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 Bihar Board 12th Biology Model Question Paper 4 in Hindi

Bihar Board 12th Physics Model Question Paper 4 in Hindi

परिक्षार्थियों के लिए निर्देश :

  1. परीक्षार्थी यथासंभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
  2. दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
  3. इस पत्र को ध्यानपूर्वक पढ़ने के लिए पन्द्रह मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
  4. इस प्रश्न-पत्र के दो खण्डों में है, खण्ड-अ एवं खण्ड-ब ।
  5. खण्ड-अ में 35 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। प्रत्येक प्रश्न के लिए 1 अंक निर्धारित है, इनका उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR-शीट में दिये गये सही वृत्त को काले / नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार के व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का OMR-शीट में प्रयोग करना मना है, अन्यथा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा।
  6. खण्ड-ब में गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, 18 लघुउत्तरीय प्रश्न हैं, जिनमें से किन्ही 10 प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। इसके अतिरिक्त खण्ड-ब में 06 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न भी दिए गए हैं, जिनमें से किन्हीं 3 प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है। प्रत्येक प्रश्न के लिए 05 अंक निर्धारित हैं।
  7. किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक-यंत्र का इस्तेमाल वर्जित है।

समय : 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक : 70

खण्ड-अ : वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 35 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गए सही विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें। (35 × 1 = 35)

प्रश्न 1.
प्रोटीन संश्लेषण में दो एमीनो अम्ल के बीच किस प्रकार का बंध बनता है?
(a) पेप्टाइड
(b) हाइड्रोजन
(c) न्यूक्लियोटाइड
(d) न्यूक्लियोसाइड
उत्तर:
(a) पेप्टाइड

प्रश्न 2.
जब किसी उत्परिवर्तन में प्यूरिन के स्थान पर पिरामिडीन प्रतिस्थापित हो जाए तो इसे कहते हैं
(a) ट्रांजिशन
(b) ट्रांसवर्सन
(e) ट्रान्सलोकेशन
(d) इनवर्सन
उत्तर:
(b) ट्रांसवर्सन

प्रश्न 3.
जिन परिपक्व बीजों में भ्रूणकोष रहता है, उन्हें कहते हैं
(a) एंडोस्पर्मिक
(b) नन-एंडोस्पर्मिक
(c) पॉलोएम्ब्रिओनी
(d) एपोकार्पिक
उत्तर:
(a) एंडोस्पर्मिक

प्रश्न 4.
पुरुष तथा स्त्री के युग्मों के संलयन से…का निर्माण होता है
(a) अंडाणु
(b) युग्मनज
(c) कोरक पुटी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) युग्मनज

प्रश्न 5.
संगर्भता के दूसरे माह के अंत तक भ्रूण में विकसित हो जाते हैं
(a) सिर पर बाल
(b) सभी प्रमुख अंग
(c) पाद एवं अंगुलियाँ
(d) पूर्ण रूप से सभी अंग
उत्तर:
(c) पाद एवं अंगुलियाँ

प्रश्न 6.
शुक्राणु में क्रोमोसोम पाए जाते हैं
(a) XX
(b) XY
(c) YY
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) XY

प्रश्न 7.
रिलेक्सीन स्रावित होता है
(a) गर्भाशय से
(b) अपरा से
(c) डिंबबाहिनी नलिका से
(d) अंडाशय से
उत्तर:
(d) अंडाशय से

प्रश्न 8.
महिलाओं में शल्य क्रिया द्वारा बंध्याकरण प्रक्रिया को कहते हैं
(a) नलिका उच्छेदन
(b) शुक्रवाहक उच्छेदन
(c) अंतर्रोप
(d) रोधक
उत्तर:
(c) अंतर्रोप

प्रश्न 9.
नर जर्मिनल् कोशिका होती है
(a) द्विगुणित
(b) अगुणित
(c) त्रिगुणित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) द्विगुणित

प्रश्न 10.
सुजाक (गोनोरिया) रोग है
(a) जल जनित रोग
(b) हवा जनित रोग
(c) यौन संचरित रोग
(d) रोग नहीं है
उत्तर:
(c) यौन संचरित रोग

प्रश्न 11.
हाइड्रोफोबिया एवं एड्स होता है
(a) प्रोटोजोआ से
(b) कृमि से
(c) वाइरस से
(d) जीवाणु से।
उत्तर:
(c) वाइरस से

प्रश्न 12.
बी.सी.जी, का टीका बच्चों को किस बीमारी के बचाव में दिया जाता है
(a) डायरिया
(b) क्षय
(c) पोलियो
(d) हैजा
उत्तर:
(b) क्षय

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में कौन-सी गाय की नस्ल उच्च दुग्ध उत्पादक की है
(a) डोरसेट
(b) होलेस्टिन
(c) पाशमीना
(d) नेलोर
उत्तर:
(b) होलेस्टिन

प्रश्न 14.
निम्न में से कौन-सी मछली समुद्र में पायी जाती है
(a) लेवियो
(b) कतला
(e) क्लैरियस
(d) बाम्बेडक
उत्तर:
(d) बाम्बेडक

प्रश्न 15.
संकरण की पहचान किसके द्वारा की जाती है ?
(a) पी. सी. आर
(b) ऑटोरेडियोग्राफी
(c) एलिजा
(d) इलेक्ट्रोफोरेसिस
उत्तर:
(b) ऑटोरेडियोग्राफी

प्रश्न 16.
जैव व्यवस्था में सबसे सुस्पष्ट इकाई को क्या कहते हैं ?
(a) जीव
(b) अंग
(c) उत्तक
(d) कोशिका
उत्तर:
(a) जीव

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन बन पारिस्थितिक तंत्र का एक उत्पादक है?
(a) वैलिनेरिया
(b) स्पाइरोगाइरा
(c) टैक्टोना
(d) निम्फिया
उत्तर:
(c) टैक्टोना

प्रश्न 18.
मधुमक्खी पालन को कहते हैं
(a) एपीकल्चर
(b) पीसी कल्चर
(c) सेरीकल्चर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एपीकल्चर

प्रश्न 19.
कच्चे नारियल का दूधिया पानी है
(a) द्रवित मादा गैमियोफाइट
(b) बीजचोल का स्राव
(c) द्रवित भ्रूणकोष
(d) काँद्रिका ऊत्तक
उत्तर:
(c) द्रवित भ्रूणकोष

प्रश्न 20.
नीलदेह सिण्ड्रोम किसके द्वारा होता है ?
(a) टी.डी.एस. की अधिकता
(b) क्लोराइड की अधिकता
(c) घुली हुई ऑक्सीजन की अधिकता
(d) मेथेनोग्लोबिन
उत्तर:
(d) मेथेनोग्लोबिन

