NCERT Class 7 Hindi Chapter 2 तीन बुद्धिमान
NCERT Class 7th Hindi Chapter 2 तीन बुद्धिमान Question Answer
पाठ से
मेरी समझ से
(क) लोककथा के आधार पर नीचे दिए गए प्रश्नों का सटीक उत्तर कौन सा है ? उसके सामने तारा (★) बनाइए । कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
प्रश्न 1.
लोककथा में पिता ने अपने बेटों से ‘धन संचय करने’ को कहा। उनकी इस बात का क्या अर्थ हो सकता है?
- खेती-बारी करना और धन इकट्ठा करना
- पैनी दृष्टि और तीव्र बुद्धि का विकास करना
- ऊँट का व्यापार करना
- गाँव छोड़कर किसी नगर में जाकर बसना
उत्तर:
• पैनी दृष्टि और तीव्र बुद्धि का विकास करना (★)

प्रश्न 2.
तीनों भाइयों ने अपने ज्ञान और बुद्धि का उपयोग करके ऊँट के बारे में बहुत कुछ बता दिया। इससे क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
- बुद्धि का प्रयोग करके ऊँट के बारे में सब-कुछ बताया जा सकता है।
- समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान से निरीक्षण करना महत्वपूर्ण है।
- किसी व्यक्ति का ज्ञान, बुद्धि और धन ही सबसे बड़ी ताकत है।
- ऊँट के बारे में जानने के लिए दूसरों पर भरोसा करना चाहिए।
उत्तर:
• समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान से निरीक्षण करना महत्वपूर्ण है। (★)
प्रश्न 3.
राजा ने भाइयों की बुद्धिमता पर विश्वास क्यों किया?
- भाइयों ने अपनी बात को तर्क के साथ समझाया।
- राजा को ऊँट के स्वामी की बातों पर संदेह था ।
- राजा ने स्वयं ऊँट और पेटी की जाँच कर ली थी।
- भाइयों ने राजा को अपनी बात में उलझा लिया था ।
उत्तर:
• भाइयों ने अपनी बात को तर्क के साथ समझाया। (★)

प्रश्न 4.
लोककथा के पात्रों और घटनाओं के आधार पर, राजा के निर्णय के पीछे कौन-सा मूल्य छिपा है ?
- दोषी को कड़ा से कड़ा दंड देना हर समस्या का सबसे बड़ा समाधान है।
- अच्छी तरह जाँच किए बिना किसी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।
- राजा की प्रत्येक बात और निर्णय को सदा सही माना जाना चाहिए।
- ऊँट की चोरी के निर्णय के लिए सेवक की बुद्धि का उपयोग करना चाहिए।
उत्तर:
• अच्छी तरह जाँच किए बिना किसी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए।
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने भिन्न-भिन्न उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर:
- पिता की बात का अर्थ पैनी दृष्टि और तीव्र बुद्धि का विकास करने से है ताकि जीवन में किसी भी स्थिति का सामना किया जा सके।
- तीनों भाइयों ने बिना ऊँट को देखे उसके बारे में अपने ज्ञान और बुद्धि का उपयोग करके सही-सही बताया। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बुद्धि का प्रयोग करके किसी समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान से निरीक्षण करना महत्वपूर्ण होता है ।
- मेरे अनुसार राजा द्वारा तीनों भाइयों की बुद्धिमता पर विश्वास करने का कारण उनके द्वारा अपनी बात को तर्क के साथ समझाया जाना था । तर्क से ही किसी भी बात को प्रमाणित किया जा सकता है।
- मेरे अनुसार राजा के निर्णय के पीछे यह मूल्य छिपा है कि अच्छी तरह से जाँच किए बिना किसी को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। जल्दबाजी में बिना जाँच किए निर्णय लेने से किसी निर्दोष को सज़ा मिल सकती है। इसलिए उचित जाँच-पड़ताल के बाद ही निर्णय लेना चाहिए। यही राजा और प्रजा के हित में होता है।
