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 Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 1

Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी के क्या स्रोत है ?
उत्तर:
हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी कराने वाले अनेक स्रोत उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो जैसे विभिन्न नगरों की खुदाई से प्राप्त विभिन्न भवनों, गलियों, बाजारों, स्नानागारों आदि के अवशेष हड़प्पा संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं। इन अवशेषों से हड़प्पा संस्कृति के नगर निर्माण एवं नागरिक प्रबंध के विषय में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।

दूसरे, कला के विभिन्न नमूनों से जैसे मिट्टी के खिलौनों, धातुओं की मूर्तियों (विशेषकर नाचती हुई लड़की की ताँबे की प्रतिमा) आदि से हड़प्पा के लोगों की कला एवं कारीगरी पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।

मोहरों (Seals) से जो अपने में ही हड़प्पा संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर काफी जानकारी प्राप्त होती है। इनसे हड़प्पा संस्कृति से संबंधित लोगों के धर्म, पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों तथा लिपि के उपस्थिति से यह अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पाई लोग पढ़े-लिखे थे। इस लिपि के पढ़े जाने के बाद उनके संबंध में कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होंगी।

प्रश्न 2.
सिंधुघाटी सभ्यता की धार्मिक जीवन पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
हड़प्पा (सिंधु) सभ्यता के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं-

  • मातृदेवी की पूजा होती थी।
  • पशुपति की पूजा प्रचलित थी। कूबड़ वाला बैल पूजनीय था।
  • पीपल वृक्ष की भी पूजा होती थी।
  • नागपूजा, स्वास्तिष्क (सूर्यपूजा), अग्निपूजा (वेदी) के भी संकेत मिलते हैं।
  • एक मूर्ति में एक स्त्री के गर्भ में से एक पौधा निकलता हुआ दिखाई देता है। यह संभवतः धरती देवी की मूर्ति है। संभव है कि हड़प्पावासी धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा करते हों।

कुल मिलाकर हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन काफी हद तक आज के हिन्दू धर्म के ही समान था। यद्यपि इस सभ्यता से कहीं भी मन्दिर जैसे अवशेष नहीं प्राप्त हुए हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता के प्रमुख देवताओं एवं धार्मिक प्रथाओं की विवेचना करें।
उत्तर:
हड़प्पावासी बहुदेववादी और प्रकृति पूजक थे। मातृदेवी इनकी प्रमुख देवी थी। मिट्टी की बनी अनेक स्त्री मूर्तियाँ, जो मातृदेवी की प्रतीक है, बड़ी संख्या में मिली हैं। देवताओं में प्रधान पशुपति या आद्य-शिव थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर योगीश्वर की मूर्ति को पशुपति महादेव माना गया है। सिन्धुवासी नाग कूबड़दार सांढ़, लिंग योनि पीपल के वृक्ष की भी पूजा करते थे। जलपूजा, अग्निपूजा और बलि प्रथा भी प्रचलित थी। मन्दिरों और पुरोहितों का अस्तित्व नहीं था।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता के विस्तार पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
हड़प्पा सभ्यता प्राचीन सभी सभ्यताओं में विशालतम थी। यह उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी तक पश्चिम में ब्लूचिस्तान मकरान तट से लेकर पूर्व में अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक फैली हुई थी। कुल मिलाकर यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम तक 1600 कि. मी. तथा उत्तर से दक्षिण लगभग 1200 कि० मी० तक विस्तृत थी।

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी सभ्यता में नालों के निर्माण का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
नालों का निर्माण (Laying Out Drains)- हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। यदि आप निचले शहर के नक्शे को देखें तो आप यह जान पायेंगे कि सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम-से-कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।

प्रश्न 6.
मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानागार के विषय में लिखिए।
उत्तर:
मोहनजोदड़ो में बना सार्वजनिक स्नानागार अपना विशेष महत्त्व रखता है। यह सिन्धु घाटी के लोगों को कला का अद्वितीय नमूना है। ऐसा अनुमान है कि यह स्नानागार (तालाब) धार्मिक अवसरों पर आम जनता के नहाने के प्रयोग में लाया जाता था। यह तालाब इतना मजबूत बना हुआ है। इसकी दीवारें काफी चौड़ी बनी हुई हैं जो पक्की ईंटों और विशेष प्रकार के सीमेंट से बनी हुई हैं ताकि पानी अपने आप बाहर न निकल सके। तालाब (स्नानघर) में नीचे उतरने के लिए सीढियाँ भी बनी हुई हैं। पानी निकलने के लिए नालियों का भी प्रबंध है।