प्रश्न 21.
ऊत्तक संवर्धन में प्रकट होने वाली विभिन्नताएँ हैं ?
(a) सोमाक्लोनल विभिन्नताएँ
(b) क्लोनल विभिन्नताएँ
(c) दैहिक विभिन्नताएँ
(d) ऊत्तक संवर्धन विभिन्नताएँ
उत्तर:
(a) सोमाक्लोनल विभिन्नताएँ

प्रश्न 22.
वाहित जल-मल उपचार के किस स्टेज में सूक्ष्म जीवों का प्रयोग होता है?
(a) प्राथमिक उपचार
(b) द्वितीयक उपचार
(c) तृतीयक उपचार
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) द्वितीयक उपचार

प्रश्न 23.
नियंत्रक जीन को क्या कहा जाता है ?
(a) निरोधक जीन
(b) रिप्रेसर जीन
(c) ऑपरेटर जीन
(d) प्रोमोटर जीन
उत्तर:
(a) निरोधक जीन

प्रश्न 24.
यूकैरिओट्स में इंटिग्रेटर जीन प्रोकैरिओट्स के किस जीन की तरह कार्य करता है?
(a) नियंत्रक जीन
(b) ऑपरेटर जौन
(c) प्रोमोटर जीन
(d) संरचनात्मक जीन
उत्तर:
(a) नियंत्रक जीन

प्रश्न 25.
दालों में अनुपस्थित एमीनो अम्ल का जोड़ा है
(a) मेथिओनीन व एलनीन
(b) ऐलेनीन व सिस्टीन
(c) मेथिओनीन व सिस्टोन
(d) लाइसीन व ट्रिप्टोफोन
उत्तर:
(c) मेथिओनीन व सिस्टोन

प्रश्न 26.
एक जीन के भिन्न रूप को क्या कहते हैं?
(a) हंटरोजाइगोट्स
(b) एलिल
(c) सप्लीमेन्टरी जीन
(d) कम्पलीमेन्टरी जीन
उत्तर:
(b) एलिल

प्रश्न 27.
इनमें से कौन प्राकृतिक वायु प्रदूषक है?
(a) ज्वालामुखी से निकली गैसें
(b) पराग कण
(c) धूल कण
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 28.
आण्विक कैंची जो DNA को एक विशिष्ट जगह पर काटता है, कहलाता है
(a) पेक्टीनेज
(b) पॉलीमरेज
(c) रेस्ट्रीक्शन इंडोन्युक्लिएज
(d) लाइगेज
उत्तर:
(c) रेस्ट्रीक्शन इंडोन्युक्लिएज

प्रश्न 29.
द्वि-निषेचन प्रक्रिया की खोज किसने ज्ञात की गई
(a) स्ट्रॉस बर्गर
(b) माहेश्वरी
(c) नावास्वीन
(d) एमिकी
उत्तर:
(d) एमिकी

प्रश्न 30.
इनमें से कौन चेन प्रारंभन कोडॉन है ?
(a) AUG
(b) CCC
(c) UAG
(d) UUA
उत्तर:
(a) AUG

प्रश्न 31.
DNA रेप्लीकेशन है
(a) अर्थसंरक्षी, संतत
(b) संरक्षी, संतत
(c) अर्धसंरक्षी, अर्ध असंतत
(d) अर्धसतत, संरक्षी
उत्तर:
(c) अर्धसंरक्षी, अर्ध असंतत

प्रश्न 32.
निम्न में से कौन जनसंख्या नियंत्रण की जैविक विधि है?
(a) परजीविता
(b) प्रीडेशन
(c) बीमारी
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 33.
मिथानोजेन्स निम्न में से क्या नहीं बनाते हैं
(a) ऑक्सीजन
(b) मिथेन
(c) हाइड्रोजन सल्फाइड
(d) कार्बन डाईऑक्साइड
उत्तर:
(a) ऑक्सीजन

प्रश्न 34.
घनकंद का उदाहरण है
(a) अदरक
(b) कोलोकेसिया (ओल)
(c) प्याज
(d) आलू
उत्तर:
(b) कोलोकेसिया (ओल)

प्रश्न 35.
पौधे में अर्धसूत्री विभाजन होता है
(a) जड़ के ऊपरी भाग में
(b) पराग कण में
(c) तने के ऊपरी भाग में
(d) एंधर में
उत्तर:
(d) एंधर में

खण्ड-ब : गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 18 तक सभी लघु उत्तरीय कोटि के प्रश्न हैं। इस कोटि के प्रत्येक के लिए 2 अंक निर्धारित है। आप किन्हीं दस (10) प्रश्नों के उत्तर दें। (10 x 2 = 20)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“मोनदील प्रोटोकाल’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
‘मोनट्रील प्रोटोकाल’ अंतर्राष्ट्रीय सहमतियों की एक श्रृंखला है जो CFC तथा अन्य ओजोन हास पदार्थ को कम करने तथा समाप्त करने पर कार्य कर रही है। 1987 में 27 औद्योगिक देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए । समतापमंडलीय ओजोन को बचाने के लिए यह एक ऐतिहासिक अंतर्राष्ट्रीय सहमति थी जिसने ओजोन ह्रास करने वाले पदार्थों के उत्पादन पर नियंत्रण तथा समजन तथा विकासशील देशों को CFC के विकल्प के उपयोग में मदद करता था। अब 175 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं।

प्रश्न 2.
मानव निषेचन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
निषेचन (Fertilisation)-सभी स्तनियों में मैथुन (copulation) होता है, जिसके फलस्वरूप शुक्राणुओं (sperms) का स्थानांतरण योनि (vagina) में होता है। तत्पश्चात् शुक्राणु गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन नलिकाओं में जाते हैं। अण्डोत्सर्ग क्रिया के फलस्वरूप अण्ड देहगुहा में छोड़ दिये जाते हैं, जहाँ से ये ओस्टियम फैलोपियन (ostium fallopian) द्वारा फैलोपियन नलिका में पहुंचते हैं। यहाँ पर इन्हें शुक्राणु घेर लेते हैं और फिर केवल एक शुक्राणु गर्भाधान में सफल होता है।

निषेचन की क्रिया एक्रोसोम (acrosome) द्वारा सावित एन्जाइम हायलुरॉनिडेज (hyaluronidase) द्वारा संभव होती है, क्योंकि यह एन्जाइम म्युकस तथा अण्ड कला को घुला देता है, जिससे शुक्राणु को अण्ड के जीव द्रव्य में से होकर केन्द्रक तक पहुँचने में सुगमता होती है। शुक्राणु तथा अण्ड के केन्द्रकों के संयुग्मन को निषेचन (fertilisation) कहते हैं। निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज (zygote) का निर्माण होता है । प्रत्येक युग्मजनन में गुणसूत्रों की संख्या (2n) होती है, क्योंकि प्रत्येक युग्मक (gamete) में गुणसूत्रों की संख्या केवल (n) होती है।