(विद्यार्थी अपने मित्रों के साथ चर्चा करके बताएँगे कि उनके द्वारा विकल्प चुनने के क्या कारण हैं ।)
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए-
(क) “रुपये-पैसे के स्थान पर तुम्हारे पास पैनी दृष्टि होगी और सोने-चाँदी के स्थान पर तीव्र बुद्धि होगी। ऐसा धन संचित कर लेने पर तुम्हें कभी किसी प्रकार की कमी न रहेगी और तुम दूसरों की तुलना में उन्नीस नहीं रहोगे।”
उत्तर:
तुम धन यानी रुपये-पैसे पर नहीं बल्कि बुद्धिमानी, समझदारी और सूझबूझ पर ध्यान दोगे। तुम्हारी दृष्टि पैसों की जगह उस समझ पर होगी, जो किसी भी समस्या का हल खोज सकती है। फिर इससे बड़ी पूँजी क्या हो सकती है।
(ख) “हर वस्तु और स्थिति को पूर्णतः समझने और जानने का प्रयास करो। कुछ भी तुम्हारी दृष्टि से न बच पाए।”
उत्तर:
चाहे कोई वस्तु हो या परिस्थिति उसे पूरी तरह से जानने, समझने और महसूस करने की कोशिश करो। ऐसा दृष्टिकोण अपनाओ कि कोई भी बात हमारी नज़र से न छूटे।
(ग) “हमने अपने परिवेश को पैनी दृष्टि से देखने और बुद्धि से सोचने के प्रयास में बहुत समय लगाया है।”
उत्तर:
हमने अपने परिवेश यानी आसपास के वातावरण और परिस्थितियों को गहराई से समझने की कोशिश की है। हर बात को बुद्धि का प्रयोग करके निष्कर्ष निकालने वाली यह प्रक्रिया बहुत समय लेने वाली होती है।

मिलकर करें मिलान
• इस लोककथा में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे स्तंभ- 1 में दिए गए हैं। उनके भाव या अर्थ से मिलते-जुलते वाक्य स्तंभ -2 में दिए गए हैं। स्तंभ- 1 के वाक्यों को स्तंभ -2 के उपयुक्त वाक्यों से सुमेलित कीजिए-
उत्तर:
1. – 2
2. – 5
3. – 1
4. – 4
5. – 3
सोच-विचार के लिए
लोककथा को एक बार फिर ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए-
(क) तीनों भाइयों ने बिना ऊँट को देखे उसके विषय में कैसे बता दिया था ?
उत्तर:
तीनों भाइयों ने निम्नलिखित बिंदुओं का अवलोकन, अनुमान एवं विश्लेषण करके ऊँट के विषय में बताया-
- धूल पर ऊँट के पैरों के चिह्नों से।
- ऊँट एक आँख से नहीं देख पाता था क्योंकि उसने सड़क के केवल एक तरफ़ से ही घास चरी थी ।
- बच्चे और महिला के पैरों के निशान से ।
(ख) आपके अनुसार इस लोककथा में सबसे अधिक महत्व किस बात को दिया गया है- तार्किक सोच, अवलोकन या सत्यवादिता? लोककथा के आधार पर समझाइए ।
उत्तर:
इस लोककथा में सबसे अधिक महत्व अवलोकन और तार्किक सोच को दिया गया है।
(विद्यार्थी उपर्युक्त उत्तर – संकेत के आधार पर इस प्रश्न का उत्तर स्वयं दें।)
(ग) लोककथा में राजा ने पहले भाइयों पर संदेह किया लेकिन बाद में उन्हें निर्दोष माना। राजा की सोच क्यों बदल गई?
उत्तर:
लोककथा में राजा ने पहले भाइयों पर संदेह किया लेकिन बाद में उन्हें निर्दोष माना। राजा की सोच इसलिए बदल गई क्योंकि उन्होंने शांत मन से अपने अवलोकन और तर्कों को बताया। राजा उन भाइयों की बुद्धिमानी, सूझबूझ और निरीक्षण क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ। उसे समझ आ गया कि ये चोर नहीं हैं बल्कि गहराई से सोचने वाले सत्यप्रिय और बुद्धिमान लोग हैं।
(घ) ऊँट के स्वामी ने भाइयों पर तुरंत संदेह क्यों किया ? आपके विचार से उसे क्या करना चाहिए था जिससे उसे अपना ऊँट मिल जाता ?
