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 Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 4 मुगल साम्राज्य

Bihar Board Class 7 Social Science मुगल साम्राज्य Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इकाई 3 की तालिका-1 पर नजर डालिये एवं मानचित्र 4 को देखकर लोदियों के राज्य क्षेत्र को चिह्नित कीजिए।
उत्तर-
लोदियों के राज्य क्षेत्र थे :

  1. बनारस
  2. बिहार
  3. अवध
  4. बदायू
  5. कोल
  6. दिल्ली
  7. कहराम
  8. सरहिंद
  9. सरसुती
  10. हाँसी
  11. लाहौर
  12. नंदाना
  13. कच्छ
  14. मुल्तान
  15. राजकोट आदि ।

प्रश्न 2.
अफगान और मुगल संघर्ष के क्या कारण थे ?
उत्तर-
अफगान और मुगल संघर्ष के कारण थे अपने-अपने राज्य क्षेत्र का विस्तार और शेर खाँ द्वारा दिल्ली पर अधिकार ।

प्रश्न 3.
क्या आप सल्तनतकालीन अमीर एवं मुगलकालीन अमीर _वर्ग में कोई अंतर देखते हैं ?
उत्तर-
सल्तनत काल में कुछ ऐसे अमीर बना दिये गये थे, जो वास्तव में उसके योग्य नहीं थे । बरनी ने इसी बात की आलोचना की थी । सल्तनत काल में अमीरों की संख्या कम थी। हालांकि इन्होंने भारतीय मुसलमानों को भी अमीर बनाया और कुछ हिन्दू, जैन, अफगान और अरब लोगों को अमीर बनाया लेकिन उनकी संख्या नगण्य थी।

अकबर के दरबार में 51 दरबारी अमीर के ओहदा पर थे । यही लोग शासन-प्रशासन की देखरेख करते थे । इनमें अनेक अकबर के रिश्तेदार भी शामिल थे । इनको बड़ी-बड़ी जागीरें दी गई थीं । ये अपने को बादशाह के समकक्ष समझते थे । अकबर ने कुछ भारतीय मुसलमानों को भी अमीर बनाया और इसके कुछ अमीर ईरानी और तूरानी भी थे । हिन्दुओं को इसने अमीरों से भी ऊँचे ओहदों पर रखा ।

प्रश्न 4.
अभी के अधिकारी और मुगलकालीन मनसबदारों में क्या कोई समानता है ?
उत्तर-
हाँ, समानता है । मुगलकालीन मनसबदार प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते थे, तो आधुनिक अधिकारी भी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते हैं।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

फिर से याद करें :

प्रश्न 1.
सही जोड़ बनाएँ :

  1. मनसब – न्याय की जंजीर
  2. बैरम खाँ – पद
  3. सूबेदार – अकबर
  4. जहाँगीर – चित्तौड़
  5. महाराणा प्रताप – गवर्नर

उत्तर-

  1. मनसब – पद
  2. बैरम खाँ – अकबर
  3. सूबेदार – गवर्नर
  4. जहाँगीर – न्याय की जंजीर
  5. महाराणा प्रताप – चित्तौड

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों को भरें :

  1. पानीपत की प्रथम लडाई बाबर और …… के बीच……ई० में हई।
  2. यदि जात एक मनसबदार के पद और वेतन का द्योतक था, तो सवार उसके ………….. को दिखाता था ।
  3. शेरशाह ने …………. बड़ी संख्या में निर्माण करवाया।
  4. अकबर का दरबारी इतिहासकार ………….. था जिसने ………….. नामक पुस्तक लिखी।
  5. …………..मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।

उत्तर-

  1. इब्राहिम लोदी, 1526
  2. सैन्य बल
  3. सरायों की
  4. अबुल फजल, अकबरनामा
  5. अकबर

आइए विचार करें

प्रश्न 1.
मनसबदार और जागीरदार में क्या संबंध था ?
उत्तर-
मनसबदार और जागीरदार में यह संबंध था कि मनसबदार केवल भूमि कर से मतलब रखते थे किंतु जागीरदार अपने जागीर पर प्रशासनिक कार्य भी करते थे । जागीरदार भूमि कर स्वयं वसूलते थे, जिसके लिए उन्हें अपनी जागीर में ही रहना अनिवार्य था, लेकिन मनसबदार कहीं भी रहकर अपने कर्मचारियों से लगान वसूलवाते थे ।