प्रश्न 3.
स्वपरागण तथा परपरागण में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
स्वपरागण तथा परपरागण में अंतर निम्न है।
स्वपरागण – (i) परागकणों का एक पुष्प के परागकोश से उसी पुष्म या उसी पौधे के दूसरे पुष्प के वर्तिकान पर गिरना, स्वपरागण कहलाता है। (ii) वह हफ्रिोडाइट या द्विलिंगी पौधों में होता है। (iii) वह बंद, क्लिस्टोगैमस पुष्यों में होता है। (iv) बाह्य परागण कारकों की आवश्यकता नहीं होती। (v) इसमें विभिन्नता नहीं आती। (vi) उदाहरण-गेहूँ, चावल, मटर, टमाटर आदि।

परपरागण – (i) परागकणों का एक पुष्प के परागकोश से दूसरे पौधे (उसी जाति का) के वर्तिकान पर गिरना पर-परागण कहलाता है । (ii) यह एकलिंगी पौधों में होता है । (iii) यह खुले पौधों में होता है। (iv) बाह्य कारकों की आवश्यकता होती है। (v) इसमें विभिन्नता आती है। (vi) उदाहरण-मक्का ।

प्रश्न 4.
स्पर्मेटोजेनेसिस किस प्रकार अंत: स्रावी हॉर्मोन द्वारा नियंत्रित प्रक्रिया है?
उत्तर:
शुक्र जनन नलिकाओं के मध्य अंतराली कोशिकाएं टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन का प्राव करती है जो शुक्राणु निर्माण हेतु आवश्यक होता है। (ICSH) हॉर्मोन, अंतराली कोशिकाओं पर क्रिया करता है जिससे टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन सावित होता है। इसका नाव पीयुष ग्रंथि के अग्रपाली से होता है तथा यह हाइपोफाइसियल गोनेडोट्रोपिन जैसे ल्युटिनाइजिंग हॉर्मोन (LH) तथा फॉलिकल स्टिमुलंटिंग हॉमान (FSH) के समान होता है।

(FSH) एवं टेस्टोस्टेरॉन के नियंत्रण में सटौली कोशिकाएँ (ABP) का साव करती है। यह इनहिबिन भी स्राव करती है जो (FSH) के संश्लेषण को रोकती है। (LH) तथा (ICSH) का साथ हाइपोबैलेनिक गोनडोट्रोपिन रिलीजिंग हॉर्मोन (GIRH) द्वारा नियंत्रित होता है। टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन का स्तर ऋणात्मक पुनर्भरण द्वारा निर्योत्रत होता है।

प्रश्न 5.
लोगों को यौन संचारित रोगों, यौन क्रियाओं तथा जनन संबंधी स्वस्थ जीवन बिताने के प्रति जागरूक करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
लोगों को जनन-अंगों, किशोरावस्था एवं उससे संबंधित परिवर्तनों सुरक्षित और स्वच्छ यौन-क्रियाओं, यौन संचारित रोगों एवं एड्स के बारे में जानकारी, विशेषरूप से किशोर आयुवर्ग में जनन संबंधी स्वस्थ जीवन बिताने में सहायक होती है। लोगों को शिक्षित करना, विशेषरूप से जनन क्षम जोड़ी तथा वे लोग जिनकी आयु विवाह योग्य है, उन्हें उपलब्ध जन्म नियंत्रक (गर्भ-निरोधक) विकल्पों तथा गर्भवती माताओं की देखभाल, माँ और बच्चे की प्रसवोत्तर (पोस्टनेटल) देखभाल आदि के बारे में तथा स्तनपान के महत्त्व, लड़का या लड़की को समान महत्त्व एवं समान अवसर देने की जानकारियों आदि से जागरूक स्वस्थ परिवारों का निर्माण होगा।

अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि से होने वाली समस्याओं तथा सामाजिक उत्पीड़नों जैसे कि यौन दुरूपयोग एवं यौन संबंधी अपराधों आदि के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है; ताकि लोग इन्हें रोकने एवं जननात्मक रूप से जिम्मेदार एवं सामाजिक रूप से स्वस्थ समाज तैयार करने के बारे में विचार करें और आवश्यक कदम उठाएँ।

प्रश्न 6.
जीनों की रासायनिक प्रकृति कैसी होती है?
उत्तर:
जीनों की रासायनिक प्रकृति-अब तक आप जान चुके हैं कि जीन ही वंशागति लक्षणों के वाहक हैं एवं ये गुणसूत्रों पर होते हैं। अनेक वैज्ञानिकों के कार्य से आज हमें ज्ञात है कि जीन इन रासायनिक अणुओं के खंड होते हैं जिन्हें हम DNA अथवा डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (deoxyribonucleic acid) कहते हैं। एक गुणसूत्र में डी.एन.ए. परीक्षण जिसे ‘डी.एन.ए, फिंगर प्रिंटिंग (DNA fingerprinting) कहते हैं, के द्वारा पहचाना जा सकता है।

ऐसा इसलिए कि व्यक्ति के शरीर की प्रत्येक कोशिका का डी.एन.ए, एक समान होता है और यह माता-पिता के डी.एन.ए. से मिलता-जुलता होता है। ऐसा होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि बच्चों को अपना डी.एन.ए. अपने माता-पिता से ही मिलता है। जैसा कि हमारी उंगलियों के निशानों के विषय में है, वैसे ही हर व्यक्ति का अपना डी.एन.ए. भी सबसे अलग होता है। यदि अपराध स्थल पर अपराधी का कोई एक बाल, रक्त की बूंद अथवा वीर्य पड़ा मिला हो तो उससे अपराधी का डी.एन.ए. पहचानने में मदद मिलती है और संदिग्ध व्यक्ति के डी.एन.ए. से उसकी तुलना करके सच पता लगाया जा सकता है।

प्रश्न 7.
कैंसर से आपका क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
कैंसर (Cancer) – कैंसर भी एक प्रकार से विभेदन तथा विवर्धन की ही समस्या है । इसी अध्याय में आपने पढ़ा कि जीनों की क्रियाशीलता नियंत्रित होती है । सम्पर्क संदमन (contact inhibition) एक नियंत्रणकारी प्रक्रिया है । जब कोशिकाओं में गुणन होता है, तो उनके ज्यादा एकत्रित होने पर वे एक-दूसरे के संपर्क में आ जाती हैं सम्पर्क में आते ही उनका विभाजन का संदमन हो जाता है, कोशिका विभाजन की प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी जीन संदमित हो जाते हैं ।

