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 Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

सन्धि विचार (Euphomic Combination)-संस्कृतभाषा की विशेषताओं में एक उल्लेखनीय बात है कि यहाँ सन्धिबद्ध पदों का अत्यधिक प्रयोग होता है । इसके कारण संस्कृत की कठिनता से लोग भड़क उठते हैं। गीता, नीतिश्लोक जैसे सुरुचिपूर्ण साहित्य में भी सन्धियों को देखकर उच्चारण करने की कठिनाई का सामान्य लोग प्रतिदिन साक्षात्कार करते हैं। किन्तु

सन्धियाँ जहाँ संस्कृत की विशिष्टता हैं वहीं इनका सही ज्ञान हो जाने पर भाषा के सौन्दर्य का एवं इनसे होने वाले अनुप्रासों की सुषमा का रसास्वादन किया जा सकता है। सन्धियों की उपयोगिता संस्कृत भाषा में निम्नांकित रूप से देखी जा सकती है

1. सन्धियाँ संस्कृत के वर्गों पर आश्रित हैं, वर्णों का उच्चारण स्थान जानना संस्कृत सन्धियों के लिए अनिवार्य है। इससे संधियों से वर्णविचार का परिचय स्वतः हो जाता है और विश्व की भाषाओं में संस्कृत ध्वनि विज्ञान (Sanskrit Phonetics) की महत्ता समझ में आती है। यदि + अपि = यद्यपि, इसमें इ का य क्यों हुआ इसे जानने के लिए समझना होगा कि इ और य दोनों का उच्चारण स्थान तालु है । इस प्रकार सन्धियाँ मनमाने ढंग से नहीं होती अपितु वणों के परिवर्तन में वैज्ञानिकता है। वाक् + ईशः = वागीशः, यहाँ क का ग हो जाना न केवल उच्चारण स्थान की समता से है अपितु अघोष वर्ण का घोष वर्ण में परिवर्तन उच्चारण के स्वाभाविक विकास का द्योतक है। इस प्रकार सन्धियों में जो तथाकथित वर्ण-परिवर्तन होते हैं वे संस्कृत ध्वनि-विज्ञान की मौलिक शिष्टता अंकित करते हैं।

2. सन्धियों के कारण संस्कृत में संक्षिप्त और संश्लेषण की स्थिति आती है। इससे कभी-कभी उच्चारण का सौन्दर्य भी झलकता है। जैसे-रविः + अपि = रविरपि । दोनों के.उच्चारण में स्वभावतः सौन्दर्य का अन्तर प्रतीत होगा । इसी प्रकार स्मृता + अपि = स्मृतापि में अन्तर देखें । चार वर्ण तीन वर्गों में बदल गये। संस्कृत पद्य रचना में इसका बहुत महत्त्व होता है।

3. संस्कृत भाषा संयोगात्मक (Synthetical) है अर्थात् शब्दों के साथ विभक्तियाँ जुड़ी रहती हैं। इसलिए पदों को कहीं भी रख दें, अन्वय करने में असुविधा नहीं होती । सन्धियों के कारण ऐसे विभिन्न स्थलों में रखे हुए पदों से अद्भुत नाद सौन्दर्य उत्पन्न होता है । दण्डी के ‘दशकुमारचरित’ में आये हुए एक वाक्य को लें-असत्येनास्य नास्यं संसज्यते । सन्धियों के कारण ‘नास्य नास्यं’ में नाद सौन्दर्य उत्पन्न है । वस्तुतः सन्धि तोड़ देने पर यह वाक्य होगा-असत्येन अस्य न आस्यं संसृज्यते । अर्थात् असत्य से इसके मुख का कोई संसर्ग नहीं होता, यह झूठ नहीं बोलता । इतनी साधारण बात को कवि ने पदचयन, पदस्थापन तथा सन्धि-इन तीनों का प्रयोग करके अद्भुत चमत्कार किया है। सन्धियाँ सामान्य विकृत शब्दों में भी सुन्दरता ला देती हैं, उनका संक्षेपण होने से पद्यों में संस्कृत कवियों ने सन्धियों का अधिकतम प्रयोग किया है।

4. पद्य-रचना में सन्धि का महत्त्व कितना है यह कोई अनुभवी ही जान सकता है । सन्धियों के कारण छन्दों के चरण में वर्णलाभ होता है । जैसे एक पद्य का चरण है – विषादप्यमृतं ग्राह्य…….. । इसे सन्धि तोड़कर अन्वित करें तो वाक्य बनेगा-विषात् अपि अमृतम् ग्राह्यं । इसमें छन्द का चरण आठ (8) अक्षर ही चाहिए । अपि और अमृतम् मिलकर पाँच के स्थान पर चार स्वर ही हो जाते हैं और छन्द को सही बना देते हैं। इसी प्रकार त् का दकार हो जाना, म् का अनुस्वार हो जाना भी अनुकूलता उत्पन्न करता है। मकार का स्वर वर्ण से सम्मेलन तथा अनुस्वार में परिवर्तन भी संस्कृत सन्धि की महत्ता का द्योतक

जैसे-अहम् + एव = अहमेव, कथम् + इव = कथमिव, वित्तम् + बन्धुः = वित्तंबन्धुः इत्यादि उदाहरण लिये जा सकते हैं। सन्धियों के कारण

कभी-कभी पूरा चरण इसी प्रकार एकशब्दात्मक प्रतीत होता है, जिससे संस्कृत की संश्लिष्टता पर प्रकाश पड़ता है। जैसे रघुवंश महाकाव्य में रघुवंशी राजाओं की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कालिदास ने लिखा है

सोऽहमाजन्मशुद्धनामाफलोदयकर्मणाम्।
आसमुद्रक्षितीशानामानाकरथवर्त्मनाम् ॥
अर्थात् उन रघुवंशी राजाओं का वर्णन करूँगा जो जन्म से होने वाले संस्कारों के कारण पवित्र थे, फल जब तक न मिल जाए तब-तक काम करते रहते थे। समुद्रपर्यन्त पृथ्वी पर जिनका अधिकार था और स्वर्ग तक (आ नाक) जिनके रथ का मार्ग बना हुआ था।

इस प्रकार सन्धि के विविध उपयोगों को देखा जा सकता है।

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