन्तराण्विक बल (आकर्षण बल) के कारण पदार्थ के कणों के बीच
रिक्त स्थान न्यूनतम और समूह में बंधे रहने की प्रकृति मजबूत होती है। फलतः पदार्थ ठोस
कहलाते हैं जिनका आकार सदैव नियत रहता है। नगण्य संपीड्यता के कारण ठोस पदार्थ आकार नहीं बदलते हैं। उनका आकार और आयतन दोनों नियत रहता है। बल लगाने पर ये टूट सकते हैं लेकिन आकार नहीं बदलते हैं। लिये गये पदार्थों (पेन, किताब, सूई और लकड़ी की छड़) में से प्रत्येक को ठोस कहा जाता है।
शंकाएँ-
(a) रबर बैंड को क्या माना जाएगा? क्या खींचकर इसका आकार बदला जा सकता है?
क्या यह ठोस है?
(b) विभिन्न आकार के बर्तनों में रखने पर चीनी और नमक उन्हीं बर्तनों के आकार ले
लेते हैं। क्या ये ठोस हैं?
(c) स्पंज क्या है? यह ठोस है लेकिन फिर भी इसका संपीडन संभव है। क्यों?
समाधान–(i) रबर बैण्ड एक मुलायम ठोस है जिसके आकार को बल लगाकर बदला जा
सकता है जो बल के हटते ही पूर्ववत् हो जाता है (प्रत्यास्थता)।
(ii) चूर्ण यानि छोटे-छोटे कणों के रूप वाले नमक या चीनी को रखे जाने वाले परत के
आकार में देखा जा सकता है लेकिन उनके कणों (क्रिस्टल) का आकार नियत होता है।
(iii) स्पंज भी एक कमजोर मुलायम ठोस है जिसके कणों के बीच की दूरी अधिक होती
है। खाली जगहों में हवा भरी होती है जिसे दबाकर निकाला जा सकता है। फलतः बाहरी
बल के प्रयोग के कारण ये संपीडित हो जाते हैं और ये आकार में अस्थायी परिवर्तन दिखा
सकते हैं।
अतः प्रत्यास्थता, संपीड्यता आदि गुणों वाले उन कमजोर प्रतीत होने वाले पदार्थों को ठोस
माना जा सकता है।
                        क्रियाकलाप 1.10 (पृष्ठ-5)
● निम्नलिखित वस्तुओं को एकत्रित करें-
(a) जल, खाना पकाने का तेल, दूध, जूस, शीतल पेय ।
(b) विभिन्न आकार के बर्तन । प्रयोगशाला के एक मापक सिलिंडर की सहायता से इन
बर्तनों में 50 मि. ली. पर निशान लगा लें।
प्रश्न-
● इन द्रवों को फर्श पर डाल देने पर क्या होगा?
● किसी एक द्रव का 50 मि. ली. मापकर विभिन्न बर्तनों में क्रमश: एक-एक करके डालें।
क्या प्रत्येक बार आयतन एक समान रहता है?
● क्या द्रव का आकार एक समान रहता है?
● द्रव को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेलने पर क्या यह आसानी से बहता है?
समाधान-द्रव के कणों के बीच क्रियाशील आकर्षण बल कमजोर होने के कारण द्रव का
आयतन निश्चित लेकिन आकार अनिश्चित होता है। थाली में फैला हुआ द्रव ग्लास में खड़ा हो
जाता है अर्थात् ये संबंधित परत का आकार ले सकते हैं। द्रव में बहने का गुण कमजोर आकर्षण
बल का ही परिणाम है। अन्तराण्विक बल की मजबूती के आधार पर पदार्थों को ठोस (निश्चित
आकार और आयतन), द्रव (निश्चित आयतन अनिश्चित आकार तथा गैस) (आयतन और
आकार दोनों अनिश्चित)।
                                    1.3.3 गैसीय अवस्था
                        क्रियाकलाप-1.11 (पृष्ठ-5)
●100 मि. ली. की तीन सिरिंज लें और उनके सिरे को रबर
के कॉर्क से बंद कर दें, जैसा चित्र में दिखाया गया है।
● सभी सिरिंजों के पिस्टन को हटा लें।
● पहली सिरिंज में हवा रहने दें, दूसरी में जल और तीसरी
में चॉक के टुकड़े भर दें।
● पिस्टन को वापस सिरिंज में लगाएँ। सिरिंज के पिस्टन की
गतिशीलता आसान करने के लिए उस पर थोड़ी वैसलीन
लगा दें।
● अब पिस्टन को सिरिंज में डालकर संपीडित करने की
कोशिश करें।
प्रश्न-
● आपने क्या देखा? किस स्थिति में पिस्टन आसानी से
अंदर चला गया?
