भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की उपलब्धियाँ | (Achievements of Indian Space Research Organization)
(Achievements of Indian Space Research Organization)
इसरो ने दो प्रमुख अंतरिक्ष प्रणालियाँ विकसित की हैं-
1. संसाधन मॉनिटरिंग तथा प्रबंधन के लिये भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह
(Indian Remote Sensing Satellite-IRS)
2. संचार, दूरदर्शन प्रसारण और मौसम विज्ञानीय सेवाओं के लिये इन्सैट
(Indian National Satellite System-INSAT)
● इसरो ने आईआरएस प्रकार के उपग्रहों के प्रमोचन के लिये ध्रुवीय
उपग्रह प्रमोचन यान (PSLV) तथा इन्सैट प्रकार के उपग्रहों के
प्रमोचन के लिये भूस्थिर उपग्रह प्रमोचन यान (GSLV) का
सफलतापूर्वक प्रचालनीकरण किया है।
विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की गौरवमय उपलब्धियाँ
भू पर्यवेक्षण (Earth Observation )
● आईआरएस उपग्रह हमारी पृथ्वी पर अंतरिक्ष से नज़र रखते हैं तथा भूमि, महासागर, वायुमंडल तथा पर्यावरण संबंधित कई पहलुओं के विषय में कालिक (Periodically), सारिक (Synoptic) तथा व्यवस्थित (Systematic) सूचनाएँ उपलब्ध कराते हैं। हमारे देश में राष्ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली (NNRMS) की सुस्थापित बहुविध क्रियान्वयन व्यवस्था के तहत सुदूर संवेदन तथा भू-आकाशीय प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा कई राष्ट्रीय, क्षेत्रीय व स्थानीय परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। इसरो/अंतरिक्ष विभाग के दो प्रमुख केंद्र,
नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) तथा अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (SAC) ऐसे अनुप्रयोगों के विकास व क्रियान्वयन में पहल व नेतृत्व कर रहे हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में संचालित अनुप्रयोग परियोजनाएँ
● कृषि एवं मृदा
◆ कृषि उत्पादन आकलन;
◆ क्षारीय मृदाओं का मानचित्रण;
◆ कृषि-मौसम वैज्ञानिक सेवाएँ एवं आपदाओं की निगरानी
(विनाशकारी कीट, बाढ़, सूखा आदि);
◆ बागवानी विकास।
● जैव संसाधन एवं पर्यावरण
◆ वनावरण तथा वन-प्रकार का मानचित्रण;
◆ आर्द्र-भूमि मानचित्रण व संरक्षण योजनाएँ;
◆ जैव विविधता लक्षणन;
◆ मरुस्थलीकरण स्थिति का मानचित्रण;
◆ तटीय, मैंग्रोव वनस्पति, प्रवाल संबंधित अध्ययन;
◆हिम एवं हिमनद अध्ययन।
● भू-विज्ञान एवं खनिज संसाधन
◆ भूस्खलन के ख़तरे वाले क्षेत्रों का सीमांकन;
◆ खनिज/तेल की खोज, खनन क्षेत्र अध्ययन;
◆ भूकंप-विवर्तनिक अध्ययन;
◆ अभियांत्रिकी तथा भू-पर्यावरणीय अध्ययन।
● महासागर एवं मौसम विज्ञान
◆ महासागरीय प्राथमिक उत्पादकता अध्ययन;
◆ महासागर स्थिति का पूर्वानुमान;
◆ चक्रवात प्रवाह का प्रतिरूपण;
◆ क्षेत्रीय मौसम का पूर्वानुमान;
◆ भूमध्यरेखीय चक्रवात तथा मेसोस्केल अध्ययन;
◆ मानसून का विस्तृत परिसर पूर्वानुमान।
● आपदा प्रबंधन सहायता
◆ बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन, भूकंप तथा दावानल संबंधी कार्य;
◆ पूर्व चेतावनी प्रणाली (Early Warning System) तथा निर्णय
उपादान संबंधित अनुसंधान एवं विकास।
● जलवायु परिवर्तन अध्ययन
◆ सूचकों का मानचित्रण, कारकों की जाँच तथा प्रभाव का प्रतिरूपण;
◆ जलवायु प्राचलों का चित्रांकन;
◆ मीथेन उत्सर्जन एवं वृक्ष-सीमा (टिंबरलाइन) अध्ययन।
