NCERT Class 10 Sanskrit Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा

अभ्यासः

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-

(क) बुद्धिमती कुत्र व्याघ्र ददर्श?
उत्तराणि:
गहनकानने

(ख) भामिनी कया विमुक्ता?
उत्तराणि:
निजबुद्ध्या

(ग) सर्वदा सर्वकार्येषु का बलवती?
उत्तराणि:
बुद्धिः

(घ) व्याघ्रः कस्मात् बिभोति?
उत्तराणि:
मानुषात्

(ङ) प्रत्युपन्नमतिः बुद्धिमती किम् आक्षिपन्ती उवाच?
उत्तराणि:
शृगालम्

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत-

(क) बुद्धिमती केन उपेता पितुहं प्रति चलिता?
उत्तराणि:
बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितृर्गह प्रति चलिता।

(ख) व्याघ्रः किं विचार्य पलायित:?
उत्तराणि:
काचित् इयम् व्याघ्रमारी इति मत्वा (विचार्य) पलायितः।

(ग) लोके महतो भयात् कः मुच्यते?
उत्तराणि:
लोके महतो भयात् बुद्धिमान् मुच्यते।

(घ) जम्बुकः किं वदन् व्याघ्रस्य उपहासं करोति?
उत्तराणि:
यत् मानुषादपि बिभेषि इति वदन् जम्बुक: व्याघ्रस्य उपहास कराति।

(ङ) बुद्धिमती शृगालं किम् उक्तवती?
उत्तराणि:
बुद्धिमती शृगाल उक्त्वती-“रे रे धूर्त! त्वया मह्यम् पुरा व्याघ्रत्रयं दत्तम्। विश्वास्य अपि अद्य एकम् आनीय कथं यासि इति अधुना वद।

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-

(क) तत्र राजसिंहो नाम राजपुत्रः वसति स्म।
उत्तराणि:
तत्र किम् नाम राजपुत्रः वसति स्म?

(ख) बुद्धिमती चपेटया पुत्रौ प्रहृतवती।
उत्तराणि:
बुद्धिमती कया पुत्रौ प्रहृतवती?

(ग) व्याघ्रं दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्।
उत्तराणि:
कम् दृष्ट्वा धूर्तः शृगालः अवदत्?

(घ) त्वं मानुषात् विभषि।
उत्तराणि:
त्वम् कस्मात् विभेषि?

(ङ) पुरा त्वया मह्यं व्याघ्रत्रयं दत्तम्।
उत्तराणि:
पुरा त्वया कस्मै व्याघ्रत्रय दत्तम्?

प्रश्न 4.
अधोलिखितानि वाक्यानि घटनाक्रमानुसारेण योजयत-

(क) व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।
उत्तराणि:
बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितृर्गृह प्रति चलिता।

(ख) प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।
उत्तराणि:
मोर्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।

(ग) जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।
उत्तराणि:
व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्रं विभज्य भुज्यताम्।

(घ) मोर्गे सा एकं व्याघ्रम् अपश्यत्।
उत्तराणि:
व्याघ्रः व्याघ्रमारी इयमिति मत्वा पलायितः।

(ङ) व्याघ्रं दृष्ट्वा सा पुत्रौ ताडयन्ती उवाच-अधुना एकमेव व्याघ्र विभज्य भुज्यताम्।
उत्तराणि:
जम्बुककृतोत्साहः व्याघ्रः पुनः काननम् आगच्छत्।

(च) बुद्धिमती पुत्रद्वयेन उपेता पितृह प्रति चलिता।
उत्तराणि:
प्रत्युत्पन्नमतिः सा शृगालं आक्षिपन्ती उवाच।

(छ) ‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।
उत्तराणि:
‘त्वं व्याघ्रत्रयम् आनेतुं’ प्रतिज्ञाय एकमेव आनीतवान्।

(ज) गलबद्ध शृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।
उत्तराणि:
गलबद्धशृगालक: व्याघ्रः पुनः पलायितः।

प्रश्न 5.
सन्धिं / सन्धिविच्छेदं व कुरुत-

(क) पितुर्गृहम् – ______ + ________
(ख) एकैक: – ______ + ________
(ग) ______ – अन्यः + अपि
(घ) ______ – इति + उक्त्वा
(ङ) ______ – यत्र + आस्ते
उत्तराणि:
(क) पितुहम् – पितुः + गृहम्
(ख) एकैकः – एक + एकः
(ग) अन्योऽपि – अन्यः + अपि
(घ) इत्युक्त्वा – इति + उक्त्वा
(ङ) यत्रास्ते – यत्र + आस्ते