● अपने प्रेक्षण से आपने क्या अनुमान लगाया?
समाधान–सिरिंज में क्रमशः हवा (गैस), जल (द्रव) तथा चाँक के टुकड़े (ठोस) रखे
जाने के कारण पिस्टन को दबाने से भिन्न-भिन्न तरह के परिणाम मिलेंगे। वायु वाले पिस्टन को
संपीडित करना आसान होता है। अर्थात् जल संयुक्त सिरिंज में पिस्टन आसानी से अन्दर चला
जाता है। अतः ठोस एवं द्रवों की तुलना में गैसों की संपीडयता काफी अधिक होती है। ऐसा
कमजोर अन्तराण्विक बल के कारण संभव होता है।
अनुमान–(i) गैस के अत्यधिक आयतन को कम आयतन वाले सिलिंडर में संपीडित किया
जा सकता है।
(ii) कणों की तेज गति और अत्यधिक रिक्त स्थानों के कारण गैसों का अन्य गैसों में
विसरण बहुत तीव्रता से होता है।
(iii) गैसीय अवस्था में कणों की गति अनियमित
(i) जल, तेल, दूध, जूस, शीतल पेय आदि नाम
वाले पदार्थ द्रव की अवस्था में होते हैं जिनका आकार
अनिश्चित होता है। फलतः इन्हें फर्श पर डाल देने पर
ये फर्श पर फैल जाएंँगे तथा नीचे की ओर बहने की
स्थिति में आ जाएंँगे।
(ii) 50 मि. ली. दूध या तेल पात्र बदलने से
अधिक या कम नहीं हो पाएगा जबकि वे रखे जाने
वाले परत का आकार भले ही ले लेता है। अर्थात् परत
बदल देने पर
(a) प्रत्येक बार आयतन एक समान रह जाता है।
(b) पात्र के बदलने से द्रव का आकार भी बदल जाता है अर्थात् द्रव का आकार एक समान
नहीं रहता है।
(iii) कमजोर अन्तराण्विक बल के कारण द्रव में बह जाने की प्रवृत्ति होती है जिसके कारण
दूध या तेल से एक बर्तन से दूसरे बर्तन में उड़ेला जा सकता है। ये आसानी से बह सकते हैं।
अत्यधिक तीव्र होती है। इस कारण पात्र की दीवार पर एक आन्तरिक दबाव (बल) महसूस
किया जाता है।
                                पाठ्य पुस्तकीय प्रश्नों के उत्तर (पृष्ठ-6)
1. किसी तत्व के द्रव्यमान प्रति इकाई आयतन को घनत्व कहते हैं।
(घनत्व = द्रव्यमान/आयतन)
बढ़ते हुए घनत्व के क्रम में निम्नलिखित को व्यवस्थित करें-वायु, चिमनी का धुआँ,
शहद, जल, चॉक, रुई और लोहा।
उत्तर-बढ़ते पनत्व के क्रम में पदार्थों को निम्नवत् व्यवस्थित किया जा सकता है।
वायु → चिमनी का धुआँ — रुई→ जल → शहद → चॉक → लोहा ।
2. (a) पदार्थ की विभिन्न अवस्थाओं के गुणों में होने वाले अंतर (विशेषताओं) को
सारणीबद्ध कीजिए।
(b) निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-दढ़ता, संपीड्यता, तरलता, बर्तन में गैस का
भरना, आकार, गतिज ऊर्जा एवं घनत्व ।
उत्तर-(a) पदार्थ की तीन अवस्थाएंँ होती हैं-
(i) ठोस (बर्फ) (ii) द्रव (जल) (ii) गैसें (भाप)
(b) (i) दृढ़ता-दृढ़ता किसी ठोस पदार्थ का वह गुण है जिसके कारण बाह्य बल आरोपित
करने पर भी वह निश्चित सीमा तथा आकार पूर्ववत बनाये रहता है।
(ii) संपीडयता-संपीडयता पदार्थों का (गैस या द्रव) का वह गुण है जो कणों के बीच
खाली जगह होने के कारण उत्पन होता है तथा जिसके कारण उस पदार्थ को बाह्य बल लगाकर
दबाया जा सकता है।
(iii) तरलता-तरलता किसी पदार्थ (द्रव या गैस) का वह गुण है जिसके कारण वह बहकर
एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंँच सकता है।
(iv) बर्तन में गैस का भरना-पदार्थ के कणों के बीच काफी खाली जगह होने पर उसे
