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 औद्योगिक क्रांति – INDUSTRIAL REVOLUTION IN HINDI


औद्योगिक क्रांति – INDUSTRIAL REVOLUTION IN HINDI

“क्रांति” शब्द से साधारणतया आकस्मिक उथल-पुथल का बोध होता है. लेकिन औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के साथ हम वैसी बात नहीं पाते हैं. साधारणतः लोहे, काँसे और दूसरी-दूसरी चीजों के उत्पादन के ढंग में आमूल परिवर्तन को “औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)” की संज्ञा दी जाती है. दस्तकारी के स्थान पर वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिणामस्वरूप कारखानों का जन्म हुआ, उत्पादन में वृद्धि हुई. संक्षेप में, औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) का अभिप्राय उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह संभव कर दिया कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन तरीकों को छोड़कर बड़ी मात्रा बड़े-बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके. इतिहासकार रायकर ने औद्योगिक क्रान्ति को परिभाषित करते हुए कहा है कि – “दस्तकारी के स्थान पर वास्पयंत्रों द्वारा चालित उत्पादन और यातायात की प्रक्रियाओं में सामान्य रूप से परिवर्तन लाना ही औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) थी.”

1760 ई. से लेकर 1840 ई. तक Europe में अकस्मात् औद्योगिक प्रक्रिया में नई-नई चीजें हुईं, जिन्हें कुल मिलाकर औद्योगिक क्रांति का नाम दिया गया. वस्तुतः यह प्रक्रिया आज तक चल रही है परन्तु उस समय के कालखंड में औद्योगिक उत्पादन की प्रक्रिया में जो बदलाव आये थे वे अत्यंत आकस्मिक और अभूतपूर्व थे. इस संदर्भ में 1760 ई. का महत्त्व यह है कि उसी वर्ष cast iron blowing cylinder का सर्वप्रथम प्रयोग हुआ था. 1840 ई. के बाद यूरोप में रेलवे का विस्तार हुआ इसलिए इसके बाद औद्योगिक उत्पादन में अभूतपूर्व प्रगति हुई. अतः इस दौर को द्वितीय औद्योगिक क्रान्ति  का नाम दिया गया.

औद्योगिक क्रांति

औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के प्रारम्भ होने के पहले घरेलू उद्योग-धंधों का बोलबाला था. शिल्पकार, कारीगर, दस्तकार अपने घरों के सुन्दर-सुन्दर वस्तुएँ तैयार करते थे. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के फलस्वरूप उत्पादन के तरीकों में आमूल परिवर्तन हुआ. मानवीय श्रम के स्थान पर यंत्रो का प्रोयग शुरू हुआ. नयी-नयी मशीनें बनीं. इस प्रकार दस्तकारी के स्थान पर वैज्ञानिक अनुसंधानों के फलस्वरूप जब कारखानों का जन्म  हुआ और उत्पादन में वृद्धि हुई तो इसे ही “औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)” की संज्ञा दी गई. संक्षेप में, औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) का अभिप्राय उन परिवर्तनों से हैं जिन्होंने यह संभव कर दिया कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन तरीकों को छोड़कर बड़ी मात्रा में बड़े-बड़े कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके.

कारण

इंगलैंड में औद्योगिक क्रान्ति की नींव पहले से ही तैयार की जा रही थी. इंगलैंड का व्यवसायी वर्ग अन्य देशों के व्यवसायी वर्ग की अपेक्षा अधिक कुशल और साहसी था. व्यापार की उन्नति के लिए उनमें अधिक  लगन और स्वाभाविक प्रेरणा थी. इंगलैंड का व्यवसायिक वर्ग सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त था. इंगलैंड की सरकार भी व्यापारियों के कार्यों में सहायता देती थी. परिस्थिति की सुगमता के अतिरिक्त सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिस्थतियों के कारण भी औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) सर्वप्रथम इंगलैंड में हुई. इन कारणों का विवरण कुछ इस प्रकार है –

इंग्लैंड की आंतरिक स्थिति

1688 ई. की क्रांति के फलस्वरूप इंग्लैंड संसदीय शासन-पद्धति की स्थापना हुई. जनसाधारण के अधिकार सुरक्षित हो चुके थे. राजनीतिक और धार्मिक अत्याचार से मुक्ति पाकर लोग आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हुए. गृहयुद्ध और बाह्य आक्रमण की कोई आशंका नहीं थी. आंतरिक शान्ति और सुदृढ़ता व्यापार की प्रगति में सहायक हुई. लेकिन अन्य दूसरे-दूसरे देश राजनीतिक उलझनों में ही फँसे थे.

