NCERT Class 8 Hindi Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

पाठ का सार

हमारे समाज में बहुत-सी बुराइयाँ आ गई हैं, जिनके कारण चारित्रिक मूल्यों में गिरावट आ गई है। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि सब कुछ खत्म हो गया और समाज में अच्छाई नहीं बची है। हर व्यक्ति को सन्देह की दृष्टि से देखा जा रहा है। दोष खोजने वाले दोषों को ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने में लगे हैं। इससे लगता है कि गुणी व्यक्ति कम हो गए हैं। यह स्थिति परेशान करने वाली है।

कभी संदेह होता है कि क्या यह वही भारत है, जिसका सपना तिलक और गांधी ने देखा था ? क्या आदर्शों का महासमुद्र भारत सूख गया ? वस्तुतः ऐसा सोचना सही नहीं है। यह सही है कि काम करके गुजारा करने वाला ईमानदार व्यक्ति आज परेशान है। मजदूर पिस रहे हैं। धोखे-बाज फल फूल रहे हैं। ईमानदार को लोग मूर्ख समझने लगे हैं। सच्चाई केवल डरपोक लोगों के हिस्से रह गई है।

भारत में संग्रह को महत्त्व नहीं दिया गया है। आंतरिक गुण को ही उत्तम माना गया है। लोभ-मोह आदि विचार हर आदमी में होते हैं, लेकिन इन्हें प्रधान गुण नहीं मान सकते। भारत में संयम को महत्त्व दिया गया। यह सब होने पर भूख या बीमारी की उपेक्षा नहीं की जा सकती। गुमराह को सही रास्ते पर लाना ही होगा। गरीबों का जीवन सुधारने के लिए जो कानून बनाए गए हैं, उनको लागू करने वाले लोग सच्चे मन से इस काम को नहीं कर रहे हैं। लोग कानून की कमजोरियों का लाभ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहते चाहे वे धर्मभीरु ही हों।

ऊपरी वर्ग में चाहे जो हो रहा हो, भीतर-भीतर अब भी धर्म कानून से बड़ी चीज है। सेवा, ईमानदारी, सच्चाई कुछ दब जरूर गए हैं, पर नष्ट नहीं हुए हैं। झूठ-चोरी आज भी गलत माने जाते हैं। अखबारों में भ्रष्टाचार के प्रति आक्रोश का यही कारण है कि हम गलत आचरण को रोकना चाहते हैं। दोषों को सामने लाना अच्छी बात है; परंतु उतना ही जरूरी है अच्छी बातों को भी सामने लाना। अच्छाई को छुपाना और भी बुरा है।

लेखक ने रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए दस के बदले सौ का नोट दे दिया, जो टिकट देने वाले ने उनको वापस किया। बस खराब हो जाने पर जब एक बार ड्राइवर को पीटने पर भीड़ उतारु थी, लेखक ने उसे बचाया। तभी बस का कंडक्टर दुसरी ठीक बस लेकर आया, साथ ही लेखक के बच्चों के लिए दूध और पानी भी लेकर आया। इससे पता चलता है कि इंसानियत खत्म नहीं हुई है। धोखा-ठगी का भी सामना करना पड़ता है। पर हम निराश हो जाएं कि अच्छी बातें नहीं बचीं सही नहीं है। जीवन में अच्छा भी बहुत है और वह खत्म नहीं हुआ है।

शब्दार्थ : तस्करी-चोरी से लाया माल; आरोप-लांछन; प्रत्यारोप-आरोप के बदले आरोप; गह्वर-गड्ढा; मनीषी-विद्वान; माहौल-वातावरण; जीविका-रोटी-रोजी; निरीह-इच्छा से रहित, नम्र व शांत; श्रमजीवी-मजदूर; फ़रेब-धोखा; पर्याय–समान अर्थ वाला; भीरु-डरपोक; आंतरिक-भीतरी; विद्यमान-मौजूद; आचरण-चाल-चलन; संयम-नियंत्रण; गुमराह-भटका हुआ; दरिद्रजन-गरीब लोग; धर्मभीरु-अधर्म से डरने वाला; प्रमाण-सुबूत; आध्यात्मिकता-मन से संबंध रखने वाला; व्यक्तिगत-निजी; आक्रोश-विरोध, गुस्सा, चिल्लाहट; प्रतिष्ठा-इज्जत; पर्दाफाश-दोष प्रकट करना; दोषोद्घाटन-दोष प्रकट करना; उजागर-प्रकट करना; लुप्त-गायब; अवांछित-गलत, जिसकी चाह न हो; वंचना-धोखा; निर्जन-सुनसान; कातर-भयभीत, बेचैन; चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना;-घबराना विश्वासघात-विश्वास तोड़ना; कष्टकर-कष्ट देने वाला; अकारण-बिना कारण के; गंतव्य-स्थान जहाँ किसी को जाना हो; ढाँढस-धीरज, दिलासा।