संपीडित किया जा सकता है तथा संपीडियता काफी अधिक होने के कारण गैस के अत्यधिक
आयतन को एक आयतन वाले परत (सिलिंडर) में प्रवाहित किया जा सकता है।
(v) आकार-वस्तु अपनी सीमा को निर्धारित करने हेतु जो स्थान छेकता है उसकी आकृति
पदार्थ का आकार कहलाता है।
(vi) गतिज ऊर्जा—गतिज ऊर्जा किसी पदार्थ के द्वारा गति के कारण कार्य किये जाने की
क्षमता होती है। सभी पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं अर्थात् उसमें गतिज ऊर्जा होती है
जो तापमान में समानुपाती होती है।
जहाँ m किसी पिण्ड का द्रव्यमान और V= पिण्ड का वेग माना जाता है।
घनत्व-किसी पिण्ड की इकाई आयतन में अवस्थित पदार्थ के परिमाण को घनत्व कहते
हैं जो तापमान के बढ़ने से घटता है।
                              पिण्ड का द्रव्यमान         m
क्योंकि घनत्व (D) =————————-=———–
                                      आयतन                V
3. कारण बताएंँ-
(a) गैस पूरी तरह उस बर्तन को भर देती है, जिसमें इसे रखते हैं।
(b) गैस बर्तन की दीवारों पर दबाव डालती है।
(c) लकड़ी की मेज ठोस कहलाती है ।
(d) हवा में हम आसानी से अपना हाथ चला सकते हैं, लेकिन एक ठोस लकड़ी के
टुकड़े में हाथ चलाने के लिए हमें कराटे में दक्ष होना पड़ेगा।
उत्तर-(a) गैस के कणों के बीच अधिक रिक्त स्थान होने के कारण उनमें कमजोर (अन्तर
आण्विक) बल क्रियाशील रहता है। फलतः कणों के बीच कमजोर आकर्षण बल के कारण उनके कण स्वतंत्र होकर पूरे पात्र में फैल जाते हैं।
(b) गैस के कणों के बीच अन्तराण्विक बल कम तथा अन्तराण्विक दूरी अधिक होती है।
साथ ही साथ कणों की गति अनियमित तथा अत्यधिक तीव्र होती है। फलतः गैस के कण
पारस्परिक आकर्षण बल के अभाव में स्वतंत्र रूप से फैल जाना चाहते हैं। इसी क्रम में वह परत
की दीवारों पर आन्तरिक बल लगाकर बाहर निकल जाना चाहते हैं। कणों की अनियमित गति
के कारण कणों द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र पर एक बल लगाया जाता है। आरोपित आन्तरिक बल को
दबाव डालना कहते हैं।
(c) लकड़ी की मेज सदा निश्चित आकार और आयतन बनाये रहती है। अपनी निश्चित
सीमा में दृढ़ता से कायम रख पाने के कारण उसे ठोस माना जाता है। इनके कण पारस्परिक
आकर्षण बल से मजबूत समूह बनाये रहते हैं।
(d) अन्तराण्विक बल के कमजोर होने के कारण गैस के कणों को दबाया या मरोड़ा जा
सकता है जबकि अन्तराण्विक दूरी के अभाव में मजबूत आकर्षण बल से बंधे ठोस के कणों
को नहीं दबाया जा सकता है। यही कारण है कि हवा में अपना हाथ चला सकते हैं। लेकिन
लकड़ी के टुकड़े में नहीं।
4.सामान्यतया ठोस पदार्थों की अपेक्षा द्रवों का घनत्व कम होता है । लेकिन आपने बर्फ
के टुकड़े को जल में तैरते हुए देखा होगा। पता लगाइए, ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर-जल के एक विशिष्ट गुण के कारण उसका महत्तम घनत्व 4°C पर होता है। जल
अपने अनियमित प्रसार के कारण बर्फ बनने पर अपना आयतन बढ़ा लेता है। फलत: घनत्व घट
जाता है। यही कारण है कि बर्फ द्वारा हटाये जाने वाले जल का भार बर्फ के भार की तुलना
में अधिक होता है। फलतः बर्फ उत्प्लावक बल लगने के कारण जल पर तैरता रहता है।
1.4. क्या पदार्थ अपनी अवस्था को बदल सकता है?