प्रश्न 2.
पानीपत के मैदान में होने वाली प्रथम लड़ाई का भारतीय इतिहास में क्या महत्व है ?
उत्तर-
पानीपत के मैदान में होने वाली प्रथम लड़ाई का भारतीय इतिहास में यह महत्व है कि इस लड़ाई ने भारत में लोदी वंश का सर्वनाश कर दिया और भारत में एक नये वंश मुगल वंश की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया ।

प्रश्न 3.
मुगल शासन की विशेषताओं को बताइए । उनमें मनसबदारों की क्या भूमिका थी?
उत्तर-
मुगल शासन की विशेषता थी कि उस काल में जनसाधारण का जीवन सुखी और सम्पन्न था । अमीरों के लिये एशो आराम की वस्तुएँ बनाने वालों को यद्यपि मजदूरी कम मिलती थी लेकिन खाद्यान्नों के सस्ता होने के कारण इन्हें कठिनाई नहीं होती थी । बंगाल में मछली-भात खाने का रिवाज था वहीं उत्तर भारत में रोटी-दाल खाया जाता था । बिहार के लोग भात खाते थे । पशुपालन के कारण दूध, दही, घी भी खूब मिलते. थे । हालाँकि कपड़े की कमी थी । इसके बावजूद लोग सुखी थे।

मनसबदार प्रशासनिक काम देखते थे । ये बादशाह के आदेशों और कानूनों का लोगों से पालन कराते थे । आवश्यकता पड़ने पर ये बादशाह को सैनिक मदद भी देते थे । मनसबदारों को एक निश्चित संख्या में घुड़सवार सैनिक रखना पड़ता था । इस खर्च को वहन करने के लिये इन्हें जमीन दी जाती थी, जिसकी लगान की आय से ये अपने सैनिकों को वेतनादि तो देते ही थे और अपना खर्च भी चलाते थे ।

प्रश्न 4.
मुगल साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?
उत्तर-
मुगल साम्राज्य के पतन के कारण थे औरंगजेब की अदूरदर्शिता । वह बिना सोचे समझे निर्णय ले लिया करता था । जजिया कर को लागू करके, जिसे अकबर ने उठा दिया था, हिन्दुओं को नाराज कर दिया । उसने दक्षिण विजय के लिये अपनी सारी शक्ति झोंक दी। इससे उत्तर के सूबेदार निरंकुश होने लगे। 1707 में उसकी मृत्यु ने आग में घी का काम किया । अब मुगल दरबार षड्यंत्र का अखाड़ा बन गया और धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य ध्वस्त हो गया।

प्रश्न 5.
भू-राजस्व से प्राप्त होनेवाली आय, मुगल साम्राज्य के स्थायित्व के लिए कहाँ तक जरूरी थी ?
उत्तर-
ऐसा ज्ञात होता है कि मुगल सम्राटों को भू-राजस्व के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं था। शहर के शिल्पियों से कुछ कर मिल जाता था, लेकिन वह दाल में नमक के बराबर था । साम्राज्य में जो भी वाणिज्य-व्यापार था वह स्थानीय ही था । अतः वाणिज्य कर भी नगण्य ही था । इसी कारण मुगल साम्राज्य के स्थायित्व के लिए भू-राजस्व से प्राप्त होनेवाली आय ही जरूरी थी।

प्रश्न 6.
मुगल अपने आपको तैमूर का वंशज क्यों कहते थे ?
उत्तर-
मुगलों का मंगोल और तैमूर-दोनों वंशजों से संबंध था । माता की ओर से वे मंगोलों से सम्बद्ध थे तो पिता की ओर से वे तैमूर वंश से संबंध रखते थे । उन्होंने मंगोल कहलाना इसलिए अच्छा नहीं समझा क्योंकि मंगोल अपनी नृशंसता के लिए बदनाम थे । तैमूर का नाम ऊँचाई पर पहुँचा हुआ था क्योंकि उसने दिल्ली को फतह किया था। हालांकि नृशंसता में तैमूर भी कोई कम नहीं था लेकिन वीरता में उसका बड़ा नाम था । इसी कारण मुगलों ने खुद को मंगोल की अपेक्षा तैमूर का वंशज कहलाना अधिक अच्छा समझा और उसी पर बल दिया

Bihar Board Class 7 Social Science मुगल साम्राज्य Notes

पाठ का सार संक्षेप

दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ गया । इसका लाभ उठाकर लादियों ने सल्तनत पर अधिकार कर लिया। बाबर एक बडी सेना के साथ बन्दुक और तोपखानों से लैस होकर दिल्ली विजय के लिये चल पड़ा । उस समय दिल्ली सल्तनत का शासक इब्राहिम लोदी था । पानीपत के मैदान में दोनों की मुठभेड़ हुई । अधिक सैनिक के बावजूद इब्राहिम लोदी ‘तोपों’ का मुकाबला नहीं कर सका और युद्ध में मारा गया । 1526 में दिल्ली सल्तनत पर बाबर का अधि कार हो गया । इसके पहले बाबर काबुल और कंधार का शासक था । उसके