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी से संबंधित गृह स्थापत्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता की गृह स्थापत्य (Domestic architecture of the Indus Valley Civilisation): मोहनजोदड़ो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तुत करता है। इनमें से कई एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। संभवतः आँगन, खाना पकाने और कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था, खास तौर से गर्म और शुष्क मौसम में। यहाँ का एक अन्य रोचक पहलू लोगों द्वारा अपने एकांतता को दिया जाने वाला महत्त्व था। भूमि तल पर बनी दीवारों में खिड़कियाँ नहीं है। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता है।

हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था, जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुड़ी हुई थीं। कुछ घरों में दूसरे तल या छत पर जाने हेतु बनाई गई सीढ़ियों के अवशेष मिले थे। कई आवासों में कुएँ थे जो अधिकांशतः एक ऐसे कक्ष में बनाये गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था और जिनका प्रयोग संभवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।

प्रश्न 8.
मोहनजोदड़ो का एक नियोजित शहरी केन्द्र के रूप में प्रमुख विशेषताओं का लगभग 100 से 150 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
एक नियोजित शहरी केन्द्र के रूप में मोहनजोदड़ो (A planned urban centre Mohenjodaro):
(i) संभवतः हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केन्द्रों का विकास था। आइये ऐसे ही केन्द्र, मोहनजोदड़ो को और सूक्ष्मता से देखते हैं। हालांकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है, सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था।

(ii) बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक खड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमशः दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था।

(iii) निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो मात्र आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम-दिवसों, अर्थात् बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी।

(iv) शहर का सारा भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन। नियोजन के अन्य लक्षणों से ईंटें शामिल हैं, जो भले धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पकाकर बनाई गई हों, एक निश्चित अनुपात की होती थीं, जहाँ लंबाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी और दुगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।

प्रश्न 9.
कार्बन-14 विधि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
तिथि निर्धारण की वैज्ञानिक विधि को कार्बन-14 विधि के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः किसी की जीवित वस्तु में कार्बन-12 और कार्बन-14 समान मात्रा में पाया जाता है। मृत्यु की अवस्था में C-12 तो स्थिर रहता है किन्तु कार्बन-14 का निरंतर बल होने लगता है। कार्बन का अर्द्ध आयु काल 5568 # 90 वर्ष होता है अर्थात् इतने वर्षों में उस पदार्थ में C-14 की मात्रा आधी रह जाती है। इस प्रकार वस्तु के काल की गणना की जाती है। जिस पदार्थ में कार्बन-14 की मात्रा जितनी कम होगी वह उतनी ही पुरानी मानी जाएगी। इसी के आधार पर प्राचीन . सभ्यताओं की तिथि का निर्धारण किया जात है।

प्रश्न 10.
पुरातत्व से आप क्या समझते है ?
उत्तर:
प्राचीन इतिहास के अध्ययन में पुरातात्विक स्रोत का अपना विशेष स्थान रखते हैं। इसके प्रमुख कारण यह है कि भारतीय ग्रंथों की संख्या काल की सही-सही जानकारी नहीं होने के कारण किसी काल-विशेष की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का ज्ञान नहीं होता। साहित्यिक साधनों में लेखक का दृष्टिकोण भी सही तथा प्रस्तुत करने में बाधक होता है। ग्रंथों की प्रतिलिपि करने वालों ने अपना इच्छानुसार प्राचीन प्रकरणों को छोड़कर अनेक नए प्रकरण जोड़ देते हैं। लेकिन पुरातात्विक सामग्री में इस प्रकार के हेर-फेर की संभावना बहुत कम होता है; अतः पुरातात्विक स्रोत अधिक विश्वसनीय होते हैं।

प्रश्न 11.
उत्तरापथ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उत्तरापथ उस व्यापारिक मार्ग को कहते हैं, जो मौर्योत्तर युग में बहुत ख्याति प्राप्त था। यह मार्ग तक्षशिला से प्रारम्भ होकर पंजाब, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन आदि मार्गों से होता हुआ भारत के पश्चिम तट पर स्थित भडौंच नामक स्थान पर समाप्त होता था।

प्रश्न 12.
अभिलेख का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अभिलेख (Inscriptions) – अभिलेख उन लेखों को कहा जाता है, जो स्तंभों, चट्टानों, गुफाओं, ताम्रपत्रों और पत्थरों की चौड़ी पट्टियों पर खुदे तत्कालीन शासकों के शासन का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व धार्मिक चित्र खींचते हैं।

