रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की उपलब्धियाँ | Achievements of Defence Research and Development Organization



● रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) देश का एक महत्त्वपूर्ण संगठन है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में लगा हुआ है। इसका
मिशन आधुनिक किस्म की रक्षा प्रणालियाँ और प्रौद्योगिकियों का विकास करना और देश की रक्षा सेवाओं के लिये प्रौद्योगिकी समाधान
प्रदान करना है। संगठन ने प्रौद्योगिकी विकास के क्षेत्र में नए और वृहद् आयाम स्थापित किये हैं।
● हाल के वर्षों में डीआरडीओ ने आत्मनिर्भरता पर जो ध्यान दिया है, उससे रक्षा सेवाओं के लिये आधुनिक प्रणालियाँ और महत्त्वपूर्ण
प्रौद्योगिकियाँ विकसित हुई हैं और आत्मनिर्भरता का सूचकांक 30 प्रतिशत से बढ़कर 55 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
● सामरिक प्रणालियों में दक्ष डीआरडीओ ने कई उपलब्धियाँ हासिल की हैं। लंबी दूरी तक मार करने वाली सामरिक मिसाइल अग्नि-5
के शानदार प्रक्षेपण से संगठन ने नई ऊँचाइयों को छुआ है। 70 से अधिक प्रमुख मिसाइल प्रणालियों का प्रक्षेपण, इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र
में डीआरडीओ की शक्ति और दक्षता को दर्शाता है।
● कई प्रकार के सफल परीक्षणों और नई प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल के बाद जलगत प्रणाली बीओ-5 के निर्माण की मंजूरी मिलना संगठन की एक और बड़ी उपलब्धि है।
● भारत की पहली स्वदेशी परमाणु शक्ति युक्त पनडुब्बी- 'आईएनएस अरिहंत' समुद्री परीक्षणों के लिये तैयार है। लंबी दूरी की क्रूज मिसाइल 'निर्भय' अपनी प्रारंभिक उड़ान भर चुकी है। कई लक्ष्यों को साधने वाली मध्यम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली से विकसित आकाश' एक और शानदार उपलब्धि है।
● सर्वश्रेष्ठ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस, जिसका प्रक्षेपण थल, वायु और समुद्र के अंदर के प्लेटफॉर्मों से तेज गति के साथ हमले
के लिये किया जा सकता है, आधुनिक समय का एक और महत्त्वपूर्ण हथियार है। इसका ब्लॉक-2 डिज़ाइन लक्ष्य की पहचान कर सकता
है और ब्लॉक-3 डिजाइन सुपरसोनिक गति के साथ गहराई तक गोता लगाने की क्षमता रखता है, जिसके कारण यह एक अत्यंत मारक क्षमता वाला हथियार बन गया है। 

