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 BSEB class 11 sociology notes | भारतीय समाजशास्त्री

BSEB class 11 sociology notes | भारतीय समाजशास्त्री

भारतीय समाजशास्त्री
             (Indian Sociologists)
शब्दावली
•परसंस्कृति ग्रहण-इस प्रक्रिया के अंतर्गत दो या दो से अधिक संस्कृतियाँ एक-दूसरे के संपर्क में आती हैं, जिससे वे एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं तथा तत्वों को ग्रहण करती है।
• जीववादी-जीवित आत्मा का प्राकृतिक प्रघटना में निरूपित होना।
• ग्रहणशील-विभिन्न स्रोतों में निर्बाध रूप से ग्रहण करना।
•अंतःविवाह-अपनी ही जाति समूह में विवाह करना।
•नृजाति विज्ञान-व्यक्ति वास्तव में क्या करते हैं इसके आधार पर सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन का विस्तृत विवरण, जो अवलोकन पर आधारित होता है।
• बहिर्विवाह-अपनी ही जाति में लेकिन अपने गोत्र से बाहर विवाह किया जाना।
•विखंडन-एक कोशिका का कई कोशिकाओं में विभाजन अथवा एक जाति का दो या अधिक उपजातियों में विभाजन।
•अनुलोम विवाह-उच्च जाति के पुरुष द्वारा निम्न जाति की स्त्री से विवाह।
•मूर्ति पूजक-मूर्तिपूजक।
• अंतर्जातीय विवाह-किसी व्यक्ति द्वारा अपनी जाति से बाहर विवाह करना।
• भारतीय ज्ञान-भारतीय सामाजिक प्रघटनाओं की हिंदू, ग्रंथों, जैसे धर्मशास्त्र तथा अर्थशास्त्र आदि के विचारों पर आधारित व्याख्या।
पाठ्यपुस्तक एवं अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न एवं उत्तर
              अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की नींव किसने और कब डाली?
उत्तर-गोविंद सदाशिव घुर्ये ने 1952 में इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की नींव डाली।
प्रश्न 2. घुर्ये ने जाति तथा नातेदारी के तुलनात्मक अध्ययन में किन दो बिंदुओं को महत्वपूर्ण बताया है?
उत्तर-भारत में पायी जाने वाली नातेदारी व जातीय संजाल की व्यवस्था अन्य समाजों में भी पायी जाती है।
जाति तथा नातेदारी ने भूतकाल में एकीकरण का कार्य किया है। भारतीय समाज का उद्विकास विभिन्न प्रजातीय तथा नृजातीय समूहों के एकीकरण पर आधारित था।
प्रश्न 3. घुर्ये ने जाति व्यवस्था में पाए जाने वाले किन छः संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है?
उत्तर-जी.एस.धुर्य ने जाति व्यवस्था में पाए जाने वाले निम्नलिखित छ: संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है-
(i) खंडात्मक विभाजन, (ii) अनुक्रम या संस्तरण अथवा पदानुक्रम, (iii) शुद्धता तथा अशुद्धता के सिद्धांत, (iv) नागरिक तथा धार्मिक नियोग्यताएँ तथा विभिन्न विभागों के विशेषाधिकार, (v) व्यवसाय चुनने संबंधी प्रतिबंध, (vi) वैवाहिक प्रतिबंध ।
प्रश्न 4. गोत्र बहिर्विवाह से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-गोत्र को ब्राह्मणों तथा बाद में गैर-ब्राह्मणों द्वारा पूर्णतया बहिर्विवाह इकाई समझा गया। मूल धारणा यह है कि गोत्र के सभी सदस्य एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। उनमें रक्त संबंध होता है अर्थात कोई ऋषि या संत उनका सामान्य पूर्वज होता है। इसी कारण, एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह को अनुचित समझा जाता है।
प्रश्न 5. भारत में ब्रिटिश शासन से कौन-से तीन प्रकार के परिवर्तन हुए?
उत्तर-भारत में ब्रिटिश शासन से निम्नलिखित तीन प्रकार के परिवर्तन हुए-
(i) कानूनी तथा संस्थागत परिवर्तन, जिनसे सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता के अधिकार प्रदान किए गए। (ii) प्रौद्योगिकीय परिवर्तन,
(iii) व्यावसायिक परिवर्तन ।
प्रश्न 6. कुछ मानवशास्त्रियों तथा ब्रिटिश प्रशासकों ने जनजातियों को अलग कर देने की नीति की वकालत क्यों की?
उत्तर-कुछ मानवशात्रियों तथा ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा जनजातियों को अलग कर देने की नीति की वकालत निम्नलिखित कारणों से की गई-
(i) जनजातियों के लोग गैर-जनजातियों व हिंदुओं से भिन्न हैं। (ii) जनजातियों के लोग हिंदुओं के विपरीत जीवनवादी हैं। (iii) जनजाति के लोग हिंदुओं के विपरीत जीवनवाद हैं।‌ (iv) जनजातीय लोगों के हिन्दुओं से संपर्क होने के कारण उनकी संस्कृति तथा अर्थव्यवस्था को हानि हुई। गैर-जनजातियों के लोगों ने चालाकी तथा शोषण से उनकी (जनजाति के लोगों की) भूमि तथा अन्य स्रोतों पर कब्जा कर लिया।
प्रश्न 7. घुर्ये का भारतीय जनजातियों के हिंदूकरण की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।
उत्तर-घूर्ये ने भारत के जनजातियों के हिंदूकरण में निम्नलिखित तथ्यों का विवरण दिया है-
(i) कुछ जनजातियों का हिंदू समाज में एकीकरण हो चुका है। (ii) कुछ जनजातियाँ एकीकरण की दिशा में अग्रसर हो रही हैं।
प्रश्न 8. घूर्ये ने जनजातियों के किस भाग को “हिंदू समाज का अपूर्ण एकीकृत वर्ग’ कहा है?
उत्तर-भारत की कुछ जनजातियाँ जो पहाड़ों अथवा घने जंगलों में रह रही है, अभी तक हिंदू समाज के संपर्क में नहीं आयी हैं। जी.एस. घुर्ये ने इन जनजातियों हिन्दू समाज को ‘अपूर्ण एकीकृत वर्ग’ कहा है।
प्रश्न 9. जनजातियों के द्वारा हिंदू सामजिक व्यवस्था को क्यों अपनाया गया?
उत्तर-जनजातियों ने हिंदू सामाजिक व्यवस्था को आर्थिक उद्देश्यों के कारण अपनाया हिंदू धर्म को अपनाने के पश्चात् जनजाति के लोग अल्पविकसित हस्तशिल्प की संकीर्ण सीमाओं से बाहर आ सके। इसके पश्चात् उन्होंने विशेषीकृत व्यवसायों को अपनाया। इन व्यवसायों की समाज में अत्यधिक मांग थी।
जनजातियों द्वारा हिंदू सामाजिक व्यवस्था अपनाने का दूसरा कारण जनजातीय विवासों तथा रीतियों के हेतु जाति व्यवस्था की उदारता था।
प्रश्न 10. जाति-व्यवस्था में विवाह बंधन पर चार पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर-(i) जाति व्यवस्था में अंतर्जातीय विवाहों पर प्रतिबंध था।
(ii) जातियों में अंतः विवाह का प्रचलन था।
(iii) प्रत्येक जाति छोटे-छोटे उपसमूहों अथवा उपजातियों में विभाजित थी।
(iv) घूर्ये अंत: विवाह को जाति प्रथा में प्रमुख कारक मानते हैं।
प्रश्न 11. अनंतकृष्ण अय्यर एवं शरतचंद्र रॉय ने सामजिक मानवविज्ञान के अध्ययन का अभ्यास कैसे किया?
उत्तर-अंनतकृष्ण अय्यर प्रारंभ में केवल एक लिपिक थे। बाद में आप अध्यापक हो गए। सन् 1902 में कोचीन राज्य में एक नृजातीय सर्वे का कार्य आपको सौंपा गया और आप मानवशास्त्री हो गए।
इसी प्रकार ही शरत्चंद्र रॉय कानूनविद् थे। अपने ‘उरांव’ जनजाति पर कुछ शोध किया और आप मानवशास्त्री हो गए।
               अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जाति तथा नातेदारी के विषय में गोविंद सदाशिव घूर्ये के विचार लिखिए।
उत्तर-जाति तथा नातेदारी के बारे में जी.एस. घूर्य के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
(i) घूर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India 1932 में एतिहासिक मानवशास्त्रीय तथा समाजशास्त्रीय उपागमों को कुशलतापूर्वक संयुक्त किया है घूर्ये जाति की ऐतिहासिक उत्पत्ति तथा उसके भौगोलिक प्रसार से संबंधित थे। उन्होंने जाति के तत्कालीन लक्षणों पर ब्रिटिश शासन के प्रभावों को भी समझने का प्रयास किया है।
(ii) पूर्य ने अपनी पुस्तक में बाद के संस्करण में भारत की आजादी के बाद जाति व्यवस्था में आने वाले परिवर्तनों का उल्लेख किया है।
(iii) एक तार्किक विचारक के रूप में वे जाति व्यवस्था में आने वाले परिवर्तनों का उल्लेख किया है।
(iii) एक तार्किक विचारक के रूप वे जाति व्यवस्था का घोर विरोध करते थे। उनका अनुमान था कि नगरीय पर्यावरण तथा आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों से जाति बंधन कमजोर हो जाएँगे। लेकिन उन्होंने पाया कि जातिनिष्ठा तथा जातीय चेतना का रूपांतरण नृजातीय समूहों में हो रहा है।
(iv) घूर्य का मत है कि जाति अंत: विवाह तथा बहिर्विवाह के माध्यम से नातेदारी से संबंधित है।
प्रश्न 2. घूर्य के अनुसार धर्म के महत्व को समझाइए।
उत्तर-जी.एस. घूर्ये ने धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों के अध्ययन में मौलिक योगदान प्रदान किया है। समाज में धर्म की भूमिका का विशद् वर्णन उन्होंने निम्नलिखित पुस्तकों में किया है-
(i) Indian Sadhus (1953) (ii) Gods and Men (1962) (iii) Religious Consciousnes (1965) (iv) Indian Accultration (1977) (v) Vedic India
(1979) (vi) The legacy of Ramayana (1979)
घूर्य ने संस्कृति के पाँच आधार बताए हैं-
(i) धार्मिक चेतना , (ii) अंत: करण, (iii) न्याय, (iv) ज्ञान प्राप्ति हेतु निर्बाध अनुसारण,(v) सहनशीलता।
घूर्य ने अपनी पुस्तक Indian sadhus में महान वेंदातिक दार्शनिक शंकराचार्य तथा दूसरे धार्मिक आचार्य द्वारा चलाए गए अनेक धार्मिक पंथों तथा केंद्रो का समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया है। घूर्य ने भारत में त्याग की विरोधाभासी प्रकृति को प्रस्तुत किया है।
शंकराचार्य के समय से ही हिंदू समाज का कम या अधिक रूप में साधुओं द्वारा मार्गदर्शन किया गया है।
ये साधु-एकांतवासी नहीं हैं। उनमें से ज्यादातर साधुमठासी होते हैं। भारत में मठों का संगठन हिन्दूवाद तथा बौद्धवाद के कारण है।
भारत में साधुओं द्वारा धार्मिक विवादों में मध्यस्थता भी की जाती है। उनके द्वारा धार्मिक ग्रंथों तथा पवित्र ज्ञान को संरक्षण दिया गया है। इसके अतिरिक्त, साधुओं द्वारा विदेशी आक्रमणों के समय धर्म की रक्षा की गई है।
प्रश्न 3. ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों के बारे में घुर्ये के विचार लिखिए।
उत्तर-ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों के बारे में घुर्ये के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
(i) घुर्ये ने नगरों तथा महानगरों के विकास के बारे में निराशावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया है। नगरों से पुरुषों तथा स्त्रियों की चारित्रिक विशेषताओं को समाप्त नहीं किया है।
(ii) पूर्वे के अनुसार विशाल नगर उच्च शिक्षा, शोध, न्यायपालिका, स्वास्थ्य सेवाएँ तथा प्रिंट मीडिया व मनोरजंन आदि अंततोगत्वा सांस्कृतिक वृद्धि करते हैं। नगर का प्रमुख कार्य सांस्कृतिक एकरात्मकता की भूमिका का निर्वाह करना है।
(iii) घूर्ये नगरीकरण के पक्के समर्थक थे। घुर्ये के अनुसार नगर नियोजन को निम्नलिखित समस्याओं के सामाधान की ओर ध्यान देना चाहिए-
(a) पीने के पानी की समस्या (b) मानवीय भीड़-भाड़ (c) वाहनों की भीड़-भाड़ (d) सार्वजनिक वाहनों के नियम (e) मुम्बई जैसे महानगरों में रेल परिवहन की कमी (f) मृदा का अपरदन (g) ध्वनि प्रदूषण
(h) अंधाधुंध पेड़ों की कटाई तथा (i) पैदल यात्रियों
की दुर्दशा
(iv) घूर्ये जीवनपर्यत ग्रामीण-नगरीयता के विचारों का समर्थन करते रहे। उनका मत था कि नगरीय जीवन के लाभों के साथ-साथ प्राकृति की हरीतिमा का भी लाभे उठाना चाहिए। भारत में नगरीकरण केवल औद्योगीकरण के कारण नहीं हैं। नगर तथा महानगर अपने नजदीकी स्थानों के लिए सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में भी कार्य करते।
(v) घूर्य के अनुसार ब्रिटिश शासन के दौरान ग्रामों तथा नगरीय केन्द्रों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की उपेक्षा की गई।
               दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘जनजातिय समुदायों को कैसे जोड़ा जाय’-इस विवाद के दोनों पक्षों के क्या तर्क थे?