उत्तर-तापमान परिवर्तन से पदार्थ की अवस्था बदली जा सकती है।
 बर्फ-    जल-  भाप
(ठोस)  (द्रव)  (गैस)
 1.4.1 तापमान परिवर्तन का प्रभाव
                           क्रियाकलाप-1.12 (पृष्ठ-7)
● एक बीकर में 150 ग्राम बर्फ का टुकड़ा लें एवं चित्र के अनुसार उसमें प्रयोगशाला में प्रयुक्त
थर्मामीटर को इस प्रकार लटका दें थर्मामीटर का बल्ब बर्फ को छू रहा हो ।
● धीमी आंँच पर बीकर को गर्म करना शुरू करें।
● जब बर्फ पिघलने लगे, तो तापमान नोट कर लें।
● जब संपूर्ण बर्फ जल में परिवर्तित हो जाए, तो पुनः तापमान नोट करें।
● ठोस से द्रव अवस्था में होने वाले परिवर्तन में प्रेक्षण को नोट करें।
● अब बीकर में एक कांच की छड़ डालें और हिलाते हुए गर्म करें, जब तक जल उबलने
न लगे।
● थर्मामीटर की माप पर बराबर नजर रखे रहें, जब तक अधिक जलवाष्प न बन जाए।
● जल के द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में परिवर्तन में प्रेक्षण को नोट करें।
समाधान–(i) बर्फ का तापमान 0℃ होता है।
(ii) जब बर्फ पिघलने लगती है तो भी तापमान 0°C ही रहता है।
(iii) जब सम्पूर्ण बर्फ गलकर पानी बन जाता है तो ठीक उस समय का तापमान भी 0°C
होता है। क्योंकि अवस्था परिवर्तन में खर्च होने वाली ऊष्मा को गुप्त ऊष्मा कहा जाता है जो
तापमान में अन्तर नहीं आता है।
(iv) ठोस बर्फ से जल बनने पर
(a) आयतन घट जाता है।
(b) उसमें तरलता का गुण उत्पन्न हो जाता है।
(c) जल बन जाने के बाद तापमान बढ़ने लगता है।
(v) बर्फ से बने जल का तापमान बढ़ते हुए एक नियत तापमान पर रूक-सा जाता है।
तापमान की इस उच्चतम सीमा को क्वथनांक या उबाल बिन्दु कहते हैं।
(vi) क्वथनांक पर पहुंँचकर जल का तापमान स्थिर हो जाने का कारण वाष्पीकरण की गुप्त
ऊष्मा है जिसके कारण द्रव को गैस में बदला जा सकता है।
निष्कर्ष-(i) गलनांक-जिस तापमान पर ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है, उस तापमान
विशेष को उस ठोस का गलनांक कहा जाता है जो कणों के बीच के आकर्षण बल के सामर्थ्य
को दर्शाता है। जैसे बर्फ का गलनांक = 0°C = 273°K है।
(ii) गलन की गुप्त ऊष्मा-किसी पदार्थ को ठोस अवस्था से द्रव अवस्था में बदलने के
लिए आवश्यक ऊष्मा को गलन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। जैसे—बर्फ की गुप्त ऊष्मा 80 कैलोरी
प्रति ग्राम होती है।
(iii) वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा–किसी पदार्थ को द्रव की अवस्था से गैस की अवस्था
में बदलने के लिए आवश्यक ऊष्मा को वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।
(iv) क्वथनांक― कोई द्रव जिस अधिकतम तापमान तक गर्म होकर उबलने लगता है उस
तापमान को उस द्रव का क्वथनांक कहते हैं।
जैसे—भाप का क्वथनांक 100°C होता है।
100°C =273 + 100=373°K
(v) ठोस के तापमान को बढ़ाने पर उसके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
(vi) किसी ठोस के गलने की प्रक्रिया में तापमान समान रहता है।
(vii) तापमान बदलकर किसी पदार्थ की अवस्था बदली जा सकती है।
 क्रियाकलाप-1.13 (पृष्ठ-8)
● थोड़ा-सा कपूर या अमोनियम
क्लोराइड लें और इसे चूर्ण करके
चीनी की प्याली (China dish) में
क्लोराइड
डाल दें।
● एक कीप को उल्टा करके इस
प्याली के ऊपर रख दें।
● इस कीप के एक सिरे पर रुई का
एक टुकड़ा रख दें, जैसा चित्र में
दर्शाया गया है।
अब धीरे-धीरे गर्म करें और ध्यान
से देखें।
प्रश्न- ● उपरोक्त क्रियाकलाप से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं ?