आपके विचार से

प्रश्न 1. लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं हैआपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर :
लेखक द्वारा इस तथ्य को स्वीकार करने के बाद भी कि उसने लोगों से धोखा खाया है, फिर भी वह निराश नहीं है, क्योंकि
(क) लेखक जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति है
(ख) वह ठगे जाने या धोखा खाने जैसी घटनाओं का बहुत कम हिसाब रखता है
(ग) उसके हाथ छल-कपट जैसी घटनाएँ हुई हैं, पर विश्वासघात नहीं या बहुत कम हुआ है
(घ) लेखक के साथ ऐसी बहुत-सी घटनाएँ हुई हैं जब लोगों ने अकारण ही उसकी मदद की है

प्रश्न 2. समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविज़न पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया होऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर :
ऐसे दो समाचार जिसमें ईमानदारी तथा बिना लालच के दूसरों के लिए काम किया गया है
1. अड़चनें भी डिगा नहीं पाईं शिक्षिका का हौसला-सहयोगियों का मिला भरपूर सहयोग(नोएडा) जहाँ एक ओर शिक्षा का व्यापार करके लोग रात-दिन अपनी जेब भरने में व्यस्त हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो तमाम अड़चनों के बावजूद मानसिक व शारीरिक रूप से असहाय बच्चों की सेवा करते हुए उनके जीवन में ज्ञान की रोशनी फैला रहे हैंऐसी ही शिक्षिका हैंसलारपुर स्थित बचपन डे केयर की सीमा पांडे।

दिसंबर, 2006 में लखनऊ निदेशालय, विकलांग विभाग की ओर से स्थापित बचपन डे केयर में सीमा ने बतौर शिक्षिका काम शुरू किया थाउस समय वहां एक कोआर्डिनेटर और दो अन्य शिक्षिकाएँ भी कार्यरत थीं लेकिन वर्ष 2007 से फंड की कमी और लखनऊ निदेशालय की ओर से सेंटर को बंद किए जाने के आदेश के बाद धीरे-धीरे अन्य स्टाफ नौकरी छोड़ गया सीमा ने हिम्मत नहीं हारी, मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के हक को लेकर वे विभागीय अधिकारियों के सामने भी डटकर खड़ी हो गईंतब से वे अकेले ही शिक्षिका व प्रभारी का कार्य संभालते हुए 25 से अधिक बच्चों के जीवन में ज्ञान की ज्योति जला रही हैंयह सीमा और उनके सहयोगियों का साहस ही था कि उनके निरंतर प्रयास से विभाग के डायरेक्टर ए.के. बरनवाल ने 2008-09 तक सेंटर चलाने की लिखित अनुमति दे दीसीमा बताती हैंकि डायरेक्टर के आदेश के आधार पर उन्होंने बैंक में जमा फंड में से सेंटर और वाहन के किराए का भुगतान कर दिया लेकिन कुछ विभागीय अधिकारीफंड होते हुए भी बच्चों पर खर्च किए जाने वाली राशि के आवंटन में रोड़े अटका रहे हैंअब अधिकारियों ने सेंटर बंद कराने का नया दाँव खेला हैपिछले सात महीने से पूरे स्टाफ की तनख्वाह यह कहकर रोकी हुई है कि जो पैसा सेंटर और वाहन के किराए में खर्च हुआ है उसके बदले में तनख्वाह काटी जा रही है।

इसके बावजूद सीमा सहित अन्य स्टाफ पूरी निष्ठा के साथ बच्चों की देखभाल में व्यस्त हैंसीमा का कहना है कि इन बच्चों को पढ़ाने और इनकी देखभाल करने से एक अलग सुकून मिलता है और जितना हो सकेगा, मैं इन बच्चों के लिए प्रयास करूंगी।