उत्तर-जनजातिय समुदायों से कैसे संबंध स्थापित हो? यह एक गंभीर प्रश्न है। जी.एस.घूर्ये ने अपनी पुस्तक ‘द शिड्यूल्ड ट्राइब्स’ में लिखा है। “अनुसूचित जनजातियों को न तो आदिम कहा जाता है और न आदिवासी न ही उन्हें अपने आप में एक कोटि माना जाता है” यानी पहचान की समस्या गंभीर हैं।
जनजातीय समुदायों के साथ संबंध स्थापित करने में निम्न तत्व प्रमुख भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं-
(i) भूमि हस्तांतरण तथा शोषण के बिंदुओं को रोका जाए।
(ii) आर्थिक विकास के अवरोधों को दूर किया जाए।
(iii) उनके सांस्कृतिक स्वरूप और मूल संस्कृत में कोई परिवर्तन न किया जाए।
(iv) अशिक्षा की समस्या से दूर किया जाए।
(v) ऋणग्रस्तता को समाप्त करने का प्रयास किया जाए।
(vi) जनजातियों के समग्र विकास के लिए कदम उठाए जाएँ।
इन सभी कार्यों को पूर्ण करने पर निश्चित ही जनजातियों समुदायों से संपर्क की समस्या समाप्त हो जाएगी।
प्रश्न 2. घूर्ये के अनुसार जाति के संरचनात्मक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-घूर्ये ने जाति के निम्नलिखित छः संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है-
(i) खंडात्मक विभाजन-जी.एस.घुर्य ने जाति को सामजिक समूहों अथवा खंडों के रूप में समझा है। इनकी सदस्यता का निर्धारण जन्म से होता है। सामाज के खंड विभाजन का अभिप्राय जाति के अनेक खंडों में विभाजन है। प्रत्येक खंड का अपना जीवन होता है। प्रत्येक जाति के नियम, विनियम, नैतिकता तथा न्याय के मानदंड होते हैं
(ii) अनुक्रम अथवा संस्मरण अथवा पदानुक्रम-जाति अथवा इसके खंडों में संस्तरण पाया जाता है। संस्तरण की व्यवस्था में जातियाँ एक-दूसरे के संदर्भ में उच्च अथा निम्न स्थिति में होती है। सभी जगह संस्तरण की व्यवस्था में ब्राह्मणों की स्थित उच्च तथा अछूतों की निम्न होती है।
(iii) शुद्धता एवं अशुद्धता के सिद्धांत-जातियों तथा खंडों के बीच पृथकता, शुद्धि तथा अशुद्धि के सिद्धांत पर आधारित होती है। शुद्धि तथा अशुद्धि के सिद्धांत के अंतर्गत दूसरी जातियों के संदर्भ में खान-पान संबंधी नियमों का पालन किया जाता है। आमतौर पर, ज्यादातर जातियों को ब्राह्मणों द्वारा पकाए गए कच्चे भोजन को ग्रहण करने पर कोई आपत्ति नहीं होती है। दूसरी और, ऊँची जातियों द्वारा निम्न जातियों द्वारा पकाया गया पक्का खाना, जैसे कचौड़ी आदि ही ग्रहण किया जाता है।
(iv) नागरिक तथा धार्मिक निर्योग्यताएँ तथा विभिन्न भागों में विशेषाधिकार-समाज में संस्तरण के विभाजन के कारण विभिन्न समूहों को प्रदान किए गए विशेषाधिकारों तथा दायित्वों में असमानता पायी जाती है। व्यवसायों का निर्धारण जाति की प्रकृति के अनुसार होता है। ब्राह्मणों की उच्च स्थिति इन्हीं आधारों पर होती है। निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के रीति-रिवाजों तथा वस्त्र धारण करने आदि की नकल नहीं कर सकते थे। उनके द्वारा ऐसा किया
जाना समाज के नियमों के विरुद्ध कार्य समझा जाता था।
(v) व्यवसायों के संबंध में प्रतिबंध-प्रत्येक जाति अथवा जाति समूह किसी न किसी वंशानुगत व्यवसाय से संबंद्ध होते थे। व्यवसायों का वर्गीकरण भी शुद्धता तथा अशुद्धता के सिद्धांत के आधार पर किया जाता था। वर्तमान समय में इस स्थिति में परिवर्तन आया है। लेकिन पुरोहितों के कार्य पर अभी भी ब्राह्मणों का अधिकार कायम है।
(vi) वैवाहिक प्रतिबंध-जाति व्यवस्था में अंतर्जातीय विवाहों पर प्रतिबंध था। जातियों में अंत: विवाह का प्रचलन था। घुये अंत: विवाह को जाति प्रथा का प्रमुख कारक मानते हैं।
प्रश्न 3. जाति व राजनीति पर घुर्ये के विचार लिखिए।
उत्तर-जाति तथा राजनीति के संबंध में जी.एस. घूर्य के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
(i) प्रसिद्ध समाजशास्त्री जी.एस.पूर्ये ने जातिनिष्ठा अथवा जातीय लगाव के प्रति सावधानी बरतने की बात कही है। जातिनिष्ठा तथा जातीय लगाव दोनों ही भारत की एकता के लिए संभावित खतरे हैं।
(ii) यद्यपि ब्रिटिश शासन के दौरान किए गए परिवर्तनों से जाति-व्यवस्था के कार्य कुछ सीमा तक प्रभावित तो हुए तथापि उनका पूर्णरूपेण उन्मूलन नहीं हो सका। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान निम्नलिखित तीन प्रकार के परिवर्तन आए-
(a) कानूनी तथा संस्थागत परिवर्तन, (b) प्रौद्योगिकी परिवर्तन तथा (c) व्यावसायिक परिवर्तन।
(iii) घूर्ये का यह स्पष्ट मत है कि भारत में ब्रिटिश शासक जाति व्यवस्था के समाजिक तथा आर्थिक आधारों को समाप्त करने में कभी भी गम्भीर नहीं रहे। उनके द्वारा छुआछूत को समाप्त करने का भी प्रयत्न नहीं किया गया।
(v) परतंत्र भारत में निम्नलिखित समीकरण पाए गए हैं-
(a) जातीय समितियों को अधिकता
(b) जातीय पत्रिकाओं की संख्या में वृद्धि
(c) जाति पर आधारित न्यासों में वृद्धि
(d) नातेदारी ने जातीय चेतना के विचारों को प्रोत्साहित किया।
उपरोक्त वर्णित चारों कारक वास्तविक सामुदायिक तथा राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।
(vi) जी.एस. घुर्ये को इस बात की चिंता थी कि राजनैतिक नेता सत्ता प्राप्त करने तथा उसे काम रखने के लिए जातीय संवदेना का शोषण करेंगे। इस संदर्भ में घुर्य की चिंता निरर्थक नहीं थी। घुर्ये ने राजनीति क्षेत्र तथा नौकरियों में चित वर्ग के आरक्षण के आंदोलन की भावना की प्रशंसा की। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि अछूत जातियों को विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। उनका मत था कि शिक्षा ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकती है।
प्रश्न 4. जनजातियों पर घूर्ये के विचार दीजिए।
उत्तर-जनजतियों के विषय में घूर्य के विचारों का निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत अध्ययन किया जा सकता है-
भारत की जनसंख्या में जनजातियां एक महत्वपूर्ण भाग हैं। घूर्य ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी कि कुछ मानवशास्त्री तथा ब्रिटिश प्रशासक जनजातियों को पृथक् कर देने की नीति के हिमायती थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हर कीमत पर जनजातियों की विशष्टि पहचान बनायी रखी जानी चाहिए। उन्होंने इस संबंध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए-
(i) जनजातिय गैर-जनजाति या हिंदुओं से पृथक् है।
(ii) जनजातीय लोग देश के मूल निवासी हैं।
(iii) जनजातीय लोग हिंदुओं के विपरीत जीववादी हैं।
(iv) जनजातीय लोग भाषा के आधार पर भी हिंदुओं से अलग हैं।
(v) गैर-जनजातीय लोगों के संपर्क में आने से जनजातीय लोगों की संस्कृति तथा अर्थव्यवथा का नुकसान हआ है।
(vi) गैर जनजातीय लोगों की चालाकी तथा शोषण के कारण जनजातीय लोगों की जमीन तथा अन्य संसाधन समाप्त हो गए।
जी.एस.धूर्य ने उपरोक्त बिंदुओं का ऐतिहासिक आंकड़ों तथा उदाहरणों द्वारा तत्कालीन स्थिति के संदर्भ में विरोध किया है।
जी.एस. घूर्ये ने भारतीय जनजातियों के हिंदूकरण की प्रक्रिया का उल्लेख किया है। उनका मत है कि कुछ जनजातियों का हिंदु समाज में एकीकरण हो चुका है तथा कुछ जनजातियाँ एकीकरण की दिशा में अग्रसर हो रही है।
घूर्ये का मत है कि कुछ जनजजातियाँ पहाड़ों तथा जंगलों में रह रही हैं। ये जनजातियाँ हिंदू समाज से अभी तक अप्रभावित हैं। ऐसी जनजातियों को हिंदू समाज का अपूर्ण एकीकृत वर्ग कहा जाता है।
जी.एस.पूर्वे के अनुसार जनजातियों द्वारा हिंदू सामाजिक व्यवस्था को निम्नलिखित दो करणों से अपनाया गया है-
प्रथम आर्थिक उद्देश्य था। जनजातियों द्वारा हिंदू धर्म को अपनाया गया था अंत: उन्हें अपने अल्पविकसित जनजातीय हस्तशिल्प की सीमाओं से बाहर आने का मार्ग मिल गया। इसके पश्चात् जनजातीय लोगों ने विशिष्ट प्रकार के उन व्यवसायों को अपनाया जिनकी समाज में मांग थी। द्वितीय कारण जनजातीय विश्वासों तथा रीतियों के संदर्भ में जाति व्यवस्था की उदारता थी। जी.एस.घूर्य ने इस बात को स्वीकार किया कि भोले जनजातीय लोग गैर-जनजातियों, हिंदू महाजनों तथा भू-माफियाओं द्वारा शोषित किए गए। घूर्ये का मत है कि इसका मूल कारण ब्रिटिश शासन की दोषपूर्ण राजस्व तथा न्याय क नीतियाँ थी। ब्रिटिश सरकार की वन संबंधी नीतियों ने जनजातीय लोगों के जीवन को और अधिक कठोर बना दिया। इन दोषपूर्ण नीतियों के कारण न केवल जनजातीय लोगों को कष्ट हुआ वरन् गैर-जनजतीय लोगों को भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वस्तुतः समाज में प्रचलित व्यवस्था ने जनजतीय लोगों तथा गैर-जनजातीय लोगों को समान रूप से कष्ट पहुँचाया।
प्रश्न 7. भारत में प्रजाति तथा जाति के संबंधो पर हर्बर्ट रिजले तथा जी.एस. धूर्ये की स्थिति की रूपरेखा दें।
उत्तर-वास्तव में जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अपने एक महत्वपूर्ण विशेषता है। जो व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसे उसी में ही बना रहना पड़ता है। जाति की सदस्यता जन्म से होती है।
जाति-‘कास्ट’ एक अंग्रेजी शब्द है जिसकी उत्पति पुर्तगाली भाषा के (i) जाति की सदस्यता उन व्यक्तियों तक ही सीमित होती है जो उस जाति के सदस्यों से उत्पन्न हुए हों ओर इस प्रकार उत्पन्न होने वाले सभी व्यक्ति जाति में आते हैं। (ii) जिसके सदस्य एक अविच्छिन्न सामाजिक नियम के द्वारा समूह के बाहर विवाह करने से रोक दिए जाते हैं।
प्रो.एच.रिजले के अनुसार, “जाति परिवारों के समूह का एक संकलन है जिसका एक सामान्य नाम है, जो काल्पनिक पुरुष अथवा देवताओं से उत्पन्न होने का दावा करती है। एक वंशानुकूल व्यवसाय करने का दावा करती है और उन लोगों की दृष्टि से सजातीय समुदाय बनाती है जो अपना मत देने योग्य हैं।”
प्रो.जी.एस.घूर्ये-प्रो. घूर्य ने जाति की परिभाषा देते हुए कहा है, ‘जाति एक जटिल अवधारणा है।’ इस प्रकार रिजले और घूर्ये दोनों जाति के संबंध में अलग-अलग विचार रखते हैं। प्रजाति से आशय यहाँ नस्ल से है। भारत में आर्य ही इस तथ्य पर एक मत हैं कि प्रजातीय विभिन्नता होते हुए भी भारत में जातीय एकता बनी हुई है।
प्रश्न 8. घुर्ये ने भारतीय समाज की व्याख्या कैसे की
उत्तर-घुर्ये ने भारतीय समाज की व्याख्या निम्नलिखित रूप में किये जाते हैं-
(i) जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था भारती समाज की एक विशिष्टता है। उन्होंने भारतीय समाज में जातियों के उपजातियों के रूप में विभाजन को स्वीकार किया है।
(ii) घुर्ये ने भारतीय जनसंख्या को उनकी शारीरिक विशेषताओं के आधार पर प्रायः छः प्रकार के वर्गों में विभाजित किया है – इंडी आर्यन, पूर्वी द्रविड़, द्रविड़, पश्चिमी मुण्डा और मंगोलियन।
(i) इनके अनुसार हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के कलात्मक स्मारकों में कई समान तत्वों का समावेश है।
(ii) उनका मत था कि मुस्लिम भवनों में हिन्दू कला का केवल अलंकरण के रूप में प्रयोग हुआ है।
(iii) घुर्ये का विचार था कि बहुलवादी प्रकृतियों ने राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया में बाधा डाली है और यह भारतीय समाज को टुकड़ों में बाँटे जाने को प्रोत्साहन देती है।
              ध्रुजटी प्रसाद मकर्जी
पाठ्यपुस्तक एवं अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न एवं उत्तर
               अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. डी.पी. मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशास्त्रियों के मूलभूत उद्देश्य क्या होने चाहिए?
उत्तर-डी.पी. मुखर्जी के अनुसार सामाजिक समाजशस्त्रियों को केवल समाजशास्त्री की सीमा तक ही सीमित नहीं होना चहिए। भारतीय समाजशात्रियों को लोकाचारों, जनरीतियों, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं में भागीदारी करने के साथ-साथ समाजिक व्यवस्था के अर्थ को समझने का भी प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 2. डी.पी. मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशास्त्रियों को किन दो उपागमों के संश्लेषण का प्रयास करना होगा?
उत्तर-डी.पी. मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशात्रियों को निम्नलिखित दो उपागमों के संश्लेषण का प्रयास करना होगा-
(i) समाजशास्त्री के द्वारा तुलनात्मक उपागम को अपनाना होगा। एक यही तुलात्मक उपागम उन विशेषताओं को प्रकाश में लाएगा जिनकी भारतीय समाज अन्य समाजों के साथ भागीदारी करता है। इस उद्देश्य को प्राप्ति हेतु समाजशास्त्री परंपरा का अर्थ समझने का लक्ष्य रखेंगे। वे इसके मूल्यों तथ्य प्रतीकों का सावधानीपूवर्क परीक्षण भी करेंगे।
(ii) भारतीय समाजशास्त्री संघर्ष तथा परस्पर विरोधी शक्तियों के संश्लेषण को समझने के लिए द्वंद्वात्मक उपागम का अवलंबन करेंगे।
प्रश्न 3. डी.पी. की ‘पुरुष’ की अवधारणा बताइए।
उत्तर-डी.पी. मुखर्जी ने अपनी ‘पुरुष’ की अवधारणा में उसे (पुरुष को) समाज तथा व्यक्ति से पृथक् नहीं किया है और न ही वह पुरुष समूह मस्तिष्क के नियंत्रण में है। मुखर्जी के अनुसार ‘पुरुष’ सक्रिय कर्ता के रूप दूसरे व्यक्तियों के साथ संबंध स्थापित करता है तथा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है।
मुखर्जी का मत है कि पुरुष का विकास दूसरे व्यक्तियों के साथ संपर्क से होता है। इस प्रकार, उसका मानव समूहों में अपेक्षाकृत अच्छा स्थान होता है।
प्रश्न 4. कर्ता की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-डी.पी. मुखर्जी के अनुसार कर्ता की स्थिति के अंतर्गत व्यक्ति एक कर्ता के रूप में कार्य करता है। एक स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में जो कि व्यक्ति के अपनेलक्ष्यों तथा हितों को प्राप्त करने की मौलिक विशेषताएँ रखता है।
प्रश्न 5. डी.पी. मुखर्जी के अनुसार परंपरा के अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-डी.पी मुखर्जी के अनुसार परंपरा का मूल ‘वाहक’ है जिसका तात्पर्य संप्रेषण करना है। संस्कृत भाषा में इसका समानार्थक परंपरा है; जिसका तात्पर्य है उत्तराधिकारी अथवा ऐतिहासिक जिसका आधार अथवा जडें इतिहास में हैं।
मुखर्जी के अनुसार परंपराओं का कोई न कोई स्रोत अवश्य होता है। धार्मिक ग्रंथ अथवा महर्षियों के कथन अथवा ज्ञात या अज्ञात पौराणिक नायक परंपराओं के स्रोत हो सकते हैं। परंपराओं के स्रोत कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन इनकी एतिहासिकता को समाज के सभी सदस्यों द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है। परंपराओं को उद्धृत किया जाता है। उन्हें पुन: याद किया जाता है तथा उनका सम्मान किया जाता है। वस्तुतः परंपराओं की दीर्घकालीन संप्रेषणता से सामजिक संबद्धता तथा सामजिक एकता कायम रहती है।
प्रश्न 6. भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ की गई नगरीय, औद्योगिक व्यवस्था का प्रभाव बताइए।
उत्तर-भारत में अंग्रेजों द्वारा प्रारंभ की गई नगरीय औद्यौगिक व्यवस्था ने प्राचीन संस्थाओं के ताने-बाने को समाप्त कर दिया। इसके द्वारा अनेक परंपरागतत जातियों एवं वर्गों का विघटन हो गया। इन परिवर्तनों के काण एक नयी प्रकार का सामजिक अनुकूलन तथा समायोजन हुआ।
इन नए परिवर्तनों के द्वारा भारत के नगरीय केंद्रो में शिक्षित मध्यवर्ग समाज का मुख्य बिंदु बनकर सामने आया।
प्रश्न 7. डी.पी. मुकर्जी के अनुसार भारत आधुनिकता के मार्ग पर किस प्रकार अग्रसर हो सकता है?
उत्तर-डी.पी. मुकर्जी के अनुसार भारत अपनी परंपराओं से अनुकूलन तभी कर सकता है जब
मध्यवर्गीय व्यक्ति अपना संपर्क आम जनता के पुनः स्थापित करें। मुखर्जी कहते हैं कि इस प्रक्रिया में उन्हें न तो अनावश्यक रूप से क्षमायाचना करनी चाहिए और न ही अपनी परंपराओं के विषय में बढ़-चढ़कर अथवा आत्मश्लाघा करनी चाहिए। उन्हें परंपराओं की जीवंतता को कायम रखना चहिए जिसमें आधुनिकता द्वारा आवश्यक परिवर्तनों के साथ समायोजन हो सके। इस प्रकार व्यक्तिवाद एवं समाजिकता के बीच संतुलन कायम रह सकेगा। इस नए अनुभव से भारत तथा विश्व दोनों ही लाभ प्राप्त कर सकेंगे।
प्रश्न 8. समाजशास्त्र के क्षेत्र में डी.पी. मुकर्जी का महानतम योगदान बताइए।
उत्तर-प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री डी.पी.मुकर्जी के विचार वर्तमान सामजिक पररिस्थितियों में पूर्णत: उचित है। मुकर्जी का समाजशास्त्र के क्षेत्र में महानतम योगदान परंपराओं की भूमिकाओं का सैद्धांतिक निरूपण है।
डी.पी. मुकर्जी का स्पष्ट मत था कि भारतीय समाजकि यर्थाथता की समुचित समीक्षा इसकी
संस्कृति तथा सामजिक क्रियाओं, विशिष्ट परंपराओं, विशिष्ट प्रतीकों, विशिष्ट मानकों के संदर्भ में की जा सकती है।
प्रश्न 9. जाति की सामाजिक मानवशास्त्रीय परिभाषा को सारंश में बताइए।
उत्तर-जाति जन्म पर आधारित ऐसा समूह है जो अपने सदस्यों को खान-पान, विवाह, व्यवसाय और सामजिक संपर्क के संबंध में कुछ प्रतिबंध मानने को निर्देशित करता है।
प्रश्न 10. ‘जीवंत परंपरा’ से डी.पी. मुकर्जी का क्या तात्पर्य है? भारतीय समाज शास्त्रीयों ने अपनी परंपरा से जुड़े रहने पर बल क्यों दिया?
उत्तर-प्रो.ए.आर. देसाई ने समाजशास्त्र में भारतीय समाज को लकर अनेक अध्ययन किये। उन्होंने पाया कि स्वतंत्रता के पश्चात् भातीय सामजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से रूपांतर की स्थिति उत्पन्न हुई है। भारत की जनता के रहन-सहन के परंपरगत स्तर में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया। आधुनिकता के नाम पर कुछ लोगों ने परंपराओं को त्यागने का साहस तो किया पर वे भी कहीं न कहीं उसमें लिप्त रहे।
भारतीय समाजशात्रियों के विषय में भी श्री देसाई के विचार यही है कि वे अपने अध्ययनों
में भारतीय परंपराओं के प्रति जकड़े हुए हैं इससे ऊपर उइकर उनकी विचार श्रृखंला मीमांसा नहीं बन पाती है।
              लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1. डी.पी. मुकर्जी के अनुसार सामजिक वास्तविकता का अर्थ है?
