विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रमुख पहले | Major Initiatives in Science and Technology
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रमुख पहले (Major Initiatives in Science and Technology)
● वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सीएसआईआर) अपनी अनोखी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पहलों के ज़रिये, हमारी आवश्यक
ज़रूरतों को पूर्ण करने का लगातार प्रयास कर रही है। सीएसआईआर ने एयरोस्पेस प्रौद्योगिकियों के विकास में सफलता प्राप्त की है। इसने
भारतीय मौसम विभाग के साथ मिलकर 'दृष्टि प्रणाली' तैयार की है, जिसके ज़रिये विमान पायलटों को सुरक्षित उड़ान भरने और हवाई जहाज़ उतारने में सुविधा होती है। प्राप्त आधिकारिक जानकारी के अनुसार इस तरह की 70 प्रणालियाँ भारतीय हवाई अड्डों पर लगाई
जाएंगी। अब तक 5 प्रमुख हवाई अड्डों पर यह प्रणाली लगा दी गई है।
● सीएसआईआर, इसरो और डीएई के साथ सहयोग करती है। भारत के रणनीतिक क्षेत्र को उसके द्वारा प्राप्त होने वाला अनुसंधान एवं
विकास समर्थन बहुत ही लाभकारी साबित हुआ है। उल्लेखनी है कि परमाणु क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाला जायरोट्रॉन आयात किया जाता है। इसे बनाने वाले देशों में अमेरिका, रूस, जापान और यूरोपीय संघ हैं, जो अपनी प्रौद्योगिकी और डिज़ाइन का खुलासा नहीं करते।
सीएसआईआर ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर भारत का पहला जायरोट्रॉन विकसित किया है। इसका गांधीनगर स्थित प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान ने परीक्षण किया है। परियोजना में यह संस्थान भी भागीदार है। सीएसआईआर ने 'ध्वनि' (Detection and Hit Visualization using Acoustic N-wave Identification- DHVANI) का भी विकास किया है जिसके तहत सटीक निशाना लगाने के लिये प्रणाली तैयार की गई है। इसे भारतीय सेना में तैनात किया जाएगा।
● स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सीएसआईआर के प्रयास सराहनीय हैं। उसने बीजीआर-34 नामक मधुमेह की दवा बनाई है, जिसमें जड़ी-बूटियों
का इस्तेमाल किया गया है। विदित है कि भारत की लगभग 6 करोड़ आबादी मधुमेह से पीड़ित है। बीजीआर-34 औषधि अनुसंधान व विकास में वैज्ञानिकों ने 500 से भी ज्यादा जड़ी-बूटियों का गहराई से अध्ययन किया और 6 प्रमुख जड़ी-बूटियों का चयन किया जिसका उल्लेख आयुर्वेद में है। इसी के मिश्रण से इस नई औषधि को विकसित किया गया है। इस दवा को आयुष मंत्रालय ने मंजूरी दी है। दवा से रक्त में शर्करा का अनुपात संतुलित रहता है और शरीर का सुरक्षा तंत्र मज़बूत होता है। सीएसआईआर ने पारंपरिक जड़ी-बूटियों से बनने वाली अन्य दवाओं को भी विकसित किया है। जम्मू में सीएसआईआर की एक शाखा में इस तरह की दवाएँ बनाने और उनकी पैकेजिंग की सुविधा शुरू की गई है। इससे भारत में जड़ी-बूटियों से बनने वाली दवाओं का विकास होगा और उन्हें अमेरिका तथा यूरोपियन बाजारों में निर्यात किया जाएगा।
● किसान, देश की बुनियाद हैं। सीएसआईआर ने अश्वगंधा (Withania Somnifera) और एनएमआईटीएलआई-101 की ऐसी किस्में
विकसित की हैं, जिनकी पैदावार अधिक है।
● सीएसआईआर ने जेके अरोमा आरोग्य ग्राम (जेएएजी) परियोजना शुरू की है जिसके तहत रोज़गार सृजन बढ़ाया जाएगा। इस परियोजना
के तहत किसानों को जड़ी-बूटियों की खेती के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा और देश के बेरोजगार युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान किये जाएंगे। इस संबंध में किसानों के लिये जागरूकता शिविरों (Awareness Camps) का आयोजन किया गया है। जम्मू-कश्मीर