प्रश्न 13.
इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर:
अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुए लेखाभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसके धम्म, प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय पहलुओं आदि के विषय में सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास लेखन में अभिलेख की महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाती है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महोदय ने अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयल किया है।

प्रश्न 14.
हड़प्पावासियों द्वारा व्यवहृत सिंचाई के साधनों का उल्लेख करें।
उत्तर:
हड़प्पा वासियों द्वारा मुख्यत: नहरें, कुएँ और तालाब जल संग्रह करने वाले स्थानों को सिंचाई के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
(क) अफगानिस्तान में सौतुगई नामक स्थल से हड़प्पाई नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
(ख) हड़प्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था। ।
(ग) गुजरात के धोलावीरा नामक स्थान से तालाब मिला है। इसे कृषि की सिंचाई के लिए, पानी देने के लिए तथा जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था।

प्रश्न 15.
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें।
उत्तर:
सिंधु घाटी के लोग नगरों में रहने वाले थे। वे नगर स्थापना में बड़े कुशल थे। उन्होंने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, रोपड़ जैसे अनेक नगरों का निर्माण किया। उनकी नगर व्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित विशेषताएँ मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं

  • हड़प्पा संस्कृति के नगर एक विशेष योजना के अनुसार बनाये गये थे। इन लोगों ने बिल्कुल सीधी (90° के कोण पर काटती हुई) सड़कों व गलियों का निर्माण किया था, ताकि डॉ० मैके के अनुसार ‘चलने वाली वायु उन्हें अपने आप ही साफ कर दे।’
  • उनकी जल निकासी की व्यवस्था बड़ी शानदार थी। नालियाँ बड़ी सरलता से साफ हो सकती थीं।
  • किसी भी भवन को अपनी सीमा से आगे कभी नहीं बढ़ने दिया जाता था और न ही बर्तन पकाने वाली किसी भी भट्टी को नगर के अंदर बनने दिया जाता था। अर्थात् अनाधिकृत निर्माण (unauthorised constructions) नहीं किया जाता था।

प्रश्न 16.
‘आश्रम’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
वैदिक काल में प्रत्येक व्यक्ति की आयु को 100 वर्ष मानकर उसे चार भागों (आश्रमों) में बाँट दिया गया। इन आश्रमों का विभाजन निम्नलिखित ढंग से किया जाता था :

  • ब्रह्मचर्य आश्रम पहले 25 वर्ष की आयु तक।
  • गृहस्थ आश्रम 25 से 50 वर्ष की आयु तक।
  • वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्ष की आयु तक।
  • संन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष की आयु तक।

प्रश्न 17.
आप वैदिक संस्कृति के बारे में क्या जानते हैं ?
उत्तर:
वैदिक साहित्य विशेषकर चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद जिस संस्कृत भाषा में लिखे (या रचे) गए थे वह वैदिक संस्कृत कहलाती है। यह संस्कृत उस संस्कृत से कुछ कठिन एवं भिन्न थी जिसका प्रयोग हम आजकल करते हैं। वस्तुतः वेदों को ईश्वरीय ज्ञान के तुल्य माना जाता था यह शुरू में मौखिक रूप में ही ब्राह्मण परिवारों से जुड़े लोगों तथा कुछ अन्य विशिष्ट परिवारजनों को ही पढ़ाया-सुनाया जाता था। महाकाव्य काल में रामायण तथा महाभारत की रचना के लिए जिन संस्कृत का प्रयोग किया गया वह वैदिक संस्कृत से अधिक सरल थी। इसलिए वह संस्कृत और अधिक लोगों में लोकप्रिय हुई थी।

प्रश्न 18.
महाजनपद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
“लगभग एक सहस्र ईस्वी पूर्व से पाँच सौ ईस्वी पूर्व तक के युग को भारतीय इतिहास में जनपद या महाजनपद युग कहा जा सकता है।” जिस प्रदेश में एक जन स्थायी रूप से बस गया, वही उसका जनपद (राज्य) हो गया। प्रारम्भ में जनपद में किसी एक वर्ग विशेष के मनुष्य ही रहते थे। अतः उनका जीवन एक ही जातीय, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परम्परा के ऊपर संगठित था, परंतु कालांतर में अन्य वर्ग एवं जातियों के लोग भी आकर उनके जनपदों में बसने लगे। इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान तो हुआ, परंतु बहुत समय तक राजसत्ता एकमात्र आदि जन के प्रतिनिधियों के हाथ में रही। प्रत्येक जनपद में बहुसंख्यक गाँव और नगर होते थे।