उत्तर-सामजिक वास्तविकता के संबंध में डी.पी.मुकर्जी के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
(i) सामजिक वास्तविकता के अनेक तथा विभिन्न पहलू हैं तथा इसकी अपनी परंपरा तथा भविष्य हैं।
(ii) सामजिक वास्तविकता को समझने के लिए विभिन्न पहलुओं की अंत:क्रियाओं की प्रकृति को व्यापक तथा संक्षिप्तत रूप में देखना होगा। इसके साथ-साथ परंपराओं तथा शक्तियों के अंत: संबंधों को भी भली भाँति समझना होगा। किसी विषय विशेष में सकुचित विशेषीकरण इस तथ्य को समझने में सहायक नहीं है।
(iii) डी.पी. मुकर्जी के अनुसार इस दिशा में सामाजशास्त्र अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। उनका स्पष्ट मत है कि किसी अन्य सामाजिक विज्ञान की भाँति समाजशास्त्र का अपना फर्श तथा छत है। मुकर्जी का मत है कि समाजशास्त्र का फर्श अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति धरातल में संबद्ध है तथा इसकी छत ऊपर से खुली हुई है।
(iv) डी.पी. मुकर्जी का मत है कि समाजशास्त्र हमारी जीवन तथा समाजिक वास्तविकता का एकीकृत दृष्टिकोण रखने में सहायता करता है। डी.पी. मुखर्जी ने सामाजिक जीवन के विस्तृत चित्र का संक्षिप्त दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि डीपी ने सामजिक विज्ञानों के संश्लेषण पर निरंतर जोर दिया है। समाजशस्त्र एक सामजिक विज्ञान के रूप में विभिन्न विषयों के संश्लेषण में महत्वपूर्ण प्रयास कर सकता है।
प्रश्न 2. “भारतीय समाजशात्रियों का समाजशास्त्री होने ही पूर्ण नहीं है, उन्हें पहले भारतीय होना चाहिए।” डी.पी. के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-डी.पी. मुकर्जी ने भारतीय समाज के अपने समाजशास्त्रीय विश्लेषण में यह तथ्य पूर्णरूपेण स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय समाजशास्त्र के व्यापक अध्ययन हेतु विभिन्न उपागमों की आवश्यकता है। डी.पी. का स्पष्ट मत है कि भारतीय सामजिक व्यवस्था के अध्ययन हेतु विभिन्न उपगमों की आवश्यकता है। डी.पी. का स्पष्ट मत है कि भारतीय सामजिक व्यवस्था के अध्ययन हेतु एक पृथक् उपागम की आवश्यकता है।
यही कारण है कि डी.पी मुकर्जी का मत है कि भारतीय समाजशास्त्रियों को केवल सामाजशास्त्री होना ही काफी नहीं है, उन्हें भारतीय भी होना चाहिए।
डी.पी. का मत है कि भारतीय समाजशास्त्रियों को भारतीय लोकाचारों, जनरीतियों, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए तथा इनका साथर्क अर्थ भी जानना चाहिए।
भारतीय समाजशास्त्रियों को निम्नलिखित दो उपगामों के संश्लेषण का प्रयास करना चाहिए।
प्रथम भारतीय समाजशास्त्री तुलनात्मक उपगम को अपनाएँगे। वास्तविक तुलनात्मक उपागम उन सभी विशेषताओं को स्पष्ट करेगी जो भारतीय समाज अन्य समाजों के साथ बाँटेगा। इसके साथ-साथ इसकी पंरपराओं की विशेषताओं को भी बाँटेगी। इसी दृष्टिकोण से, समाजशास्त्री परंपरा का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे। उनके द्वारा प्रतीकों तथा मूल्यों का सावधानी पूवर्क परीक्षण किया जाएगा।
द्वितीय भारतीय समाजशास्त्री विरोधी शक्तियों के संघर्ष तथ संप्लेषण के संरक्षण तथा परिवर्तन का समझने के लिए द्वंद्वात्मक उपागम का अवलंबन करेंगे।
प्रश्न 3. पश्चिमी सामजिक विज्ञान के संबंधा में डी.पी. मुकर्जी के क्या विचार थे?
उत्तर-पश्चिमी सामाजिक विज्ञान के विषय में डी.पी. मुकर्जी के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है-
(i) डी.पी. मुकर्जी पश्चिमी सामजिक विज्ञानों के प्रत्यक्षवाद के पक्ष में नहीं थे। मुखर्जी का मत है कि पश्चिमी सामजिक विज्ञान ने व्यक्तियों को जैविकीय या मनोवैज्ञानिक इकाइयों तक सीमित कर दिया है। पश्चिमी देशों की औद्योगिकी संस्कृति ने व्यक्ति को आत्मकेंद्रित कर्ता बना दिया है।
(ii) डी.पी. का मत है कि व्यक्तिवाद अथवा व्यक्तियों की भूमिकाओं तथा अधिकारों को मान्यता प्रदान करके प्रत्यक्षवाद के मनुष्य को उसके सामजिक आधार से पृथक् कर दिया है।
(iii) डी.पी. का मत है कि “हमारी मनुष्य की अवधारणा ‘पुरुष’ की है व्यक्ति की नहीं।’ मुखर्जी के अनुसार व्यक्ति शब्द हमारे धार्मिक ग्रंथों अथवा महर्षियों के कथनों में बहुत कम पाया जाता है। ‘पुरुष’ का विकास उसके अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग से तथा अपने समूह के सदस्यों के मूल्यों तथा भागीदारी से होता है।
(iv) डी.पी. के अनुसार भारत की सामजिक व्यवस्था मूलरूप से समूह, संप्रदाय अथवा जाति कार्य का मानक अनुस्थापन है। यही कारण है कि आम भारतीय द्वारा नैराश्य का अनुभव नहीं किया जाता है। इस संदर्भ में डी.पी. हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों तथा बौद्धों में कोई विभेद नहीं है।
प्रश्न 4. परंपराओं की गतिशीलता किस कहते हैं?
उत्तर-डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परंपरा का तात्पर्य संप्रेषण से है। प्रत्येक सामजिक परंपरा का कोई न कोई उद्गम अवश्य होता है। समाज के सभी सदस्यों द्वारा परंपराओं की ऐतिहासिकता ‘को मान्यता प्रदान की जाती है।
परंपरा के द्वारा प्रायः यथास्थिति को कायम रखा जाता है। परंपरा का रूढ़िवादी होना आवश्यक नहीं है। डी.पी. का मत है कि परंपराओं में परिवर्तन होता रहता है।
भारतीय परंपराओं में तीन सिद्धांतों को मान्यता प्रदान की गई है-
(i) श्रुती, (ii) स्मृति तथा (iii) अनुभव ।
विभिन्न संप्रदायों या पंथो संत-संस्थापकों के व्यक्तिगत अनुभवों से सामूहिक अनुभव की उत्पत्ति होती है, जिससे प्रचलित सामजिक-धार्मिक व्यवस्था में परिवर्तन होता है। प्रेम या प्यार तथा सहजता का अनुभव या स्वतः स्फूर्त जो इन संतों तथा अनेक अनुयायिकों में पायी जाती है वह सूफी संतों में भी देखने को मिलती है। परंपरागत व्यवस्था द्वारा विरोधी आवाजों को भी समायोजित किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, सुविधाहीन विभिन्न समूहों की वर्ग चेतना ने जातीय व्यवस्था को जबर्दस्त चुनौती दी है।
             दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. परंपरा तथा अधुनिकता के विषय में डी.पी. मुकर्जी के क्या विचार थे?
उत्तर-परंपरा तथा अधुनिकता के विषय में डी.पी. मुकर्जी के विचार :
(i) परंपरा का अर्थ-प्रसिद्ध भारतीय समाजशस्त्रीय डी.पी. मुकर्जी के अनुसार परंपरा का तात्पर्य संप्रेषण से है। प्रत्येक परंपरा का कोई न कोई उदगम स्रोत धार्मिक ग्रंथ तथा महर्षियों के कथन हो सकते हैं। परंपराओं के स्रोत कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन इनकी ऐतिहासिकता को प्रायः सभी व्यक्तियों द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है। परंपराओं को उद्धृत, पुनःस्मरण किया जाता है तथा उनका सम्मान किया जाता है।
(ii) भारतीय परंपराओं की शक्ति-डी.पी. मुकर्जी के अनुसार भारतीय परंपराओं की वास्तवीक शक्ति उसके मूल्यों को पारदर्शिता में पाई जाती है। इसकी उत्पत्ति स्त्रियों तथा पुरुषों की अतीत की घटनाओं से संबद्ध जीवन पद्धतियों तथा भावनाओं से होती है। डी.पी. का मत है कि भारतीय समाज द्वारा निश्चित रूप से कुछ मूल्यों को सुरक्षित किया गया है, इनमें से कुछ
मूल्य अच्छे तथा कुछ बुरे हैं। सोचने वाली बात यह है कि तकनीक, प्रजातंत्र, नगरीकरण तथा नौकरशाही के नियम आदि विदेशी तत्वों में उपयोगिता को भारतीय परंपरा में स्वीकार किया गया।
(iii) आधुनिक भारतीय संस्कृति एक आश्चर्यजनक सम्मिश्रण-डी.पी का यह स्पष्ट मत है कि पश्चिमी संस्कृति तथा भारतीय परंपराओं में समायोजन निश्चित रूप से होगा। डी.पी आगे कहते हैं कि भारतीय संस्कृति किसी भी दशा में समाप्त नहीं होगी। भारतीय संस्कृति की नमनीयता, समायोजन तथा अनुकूलन इसके अस्तित्व को अक्षुण्ण बनाए रखेंगे। भारतीय संस्कृति ने जनजातिय संस्कृति को आत्मसात किया है, इसके साथ-साथ इसने अनेक आंतरिक विरोधों
को भी अपने साथ मिलाया है। यही कारण है कि आधुनिक भारतीय संस्कृति एक आश्चर्य मिश्रण कहलाती है।
(iv) परंपरा व आधुनिकता में द्वंद की स्थिति-डी.पी का पूर्ण व्यक्ति या संतुलित व्यक्तित्व का अर्थ है-
(a) नैतिक उत्साह, सौंदर्यात्मक तथा बौद्धिक समझदारी का मिश्रण है।
(b) इतिहास एवं तार्किकता का ज्ञान
उपरोक्त कारणों से ही परंपरा तथा अधुनिकता में द्वंद की स्थिति बन जाती है।
(v) भारतीय परंपरा का पाश्चात्य संस्कृति से सामना डी.पी. का मत है कि भारतीय संस्कृति का पाश्चात्य संस्कृति से सामना होने पर संस्कृतिक अंत: विरोधों की शक्तियों को मुक्त किया जा सकता है। इस नए मध्य वर्ग को जन्म दिया है। डी.पी. के अनुसार संघर्ष तथा संशलपण की प्रक्रिया को भारतीय समाज की वर्ग-संरचना गो सुरक्षित रखने काली शक्तियों को आगे
बढ़ाया जाना चाहिए।
प्रश्न 2. डी.पी. मुकर्जी ने नए मध्यम वर्ग की अवधारणा की व्याख्या किस प्रकार की है?
उत्तर-डी.पी. मुकर्जी ने नए मध्यम वर्ग को व्याख्या के संबंध में निम्नलिखित बिंदुओं पर बल दिया है।
(a) नगरीय-औद्योगिक व्यवस्था-डी.पी. मुकर्जी के अनुसार अंग्रेजों द्वारा भारत में प्रारंभ की गई नगरीय औद्योगिक व्यवस्था ने पुराने ताने-बाने को लगभग समाप्त कर दिया।
नगरीय-औद्योगिक व्यवस्था के कारण अनेक जातियाँ तथा वर्ग भी विपटित हो गए। इसके कारण समाज में नया सामजिक अनुकूलन तथा समायोजन प्रारंभ हुआ। इस नए सामजिक ताने-बाने में नगरों में शिक्षित मध्यम वर्ग समाज का मुख्य बिंदु बन गया।
(ii) शिक्षित मध्यम वर्ग आधुनिक सामाजिक शक्ति के ज्ञान को नियंत्रित करता है-शिक्षित मध्यम वर्ग द्वारा सामजिक शक्ति के ज्ञान को नियंत्रित किया जाता है। इसका तात्पर्य है कि पश्चिमी देशों द्वारा प्रदत विज्ञान, तकनीक, प्रजातंत्र तथा ऐ तहासिक विकास की भावना भारत में नगरीय समाज में विज्ञान तथा तकनीकी से संबंधित समस्त विशेषताओं तथा मध्यम
वर्ग की सेवाओं के उपयोग की बात कही गई है। डी.पी. का मत है मुख्य समस्या इस मध्यम वर्ग के पश्चिमी विचारों तथा जीवनशैली का पूर्णरूपेण अनुकरण करना है। यही कारण है कि इस तथ्य को प्रसन्नता अथवा तिरस्कार कहा जाए कि हमारे माज का मध्यम वर्ग भारतीय वास्तविकताओं तथा संस्कृति से पूर्णतया अनभिज्ञ बना रहता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि भारतीय मध्य वर्ग पश्चिमी सभ्यता से अधिक निकट है जबकि भारतीय संस्कृति तथा
विचारों से उसका अलगाव जारी है।
यद्यपि मध्यम वर्ग भारतीय परंपराओं से संबद्ध नहीं है तथापि परंपराओं में प्रतिरोध तथा सीखने की अत्यधिक शक्ति पायी जाती है। यह परंपराएँ मानव के भौगोलिक तथा जनकीय प्रतिमानों के आधार पर भौतिक समायोजन तथा जैविकीय आवेगा के रूपातरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। इस संबंध में भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि यहाँ नगर-नियोजन तथा परिवार नियोजन के कार्यक्रमों परंपराओं से इनत अधिक संबधित हैं कि
नगर-नियोजन तथा समाज सुधारक इनकी अनदेखी नहीं कर सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं तो उनका समस्त नियोजन तथा सुधार कार्य खरते में पड़ जाएंगे। इस विश्लेषण के संदर्भ में कहा जा सकता है कि भारत का मध्यम वर्ग आधुनिक भारत के निमाण में आम जनता के नेतृत्व की स्थिति में नहीं है। मध्य वर्ग का विचार क्षेत्र पश्चिमी सभ्यता से संर्बोधत रहने के कारण यह स्वदेशी परपराओं से पृथक हो गया है। यही कारण है कि मध्यम वर्ग का आम जनता से संपर्क टूट गया है।
(iii) भारत परंपराओं से अनुकूलन करके आधुनिकता के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है-डी.पी. कर्णा का मत है कि यदि मध्यम वर्ग आम-जनता से अपना संपक पुनः स्थापित करता है तो भारत परंपराओं से अनुकूलन करके आधुनिकता के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। भारतीयों को अपनी परंपराओं के संदर्भ में न तो क्षमा याचना करने की आवश्यकता है और
न हो आत्मश्लाघा की आववश्यकता है। उन्हें परंपराओं की जीवतता को नियंत्रित करने के लिए
प्रयत्ल करना चाहिए जिसे आधुनिकता द्वारा आवश्यक परिवर्तनों के साथ समायोजन कर सके। इस प्रकार व्यक्तिवाद तथा सामाजिकता में संतुलन कायम होगा। इस नूतन अनुभवों से भारत तथा विश्व लाभान्वित हो सकेंगे।
प्रश्न 3. भारतीय संस्कृति तथा समाज की क्या विशिष्टताएँ हैं तथा ये बदलाव के ढाँचे को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर-भारतीय संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में विषमताओं के होते हुए भी मौलिक एकता की भावना इसे संसार की अन्य संस्कृतियाँ से अलग रखती है।
अर्थात समुद्र के उत्तर में हिमालय के दक्षिण में जो देश है वह भारत नाम का खंड है। वहाँ के लोग भारत की संतान कहलाते हैं। भारत एक विशाल देश है। उत्तर में हिमालय पर्वत दक्षिण में तीन ओर समुद्र हैं। इसकी भौगोलिक विशेषता इसे संसार के अन्य देशों से अलग रखती है। भारत की भौगोलिक एकता को खण्डित करने का साहस आज तक कोई शक्ति नहीं कर सकी।
सांस्कृतिक एकता- भारत के विभिन्न वर्गों ने मिलकर एक ऐसी विशिष्ट और अनोखी संस्कृति को जन्म दिया है जो शेष संसार से सर्वथा भिन्न है। भारतीय संस्कृति संसार में उच्च स्थान रखती है। भारतीय संस्कृति में एकता का आधार राजनीतिक या भौगोलिक न हाकर
सांस्कृतिक रहा है।
भाषगत एकता- भारत में प्राचीन काल से ही द्रविड़, आर्य, कोल, ईरानी, यूनानी, हूण, शक, अरब, पठान, मंगोल, डच, फ्रेंच, अंग्रेज आदि जातियाँ आती रही हैं। इन लोगों ने यहाँ की भाषा और संस्कृति को एक सीमा तक अपनाया। अधिकांश भारतीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। भारत में मुसलमानों के आगमन के पश्चात् उर्दू भाषा का जन्म
हुआ। बंगला, तमिल, तेलगु भाषा पर भी संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। भारत में प्राचीन काल से ही अनेक भाषाओं का जन्म हुआ किंतु उनमें किसी प्रकार का भी टकराव देखने को नहीं मिला।
धार्मिक एकता-भारत में विभिन्न धर्मों के मानने वाले निवास करते हैं। प्रत्येक धर्म के अपने विश्वास, रीति-रिवाज, उपासना ओर पूजन विधियाँ हैं। हिंदू धर्म में ही आर्य समाजी, सनातन धर्मी, शैव, वैष्णव, नानक गंथी, कबीर पंथी आदि विभिन्न सम्प्रदाय हैं, परंतु विभिन्न मत-मतान्तरों के होते हुए भी भारत में धार्मिक एकता बनी हुई है। संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष
राज्य घोषित किया गया। सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथों का आदर किया जाता है।
राजनीतिक एकता-भारत में समय-समय पर अनेक शासन प्रणालियों का प्रचलन रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात् प्रजातंत्रिक शासन प्रणली अस्तित्व में आई। अनेक राजनीतिक दल और विचारधाराओं का उदय हुआ किंतु सभी दल भारत की राजनीतिक एकता को सर्वोपरि समझते हैं।
सामाजिक-आर्थिक एकता- भारत में विभिन्न धर्मों और विश्वासों को मानने वाले लोग रहते हैं। उनकी परम्पराओं और रीति-रिवाजों में अंतर है परंतु उनके परस्पर संबंधों में उदारता और भाईचारे की भावना विद्यमान है। मानव कल्याण और लोकहित की भावना से प्ररेणा लेकर संस्कृति की एकता को सुरक्षित बनाए रखा गया है। आर्थिक विषमता के होते हुए भी आत्मसंतोष की भावना विद्यमान है।
उपर्युक्त सभी विशेषताएँ भारतीय संस्कृति तथा समाज की है जबकि किसी भी समाज में परिवर्तन होता है तो उसके कुछ निर्धारित प्रारूप होते हैं यथा-समाज में हिंदी भाषा के स्थान पर अंग्रेजी का वर्चस्व यह प्रतिरूप समाज की भाषायी एकता को प्रभावित करता है। इसी प्रकार अन्य तत्व भी परिवर्तन के प्रारूप को प्रभावित करते हैं।
        अक्षय रमनलाल देसाई (1915-1994)
पाठ्यपुस्तक एवं अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न एवं उत्तर
              अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रो. देसाई की दो प्रमुख कृतियाँ का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-श्री देसाई की दो प्रमुख कृतियाँ हैं-
(i) Social Background of Indian Nationalism.
(ii) State and Society in India.
