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 Bihar board SST class 8th Geography chapter 3 B वस्त्र उद्योग

Bihar board SST class 8th Geography chapter 3 B वस्त्र उद्योग

Bihar board SST class 8th Geography chapter 3 B

(ख) वस्त्र उद्योग


पाठ का सारांश-नीलम अपनी माँ और पिताजी के साथ बाजार कपड़े खरीदने गयी । वहाँ दुकानदार से उन्होंने साड़ी दिखाने को कहा। तब दुकानदार ने साड़ियों का नाम बताते हुए पूछा कि कैसी साड़ी दिखाऊँ । कपड़ों के इतने प्रकार जानकर वे काफी आश्चर्यचकित हो गए । नीलम
ने दुकानदार से पूछा-ये कपड़े कहाँ से आते हैं और कैसे बनते हैं ? दुकानदार ने हँसते हुए जवाब दिया-बेटी, कपड़े अलग-बलग तरीकों से बनते हैं। पहले तो ढाका का मलमल, मसूलीपटनम की छींट, सूरत और बड़ोदरा की सुनहरी जरी, लखनऊ का चिकन अपनी गुणवत्ता और डिजाइन के लिए प्रसिद्ध थी। ये कपड़े हाथों से बने होते थे इसलिए महँगे होते थे। लेकिन अब तो कपड़ों की बुनाई मशीनों से होती है, इसलिए सस्ती भी है और जल्दी बनती भी है । कपास, ऊन, सिल्क, जूट, पटसन का उपयोग वस्त्र बनाने में होता है। अब तो केले के थंब से भी रेशे निकालकर वस्त्र बनाये जाते हैं। कपड़ों की बुनाई को टेक्सटाइल कहते हैं। अब तो कई टेक्सटाइल कंपनियों के विज्ञापन देखने को मिलते हैं। 19वीं सदी में हमारे देश से जूट और कपास तथा रूई की गाँठे
नीलामी के माध्यम से खरीदकर विदेशों में ले जाया जाता था और फिर वहाँ से कपड़ा बनाकर भेजा जाता था। अपने देश में पहला कपड़ा मिल 1818 ई० में कलकत्ता में लगाई गई थी, लेकिन असल कामयाबी 1854 ई. में मिली जब मुम्बई में कपड़े की मिल लगाई गई । महाराष्ट्र, गुजरात,
राजस्थान, बंगाल में अलग-अलग किस्म के कपड़ों की मिलें लगी हुई हैं।
रेशे वस्त्र उद्योग के कच्चे माल हैं। ये रेशे प्राकृतिक भी होते हैं। कुछ रेशे मानव निर्मित भी होते हैं। जैसे-नाइलान, पालिस्टर, एक्रोलियम, रेयॉन आदि । सूती वस्त्रों का उत्पादन कपास से होता है। कपास का उत्पादन गुजरात और महराष्ट्र में खूब होता है क्योंकि वहाँ की मिट्टी और आर्द्रता इसके उत्पादन के अनुकूल है। इसलिए वहाँ सूती कपड़ों की बड़ी-बड़ी मिलें हैं।
ऊनी वस्त्र उद्योग जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा में बहुत है। ऊन भेड़ों-बकरियों से मिलता है।
ऊन भी प्राकृतिक उत्पाद है। रेशम का धागा भी रेशम के कीड़ों से प्राप्त होता है। वस्त्रोद्योग की स्थापा के लिए कई कारक महत्वपूर्ण हैं-
(1) कच्चे माल की उपलब्धता वस्त्रोद्योग हेतु कच्चे माल की उपलब्धता महत्वपूर्ण कारक हैं। समुद्री हवाओं और नमी के कारण गुजरात, महाराष्ट्र में अच्छी गुणवत्ता के कपास कच्चे माल के रूप में उपलब्य होती है।