काशिकाकार ने लिखा है कि ग्रामों का समुदाय ही जनपद है। धीरे-धीरे जनपदों की संख्या कम होने लगी। छोटे जनपद बड़े जनपदों में परिवर्तित होने लगे। इस भाँति देश में महाजनपद काल का उदय हुआ। महात्मा बुद्ध के आविर्भाव के पूर्व भारतवर्ष 16 महाजनपदों में विभक्त था। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में इनके नाम निम्न प्रकार मिलते हैं- 1. अंग, 2. मगध, 3. काशी, 4. कोशल, 5. वज्जि, 6. मल्ल, 7. चेदि, 8. वत्स, 9. कुरु, 10. पांचाल, 11. मत्स्य, 12. शूरसेन, 13. अस्सक, 14. अवन्ति, 15. गांधार, 16. कम्बोजा

प्रश्न 19.
महाजनपद युग की राजनीति विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आरंभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई० पू० को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों के लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है। इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख मिलता है। यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची तथा ग्रंथों में एक समान नहीं है, लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरू, पाञ्चाल, गांधार और अवन्ति जैसे नाम प्रायः मिलते हैं। इससे यह स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद महत्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते होंगे।

अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा या राजन कहलाता था।

प्रश्न 20.
मिलिन्द पन्नाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मिलिन्दपन्नाह (या पह) – यह बौद्ध ग्रंथ में बैक्ट्रियन और भारत के उत्तर पश्चिमी भाग पर शासन करने वाले हिन्दू यूनानी सम्राट मैनेण्डर एवं प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागसेन के संवाद का वर्णन किया गया है। इसमें ईसा की पहली दो शताब्दियों के उत्तर-पश्चिम भारतीय जीवन के झलक देखने को मिलती है।

प्रश्न 21.
छठी शताब्दी में ई० पू० से चौथी शताब्दी ई. पू. की अवधि के नगरीकरण को भारत का द्वितीय नगरीकरण क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
भारत का पहला नगरीकरण हड़प्पा की संस्कृति के साथ प्रारम्भ हुआ और 1500 ई० पू० के लगभग आर्यों द्वारा देश में प्रमुखता प्राप्ति के साथ ही के समय समाप्त हो गया। आर्य लोग ग्रामीण थे। जब हड़प्पा संस्कृति के नगर एक-एक करके नष्ट हो गये तो फिर अगले 1500 वर्ष तक नगर विलुप्त रहे।

ईसा की छठी शताब्दी में बौद्ध काल में पुन: नगरों का श्रीगणेश हुआ। अतः छठी शताब्दी ई० पू० से चौथी शताब्दी ई० पू० तक बौद्ध काल को भारत का अद्वितीय नगरीकरण काल कहा जाता है।

प्रश्न 22.
प्राचीन भारतीय समाज की जाति व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
संभवतः आप ‘जाति’ शब्द से परिचित होंगे जो एक सोपानात्मक सामाजिक वर्गीकरण को दर्शाती है। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था, जिसमें स्वयं उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और ‘अस्पृश्यों’ का सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था इस व्यवस्था में दर्जा संभवतः जन्म के अनुसार निर्धारित माना जाता था।

अपनी मान्यता को प्रमाणित करने के लिए ब्राह्मण बहुधा ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मंत्र को उद्धृत करते थे जो आदि मानव पुरुष की बलि का चित्रण करता है। जगत के सभी तत्व जिनमें चारों वर्ण शामिल हैं, इसी पुरुष के शरीर से उपजे थे।

ब्राह्मण उसका मुँह था, उसकी भुजाओं से क्षत्रिय निर्मित हुआ।
वैश्य उसकी जंघा थी, उसके पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 23.
मनुस्मृति में यद्यपि आठ प्रकार के विवाहों की स्वीकृति दी गई है लेकिन इस धर्मसूत्र में उल्लिखित पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धतियों का विवरण और उल्लेख दीजिए।
उत्तर:
मनुस्मृति और चार प्रमुख प्रकार के विवाह (Manusmriti and Four Main type of Marriages)- यहाँ मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धति का उद्धरण दिया जा रहा है-