प्रश्न 2. कल्याणकारी राज्य किसे कहते हैं।
उत्तर-पो.ए. आर. देसाई के अनुसार स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई। कल्याणकारी राज्य में लोकतांत्रिक समाजवाद के चिंतन को प्रस्तुत किया गया। प्रो. देसाई के अनुसार भारत में कल्याणकारी राज्य पूँजीवादी संरचना का मुखौटा है। कल्याणकारी राज्य में बुर्जुआ वर्ग के हितों की रक्षा की जा रही है। इस प्रकार प्रो. देसाई ने कल्याणकारी राज्य को जन सामान्य के संघर्ष के क्षेत्र में एक सुनियोजित अवरोध के रूप में सामने रखा है।
प्रश्न 3. प्रो. देसाई के अनुसार ‘भूमि सुधारों’ में असफलता के क्या कारण थे?
उत्तर-प्रो. देसाई के अनुसार भूमि सुधार में असफलता के निम्न कारण थे-
(i) राजनीतिक संकल्प शक्ति का अभाव।
(ii) प्रशासनिक संगठन : नीति निर्वाह के अपर्याप्त कारण।
(iii) कानूनी बाधाएँ।
(iv) सही एवं अद्यतन अभिलेखों का अभाव।
(v) भूमि सुधार को अब तक आर्थिक विकास की मुख्य धारा से अलग करके देखना।
             अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ए. आर देसाई के समाजशास्त्रीय योगदानों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए?
उत्तर-डॉ. योगेन्द्र सिंह ने तुलनात्मक विश्लेषणों के आधार पर प्रो.ए. आर. देसाई के समाजशास्त्रीय
योगदान का मूल्यांकन किया है। योगेन्द्र सिंह ने निम्न बिंदुओं के आधार पर प्रो. देसाई के महत्व को स्पष्ट किया है।
(i) प्रो. योगेन्द्र सिंह के अनुसार सामजिक अध्ययनों के मार्क्सवादी प्रतिमानों का विकास विशेषकर युवा समाजशास्त्रियों में देखा जा सकता है। 1950 के दशक में यह दृष्टिकोण अस्तित्व में था लेकिन वह इतना गहरा नहीं था उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि डी.पी. मुखर्जी ने सामजिक विश्लेषणों में मार्क्सवादी दृष्टिकोण के स्थान पर शास्त्रीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी थी इस दृष्टिकोण में भारतीय आदर्शों और परंपराओं के साथ द्वंद्वात्मक तर्क संलग्न किया गया था।
(ii) अपने आरंभिक अध्ययनों में समाजशास्त्री रामकृष्ण मुकर्जी ने मार्क्सवादी परंपराओं की बहुत-सी श्रेणियों और संचालनों का उपयोग किया। लेकिन कालान्तर में, समाजशास्त्र में मार्क्सवादी पद्धतियों को 1950 के दशक की पीढ़ी के समाजशास्त्रियों के मध्य अकेले ए. आर. देसाई ने ही. समाजशास्त्र में समान रूप से प्रचारित और प्रयुक्त किया था।
(iii) भारतीय समाजशास्त्र के जिज्ञासात्मक विषय की जड़ें व्यापक दृष्टिकोण से मुख्यतः संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक अथवा कुछ अर्थों में संरचनात्मकता और ऐतिहासिक संरचनात्मक प्रतिमानों में पाई जाती थीं। यह भारतीय समाजशास्त्र पर ब्रिटिश और अमेरिकी समाजशास्त्री परंपराओं के प्रभाव को स्पष्ट करता है। 1970 और 1980 के दशक के मध्य ये परंपराएँ पाई
जाती थीं।
इस प्रकार प्रो, योगेन्द्र सिंह ने ए.आर. देसाई की समाजशास्त्रीय दृष्टि का तुलनात्मक विश्लेषण किया है।
प्रश्न 2. ए.आर. देसाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-भारतीय समाजशास्त्रीय अक्षय रमनलाल देसाई का जन्म सन् 1915 में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा, बड़ौदा, सूरत तत्पश्चात् मुम्बई में संपन्न हुई। आप ऐसे पहले भारतीय समाजशास्त्री थे जो सीधे तौर पर किसी राजनीतिक दल के औपचारिक सदस्य थे। आप जीवन भर मार्क्सवादी रहे। आप मार्क्सवादी राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहे।
श्री देसाई के पिता मध्यवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति थे और बड़ौदा राज्य में लोक सेवक थे। वे एक अच्छे उपन्यासकार भी थे। वे समाजवाद, भारतीय राष्ट्रवाद और गाँधी जी की विभिन्न गतिविधियों में रुचि रखते थे। श्री देवाई की माता का देहांत जल्दी हो गया था। श्री देसाई ने अपने पिता के साथ प्रवसन का जीवन अधिक व्यतीत किया, क्योंकि
उनके पिता का स्थानांतरण निरंतर होता रहता था।
श्री देसाई को 1948 में पी.एच.डी. की उपाधि मिली। आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं:
(i) Social Background of Indian Nationalism.
(ii) Peasant Struggles in India.
(iii) Agraian Struggless in India after Independence
(iv) State and Society in India
प्रश्न 3. ए. आर. देसाई ने भारतीय सम् जशास्त्रियों की आलोचना किस प्रकार की?
उत्तर-प्रोफेसर ए. आर. देसाई ने संयुक्त राज्य अमेरिका तथा इंगलैंड से उधार ली गई अवधारणाओं तथा पद्धतियों के आधार पर भारतीय समाजशास्त्रियों के द्वारा सामाजिक-आर्थिक प्रघटनाओं के विश्लेषण करने की प्रवृति की कड़ी आलोचना की थी। श्री देसाई के अनुसार भारत में समाजशास्त्र मुख्यतया उधार ली हुई अवधारणाओं और पद्धतियों का अनुशासन है।
और यह उधार पश्चिमी देशों विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैंड के परम प्रतिष्ठित केन्द्रों से लिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि परम प्रतिष्ठित मॉडलों का पीछा करते हुए छद्म बुद्धि व्यापार के दलदल में आत्मलाप है।
प्रो.ए.आर. देसाई ने बौद्धिक चेतना एवं विश्लेषण के एक नवीन क्षितिज का सृजन किया। समाजशास्त्रीय विचारों की शृखंला को एक नई उष्मा प्रदान की। स्पष्ट है कि जनसाधारण के संघर्ष से समाजशास्त्र के विकास में प्रो. देसाई का योगदान अतुलनीय है।
प्रश्न 4. देसाई की सार्वजनिक क्षेत्र की अवधारणा क्या है?
उत्तर-प्रो.ए.आर. देसाई ने सार्वजनिक क्षेत्र की अवधारणा को स्पष्ट किया है। वास्तव में अनेक देशों में पूँजीवादी संरचना के विकल्प के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता दी जा रही है। जब सरकारी तथा अर्द्धसरकारी स्तर पर उत्पादन के विभिन्न साधनों एवं संगठनों पर नियंत्रण किया जाता है, उसका राष्ट्रीयकरण किया जाता है तो उसमें सार्वजनिक क्षेत्रों का एक स्वरूप निर्मित हो जाता है। जैसे भारत में 1970 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार देश में सार्वजनिक क्षेत्र को महत्व देने का प्रयास किया गया।
प्रो. ए. आर. देसाई ने अपनी पुस्तक Indian’s path of Development Amarxist Apporach में सार्वजनिक क्षेत्रों का मू यांकन किया है। श्री देसाई के अनुसार भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का संतुलित विकास नहीं हुआ है। इस का ण पूंजीपतियों को निरंतर प्रश्रय प्राप्त होता रहता है।
            दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कल्याणकारी राज्य क्या है? ए. आर. देसाई इसके द्वारा किए गए दावों की आलोचना क्यों करते हैं?
उत्तर-प्रो. देसाई अपनी कृति State and Society in India में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की है लोक-कल्याणकारी राज्य किसी अहस्तक्षेपी राज्य से भिन है। राज्य का अहस्तक्षेपी रूप तो केवल ऐसे कार्य सम्पादित करता है जो पुलिस कार्य कहलाते हैं, जैसे-सुरक्षा कानून व्यवस्था ? सम्पत्ति का संरक्षण तथा अनुबंधों का प्रवर्तन। इसके अतिरिक्त अहस्तक्षेपी राज्य व्यक्ति के अन्य कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता जबकि लोक-कल्याणकारी राज्य उपरोक्त कार्यों के साथ-साथ जन स्वास्थ्य का भी ध्यान रखता है। वे ऐसी बुनियादी सुविधाएँ भी सुलभ
कराता है, जिससे लोगों में राज्य के मामलों का प्रभावी भागीदारी निभाने के लिए आवश्यक न्यूनतम शिक्षा का लाभ अवश्य पहुँचे। इसके अतिरिक्त लोक-कल्याणकारी राज्य तो अनिवार्यतः नागरिकों को काम का अधिकार, निश्चित निर्वाह आय का अधिकार तथा आश्रय पाने का अधिकार सुलभ कराना होता है। बेरोजगारों को निर्वाह भत्ता देना भी ऐसा ही राज्य का दायित्व है। सभी को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए लोक कल्याणकारी राज्य मानव अधिकारों में आस्था रखता है। वह आवश्यक रूप से मानव जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता लेकिन आर्थिकता, निध ‘नता, बीमारी तथा अन्य सामजिक बुराईयों को दूर करने का प्रयत्न करता है।
इस प्रकार अहस्तक्षेपी राज्य एक नकारात्मक राज्य हैं जो सुरक्षात्मक (पुलिस कार्य) करता है, जबकि लोक कल्याणकारी सकारात्मक राज्य है जो विकास कार्य करता है।
प्रश्न 2. प्रो. ए. आर देसाई के समाजशास्त्रीय विचारों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-प्रो. ए. आर देसाई अपने आप में एक विशिष्ट भारतीय समाजशास्त्री हैं जो सीधे तौर पर एक राजनैतिक पार्टी से जुड़े थे और उसके लिए कार्य करते थे। भारतीय समाजशास्त्र में प्रो. देसाई का अवदान अविस्मरणीय है।
प्रो. देसाई ने जन-संघर्ष तथा विक्षोभ के वैचारिक आयाम को भारतीय समाजशास्त्र की चिंतन परिधि में एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया। एक चेतना संपन्न विचारक के रूप में उन्होंने विश्व की प्रमुख घटनाओं तथा मुद्दों का गंभीर अध्ययन किया। उन्होंने भारतीय सामाजिक संरचना में पाए जाने वाले शोषण तथा सामाजिक मतांतरों का सूक्ष्म विश्लेषण किया। सामजिक-आर्थिक एसं राजनीतिक प्रघटनाओं के विश्लेषण में प्रोफेसर ए. आर. देसाई ने उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों एवं शोतों को प्रयुक्त किया। पूँजीवादी आर्थिक संरचना तथा श्वते वसन राजनीतिक व्यवस्था के नकाब को उतारकर रख दिया। भारतीय समाजशस्त्र के विस्तृत आयाम पर प्रोफेसर देसाई ने अध्ययन एवं अनुसंधान को एक सर्वथा नवीन दिशा एवं दृष्टि प्रदान की। परिवार,
नातेदारी, जाति, विवाह, धर्म तथा परंपरा के विशलेपण में समर्पित समाजशास्त्रियों से बिलकुल
अलग जन संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्सवादी दृष्टिकोण के आधार पर एक नवीन ऊर्जा तथा एक वीन उष्मा प्रदान की। प्राफसर ए. आर. देसाई ने लिखा है:
“सापाजिक विज्ञान के अभ्यासियों को गभीर वाद्धिक तथा नैतिक धर्म सकंट का सामना करना पड़ेगा-या तो वे देश के शासक के तरीकों को सही सिद्ध करते हुए अपने लिए सुरक्षा और सम्मान का इंतजाम करें, या हिम्मत बाँधकर और नतीजों का सामना करने के लिए तैयार होकर ऐसा नजरिया अप गएँ जो विकास के पूंजीवाद रास को अपनानी वाली सरकार के नेतृत्व
में काम करती शक्तियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए दुख भोगते लोगों के लिए उपयोगी ज्ञान को प्रजनित करें तथा उसका प्रचार-प्रसार करें। उनका संघर्ष पूँजीवादी रास्ते के परिणामों के असर को दूर करने के लिए और उसके विपरीत विकास के गैर-पूँजीवादी रास्ते के लिए स्थितियाँ तैयार करने के लिए होगा। इससे भारत में काम काजी लोगों की विशाल संख्या की उत्पादत क्षमता मुक्त हो जाएगी और समान वितरण संभव होगा।”
प्रोफेसर ए.आर.देसाई ने पूँजीवादी आर्थिक संरचना, साम् ज्यवाद एवं दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध समाजशास्त्रीय चिंतन परिधि के आधार पर विचार प्रकट किए। उन्होंने समाजशास्त्रीय अध्ययन तथा अनुसंधान को जनसंघर्ष के साथ जोड़ा तथा जन-विक्षोभ के विविध आयामों को वैज्ञानिक दृष्टि दी। उन्होंने स्वतंत्र भारत में परिवर्तन तथा वि स की आलोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की। साथ ही पंचवर्षीय योजनाओं, कृषि समस्याओं, विकास कार्यक्रमों, ग्रामीण संरचनाओं एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का गहन एवं गंभीर विश्लेषण किया उनके अनुसार स्वतंत्र भारत में राज्य की प्रकृति तथा समाज के प्रकार के विश्लेषण में बौद्धिक जगत से जुड़े लोग असफल
रहे हैं तथा विद्वानों द्वारा निरंतर जन-संघर्ष के केन्द्रीय बिंदु की उपेक्षा की गई। उन्होंने जन-असहमति,
कल्याणकारी राज्य, भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्व, भारतीय राष्ट्रवाद, संक्रमण स्थिति
में भारतीय ग्रामीण समुदाय तथ, महात्मा गाँधी के सत्य एव अहिंसा के रि द्रान्तों का आलोचनात्मक
परीक्षण किया। उन्होंन अपने विचारों तथा चिंतनों के आधार पर सत्ता एवं व्यवस्था का पोषण नहीं किया। कल्याणकारी राज्य के नाम पर पूँजीवादी आर्थिक संरचना के संपोषण की प्रवृति का उन्होंने खुलासा किया। एक विद्राही समाजशास्त्री के रूप में, एक प्रतिवद्ध मार्क्सवादी चिंतक के रूप में तथा जन-असहमति एवं जन संघर्ष के मुद्दों से जुड़े एक प्रखर समाजशास्त्री के रूप में प्रोफेसर ए. आर देसाई का नाम विचारों की दुनिया में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
उन्होंने भारत में राजनीति तथा विकास के विविध आयामों के अध्ययन के लिए समाजशास्त्रियों को उत्प्रेरित किया। उन्होंने कल्याणकारी राज्य, संसदीय लोकतंत्र, राजनीति तथा विकास के अध्ययन हेतु ऐतिहासिक भौतिकवाद के आधार पर भारत में राज्य तथा सामाज का विश्लेषण किया। साथ ही, समाजशास्त्रीय नजरिये की एक नई उत्तेजना प्रदान की। समाजशास्त्रीय अध्ययन को बहस का विषय बनाया। क्या मौजूदा समाजशास्त्रीय अध्ययन पिछड़ापन, गरीबी तथा असमानता के सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है, क्या भारतीय समाज में तेजी से हो रहे रूपांतरणों की केन्द्रीय प्रवृत्ति को रेखांकित करने में मौजूदा समाजशास्त्रीय अन्वेषण सक्षम है? क्या गरीबों के हक में हस्तक्षेप करने की ताकत समाजशास्त्र में पैदा की जा सकी है? प्रोफेसर देसाई ने स्पष्ट किया कि भारतीय परिदृश्य में समाजशास्त्रीय विश्लेषणों तथा उपागमों पर प्रश्न चिह लगाया जा सकता है।
      मैसूर नरसिंहाचार श्रीनिवास (1916-1999)
पाठ्यपुस्तक एवं अन्य महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी प्रश्न एवं उत्तर
         अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एम. एन. श्रीनिवास की प्रमुख कृतियाँ कौन सी हैं?