के कठुआ जिले के 14 गाँवों में यह परियोजना चल रही है।
● सीएसआईआर लाहौल और स्पीति में स्थानीय समुदायों के समावेशी विकास के लिये प्रयास कर रही है। खाद्य और कृषि प्रसंस्करण के संबंध में सीएसआईआर ने केलॉन्ग के जनजातीय मेले में अपने अनुसंधान का प्रदर्शन किया था ताकि स्थानीय किसानों को उसका लाभ मिल सके।
● सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून ने प्लास्टिक की बोतलों व कचरे से पेट्रोल व डीजल उत्पादन की तकनीक में सफलता हासिल की है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम ने भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड (गेल) के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित करने के बाद रेलवे को इसके उपयोग का प्रस्ताव भेजा है।
● सीएसआईआर- केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा विकसित गर्भ निरोधक दवा सेंटक्रोमान, जो 'सहेली' के नाम से (गोली के
रूप में) बिकती है, हर वर्ष लगभग 6 लाख महिलाओं को लाभ दे रही है। यह माहवारी संबंधी रक्त स्राव, असामान्य रक्त स्राव और उदासीनता में चिकित्सक से परामर्श के बाद ली जा सकती है।
● सीएसआईआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमैटिक प्लांट्स, लखनऊ ने एक ऐसी चाय बनाई है, जो शरीर पर बढ़ते उम्र के प्रभाव को कम करती है तथा बुढ़ापे की बीमारियों से बचाती है। विदित है कि तुलसी तथा तीन-चार अन्य आयुर्वेदिक पौधों से तैयार किया गया पाउडर स्वाद में चाय की तरह होगा। इसमें न तो चाय का इस्तेमाल होगा और न ही इसे दूध के साथ मिलाना होगा। यह पूरी तरह आयुर्वेदिक होगा। इसे सिर्फ सादे पानी में मिलाकर पीना होगा। इससे न सिर्फ उम्र का असर कम होगा, बल्कि पार्किसन और अल्जाइमर्स जैसी बीमारियों का इलाज भी संभव हो सकेगा।
हल्दीघाटी की दूसरी लड़ाई में सीएसआईआर का शामिल होना
● 'हल्दीघाटी की दूसरी लड़ाई' मीडिया द्वारा करार दिया गया एक 'नियम आधारित' संघर्ष एवं अनुसंधान मामला है जिसमें घाव भरने
के लिये हल्दी के उपयोग पर गलत तरीके से यूएस पेटेंट प्रदान किया गया था।
● नियम यह है कि एक लेख की नवीनता, अप्रत्यक्षता और उपयोगिता का प्रदर्शन करने के बाद ही आवेदक के पास नई खोज पेटेंट
करने का अधिकार है। घाव भरने के लिये हल्दी का उपयोग नया नहीं है क्योंकि यह भारत की प्राचीन संस्कृत और पालि ग्रंथों और
औपचारिक पत्रों (जैसे भारतीय चिकित्सा पत्रिकाओं के अनुसंधान जर्नल आदि) में दर्ज पूर्वगामी ज्ञान का हिस्सा है।
● सीएसआईआर ने मान्यता प्राप्त कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किया और यूएस पेटेंट ऑफिस को सिद्ध किया कि घाव भरने में हल्दी
का इस तरह का उपयोग स्पष्ट रूप से पूर्व ज्ञान का परिणाम था। यूएस पेटेंट कार्यालय ने पेटेंट निरस्त कर दिया और भारत को उस
लड़ाई में विजय मिली।
● ध्यातव्य है कि चुनाव में मतदाताओं की उँगलियों पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही सीएसआईआर द्वारा ही विकसित की गई है।
आजकल यह स्याही भारत से विदेशों में निर्यात हो रही है।
● 1970 तक बच्चों को पिलाया जाने वाला डिब्बा-बंद दूध विदेशों से आयात होता था, जिसकी स्वदेशी उत्पादन प्रक्रिया का विकास
सर्वप्रथम सीएसआईआर ने किया और देश के नवजात शिशुओं को देश में बना, आसानी से पचने लायक दूध मिल सका।
● प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित देवी-देवताओं की मूर्तियों के जल में विसर्जन के दौरान होने वाली जल प्रदूषण की समस्या का समाधान
सीएसआईआर की रासायनिक प्रयोगशाला, पुणे द्वारा विकसित कर लिया गया है।