प्रश्न 6.
अधोलिखितानां पदानाम् अर्थः कोष्ठकात् चित्वा लिखत-

(क) ददर्श – (दर्शितवान्, दृष्टवान्)
(ख) जगाद – (अकथयत्, अगच्छत्)
(ग) ययौ – (याचितवान्, गतवान्)
(घ) अत्तुम् – (खादितुम्, आविष्कर्तुम्)
(ङ) मुच्यते – (मुक्तो भवति, मग्नो भवति)
(च) ईक्षते – (पश्यति, इच्छति)
उत्तराणि:
(क) ददर्श – दृष्टवान्
(ग) जगाद – अकथयत्
(ङ) ययौ – गतवान्
(छ) अत्तुम् – खादितुम्
(झ) मुच्यते – मुक्तो भवति
(ट) ईक्षते – पश्यति

प्रश्न 7(अ).
पाठात् चित्वा पर्यायपदं लिखत-

(क) वनम् – _________
(ख) शृगालः – _________
(ग) शीघ्रम् – _________
(घ) पत्नी – _________
(ङ) गच्छसि – _________
उत्तराणि:
(क) वनम् – काननम्
(ख) शृगालः – जम्बुक:
(ग) शीघ्रम् – सत्वरम्
(घ) पत्नी – भार्या
(ङ) गच्छसि – यासि

प्रश्न 7(आ).
पाठात् चित्वा विपरीतार्थकं पदं लिखत-

(क) प्रथमः – _________
(ख) उक्त्वा – _________
(ग) अधुना – _________
(घ) अवेला – _________
(ङ) बुद्धिहीना – _________
उत्तराणि:
(क) प्रथमः – द्वितीयः
(ख) उक्त्वा – श्रुत्वा
(ग) अधुना – तदा
(घ) अवला – वेला
(ङ) बुद्धिहीना – बुद्धिमती

परियोजनाकार्यम्
बुद्धिमत्याः स्थाने आत्मानं परिकल्प्य तद्भावनां स्वभाषया लिखत।
विद्यार्थी स्वयं करें।

योग्यताविस्तारः
यह पाठ शुकसप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रन्थ से सम्पादित कर लिया गया है। इसमें अपने दो छोटे-छोटे पुत्रों के साथ जंगल के रास्ते से पिता के घर जा रही बुद्धिमती नामक नारी के बुद्धिकौशल को दिखाया गया है, जो सामने आए हुए शेर को डराकर भगा देती है। इस कथाग्रन्थ में नीतिनिपुण शुक और सारिका की कहानियों के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सद्वृत्ति का विकास कराया गया है।

भाषिकविस्तारः
ददर्श-दृश् धातु, लिट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
विभेषि ‘भी’ धातु, लट् लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन।
प्रहरन्ती – प्र + ह्र धातु, शतृ प्रत्यय, स्त्रीलिङ्ग प्र० वि० एकवचन।
गम्यताम् – गम् धातु, कर्मवाच्य, लोट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
ययौ – ‘या’ धातु, लिट् लकार, प्रथमपुरुष, एकवचन।
यासि – गच्छसि ‘या’ धातु लट् लकार, मध्यम्पुरुष, एकवचन।

समास
गलबद्धशृगालक: – गले बद्धः शृगालः यस्य सः।
प्रत्युत्पन्नमतिः – प्रत्युत्पन्ना मतिः यस्य सः।
जम्बुककृतोत्साहात् – जम्बुकेन कृतः उत्साहः-जम्बुककृतोस्साहः तस्मात्।
पुत्रद्वयोपेता – पुत्रद्वयेन उपेता।
भयाकुलचित्तः – भयेन आकुल: चित्तम् यस्य सः।
व्याघ्रमारी – व्याघ्रं मारयति इति।
गृहीतकरजीवितः – गृहीतं करे जीवितं येन सः।
भयङ्करा – भयं करोति या इति।

ग्रन्थ परिचय- शुकसप्ततिः के लेखक और काल के विषय में यद्यपि भ्रान्ति बनी हुई है, तथापि इसका काल 1000 ई. से 1400 ई. के मध्य माना जाता है। हेमचन्द्र ने (1088-1172) में शुकसप्ततिः का उल्लेख किया है। चौदहवीं शताब्दी में फारसी भाषा में ‘तूतिनामह’ नाम से अनूदित हुआ था।