परन्तु कैंसर से ग्रस्त कांशिका में सम्पर्क संदमन की प्रक्रिया का कोई प्रभाव नहीं होता । कोशिकाएँ निरन्तर विभाजन करती रहती हैं और कोशिकाओं के अव्यवस्थित समूह को जन्म देती हैं, जिसे अर्बुद (tumour) कहते हैं। . वास्तव में, सामान्य कोशिकाओं में कुछ जीन होते हैं, जिन्हें प्रोटोओन्कोजीन कहते हैं । ये कोशिकाओं के सामान्य विकास में सहायक होते हैं । परन्तु कैंसर-ग्रस्त कोशिका में ये टूट जाते हैं, और दूसरे गुणसूत्रों पर जा लगते हैं। यहाँ पर इन्हें विभिन्न प्रकार का वातावरण मिलता है। अब इन्हें ओन्कोजीन (oncogenes) कहते हैं । भिन्न वातावरण में ये बिल्कुल नई प्रकार की प्रांटीनें बनाते हैं, जिनसे कोशिका-विभाजन अनियंत्रित हो जाता है।

प्रश्न 8.
अनुकूलन किसे कहते हैं? अनुकूलताओं का आनुवंशिक आधार क्या है?
उत्तर:
अनुकूलन (Adaptation) – सफलतापूर्वक जीवित रहने व प्रजनन करने हेतु किसी जीवधारी का अपने वातावरण के अनुरूप ढलना हो प्राय: अनुकूलन कहलाता है । परन्तु इस शब्द, अनुकूलता का प्रयोग किसी ऐसे लक्षण के लिए भी किया जाता है, जो उस जीवधारी को अपने पर्यावरण के अनुकूल ढलने में मदद करता है । मेंडक का त्रिकोणाकार तुंड (snout) पश्च पादों में जाल (web), चमगादड़ में पंख इत्यादि अनुकूलताएँ ही हैं ।

अनुकूलताओं का आनुवंशिक आधार (Genetic basis of adaptation)-किसी भी जाति के जीवधारियों के बीच काफी विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। कुछ लक्षण जीवधारियों को उनके वातावरण में जीवित रहने व प्रजनन करने में सहायक सिद्ध होते हैं, प्रकृति द्वारा इनका वरण होता है । फलस्वरूप, आगामी पीढ़ियाँ वातावरण के लिए अधिक उपयुक्त सिद्ध होती हैं । दूसरे शब्दों में, समष्टि (population) में पहले से ही विद्यमान विभिन्नताओं में से लाभदायक लक्षणों के चयन से ही जातियों में अनुकूलन होता है।

सैडरबर्ग एवं लैडरबर्ग के प्रयोग (जिसके विषय में आप इस इकाई में पहले ही पढ़ चुके हैं) से इस तथ्य का पुष्टिकरण होता है कि “अनुकूलन पूर्व विद्यमान विभिन्नताओं के चयन का परिणाम है।” लैडरवर्ग एवं लैडरबर्ग ने पाया कि पैनिसिलीन-प्रतिरोधी (penicillin resistant) बैक्टीरिया की कॉलोनियाँ सभी अगार प्लेटों पर एक जैसी थी (यहाँ तक कि मास्टर प्लेट में भी) । इसी प्रकार पैनिसिलीन के लिए संवेदनशील (penicillinsusceptible) कॉलोनियाँ भी सभी अगार प्लेटों पर एक-सी थौं । इससे स्पष्ट होता है कि पैनिसिलीन-प्रतिरोधी बैक्टीरिया उत्परिवर्ती पहले से ही मास्टर प्लेट अर्थात् मूल समष्टि (original population) में मौजूद थे।

प्रश्न 9.
कंसर रोग का उपचार कैसे किया जाता है?
उत्तर:
कैंसर का उपचार – आमतौर पर कैंसरों के उपचार के लिए शल्यक्रिया, विकिरण चिकित्सा और प्रतिरक्षा चिकित्सा का सहारा लिया जाता है। विकिरण चिकित्सा में, अर्बुद कोशिकाओं को घातकरूप से किरणित (इरेंटेड) किया जाता है लेकिन अर्बुद के दर के पास वाले प्रसामान्य ऊत्तकों का पूरा ध्यान रखा जाता है। कैंसर-कोशिकाओं को मारने के लिए अनेक रसोचिकित्सीय (कीमोथेग प्यूटिक) औषध काम में लाए जाते हैं।

इनमें से कुछ औषध विशेष अर्बुदों के लिए विशिष्ट हैं। अधिकांश औषधों के अनुषंगी प्रभाव या दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) होते हैं जैसे कि बालों का झड़ना, अरक्तता आदि। अधिकांश कैसर का उपचार शल्यकर्म, विकिरण चिकित्सा और रसोचिकित्सा के संयोजन से किया जाता है। अर्बुद कोशिकाएँ प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा पता लगाए जाने और नष्ट किए जाने से बचती हैं। इसलिए, ऐसे पदार्थ दिए जाते हैं जिन्हें जैविक अनुक्रिया रूपांतरण कहते हैं, जैसे कि Y – इंटरफेरॉन, जो उनके प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिवित करता और अर्बुद को नष्ट करने में सहायता करता है।

प्रश्न 10.
खाद्य उत्पादन बढ़ाने में पादप ऊतक संवर्धन की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पादप ऊतक संवर्धन का उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है – (i) अगुणित पौधों की संख्या परागकोष संवर्धन द्वारा बढ़ाने में (ii) उच्च क्रमों के क्लोनिंग द्वारा तीव्रता से संवर्धन करने में, (iii) ट्रांसजेनिक पादप जो कौट तथा वायरस रोधीयों हों की बढ़ोत्तरी करने में (iv) भ्रूण संवर्धन द्वारा अंतरजातीय संकर के पादपक प्राप्त करने में (v) ऑर्किड जैसे बीजों जिनमें खाद्य भंडार नहीं होता भ्रूण कल्चर कर उच्च आवृत्ति में पादपक प्राप्त करने में।

प्रश्न 11.
जल प्रदूषक के कितने प्रकार हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
जल प्रदूषक तीन प्रकार के होते हैं

  1. जैविक – रोगाणु जैसे वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, शैवाल, हैलमिथस आदि।
  2. रासायनिक – कार्बनिक रसायन – जैव नाशक, पॉलीक्लोरोनेटेड बाईफिडायल या (PCB)
    अकार्बनिक रसायन – फॉस्फेट, नाइट्रेट, फ्लोराइड तथा भारी तत्त्व जैसे As, Pb,Cd, Hg आदि ।
  3. भौतिक – उद्योगों से निकले गर्म जल, तेल वाहक से गिरा हुआ तेल आदि ।