मध्यम वर्ग का उदय

सतरहवीं सदी में व्यापारिक क्रांति के कारण मध्यम वर्ग की शक्ति बढ़ी. किन्तु अब भी सामंती प्रतिबंधों के कारण मध्यम वर्ग के वाणिज्य-व्यापार और उद्योग-धंधों की प्रगति नहीं हो रही थी. 1740 ई. में इंगलैंड में मध्यम वर्ग ने क्रांति की. क्रांति के फलस्वरूप एक नयी व्यवस्था कायम हुई. नयी व्यवस्था में पुराने सामंती प्रतिबंधों छुटकारा मिलने और उद्योगपतियों के हाथ में शक्ति आ जाने के कारण इंग्लैंड में उद्योग-धंधों की काफी प्रगति हुई. चूँकि इंगलैंड में मध्यम वर्ग के हाथ में राजनीतिक सत्ता फ्रांस और अमेरिका से पहले आई थी, इसलिए औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) का प्रारम्भ भी पहले-पहल इंगलैंड में हुआ.

पूँजी की अधिकता

इंगलैंड का व्यापार पूर्वी और पश्चिमी द्वीप समूहों से होता था. इससे इंगलैंड को अधिक मुनाफा प्राप्त होता था. देश में पूँजीवादी व्यस्था दिन-प्रतिदिन जोर पकड़ती जा रही थी. बची हुई पूँजी का उपयोग लोग उत्पादन बढ़ाने में करने लगे. उत्पादन बढ़ने से औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) को प्रोत्साहन मिला. बैंक-प्रणाली के विकास से भी धन इकठ्ठा करने में मदद मिली.

वस्तुओं की बढ़ती हुई माँग

अठारहवीं शताब्दी के युद्ध के परिणाम भी औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) की प्रगति में सहायक सिद्ध हुए. इंगलैंड पेशेवर सिपाहियों के लिए युद्ध-सामग्री तैयार करता था. सामानों की बढ़ती हुई माँग ने उत्पादन के तरीके और साधन में परिवर्तन को आवश्यक बना दिया था. ऐसी परिस्थिति पैदा हो गयी थी कि लोगों को बड़े पैमानों पर वस्तुओं के उत्पादन में अपनी बुद्धि लगानी पड़ी.

कृषि-क्रांति का प्रभाव

इंगलैंड में सर्प्र्थम औद्योगिक क्रांति होने का एक प्रमुख कारण यह था कि वहाँ सर्वप्रथम कृषि-प्रणाली में परिवर्तन हुआ. खेती के एक तरीके अपनाए गए और उत्पादन में वृद्धि हुई. लोगों की आर्थिक स्थिति में परिवर्तन आया, उनकी आवश्यकताएँ बढीं और आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए उद्योग-धंधों का विकास किया गया. उत्पादन बढ़ने से शहरों की बढ़ती हुई आबादी को खिलाना संभव हो सका. कृषि-क्रान्ति का एक परिणाम यह भी हुआ कि खेती में लगे किसान बेकार हो गए. वे जीविका की खोज में शहर गए. इससे श्रमशक्ति के अभाव की पूर्ति हुई. अब कारखाना में तैयार वस्तुओं के लिए देश में ही बाजार मिल गया.

कुशल कारीगर

सतरहवीं शताब्दी में धर्मयुद्ध के कारण अन्य देशों से अधिक संख्या में कुशल कारीगर इंगलैंड आये थे. उन्होंने अपनी कला-कौशल का प्रदर्शन इंगलैंड में किया. इससे इंगलैंड के मजदूरों के ज्ञान में वृद्धि हुई. खेती के तरीके में परिवर्तन हुआ और उद्योग-धंधों का विकास हुआ. इस प्रकार उद्योग-धंधों के विकास में कुशल कारीगरों ने बहुत मदद पहुँचाई.

कच्चे माल की सुविधा

18वीं शताब्दी के मध्य तक इंगलैंड का औपनिवेशिक साम्राज्य पूर्वी कनाडा, उत्तरी अमेरिका, फ्लोरिडा, भारत, पश्चिमी द्वीप समूह, पश्चिमी अफ्रीका, जिब्राल्टर तक फ़ैल चुका था. इन स्थानों से इंगलैंड को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल मिल जाता था. साथ ही निर्मित वस्तुओं की खपत के लिए बाजार भी मिल जाता था. उपनिवेश से धन भी मिल जाता था. इस प्रकार औपनिवेशिक साम्राज्य की वृद्धि से इंगलैंड को औद्योगिक प्रगति में काफी सहायता मिली. क्योंकि औद्योगिक विकास के प्रमुख साधन – पूँजी, श्रम, कच्चा माल और बाजार उपनिवेशों में मिल जाते थे.