उत्तर:
ऊँट के स्वामी ने भाइयों पर तुरंत संदेह किया क्योंकि वे तीनों भाई बिना देखे ऊँट के बारे में बहुत सारी सटीक बातें बता रहे थे। जब व्यक्ति अपना कुछ खो देता है तो वह घबराहट में पूरी बात जाने बिना जल्दी ही किसी पर भी संदेह कर लेता है। यही ऊँट के स्वामी ने भी किया।
हमारे विचार से उसे सीधे आरोप लगाने के बजाय शांत होकर भाइयों से पूछताछ करनी चाहिए थी कि तुम ये सब कैसे जानते हो, क्या तुमने ऊँट को देखा, क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो? अगर वह धैर्य और विश्वास के साथ बात करता, तो शायद वे भाई उसकी तुरंत मदद करते और उसका ऊँट जल्दी मिल जाता ।
(विद्यार्थी इस संदर्भ में अपने विचार स्वयं लिखें।)
(ङ) पिता ने बेटों को “ दूसरे प्रकार का धन” संचित करने की सलाह क्यों दी? इससे पिता के बारे में क्या-क्या पता चलता है?
उत्तर:
पिता ने बेटों को ‘दूसरे प्रकार का धन’ यानी बुद्धि, समझदारी, पैनी दृष्टि, व्यावहारिक ज्ञान संचित करने की सलाह दी क्योंकि असली धन बुद्धिमानी है । यही दूसरा धन है जिसे संचित करना ज़रूरी है ताकि इसके द्वारा जीवन में किसी भी परिस्थिति का सामना किया जा सके। इससे पिता के बारे में यह पता चलता है कि वे एक दूरदर्शी व्यक्ति थे । वे जानते थे कि बुद्धि और विवेक ही असली संपत्ति होती है। उनका उद्देश्य बेटों को सही सोच, निर्णय लेने की क्षमता और समस्या सुलझाने का तरीका सिखाना था।
(विद्यार्थी अपनी समझ के आधार पर उत्तर के कुछ अन्य बिंदुओं पर भी प्रकाश डाल सकते हैं।)
(च) राजा ने भाइयों की परीक्षा लेने के लिए पेटी का उपयोग किया। इस परीक्षा से राजा के व्यक्तित्व और निर्णय शैली के बारे में क्या-क्या निष्कर्ष निकाला जा सकता है?
उत्तर:
राजा द्वारा ली गई परीक्षा से उसके व्यक्तित्व और निर्णय शैली के बारे में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वह न्यायप्रिय, धैर्यवान तथा विवेकशील था। उसने बिना पूरा सत्य जाने सीधे उन्हें सजा नहीं दी। आरोप सुनने के बाद उसने स्वयं जाँच और परख करने का निर्णय लिया। उसने तीनों भाइयों की बुद्धिमानी और सत्यता की पुष्टि करनी चाही- यह उसकी व्यावहारिक सोच दिखाता है।
(छ) आप इस लोककथा के भाइयों की किस विशेषता को अपनाना चाहेंगे और क्यों ?
उत्तर:
हम इस लोककथा के भाइयों की सूक्ष्म अवलोकन और तार्किक सोच को अपनाना चाहेंगे क्योंकि सूक्ष्म अवलोकन हमें यह सिखाता है कि बड़ी बातें अकसर छोटे-छोटे संकेतों में छिपी होती हैं। बस हमें ध्यान देने की आवश्यकता होती है। तार्किक सोच हमें भावनाओं में बहने के बजाय सोच-समझकर निर्णय लेना सिखाती है, जो किसी भी समस्या या स्थिति में बहुत उपयोगी है।
(विद्यार्थी अपनी समझ के आधार पर अन्य उत्तर भी लिख सकते हैं।)
अनुमान और कल्पना से
अपने समूह में मिलकर चर्चा कीजिए-
(क) यदि राजा ने बिना जाँच के भाइयों को दोषी ठहरा दिया होता तो इस लोककथा का क्या परिणाम होता?