उत्तर- (i) ‘रिलीजन एंड सोसाइटी अमंग दि कुर्गस ऑफ साउथ इंडिया’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन, 1952
(ii) ‘मेथड इन सोशल एंथ्रोपॉलोजी’, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस, शिकागो, संपादित,1958
(iii) ‘सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया’, लॉस एंजिलल्स कैलीफोर्निया, 1996
(iv) ‘कास्ट इन मॉडर्न इंडिया एंड अदर एशेज’, मुंबई एलाइड पब्लिशर्स, 1962
(v) ‘द रिमेम्बर्ड विलेज’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1976
(vi) ‘द डोमिनेण्ट कास्ट एंड अदर एशेज’, ऑक्सफोर्ड यूनिसर्सिटी प्रेस, 1987
(vii) ‘द कोहेसिव रोड ऑफ संस्कृताइजेशन’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989
(viii) ‘ऑन लिविंग इन ए रिवोल्यूशन एंड अदर एशेज’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस,1992
(ix) ‘इंडियन सोसाइटी श्रू पर्सनल राइटिंग्स’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1996
प्रश्न 2. श्री.एम.एन. श्री निवास के समजशास्त्रीय योगदान को दर्शाने वाले दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर-समाजशास्त्री पी.सी. जोशी ने लिखा है कि एम. एन. श्री निवास ने मनुवाद का विरोध किया तथा बड़ौदा विश्वविद्यालय के प्रमुख शिक्षाविद् प्रो. के.टी.शाह के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि समाजशास्त्र मनु के धर्मशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। एम.एन. श्रीनिवास ने 1996 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘इंडियन सोसाइटी’ श्रू पर्सनल राइटिंग्स’ में यह स्पष्ट किया कि समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक प्रघटनाओं के विश्लेषण हेतु वैज्ञानिक पद्धति आवश्यक है।
एम.एन. श्रीनिवास ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय विद्याशास्त्र तथा समाजशास्त्र को पर्यायवाची शब्द के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। भारतीय विद्याशास्त्र तथा समाजशास्त्र में बहुत अंतर है। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि समाजशास्त्रीय परिदृश्य में भारतीय विद्याशास्त्र को समाजशास्त्र के रूप में गहण करने की दोषपूर्ण प्रवृति रही है। एम.एन. श्री निवास ने यह भी स्पष्ट किया कि सामजशास्त्रीय अध्ययन एवं अनुसंधान हेतु समाजशास्त्रियों को आम जनता के बीच जाना ही होगा। इस प्रकार उन्होंने क्षेत्रीय शोध कार्य के महत्व को रेखांकित किया। पुस्तकों, अभिलेखों, पुरातत्वों तथा अन्य संबंधित सामग्रियों का उपयोग द्वितीयक स्रोत के रूप में किया जा सकता है। सामाजिक वास्तविकता एवं सामाजिक प्रघटनाओं के अध्ययन के लिए सुदूर नगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अध्ययन के आधार पर ही प्रामाणिक तथ्यों का विश्लेषण वैज्ञानिक औचित्य एवं वस्तुनिष्ठ पद्धतियों के आधार पर संभव है। इस प्रकार उन्होंने पुस्तकीय परिपेक्ष्य को विशेष महत्व प्रदान नहीं किया।
              लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-समाजशास्त्री एम.एन.श्रीनिवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिन्दू जाति या कोई जनजाति अथवा अन्य समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज जाति की दिशा में अपने रीति-रिवाज, धर्मकांड, विचारधारा और जीवन पद्धति को बदलता हैं।
संस्कृतिकरण में नए विचारों और मूल्यों को ग्रहण किया जाता है। निम्न जातियाँ अपनी स्थिति को ऊपर उठाने के लिए ब्राह्मणों के तौर तरीकों को अपनती हैं और अपवित्र समझे जाने वाले मांस मदिरा के सेवन को त्याग देती हैं। इन कार्यों से ये निम्न जातियाँ स्थानीय अनुक्रम में ऊँचे स्थान की अधिकारी हो गई है। इस प्रकार संस्कृतिकरण नये और उत्तम विचार, आदर्श मूल्य, आदत तथा कर्मकांडों को अपनी जीवन स्थित को ऊँचा और परिमार्जित बनाने की क्रिया है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति में अपरिवर्तित होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। जाति व्यवस्था अपने आप नहीं बदलती।संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जातियों में ही नहीं बल्कि जनजातियों और अन्य समूहों में भी पाई जाती है। भारतीय ग्रामीण समुदायों में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में प्रभुजाति की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे संस्कृतिकरण करने वाली जातियों के लिए संदर्भ भूमिका का कार्य करती है। यदि किसी क्षेत्र में ब्राह्मण प्रभु जाति है तो वह ब्राह्मणवादी विशेषताओं को फैला देगा। जब निचली जातियाँ ऊँची जातियों के विशिष्ट चरित्र को अपनाने लगती हैं तो उनका कड़ा विरोध होता है। कभी-कभी ग्रामों में इसके लिए झगड़े भी हो जाते हैं। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पहले से चली आ रही
है। इसके लिए ब्राह्मणों का वैधीकरण आवश्यक था।
प्रश्न 2. पाश्चात्यीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए ।
उत्तर-समाजशास्त्री डॉ. श्री निवास के पश्चिमीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। पश्चिमीकरण के संदर्भ में उनका विचार है कि “पश्चिमीकरण शब्द अंग्रेजों के शासनकाल के 150 वर्षों से अधिक के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को व्यक्त करता है और इस शब्द में प्रौद्योगिकी संस्थाओं, विचारधारा, मूल्यों आदि के विभन्न स्तरों में घटित होने वाले परिवर्तनों का समावेश रहता है।”
पश्चिमीकरण का तात्पर्य देश में उस भौतिक सामाजिक जीवन का विकास होता है जिसके अंकुर पश्चिमी धरती पर प्रकट हुए और जो पश्चिमी व यूरोपीय शक्तियों के विस्तार के साथ-साथ विश्व के विभिन्न कोनों में अविराम गति से बढ़ता गया।
पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण भी कह सकते हैं लेकिन अनेक समानताएँ होते हुए भी पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण के लिए पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से संपर्क होना आवश्यक है। पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है। इसमें किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का आभास नहीं होता। भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा में पाये जाने
वाले ऊँच-नीच के भेद समाप्त हो रहे हैं। नगरीकरण ने जाति प्रथा पर सीधा प्रहार किया है। यातायात के साधनों के विकसित होने से, अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से सभी जातियों का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि एक जैसे हो गये हैं। महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार आ रहा है। भारतीय महिलाओं पर पाश्चात्मय शिक्षा और संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विवाह की संस्था में अब लचीलापन देखने को मिलता है। विवाह पद्धति
में परिवर्तन आ रहे हैं बाल विवाह का बहिष्कार बढ़ रहा है। अन्तर्जातीय विवाह नगरों में बढ़ रहे हैं। स क्त परिवार प्रथा का पतन भी देखने को मिल रहा है। रीति-रिवाजों और खान-पान भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।
प्रश्न 3. सा जशास्त्रीय शोध के लिए ‘गांव को एक विषय के रूप में लेने पर एम.एन. श्री निव प तथा लुई ड्यूमों ने इसके पक्ष तथा विपक्ष में क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर-लुई ड्यूमा और एम.एन. श्रीनिवास दोनों ही भारतीय समाजशास्त्री हैं। दोनों ने ही अनेक विषयों पर समजशास्त्रीय अन्वेषण किया है। दोनों ने ही ‘ग्राम’ पर भी अपने विचार प्रकट किए हैं। ‘ग्राम’ को समाजशास्त्रीय अन्वेषण का विषय बनाने के संदर्भ में दोनों ने निम्म तर्क प्रस्तुत किए हैं:
ग्रामीण जीवन कृषि पर आधारित है कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें सारा ग्राम कृषि समुदाय एक-दूसरे पर निर्भर करता है। सभी लोग फसलों की बुआई, कटाई आदि में एक-दूसरे का सहयोग करते हैं। ग्रामीण जीव में सरलता और मितव्ययता एक महत्वपूर्ण विशेषता है। ग्रामों में अपराध और पथभ्रष्ट व्यवहार जैसे चोरी, हत्या, दुराचार आदि बहुत कम होते हैं क्योंकि ग्रामीणों में बहुत सहयोग होता है। वे भगवान से भय खाते हैं और परम्परावादी हाते हैं। ग्रामीण लोग नगरों की चक चौंध और माह से कम प्रभावित होते हैं और साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। उनके व्यवहार और कार्यक, नाप गाँव की प्रथा, रूढ़ि, जनरीतियों आदि से संचालित होते हैं। उनकी इसी सहजता के कारण वे समाजणात्री अन्वेषण में बहुत सहयोग देते हैं।
                 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समाज के स्तरीकरण में जाति का आधार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-जाति एक ऐसे पदसोपानीकृत संबंध को बताती है जिसमें व्यक्ति जन्म लेता है तथा जिसमें व्यक्ति का स्थान, अधिकार तथा कर्त्तव्य का निर्धारण होता है। व्यक्तिगत उपलब्धियाँ तथा गुण व्यक्ति की जाति में परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। जाति व्यवस्था वस्तुतः हिदूं समाजिक संगठन का आधार है।
प्रसिद्ध फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुई ड्यूमों ने अपनी पुस्तक होमो हाइरारकीकस में जाति व्यवस्था का मुख्य आधार शुद्धता तथा अशुद्धता की अवधारणा होता है। ड्यूमों ने पदसोपतक्रम को जाति व्यवस्था की विशेषता माना है।
प्रारंभ में हिंदू समाज चार वर्गों में विभाजित था :
(i) ब्राह्मण, (ii) क्षत्रिय, (iii) वैश्य तथा (iv) शूद्र ।
शुद्धता तथा अशुद्धता के मापदंड पर ब्राह्मण का स्थान सर्वोच्च तथा शूद्र का निम्न होता है। वर्ण व्यवस्था में पदानुक्रम क्षत्रियों का द्वितीय तथा वैश्य का तृतीय स्थान होता है।
एम.एन.श्रीनिवास के अनुसार जिस प्रकार जाति व्यवस्था की इकाई कार्य करती है, उस संदर्भ में वह जाति है, वर्ण नहीं है हालांकि, जाति-व्यवस्था के लक्षणों को वर्ण व्यवस्था से ही लिया गया है, लेकिन वर्तमान संदर्भ में जाति प्रारूप अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
एम.एन.श्रीनिवास ने जाति की परिभाषा करते हुए कहा है कि :
(i) जाति वंशानुगत होती है।
(ii) जाति अंत:विवाही होती है।
(iii) जाति आमतौर पर स्थानीय समूह होती है।
       अन्य महत्त्वपूर्ण परीक्षापयोगी प्रश्नोत्तर
                  वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर
           खण्ड – 1 समाजशास्त्र : एक परिचय
सही विकल्प का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) में चयन करें।
1. समाजशास्त्र तथा मानव शास्त्र को किसने ‘जुड़वा बहनें’ कहा है?
(क) वार्ड ने
(ख) क्रोबर ने
(ग) प्रीचार्ड ने
(घ) यंग ने
उत्तर- (ख)
2. ‘विस्तृत अर्थों में समाज और सामाजिक मानवशास्त्र एक ही है’ यह कथन किनका है?
(क) क्रोबर का
(ख) मेकाइवर का
(ग) हॉबेल का
(घ) सोरोकिन का
उत्तर- (ग)
3. ‘समाजशास्त्र अंत:क्रियाओं का अध्ययन है’ ऐसा विचार करने वालों में निम्नलिखित में कौन-सा समाजशास्त्री प्रमुख थे?
(क) जार्ज सिम्मेल
(ख) मैक्सवेबर
(ग) ऑगबर्न एवं नीमकॉफ
(घ) जॉनसन
उत्तर- (ख)
4. किस समाजशास्त्री ने समाजशास्त्र का एक प्रत्यक्ष विज्ञान (Positive Science) के सभी लक्षणों से युक्त एक विज्ञान सिद्ध किया है?
(क) जॉनसन ने
(ख) गिन्सबर्ग ने
(ग) गिडिंग्स ने
(घ) लुण्डबर्ग ने
उत्तर- (घ)
5. ऑगस्त कॉम्टे किस देश के विचारक थे?
(क) इगलैंड
(ख) जर्मनी
(ग) फ्रांस
(घ) अमेरिका
उत्तर- (ग)
6. ऑगस्त कॉम्टे ने किस वर्ष ‘सोसियोलॉजी’ शब्द का प्रयोग किया?
(क) 1838-39 में
(ख) 1828-29 में
(ग) 1830-31 में
(घ) 1826 में
उत्तर- (ग)
7.’संबंधी के जाल’ को हम समाज कहते हैं। ऐसा किस समाजशास्त्री ने कहा है?
(क) सोरोकिन ने
(ख) मोकाइवर एवं पेज ने
(ग) ऑगबर्न एवं नीमकॉफ
(घ) मैक्सवेबर ने
उत्तर-(ख)
8.’आर्थिक घटनाएं सदा सामजिक आवश्यकताओं और क्रियाओं के समस्त स्वरूपों द्वारा निश्चित होती हैं’ यह कथन किनका है?
(क) मेकाइवर का
(ख) थॉमस का
(ग) सोरोकिन का
(घ) मैक्सवेबर व
उत्तर- (क)
9. समाजशास्त्र का जन्मदाता किन्हें कहा जाता है?
(क) जेम्स हिल को
(ख) ऑगस्त कॉम्टे को
(ग) हर्बर्ट स्पेन्सर को
(घ) ओडॅम को
उत्तर- (ख)
10. ऑगस्त कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित समाजशास्त्र विज्ञान को किस विचारक ने प्रारंभ में जोरदार समर्थन किया?
(क) टी.वी. बोटीमोर ने
(ख) हर्बर्ट स्पेन्सर ने
(ग) वार्ड ने
(घ) सोरोकिन ने
उत्तर-(ख)
11. हर्बर्ट स्पेन्सन किस देश के समाजशास्त्री थे?
(क) जमर्नी
(ख) फ्रांस
(ग) अमेरिका
(घ) इंगलैंड
उत्तर- (घ)
12. सुप्रसिद्ध समाजशास्त्री मेकाइवर के सहकर्मी समाजशास्त्र कौन थे?
(क) वार्ड
(ख) नीमकॉफ
(ग) गिलिन
(घ) पेज
उत्तर- (घ)
13. निम्नलिखित समाजशास्त्रियों में स्वरूपात्मक संप्रदाय के समर्थक कौन थे?
(क) सोरोकिन
(ख) जार्ज सिम्मेल
(ग) मैक्सवेबर
(घ) वीकांत
उत्तर- (क)
14. समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।’ यह परिभाषा किस समाजशास्त्री की है?
(क) वार्ड की
(ख) मेकाइवर एवं पेज की
(ग) मैक्सवेबर की
(घ) गिलिन एवं गिलिन की
उत्तर- (क)
15. किनके अनुसार समाजशास्त्र को अन्य समाविज्ञानों को समन्वय बनाए रखना चाहिए?
(क) हॉबेल
(ख) क्रोवर
(ग) प्रीचार्ड
(घ) स्पेन्सर
उत्तर- (घ)
2. समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका प्रयोग
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1. भीड़ निम्नलिखित में किस प्रकार के समूह के अन्तर्गत आता है?
(क) निश्चित संगठनवाले समूह के अंतर्गत
(ख) अनिश्चित संगठनवाले समूह के अंतर्गत
(ग) क्षेत्रीय समूह के अंतर्गत
(4) वृहत् समूह के अंतर्गत
उत्तर- (ख)
राजनीतिक दल किस प्रकार के समूह का उदाहरण है?
(क) अंत: समूह के
(ख) द्वितीयक समूह के
(ग) वृहत् समूह के
(घ) प्राथमिक समूह के
उत्तर- (ख)
3. ‘सोशल ऑर्गनाइजेशन’ पुस्तक के रचनाकार कौन हैं?
(क) चार्ल्स कूले
(ख) सिम्मेल
(ग) बोगार्डस
(घ) एडवर्ड सापिर
उत्तर- (क)
4. प्राथमिक समूह की अवधारणा के महत्त्व का उल्लेख सबसे पहले किस समाजशास्त्री ने किया?
(क) किंबल यंग
(ख) चार्ल्स कूले
(ग) वॉनविज
(घ) अस्थायी समूह का
उत्तर- (ख)
5. निम्नलिखित समूहों में किस समूह का नामकरण चार्ल्स कूले ने किया है?
(क) क्षेत्रीय समूह का
(ख) अंत: समूह का
(ग) प्राथमिक समूह का
(घ) अस्थायी समूह का
उत्तर- (ग)
6. किन दो समाजशास्त्रियों द्वारा किया गया समूह का वर्गीकरण अधिक प्रचलित है?
(क) गिलिन एवं गिलिन
(ख) ऑगबर्न एवं नीमकॉफ
(ग) समनर एवं चार्ल्स कूले
(घ) सिम्मेल एवं वॉनविज
उत्तर- (ग)
7. निम्नलिखित में कौन प्राथमिक समूह की विशेषता नहीं है?
(क) आमने-सामने का संबंध
(ख) उद्देश्यों की समानता
(ग) बड़ा आकार
(घ) संबंधों की स्वाभाविकता
उत्तर- (ग)
8.निम्नलिखित समूहों में कौन-सा प्राथमिक समूह नहीं है?
(क) परिवार
(ख) अस्पताल
(ग) क्रीड़ा समूह
(घ) पड़ोस
उत्तर- (ग)
9. निम्नलिखित समूहों में से सही कथन का चयन किजिए?
(क) प्राथमिक एवं द्वितीयक समूहों का वर्गीकरण समनर ने किया है
(ख) समूह में पारस्परिक संबंध होना आवश्यक नहीं है
(ग) सिम्मेल ने स्थायित्व के आधार पर समूहों का वर्गीकरण किया है
(घ) क्षेत्रीय समूह एवं हितों के प्रति चेतन समूह का वर्गीकरण
उत्तर- (घ)
10. ‘समूह से हमारा तात्पर्य एक ऐसे संग्रह से है जिसमें एक-दूसरे के बीच सामाजिक संबंध निश्चित हो गए हैं।’ किन्होंने ऐसा कहा है ?
(क) ऑगबर्न एवं नीमकॉफ ने
(ख) गिलिन एवं गिलिन ने
(ग) वॉनविज एवं बेकर ने
(घ) मेकाइवर एवं पेज ने
उत्तर- (घ)
11. मेकाइवर तथा पेज द्वारा समूह की परिभाषा में किस तत्व पर अधिक जोर दिया गया है?
(क) सामाजिक संबंधों पर
(ख) समाज उद्देश्यों पर
(ग) एक-दूसरे को प्रभावित करने पर
(घ) समूह में पारस्परिक संबध अनिवार्य होता है
उत्तर- (घ)
12. समूह के संबंध में निम्नलिखित में से सही कथन का चयन की कीजिए ?
(क) समूह की सदस्यता अनिवार्य होती है।
(ख) समूह में स्थायित्व की कमी होती है।
(ग) समूह का कोई निश्चित ढाँचा नहीं होता।
(घ) समूह में पारस्परिक संबंध अनिवार्य होता है।
उत्तर- (क)
13. समूह की ऐसी परिभाषा किनके द्वारा दी गई है जिसमें एक-दूसरे को प्रभावित करने की बात कही गयी है?
(क) चार्ल्स कूल द्वारा
(ख) गिलिन एवं गिलिन द्वारा
(ग) ऑगबर्न एव नीमकॉफ द्वारा
(घ) मेकावर तथा पेज द्वारा
उत्तर- (घ)
14. निम्नलिखित में चार्ल्स कूले की पुस्तक का नाम बताएँ?
(क) सोसाइटी
(ख) दी ह्यूमन ग्रूप
(ग) सोसल ऑर्गनाइजेशन
(घ) फोकबेज
उत्तर- (ग)
15. निम्नलिखित में कौन-सा ऐसा कथन है जो समूह की विशेषता व्यक्त नहीं करता?
(क) व्यक्तियों की समूह में होना आवश्यक है।
(ख) एकता की भावना आवश्यक है।
(ग) समूह की सदस्यता अनिवार्य होती है।
(घ) समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक संबंधों का होना अनिवार्य है।
उत्तर- (ग)
16. समूह से संबंध कौन-सा कथन गलत है?
(क) व्यक्तियों का मात्र एकत्रीकरण समूह नहीं आता
(ख) समूह के लिए औचारिक संबंधों का होना आवश्यक है।
(ग) परिवार प्राथमिक समूह का एक उदाहरण है।
(घ) समूह के सदस्य एक-दूसरे की सहायता करते हैं तथा अपने हितों की सामूहिक रूप से रक्षा करते हैं।
उत्तर- (ख)
17. किसने कहा कि “द्वितीयक समूह ऐसे जिनमें घनिष्ठता का पूर्णत: अभाव रहता है?