  • पहली – कन्या का दान, बहुमूल्य वस्त्रों और अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदज्ञ वर को दान दिया जाये जिसे पिता ने स्वयं आमंत्रित किया हो।
  • चौथा – पिता वर-वधू युगल को यह कहकर संबोधित करता है कि “तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो।” तत्पश्चात् वह वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता है।
  • पाँचवाँ – वर को वधू की प्राप्ति तब होती है जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधवों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है।
  • छठा – स्त्री और पुरुष के बीच अपनी इच्छा से संयोग “जिसकी उत्पत्ति काम से है।”

प्रश्न 24.
श्रेणी अथवा गिल्ड की व्याख्या कीजिए। गिल्ड के सदस्यों द्वारा कौन-कौन से कार्य किये जाते थे ?
उत्तर:
प्राचीन काल में जो लोग एक ही प्रकार का व्यवसाय करते थे अथवा व्यवहार संबंधी (आंतरिक या बाह्य या दोनों प्रकार के) में व्यस्त रहते थे वे कभी-कभी स्वयं को गिल्ड अथवा श्रेणियों में संगठित कर लेते थे।

गिल्ड या श्रेणियों के कार्य-
(i) श्रेणियों के सदस्य अपने साधनों को इकट्ठा कर लेते थे। जो भी धन अपनी शिल्प कलाओं या व्यापार के द्वारा अर्जित करते थे। वह अपने प्रमुख शहर में सूर्य देवता के मंदिर निर्माण पर खर्च करते थे।

(ii) श्रेणियों को सदस्य अपनी अतिरिक्त पूँजी धन आदि को मंदिरों के पास रख देते थे जो समय-समय पर उन्हें व्यवसाय और व्यापार जारी रखने या उनके विकास या विस्तार के लिए निवेश करने के लिए धनराशि देने की व्यवस्था करते थे।

(iii) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है तथा श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हालाँकि श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे। इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी होते थे।

(iv) श्रेणियाँ या गिल्ड समुदायों के इतिहास का लेखा-जोखा हमें कम ही प्राप्त होता है किन्तु कुछ अपवाद होते हैं जैसे मंदसौरा (मध्य प्रदेश) से मिला अभिलेख (लगभग पाँचवीं शताब्दी ईस्वी)। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलत: लाट (गुजरात) प्रदेश के निवासी थे और वहाँ से मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बांधवों के साथ सम्पन्न की। उन्होंने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था। अत: वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।

प्रश्न 25.
महाभारत के महत्त्व पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
महाभारत का महत्त्व (Importance of the Mahabharata) महाभारत केवल कौरव-पाण्डवों के संघर्ष की कथा ही नहीं किंतु भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के विकास का प्रदर्शक एक विशाल कोष है। इसमें उस समय के राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक और ऐतिहासिक आदर्शों का अमूल्य संग्रह है।

महाभारत की इस सूक्ति में लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि वह सर्व प्रधान काव्य, सब दर्शनों का सार, स्मृति, इतिहास और चरित्र-चित्रण की खान तथा पंचम वेद है। मानव जीवन का कोई ऐसा भाग या समस्या नहीं जिस पर इसमें विस्तार से विचार नहीं किया गया हो। शांति पर्व और अनुशासन पर्व तो इस दृष्टि से लिखे गए हैं। इसलिए महाभारत का यह दावा सर्वथा सत्य है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो इनमें कहा गया है कि वह ठीक है। जो इनमें नहीं है, वह कहीं नहीं।

इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के पश्चात् यह संस्कृत साहित्य का चमकता ग्रंथ है। विस्तार में कोई काव्य इनकी समता नहीं कर सकता। यूनानियों का इलियड (Iliad) और औडेसी (Odessey) मिलाकर इसका आठवाँ भाग है। इसका सांस्कृतिक महत्त्व इसी तथ्य में स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ भगवद्गीता इसी का अंश है।

आलोचना (Criticism) इस कथा के अतिरिक्त महाभारत में और भी कहानियाँ मिलती हैं। जो काल्पनिक-सी होती है। यद्यपि महाभारत भी रामायण की भाँति पूर्णतया सत्यता पर आधारित नहीं है तथापि हम इसे अनैतिहासिक नहीं कह सकते। हस्तिनापुर इन्द्रप्रस्थ आदि ऐतिहासिक नगर है। वैदिक साहित्य में कौरवों का नाम तो कई बार आता है परन्तु पांडवों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

इससे अनुमान लगाया जाता है कि पांडव कौरवों के संबंधी न होकर बाहर से आने वाली आक्रमणकारी रहे होंगे।