2. गरीब बच्चों के लिए समर्पित जीवन – नोएडा के सेक्टर-12 में पिछले 19 वर्षों से एक महिला शिक्षक अनाथ व गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रही हैशिक्षा देने वाली इस महिला ने बच्चों की खातिर अपना घर तक नहीं बसायाहर साल यहाँ पर आने वाले अनाथ बच्चों को साक्षर बनाना उनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।

शिक्षक होने के बावजूद भी उनके प्रेम, लगाव और व्यवहार की वजह से ही बच्चे उन्हें ‘माँ’ कहते हैं37 अनाथ बच्चों के इस बसेरे को बसाने वाली और बच्चों को शिक्षा दे रहीं अंजना राजगोपाल ने अभी तक शादी नहीं कीयह प्रेरणा औरों के लिए भी काम कर गई।

आज गरीब और बेसहारा के लिए साईं कृपा की ओर से सेक्टर-41 और सेक्टर-135 में स्कूल चलाया जा रहा है, जिसमें आने वाले सभी 18 शिक्षक बिना किसी पारिश्रमिक के बच्चों को पढ़ा रहे हैंहिंदुस्तान दैनिक 05 सितंबर 2009 दिल्ली संस्करण टिप्पणी-(समाचार 1 हेतु)

इस समाचार को पढ़कर हमारे मन में उन बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूकता उत्पन्न होती है जो किसी कारण से स्कूल नहीं जा पा रहे हैंहमें उनकी शिक्षा हेतु सार्थक कदम ‘विद्यादान महादान’ वाली कहावत चरितार्थ करना चाहिए।

टिप्पणी  (समाचार नं 2 हेतु)-इस समाचार पत्र को पढ़कर अंजना राजगोपाल का त्याग एवं समर्पण के प्रति मन श्रद्धानत हो जाता हैहमें भी इस तरह के कार्य करने के लिए आगे आना चाहिए।

प्रश्न 3. लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई हैआप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों
उत्तर :
आज समाचार-पत्रों में नकारात्मक घटनाओं-हिंसा, लूट, मार-पीट आदि की घटनाओं को प्रमुखता से तथा बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता हैइन समाचार-पत्रों में किसी की नि:स्वार्थ भलाई करने की घटनाएँ कभी-कभी ही छपती हैंऐसा नहीं कि समाज में ऐसी घटनाएँ घटती ही नहीं हैऐसी घटनाएँ होती तो हैं, पर वे यदा-कदा ही प्रकाश में आ पाती हैंऐसी ही एक घटना का वर्णन मैं कर रहा हूँ जो सत्य है तथा मेरे आसपास से ही जुड़ी है।

प्रतिभा कब, कहाँ, किस रूप में पैदा हो जाती है, इसका अनुमान लगाना कठिन हैमेरे पिताजी के एक मित्र हैं जो खेती करके अपना गुजारा मुश्किल से कर पाते हैंउनका बड़ा बेटा शुरू से ही पढ़ाई में बड़ा होनहार हैदसवीं में उसने 90% से अधिक अंक प्राप्त किएग्यारहवीं में विज्ञान विषय से अपनी पढ़ाई शुरू कर दीविज्ञान की पढ़ाई खेती के सहारे पूरी करा पाना संभव न था, फिर भी जैसे-तैसे तथा छात्रवृत्तियों के सहारे उसने बारहवीं की परीक्षा 92% अंकों से उत्तीर्ण कीआई.आई.टी.की परीक्षा के लिए उसने फार्म भर दिया थाउसका चयन भी हो गया, पर उसके पिताजी आई.आई.टी. की फीस देने में सर्वथा असमर्थ थेबच्चे के भविष्य का सवाल थामेरे पिताजी ने अपने एक एन.आर.आई. मित्र से फोन पर इस बारे में बात कीसारी बातें जानकर उन्होंने आई.आई.टी.का सारा खर्च उठाने की जिम्मेदारी लेते हुए एक लाख रुपये पिताजी के पास भेज दिये, जिसे लेकर पिताजी उसका प्रवेश दिलाने चले गएसंयोग की बात है कि उसका साढे चार साल का पाठ्यक्रम पूरा होने से पहले ही अमरीका की एक कंपनी ने अच्छा वेतन देते हुए उसका चयन कर लियाआज वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर है किंतु अपने घरवालों के साथ पिताजी और उनके मित्र के इस भलाई के कार्य हेतु कृतज्ञतापूर्वक याद करता है।