(क) चार्ल्स कूले
(ख) गिंसबर्ग
(ग) होमन्स
(घ) वॉनविज
उत्तर- (क)
18. निम्नलिखित पुस्तकों में राधा कमल मुखर्जी के द्वारा लिखी गयी पुस्तक कौन सी है?
(क) कल्चरल सोशिओलॉजी
(ख) ह्यूमन सोसाइटी
(ग) दी स्ट्रकचर ऑफ सोशल वेल्यूज
(घ) दी सोशल ऑर्डर
उत्तर- (घ)
          3. सामजिक संस्थाओं को समझना
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1. निम्नांकित में किनमें बहुपति विवाह की प्रथा प्रचलित है?
(क) नायरों में
(ख) मुंडाओं में
(ग) संथालों में
(घ) स्पेन्सर गोंडो में
उत्तर- (क)
2. किस समाजशास्त्री ने परिवार के संगठन में ‘रक्तसंबंध’ पर अधिक जोर दिया है?
(क) क्लेयर ने
(ख) किंग्सले डविस ने
(ग) बोगार्डस ने
(घ) स्पेन्सर ने
उत्तर- (ख)
3. निम्नलिखित में कौन-सा संगठन प्रत्यक्ष सहयोग पर आधारित है?
(क) पर्लियामेंट
(ख) परिवार
(ग) सरकार
(घ) जेनरल एसम्बली
उत्तर- (ख)
4. किसने परिवार को एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक आरामगृह’ कहा है?
(क) मेकाइवर तथा पेज ने
(ख) ऑगबर्न तथा नीमकॉफ ने
(ग) बर्गेस एवं लॉक ने
(घ) सदरलैंड तथा वुडवर्ड ने
उत्तर- (घ)
5. निम्नांकित में कौन-सा कथन परिवार के लिए उपयुक्त नहीं है?
(क) परिवार समाज की प्रारंभिक इकाई है।
(ख) परिवार एक समिति भी है और एक संस्था भी
(ग) परिवार की प्रकृति अस्थायी होती है
(घ) परिवार में यौन-संबंधों की सामाजिक स्वीकृति रहती है
उत्तर- (ग)
6. किनके शब्दों में परिवार लगभगत एक स्थायी समिति’ है?
(क) मेकाइवर एवं पेज के
(ख) ऑगवर्न एवं नीमकॉफ के
(ग) बीसेंज एवं बीसेंज के
(घ) बर्गेस एवं लॉक के
उत्तर- (ग)
7. निम्नलिखित कार्यों में कौन-सा कार्य परिवार से संबद्ध है?
(क) सामाजीकरण का कार्य
(ख) आर्थिक कार्य
(ग) सांस्कृतिक कार्य
(घ) इनमें सभी
उत्तर- (ख)
8. मेकाइवर तथा पेज के अनुसार परिवार का कौन-सा लक्षण सही नहीं है?
(क) सार्वभौमिकता
(ख) विस्तृत आकार
(ग) भावात्मक आधार
(घ) सामाजिक नियमन
उत्तर- (ख)
9. निम्नांकित कथनों में परिवार से संबद्ध कौन-सा लक्षण सही नहीं है?
(क) परिवार कुछ लोगों का संग्रह है
(ख) परिवार समाजीकरण की एक इकाई है
(ग) परिवार एक सार्वभौमिक संस्था है
(घ) परिवार का एक प्रधान उद्देश्य यौन-संबंधों की स्थापना है
उत्तर-(क)
10. परिवार की उत्पत्ति के बारे में मेकाइवर तथा पेज के अनुसार कौन-सा कथन सत्य है?
(क) परिवार की उत्पत्ति के मूल में पशुवत यौन-संबंधों को नियंत्रित करना था
(ख) आदिम समाज में परिवार नहीं था
(ग) मानव-जीवन के विकास में कभी कोई अवस्था नहीं थी जब परिवार नहीं था
(घ) समाज की ऐसी एक अवस्था थी जिसने आगे चलकर परिवार निकला
उत्तर- (ग)
11. कौन से समाजशास्त्री ने परिवार को एक समिति के अतिरिक्त एक संस्था भी कहा है?
(क) मेकाइवर एवं पेज ने
(ख) किंग्सले डेविस ने
(ग) ऑगबर्न एवं नीमकॉफ ने
(घ) क्लेयर ने
उत्तर- (क)
12. परिवार को उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धांत के प्रमुख समाजशास्त्री कौन थे?
(क) ब्रेकोफन
(ख) प्लेटो
(ग) वेस्टरमार्क
(घ) किंग्सले डेविस
उत्तर- (क)
13. निम्नलिखित में कौन-सा कार्य परिवार का जैविकीय कार्य नहीं है?
(क) संतानोत्पत्ति
(ख) यौन-इच्छाओं की पूर्ति
(ग) सहयाग एवं श्रम-विभाजन
(घ) बच्चों का पालन पोषण
उत्तर- (ग)
14. ‘पितृवंशीय परिवार’ परिवार के वर्गीकरण का निम्नांकित में कौन-सा आधार है?
(क) विवाह का आधार
(ख) संख्या एवं आकार का आधार
(ग) निर्वाह का आधार
(घ) वंश का आधार
उत्तर- (घ)
15. परिवार की उत्पत्ति के संबंध में एक विवाह के सिद्धांत’ के प्रतिपादक कौन हैं?
(क) मॉगर्न
(ख) हेनरी मेन
(ग) वेस्टरमार्क
(घ) क्लेयर
उत्तर- (ग)
16. जब एक स्त्री के एक समय में एक से अधिक पति होते हैं तो उसे कहते हैं-
(क) बहुविवाह
(ख) समूहविवाह
(ग) अंतर्विवाह
(घ) बहुपति विवाह
उत्तर- (घ)
           4. संस्कृति तथा समाजीकरण
सही विकल्प का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) में चयन करें।
1. सर्वप्रथम किसने संस्कृति के लिए ‘अधिसावयवी’ शब्द का प्रयोग किया?
(क) स्पेंसर
(ख) क्रोबर
(ग) मैलिनोवस्की
(घ) लिंटन
उत्तर- (ख)
2. अभौतिक संस्कृति का कौन-सा उदाहरण है?
(क) वस्त्र
(ख) वाहन
(ग) सड़कें
(घ) लोकाचार
उत्तर- (घ)
3. संस्कृति के सम्बन्ध में नीचे दिए गये कथनों में से कौन-सा सही नहीं है?
(क) संस्कृति जटिल है
(ख) संस्कृति संगठित है
(ग) संस्कृति सीखी नहीं जाती है
(घ) संस्कृति अनुकूलनशील होती है।
उत्तर- (ग)
4. निम्नलिखित में कौन-सा कारक व्यक्तितव को सर्वाधिक प्रभावित करता है?
(क) अनुवांशिकता
(ख) संस्कृति
(ग) आर्थिक संसाधन
(घ) अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ
उत्तर- (ख)
5. भौतिक संस्कृति का एक उदाहरण है-
(क) कानून
(ख) प्रथाएँ
(ग) बर्तन
(घ) जनरीतियाँ.
उत्तर- (ग).
6. व्यक्तित्व प्रभावित होता है-
(क) सभ्यता से
(ख) समाज से
(ग) संस्कृति से
(घ) सम्पत्ति से
उत्तर- (ग)
7. किसने संस्कृति को सामजिक विरासत कहा है?
(क) बूम तथा सेल्जनिक ने
(ख) बीसेंज तथा सीवेज ने
(ग) गिलिन तथा गिलिन
(घ) पार्क तथा बगेस ने
उत्तर- (क)
8. निम्नलिखित समाजशास्त्रियों में से सांस्कृतिक विलम्बना की धारणा किसने दिया?
(क) एल.एच. मार्गन
(ख) डब्ल्यू. एफ. आगवर्न
(ग) आर.एम. मेकाइवर
(घ) ई.बी. टायलर
उत्तर- (ख)
9. किस प्रक्रिया द्वारा व्यक्तित्व का विकास होता है?
(क) पश्चिमीकरण
(ख) समाजीकरण
(ग) एकीकरण
(घ) संस्कृतिकरण
उत्तर- (घ)
10. वह प्रक्रिया जिसके द्वारा व्यक्ति आत्मपयन, व्यक्तित्व एवं सांसकृतिक तत्वों को ग्रहण करता है, कहलाती है-
(क) सात्मीकरण
(ख) एकीकरण
(ग) व्यवस्थापन
(घ) समाजीकरण
उत्तर- (घ)
11. यह कथन किसना है, “एक व्यक्ति के सामाजिक प्राणी के रूप में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का नाम ही समाजीकरण है’।
(क) फिचर
(ख) न्यूमेयर
(ग) स्टीवर्ट
(घ) किम्बल यंग
उत्तर- (ख)
12. ‘समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोग अपनी संस्कृति के विश्वासों, अभिवृत्तियों, मूल्यों और प्रथाओं को ग्रहण करते हैं। यह कथन किसका हैं-
(क) स्वीवर्ट एवं ग्लिन
(ख) फिचर
(ग) पारसन्स
(घ) न्यूमेयर
उत्तर- (क)
13. समाजीकरण की प्रक्रिया को काम प्रवृतियों (लिबिडो) से निर्धारित कौन-सा विद्वान मानता है-
(क) फ्रायड
(ख) मीड
(ग) कूले
(घ) दुर्थीम
उत्तर- (क)
14. लिबिडो की अवधारणा से किस विद्वान का सम्बन्ध है-
(क) मर्टन
(ख) जॉनसन
(ग) पैरिश
(घ) फ्रॉयड
उत्तर- (घ)
15. निम्नांकित में से समाजीकरण की प्रथम अवस्था कौन सी है?
(क) मौखिक अवस्था
(ख) इडिपल अवस्था
(ग) शौच अवस्था
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (क)
16. ‘समाजीकरण सीखने की वह प्रक्रि है जो सीखने वाले को सामजिक भूमिकाओं का निर्वाह करने योग्य बनाती है।’ ऐसा किस समाजशास्त्री ने कहा है-
(क) दूबे
(ख) जॉनसन
(ग) श्री निवास
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ख)
17. निम्न में से समाजीकरण का उद्देश्य क्या है-
(क) क्षमताओं का विकास
(ख) अपराधी प्रवृति को रोकना
(ग) आधारभूत नियमबद्धता का विकास
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (घ)
18. निम्नांकित में से समाजीकरण का उद्देश्य कौन-सा नहीं है-
(क) अकांक्षाओं की पूर्ति
(ख) अपराधी प्रवृत्ति को रोकना
(ग) क्षमताओं का विकास
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर- (ख)
19. इड, इगो एव सुपर-इगो की अवधारणाएँ किसने दी-
(क) फ्रॉयड
(ख) कूले
(ग) दुर्थीम
(घ) मीड
उत्तर- (क)
20. ‘सोशियोलॉजी एण्ड फिलोसफी’ पुस्तक के लेखक हैं-
(क) दुर्थीम
(ख) वेबर
(ग) मार्क्स
(घ) मेकाइवर
उत्तर- (क)
21. सामूहिक चेतना की अवधारणा किस समाजशास्त्री ने दी-
(क) वेबर
(ख) मार्क्स
(ग) दुर्शीन
(घ) मर्टन
उत्तर-(ग)
22. कूले का सम्बन्ध निम्नांकित में से किस से है?
(क) मैं और मुझे
(ख) आत्मपदर्पण दर्शन
(ग) सामान्यकृत अन्य
(घ) सामूहिक प्रतिनिधान
उत्तर- (ख)
23. फ्रायड का सम्बन्ध निम्नांकित में सक किससे है-
(क) इड, ईगो, सुपर-ईगो
(ख) सामूहिक चेतना
(ग) आत्पदर्पण दर्शन
(घ) सामान्यकृत अन्य
उत्तर-(क)
24. समाज द्वारा अस्वीकृत व्यवहारों को सीखना कहलाता है-
(क) समाजीकरण
(ख) वि-सभाजीकरण
(ग) नकारात्मक समाजीकरण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (ग)
            5. समाजशास्त्र अनुसंधान पद्धतियाँ
सही विकल्प का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) में चयन करें।
1. ‘प्रविधियाँ’ एक समाज वैज्ञानिक के लिये वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिनहें वह अपने अधययन से संबंधित विश्वसनीय तथ्यों (Reliable
facts)को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।’ यह कथन है-
(क) मोजर
(ख) लुंडबर्ग
(ग) मोर्स
(घ) पी.वी. यंग
उत्तर- (क)
2. ‘सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से अवश्लेषण की एक पद्धति है।’ यह कथन है-
(क) मोजर
(ख) लुंडबर्ग
(ग) मोर्स
(घ) पी.वी. यंग
उत्तर- (ग)
3. ‘मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित वरूक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अन्तर्गत वे आने व्यवहार का वर्णन करते हैं।यह कथन है-
(क) मोजर
(ख) लुंडबर्ग
(ग) मोर्स
(घ) पी.वी. यंग
उत्तर- (ख)
4. ‘अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है- जैसे सामूहिक व्यवहार तथा जटिर सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली के यप में उपयोग किया जाता है। यह कथन है-
(क) मोजर
(ख) लुंडबर्ग
(ग) मोर्स
(घ) पी.वी. यंग
उत्तर- (घ)
5. ‘एक प्रश्नावली के प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सूचनादाता को बिना अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायत के उत्तर देना होता है। साधारणतया प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँआ भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।’ यह कथन है-
(क) मोजर
(ख) लुंडवर्ग
(ग) मोर्स
(घ) पी.वी. यंग
उत्तर- (ग)
            खण्ड-2: समाज का बोध
1. समाज में सामाजिक संरचना, स्तीरकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ
सही विकल्प का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) में चयन करें।
1. ‘समाजिक स्तरीकरण से अभिप्राय किसी सामाजिक व्यवस्था में व्यक्तियों को जांचे तथा नीचके के पदसोपानक्रम में विभाजन है’ यह कथन है-
(क) टाल्कॉट पारसंस
(ख) ऑगबर्न तथा निमाकॉफ
(ग) हरबर्ट स्पेंसर
(घ) रैडक्लिक ब्राउन
उत्तर- (क)
2. ‘सजातीय समूह के अंतर्गत वे वयक्ति आते हैं जिनका एक वास्तविक अथवा काल्पनिक पूर्वज होता है तथा इनमें सह अस्तित्व की भावना पायी जाती
है।’ यह कथन है-
(क) टॉलकॉट पारसंस
(ख) ऑगबर्न तथा निमकॉफ
(ग) शिबुतनी और चावल
(घ) रैडक्लिक ब्राउन
उत्तर- (ग)
3. ‘एक सजातीय समूह में एक व्यापक समाज में सामूहिकता है जिनका एक वास्तविक तथा काल्पनिक पूर्वज तथा समान ऐतिहासिक पृष्ठभूमि होती है।’
(क) टॉलकॉट पारसंस
(ख) ऑगवर्न तथा निमकॉफ
(ग) शिबुतनी और चावल
(घ) रैडक्लिक ब्राउन
उत्तर- (ख)
4. ‘सामाजिक सतीकरण अन्त:क्रिया तथा विभेदीकरण की प्रक्रिया है, जिसके आधार पर कुछ व्यक्तियों का स्थानक्रम अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा उच्च होता है।’ यह कथन है-
(क) सदरलैंड तथा मैक्सवेल
(ख) ए.शेर्मरहोर्न
(ग) शिबुतनी और क्वान
(घ) रैडक्लक ब्राउन
उत्तर- (क)
5. ‘सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिससे कि व्यक्ति समूह के आदर्श नियमों के अनुरूप व्यवहार करना सीखता है।’ यह कथन है-
(क) सदरलैंड तथा मैक्सवेल
(ख) ए.शेर्मरहोर्न
(ग) शिबुतनी और क्वान
(घ) ऑगबर्न
उत्तर- (घ)
6. ‘अकार्य’ निरीक्षण द्वारा स्पष्ट होने वाले वे परिणाम हैं जो सामाजिक व्यवस्था के अनुकूलन अथवा नियोजन को कम कर देते हैं। यह कथन है-
(क) सदरलैंड तथा मैक्सवेल
(ख) मर्टन
(ग) शिबुतनी और क्वान
(घ) ऑगवर्न
उत्तर- (ख)
7. ‘सामाजिक संरचना परस्पर क्रिया करती हुई सामाजिक शक्तियों का जाल है। जिसमें अवलोकन तथा चिंतन की विश्व प्रणालियों का जन्म होता है।’
यह कथन है-
(क) कार्ल मानहीम
(ख) मर्टन
(ग) शिबुतनी और क्वान
(घ) ऑगबर्न
उत्तर- (क)
8. ‘सामाजिक संरचना के घटक मानव प्राणी हैं, स्वंय संरचना दो व्यक्यिों की क्रमबद्धता है, जिसमें संबंध संस्थात्मक रूप परिभाषित एवं नियमित हैं। यह कथन है-
(क) कार्ल मानहीम
(ख) मर्टन
(ग) रैडक्लिफ ब्राउन
(घ) ऑगबर्न
उत्तर- (क)
9. ‘सहयोग दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कोई कार्य करने या मसान्य रूप से इच्छित किसी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किया जाने वाला निरन्तर एवं सामूहिक प्रयास है।’ यह कथन है-
(क) कार्ल मानहीम
(ख) ग्रीन
(ग) रैडक्ल्पि ब्राउन
(घ) ऑगबर्न
 उत्तर- (क)
10. ‘सहयोग सामाजिक अन्तःक्रिया का वह स्वरूप है जिनमें दो या दो से अधिक व्यक्ति एक सामान्य उद्देश्य की पूर्ति में एक साथ मिलकर कार्य करते हैं’ यह कथन है-
(क) एल्ड्रिज तथा मैरिल
(ख) ग्रीन
(ग) रैडक्ल्पि ब्राउन
(घ) ऑगबर्न
उत्तर- (क)
11. सामाजिक प्रक्रिया का एक असहयोगी रूप है
(क) संघर्ष
(ख) सहयोग
(ग) सहयोग
(घ) सहिष्णुता
उत्तर- (क)
12. किस समाजशास्त्री का मानना है? समाजशास्त्री के रूप में हमारा प्रत्यक्ष सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों से है। इसलिए इनमें होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिर्वतन मानते हैं।
(क) मेकाइवर
(ख) किंग्सले
(ग) फिक्टर
(घ) जिन्सवर्ग
उत्तर- (क)
13. वर्तमान समय के समाशास्त्र में हमें किस प्रकार का प्रकारवाद देखने को मिलता है?
