NCERT Class 8 Hindi Chapter 12 सुदामा चरित

NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 12 सुदामा चरित

प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)

पाठ का सार

‘सदामा चरित’ कवि नरोत्तम दास द्वारा रचित है। सुदामा अपने सहपाठी एवं द्वारका के राजा श्रीकृष्ण के पास जाते हैं। उनकी दशा बहत दयनीय है। सिर पर न पगड़ी है, न तन पर कुर्ता है। फटी धोती और जर्जर सी पुरानी पगड़ी, पैर में जूते भी नहीं, ऐसी हालत में वह द्वार पर पहुंचते हैं। द्वारपाल को अपना नाम और परिचय बताते हैं। कृष्ण मिलने पर देखते हैं कि सुदामा के पैरों में बिवाइयाँ हैं, काँटे चुभे हुए हैं। उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। परात के पानी से नहीं वरन अपने आँसुओं से सुदामा के पैर धो देते हैं।

सुदामा ने बगल में एक गठरी दबा रखी है। कृष्ण उन्हें टोकते हैं कि भाभी ने हमारे लिए कुछ दिया है पर तुम दे नहीं रहे हों। पहले भी तुम ऐसा कर चुके हो। हमारे गुरु संदीपनि की पत्नी ने चने दिये थे, जिसे तुम अकेले ही चबा गए थे। तुमने अपनी चोरी की आदत अभी तक नहीं छोड़ी है।

सुदामा लौटते समय खाली हाथ हैं। और सोचते हैं कि पत्नी के कहने से मैं यहाँ आया। मैं स्वयं कभी नहीं आता। आज कृष्ण राजा हो गए, कल तक दही के लिए हाथ पसारे घूमते थे। यही सोचते दुखी मन से जब घर पहुँचते हैं तो सब कुछ बदला हुआ गया। सुदामा की झोंपड़ी वहाँ है ही नहीं। उसकी जगह महल खड़े हैं। राजसी ठाटबाट हैं। सुदामा की समझ में यह सब देखकर कृष्ण की महिमा का पता चलता है।

कविता से

प्रश्न 1. सुदामा की दीनदेशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
सुदामा श्रीकृष्ण के गुरुभाई (सहपाठी) तथा बचपन के घनिष्ठ मित्र थेकालांतर में कृष्ण द्वारका के राजा बन गएअपने बचपन के मित्र को ऐसी दयनीय दशा में देखकर उनका मन करुणा से भर गया सुदामा के काँटों तथा बिवाइयाँ युक्त पैर देखकर कृष्ण बहुत दुखी हुए तथा वे रो पड़े।

प्रश्न 2. “पानी परात को हाथ छयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि कृष्ण अपने बचपन के मित्र की ऐसी दीन-हीन दशा देखकर बहुत दुखी हुएवे स्वयं राजा थे और उनका मित्र घोर गरीबी में जीवन जी रहा था कृष्ण एक सच्चे मित्र की तरह बहुत दुखी हुए और रो पड़ेउन्होंने उनके पैर धोने के लिए परात में पानी को छुआ तक नहीं और आँसुओं से ही पैर धो दिए।

प्रश्न 3. चोरी की बान में हो जु प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (उलाहना) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर :
(क) ‘चोरी की बान में हौ जू प्रवीने’-यह श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा से कह रहे हैं।
(ख) पत्नी के बार-बार बलपूर्वक कहने के बाद सुदामा अपने मित्र के पास कुछ मदद पाने की आशा से गएजाते समय उनकी पत्नी ने थोड़े से चावल कृष्ण को देने के लिए दिएश्रीकृष्ण का राजसी ठाट-बाट देखकर सुदामा वह चावल देने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थेवे उस चावल की पोटली को छिपाने का प्रयास कर रहे थे, तब कृष्ण ने उनसे कहा कि चोरी की आदत में आप बहुत चतुर हो।
(ग) बचपन में श्रीकृष्ण और सुदामा ऋषि संदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त किया करते थेउस समय गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने के साथ विद्यार्थियों को ही सारे काम अपने हाथों से करने पड़ते थेजैसे-गायों का देखभाल करना, भिक्षाटन करना, आश्रम की सफाई, लकड़ियाँ लाना, गुरु की सेवा आदिएक दिन जब आश्रम में खाना बनाने की लकड़ियाँ खत्म हो गईं तो गुरुमातु ने श्रीकृष्ण और सुदामा को लकड़ियाँ लाने जंगल में भेज दिया और रास्ते में खाने के लिए कुछ चने भी दे दिएसंयोग की बात जब कृष्ण पेड़ पर लकड़ियाँ तोड़ रहे थे और सुदामा उन्हें नीचे इकट्ठी कर रहे थे तभी जोरदार वर्षा शुरू हो गईहवा चलने लगीकृष्ण पेड़ की डाल पर ऊपर ही बैठ गएऐसे में सुदामा गुरुमातु द्वारा दिए गए चने निकालकर चबाने लगेचने की आवाज सुनकर कृष्ण ने उनसे पूछा, “सुदामा क्या खा रहे हो”? सुदामा ने उत्तर दिया ‘‘कुछ भी नहीं खा रहा हूँसर्दी के कारण मेरे दाँत किटकिटा रहे हैं।” इस तरह सुदामा से चोरी करके श्रीकृष्ण ने चने खाए थेउसी घटना को याद करके श्रीकृष्ण ने उक्त पंक्ति कही थी।