समाधान–(i) नौसादर (अमोनियम क्लोराइड), आयोडिन, कपूर आदि ऐसे विशेष पदार्थ
हैं जिन्हें गर्म करने पर सामान्य नियम को छोड़ते हुए ठोस अवस्था से सीधे गैस की अवस्था
में चले जाते हैं। ऐसे पदार्थ को ऊर्ध्ववत् या उड़नशील पदार्थ कहते हैं और अवस्था परिवर्तन
की इस विशेष प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं।
(ii) गर्म करने पर कीप में धुआँ जैसा पदार्थ जमा होता है जो कीप की सतह पर पुनः ठोस
में बदल कर सट जाता है।
                          पाठ्य पुस्तकीय प्रश्नों के उत्तर (पृष्ठ-9)
1. निम्नलिखित तापमान को सेल्सियस में बदलें।
(a)300°k
(b) 573°k
हल : (a) सेल्सियस =k-273
इसलिए, 300°k=300-273= 27°C
(b) 573k= 573-273 =300°C
2. निम्नलिखित तापमान पर जल की भौतिक अवस्था क्या होगी?
(a)250°C
(b) 100℃
हल : (a) जल का क्वथनांक =100°C
इसलिए, 280°C पर जल की भौतिक अवस्था गैसीय होगी।
(b) 100°C पर जल की अवस्था गैसीय होने लगती है। वाष्पीकरण की शुद्ध ऊष्मा के
कारण 100°C पर जल द्रव की अवस्था से गैस की अवस्था में बदलने लगता है।
अर्थात् 100℃ = खौलता हुआ जल = द्रव
रूपान्तरित वाष्प = गैस
3. किसी भी पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के दौरान तापमान स्थिर क्यों रहता है?
उत्तर-जब किसी अवस्था वाले पदार्थ को गर्म किया जाता है तब दी गई ऊष्मीय ऊर्जा
पदार्थ के कणों को गति तेज करने में खर्च हो जाती है। पदार्थ के कणों को वशीभूत करके पदार्थ
की अवस्था बदल ली जाती है।
4. वायुमंडलीय गैसों को द्रव में परिवर्तन करने के लिए कोई विधि समझाइए।
उत्तर-वायुमंडलीय गैस को किसी बंद पात्र में रखकर यदि उसका तापमान घटाया जाए तो
उनके कण समीप आ जाएंँगे। पात्र के गैस पर दाब एवं संपीड़न करने से वे पारस्परिक आकर्षण
बल में मजबूती लाएंँगे और परिणामस्वरूप पदार्थ गैस की अवस्था से द्रव की अवस्था में रूपान्तरित हो जाएंँगे। अर्थात् दाब के बढ़ने और तापमान घटने से गैस द्रव में बदल सकते हैं।
दाब बढ़ाने पर पदार्थ के कणों को समीप लाया जा सकता है
1.5. वाष्पीकरण-क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को
वाष्पीकरण कहते हैं। जैसे—खुले परत में रखा जल धीरे-धीरे वाष्प बनकर उड़ जाता है और
कुछ समय बाद परत खाली मिलता है।
1.5.1 वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक
वाष्पीकरण की दर निम्नलिखित के साथ बढ़ती है-
(i) सतह क्षेत्र बढ़ने पर (ii) तापमान की वृद्धि पर (iii) सम्पर्क क्षेत्र की आर्द्रता घटने पर
और (iv) वायु को गति में वृद्धि लाये जाने पर।
                              क्रियाकलाप-1.14 (पृष्ठ-10)
● एक परखनली में 5 मि. ली. जल लें और इसे खिड़की के पास या पंखे के नीचे रख दें।
● खुली रखी चीनी मिट्टी की प्याली में 5 मि. ली. जल रखकर उसे खिड़की के पास या
पंखे के नीचे रख दें।
● खुली चीनी मिट्टी की प्याली में 5 मि. ली. जल रखकर उसे अपनी कक्षा की किसी अलमारी
के अंदर रख दें।
● कमरे का तापमान नोट करें।
● इन सभी परिस्थितियों में वाष्पीकरण में लगे समय या दिन को भी नोट करें।