(क) यांत्रिक प्रकारवाद
(ख) सामाजिक संगठन
(ग) संरचनात्मक प्रकारवाद
(घ) सामाजिक गतिशीलता
उत्तर- (ग)
14. ऐतिहासिक तौर पर सामाजिक तौर पर भूल व्यवस्थायें मौजूद नहीं है-
(क) दो
(ख) तीन
(ग) पाॅंच
(घ) चार
उत्तर-()
15. यदि कोई सामाजिक संस्था नैसर्गिक है तो वह है-
(क) परिवार
(ख) वर्ग
(ग) राजनैतिक दल
(घ) उर्पयुक्त सभी
उत्तर-
16. सत्ता विकसित करती है-
(क) सामाजिक मूल्यों को
(ख) सामाजिक प्रतिमानों को
(ग) सामाजिक अनुसंधानों को
(घ) समाजिक स्तरीकरण को
उत्तर-( )
17. सामाजिक परिवर्तन ला सकती है-
(क) सहानुभूति
(ख) शान्ति
(ग) सहयोग
(घ) क्रांति
उत्तर-
1. समाज में सामाजिक संरचना, स्तीरकरण और सामाजिक प्रक्रियाएँ
सही विकल्प का संकेताक्षर (क, ख, ग, घ) में चयन करें।
1. निम्नांकित में से कौन-सी सामाजिक परिर्वतन की विशेषता है-
(क) सामाजिक प्रकृति
(ख) ब्रूम एवं सेल्जनिक
(ग) जटिल तथ्य
(घ) उपयुक्त सभी
उत्तर- (घ)
2. निम्नांकित में से कौन-सा प्रौद्योगिकी का अप्रत्यक्ष प्रभाव नहीं है-
(क) परिवार में परिवर्तन
(ख) धर्म में परिवर्तन
(ग) प्रतिस्पर्धा का बढ़ना
(घ) गतिशीलता का बढ़ना
उत्तर- (घ)
3. मेकाइवर ने सामाजिक परिर्वतन के कितने प्रतिमानों का उल्लेख किया है-
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर- (ख)
4. ‘डिक्शनरी टू सोशियालॉजी’ पुस्तक के लेखक का नाम क्या है-
(क) बोटोमोर
(ख) डॉसन एवं गेटिस
(ग) फेयरचाइल्ड
(घ) फर्फ
उत्तर- (ख)
5. निम्नांकित में प्रौद्योगिकी का अंग कौन-सा नहीं है-
(क) उत्पादन के उपरकरण
(ख) ज्ञान
(ग) दक्षता
(घ) अविष्कार
उत्तर- (घ)
6. किसने कहा था ‘समाज परिवर्तनशील एवं गत्यात्मक है’-
(क) हेरेक्लिटस
(ख) मेकाइवर
(ग) मॉर्गन
(घ) बोगार्डस
उत्तर- (ख)
7. ‘सामाजिक सम्बन्धों में होने वाले परिवर्तनों को सामजिक परिर्वतन कहते हैं। यह परिभाषा किसकी है-
(क) गिलिन एवं गिलिन
(ख) ब्रूम एवं सेल्जनिक
(ग) मेकाइवर एवं पेज
(घ) जॉनसन
उत्तर- (ग)
8. निम्नांकित में से कौन-सा प्रौद्योगिकी का प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं है-
(क) श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण
(ख) नगरीकरण
(ग) गतिशीलता का बढ़ना
(घ) वर्गो का उदय
उत्तर- (ग)
9. निम्नाकिंत में से कौन सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त को मानते हैं-
(क) स्पेंगलर
(ख) ऑगस्ट कॉम्टे
(ग) स्पेन्सर
(घ) मार्क्स
उत्तर-(घ)
10. निम्नांकित में से कौन सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त के समर्थक हैं-
(क) दुर्थीम
(ख) वेबर
(ग) टॉयनबी
(घ) ऑगस्त काम्टे
उत्तर- (घ)
11. टॉयनबी ने विश्व की कितनी सभ्यताओं का अध्ययन किया है-
(क) आठ
(ख) बारह
(ग) इक्कीस
(घ) कोई भी नहीं
उत्तर- (ग)
12. सामाजिक परिवर्तन के ‘चुनौती एवं प्रतयुत्तर सिद्वान्त’ का प्रतिपादन किसने किया ?
(क) मार्क्स
(ख) टॉयनबी
(ग) सैडलर
(घ) ऑगबर्न
उत्तर- (ख)
13. ग्रामीणता के निर्धारण पर आधार है-
(क) प्रकृति पर प्रत्यक्ष निर्भरता
(ख) सीमित आकार
(ग) प्राथमिक सम्बन्ध
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर- (घ)
14. ग्रामीण समुदाय की विशेषता है-
(क) कम जनसंख्या
(ख) सजातीय या एकरूपता
(ग) स्थिरता
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर- (घ)
15. ‘ग्राम और नगर दोनों ही समान हैं, इनमें न कोइ दूसरे से अधिक प्राकृतिक है और न ही कृत्रिम’यह कथन किसका है?
(क) सोराकिन
(ख) मेकाइवर एवं पेज
(ग) जिमरमेन
(घ) ए.आर देसाई
उत्तर- (ख)
16. भारतीय ग्रामीण समुदायों का प्रमुख लक्षण है-
(क) प्रकृति से निकटता
(ख) काल्पनिक नातेदारो
(ग) परम्परा की प्राधनता
(घ) प्राथमिक सम्बन्ध
उत्तर-(क)
17. इनमें से नगरीय समुदाय की विशेषता नहीं है-
(क) सामाजिक तथा स्थानीय गतिशीलता
(ख) शिक्षा एवं तर्क प्रधान जीवन
(ग) स्वार्थों में भिन्नता
(घ) वैयक्तिक और प्रत्यक्ष सम्बन्ध
उत्तर- (क)
18. नगरों की जनसंख्या में विभिन्नता होने का मुख्य कारण है-
(क) सम्प्रदायवाद
(ख) क्षेत्रवाद
(ग) भाषावाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर- (घ)
19. निम्नांकित में से नगरीय समुदाय की सही विशेषताओं का चयन किजिए?
(क) आवासीय समानता
(ख) कुटीर उद्योगों की प्रधानता
(ग) भावात्मक सम्बन्ध
(घ) सावयवी एकता
उत्तर- (घ)
20. भारतीय ग्रामीण समुदायों में कौन-लषण नहीं पाया जाता?
(क) जातिगत निवास का विभाजन
(ख) काल्पनिक नातेदारी
(ग) प्रकृति से निकटता
(घ) आत्मनिर्भरता
उत्तर- (घ)
21. ग्रामीण समुदाय में लोगों के बीच होते हैं ?
(क) प्राथमिक सम्बन्ध
(ख) द्वितीयक सम्बन्ध
(ग) क एव ख दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-(ख)
22. ग्रामीण एवं नगरीय जीवन में-
(क) बिल्कुल विभिन्नता पापी जाती है
(ख) कुछ अंशो का ही अन्ता पाया जाता है।
उत्तर- (ख)
23. ग्रामीण एवं नगरीय जीवन में –
(क) समानता है
(ख) विभिन्नता है
(ग) समानताएं और विभिन्नताएँ है
उत्तर-(ग)
24. ‘अत्यधिक वर्ग विषमता नगर का लक्षण है’ यह किसका कथन है?
(क) एन्डरसन
(ख) बर्गस
(ग) बिर्थ
(घ) बोगार्डस
उत्तर- (घ)
25. ग्रामीण समुदाय में जनसंख्या घनत्व होता है
(क) सघन
(ख) मिश्रित
(ग) विरल
(घ) काफी सघन
उत्तर- (घ)
26. नगर निगम की व्यवस्था की जाती है
(क) 10 लाख से कम कम की जनसंख्या पर
(ख) 10 लाख से उपर की जनरांख्या पर
(ग) 1 लाख से 5 लाख की जनसंख्या पर
(घ) 10 हजार से उपर की जनसंख्या पर
उत्तर- (ग)
27. सामाजिक परिवर्तन लाती है बदलाव
(क) राजनैतिक व्यवस्था में
(ख) आर्थिक व्यवस्था में
(ग) सामाजिक व्यवस्था में
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर- (घ)
28. 1951 की जनगणना में भारतीय गाँवों के वर्गीकरण का क्या आधार अपनाया गया?
(क) जनसंख्या
(ख) कृषि निर्भरता
(ग) निवास
(घ) कुटीर उद्योग
उत्तर- (क)
29. सामाजिक परिवर्तन के किस प्रतिमान का उल्लेख मेकाइवर ने नहीं किया है।
(क) तरंगीय
(ख) रेखीय
(ग) चक्रीय
(घ) पाराबोलिक
उत्तर- (घ)
30. नगरीय समुदाय की विशेषता निम्नलिखित में से कौन है?
(क) स्वभाविक विकटता
(ख) सामाजिक जीवन में एकरूपता
(ग) अधिक परिमाण में इकट्ठा होना
(घ) सामाजिक गतिशीलता का अभाव होना
उत्तर- (घ)
 31 . नगरीय समुदाय की विशेषता है
( क ) स्वभाविक निकटता
( ख ) सामाजिक जीवन में एकरूपता
( ग ) अधिक परिमाण में इकट्ठा होना
( घ ) सामाजिक गतिशीलता का अभाव
उत्तर- ( ग )
          3. पर्यावरण तथा सामाजिक व्यवस्था
सही विकल्प का संकेताक्षर ( क , ख , ग , घ ) में चयन करें । ‘
1. सामाजिक पारिस्थितिकी एक समुदाय में मनुष्यों एवं मानवीय संस्थाओं के प्रतीकात्मक संबंधों एवं उनसे उत्पन्न क्षेत्रीय प्रतिमानों का अध्ययन है । ‘ यह कथन है
( क ) क्यूबर
( ख ) रॉस
( ग ) मकाइवर
( घ ) लुईस बर्थ                        उत्तर- ( घ ) 2.कोई भी बाह्य शक्ति जो हमें प्रभावित करती है , पर्यावरण होती है । यह कथन है
( क ) मेकाइवर
( ख ) रॉस
( ग ) क्यूबर
( घ ) लुईस बर्थ                        उत्तर- ( घ ) 3. संपूर्ण पर्यावरण से हमारा तात्पर्य उस ‘ सब कुछ ‘ से है जिसका अनुभव सामाजिक मनुष्य करता है , जिसका निर्माण करने में व्यक्ति सक्रिय रहता है तथा उससे स्वयं भी प्रभावित होता है । ‘ यह कथन है ( क ) रास
( ख ) क्यूबर
( ग ) मेकाइवर
( घ )लुईस बर्थ                          उत्तर- ( ग ) 4. सामाजिक पारिस्थितिकी ( Social Ecology ) समुदायों तथा पर्यावरण के संबंधों का अध्ययन है । यह कथन है
( क )
( ख ) ऑगबर्न तथा निमकॉफ
( ग ) मेकाइवर
( घ ) लुईस वर्थ                        उत्तर- ( क ) 5. साइबेरिया के टुंड्रा , सहारा के हमादा अथवा मेजन के जंगलों में लगभग शून्य हैं यह कथन है मनुष्य
( क ) रॉस
( ख ) ऑगबर्न तथा निमकॉफ
( ग ) मेकाइवर।
( घ ) ब्रन्हम।                             उत्तर- ( )
6. वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की कितनी वृद्धि हो गई है ?
( क )30 प्रतिशत
( ख ) 33 प्रतिशत
( ग ) 25 प्रतिशत
( घ ) 35 प्रतिशत.                      उत्तर- ( ) 7.भोपाल गैस कांड किस वर्ष हुआ था ?
( क ) 1982
( ख )1984
( ग )1985
( घ )1986                                उत्तर- ( ) 8. लुइस वर्थ 4 . 5 . 6 . 25 प्रतिशत 7 . ( क ) ( ग ) 1986
8. ओजोन की परत में कितने प्रतिशत की कमी हुई है ?
( क ) 3-5 प्रतिशत
( ख ) 6-7 प्रतिशत
( ग ) 4-6 प्रतिशत
( घ ) 3- 4 प्रतिशत
9. जलप्रदूषण से होती है
( क‌ )दिल संबंधी बिमारीयाँ
( ख )श्वांस संबंधी बिमारीयाँ
 ( ग ) हड्डी संबंधी बिमारीयाँ up
( घ ) पेट संबंधी बिमारीयाँ उत्तर- ( घ ) 10. वायु प्रदूषण से होती है
( क ) श्वास संबंधी बिमारीयाँ
( ख ) पेट संबंधी बिमारीयाँ
( ग ) खून संबंधी बिमारीयाँ
( घ ) हड्डी संबंधी विमारीयाँ. उत्तर- ( क ) 11. सामाजिक पारिस्थितिकी अध्ययन करता है
( क‌ ) जैव जगत और पर्यावरण के संबंधों का ( ख ) मानव समाज और पर्यावरण के सम्बन्ध का ( ग ) खन संबंधी बिमारीयाँ
( घ ) सजैव और अजैव जगत के संबंधों का
उत्तर- ( ख )
         4. पश्चात्य समाजशास्त्री : एक परिचय
 सही विकल्प का संकेताक्षर ( क , ख , ग , घ ) में चयन करें ।
1. कार्ल मार्क्स का जन्म कहाँ हुआ था ?
( क ) जर्मनी
( ख ) इंगलैंड
( ग ) . अमेरिका
( घ ) फ्रांस उत्तर- ( क ) 2. कार्ल मार्क्स का जन्म कब हुआ था ?
( क ) 1918
( ख ) 1818
( ग ) 1718
( घ ) 1618 उत्तर- ( ख ) 3.कार्ल मार्क्स की मृत्यु कहाँ हुई थी ?
( क ) लंदन
( ख ) . अमेरिका
( ग ) जर्मनी
( घ ) अमेरिका उत्तर- ( क ) 4. कार्ल मार्क्स ने किस विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट का शोध पत्र पूरा किया ?
( क ) ऐना
 ( ख ) रेना
( ग ) जेना
( घ ) वेना उत्तर- ( ग ) 5. दास कैपिटल किसकी रचना है ?
( क ) कार्ल मार्क्स
( ख ) एमिल दुखीम ,
( ग ) मैक्स वेबर
( घ ) राधा कमल मुखर्जी उत्तर- ( क ) 6.एमिल दुर्थीम का जन्म कहाँ हुआ था ?
( क )जर्मनी
( ख )फ्रास
( ग ) इंगलैंड
( घ ) अमेरिका उत्तर- ( ख ) 7. एमिल दुर्थीम का जन्म किस वर्ष में हुआ था?
( क ) 1866
( ख ) 1958
( ग ) 1758
( घ ) 1868. उत्तर- ( ग ) 8. एमिल दुर्शीम की मृत्यु किस वर्ष हुई थी ?
( क ) 1915
( ख ) 1916
 ( ग ) 1917
( घ ) 1868 उत्तर- ( ग ) Division of Labour in Society किसकी रचना है ।
( क ) दुर्खीम
( ख ) कार्ल मार्क्स
( ग ) मैक्स वेबर
( घ ) राधा कमल मुखर्जी उत्तर- ( क ) 10. मैक्स वेबर का जन्म किस वर्ष हुआ था ?
( क‌ ) 1964
( ख ) 1764
( ग ) 1864
( घ ) 1564 उत्तर- ( ग ) 11. मैक्स वेबर के पिता क्या थे ?
( क ) मैजिस्ट्रेट
( ख ) डॉक्टर
( ग ) इंजिनियर
( घ ) व्यवसायी उत्तर- ( क ) 12. मैक्स वेबर की मृत्यु किस वर्ष हुई थी ?
( क )1921
( ख )1918
( ग ) 1920
( घ ) 1916 उत्तर- (ग)
13. मैक्स वेबर की मृत्यु किस कारण से हुई थी ? ( क )टाइफायड
( ख ) निमोनिया
( ग ) तपेदिक
( घ ) कौलरा उत्तर- ( ख ) 14. The Protestant E.hic and Spirit of Capitalism किसकी रचना है ?
( क ) मैक्स वेबर
( ख ) कार्ल मार्ग दुखीम
( घ ) राधा कमल मुखर्जी उत्तर- ( क ) 15. मॉक्स के सामाजिक परिवतन के सिद्धान्त को कहा जाता है
( क ) जैविक निर्धारण बाद
( ख ) औद्योगिक निर्धारणावाद
( ग‌ ) संस्कृति
( घ ) आर्थिक उत्तर- ( घ ) 16. अगस्त काम्टे समाजशास्त्र के जनक का जन्म कब हुआ था
( क ) 1788 में
( ख ) 1778 में
( ग ) 1978 में उत्तर-( क )
17. सी राईट मिल्स बल देते हैं?
( क ) व्यक्तिगत और परिवार के संबंधों पर
( ख ) संस्थाओं और व्यक्तिगत सम्बन्धों पर
( ग ) व्यक्तिगत एवं जनहित के परस्पर संबंध पर ( घ ) उपरोक्त कोई सही नहीं उत्तर- ( ग ) 18. ली , सुसाइड 1897 सी सुसाइड : ए स्टडी एन साँटिओलॉजी) की रचना हुई।
( क ) इमाईल दुर्थीम द्वारा
( ख ) कार्ल मार्क्स द्वारा
( ग ) मेकाइवर के द्वारा
( घ ) बेवक के द्वारा उत्तर- ( क ) 19. वर्गविहीन समाज में केवल एक वर्ग रह जाएगा ( क ) श्रमिक वर्ग
( ख ) अभिजात्य वर्ग
( ग ) सामान्य वर्ग
( घ ) जातीय वर्ग उत्तर- ( क ) 20. उदविदास के सिद्धान्त का संबंध है
( क‌ ) डार्विन
( ख ) मार्क्स
( ग ) राधाकृवान
( घ ) रूसो उत्तर- ( क )
21. द मिथ ऑफ द वेलफेयर स्टेट नाम निबंध रचित है ‘
( क ) कार्ल मार्क्स
( ख ) एम.एन. श्रीनिवास
( ग ) डी.पी. मुखर्जी
( घ ) ए.आर. देशाई उत्तर-(ख‌ )
            5 भारतीय समाजशास्त्री
सही विकल्प का संकेताक्षर ( क , ख , ग , घ ) में चयन करें
। गोविंद दाशिव घूरये ने किस वर्ष इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी ( Indian Sociological Society ) की नींव डाली ?