उत्तर:
यदि राजा ने बिना जाँच के भाइयों को दोषी ठहरा दिया होता तो इस लोककथा का परिणाम न्यायहीन और नकारात्मक होता ।
- इससे उन तीनों निर्दोष भाइयों को सज़ा मिल जाती और यह अन्याय होता।
- भाइयों की बुद्धिमानी की कदर नहीं होती और उनकी योग्यता दब जाती ।
- राजा की छवि कमजोर हो जाती और उसकी न्यायप्रियता पर सवाल उठते।
- कहानी की सीख बदल जाती और यह कहानी यह नहीं सिखा पाती कि बुद्धिमता और सच्चाई की जीत होती है।
- सच बोलने वालों को सज़ा मिलती जो कि नकारात्मक संदेश होता।
(विद्यार्थी अपने अनुमान और कल्पना के आधार पर कुछ अन्य परिणामों की चर्चा कर सकते हैं।)
(ख) यदि भाइयों ने अनार के बारे में सही अनुमान न लगाया होता तो लोककथा का अंत किस प्रकार होता? अपने विचार व्यक्त करें।
उत्तर:
यदि भाइयों ने अनार के बारे में सही अनुमान न लगाया होता तो लोककथा का अंत निम्न प्रकार का होता –
- भाइयों की बुद्धिमता पर संदेह होता।
- राजा उन्हें दोषी ठहरा सकता था।
- उन्हें कड़ी सजा मिल सकती थी ।
(विद्यार्थी अनुमान के आधार पर अपने अन्य विचार भी व्यक्त सकते है।)
(ग) लोककथा में यदि तीनों भाई ऊँट को खोजने जाते तो उन्हें कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता था?
उत्तर:
लोककथा में यदि तीनों भाई ऊँट को खोजने जाते तो उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता था; जैसे-
- रास्तों की कठिनाई – ऊँट के चलने के निशान रेत पर से जल्दी मिट सकते थे। उन्हें ऊँट के जाने का रास्ता ढूँढ़ने में बहुत मेहनत करनी पड़ती।
- रास्ता भटकने का डर – ऊँट बिना दिशा देखे चला गया होगा। अगर ये भाई भी उसे ढूँढ़ने जाते तो रास्ता भटक सकते थे।
- ऊँट के पैरों के निशानों की पहचान में भ्रम- रास्ते में कई ऊँट गए होंगे। इनमें से कौन – सा निशान उसी ऊँट का है, यह तय करना मुश्किल होता।
(घ) यदि राजा के स्थान पर आप होते तो भाइयों की परीक्षा लेने के लिए किस प्रकार के सवाल या गतिविधियाँ करते? अपनी कल्पना साझा करें।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं को राजा के स्थान पर रखकर भाइयों की परीक्षा लेने के लिए सवाल या गतिविधियों को तैयार करेंगे।

शब्द से जुड़े शब्द
• नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में ‘बुद्धि’ से जुड़े शब्द अपने समूह में चर्चा करके लिखिए-
उत्तर:
(विद्यार्थी समूह में चर्चा कर अन्य शब्द भी लिख सकते हैं।)
लोककथा को सुनाना
लोककथा के लिखित रूप में आने से पहले कहानियों का प्रचलन मौखिक रूप में ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता था। इसमें कहानी सुनने-सुनाने और याद रखने की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी। कहानी कहने या सुनाने वाला इस तरह से कहानी सुनाता था कि सुनने वालों को रोचक लगे। इसमें कहानी सुनने वालों को आनंद तो आता ही था, कथा उन्हें याद भी हो जाती थी।
अब आप अपने समूह के साथ मिलकर इस लोककथा को रोचक ढंग से सुनाइए। लोककथा को प्रभावशाली और रोचक रूप में सुनाने के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं जो लोककथा को और भी आकर्षक बना सकते हैं—
कथा सुनाना
- स्वर में उतार-चढ़ाव— लोककथा सुनाते समय स्वर में या आवाज में उतार-चढ़ाव से उत्साह और रहस्य का निर्माण करें। जब लोककथा में कोई रोमांचक या रहस्यमय पल हो तो स्वर धीमा या तीव्र कर सकते हैं।
- भावनाओं की अभिव्यक्ति भावनाओं को प्रकट करने के लिए स्वर का सही चयन करें, जैसे— खुशी, दुख, आश्चर्य आदि को स्वर के माध्यम से दर्शाएँ।
- लोककथा के पात्रों के लिए अलग-अलग स्वर— जब लोककथा में अलग-अलग पात्र हों तो हर पात्र के लिए अलग स्वर (ऊँचा, नीचा, तेज, धीमा आदि) का उपयोग किया जा सकता है ताकि उन्हें पहचाना जा सके।
- हाथों और शरीर का उपयोग — जब आप लोककथा में किसी घटना का वर्णन करें तब शारीरिक मुद्राओं और चेहरे के भावों का उपयोग किया जा सकता है।
- हास्य का प्रयोग— जब कोई हास्यपूर्ण या आनंददायक दृश्य हो तो चेहरे की मुसकान और हँसी के साथ उसे प्रस्तुत करें।
विवरणात्मक भाषा का उपयोग — लोककथा में वर्णित स्थानों और पात्रों को इस प्रकार प्रस्तुत करें कि श्रोता उनकी छवि अपने मन में बना सकें। - रोचक मोड़ — एक-दो बार लोककथा के रोमांचक मोड़ों पर थोड़ी देर के लिए रुकें या श्रोताओं में उत्सुकता होने दें, जैसे— “क्या आप जानना चाहते हैं कि आगे क्या हुआ?”