● जल संसाधन
◆ सिंचाई संबंधित बुनियादी संरचनाओं का मूल्यांकन;
◆ जल संसाधन सूचना प्रणाली;
◆ हिमगलन प्रवाह आकलन;
◆ जलाशय क्षमता मूल्यांकन;
◆ जल विद्युत परियोजनाओं के लिये उपयुक्त स्थान का चयन।
● ग्रामीण विकास
◆ राष्ट्रीय पेयजल मिशन;
◆ बंजर भूमि मानचित्रण/अद्यतनीकरण;
◆ जलसंभर (Watershed) विकास व मॉनिटरिंग;
◆ भू अभिलेख आधुनिकीकरण योजना।
● शहरी विकास
◆ प्रमुख शहरों का नगर अव्यवस्थित विस्तार मानचित्रण;
◆ चयनित शहरों के लिये व्यापक विकास योजनाएँ:
◆ शहरों के लिये आधार मानचित्रों का निर्माण;
◆ राष्ट्रीय शहरी सूचना प्रणाली।
● उपग्रह संचार (Satellite Communication)
◆ हमारे देश में आज टेलीविज़न, डीटीएच प्रसारण, डिजिटल उपग्रह समाचार समाहरण (DSMG) तथा वी-सैट जैसे विविध अनुप्रयोगों
में उपग्रह संचार का प्रयोग विस्तृत व सर्वव्यापी हो गया है। यह उपग्रह संचार आवरण व पहुँच के कारण संभव हो सका है। गत 30 वर्षों के दौरान यह तकनीक और भी अधिक परिपक्व हुई है तथा अब इसे अनेक अनुप्रयोगों में व्यावसायिक रूप में प्रयोग किया जा रहा है। उपग्रह संचार का अपने जीवन पर पड़ रहे प्रभावों के बारे में हम जितना समझते हैं, उससे कहीं अधिक रूपों में हम प्रभावित होते हैं।
● सामाजिक हित के उपयोगों में इस तकनीक की क्षमताओं के प्रति इसरो सदैव से आकर्षित रहा है तथा इस क्षमता का मानवता की
भलाई में इस्तेमाल करने की कोशिशें निरंतर करता रहा है। इसरो द्वारा सामाजिक हित में किये जा रहे प्रयासों में टेली एजुकेशन, टेली
मेडिसिन, ग्राम प्रधान केंद्र (वीआरसी) तथा आपदा प्रबंधन प्रणाली (डीएमएस) कार्यक्रम शामिल हैं।
उपग्रह नेविगेशन कार्यक्रम (Satellite Navigation Programme)
● उपग्रह नेविगेशन सेवा वाणिज्यिक और सामरिक अनुप्रयोगों के साथ उभरती हुई उपग्रह आधारित प्रणाली है। इसरो उपग्रह आधारित
नेविगेशन सेवाएँ उपलब्ध कराने के लिये नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं की उभरती मांगों को पूरा करने हेतु और उपयोगकर्ता की स्थिति, नेविगेशन और समय आधारित स्वतंत्र उपग्रह नेविगेशन प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रतिबद्ध है।
● नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये, इसरो जीपीएस आधारित भू संवद्धित नौसंचालन (गगन) प्रणाली स्थापित करने में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के साथ संयुक्त रूप से कार्य कर रहा है। उपयोगकर्ता के लिये स्वदेशी प्रणाली पर आधारित स्थिति, नेविगेशन और समय सेवाओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये इसरो ने भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) नामक क्षेत्रीय उपग्रह नेविगेशन प्रणाली की स्थापना की है।
◆ 'गगन' के कार्यान्वयन से विमानन क्षेत्र के लिये कई फायदे हैं,
जैसे- ईंधन की बचत, उपकरणों की लागत में बचत, उड़ान सुरक्षा, अंतरिक्ष क्षमता में वृद्धि, ऑपरेटरों के लिये काम के बोझ में कमी, हवाई यातायात के लिये समुद्री क्षेत्र की कवरेज पर नियंत्रण, उच्च सटीकता की स्थिति आदि।
◆ विमानन क्षेत्र के अलावा, गगन अन्य क्षेत्रों के लिये लाभ प्रदान करता है-
◆◆ रेलवे, रोडवेज, जहाजों, अंतरिक्ष यान में नौसंचालन और
सुरक्षा संवर्द्धन
◆◆ भौगोलिक डेटा संग्रहण
◆◆ वायुमंडलीय अध्ययन के लिये वैज्ञानिक अनुसंधान;
◆◆ भूगतिकी;