जनसंख्या में वृद्धि

जनसंख्या में वृद्धि औद्योगिक क्रान्ति का एक प्रमुख कारण था. बच्चों की सुरक्षा और गरीबों की सहायता की व्यवस्था की गई थी. अब लोग आसानी से भुखमरी और रोक का शिकार नहीं हो सकते थे. जनसंख्या बढ़ने से उद्योग के विकास के लिए श्रम की पूर्ति हुई.

वनिक संघ का पतन

वनिक संघ के पतन के फलस्वरूप भी औद्योगिक क्रांति कामयाबी हासिल कर सकी. वनिक संघ के अन्दर लोगों को संघ के नियमानुसार काम करना पड़ता था. लेकिन वणिक संघ के टूट जाने से लोग अपने पसंद का काम करने लगे. तरह-तरह के व्यापार का उदय हुआ. इससे भी औद्योगिक क्रांति को बल मिला.

 

परिणाम

आर्थिक परिणाम

औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के फलस्वरूप लोगों के आर्थिक जीवन में परविर्तन आया. एक ओर बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई तो दूसरी ओर घरेलू उद्योग-धंधों का विनाश हुआ. इस बुरा प्रभाव दस्तकारों पर पड़ा. अमीरी-गरीबी साथ-साथ बढ़ी. इंग्लैंड की राष्ट्रीय संपत्ति में वृद्धि हुई. अंतर्देशीय व्यापार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी वृद्धि हुई. इंग्लैंड का व्यापार एशिया, अफ्रीका और अमेरिका से होता था. इससे उसे आर्थिक लाभ प्राप्त हुआ. देहात के बेकार मजदूर और दस्तकार शहर में काम करने लगे. इससे शहरों की जनसंख्या बढ़ी और साथ-साथ आर्थिक-सामजिक समस्याएँ भी उत्पन्न हुईं.

सामाजिक परिणाम

पौष्टिक आहार और दावा-दारु के उचित प्रबंध के कारण जनसंख्या में वृद्धि हुई. दूसरी ओर कारखाना प्रणाली का बुरा प्रभाव मजदूरों के स्वास्थ्य पर पड़ा. मजदूरों को उचित मजदूरी नहीं दी जाती थी. कम मजदूरी के कारण उन्हें अच्छा भोजन नहीं मिलता था. औद्योगिक क्रान्ति ने सामजिक विषमता को जन्म दिया. पूँजी कुछ ही लोगों के हाथों में जमा हो गई. पूँजीपति मुनाफा कमाने में लगे रहते थे और वे मजदूरों की सुविधा का ख्याल नहीं करते थे. धनी दिन-प्रतिदिन धनी होते जा रहे थे और गरीबों की गरीबी बढ़ती जा रही थी. आर्थिक विषमता ने सामजिक विषमता को जन्म दिया. समाज में भ्रष्टाचार और व्यभिचार जैसी सामजिक बुराइयाँ बढीं. इससे लोगों का जीवन कष्टमय हो गया.

औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution) के फलस्वरूप कई लोगों के जीवन-स्तर में परिवर्तन आया. जीवन में शान-शौकत और विलासता बढ़ी. चीजों का उत्पादन पर्याप्त मात्र में होने लगा. अब साधारण व्यक्ति भी वैसी चीजों का प्रयोग करने लगा जिनका प्रयोग कभी सिर्फ अमीर वर्ग तक सीमित था. औद्योगिक वर्ग ने माध्यम वर्ग को जन्म दिया. इस वर्ग के लोगों के पास पूँजी थी. किन्तु उन्हें कोई अधिकार प्राप्त नहीं था. वे अपने अधिकार के लिए संघर्ष करने लगे. इससे सामजिक समस्या उत्पन्न हुई. समस्या को सुलझाने के लिए औद्योगिक देशों की सरकार ने कुछ कानून बनाए. मध्यम वर्ग को सामजिक समानता मिली. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में मजदूरों का शोषण होता था. उन्हें अधिक देर तक काम करना पड़ता था लेकिन मजदूरी कम मिलती थी. परिणामस्वरूप मजदूर संघ का जन्म हुआ.

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