शुकसप्ततिः का ढाँचा अत्यन्त सरल और मनोरंजक है। हरिदत्त नामक सेठ का मदनविनोद नामक एक पुत्र था। वह विषयासक्त और कुमार्गगामी था। सेठ को दु:खी देखकर उसेक मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण ने अपने घर से नीतिनिपुण शुक और सारिका लेकर उसके घर जाकर कहा-इस सपत्नीक शुक का तुम पुत्र की भाँति पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुख दूर होगा। हरिदत्त ने मदनविनोद को वह तोता दे दिया। तोते की कहानियों ने मदनविनोद का हृदय परिवर्तन कर दिया और वह अपने व्यवसाय में लग गया।

व्यापार प्रसंग में जब वह देशान्तर गया तब शुक ने अपनी मनोरंजक कहानियों से उसकी पत्नी का तब तक विनोद करता रहा जब तक उसका पति वापस नहीं आ गया। संक्षेप में शुकसप्ततिः अत्यधिक मनोरंजक कथाओं का संग्रह है।
हन् (मारना) धातोः रूपम्।
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा 1
NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 2 बुद्धिर्बलवती सदा 2

Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय – प्रस्तुत पाठ शुक सप्ततिः नामक प्रसिद्ध कथाग्रंथ से लिया गया है। इस पाठ में अपने दो छोटे छोटे पुत्रों को लेकर जगल के रास्ते अपने पिता के घर जा रही एक बुद्धिमती नामक नारीके बुद्धि कौशल को प्रकट किया गया है,जो सामने आये हुए शेर को भी डरा कर भगा देती है। इस ग्रंथ में नीति निपुण शुक व सारिका की कहानियों की वर्णन है जो बालक में सवृत्ति का विकास करती है।

1. अस्ति देउलाख्यो ग्रामः। तत्र राजसिंहः नाम राजपुत्रः वसति स्म। एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्योपेता पितुर्गृह प्रति चलिता। मार्गे गहनकानने सा एक व्यानं ददर्श। सा व्याघ्रमागच्छन्त ‘ दृष्ट्वा ध राष्ात् पुत्रौ चपटेया प्रहत्य जगाद – “कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथ:? अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। पश्चाद् अन्यो द्वितीयः कश्चिल्लक्ष्यते। इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्टः।
निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी। अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्तः नृगालः हसत्ताह – “भवान् कुतः भयात् पलायित:?”

शब्दार्था: – भाां – पत्नी, पुत्रद्वयोपेता – दयेन पुत्रेन् सह दो पुत्रों के साथ, उपेता – युक्ता (लेकर के) कानने – वने (जगंल में), ददर्श – अपश्यत (देखा) धाष्टर्यात – धृष्ट भावात् (ठिठाई से). वपेटेया कर प्रहारेण – थप्पड से ,

प्रहव्य – प्रहारकृत्वा थप्पड मारकर, जगाद – उक्तवती (बोला) कलहः – विवाद (झगड़). विभज्य – विभक्तः कृत्वा (अलग करके), लक्ष्यते – अन्विष्यते (ढूंढा जाएगा), व्याघ्रमारी – व्याघ्र मरयति, नष्ट: – मृतः, पलायित: – (भाग गया) बाघ को मारने वाली इति

सरलार्थः – एक देअलाख्य नाम का गाँव है वहाँ राजसिंह नाम का राजा का पुत्र रहता था। एक बार किसी आवश्यक कार्य के कारण उसकी पत्नी जिसका नाम बुद्धिमती था, दो पुत्रों के साथ अपने पिता के घर चल ही रास्ते में घने जगल में उसने एक बाघ देखा। वह बाघ को देखकर बिठाई पूर्वक अपने दोनों पुत्रों को थप्पड़ मारकर बोली: क्यों एक एक बाघ खाने के लिए झगड़ा कर रहे हो? इस एक को ही तब तक बाँटकर खाओं। इसके बाद दूसरे को ढूढ़ते है।”
ऐसा सुनकर बाघमारी (बाघ को मारने वाली) है कोई ऐसा मानकर बाघ भय से आकुल होकर भाग गया।
“अपनी बुद्धि से वह रूपवती स्त्री बाघ के भय से मुक्त हो गई। इस प्रकार बुद्धिमान बुद्धि से बहुत बड़े संकट से भी मुक्त हो सकते है।”
भय से आकुल (परेशान) बाघ को किसी धूर्त सियार न देखा और हँसा और कहा: – आप भय के मारे काहाँ भाग रहे हो?”