(2) परिवहन की सुविधा-इससे कच्चा व तैयार माल सम्पूर्ण देश में पहुँचाया जाता है। साथ ही यूरोपीय देशों से आधुनिक मशीनें भी आयात करने में सुविधा होती है।
(3) जलवायु-वस्त्र उद्योग के लिए जलवायु आवश्यक है। अगर जलवायु नम नहीं होती तो कपास के रेशे से निर्मित धागे टूटने लगते । इस अवस्था में धागों में गाँठे पड़ जाएँगी तथा कपड़े की बुनावट अच्छी और मजबूत नहीं हो पायेगी। ऐसी जलवायु के अभाव में कृत्रिम रूप से आई जलवायु उपलब्ध करायी जाती है।
(4) पूँजी की उपलब्धता-मुम्बई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे स्थानों में पर्याप्त पूँजी निवेशक उपलव्य है।
(5) श्रम की उपलब्धता-मुम्बई की मिलों में काम करने के लिए मजदूर कोंकण, सतारा, शोलापुर, रत्नागिरी तथा कलकत्ता की मिलों के लिए मजदूर-बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश तथा असम से उपलब्ध होते हैं।
(6) बाजार:-वस्त्र उद्योग की स्थापना बाजार को देखते हुए की जाती है।
(7) सस्ती ऊर्जा की सुविधा:-मुम्बई की कपड़ा मिलों को पश्चिमी घाट पर स्थित टाटा जल विद्युत योजना से सस्ती विद्युत तथा कोलकाता की मिलों को रानीगंज, झरिया से कोयले की प्राप्ति हो जाती है। तमिलनाडु की मिलों को पायकारा जल विद्युत योजना से सस्ती बिजली प्राप्त होती है।
भारत में कपड़े का उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है। 1950-51 में 4 अरब वर्ग मीटर कपड़ा तैयार किया गया था जो अब 34 अरब वर्ग मीटर हो गया है। भारत जापान को सूत निर्यात करता है। भागलपुर में प्रायः तसर सिल्क का उत्पादन होता है जो रेशमी वस्त्र का एक प्रकार है। यहाँ उत्पादित रेशमी वस्त्रों को भागलपुरी सिल्क भी कहा जाता है। भागलपुर का बुनकर उद्योग कई दशकों पुराना है। यहाँ पर 35000 से अधिक बुनकर व 25000 से अधिक करघे हैं।
अहमदाबाद, मुम्बई के बाद देश का दूसरा महत्वपूर्ण वस्त्रोद्योग केन्द्र है। अहमदाबाद में वस्त्र उद्योग कुटीर, लघु व बड़े पैमाने पर स्थापित है। यहाँ लगभग 250 बड़े वस्त्र उत्पादक इकाइयाँ हैं। इसलिए इसको भारत का मैनचेस्टर कहा जाता है।
अभ्यास के प्रश्न
I.बहुवैकल्पिक प्रश्न-
सही विकल्प को चुनें।
1. टेक्सटाइल का मतलब होता है-
(i) जोड़ना
(ii) बुनना
(iii) नापना
(iv) सिलना
2. देश में कपड़े की मिल सबसे पहले लगाई गई-
(i) कोलकाता में
(ii) मुम्बई में
(iii) लुधियाना में
(iv) वाराणसी में
3. 1854 में कपड़े की मिल लगी-
(i) कोलकाता में
(ii) हैदराबाद में
(iii) सूरत में
(iv) मुम्बई में
4. सिल्क प्राप्त होता है-
(i) कपास से
(ii) रेयान से
(iii) कोकून से
(iv) पेड़ों से
5. वस्त्रोद्योग के लिए आवश्यक है-
(i) ऊर्जा
(ii) कच्चा माल
(iii) श्रम
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर-1. (ii) बुनना, 2. (i) कोलकाता में, 3. (iv) मुम्बई में, 4. (iii) कोकून से, 5. (ii) कच्चा माल ।