प्रश्न 4. द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर :
द्वारका से लौटते समय सुदामा को श्रीकृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप में कुछ नहीं दियावहाँ से लौटते समय सुदामा सोच रहे थे कि कृष्ण ने उनके पहुँचने पर खूब आदर-सत्कार कियाखूब प्रसन्नता प्रकट की पर आते समय उनकी जाति का भी ख्याल न कियावे सोच रहे थे कि यह है तो वही कृष्ण जो घर-घर दही की चोरी किया करता थायह किसी को क्या देगाघर चलकर अपनी पत्नी से कहेंगे कि कृष्ण ने जो इतना सारा धन दिया है, उसे सँभालकर रख लेउसी ने उन्हें उसके पास (द्वारका) बलपूर्वक भेजा थासुदामा कृष्ण की महिमा से अनजान थे, इसलिए कृष्ण के व्यवहार से खीझ रहे थे।

सुदामा के मन की दुविधा यह थी कि खूब मान-सम्मान तथा आदर-सत्कार करने वाले श्रीकृष्ण ने उन्हें कुछ दिया क्यों नहींइसके अलावा द्वारका आकर अपने चावल खोकर भी न कुछ पाने की दुविधा सता रही थी।

प्रश्न 5. अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी को न खोज पाए तो तब उनके मन में विचार आया कि कहीं वे अपना रास्ता भूलकर द्वारका वापस तो नहीं आ गए हैं या उनके मन-मस्तिष्क पर द्वारका के राजभवनों का भ्रम तो नहीं छा गया है जो टने का नाम नहीं ले रहा है।

प्रश्न 6. निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित हैउसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
प्रभु की कृपा से सुदामा की विपन्नता, इस तरह संपन्नता में बदली कि स्वयं सुदामा भी इससे चकित रह गएजिस जगह पर उनकी झोंपड़ी थी, वहाँ तथा आस-पास द्वारका के समान राजमहल नजर आ रहे थेजिस सुदामा के पैर में कभी जूते नहीं होते थे, उनके आने-जाने के लिए महावत, गजराज (उत्तम कोटि का हाथी) लिए खड़ा था घोर गरीबी में सुदामा को कठोर जमीन पर रात बितानी पड़ती थी पर अब कोमल और मखमली बिस्तरों पर भी नींद नहीं आती थीगरीबी के दिनों में सुदामा को कोदो-सवाँ जैसे घटिया अनाज भी नहीं मिल पाता था, उन्हीं सुदामा को प्रभु की कृपा से अत्यंत स्वादिष्ट व्यंजन तथा अंगूर (सूखे मेवे) भी अच्छे नहीं लगते थेइस तरह उनकी जिंदगी में विपन्नता के लिए कोई स्थान न बचा था।

कविता से आगे

प्रश्न 1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर :
श्री कृष्ण और सुदामा बचपन में ऋषि संदीपनि के गुरुकुल में साथ-साथ शिक्षा ग्रहण करते थेये दोनों ही घनिष्ठ मित्र थेइसी तरह द्रुपद और द्रोण भी महर्षि भारद्वाज के आश्रम में साथ-साथ शिक्षा करते थेद्रुपद राजा के पुत्र थे तो द्रोण महर्षि भारद्वाज केये दोनों भी घनिष्ठ मित्र थेद्रुपद द्रोण से अकसर कहा करते थे कि जब मैं राजा बन जाऊँगा तो तुम्हें अपना आधा राज्य दे दूंगा और हम दोनों ही सुखी रहेंगेसमय बीतने के साथ द्रुपद राजा बने और द्रोण अत्यधिक गरीब हो गएवे द्रुपद के पास कुछ सहायता पाने के उद्देश्य से गएद्रुपद ने द्रोण को अपनी मित्रता के लायक भी न समझा और उन्हें अपमानित कर भगा दियाद्रोण ने पांडवों तथा कौरवों को धनुर्विद्या सिखानी शुरू कीउन्होंने अर्जुन से गुरु-दक्षिणा में द्रुपद को बंदी बनाकर लाने को कहाअर्जुन ने ऐसा ही कियाद्रोण ने उनके द्वारा किए गए अपमान की याद दिलाते हुए द्रुपद को मुक्त तो कर दिया पर अपमानित द्रुपद द्रोण की जान के प्यासे बन गएद्रुपद स्वयं यह काम नहीं कर सकते थेउन्होंने तपस्या करके एक वीर पुत्र तथा एक पुत्री की कामना कीद्रुपद की इसी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ जिन्होंने महाभारत के युद्ध में द्रोण का वध किया।

सुदामा कथानक से तुलना-कृष्ण और सुदामा की मित्रता सच्चे अर्थों में आदर्श थीवहीं द्रोण तथा द्रुपद की मित्रता एकदम ही इसके विपरीत थीकृष्ण ने सुदामा की परोक्ष मदद करके अपने जैसा ही बना दिया, वहीं द्रुपद और द्रोण ने मित्रता को कलंकित किया तथा एक-दूसरे की जान के प्यासे बन गए वे एक-दूसरे को अपमानित करते रहे और जान लेकर ही शांति पा सके।