पर्दाफ़ाश

प्रश्न 1. दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर :
दोषों का पर्दाफ़ाश करना तब बुरा रूप ले लेता है जब उसका उद्देश्य केवल आलोचना करते हुए मजाक उड़ाना ही रह गया होइस पर्दाफ़ाश के पीछे किसी के दोष को सुधारने का उद्देश्य न होकर उसकी बदनामी कराना होइसके अलावा इस पर्दाफ़ाश के पीछे किसी की भलाई का लक्ष्य न हो, किसी संस्था या प्रतिष्ठान को बदनाम करना हो, सत्यता को बिना जाने-समझे लोगों के सामने लाना, अपनी निजी वैमनस्यता या बदला लेने की भावना हो तथा स्वयं की महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति करने की इच्छा हो तथा अपने चैनल आदि की प्रसिधि बढ़ानी हो

प्रश्न 2. आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैंइस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए?
उत्तर :
आजकल बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैंइस तरह के कार्यक्रमों की सार्थकता है क्योंकि इनको पढ़कर या देखकर व्यक्ति जागरूक हो जाएँवे अपराधियों या दोषियों से बच सकें तथा अपने आसपास घटनाओं की पुनरावृत्ति न होने देंइन कार्यक्रमों की सार्थकता तभी है जब इन पर्दाफाश करने वाले कार्यक्रमों के पीछे सच्चाई, ईमानदारी तथा जनकल्याण की भावना छिपी होयदि इनके पीछे स्वार्थ, धनोपार्जन या चैनलों की प्रसिधि बढ़ाने की लालसा छिपी हो तो इन कार्यक्रमों की कोई सार्थकता नहीं है।

दो लेखक और बस यात्रा

प्रश्न 1. आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी सही बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
पहली बस यात्रा का लेखक-हमारी बस तो बूढ़ी हो चुकी, बेदम हो चुकी, इसलिए रुक गई है; पर आपकी बस तो नई लग रही है, फिर भी बीच सड़क पर रुक गई है।

दूसरी बस यात्रा का लेखक- मुझे लगता है-बस अचानक खराब हो गई है, लेकिन सवारियाँ डरी हुई हैं कि कहीं उन्हें कोई लूट न ले।

पहली बस यात्रा का लेखक- हमारा ड्राइवर तो नली से इंजन को पेट्रोल पिलाकर चला रहा था। यह शीशी से अपने बच्चों को भी इसी तरह दूध पिलाता होगा।

दूसरी बस यात्रा का लेखक- खैर! हमारी बस इतनी गई-बीती तो नहीं है। कंडक्टर डिपो तक गया है। शायद ठीक वाली बस लेता आए। हमारे बच्चों के लिए दूध और पानी भी लाने के लिए कहकर गया है।

सार्थक शीर्षक

प्रश्न 1. लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर :
लेखक ने इस लेख का शीर्षक क्या निराश हुआ जाए’ इसलिए रखा होगा क्योंकि आज हिंसा, भ्रष्टाचार, तस्करी, चोरी, डकैती, घटते मानवीय मूल्य से जो माहौल बन गया है उसमें आदमी का निराश होना स्वाभाविक हैऐसे माहौल में भी लेखक निराश नहीं है, तथा वह चाहता है कि दूसरे भी निराश न हों, इसलिए उनसे ही पूछना चाहता है कि क्या निराश हुआ जाए? अर्थात् निराश होने की आवश्यकता नहीं हैइसका अन्य शीर्षक ‘होगा नया सवेरा’, या, “बनो आशावादी’ भी हो सकता

प्रश्न 2. यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए।-,?.;-, …।
उत्तर :
‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद मैं प्रश्नवाचक चिह्न (?) लगाऊँगा क्योंकि लेखक समाज से ही पूछना चाहता है कि क्या निराश का वातावरण पूरी तरह बन गया हैयदि लोगों का जवाब हाँ होगा तो वह उन्हें निराशा त्यागने की सलाह देगा।