प्रश्न 26.
महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
महाभारतकालीन स्त्रियाँ (Women of Mahabharat-age)
(a) महाभारत काल में घरेलू तथा संन्यासिनियों दोनों तरह की स्त्रियों का विवरण प्राप्त है। रामायण में अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूइया का उल्लेख प्राप्त है। इसी ग्रंथ में ‘शबरी’ एक अन्य चर्चित साध्वी है। शबरी महान कृषि मातंग की शिष्या थी तथा पंपा झील के किनारे उसको कुटिया होती थी। घरेलू स्त्रियों में कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी तथा सीता एवं दासी के रूप में मंथरा का उल्लेख मिलता है।

(b) महाभारत में अनेक महिलाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ सुलभा एक महान विदुषी थी। उपयुक्त वर पाने के लिए उसने संन्यास ले लिया तथा ज्ञान आदान-प्रदान के लिए वह सर्वत्र घूमती रही। गांधारी, कुंती एवं द्रौपदी आदि घरेलू महिलाओं के सुविदित उदाहरण हैं।

(c) राजा ऋतध्वज की सहचरी ‘मंदालसा’ पुराणों की चर्चित नारियों में एक हैं। वह एक ही साथ विदुशी, संत, नारी तथा कर्त्तव्यशील पत्नी थी। पुराणों की एक और संत नारी महान ऋषि प्रजापति कर्दम की पत्नी और भारतीय दर्शन की संख्या पद्धति के प्रजेता कपिल मुनि की माँ ‘देवहति’ है। एक घरेलू जीवन व्यतीत करने वाली नारी होने के बावजूद भी अपने ज्ञानी पति एवं पुत्र के साथ शास्त्रार्थ एवं आध्यात्मिक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान इस क्षेत्र में अद्वितीय प्राप्तियों का प्रतीक है।

प्रश्न 27.
कौरव और पांडव कौन थे ? उनके बंधुत्व संबंध कैसे बदल गये थे ?
उत्तर:
कौरव और पांडव दोनों एक ही परिवार के सदस्य और दो चचेरे भाइयों के समूह थे। वे एक राज्य परिवार अथवा राजवंश से संबंधित थे जो कुरु वंश कहलाता था।

महाभारत हमें सूचना देता है कि इन दोनों समूहों में बंधुत्व का संबंध बड़ा भारी परिवर्तित हो गया। महाभारत दोनों समूह के मध्य भूमि के एक भू-भाग के एक टुकड़े पर संघर्ष का उल्लेख करता है और उसके लिए दोनों समूहों में परस्पर युद्ध हुआ।

प्रश्न 28.
द्रोण कौन था ?
उत्तर:
द्रोणा (द्रोणाचार्य) कुरु शहजादों का गुरु था। वह एक ब्राह्मण था उसने सभी, कौरव और पांडव राजकुमारों को धनुर विद्या सिखलाई। कहा जाता है कि इस महान गुरु ने अर्जुन को यह वायदा किया था कि दुनिया में कोई भी उसके समान कुशल धनुर्धारी नहीं होगा।

प्रश्न 29.
एकलव्य कौन था ?
उत्तर:
एकलव्य एक वन में रहने वाला निषाद नामक जनजाति से संबंधित युवक था। महाभारत में उसका नाम द्रोणाचार्य से उसके संबंधों के कारण प्रसिद्धि प्राप्त कर सका। कहा जाता है कि एकलव्य को धनुष बाण चलाने की शिक्षा पाने का बड़ा चाव था। वह गुरु द्रोणाचार्य के पास गया लेकिन उन्होंने स्वयं को कुरुशाही परिवार के प्रति समर्पित बताकर उसे धनुष बाण चलाने की शिक्षा देने से मना कर दिया। एकलव्य दिल से द्रोणाचार्य को अपना गुरु मान चुका था। वह उनकी मृद प्रतिभा के समक्ष प्रतिदिन आदर करने के उपरांत रोजाना अभ्यास करने लगा।

उसने एक दिन पांडव के एक कुत्ते के भौंकने को बंद करने के लिए ठीक उसके मुँह में उस जगह कई तीर मारे जहाँ से वह स्वान बोल रहा था। उसके मुँह में लगे बाणों को देखकर अर्जुन को आश्चर्य हुआ, वह द्रोण को एकल्व्य के पास ले गये। एकलव्य ने स्वयं को उन्हीं का शिष्य बताया और उनके कहने पर सहर्ष दाहिने हाथ का अंगूठा दे दिया। द्रोणाचार्य को भी यह विश्वास नहीं था कि एकलव्य इतना अधिक गुरुभक्त हो चुका था कि वह अपनी धनुष बाण की प्राप्त कुशलता को दाहिने हाथ का अंगूठा देकर त्याग देगा। जो भी हो इस घटना के बाद एकलव्य उतनी कुशलता से बाण नहीं छोड़ सका जिनता कि वह पहले छोड़ता था।