II. खाली स्थानों को उपयुक्त शब्दों से भरें-
1. भागलपुर शहर ….. वस्त्र उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है
2. -सूती वस्त्र उद्योग एक …….उद्योग है।
3. कपड़ों की बुनाई को………. कहा जाता है।
4. ढाका………..के लिए प्रसिद्ध रहा है।
5. अहमदावाद को भारत का…….. कहा जाता है।
उत्तर-1. रेशमी, 2. कुटीर, 3. टेक्सटाइल, 4. मलमल, 5. मैनचेस्टर ।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 50 शब्दों में)-
1. प्राकृतिक रेशे क्या हैं?
उत्तर-भेड़ों-बकरियों से ऊन, कोकून से सिल्क, पौधों से कपास और जूट ये सभी प्राकृतिक रेशे हैं। अर्थात् जो रेशे भेड़ों, बकरियों, कोकून तथा पौधों से तैयार किये जाते हैं। प्राकृतिक रेशे कहलाते हैं।
2. मानव निर्मित रेशों के नाम लिखिए।
उत्तर-नाइलान, पालिस्टर, एक्रोलियम, रेयॉन ।
3. मशीनों से कपड़ों का उत्पादन सस्ता होता है, क्यों ?
उत्तर—मशीनों से कपड़ों का उत्पादन सस्ता होता है और जल्दी बनता है। धागे से कपड़े बुनना एक प्राचीन कला है । लेकिन अब यही कला उद्योग का रूप ले चुका है। मशीनों से कपड़े बनाने में कम समय लगता है, कम मजदूर लगते हैं और बहुत अधिक मात्रा में कच्चा माल खरीदना भी सस्ता पड़ता है। इसलिए मशीन से कपड़ों का उत्पादन सस्ता होता है।
4. गरम कपड़ों की थोक खरीदारी किन जगहों पर होती है और क्यों ?
उत्तर-गरम कपड़ों की थोक खरीदारी लुधियाना तथा दिल्ली से होती है। क्योंकि वहाँ अत्यधिक मात्रा में मिल हैं तथा कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाता है जिससे कंपड़े कम कीमत पर उपलब्य हो जाते हैं।
IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें (अधिकतम 200 शब्दों में)
1. वस्त्र उद्योग की स्थापना में सहायक कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-(i) कच्चे माल की उपलब्धता-वस्त्रोद्योग हेतु कच्चे माल की उपलब्धता महत्वपूर्ण कारक है। समुद्री हवाओं और नमी के कारण गुजरात, महाराष्ट्र में अच्छी गुणवत्ता के कपास कच्चे माल के रूप में उपलब्ध होती है। गुजरात की काली मिट्टी कपास के उत्पादन के लिए काफी उर्वर है। ऊन से बनने वाले कम्बल, स्वेटर आदि गर्म कपड़े पंजाब कश्मीर में ज्यादा उपलब्ध हैं क्योंकि इन क्षेत्रों में भारी संख्या में ऐसे जानवर पाये जाते हैं।
(ii) परिवहन की सुविधा-वस्त्रों से संबंधित उत्पादन क्षेत्र निर्यात व आयात करने के लिए मुम्बई, कोलकाता, सौराष्ट्र, कोयम्बटूर (तमिलनाडु) इत्यादि बन्दरगाहों, सड़क, रेलमार्गों व वायुमार्गों से नजदीक अवस्थित है। इससे कच्चा व तैयार माल सम्पूर्ण देश में पहुँचाया जाता है।
साथ ही यूरोपीय देशों से आधुनिक मशीनें भी आयात करने में सुविधा होती है।
(iii) जलवायु-वस्त्र उद्योग के लिए नम जलवायु आवश्यक है। अगर जलवायु नम नहीं होगी तो कपास रेशे से निर्मित धागे टूटने लगते हैं। इस अवस्था में धागों में गाँठे पड़ जाएँगी तथा कपड़े की बुनावट अच्छी और मजबूत नहीं हो पायेगी। ऐसी जलवायु के अभाव में कृत्रिम रूप से आई जलवायु उपलब्ध करायी जाती है।
(iv) पूँजी की उपलब्धता-मुम्बई, कोलकाता और अहमदाबाद जैसे स्थानों में पर्याप्त पूँजी निवेशक उपलब्ध है। मुम्बई के प्रमुख पारसी व्यापारियों ने विदेशी व्यापार से जो धन अर्जित किया उसे वस्त्र उद्योग में लगाया, जिससे वस्त्रोद्योग को काफी विस्तार मिला।
(v) श्रम की उपलब्धता-मुम्बई की मिलों में काम करने के लिए मजदूर, कोंकण, सतारा, शोलापुर, रत्नागिरि जैसी जगहों में आते हैं । उसी प्रकार कलकत्ता की मिलों के लिए मजदूर बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और असम से उपलब्ध होते हैं जिसके कारण इस उद्योग को विकसित होने में सुविधा हुई है।
(vi) बाजार-वस्त्र उद्योग की स्थापना बाजार को देखते हुए भी की जाती है। दिल्ली, कलकत्ता, लुधियाना, कानपुर इत्यादि में स्थापित वस्त्रोद्योग-की इकाईयाँ बाजार के आधार पर ही विकसित की गई हैं।
(vii) सस्ती ऊर्जा की सुविधा-मुम्बई की कपड़ा मिलों को पश्चिमी घट पर स्थित टाटा जल विद्युत योजना से सस्ती विद्युत शक्ति प्राप्त हो जाती है। उसी प्रकार कलकत्ता की मिलों को रानीगंज, झरिया से कोयले की प्राप्ति हो जाती है। तमिलनाडु की मिलों को पायकारा जल विद्युत योजना से सस्ती बिजली प्राप्त होती है।
2. भारत के सूती वस्त्र उद्योग का विवरण दीजिए।
उत्तर-भारत का सूती वस्त्र उद्योग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग एक चौथाई भाग भारत में कपड़े का उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है। 1950-51 में 4 अरब वर्ग मीटर कपड़ा तैयार किया गया था जो अब 34 अरब वर्ग मीटर हो गया है। आधुनिक सूती वस्त्र उद्योग में वस्त्र निर्माण की प्रक्रिया कई स्तरों से गुजरती है। शुरू में मशीनों द्वारा कपास से बीज निकाले जाते हैं, जिसे ‘गिनिंग’ कहते हैं। इसके बाद कपास को इकट्ठा कर गाँठ तैयार किया जाता है। गाँठों द्वारा कपास के धागे बनाए जाते हैं। फिर इन धागों की सहायता से मशीनों द्वारा कपड़ा तैयार किया जाता है।

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