प्रश्न 12.
सह एंजाइम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सह एंजाइम (Coenzymes) – कुछ प्रोटीन ऐसे होते हैं जो जैव अभिक्रियाओं को अकेले उत्प्रेरित नहीं कर पाते व किसी अन्य अप्रोटीनी पदार्थ | को उपस्थिति में उत्प्रेरक बन जाते हैं। ऐसे प्रोटीनों को ऐपोएंजाइम (apoenzymes) तथा उन अप्रोटीनी पदार्थों को सह एंजाइम (coenzymes) कहा जाता है। धात्विक आयन Zn2+, Mg2+, Mn2+, Cu2+, CO2+, K+, Na+, इत्यादि या छोटे कार्बनिक अणु विटामिन हो सकते हैं। अलग-अलग इन दोनों में से कोई भी उत्प्रेरक नहीं होता लेकिन इनका युग्म उत्प्रेरक होता है, ऐसे युग्मों को होलोएंजाइम (Holo enzymes) कहा जाता है।

प्रश्न 13.
क्राई प्रोटीस क्या है? उस जीव का नाम बताओ जो इसे पैदा करता है। मनुष्य इस प्रोटीन को अपने फायदे के लिए कैसे उपयोग में लगता है?
उत्तर:
विशिष्ट बीटी जीव विष जोंस को बैसीलस धुरीनजिएसिस से पृथक् कर कई फसलों जैसे कपास में समाविष्ट किया जा चुका है। जींस का चुनाव फसल व निर्धारित कीट पर निर्भर करता है, जबकि सर्वाधिक बीटी जीव विष कौट-समूह विशिष्टता पर निर्भर करते हैं। जीव विष जिस जीन द्वारा कूटबद्ध होते हैं उसे क्राई कहते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं। उदाहरणस्वरूप जो प्रोटॉस जौन क्राई । एसी व क्राई 2 एबी द्वारा कूटबद्ध होते हैं वे कपास के मुकुल कृमि को नियंत्रित करते हैं जबकि क्राई 1 एबी मक्का छेदक को नियंत्रित करता है।

बैसीलस धूरीनजिएसीस को कुछ नस्लें ऐसी प्रोटीन का निर्माण करती हैं जो विशिष्ट कीटों जैसे-लौथोडोप्टेशन, कोलियोप्टेरान व डोप्टेरान को मारने में सहायक है। इससे कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है। .जिससे फसलों में कीटनाशक रसायनों का प्रयोग कम होता है। जिससे जल और मृदा प्रदूषण रहित रहती है। जो मानव के स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए बहुत लाभदायक सिद्ध हो रही है।

प्रश्न 14.
पारितंत्र में कितने प्रकार के पिरामिडों का निर्माण हो सकता है? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:

  1. संख्या का पिरामिड – तालाब पारितंत्र-जिसमें उत्पादक सबसे अधिक तथा उपभोक्ता उत्तरोतर कम होते जाते हैं।
  2. जैवभार का पिरामिड – वन पारितंत्र-जिसमें उत्पादकों का भार अधिक तथा उपभोक्ता क्रमशः कम जैवभार वाले होते जाते हैं।
  3. ऊर्जा पिरामिड-हमेशा उर्ध्वाधर । जो क्रमशः अगले पोषण स्तर में कम होता जाता है।

प्रश्न 15.
विलोपन के प्रति विशेष रूप से सुग्रह जातियों के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
विलोपन के प्रति सह जातियों के लक्षण इस प्रकार हैं – (i) विशालकाय शरीर (बंगाल बाघ, सिंह तथा हाथी)। (i) छोटा समीष्ट अमाप एवं कम प्रजनन दर (नीली व्हेल तथा विशाल पांडा) । (iii) खाद्य कड़ी में उच्च पोषण स्तर पर भोजन (बंगाल बाघ एवं गंजी चील) । (iv) स्थिर प्रजनन पथ एवं आवास (नौली व्हेल एवं इपिंग सारस) । (v) वितरण की सानिगत एवं संकीर्ण परिसर (वुडलैंड, कैरिवा, अनेक द्वीपीय जातियाँ)।

प्रश्न 16.
लैकमार्क के उपार्जित गुणों की वंशागति वाले सिद्धान्त की सबसे अधिक आलोचना किसने की और क्यों की?
उत्तर:
उपार्जित गुणों की वंशागति वाला भी उनका विचार सही नहीं प्रतीत होता । इस विचार को सबसे अधिक धक्का देने वाला वैज्ञानिक बीजमैन (Weismann) था । उसने उपार्जित गुणों के वंशागत होने के सिद्धान्त को कटु आलोचना की । सन् 1880 से 1892 के बीच उसने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया कि लगातार 80 पीढ़ियों तक चूहों की पूँछ काटते रहने पर भी बिना पूँछ वाले चूहों की उत्पत्ति नहीं हुई।

इसके अतिरिक्त हम सभी जानते हैं कि एक डॉक्टर का पुत्र पैदा होते ही डॉक्टर नहीं होता, और न ही एक पहलवान को पुत्र अत्यन्त शक्तिशाली होता है। हिन्दुओं में लड़कियों के नाक तथा कान छेदने की प्रथा सदियों से चली आ रही है, लेकिन नवजात शिशु में इसका लेशमात्र आरेख (trace) नहीं आता । इसी प्रकार अन्य अनेक उदाहरणों द्वारा सिद्ध किया जाता है कि उपार्जित गुण वंशागत नहीं होते ।

वीजमैन का कहना था कि केवल वही लक्षण या गुण माता-पिता से सन्तान में आते हैं, जो प्राणी के जनन-द्रव्य में उत्पन्न होते हैं। जो लक्षण या परिवर्तन काय-दव्य (somatoplasm) वाले होते हैं, वे वंशागत नहीं होते।

प्रश्न 17.
प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत किस पर आधारित है? यह कैसे कार्य करता है?
उत्तर:
प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण का सिद्धांत प्रतिरक्षा तंत्र की स्मृति के गुण पर आधारित है। टीकाकरण में रोगजनक या निष्क्रियता/दुर्बलीकृत रोगजनक (टोका) को प्रतिजनी प्रोटीनों को निर्मित शरीर में प्रवेश कराई जातो है। इन प्रतिजनों के विरुद्ध शरीर में उत्पन्न प्रतिरक्षियाँ वास्तविक संक्रमण के दौरान रोगजनी कारकों को निष्प्रभावी बना देती हैं। टीका स्मृत्ति-बी और टी-कोशिकाएँ भी बनाते हैं जो परिवर्ती प्रभावन (सब्सीक्वेंट एक्सपोजर) होने पर रोगजनक को जल्दी से पहचान लेती हैं और प्रतिरक्षियों के भारी उत्पादन से हमलावर को हरा देती हैं।