- संवादों को स्पष्ट और प्रासंगिक बनाना – पात्रों के संवाद इस तरह से प्रस्तुत करें कि वे मौलिक लगें।
उत्तर:
- विद्यार्थी पृष्ठ संख्या 24 पर दिए गए सुझावों को पढ़कर लोककथा को आकर्षक ढंग से सुना सकते हैं।
कारक
नीचे दिए गए वाक्य को ध्यान से पढ़िए-
“भाइयों जवाब दिया।”
यह वाक्य कुछ अटपटा लग रहा है न? अब नीचे दिए गए वाक्य को पढ़िए—
“भाइयों ने जवाब दिया।”
इन दोनों वाक्यों में अंतर समझ में आया? बिलकुल सही पहचाना आपने! दूसरे वाक्य में ‘ने’ शब्द ‘भाइयों’ और ‘जवाब दिया’ के बीच संबंध को जोड़ रहा है। संज्ञा या सर्वनाम के साथ प्रयुक्त होने वाले शब्दों के ऐसे रूपों को कारक या परसर्ग कहते हैं। कारक शब्दों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं—
उत्तर:
(विद्यार्थी पाठ्यपुस्तक की पृष्ठ संख्या – 24-25 को ध्यान से पढ़कर कारक के विषय में समझें ।)

नीचे दिए गए वाक्यों में कारक लिखकर इन्हें पूरा कीजिए-
- “ हमने तो तुम्हारे ऊँट …….. देखा तक नहीं”, भाइयों ……. परेशान होते हुए कहा।
- “मैं अपने रेवड़ों …… पहाड़ों …… लिये जा रहा था, उसने कहा, और मेरी पत्नी मेरे छोटे-से बेटे …….. साथ एक बड़े-से ऊँट …….. मेरे पीछे-पीछे आ रही थी।”
- राजा ………. उसी समय अपने मंत्री …… बुलाया और उसके कान ……. कुछ फुसफुसाया ।
- यह सुनकर राजा …… पेटी …… पास लाने …… आदेश दिया। सेवकों …… तुरंत आदेश पूरा किया।
उत्तर:
- को, ने
- को, पर, के, पर
- ने, को, में
- ने, को, का, ने, से, के
पाठ से आगे
आपकी बात
प्रश्न 1.
लोककथा में तीन भाइयों की पैनी दृष्टि की बात कही गई है। क्या आपने कभी अपनी पैनी दृष्टि का प्रयोग किसी समस्या को हल करने के लिए किया है? उस समस्या और आपके द्वारा दिए गए हल के विषय में लिखिए।
उत्तर:
हाँ, मैंने भी एक बार अपनी पैनी दृष्टि का प्रयोग एक समस्या को हल करने में किया है। एक बार हमारे विद्यालय में विज्ञान- प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। हमारी टीम ने एक सोलर पावर मॉडल बनाया था लेकिन समस्या तब हो गई जब अचानक सौर पैनल ने काम करना बंद कर दिया जबकि बाकी सब कुछ सही था। टीम के कुछ साथी सोच रहे थे कि शायद बैटरी खराब है।
कुछ ने कहा पूरा सिस्टम बदलना पड़ेगा। लेकिन मैंने शांत होकर उसके एक-एक हिस्से को ध्यान से देखा, मुख्य रूप से पैनल के तारों के जोड़। मुझे दिखाई दिया कि एक पतला तार पैनल से पूरी तरह से नहीं जुड़ा था। वह ढीला था मगर आँखों से साफ़ नज़र नहीं आ रहा था। मैंने उसे ठीक से जोड़ा और मॉडल तुरंत काम करने लगा। इस प्रकार, मैंने समस्या का समाधान पैनी दृष्टि से देखकर कर डाला।
(विद्यार्थी इसी तरह को कोई अपना अनुभव उत्तर के रूप में साझा कर सकते हैं।)
प्रश्न 2.