● जमीन-से-जमीन तक मार करने वाली नई 'प्रहार' मिसाइल 150 किमी. से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह
से 'पिनाका' रॉकेट और 'पृथ्वी' मिसाइल के अंतर को पूरा करती है। मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उड़ान क्षमता में :
सुधार से इनकी लड़ाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
● देश में पहली बार डिजाइन और निर्मित किये गए विमान इंजन 'कावेरी' की सफल उड़ानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं। यूएवी के लिये वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप में विकसित करने के बाद 'यूएवी निशांत' में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
● मुख्य युद्धक टैंक- 'अर्जुन' से लैस दो रेजिमेंट भारतीय सेना की शान हैं। अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नए फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड
समय में विकसित किया गया है।
● पिनाका रॉकेट लॉन्चर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
● भारतीय नौसेना की आवश्यकता के लिये बहुत उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSA-NG को नौसेना के जहाजों में इस्तेमाल के लिये विकसित किया गया है। भारी वज़न वाले टॉरपीडो वरुणास्त्र के समुद्र में व्यापक परीक्षण हो चुके हैं और इसे अस्त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
● रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिये डब्ल्यूएलआर, उडी-टीसीआर, भारानी और अश्लेषा जैसे अत्यंत आधुनिक किस्म
की रडार प्रणालियाँ विकसित की गई हैं।
● डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्यकताओं के लिये विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों
में MI-17 हेलीकॉप्टर के लिये हल्के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौसेना के लिये 30 हजार टन के डीएमआर स्टील का उत्पादन शामिल है।
● आज के युद्ध परिदृश्य की आवश्यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत
महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रुस्तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्म यूएवी विकसित किये गए हैं।
● सैनिकों की सहायता के लिये सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉड्यूलर ग्रीन शेल्टर का विकास भी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
● डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिये भी पर्यावरण हितैषी बायो डाइजेस्टर तैयार किये हैं जो अत्यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्यों के शौच
का निपटान करते हैं। इन्हें रेल डिब्बों के लिये और लक्षद्वीप समूह के लिये भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों के लिये जैव-शौचालय विकसित करने के लिये भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
● मलबे के अंदर दबे हुए बोर-वेल में गिरे पीड़ितों की पहचान के लिये सोनार टेक्नोलॉजी से लाइफ डिटेक्टर 'संजीवनी' का विकास
किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे सतह कितनी सख्त है, इसकी पहचान के लिये तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है। 

● जमीन-से-जमीन तक मार करने वाली नई 'प्रहार' मिसाइल 150 किमी. से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह
से 'पिनाका' रॉकेट और 'पृथ्वी' मिसाइल के अंतर को पूरा करती है। मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उड़ान क्षमता में :
सुधार से इनकी लड़ाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
● देश में पहली बार डिजाइन और निर्मित किये गए विमान इंजन 'कावेरी' की सफल उड़ानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं। यूएवी के लिये वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप में विकसित करने के बाद 'यूएवी निशांत' में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
● मुख्य युद्धक टैंक- 'अर्जुन' से लैस दो रेजिमेंट भारतीय सेना की शान हैं। अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नए फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड
समय में विकसित किया गया है।
● पिनाका रॉकेट लॉन्चर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
● भारतीय नौसेना की आवश्यकता के लिये बहुत उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSA-NG को नौसेना के
जहाजों में इस्तेमाल के लिये विकसित किया गया है। भारी वज़न वाले टॉरपीडो वरुणास्त्र के समुद्र में व्यापक परीक्षण हो चुके हैं
और इसे अस्त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
● रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिये डब्ल्यूएलआर, उडी-टीसीआर, भारानी और अश्लेषा जैसे अत्यंत आधुनिक किस्म
की रडार प्रणालियाँ विकसित की गई हैं।
● डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्यकताओं के लिये विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों
में MI-17 हेलीकॉप्टर के लिये हल्के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौसेना के लिये 30 हजार टन के डीएमआर स्टील का
उत्पादन शामिल है।
● आज के युद्ध परिदृश्य की आवश्यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत
महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रुस्तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्म यूएवी विकसित किये गए हैं।
● सैनिकों की सहायता के लिये सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉड्यूलर ग्रीन शेल्टर का विकास भी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
● डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिये भी पर्यावरण हितैषी बायो डाइजेस्टर तैयार किये हैं जो अत्यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्यों के शौच
का निपटान करते हैं। इन्हें रेल डिब्बों के लिये और लक्षद्वीप समूह के लिये भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम
पंचायतों के लिये जैव-शौचालय विकसित करने के लिये भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
● मलबे के अंदर दबे हुए बोर-वेल में गिरे पीड़ितों की पहचान के लिये सोनार टेक्नोलॉजी से लाइफ डिटेक्टर 'संजीवनी' का विकास
किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे सतह कितनी सख्त है, इसकी पहचान के लिये तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है। 