अगर व्यक्ति किन्हीं ऐसे घातक रोगाणुओं से संक्रमित होता है जिसके लिए फौरन प्रतिरक्षियों की आवश्यकता है, जैसा कि टिटनेस में, तो प्रभावकारी निप्यादित प्रतिरक्षियों का प्रतिआविष (एंटोटॉक्सिन एक ऐसी निर्मित जिसमें आविष के लिए प्रतिरक्षियों होती हैं) को टीके के रूप में सीधे ही दिए जाने की जरूरत है। साँप के काटे जाने के मामलों में भी रोगी को जो सुई लगाई जाती है उसमें सर्प जीविष (वेनम) के विरुद्ध निष्पादित प्रतिरक्षी होते हैं। इस प्रकार का प्रतिरक्षीकरण निष्क्रिय प्रतिरक्षीकरण कहलाता है।

प्रश्न 18.
पशुओं के कुछ सामान्य रोग तथा टीकाकरणों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पशुओं के कुछ सामान्य रोग और टीकाकरण-कभी-कभी पालतु पशु भी रोग से पीड़ित हो जाते हैं। पशुओं के आम रोग निम्नलिखित हैं
विषाणु रोग – मवेशियों, बकरियों और भेड़ों में त्वक्शोथ, मवेशियों में पाद-मुख रोग।
जीवाण्विक रोग – मवेशियों और कुक्कुट पक्षियों में तपेदिक, मुर्गों में विचिका, बछड़ों में घटसर्प, मुर्ग में प्रवाहिका, भेड़ में पाद विगलन । समुचित स्वच्छता, एक निश्चित आहार, उचित आवास और सही समय व आयु पर इन रोगों के खिलाफ पशुओं में टीकाकरण कर, इसमें से अधिकांश रोगों की रोकथाम की जा सकती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्नों संख्या 19 से 24 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न है। इस कोटि के प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित है। आप किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दें। (3 x 5 = 15)

प्रश्न 19.
डार्विन का प्राकृतिक वरणवाद क्या है? चर्चा कीजिए ।
उत्तर:
डार्विन का प्राकृतिक वरणवाद (Darwin’s Theory of Natural Selection) – चार्ल्स डार्विन का जन्म सन् 1809 में हुआ था । ये एक धनी चिकित्सक के पुत्र थे । सन् 1831 में डार्विन एच. एम. एस. बीगल (H.M.S. Beagle) नामक जहाज पर अवैतनिक प्रकृतिविद् के पद पर यात्रा पर गये । इस विशेष यात्रा का मुख्य उद्देश्य गैलापैगों द्वीप समूह पर सर्वेक्षण तथा वहाँ के वन्य प्राणियों का अध्ययन करना था । ये द्वीप कभी दक्षिणी अमेरिका की मुख्य भूमि का हिस्सा था । अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने अनेक द्वीपों एवं महाद्वीपों का सर्वेक्षण किया, अनेक जीव-जन्तु, चट्टानें व जीवाश्म एकत्रित किये तथा इन पर टिप्पणियाँ लिखौं । इस सर्वेक्षण के दौरान के उनके कुछ निरीक्षण इस प्रकार हैं –

  • रीआ (शतरमुर्ग की तरह का पक्षी) जो दक्षिण अमेरिका में पाये जाते हैं, दक्षिणी अमेरिका के ही सभी स्थानों पर समरूप नहीं थे।
  • आाडिलों के कुछ जीवाश्म जो उन्होंने बूँदै, आज के आमांडिलो से आकृति में काफी बड़े थे, लेकिन रचना में एक-से ही प्रतीत होते थे ।
  • गैलापैगों द्वीपों एवं दक्षिणी अमेरिका के मुख्य स्थल का वातावरण एक-सा होते हुए भी दोनों स्थानों के प्राणी एवं पौधे एक-से नहीं थे।
  • ‘तूती’ या फिंच (Finch) (एक प्रकार का पक्षी), में भी उन्होंने विविधताएँ विशेष रूप से देखों ।

उन्होंने देखा कि गैलापैगो द्वीप को तूतियाँ, मुख्य स्थल की तूतियाँ तथा अन्य आस-पास के द्वीपों की तूतियाँ एक-दूसरे से काफी भिन हैं। उन्होंने यह भी देखा कि कुछ बीज खाती हैं, कुछ फल खाती हैं तथा कुछ कीटों को खाती हैं । डार्विन के लिए यह एक परेशानी का विषय था । वह ईश्वर को तथा विशिष्ट सृजनवाद को मानते थे। उन्होंने अपने आपसे प्रश्न किया कि क्या ईश्वर ने हर प्रकार के जीव की सृष्टि पृथ्वी के अलग-अलग भागों के लिए पृथक रूप से की? इसका उत्तर खोजने के लिए उन्होंने प्रमाणों को इकट्ठा करना शुरू किया । लगभग 20 वर्ष वह इसी समस्या पर कार्य करते रहे और अपने विचारों को लेखों के रूप में प्रकाशित करते रहे ।

सन् 1938 में डार्विन को टी. आर. माल्थस (T.R.Malthus) का एक लेख ‘On the principles of Population’ पढ़ने को मिला जिसमें यह बताया गया था कि प्राणियों में समष्टि (population) जिस दर से बढ़ रही है, उस दर से उसका भोजन तथा रहने के लिए स्थान उपलब्ध नहीं हो पाता, जिसके परिणामस्वरूप ‘जीवन के लिए संघर्ष’ होता है । डार्विन ने सोचा कि क्या यह सिद्धान्त अन्य जीवों के लिए लागू हो सकता है? बस इसी विचार ने एक नये विचार को जन्म दिया- ‘योग्यतम की उत्तरजीविता’ (Survial of the Fittest) अर्थात् बढ़ती हुई आबादी के फलस्वरूप तथा भोजन की कमी के कारण जीवों में सदैव संघर्ष होता रहता है और वे ही जीव जीवित रह पाते हैं, जो योग्यतम होते हैं।

इसी दौरान एक अंग्रेज वैज्ञानिक एल्फ्रेड रसेल वैलेस (Alfred Russel Wallace, 1823-1931) ने जाति के उद्भव (Origin of Species) पर एक लेख डार्विन के पास भेजा । उसमें भी वही विचार थे, जो डार्विन ने सोचे थे । डार्विन बड़े संकोच में पड़ गये । लेकिन उनके कुछ दोस्तों के बीच-बचाव के कारण डार्विन तथा वैलेस के शोध कार्य संयुक्त रूप से रॉयल लीनियस सोसायटी की सभा में 1 जुलाई, 1858 को पेश किये गये । लेकिन अगले ही वर्ष बैलेस ने डार्विन की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली ।