● बारिश के दिन भी इन क्रियाकलापों को करके अपने प्रेक्षण लिखें।
● वाष्पीकरण के निम्नलिखित तथ्यों के बारे में आप क्या अनुमान लगा सकते हैं ? तापमान
का प्रभाव, सतह का क्षेत्र और वायु की चाल ।
समाधान–(i) कमरे का तापमान लगभग 24°C पाया गया।
(ii) परख नली में रखे गये जल की सतह का क्षेत्रफल प्याली की सतह की तुलना में कम
पाया गया। अतः परखनली के जल के वाष्पीकरण में लगा समय कुछ अधिक पाया गया ।
खुली चीनी की प्याली में रखा जल जब आलमारी के अन्दर रखा गया तो वायु की गति
का कोई प्रभाव नहीं देखा गया। इसके बाद आलमीरा में रखे जल के वाष्पीकरण का समय
अधिक पाया गया।
वारिश के दिन में वायु में वाष्प की सान्द्रता अधिक हो जाने के कारण वाष्पन की गति धीमी
पड़ जाती है।
अनुमान–(i) वाष्पीकरण पर तापमान का प्रभाव–तापमान बढ़ने पर गतिज ऊर्जा का मान
तथा वाष्पन की गति दोनों बढ़ जाती है।
(ii) वाष्पीकरण के लिए प्रयुक्त पात्र के कारण सतह के क्षेत्रफल में अन्तर आने का
प्रभाव-द्रव की सतही क्षेत्रफल के बढ़ने से द्रव का अधिक कण वायु के सम्पर्क में रहते हैं जिससे
वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है।
(iii) वाष्पीकरण पर वायु की चाल का प्रभाव-वायु की चाल बढ़ने से वाष्पीकरण की
गति बढ़ जाती है। क्योंकि द्रव से बना वाष्प तिली से उड़कर अलग हो जाते हैं। वायु की तेज
चाल से सम्पर्क का वाष्प भी उड़ जाता है।
1.3.2. वाष्पीकरण के कारण शीतलता
वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा सम्पर्क की सतह का तापमान घटा देती है।
गर्मियों में हम सूती कपड़े क्यों पहनते हैं ? (पृष्ठ-10)
गर्मियों में निकले पसीना तथा पसीने से भीगे वस्त्र को सुखाने में शरीर की ऊष्मा खर्च होती
है। फलतः हमें शीतलता का सुखद अनुभव होता है।
                                  पाठ्य पुस्तकीय प्रश्नों के उत्तर : (पृष्ठ-11)
1. गर्म, शुष्क दिन में कूलर अधिक ठंडा क्यों करता है ?
उत्तर-गर्म, शुष्क दिन में वायु की आर्द्रता काफी कम होती है। शरीर से निकले पसीने को
सुखाने में कूलर की हवा की गति वाष्पीकरण की दर बढ़ा देती है। गुप्त ऊष्मा प्राप्त करने की
दर के आधार पर प्रतीत होता है कि कूलर अधिक ठंढा दे रहा है।
2. गर्मियों में घड़े का जल ठंडा क्यों होता है ?
उत्तर-घड़ा मिट्टी का बना हुआ रंध्रयुक्त पात्र होता है। रंध्र के कारण अन्दर का जल
पसीजकर बाहरी सतह को गीला रखता है। घड़े की बाहरी सतह पर के जलीय अंश को वाष्प
में बदलने के लिए आवश्यक गुप्त ऊष्मा घड़े की परत द्वारा निकलती है। फलत: ऊष्मा विसर्जन
होते रहने के कारण पानी ठंडा हो जाता है।
3. एसीटोन/पेट्रोल या इन डालने पर हमारी हथेली ठंडी क्यों हो जाती है?
उत्तर-एसीटोन/पेट्रोल/इत्र आदि अति वाष्पशील (उड़नशील) द्रव होते हैं। हथेली पर इनकी
बूंँद वाध्य बनने के लिए आवश्यक ऊष्मा हथेली की ऊष्मा से प्राप्त करते हैं। ऊष्मा विसर्जन
के कारण हथेली ठंढी हो जाती है।
4. कप की अपेक्षा प्लेट से हम गर्म दूध या चाय जल्दी क्यों पी लेते हैं?