लोककथा में बताया गया है कि भाइयों ने “बचपन से हर वस्तु पर ध्यान देने की आदत डाली ।” यदि आपने ऐसा किया है तो आपको अपने जीवन में इसके क्या-क्या लाभ मिलते हैं?
उत्तर:
लोककथा के तीनों भाइयों की तरह मैंने भी बचपन से ही यह कोशिश की है कि हर वस्तु घटना और व्यक्ति को ध्यान से देखूँ, समझँ और महसूस करूँ। धीरे-धीरे यह मेरी आदत बन गई। इस आदत से मुझे जीवन में कई लाभ हुए हैं; जैसे-
- समस्याओं को जल्दी समझना ।
- पढ़ाई में बेहतर समझ होना ।
- दूसरों की भावना समझ पाना।
- गलतियों से जल्दी सीखना ।
(विद्यार्थी इसी तरह का कोई अपना अनुभव भी साझा करें।)
प्रश्न 3.
लोककथा में भाइयों को यात्रा करते समय अनेक कठिनाइयाँ आईं, जैसे- भूख, थकान और पैरों में छाले । आप अपने दैनिक जीवन में किन-किन कठिनाइयों का सामना करते हैं? लिखिए।
उत्तर:
अपने दैनिक जीवन में हम निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करते हैं-
- समय की कमी।
- परीक्षा के समय तनाव होना।
- आत्मसंयम की कमी।
- कोई विषय या सवाल समझ में न आना। (विद्यार्थी अपने अनुभव के आधार पर उत्तर लिखें।)
प्रश्न 4.
भाइयों ने बिना देखे कि ऊँट के बारे में सही-सही बातें बताईं। क्या आपको लगता है कि अनुभव और समझ से देखे बिना भी सही निर्णय लिया जा सकता है? क्या आपने भी कभी ऐसा किया है?
उत्तर:
अनुभव और समझ से देखे बिना भी सही निर्णय लिया जा सकता है, अगर हमारे पास अनुभव, समझ और ध्यान से सोचने की क्षमता हो ।
हाँ, हमने भी ऐसा किया है। एक बार हमारी कक्षा में एक सामूहिक परियोजना कार्य चल रहा था। हमारे समूह का एक सदस्य लगातार कार्य में सहयोग नहीं कर रहा था। कुछ विद्यार्थी उसे आलसी और कामज़ोर तक कहने लगे थे। लेकिन मैंने इस समस्या की जड़ तक जाने की सोची तथा उससे इस बारे में बात की। उससे मुझे ज्ञात हुआ कि उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब है।
इस कारण वह दुखी था और उसका मन किसी काम में नहीं लग रहा था। मैंने उससे पूछे बिना कोई निर्णय नहीं लिया। उसके व्यवहार और संकेतों को देखकर अंदाजा लगाया और वह अनुमान सही निकला। अपने अनुभव, सूझ-बूझ और गहरी समझ से हम सच्चाई का अनुमान लगा सकते हैं।
(विद्यार्थी अपने अनुभव को साझा करते हुए उत्तर लिखें।)
प्रश्न 5.