इसके बाद डार्विन की बहुचर्चित पुस्तक ‘प्राकृतिक वरण द्वारा जाति का विकास’ (Origin of Species by Natural Selection) जैव विकास के सिद्धान्त के रूप में प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में उन्होंने जैव विकास की क्रिया को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया तथा कहा कि प्राणी अपने को वातावरण के अनुकूल बनाकर ही जीवित रहते हैं तथा सन्तान उत्पन्न करते हैं । इसके विपरीत, जो जीव अपने को वातावरण के अनुकुल बनाने में असमर्थ होते हैं, कुछ समय पश्चात् समाप्त हो जाते हैं । इस प्रकार प्रकृति में जीवों की बढ़ती हुई आबादी को रोकने के लिए एक प्रकार का ‘प्राकृतिक बरण’ (natural selection) होता है।

प्रश्न 20.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य-विज्ञान क्या है? व्यक्तिगत स्वास्थ्य-विज्ञान में शामिल किन्हीं चार गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वस्थ तथा रोगमुक्त रहने के लिए स्वयं की देखभाल ही व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान है। अच्छे व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान के कुछ मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं –
(1) संतुलित आहार – संतुलित आहार प्राप्त करना अपनी रुचि और अपनी सामर्थ्य पर निर्भर करता है। संतुलित आहार में सही अनुपात में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विद्यामिन, खनिज और रुक्षांश शामिल हैं।

(2) व्यक्तिगत स्वास्थ्य – विज्ञान-स्वयं को स्वच्छ रखने के लिए कुछ कार्य प्रतिदिन किए जाते हैं। ये कार्य हैं –

(i) नियमित शौच की आदत – हमारा पाचन-तंत्र सुचारू रूप से कार्य कर रहा है तो आहार-नाल के भीतर बचा अपचित भोजन शौच के समय नियमित रूप से बाहर निकल जाता है।

(ii) खाने से पूर्व हाथों का धोना-गंदे हाथों से भोजन करने से हम बीमार पड़ सकते हैं, क्योंकि हमारे हाथ में लगी गंदगी में कुछ बीमारी फैलाने वाले कीटाणु हो सकते हैं। शौच जाने के बाद अपने हाथों को धोना चाहिए । साबुन से हाथ धोना उन्हें रोगाणुमुक्त बनाता है।

(ii) नियमित स्नान करना एवं स्वच्छ-साफ कपड़े पहनना-धूल से रोगाणु पनपते हैं। नियमित स्नान से आपका शरीर धूल, देह-जुओं और रोगाणुओं से मुक्त रहता है।।

(iv) दांतों की सफाई-भोजन के पश्चात् खाने के कुछ कण दाँतों में चिपके रह सकते हैं। ये खाद्यकण कौटाणुओं के पनपने का माध्यम बनते हैं, मसूडों व दाँतों को हानि पहुंचाते हैं और बदबू पैदा करते हैं। दाँतों पर पहले बुश करना एक बहुत अच्छी आदत है।

(3) घरेलू स्वास्थ्य विज्ञान –

  • घर को स्वच्छ तथा धूल-मिट्टी, मक्खियों एवं रोगाणुओं से मुक्त रखना चाहिए।
  • खाना पकाने के बर्तन, तश्तरी, कम एवं अन्य बर्तन भी साफ रखने चाहिए।

प्रश्न 21.
पारिस्थितिक तंत्र में पोषकों के निवेश तथा निर्गम के तरीकों का वर्णन करें।
उत्तर:
पोषकों का निवेश-पारितंत्र में पोषकों का आगमन निम्न बाह्य स्रोतों द्वारा होता है
(क) वर्षां-पोषक तत्व मुली अवस्था में वर्षा से प्राप्त होते हैं । (आई जमाव)
(ख) वायु-कणों के रूप में धुल से प्राप्त होते हैं। (शुष्क जमाव) इस प्रकार आए पोषकों का जैव क्रिया द्वारा उपयोग किया जाता है।

पोषकों का निर्गम -पारिस्थितिक तंत्र सं पोषक तत्त्व बाहर लाए जाते हैं तथा उनमें से बहुत सारे तत्त्व दूसरे पारितंत्र के निवेश बन जाते हैं।
उदाहरण – कैल्शियम तथा मैग्नेशियम का पर्याप्त मात्रा में बहते जल द्वारा मृदा अपरदन द्वारा हो जाता है। बिनाइट्रीकरण द्वारा नाइट्रोजन गैसीय रूप में निर्गमित हो सकती है। फसल कटाई या बनों से लड़कियों की दुलाई के काम से भी पोषक तत्वों की हानि हो जाती है। छेड़छाड़ रहित पारिस्थितिक तंत्र में निवेशित पोषक तत्त्व तथा निर्गत पोषक तत्व लगभग बराबर होते हैं। जिससे पोषक चक्र संतुलित रहता है।

चित्र : पारिस्थितिक पोषक चक्र का एक सामान्य प्रारूप ।
पोषक चक्रों का अंदर लाया जाना (निवेश) बाहर निकालना (निर्गम) तथा पारिस्थितिकों में आंतरिक चक्रण।

प्रश्न 22.
किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर:
जातीय विलोपन की बढ़ती हुई दर जिसका विश्व सामना कर रहा है वह मुख्य रूप से मानव क्रियाकलापों के कारण है। इसके चार मुख्य कारण हैं –

(क) आवासीय क्षति तथा विखंडन – यह जंतु व पौधे के विलुप्तीकरण का मुख्य कारण है। उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों से होने वाली आवासीय क्षति का सबसे अच्छा उदाहरण है। एक समय वर्षा वन पृथ्वी के 14 प्रतिशत क्षेत्र में फैले थे, लेकिन अब 6 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में नहीं हैं। ये इतनी तेजी से नष्ट हो रहे हैं कि जब तक आप इस अध्याय को पढ़ेंगे हजारों हेक्टेयर वर्षा वन समाप्त हो चुके होंगे। विशाल अमेजन वर्षा वन, (जिसे विशाल होने के कारण ‘पृथ्वी का फेफड़ा’ कहा जाता है) ।

इसमें संभवत: करोड़ों जातियाँ (स्पीशीज) निवास करती हैं। इस वन को सोयाबीन की खेती तथा जानवरों के चरागाहों के लिए काटकर साफ कर दिया गया है। संपूर्ण आवासीय क्षति के अलावा प्रदूषण के कारण भी आवास में खंडन (प्रैग्मैटेशन) हुआ है, जिससे बहुत सी जातियों के जीवन को खतरा उत्पन्न हुआ है। जब मानव क्रियाकलापों द्वारा बड़े आवासों को छोटे-छोटे खंडों में विभक्त कर दिया जाता है तब जिन स्तनधारियों और पक्षियों को अधिक आवास चाहिए तथा प्रवासी (माइग्रेटरी) स्वभाव वाले कुछ प्राणी बुरी तरह प्रभावित होते हैं जिससे समष्टि (पॉपुलेशन) में कमी होती है।