उत्तर-कप की अपेक्षा प्लेट लेने पर सतही क्षेत्र का मान बढ़ जाता है। क्षेत्र के बढ़ने से
वाष्पीकरण की गति बढ़ जाती है। फलतः गर्म दूध या चाय शीघ्र ही पीने योग्य हो जाते हैं।
5. गर्मियों में हमें किस तरह के कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर-गर्मियों में हमें सूती कपड़े पहनने चाहिए क्योंकि सूती कपड़ों में जल का अवशोषण
अधिक होता है जिसे सुखाने के लिए शरीर की ऊष्मा खर्च होती है। फलतः हम शीतलता का
अनुभव करते हैं।
अन्य प्रश्न : बर्फीले जल से भरे गिलास की बाहरी सतह पर जल की बूंँदें क्यों नजर
आती हैं?
उत्तर–बर्फीले जल के कारण गिलास की दीवार ठंडी रहती है जिसके सम्पर्क में वायुमंडलीय
जलवाष्प आते ही संघनित होकर जल की बूंदों के रूप में लटक जाती है जिसके कारण सतह
पर जल की बूंँदें नजर आती हैं।
                                 अभ्यासार्थ प्रश्न (पृष्ठ-13)
1. निम्नलिखित तापमानों को सेल्सियस इकाई में परिवर्तित करें-
(a) 300k
(b) 573k
हल : चूंँकि सेल्सियस =k-273
(a) अत: 300k=300-273 =  27°C
(b) 573k=573-273 = 300°C
2. निम्नलिखित तापमानों को केल्विन इकाई में परिवर्तित करें-
(a)25°C
(b) 373°C
हल : चूँकि केल्विन = सेल्सियस +273
अत: (a)28°C=25+273 =298°k
(b) 373°C=373+273 = 646°k
3. निम्नलिखित अवलोकनों हेतु कारण लिखें-
(a) नैफ्थलीन को रखा रहने देने पर यह समय के साथ कुछ भी ठोस पदार्थ छोड़े
बिना अदृश्य हो जाती है।
(b) हमें इत्र की गंध बहुत दूर बैठे हुए भी पहुंँच जाती है।
उत्तर-(a) नेपथलीन एक उड़नशील (ऊर्ध्वतः) पदार्थ है जो ऊष्मा पाकर विना द्रव में बदले
सीधे गैस को अवस्था में बदल सकता है। नेफ्थलीन को रखा रहने देने पर वह वायुमंडलीय ऊष्मा
पाकर धीरे-धीरे गैस में बदलकर उड़ जाता है।
(b) पदार्थ के कण दूसरे पदार्थ के कण के साथ स्वतः अन्त:मिश्रित हो जाते हैं जो कणों
के बीच के रिक्त स्थानों में अन्य कणों के समावेशित होने के कारण संभव होता है। विसरण
नामक इस प्रक्रिया के कारण इत्र में संयुक्त सुगंध के कण वातावरण में फैल जाते हैं और दूर
बैठे व्यक्ति तक आसानी से गंध पहुंँच जाती है।
4. निम्नलिखित पदार्थों को उनके कणों के बीच बढ़ते हुए आकर्षण के अनुसार व्यवस्थित
करें:
(a) जल
(b) चीनी
(c) ऑक्सीजन
ऑक्सीजन (गैस, सर्वाधिक कमजोर बल)
जल (द्रव, गैस की अपेक्षा मजबूत लेकिन ठोस की अपेक्षा कमजोर बल)
चीनी (ठोस, सर्वाधिक मजबूत आकर्षण)
ठोस में अन्तराण्विक बल सबसे अधिक मजबूत तथा अन्तराण्विक दूरी सबसे कम होती है।
अत: कणों के बीच बढ़ते हुए आकर्षण के अनुसार ऑक्सीजन → जल → चीनी जैसी व्यवस्था
की जा सकती है।
5. निम्नलिखित तापमानों पर जल की भौतिक अवस्था क्या है ?