प्रश्न 3. “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर :
आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत ही कठिन है। इस बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। जैसे हम कहते हैं कि ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है। आखिर कितने लोग इसका पालन करते हैं? जरा सा अधिकार मिलते ही व्यक्ति भाई-भतीजावाद या ‘अंधा बांटे रेवड़ी पुनि-पुनि अपने को देय’ की नीति अपनाने लगते हैं। हाँ, जिनके हाथ में कुछ नहीं होता। वे ईमानदारी का राग जरूर अलापते हैं। वास्तव में ईमानदारी का पालन करते समय हमारी स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति सामने या आड़े आ जाती है।

सपनों का भारत

“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”

प्रश्न 1. आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे ? लिखिए।
उत्तर:
हमारे महान विद्वानों ने उस भारत के सपने देखे थे जिसमें सच्चाई, त्याग, धर्म, परहित, संयम आदि गुणों को आचरण बनाने वाले लोग हों। लोग मेहनत करें। किसी का शोषण न करें। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय न समझें। धर्मभीरु लोग कानून की कमियों का फायदा न उठाएँ। दरिद्रजनों के सारे अभाव दूर हो जाएँ।

प्रश्न 2. आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए ? लिखिए।
उत्तर:
मेरे सपनों के भारत में बेईमान, कामचोर, राष्ट्रद्रोही एवं भ्रष्ट लोगों का कोई स्थान नहीं है। गरीबों का खून चूस कर जेबें भरने वालों के लिए, राष्ट्रीय सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों के लिए एकमात्र जेल ही ठिकाना होना चाहिए। भ्रष्ट, घूसखोर, अपराधी लोग संसद में न पहुँचें। अधिकारी और नेता केवल जनहित की ही बात सोचेंगे। जिन लोगों ने देश का पैसा विदेशी बैंकों में चोरी छुपे जमा कराया है, उस पैसे को देश में लाकर कल्याण-कार्यों में खर्च किया जाएगा। जाति-बिरादरी और क्षेत्रवाद को बढ़ाने वाले नेताओं को सत्ता में नहीं आने दिया जाएगा।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर क्यों नहीं किया जा सकता ?
उत्तर:
जिन लोगों को दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए लगाया गया था, उनका मन हर समय पवित्र नहीं होता। वे लोग अपनी सुख-सुविधा को ज्यादा महत्त्व देते हैं और अपना असली लक्ष्य भूल जाते हैं। इसी कारण से दरिद्रों की दशा में सुधार नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी क्या अनुभव कर रहा है ?
उत्तर:
भीतर-भीतर भारतवर्प अब भी अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, ईमानदारी और सच्चाई मूल्यों के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 3.
हम किन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं ?
उत्तर:
समाज में जो चरम-परम गलत तरीकों से धन या मान पाना चाहते हैं, हम आज भी उनकी प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं।

प्रश्न 4.
अवांछित घटनाएँ होने पर भी लेखक का क्या विश्वास है ?
उत्तर:
अवांछित घटनाएँ होने पर भी लेखक का विश्वास है कि ईमानदारी और सच्चाई लुप्त नहीं हुई है।

प्रश्न 5.
कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पीटने का हिसाब क्यों बनाया था ?
उत्तर:
बस खराब होने पर कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हो गया कि उन्हें धोखा दिया जा रहा। इसी कारण से कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पीटने का हिसाब बनाया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इन्होंने भारतवर्ष का सपना नहीं देखा था-
(क) तिलक
(ख) गाँधी
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना
(घ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
उत्तर:
(ग) मुहम्मद अली जिन्ना

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में इन्हें जीवन मूल्य नहीं माना जाता-
(क) लोभ
(ख) ईमानदारी
(ग) सेवा
(घ) आध्यात्मिकता
उत्तर:
(क) लोभ

प्रश्न 3.
बस का कंडक्टर लेकर आया-
(क) रोटी
(ख) फल
(ग) दूध
(घ) दाल
उत्तर:
(ग) दूध

प्रश्न 4.
बस गन्तव्य से कितने किलोमीटर पर खराब हो गई?
(क) पाँच
(ख) आठ
(ग) तीन
(घ) दस
उत्तर:
(ख) आठ

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