◆◆ प्राकृतिक संसाधन और भू प्रबंधन; स्थान आधारित सेवाएँ, मोबाइल, पर्यटन आदि।
◆ आईआरएनएसएस के उपयोग-
◆◆ स्थलीय, हवाई और समुद्री नौसंचालन में
◆◆ आपदा प्रबंधन में;
◆◆ वाहन अनुवर्तन और बेड़ा प्रबंधन में;
◆◆ मोबाइल फोन के साथ एकीकरण हेतु;
◆◆ सटीक समय निर्धारण में;
◆◆ मानचित्रण और भूमिति डेटा प्रग्रहण में;
◆◆ ड्राइवरों के लिये दृश्य ओर आवाज नेविगेशन में।
जलवायु और पर्यावरण (Climate and Environment)
● इसरो/अंतरिक्ष विभाग के विभिन्न केंद्र शोध अध्ययनों और पृथ्वी की जलवायु प्रणाली, संवेदकों और उपग्रहों को डिजाइन करने,
जलवायु और पर्यावरणीय मानकों का अध्ययन करने के लिये भू-आधारित अवलोकनों से संबंधित गतिविधियों में लगे हैं।
● इसरो के पास भूतुल्यकाली और ध्रुवीय कक्षीय उपग्रहों के मजबूत समूह हैं जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के विशिष्ट संकेतक,
जैसे- हिम गलन, मरुस्थलीकरण, भूमि उपयोग और भूमि आवरण परिवर्तन एवं एजेंट, जैसे- ग्रीनहाउस गैसों, एरोसॉल इत्यादि पर
सक्रिय अनुसंधान कर रहे हैं।
● जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक पहलुओं को समझने के लिये इसरो अपने 'इसरो-भूमंडल जैवमंडल कार्यक्रम' (ISRO-GBP) के माध्यम
से, बहु-संस्थागत भागीदारी के साथ, पिछले दो दशकों से जलवायु पर अध्ययन कर रहा है। अध्ययनों से वायुमंडलीय एरोसॉल, ट्रेस गैस, ग्रीनहाउस गैस, पेलिओक्लाइमेट, लैंड कवर चेंज, वायुमंडलीय सीमा स्तर की गतिशीलता, वनस्पति प्रणालियों में ऊर्जा और द्रव्यमान परिवर्तन, राष्ट्रीय कार्बन परियोजना (National Carbon Project- NCP) और क्षेत्रीय जलवायु मॉडलिंग (Regional Climate
Modelling-RCM) को लिया गया है।
● राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र, हैदराबाद में सितंबर 2012 से जलवायु और पर्यावरण अध्ययन के लिये राष्ट्रीय सूचना प्रणाली पर कार्यक्रम
शुरू किया गया है। यह नई राष्ट्रीय पहल, जलवायु परिवर्तन की विशिष्ट ज़रूरतों के लिये मददगार होगी, जो अनुसंधान आवश्यकताओं
और राष्ट्रीय आवश्यकता के माध्यम से विकसित की जाएगी। वायुमंडलीय, महासागर और स्थलीय अवलोकनों के माध्यम से जलवायु चर (Climatic Variables) पर मूल्यवान समयावधि संबंधी जानकारी जनित करने के लिये भू-अवलोकन उपकरणों के डिजाइन, उत्पादन और संचालन पर मुख्य बल दिया जाएगा। कार्यक्रम के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय जलवायु अनुसंधान समुदाय के साथ जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण अध्ययन से मजबूत इंटरफेस का निर्माण होगा।
आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम
(Disaster Management Support Programme)
● भू-जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहाँ पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्खलन की घटनाएँ आम हैं। भारत के लगभग 60% में विभिन्न प्रबलताओं के भूकंपों का ख़तरा बना रहता है।
भूभाग 40 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7516.6 किमी. लंबी तटरेखा में से 5700 किमी. में चक्रवात का
ख़तरा बना रहता है। खेती योग्य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिमी घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिमी घाट के इलाकों में अक्सर भूस्खलन का ख़तरा बना रहता है।
● आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम के तहत देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुशल प्रबंधन के लिये अपेक्षित आँकड़ों व सूचनाओं को उपलब्ध कराने हेतु इसरो द्वारा एयरोस्पेस स्थापित आधारभूत संरचनाओं से प्राप्त सेवाओं का इष्टतम समायोजन किया जाता है। भू-स्थिर उपग्रह (संचार व मौसम विज्ञान), हवाई सर्वेक्षण प्रणाली, भू-आधारित मूल संरचनाएँ आदि आपदा प्रबंधन प्रेक्षण प्रणाली के प्रमुख घटक हैं।
इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) में स्थापित डिसिजन सपोर्ट सेंटर में बाढ़, चक्रवात, कृषि सूखा, भूस्खलन, भूकंप तथा
दावाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिये कार्यकारी स्तर पर निगरानी का काम चल रहा है।
● उपग्रह चित्रों के प्रयोग द्वारा तैयार अधिमूल्य-उत्पादों (Value Added Products) द्वारा आपदा से निपटने की तैयारी, पूर्व चेतावनी, प्रतिक्रिया, राहत, बेहतर पुनर्वास तथा रोकथाम जैसे आपदा प्रबंधन के सभी चरणों के लिये अपेक्षित सूचनाएँ पाने में मदद मिलती है।
◆ चक्रवात, भारत के तटवर्ती क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली प्रमुख आपदा है। लगभग 7517 किमी. लंबी भारतीय तटरेखा को विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में उठने वाले लगभग 10% चक्रवातों को झेलना पड़ता है। इसरो उपयुक्त मॉडलों तथा उपग्रह आँकड़ों के प्रयोग द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को भूमध्यरेखीय चक्रवातों के अनुवर्तन, शक्ति तथा तट से टकराने का पूर्वानुमान लगाने में सहायता कर रहा है। चक्रवात के बनने पर उसके भावी पथ की नियमित मॉनिटरिंग की जाती है और अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, इसरो द्वारा तैयार एक गणितीय मॉडल के प्रयोग द्वारा प्रायोगिक तौर पर उसका पूर्वानुमान लगाया जाता है। ओशनसैट-2 के विकिरणमापी आँकड़ों से निर्मित वायु प्रतिमानों के प्रयोग द्वारा एक ऐसा मॉडल तैयार किया गया है, जो कम दबाव को चक्रवात में बदलने से पहले ही उसका पूर्वानुमान लगाता है।
◆ भारत की लगभग 60-70% जनसंख्या प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि सूखे का मानव जीवन व अन्य जीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। देश के लगभग 68% भूभाग में कहीं कम तो कहीं अधिक मात्रा में सूखे का असर रहता है।
◆ कोर्स रिजोल्यूशन सेटेलाइट डेटा, जो कि बड़े क्षेत्रों को शामिल करता है, का उपयोग खरीफ सीजन के दौरान प्रदेश/जिला/उप जिला स्तर पर कृषि सूखे की उपस्थिति, गंभीरता तथा बारंबारता के मॉनिटरिंग हेतु किया जाता है। गत वर्षों में इसरो द्वारा विकसित इस कार्यप्रणाली को अब कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (MNCFC) का संस्थागत रूप दिया गया है। वर्तमान में, इसरो सूखा की निगरानी के लिये कार्यप्रणाली को उन्नत करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और कृषि सूखे के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
◆ इसी तरह, बाढ़, दावाग्नि, भूस्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में इसरो महती भूमिका निभा रहा है।
नोट: वर्ष 2014 के लिये 'इंदिरा गांधी शांति, निशस्त्रीकरण और विकास पुरस्कार' भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को प्रदान किया गया था।