(a) 25°C
(b) 0°C
(c) 100°C
उत्तर-जल का हिमांक 0°C तथा क्वथनांक 100°C होता है।
अत: (a) 25°C तापमान पर जल द्रव की अवस्था में रहता है।
(b) 0°C पर जब वह बर्फ बन जाता है तो ठोस की अवस्था में आ जाता है।
(c) 100°C पर जलवाष्प का रूप ले सकता है।
अर्थात् 25°C (द्रव),0℃ (ठोस) तथा 100℃ (वाष्प), जहाँ कोष्ठक में उनकी अवस्था
की सूचना मिलती है।
6. पुष्टि हेतु कारण दें:
(a) जल कमरे के ताप पर द्रव है।
(b) लोहे की आलमारी कमरे के ताप पर ठोस है।
(a) कमरे के ताप पर जल में तरलता का गुण होता है जो बह सकता है तथा जिसका आयतन
निश्चित लेकिन आकार अनिश्चित होता है। जल को जिस पात्र में रखा जाता है, उसी का आकार
ले लेता है तथा ढालुओं तल पर वह स्वतः बहने लगता है। कमजोर आकर्षण बल वाले तरल
रूप में पाये जाने वाले जल को दृढ़ माना जाता है।
(b) लोहे की आलमीरा कमरे के ताप पर निश्चित आयतन और आकार वाला होता है जिसके
कणों के बीच मजबूत आकर्षण बल क्रियाशील रहता है। अतः आलमीरा को ठोस अवस्था में
माना जाता है।
7. 273°K पर बर्फ को ठंडा करने पर तथा जल को इसी तापमान पर ठंडा करने पर
शीतलता का प्रभाव अधिक क्यों होता है?
उत्तर-जल का हिमांक 273°K होता है। 273°K पर बर्फ को ठंडा करने पर अवस्था
परिवर्तन के लिए ऊष्मा की आवश्यकता नहीं होती है जबकि जल को ठंडा करने पर वह बर्फ
बनने में ऊष्मा का क्षय करता है। गुप्त ऊष्मा और अवस्था परिवर्तन के लिए आवश्यक ऊर्जा
के कारण जल शीतलता का प्रभाव अधिक प्रदर्शित करता है। 273°K पर जल के कणों की अपेक्षा बर्फ के कणों की ऊर्जा कम होती है।
8. उबलते हुए जल अथवा भाप में से जलने की तीव्रता किसमें अधिक महसूस होती है ?
उत्तर-जल को उबालने के लिए लागत ऊष्मा के अतिरिक्त वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा ग्रहण
करते ही भाप बनता है। अधिक ऊष्मा ग्रहण करने के कारण भाप में जलने की तीव्रता अधिक
होती है।
9. निम्नलिखित चित्र के लिए A,B,C,D,E तथा F की अवस्था परिवर्तन को नामांकित करें
उत्तर- A- (ठोस से द्रव)      → संलयन
         B- (द्रव से गैस)       → वाष्पन
         C- (गैस से द्रव)       → संघनन
          D-(द्रव से ठोस)      → घनीकरण या ठोसीकरण
          E- ठोस से गैस        → ऊर्ध्वपातन
          F- गैस से ठोस        → ऊर्ध्वपातन
                                 समूह हेतु क्रियाकलाप (पृष्ठ-14)
ठोसों, द्रवों और गैसों में कणों की गतिशीलता दर्शाने के लिए एक प्रतिदर्श का निर्माण करें।
इसका निर्माण करने हेतु आपको इनकी आवश्यकता पड़ेगी-
● एक पारदर्शी जार
● एक बड़ा रबर का गुब्बारा अथवा खींची गई रबर की एक शीट
● एक तार
● कुछ कुक्कुट को डाले जाने वाले दाने अथवा काले चने अथवा शुष्क हरे दाने ।
प्रतिदर्श का निर्माण कैसे किया जाए?
● दानों को जार में डालें।
● तार को रबर शीट के मध्य में पिरो दें और इसे सुरक्षा की दृष्टि से टेप के माध्यम से कसकर बाँधे ।
● अब रबर शीट को खींचें और इसे जार के मुख पर बाँध दें।
● आपका प्रतिदर्श तैयार है। अब आप ऊंगली के माध्यम से तार को ऊपर-नीचे धीरे से या
तेजी से सरका सकते हैं।
समाधान-तार खींचने से पदार्थ के कणों का प्रतिनिधित्व करने वाले दाने गतिशील (उछलते हुए)
होते हैं। कणों की गति के द्वारा ठोस से द्रव और द्रव से गैस बनने की प्रक्रिया स्पष्ट होती है।
                                                ◆◆◆
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