( क ) 1954 में
(ख‌ ) 1952 में
( ग ) 1956 में
( घ ) 1958 में उत्तर- ( ख ) 2. रॉय ने ‘ Man in India ‘ नाम एक पत्र किस वर्ष प्रकाशित किया ?
( क ) 1922 में
(ख‌ ) 1923 में
( ग ) 1925 में
( घ ) 1924 में उत्तर- ( क ) कौन भारत के प्रथम मानवशास्त्री थे जिन्हें राष्ट्रीय और अर्राष्ट्रीय क्षितिज पर ख्याति मिली ?
( क ) रॉय
( ख ) अय्यर
( ग ) घूरये
( घ ) डी.पी. मुकर्जी उत्तर- ( ख ) 4. गोविंद सदाशिव घूरये का जन्म किस वर्ष हुआ था ?
( क ) 12 दिसम्बर 1892
(ख‌ ) 12 दिसम्बर 1894
( ग ) 12 दिसम्बर 1891
( घ ) 12 दिसम्बर 1893 उत्तर ( घ ) 5. घूरये ने धर्म से संबंधित कितने पुस्तकों की रचना की थीं ?
( क ) पाँच
( ख ) सात
( ग ) छः
( घ ) तीन उत्तर- ( ग ) 6. ध्रुजटि प्रसाद मुखर्जी का जन्म किस वर्ष हुआ था ?
( क ) 5 अक्तूबर , 1894
(ख‌ ) 5 अक्तूबर , 1896
( ग ) 5 अक्तूबर , 1895
( घ ) 5 अक्तूबर 1897 उत्तर-( क )
7. एम.एन.श्रीनिवास का जन्म कहाँ हुआ था ? ( क ) बिहार
( ख ) दिल्ली
( ग‌ ) कर्नाटक
( घ ) उत्तर प्रदेश उत्तर- ( ग ) 8. श्री ए.आर. देसाई का जन्म किस वर्ष हुआ था ? ( क ) 1910
( ख ) 1912
( ग ) 1914
( घ ) 1915.                             उत्तर- ( घ )
           कॉलम का सही मिलान करें
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के अन्तर्गत दो कॉलम दिए गए हैं । दोनो कॉलम के सही मिलान वाले कथनों को मिला कर लिखें ।
1 . पूंजीवाद ( क ) अधिकार और कर्तव्य से जुड़ा व्यक्ति
2. राज्य समाज ( ख ) जिसमें औपचारिक सरकारी तंत्र हो
3 . नागरिक ( ग ) लिंग , राष्ट्रीयता
4 . पहचान के कुछ स्रोत ( घ ) आर्थिक उद्यम की एक व्यवस्था
उत्तर- 1 . ( ग )
2 . ( घ ) .
3. ( ख )
4 . ( क )
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के लिए दिए गए विक्लपों में से दो या दो से अधिक सही विकल्प दिए गए हैं । विकल्पों में कौन – कौन सही है :
1 . संस्कृतिक के विभिन्न घटक होते हैं ।
( क )संज्ञात्मक ( ख )भौतिक ( ग ) प्रतिभानात्मक ( घ ) उपर के सभी तीनों 2 . सम्पत्ति में शामिल होते हैं
( क ) चल पदार्थ ( ख )जल ( ग ) अचल पदार्थ ( घ ) वायु 3 . सहयोग के प्रकारों में है ।
( क ) प्राथमिक। ( ख ) द्वितीयक ( ग ) तृतीयक ( घ ) चतुर्थक उत्तर- 1. ‘ ( क )
2 . ( क ) , ( ग )
3 . ( क ) , ( ख ) ( ख )
              सत्य – असत्य कथन
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के दो वकत्व्य दिए हैं । एक को ‘ कथन ‘ अ तथा दसरे को कारण ‘ ब ‘ कहा गया है । आपको दोनों वक्तव्यों को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना है तथा दिये गये विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव करना है।
( क ) दोनों कथन सत्य है तथा कथन ।। सटीक व्याख्या करती है कथन । का | का ।
( ख ) दोनों कान सत्य है तथा कथन ।। सटिक व्याख्या नहीं करती है कथन । का ।
( ग ) कथन । सत्य है किन्तु कथन ।। असत्य है । ( घ ) कथन । असत्य है किन्तु कथन ।। सत्य है । 1 . कथन । – सामाजीकरण एवं निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है ।
कथन ।। – पास – पड़ोस समाजीकरण का एक अभिकरण है ।
2 . कथन । – परिवार का प्रमुख कार्य सन्तोत्पत्ति है।  कथन 11 परिबार की इकाई के रूप ‘ स्त्री ‘ को नहीं माना जा सकता ।
कथन । प्राथमिक समूह में व्यक्ति सम्बन्ध मौजूद होते हैं ।
कथन11 समुदाय के सदस्य भी एक दूसरे को जानते हैं ।
कथन । सामाजिक नियन्त्रण में धर्म की अहम भूमिका निभाता है ।
कथन ।। – कानून को सामाजिक नियन्त्रण का एक साधन नहीं माना जा सकता ।
कथन । – प्राथमिक समूह में आमने – सामने का सम्बन्ध नहीं होता है ।
कथन ॥ – द्वितीय समूह में आमने – सामने का सम्बन्ध नहीं होता है ।
उत्तर- 1. ( ख ) 2. ( ग ) 3. ( क ) 4. ( ग ) 5. ( घ ) निर्देशः निम्नलिखित प्रश्नों के अन्तर्गत दो कॉलम दिए गए हैं । दोनों कॉलम के सही मिलान वाले कनों को मिल कर लिखें ।
कॉलम – । कॉलम ।।
1. वायू प्रदूषण के कारक ( क ) वृत खण्ड
                                     सेक्टर सिद्धान्त
2 . सामाजिक क्रिया सिद्धान्त ( ख )जी.एस. घुर्ये 3 . भारत में जाति और प्रजाति ( ग ) धुआँ , धूल ,
                                        राख
4 . नगरों का प्रारूपों में ( घ ) मैक्स वेवर उत्तर- 1. ( ग ) 2. ( घ ) 3. ( ख ) 4. ( क )
निर्देशः निम्नलिखित प्रश्नों के लिए दिए गए विक्लपों में से दो या दो से अधिक सही विकल्प दिए गए हैं । विकल्पों में कौन – कौन सही है :
1 . संस्कृति के प्रकारों में हम लिख सकते हैं
( क ) भौतिक ( ख ) अभौतिक ( ग ) आर्थिक ( घ ) राजनैतिक 2 . बहुपति विवाह के अन्तर्गत विवाहों के प्रकार हैं । ( क )भ्रातृत्व ( ख )मातृत्व
( ग ) गैर भ्रातृत्व. ( घ )गैर मातृत्व
3 . सामाजिक नियंत्रण के प्रकारों में होते हैं
( क ) औपचारिक ( ख ) अनौपचारिक ( ग )शारीरिक ( घ ) दैहिक
उत्तर- 1 ( क ) 2. ( क ) , ( ग ) 3. ( क ) , ( ख ) निर्देशः निम्नलिखित प्रश्नों के दो वकत्व्य दिए हैं । एक को ‘ कथन ‘ अ तथा दसरे को कारण ‘ ब ‘ कहा गया है । आपको दोनों वक्तव्यों को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना है तथा दिये गये विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव करना है । ( क ) ( अ ) और ( ब ) दोनों सही है और ( अ ) का सही स्पष्टीकरण है । ( ख ) ( अ ) और ( ब ) दोनों सही है परन्तु ( ब ) , ( अ ) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
( ग ) ( अ ) सही है परन्तु ( ब ) गलत है ।
( घ ) ( अ ) गलत है परन्तु ( ब ) सही है ।
1 .कथन ( अ ) – यदि हम समाज और सामाजिक जीवन को समझना चाहते हैं तो परिवार की उपेक्षा असम्भव है ।
कथन ( ब ) – यह संभावना है कि कोई ऐसा सपाज था कोई प्रबंधन रहा हो जिसका परिवार कहा जा सकता है।
2. कथन ( अ ) -मर्टन के अनुसार विचलित व्यवहार सामाजिक संरचना का प्रकार्य गैर भ्रातृत्व है ।
कथन ( ब ) – सामाजिक विचलन व्यक्तिक या जैविक करकों की अपेक्षा सामाजिक कारकों से अधिक होता है ।
3 . कथन ( अ ) – अपनी बहिन तथा उसकी पुत्रियाँ की रक्षा करने की सीमा तक मातृवंश परम्परा वाले परिवार में मामा की भूमिका निर्णायक होती है । कथन ( ब ) – वह अपनी बहन की सम्पति एवं सम्पादन का अभिरक्षक नहीं होता है ।
4 . कथन ( अ ) – उत्प्रवासियों एवं आप्रवासियों का समुदाय पर विभिनन प्रभाव पड़ता है ।
कथन ( ब ) – मानव की प्रवासी प्रवृति ने सामाजिक सहवास व्यापार और संस्कृति को प्रोत्साहित किया है ।
5 . कथन ( अ ) – समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है सम्बन्धों के इसी जाल को हम समाज कहते हैं ।
कथन ( ब ) – समाजशास्त्र सामजिक समूहों का विज्ञान है सामाजिक समूह सामाजिक अनत क्रियाओं की ही एक व्यवस्था है ।
उत्तर- 1. ( क ) 2. ( क ) 3. ( घ ) 4. ( क ) 5. ( घ ) निर्देशः निम्नलिखित प्रश्नों के अन्तर्गत दो कॉलम दिए गए हैं । दोनों कॉलम के सही मिलान वाले कथनों को मिल कर लिखें ।
कॉलम । कॉलम ।।
1 . रिफ्लेक्सिवशेल ट्रेकिंग ( क ) राल्फ लिंटर 2 . द स्टडी ऑफमैन ( ख ) इटी हिटलर 3. मुख्य प्रस्थिति ( ग ) भीड़
4 . भूमिका आग्रह ( घ ) लेविनसत उत्तर- 1. ( ग ) 2. ( ख ) 3. ( घ ) 4. ( घ )
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों एक से अधिक उत्तर हो सकता है इसका उत्तर नीचे दिये गये कूटों के आधार पर करें ।
1 . निम्नलिखित में से समिति की कोन विशेषता उपयुक्त है
( क ) समिति एक संगठित समूह है
( ख ) सामाजिक स्वीकृति
( ग ) मूर्त संगठन है
( घ ) सामाजिक सदस्यता है ।
( a ) ( क ) ( ग ) ( b ) ( ख ) ( घ ) ( c ) ( क ) ( ग ) ( d ) ( क ) ( घ )
2. जाति व्यवस्था में परिवर्तन के कारक नहीं है ( क ) पाश्चात्य शिक्षा एवं सभ्यता
( ख )स्त्री शिक्षा का प्रसार
( ग )प्रजातंत्र की स्थापना
( घ )समाजवादी आंदोलन
( a ) ( ख ) ( ग ) ( घ ) ( b ) ( घ ) ( ख ) ( क ) ( c ) ( क ) ( ख ) ( घ ) ( 4 ) ( क ) ( ख ) ( ग )
उत्तर- 1. ( C ) 2. ( D )
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के दो वकत्व्य दिए हैं । एक को ‘ कथन ‘ अ तथा दसरे को कारण ‘ ब ‘ कहा गया है । आपको दोनों वक्तव्यों को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना है तथा दिये गये विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव करना है । ( क ) ( अ ) और ( ब ) दोनों सही है और ( अ ) का सही स्पष्टीकरण है ।
(‌ ख ) ( अ ) और ( ब ) दोनों सही है परन्तु
          ( ब ), ( अ ) का सही स्पष्टीकरण नहीं है ।
( ग ) ( अ ) सही है परन्तु ( ब ) गलत है ।
( घ ) ( अ ) गलत है परन्तु ( ब ) सही है ।
1. कथन ( अ ) तथा दूसरे को कारण ‘ ब ‘ कहा गया है ।
कथन ( ब ) ऐसे परिहार्थ का मुख्य उद्देश्य ऐसी लैंगिक घनिष्ठता को रोकना होता है जिसमें अगभ्यगमन होता है ।
2. कथन ( अ ) परम्परागत रूप से संस्औतिकरण की प्रक्रिया में एक निरन्तर जाति ने प्रक्ल जाति की जीवन शैली को अपनायज्ञ कहा गया है ।
कथन ( ब ) – प्रबल जाति की जीवन शैली को अपनाना आमतौर पर जाति व्यवस्था के अन्तर्गत ही उर्हवामुखी गतिशीलता का प्रतीक था उपयुक्त दोनों वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा सही है ।
3 . कथन ( अ ) प्रतिमान विशिष्ट तरीका तथा उपाय है जिनमें मूल्यों को प्रप्ति के लिए व्यवहार का विनियण होता है ।
कथन ( ब ) – मूल्य अधिक अमूर्त और सामान्य होते हैं और वे स्वंय में साध्य होते है । उपयुक्त दो वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा सही है ।
4. कथन ( अ )- स्वतंत्रतापूवर्कक के भारत में पिछड़ी जातियों का अन्दोलन सम्पूर्ण देश को प्रभावित करने के लिए कभी भी पर्याप्त शशक्त नहीं था ।
कथन ( ब ) – विभिन्न पिछड़ी जातियों में गम्भीर आन्तरिक वैमनस्यता थी और वे कभी साथ – साथ काम नहीं कर सकते हैं । उपयुक्त दो वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा सकही है ।
5 . कथन ( अ ) – राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक तथा आर्थिक हितों का विशेष ध्यान देते हुए संबर्धन करता है । कथन ( ब ) – कमजोर तथा अन्य सुविधा प्राप्त वर्गों की शोषण से रक्षा तथा सामाजिक न्याय की संवर्धन कल्याणकारी राजय के प्राथिमक प्रकार्यों में है । उपयुक्त दोनों बाक्तयों के संदर्भ में निम्नलिखित में कसौन सा सही है ।
उत्तर- 1. ( घ ) 2. ( ग ) 3. ( क ) 4. ( क ) 5. ( क ) निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के अन्तर्गत दो कॉलम दिए गए हैं । दोनों कॉलम के सही मिलान वाले कथनों मिल कर लिखें ।
कॉलम- । कॉलम ।।
1.हर्बट स्पेन्सर ( क ) उद्धविकास का सिद्धांत 2 . स्माइल दुर्थीम ( ख ) समाजशास्त्र एवं
                               मानवशास्त्र से
3. ए.एल. क्रोवर ( ग ) आत्महत्या का
                         सिद्धान्त हैरी एम . जॉनसन
4. हैरी एम.जाँनसन ( घ ) समाजशास्त्र सामाजिक
                               समुहों का अध्ययन है।
उत्तर- 1. ( क ) 2. ( ग ) 3. ( ख ) 4. ( घ )
 निर्देशः निम्नलिखित प्रश्नों के दो वकत्व्य दिए हैं । एक को ‘ कथन ‘ अ तथा दसरे को कारण ‘ ब ‘ कहा गया है । आपको दोनों वक्तव्यों को सावधानीपूर्वक परीक्षण करना है तथा दिये गये विकल्पों में सही विकल्प का चुनाव करना है । ( क ) दोनों कथन सत्य है तथा कथन – || सटीक व्याख्या करती है कथन । का ।
( ख ) दोनों कथन सत्य है तथा कथन – || सटीक व्याख्या नहीं करती है कथन । का ।
( ग ) कथन- । सत्य है , किन्तु कथन – || असत्य है । ( घ ) कथन – । असत्य है किन्तु कथन – || सत्य है ।
 1 . कथन ( 1 ) – मानव समाज पर पर्यावण का व्यापक प्रभाव है ।
कथन ( 11 ) – विषैले अपशिष्ट पदार्थ कैंसर तथा तंत्रिका रोग उत्पन्न करते हैं ।
2 . कथन ( 1 ) – मार्क्स ने कहा सारा विकास द्वदात्मक सिद्धान्त पर आधारित है ।
कथन ( ॥ ) – डीगल के द्वंदात्मक सिद्धान्त से मावर्स प्रभावित था ।
3. कथन ( 1 ) – पितृसत्तात्मक परिवार में सत्ता पुरूश के पास केन्द्रित होती है ।
कथन ( 11 ) – पितृसत्तात्मक परिवार में सत्ता स्त्री के पास केन्द्रित होती है ।
4 . कथन ( 1 ) – प्राथमिक समूह में आमने – सामने का सम्बन्ध होता है ।
कथन ( 11 ) – द्वितीय समूह में भी आमने – सामने का सम्बन्ध होता है ।
5 . कथन ( 1 ) साधारणतः समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करने वाला शास्त्र है ।
कथन ( ॥ ) – साधारणशास्त्र अंग्रेजी शब्द socio तथा Logy से मिलकर बना है ।
उत्तर- 1. ( ख ) 2. ( क ) 3 . ( घ ) 4. ( ग ) 5.( क ) निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के अन्तर्गत दो कॉलम दिए गए हैं । दोनों कॉलम के सही मिलान वाले कथनों को मिल कर लिखें ।
  कॉलम- । कॉलम ।।
1 . पूँजीवाद ( क ) अधिकार और कर्त्तव्य
                                से जुड़ा व्यक्ति
2 . राज्य समाज ( ख ) जिसमें औपचारिक
                                सरकारी तंत्र हो
3 . नागरिक ( ग ) लिंग , राष्ट्रीयता
4 . पहचान के कुछ स्रोत ( घ ) अधिक उद्यम को
                                  एक व्यवस्था
उत्तर- 1. ( क ) 2. ( ख ) 3. ( ग ) 4. ( क )
निर्देश : निम्नलिखित प्रश्नों के लिए दिए गए विक्लपों में से दो या दो से अधिक सही विकल्प दिए गए हैं । विकल्पों में कौन – कौन सही है :
1 . संस्कृतिक के विभिन्न घटक होते हैं ।
( क ) संज्ञात्मक
( ख ) भौतिक
( ग ) प्रतिभानात्मक
( घ ) उपर के सभी तीनों
2 . सम्पत्ति में शामिल होते हैं
( क ) चल पदार्थ
( ख ) जल
( घ ) वायु
3 . सहयोग के प्रकारों में है :
( क ) प्राथमिक
( ख ) द्वितीयक
( ग ) तृतीयक
( घ ) चतुर्थक
उत्तर- 1. ( क ) ( ग ) 2. ( क ) , ( ख ) 3. ( क ) ,( ख )
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