प्रश्न 2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता पिता-भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए?
उत्तर :
इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज में लोगों की मानसिकता में काफी बदलाव आया हैआजकल उच्च पद पर पहुँचकर या समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेर लेता हैऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता हैकिसी व्यक्ति को धनदौलत, पद-प्रतिष्ठा आदि के मद में अपने निर्धन माता-पिता को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने ही हमें जन्म दिया हैअनेक दुख-सुख सहकर हमारा पालन-पोषण किया हैउन्होंने हमारी शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध कर उच्च पद पर पहुँचने लायक बनाया हैवे समय-समय पर मदद एवं अच्छी राय देकर हमारी सहायता करते हैंयदि उच्च पद पर पहुँचकर हम उन्हें भूलने जैसी कोई बात करते हैं तो यह व्यक्ति की कृतघ्नता कही जाएगीहमें तो ऐसे में (उच्च पद प्राप्त करके) निर्धन माता-पिता तथा अपने बंधुओं की मदद उसी प्रकार करनी चाहिए जैसे कृष्ण ने सुदामा की थीउनकी मदद कर हमें अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जिम्मेदारियों का पूर्ण रूप से निर्वहन करना चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
द्वारपाल ने सदामा के बारे में कृष्ण जी को कौन-सी पहचान नहीं बताई?
(क) सिर पर पगड़ी नहीं है
(ख) धोती फटी हुई है
(ग) जूते टूटे हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(ग) जूते टूटे हुए हैं।

प्रश्न 2.
सुदामा के पाँवों की स्थिति का वर्णन किस वाक्य में सही नहीं बताया गया है?
(क) बिवाइयों से बेहाल है
(ख) पैरों में काँटे चुभे हैं
(ग) काँटे जगह-जगह चुभे हुए हैं और पूरा जाल बनाए हुए हैं
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं
उत्तर:
(घ) दुर्बल ब्राह्मण हैं।

प्रश्न 3.
सुदामा बगल में क्या छुपा रहे थे?
(क) पोटली
(ख) रुपये
(ग) पुस्तक
(घ) बटुआ
उत्तर:
(क) पोटली।

प्रश्न 4.
सुदामा की पुरानी आदत क्या थी; जो कृष्ण जी ने हँसकर बताई?
(क) चना चुराने की
(ख) अकेले खाने की
(ग) किसी को कुछ न बताने की
(घ) मिल-बाँटकर चना चबाने की
उत्तर:
(ख) अकेले खाने की।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कृष्ण के बारे में कौन-सी बात सुदामा ने मन में नहीं सोची?
(क) आदर की बात करना
(ख) कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना
(ग) देखकर पुलकित होना
(घ) दही के लिए घर-घर जाकर हाथ फैलाना
उत्तर:
(ख)कृष्ण द्वारा सुदामा की गरीबी का उपहास करना।

प्रश्न 6.
सुदामा अपने गाँव में जाकर क्यों परेशान हुए?
(क) वे खाली हाथ आए थे
(ख) पत्नी ने उनको खाली हाथ जाने पर टोका था
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी
(घ) वे दुबारा द्वारका जाना चाहते थे
उत्तर:
(ग) सुदामा को अपनी झोंपड़ी ढूँढे नहीं मिल पा रही थी।

प्रश्न 7.
अब सुदामा के यहाँ कौन-सी सुविधा उपलब्ध नहीं थी?
(क) सोने के महल
(ख) महावत के साथ गजराज
(ग) कोमल सेज
(घ) पुरानी झोंपड़ी वाला घर
उत्तर:
(ख) पुरानी झोंपड़ी वाला घर।

प्रश्न 8.
‘अभिरामा’ का अर्थ है-
(क) सुन्दर
(ख) लगातार
(ग) पहचान
(घ) अभी
उत्तर:
(क) सुन्दर।

प्रश्न 9.
नीचे कुछ शब्दों के अर्थ दिये गए हैं? किस वर्ग में सही अर्थ नहीं दिया गया है?
(क) द्वि ज-ब्राह्मण
(ख) उपानह-जूता
(ग) दाख-आटा
(घ) तंदुल-चावल
उत्तर:
(ग) दाख-आटा।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित शब्दों में किस वर्ग में उपसर्ग गलत बनाए गए हैं?
(क) अभिरामा-अभि
(ख) प्रवीने-प्र
(ग) संभ्रम-सम्
(घ) बसुधा-ब
उत्तर:
(घ) बसुधा-ब।

प्रश्न 11.
‘सुदामा चरित’ पाठ में कौन-सा वर्णन नहीं आया है?’
(क) परात में भरा पानी
(ख) पोटली को बगल में छुपाना।
(ग) धन देकर विदा करना
(घ) अपनी झोंपड़ी के बारे में सुदामा को दूसरे लोगों से पूछना।
उत्तर:
(ग) धन देकर विदा करना।

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