प्रश्न 30.
घटोत्कच कौन था ?
उत्तर:
घटोत्कच दूसरे पांडव भीम और एक राक्षसी महिला हिडिंबा की संतान था। हिडिंबा एक मानव भक्षी राक्षस की बहन थी। वह भीम के प्रति आसक्त हो गई। उसने युधिष्ठिर से प्रार्थना की वह भी उसे विवाह करना चाहती है और उसने वायदा किया कि वह स्वेच्छा से पांडवों को छोड़कर चली जायेगी। घटोत्कच की, माँ बनने के बाद उसने पुत्र सहित अपने वायदे के अनुसार पांडवों को छोड़ दिया। घटोत्कच ने अपने पिता भीम तथा अन्य पांडवों को यह बताया कि वे जब कभी भी उसे बुलाएँगे वह उनके पास आ जायेगी।

प्रश्न 31.
अश्वमेघ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
‘अश्वमेघ’ का शाब्दिक अर्थ है-अश्व = घोड़ा, व मेघ = बादल अर्थात् बादल रूपी घोड़ा। जिस प्रकार बादल वायुमंडल में स्वेच्छा से विचरण करता रहता है, उसी प्रकार ‘अश्वमेघ’ यज्ञ का घोड़ा अपनी इच्छा से कहीं भी घूमता (दौड़ता) रहता है।

‘अश्वमेघ’ प्राचीन काल में एक यज्ञ विशेष का नाम था, जिसमें घोड़े के माथे पर एक जयपत्र बाँधा जाता था और उसे स्वच्छन्द रूप से छोड़ दिया जाता था (शक्तिशाली व प्रतापी राजाओं द्वारा यह कार्य किया जाता था) घोड़े का अपने यहाँ दौड़कर वापस आने का अर्थ था-राजा का निर्विरोध शासक स्थापित होना। यदि कोई घोड़े को पकड़ लेता था तो उसे घोड़े के स्वामी (राजा) से युद्ध करना पड़ता था।

प्रश्न 32.
श्रीमद्भगवद्गीता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
कुरूक्षेत्र की युद्ध भूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भागवत् गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्म पर्व का अंग है। गीता के 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं। जैसा गीता के शंकर भाष्य में कहा है। तंधर्म भवता यथोपदिष्ट वेद व्यास सर्वज्ञो भगवान् गीतारम्यै सप्तामि श्लोकशतैस पनिबंधा ज्ञात होता है कि लगभग 8वीं सदी के अंत में शंकराचार्य (788-820) के सामने गीता का वही पाठ था जो आज हमें उपलब्ध है।

प्रश्न 33.
प्राचीन शहर राजगीर के बारे में कुछ तथ्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
राजगीर, मगध राज्य का एक महत्वपूर्ण राजधानी नगर था। इसे पहले राजगृह कहा गया जो एक प्राकृतिक भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है राजा का घर। यह वर्तमान बिहार राज्य में था। यह नगर किलाबद्ध था और नदी के किनारे पहाड़ों से घिरा हुआ परिधी में स्थित था। जब तक पाटलिपुत्र मगध की नई राजधानी बनी तब तक राजगीर (अथवा राजगृह) ही पूर्वी भारत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र रहा।

प्रश्न 34.
‘नालन्दा’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
नालंदा (Nalanda) – ‘नालंदा बौद्ध धर्म का एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इसके सम्बन्ध में लिखा था कि इसमें दस हजार विद्यार्थी पढ़ते थे, जिनको 1500 अध्यापक पढ़ाते थे। सभी छात्र छात्रावास में रहते थे। उनके खाने-पीने और अन्य खर्च के लिए राज्य ने 200 गाँव दिये हुए थे, जिनके भूराजस्व से सारा खर्च चलता था। इस विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए, अपने देश के अलावा विदेशों से भी छात्र आते थे। इसमें प्रवेश पाना सरल न था। इस विश्वविद्यालय में पढ़े हुए छात्र समाज और राजदरबारों में सम्मान के पात्र होते थे।’