(ख) अतिदोहन – मानव हमेशा भोजन तथा आवास के लिए प्रकृति पर निर्भर रहा है, लेकिन जब ‘आवश्यकता’ ‘लालच’ में बदल जाती है। तब इस प्राकृतिक संपदा का अधिक दोहन (ओवर एक्सप्लाइटेशन) शुरू हो जाता है। मानव द्वारा अतिदोहन से पिछले 500 वर्षों में बहुत-सी जातियाँ (स्टीलर समुद्री गाय, पैसेंजर कबूतर) विलुप्त हुई हैं। आज बहुत सारी समुद्री मछलियों आदि की जनसंख्या शिकार के कारण कम होती जा रही हैं जिसके कारण व्यावसायिक महत्त्व की जातियाँ खतरे में हैं।

(ग) विदेशी जातियों का आक्रमण – जब बाहरी जातियाँ अनजाने में या जानबूझकर किसी भी उद्देश्य से एक क्षेत्र में लाई जाती हैं तब उनमें से कुछ आक्रामक होकर स्थानिक जातियों में कमी या उनकी विलुप्ति का कारण बन जाती है। जैसे जब नील नदी की मछली (नाइल पर्च) को पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील में डाला गया तब झील में रहने वाली पारिस्थितिक रूप से बेजोड सिचलिड मछलियों की 200 से अधिक जातियाँ विलुप्त हो गई।

आप गाजर घास (पानियम), लैंटाना और हायसिष (आइकार्निया) जैसी आक्रामक खरपतवार जातियों से पर्यावरण को होने वाली क्षति और हमारी देशज जातियों के लिए पैदा हुए खतरे से अच्छी तरह से परिचित हैं। मत्स्य पालन के उद्देश्य से अफ्रीकन कैटफिश कलैरियस गैरीपाइनस मछली को हमारी नदियों में लाया गया लेकिन अब से मछली हमारी नदियों की मूल अशल्कमीन (कैटफिश जातियों) के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।

(घ) सहविलुप्तता – जब एक जाति विलुप्त होती है तब उस पर आधारित दूसरी जंतु व पादप जातियाँ भी विलुप्त होने लगती हैं। जब एक परपोषी मत्स्य जाति विलुप्त होती है तब उसके विशिष्ट परजीवियों का भी वही भविष्य होता है। दूसरा उदाहरण विकसित (कोरवाल्वड) परागणकारी (पॉलिनेटर) सहोपकारिता (म्यूयुआलिज्म) का है जहाँ एक (पादप) के विलापन से दूसरे (काट) का विलोपन भी निश्चित रूप से होता है।

प्रश्न 23.
निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या करें
(क) ग्रीन हाउस प्रभाव (ख) (CO2) उर्वरक प्रभाव (ग) ओजोन छिद्र।
उत्तर:
(क) ग्रीन हाउस प्रभाव-ग्रीन हाउस गैसें यथा CO2, CH4, N2O तथा CFCS वायुमंडल में आवरण की तरह कार्य करती हैं। सौर विकिरण को जो लघु तरंगदैर्ध्य की है तो जाने देती है, परंतु वापस लौट रही लंबी तरंगदैर्ध्य विकिरण को अवशोषित कर लेती है जिससे पृथ्वी गर्म होती है, इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

(ख) CO2 उर्वरक प्रभाव – ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इक्कीसवीं सदी के अंत में वायुमंडल में CO2 सांद्रता 540 से 970 (ppm) के बीच हो जाएगी। इसके कारण अधिकतर पौधों की वृद्धि दर बढ़ जाएगी मुख्यतया (C3) पौधों को।

CO2 सांद्रता की वृद्धि के प्रति पौधों की अनुक्रिया कार्बन डाइऑक्साइड उर्वरक प्रभाव कहलाता है।
इस प्रभाव के कारण – प्रकाश-संश्लेषण दर में वृद्धि होगी। वाष्पोत्सर्जन | की दर में कमी होगी। कम पोषक तत्त्वों वाली भूमि में माइकोराइजल तंतुओं की अधिकता के कारण पौधे उग सकेंगे।

(ग) ओजोन छिद्र-सन् 1956-1970 के दौरान अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत की मोटाई 280 से 325 डॉवसन इकाई थी।

सन् 1979 में परत की मोटाई अचानक 225DU तथा 1985 में 136 DU रह गई। सन् 1994 में 94DU रह गई। इस हास को ओजोन छिद्र कहा गया जिसकी खोज 1985 में अंटार्कटिका के ऊपर की गई थी।

प्रश्न 24.
जातीय क्षेत्र संबंध में समाश्रवण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्व है?
उत्तर:
जर्मनी के महान प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री अलेक्जेंडर बॉन हम्बोल्ट ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलो के गहन अन्वेषण के समय दर्शाया | कि कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बड़ती है । वास्तव में, जाति समृद्धि और वर्गको (अनावृत्तबीजी पादप, पक्षी, चमगादड़, अलवणजलीय मछलियाँ) की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच संबंध आयताकार अतिपरवलय (रेक्टंगुलर हाइपरबोल) होता है। लघुगणक पैमाने पर यह संबंध एक सीधी रेखा दर्शाता है जो कि निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित है

log S = log C + Z log A
जहाँ पर S = जातीय समृद्धि, A = क्षेत्र
Z = रेखीय दाल (समाश्रयण गुणांक रिप्रेशन कोएफिशिएंट)
C = Y – अंत: खंड (इंटरसेप्ट)

चित्र : जातीय और संबंध का प्रदर्शन : लॉग पैमाने पर संबंध रेखीय हो जाते हैं।

पारिस्थितिक वैज्ञानिकों ने बताया कि Z का मान 0.1 से 0.2 परास में होता है भले ही वर्गीको समूह अधवा क्षेत्र (जैसे कि ब्रिटेन के पादप, कैलिफोर्निया के पक्षी या न्यूयार्क के मोलस्क) कुछ भी हो । समाश्रयण रेखा (रिग्रेसन लाइन) की ढालान आश्चर्यजनकरूप से एक जैसी होती है। लेकिन यदि हम किसी बड़े समूह, जैसे संपूर्ण महाद्वीप, के जातीय क्षेत्र संबंध का विश्लेषण करते हैं तव ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान तीव्र रूप से तिरछी खड़ी है (Z का मान को परास 0.6 से 1.2 है)।

उदाहरणार्थ – विभिन्न महाद्वीपों के उष्ण कटिबंध वनों के फलाहारी पक्षी तथा स्तनधारियों की रेखा की ढलान 1.15 है।

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