● जमीन-से-जमीन तक मार करने वाली नई 'प्रहार' मिसाइल 150 किमी. से भी अधिक दूरी तक गोले फेंक सकती है और एक तरह
से 'पिनाका' रॉकेट और 'पृथ्वी' मिसाइल के अंतर को पूरा करती है। मिग-27, जगुआर और सुखोई-30 विमानों की उड़ान क्षमता में
सुधार से इनकी लड़ाकू क्षमताओं में वृद्धि हुई है।
● देश में पहली बार डिजाइन और निर्मित किये गए विमान इंजन 'कावेरी' की सफल उड़ानों के बाद सफल परीक्षण चल रहे हैं।
यूएवी के लिये वेंकल रोटरी इंजन को सफल रूप में विकसित करने के बाद 'यूएवी निशांत' में इसका प्रयोग एक और बड़ी उपलब्धि है।
● मुख्य युद्धक टैंक- 'अर्जुन' से लैस दो रेजिमेंट भारतीय सेना की शान हैं। अर्जुन मार्क-2 में लगभग 70 नए फीचर हैं और इसे रिकॉर्ड
समय में विकसित किया गया है।
● पिनाका रॉकेट लॉन्चर को और विकसित करके लंबी दूरी के पिनाका-2 का निर्माण किया गया है, जिसके परीक्षण चल रहे हैं।
● भारतीय नौसेना की आवश्यकता के लिये बहुत उच्च गुणवत्ता वाले सेंसर USHUS, NAGAN और HUMSA-NG को नौसेना के
जहाजों में इस्तेमाल के लिये विकसित किया गया है। भारी वज़न वाले टॉरपीडो वरुणास्त्र के समुद्र में व्यापक परीक्षण हो चुके हैं
और इसे अस्त्र प्रणालियों में शामिल किया जाना है।
● रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों के लिये डब्ल्यूएलआर, उडी-टीसीआर, भारानी और अश्लेषा जैसे अत्यंत आधुनिक किस्म
की रडार प्रणालियाँ विकसित की गई हैं।
● डीआरडीओ ने रक्षा सेनाओं की आवश्यकताओं के लिये विशेष सामग्री के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। हाल की उपलब्धियों
में MI-17 हेलीकॉप्टर के लिये हल्के हथियारों का निर्माण और भारतीय नौसेना के लिये 30 हजार टन के डीएमआर स्टील का उत्पादन शामिल है।
● आज के युद्ध परिदृश्य की आवश्यकताओं को देखते हुए डीआरडीओ ने मानव रहित युद्धक मशीनें विकसित करनी शुरू की हैं, जो बहुत
महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें दूर से संचालित यान दक्ष बम गिराने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएवी रुस्तम-1 की कई सफल उड़ानें हो चुकी हैं। कई लघु और सूक्ष्म यूएवी विकसित किये गए हैं।
● सैनिकों की सहायता के लिये सौर ऊर्जा के प्रयोग वाले मॉड्यूलर ग्रीन शेल्टर का विकास भी एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
● डीआरडीओ ने सामाजिक क्षेत्र के लिये भी पर्यावरण हितैषी बायो डाइजेस्टर तैयार किये हैं जो अत्यंत ठंडे क्षेत्रों में मनुष्यों के शौच का निपटान करते हैं। इन्हें रेल डिब्बों के लिये और लक्षद्वीप समूह के लिये भी विकसित किया गया है। दो लाख से अधिक ग्राम पंचायतों के लिये जैव-शौचालय विकसित करने के लिये भी इस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
● मलबे के अंदर दबे हुए बोर-वेल में गिरे पीड़ितों की पहचान के लिये सोनार टेक्नोलॉजी से लाइफ डिटेक्टर 'संजीवनी' का विकास किया गया है। जल क्षेत्रों के नीचे सतह कितनी सख्त है, इसकी पहचान के लिये तरंगिणी उपकरण का विकास किया गया है। डीआरडीओ की इन सब प्रयासों का एक ही उद्देश्य है कि रक्षा प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों के डिजाइन विकास और उत्पादन में भारत को एक विश्वस्तरीय केंद्र के रूप में विकसित किया जाए, ताकि इसे अन्य देशों पर निर्भर न रहना पड़े।

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