जब ऊँट के स्वामी ने भाइयों पर शंका की तो भाइयों ने बिना गुस्सा किए शांति से उत्तर दिया। क्या आपको लगता है कि कभी किसी को संदेह होने पर हमें भी शांत रहकर उत्तर देना चाहिए? क्या आपने कभी ऐसी स्थिति का सामना किया है? ऐसे में आपने क्या किया? – मुझे लगता है कि जब कोई हम पर संदेह करता है, तो हमें गुस्से या झगड़े से जवाब देने की बजाय शांत और समझदारी से उत्तर देना चाहिए । जब हम धैर्य से जवाब देते हैं तो सामने वाला खुद भी सोचने पर मजबूर होता है तथा हमें समझता है।
उत्तर:
मैंने भी ऐसी स्थिति का सामना किया है। एक बार विद्यालय में मेरी कॉपी किसी और की कॉपी से मिलती-जुलती पाई गई। कुछ लोगों को लगा कि मैंने नकल की है जबकि मैंने खुद मेहनत से लिखा था। शुरू में मुझे बहुत गुस्सा आया और बुरा भी लगा।
लेकिन मैंने खुद को शांत किया और अध्यापक से शांति से कहा कि आप चाहें तो मेरे पिछले नोट्स देख लें या मुझसे कोई भी सवाल पूछ लीजिए, मैं प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दे सकता हूँ। उन्होंने मुझसे सवाल पूछे तो उन्हें समझ आ गया कि मैंने नकल नहीं की। बाद में उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारा शांत रहना ही सबसे बड़ा प्रमाण था कि तुम सच बोल रहे थे।
(विद्यार्थी अपने अनुभव साझा करें।)
प्रश्न 6.
राजा ने भाइयों की बुद्धिमानी देखकर बहुत आश्चर्य व्यक्त किया। क्या आपको कभी किसी की सोच, समझ या किसी विशेष कौशल को देखकर आश्चर्य हुआ है? क्या आपने कभी किसी से कुछ ऐसा सीखा है जो आपके लिए बिलकुल नया और चौंकाने वाला हो ?
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अनुभव साझा करें।
प्रश्न 7.
लोककथा में पिता ने अपने बेटों को यह सलाह दी कि वे समझ और ज्ञान जमा करें। क्या आपको कभी किसी बड़े व्यक्ति से ऐसी कोई सलाह मिली है जो आपके जीवन में उपयोगी रही हो? क्या आप भी अपने अनुभव से किसी को ऐसी सलाह देंगे?
उत्तर:
हाँ, मुझे भी एक बार अपने दादा जी से ऐसी सलाह मिली थी जो आज भी मेरे जीवन में बहुत उपयोगी साबित हो रही है। एक बार मैंने भाषण – प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। मैं बार-बार अपना भाषण याद कर रहा था किंतु उसे हर बार भूले जा रहा था।
मैं इतना निराश हो गया कि मैंने हार मान ली कि मैं भाषण नहीं दे पाऊँगा। तब मेरे दादा जी ने मुझे हार न मानने की सलाह देते हुए समझाया कि तुम अपनी पूरी कोशिश करो और चीज़ों को समझकर याद करो । हर
कोशिश एक अनुभव है और अनुभव ही असली ज्ञान है। उनकी इस बात ने मुझे झकझोर दिया। उस दिन के बाद से, जब भी मैं किसी मुश्किल में होता हूँ तो खुद से यही सवाल पूछता हूँ कि क्या मैंने पूरी कोशिश की।
हाँ, मैं भी अपने अनुभव से अपने छोटे भाई को ऐसी सलाह देना चाहूँगा ताकि वह भी कठिन परिस्थिति का सामना कर सके।
(विद्यार्थी अपने अनुभव साझा करें।)
प्रश्न 8.
भाइयों में अपने ऊपर लगे आरोपों के होते हुए भी सदा सच्चाई का साथ दिया। क्या आपको लगता है कि सदा सच बोलना महत्वपूर्ण है, भले ही स्थिति कठिन क्यों न हो? क्या आपको किसी समय ऐसा लगा है कि आपकी सच्चाई ने आपको समस्याओं से बाहर निकाला हो ?