2. व्याघ्रः – गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि किञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाह हन्तुमारब्धः परं गृहीतकरजीवितो नष्टः शीघ्रं तवग्रतः।
शृगालः – व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदित यन्मानुषादपि बिभेषि?
व्याघ्रः – प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तु कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दष्टा।
जम्बुक: – स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव
पुनः तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्यः इति।
व्याघ्रः – शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा बेलाप्यवेला स्यात्।

शब्दार्थ: – जम्बुक: – श्रृगालः (सियार), गूढ प्रदेशम् – गुप्तप्रदेशम् (गुप्त प्रदेश में), ग्रहीत कर जीवितःहस्ते प्राणान्नीत्वा (हथेली पर प्राण लेकर) आवेदिताम्विज्ञापतम् (बताया), प्रत्यक्षम् – समक्षम् (सामने), सात्मपुत्री:सा आत्मनः पुत्रौ (वह अपने दौनो पुत्रों को)

एकैकशः – एक एक कृत्वा (एक एक कर के), अत्तुम् – भक्षयितम् (खाने के लिए) कलहायमानौ – कलहं कुर्वन्तौ (झगड़ा करते हुए) ईक्षते – पश्यति (देखती है), वेलो (समय) शर्त।

सारलार्थ: – बाघ – जाओ जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त स्थान पर! क्यों कि बाघ मारने वाली जो शास्त्रों में सुनी गई है वह मुझे मारने वाली थी, परन्तु प्राणों को हथेली पर रखकर में उसके आगे से जल्दी से भाग आया।

सियार – हे बाघ! तुमने बहुत आश्चर्य बताया, कि तुम मनुष्य से भी डर रहे हो।

बाघ – मैने प्रत्यक्ष रूप से उसे उपने पुत्रों जो एक एक, __ करेक मुझे खाने के लिए झगड़ रहे थे को थप्पड़ से पीटते हुए देखा है।

सियार – हे स्वामी! वह कपटी नारी जहाँ है वहाँ मुझे ले चलिए। हे बाघ! तुम्हारे पुनः वहाँ जाने पर यदि वह सामने देखती हे तो तुम मुझे मार देना ऐसा।

बाघ – हे सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग गए तो असमय ही मेरा समय अर्थात काल आ जाएगा।

3. जम्बुकः – यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। स व्याघ्रः तथाकृत्वा काननं ययौ। शृंगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्र दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती
चिन्तितवती – जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? परं प्रत्युत्पत्रमतिः सा जम्बुकमाक्षिपन्त्यङ्गल्या तर्जयन्त्युवाच
रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा। विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना 

शब्दार्थः – पुनरायान्तं – पुन आते हुए को (पुन:आग). प्रव्युत्पन्नपतिः – तीक्ष्णबृद्धिः (तेज बुद्धि वाली), आक्षिपन्ती – आक्षेपं कुर्वाण (आक्षेप करती हुई), तर्जयन्ती – (तर्जन कुर्वाणां (धमकाती हुई). विश्वास्य – समाश्वस्य (विश्वास दिलाकर) तूर्णम् – शीघ्रम (जल्दी), भयङ्करा – भयं करोति इति (भय पैदा करने वाली), गलबद्ध श्रृगालकः – गलेबद्ध श्रृगालः यस्य सः गले में बधे हुए श्रृंगाल वाला।

सरलार्थ: सियार – यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले में बाधकर जल्दी चलो। वह बाघ वैसा करके जगंल में गया। सियार के साथ फिर से आते हुए बाघ को दूर से ही देखकर बुद्धिमती ने सोचा_ ‘सियार द्वारा उत्साहित (भड़काए गए) बाघ से कैसे बचा जाए?’ परन्तु वह प्रत्युत्पन्मति सियार को (दोष लगाते हुए) फटकारती हुई बोली अरे हे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए। विश्वास दिलाने के बाद भी आज एक ही लाकर क्यों जा रहा है? अब बता दे।

यह कहकर वह भयंकर बाघमारी नारी तेजी से दौड़ी। गले से बंधे सियार वाला बाघ भी अचानक भाग गया। इस प्रकार वह बुद्धिमती बाघ के भय से फिर मुक्त हो गई। इसीलिए कहा जाता है
हे तन्वि! सदैव सभी कामों में बुद्धि ही बलवती होती है।

Previous Post Next Post