अधिकांश अधिकारी लूट-पाट मचाकर काबुल लौट जाना चाहते थे । लेकिन ‘बाबर ने उन्हें समझा-बुझा कर रोका और दिल्ली पर मुगल शासन की नींव रखी । इसके बाद उसनं 1527 में चित्तौड़ के शासक राणा सांगा तथा 1528 में चन्देरी के राजा मेदिनी राय और 1529 में पूर्वी भारत के अफगानों को हराया।

शेर खाँ, जो बिहार के सासाराम में राजधानी बनाकर शासन करता था, हारने के बाद मुगलों के यहाँ ही नौकरी कर ली । इस अवधि में वह मुगलों के कार्यकलापों का पैनी दृष्टि से निगरानी कर रहा था।

हुमायूँ जो शेरशाह से हारकर भारत में ही लुका-छिपी खेल रहा था, दिल्ली पर 1555 में फिर अधिकार जमा लिया । लेकिन वह भी अधिक दिनों. तक जीवित नहीं रहा । उसका बेटा अकबर मात्र 13 वर्ष की आयु में दिल्ली की तख्त पर बैठा । शासन का काम-काज उसका मामा बैरम खाँ चला रहा था । 17 वर्ष की उम्र में अकबर ने शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया । सर्वप्रथम उसने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने और वहाँ अपनी स्थिति मजबूत करने में लग गया।

1556 से 1576 के बीच उसने अपने राज्य को काफी बढ़ा लिया। इसके अगले दस वषों तक वह राजपूतों से मित्रता बढ़ाने और इससे भी नहीं हुआ तो आक्रमण करके राजपूताने में अपनी स्थिति मजबूत की । उसने राजपूतों से वैवाहिक सम्बंध भी कायम किये । अनेक राजपूत सरदारों को ऊँचे ओहदे दे दिये । चित्तौड़ का संघर्ष बहुत महत्त्व का था । वहाँ का शासक महाराणा प्रताप हार गया किन्तु उसने जीवन पर अकबर की अधीनता कबूल. नहीं की । चित्तौड़ के बाद अकबर ने रणथम्भौर तथा गुजरात को भी जीत लिया । यह व्यापारिक केन्द्र था, जहां से उसे अचछी आय प्राप्त होने लगी।

बंगाल और बिहार अभी भी अफगानों के अधिकार में थे । भीषण युद्ध के’ बाद उसने इन दोनों को अपने राज्य में मिलाया । दक्षिण में भी उसने कुछ क्षेत्रों को अपने राज्य में मिलाया । वह और आगे बढ़ना चाहता था। लेकिन 1602 में सलीम के विद्रोह के कारण उसे अपने कदम रोकने पड़े। 1605 में अकबर की मृत्यु हो गई । उसकी मृत्यु के पहले तक मुगल साम्राज्य काफी फैल चुका था

शाहजहाँ के चार पुत्र थे, दारा, शुजा, औरंगजेब और मुराद । अपनी बीमारी के चलते वह दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । यह बात तीनों भाइयों को नागवार गुजरी । औरंगजेब ने छल-कपट से अपने तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया और पिता को कैदकर स्वयं बादशाह बन गया।

औरंगजेब का शासक बनना मुगल साम्राज्य के लिए शुभ नहीं रहा । हालांकि वह अच्छा लड़ाका था और अपना अधिक समय दक्षिण विजय में ही लगाए रखा । इधर उत्तर में उसके सूबेदार अपने को स्वतंत्र घोषित करने के फिराक में रहने लगे । फलतः राज्य अस्त-व्यस्त हो गया । 1707 में औरंगजेब की मृत्यु दक्षिण भारत में ही हो गई । अब मुगल दरबार षड्यंत्रों का अड्डा बन गया । बंगाल तथा अवध अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिये। सभी सूबों के सूबेदार अब स्वतंत्र शासक के रूप में काम करने लगे ।

यहाँ की कमजोरी को भाँप 1739 में ईरान के शासक नादिरशाह ने आक्रमण कर दिल्ली-को तहस-नहस कर दिया । अब्दाली ने भी आक्रमण किया जिसे मुगल झेल नहीं पाये।

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