उत्तर:
हाँ, मुझे पूरी तरह से लगता है कि सच बोलना हमेशा सबसे महत्वपूर्ण होता है। चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हो। सच कभी-कभी तुरंत राहत नहीं देता लेकिन वह हमें दीर्घकालीन सम्मान और भरोसा ज़रूर दिलाता है।
(विद्यार्थी अपने अनुभव साझा करते हुए उत्तर लिखें।)
ध्यान से देखना – सुनना – अनुभव करना
“बचपन से ही हमें ऐसी आदत पड़ गई है कि हम किसी वस्तु को अपनी दृष्टि से नहीं चूकने देते। हमने वस्तुओं को पैनी दृष्टि से देखने और बुद्धि से सोचने के प्रयास में बहुत समय लगाया है।”
इस लोककथा में तीनों भाई आसपास की प्रत्येक घटना, वस्तु आदि को ध्यान से देखते, सुनते, सूँघते और अनुभव करते हैं अर्थात् अपनी ज्ञानेंद्रियों और बुद्धि का पूरा उपयोग करते हैं। ज्ञानेंद्रियाँ पाँच होती हैं— आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा । आँख से देखकर, कान से सुनकर, नाक से सूँघकर, जीभ से चखकर और त्वचा से स्पर्श करके हम किसी वस्तु के विषय में ज्ञान प्राप्त करते हैं। आइए, अब एक खेल खेलते हैं जिसमें आपको अपनी ज्ञानेंद्रियों और बुद्धि का उपयोग करने के अवसर मिलेंगे।
(क) ‘हाँ’ या ‘नहीं’ प्रश्न – उत्तर खेल
चरण-

- एक विद्यार्थी कक्षा से बाहर जाकर दिखाई देने वाली किसी एक वस्तु या स्थान का नाम चुनेगा। कक्षा के भीतर से भी कोई नाम चुना जा सकता है।
- विद्यार्थी वापस कक्षा में आएगा और उस नाम को एक कागज पर लिख लेगा। लेकिन ध्यान रहे, वह कागज पर लिखे नाम को किसी को न दिखाए।
- अन्य विद्यार्थी बारी-बारी से उस वस्तु का नाम पता करने के लिए प्रश्न पूछेंगे।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर केवल ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में दिया जाएगा।
उदाहरण के लिए—- क्या इस वस्तु का उपयोग कक्षा में होता है?
- क्या यह खाने-पीने की चीज है?
- क्या यह लकड़ी से बनी है?
- क्या यह बिजली से चलती है?
- सभी विद्यार्थी अधिकतम 20 प्रश्न ही पूछ सकते हैं। इसलिए उन्हें सोच-समझकर प्रश्न पूछने होंगे ताकि वे उस वस्तु का नाम पता कर सकें।
- यदि 20 प्रश्नों के अंदर विद्यार्थी वस्तु का सही अनुमान लगा लेते हैं तो वे जीत जाएँगे।
- अब दूसरे विद्यार्थी को बाहर भेजकर गतिविधि दोहराएँगे।
- गतिविधि के अंत में सभी मिलकर इस खेल से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या – 26-27 पर दिए गए नियमानुसार विद्यार्थी कक्षा में स्वयं करें।
(ख) गतिविधि— ‘स्पर्श, गंध और स्वाद से पहचानना’
- एक थैले या डिब्बे में (सावधानीपूर्वक एवं सुरक्षित) विभिन्न वस्तुएँ (जैसे— फल, फूल, मसाले, खिलौने, कपड़े, किताब, गुड़ आदि) रखें।
- विद्यार्थियों को आँखों पर पट्टी बाँधकर केवल स्पर्श, गंध या स्वाद का उपयोग करके वस्तु की पहचान करनी होगी और उसका नाम बताना होगा।
- बारी-बारी से प्रत्येक विद्यार्थी को बुलाकर उसकी आँखों पर पट्टी बाँधे।
- उसे डिब्बे से एक वस्तु दी जाए। विद्यार्थी उसे छूकर, सूँघकर, चखकर पहचानने का प्रयास करेंगे।
- सही पहचान करने के बाद विद्यार्थी बताएँगे कि उन्होंने उस वस्तु को कैसे पहचाना।
- एक-एक करके सभी विद्यार्थियों को अलग-अलग वस्तुओं को पहचानने का अवसर मिलेगा।
- अंत में सभी वस्तुओं को कक्षा में दिखाएँ और उनके बारे में चर्चा करें कि किस वस्तु को पहचानना आसान या कठिन लगा।
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक पृष्ठ संख्या – 27 पर दिए गए नियमानुसार विद्यार्थी इस गतिविधि को कक्षा में स्वयं करें।