प्रश्न 35.
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
मौर्यकालीन इतिहास के प्रमुख स्रोतों का विवरण निम्नलिखित है-
(i) मेगास्थनीज की इंडिका (Indica of Magasthaneze)- मौर्यकालीन भारत के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिये मेगास्थनीज द्वारा रचित ‘इण्डिका’ (Indica) एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें तत्कालीन शासन व्यवस्था, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक अवस्था पर महत्वपूर्ण विवरण मिलता है।

(ii) कौटिल्य का अर्थशास्त्र (Kautilya’s Arthshastra)-कौटिल्य का अर्थशास्त्र भी तत्कालीन भारत के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालता है जिससे मौर्यों के बारे में पता चलता है।

(iii) विशाखदत्त मुद्राराक्षस (Vishakhdutta’s Mudraraksha)- इस प्रमुख ग्रंथ में नन्द वंश का चन्द्रगुप्त द्वारा नाश का वर्णन है।

(iv) जैन और बौद्ध साहित्य (Jains and Buddhists Literature)- जैन और बौद्धं दोनों धर्मों के साहित्य में तत्कालीन समाज, राजनीति आदि की जानकारी प्राप्त होती है।

(v) अशोक के शिलालेख (Inscription of Ashoka)- स्थान-स्थान पर लगे अशोक के शिलालेख से भी मौर्यकालीन प्रशासन, धर्म, समाज अर्थव्यवस्था आदि पर प्रकाश पड़ता है।

प्रश्न 36.
गांधार कला की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
महायान बौद्ध धर्म के उदय के साथ गांधार कला का भी उदय हुआ। इनका विकास गांधार क्षेत्र (अविभाजित भारत का पश्चिमोत्तर क्षेत्र) में हुआ इसलिए इसे गांधार कला कहा गया। इस पर यूनानी कला-शैली का प्रभाव है। इस कला में पहली बार बुद्ध और बोधिसत्व की मानवाकार मूर्तियाँ विभिन्न मुद्राओं में बनीं। मूर्तियों में बालों के अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया।

प्रश्न 37.
कलिंग युद्ध का अशोक पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अशोक ने कलिंग (आधुनिक उड़ीसा) के राजा के साथ एक युद्ध किया। ई० पू० 261 में लड़े गये कलिंग युद्ध के दूरगामी प्रभाव निम्नलिखित थे

  1. इस युद्ध में अशोक विजयी रहा लेकिन उसने अपार जन हानि देखी। सदैव के लिए अशोक ने युद्ध लड़ना छोड़ दिया।
  2. उसने भेरी घोष के स्थान पर ‘धम्म घोष’ की नीति अपनाई।
  3. कलिंग का मगध राज्य में विलय हो गया।

प्रश्न 38.
गुप्त कौन थे ? गुप्त वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर:
गुप्त कौन थे ? इस विषय पर इतिहासकारों में बहुत मतभेद है। डॉ. हेमचंद्र राय चौधरी उन्हें ब्राह्मण बताते हैं, तो पं. गौरी शंकर बिहारी प्रसाद शास्त्री उन्हें क्षत्रिय, आल्तेकर जैसे इतिहासकार उन्हें वैश्य मानते हैं। कुछ इतिहासकार तो उन्हें शूद्र तक कहने से नहीं चूकते। अत: कोई ठोस आधार अभी तक नहीं मिला है, जो गुप्त लोगों के विषय में पूर्ण जानकारी दे।

गुप्त वंश का संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम था। उसका शासन काल 230 ई० से 336 ई० तक रहा।

प्रश्न 39.
गुप्त वंश का प्रथम प्रसिद्ध राजा कौन था ? उसने अपनी स्थिति को कैसे दृढ किया ?
उत्तर:
चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का प्रथम प्रसिद्ध राजा था। उसने लिच्छवी राजकुमारी से विवाह करके, सैन्य संगठन को सुदृढ़ कर विजय अभियान छेड़कर तथा गुप्त संवत् को प्रारंभ करके अपने प्रभाव एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाया।

प्रश्न 40.
चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (चंद्रगुप्त द्वितीय), समुद्रगुप्त का पुत्र था। उसने 380 ई० से 410 ई० तक शासन किया।

सबसे पहले उसने बंगाल पर अपनी विजय पताका फहराई। इसके पश्चात् वल्कीक जाति और अवंति गणराज्य पर विजय प्राप्त की। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सफलताएँ थीं-मालवा, काठियावाड़ और गुजरात। शकों को हराकर उसने विक्रमादित्य की पद्वी धारण की। संस्कृत का महान कालिदास उसी के दरबार में रहता था। उसके शासन काल में प्रजा सुखी और समृद्ध तथा सुव्यवस्थित थी।

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