भारत में राष्ट्रवाद | Nationalism in india
भारत में राष्ट्रवाद | Nationalism in india
● सन् 1919 से बाद के सालों में हम देखते हैं कि राष्ट्रीय आन्दोलन नये इलाकों तक फैल गया था, उसमें नये सामाजिक समूह शामिल हो गए थे और संघर्ष की नई पद्धतियाँ सामने आ रहीं थीं।
● विश्वयुद्ध ने एक नई आर्थिक और राजनीतिक स्थिति पैदा कर दी थी। इसके कारण रक्षा व्यय में भारी इजाफा हुआ। इस खर्चे की भरपाई करने के लिए युद्ध के नाम पर कर्जे लिए गए और करों में वृद्धि की गई। सीमा शुल्क बढ़ा दिया गया और आयकर शुरू किया गया।
● सन् 1913 से सन् 1918 के बीच कीमतें दोगुना हो चुकी थीं जिसके कारण आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई थीं। गाँवों में सिपाहियों को जबरन भर्ती किया गया जिसके कारण ग्रामीण इलाकों में व्यापक गुस्सा था। सन् 1918-19 और सन् 1920-21 में देश के बहुत सारे हिस्सों में फसल खराब हो गई जिसके कारण खाद्य पदार्थों का भारी अभाव पैदा हो गया।
● उसी समय फ्लू की महामारी फैल गई। सन् 1921 की जनगणना के मुताबिक दुर्भिक्ष और महामारी के कारण 120-130 लाख लोग मारे गए।
● लोगों को उम्मीद थी कि युद्ध खत्म होने के बाद उनकी मुसीबतें कम हो जाएँगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
● महात्मा गाँधी जनवरी, 1915 में भारत लौटे। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में थे। उन्होंने एक नये तरह के जनान्दोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस पद्धति को वे सत्याग्रह कहते थे। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपका उद्देश्य सच्चा है, यदि आपका संघर्ष अन्याय के खिलाफ है तो उत्पीड़क मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है।
● भारत आने के बाद गाँधीजी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1916 में उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा
किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। सन् 1917 में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के
किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के
किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। सन् 1918 में गाँधीजी सूती कपड़ा कारखानों
के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुँचे।
● गाँधीजी ने सन् 1919 में प्रस्तावित रॉलट एक्ट के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह आन्दोलन चलाने का फैसला किया। भारतीय
सदस्यों के भारी विरोध के बावजूद इस कानून को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने बहुत जल्दबाजी में पारित कर दिया था।
● इस कानून के जरिए सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को कुचलने और राजनीतिक कैदियों को दो साल तक बिना मुकदमा चलाए जेल
में बन्द रखने का अधिकार मिल गया था।
● महात्मा गाँधी ऐसे अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक ढंग से नागरिक अवज्ञा चाहते थे। इसे 6 अप्रैल को एक हड़ताल से शुरू
होना था। विभिन्न शहरों में रैली-जुलूसों का आयोजन किया गया। रेलवे वर्कशॉप्स में कामगार हड़ताल पर चले गए। दुकानें बन्द हो
गईं। इस व्यापक जन-उभार से चिन्तित तथा रेलवे व टेलीग्राफ जैसी संचार सुविधाओं के भंग हो जाने की आंशका से भयभीत अंग्रेजों ने
राष्ट्रवादियों पर दमन शुरू कर दिया।
● 10 अप्रैल को पुलिस ने अमृतसर में एक शांतिपूर्ण जुलूस पर गोली चला दी। इसके बाद लोग बैंकों, डाकखानों और रेलवे स्टेशनों पर
हमला करने लगे। मार्शल लॉ लागू कर दिया गया और जनरल डायर ने कमान संभाल ली।
● 13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड हुआ। उस दिन अमृतसर में बहुत सारे गाँव वाले एक मेले में शिरकत करने के लिए जलियाँवाला बाग मैदान में जमा हुए थे। यह मैदान चारों तरफ से बन्द था। शहर से बाहर होने के कारण वहाँ जुटे लोगों को यह पता
नहीं था कि इलाके में मार्शल लॉ लागू किया जा चुका है। जनरल डायर हथियारबन्द सैनिकों के साथ वहाँ पहुँचा और जाते ही उसने
मैदान से बाहर निकलने के सारे रास्तों को बन्द कर दिया। इसके बाद उसके सिपाहियों ने भीड़ पर अन्धाधुन्ध गोलियां चला दीं।
सैंकडों लोग मारे गए।
● जैसे-जैसे जलियाँवाला बाग की खबर फैली, उत्तर भारत के बहुत सारे शहरों में लोग सड़कों पर उतरने लगे, हड़ताले होने लगी, लोग पुलिस से मोर्चा लेने लगे और सरकारी इमारतों पर हमला करने लगे। सरकार ने इन कार्यवाहियों को निर्ममता से कुचलने का रास्ता अपनाया।
● हिंसा फैलते देख महात्मा गाँधी ने आन्दोलन वापस ले लिया।
● भले ही रॉलेट एक्ट के विरुद्ध हुआ सत्याग्रह का एक बहुत बड़ा आन्दोलन था लेकिन अभी भी वह मुख्य रूप से शहरों और कस्बों
तक ही सीमित था।
● महात्मा गाँधी पूरे भारत में और भी ज्यादा जनाधार वाला आन्दोलन खड़ा करना चाहते थे लेकिन उनका मानना था कि हिन्दू-मुसलमानों को एक-दूसरे के नजदीक लाए बिना ऐसा कोई आन्दोलन नहीं चलाया जा सकता। उन्हें लगता था कि खिलाफत का मुद्दा उठाकर वे दोनों समुदायों को नजदीक ला सकते हैं।
● पहले विश्वयुद्ध में ऑटोमन तुर्की की हार हो चुकी थी। इस आशय की अफवाहें फैली हुई थीं कि इस्लामिक विश्व के आध्यात्मिक नेता (खलीफा) ऑटोमन सम्राट पर एक बहुत सख्त शान्ति सन्धि थोपी जाएगी। खलीफा की तात्कालिक शक्तियों की रक्षा के लिए मार्च, 1919 में बम्बई में एक खिलाफत समिति का गठन किया गया था। मोहम्मद अली और शौकत अली बन्धुओं के साथ-साथ कई युवा मुस्लिम नेताओं ने इस मुद्दे पर संयुक्त जन कार्यवाही की सम्भावना तलाशने के लिए महात्मा गाँधी के साथ चर्चा शुरू कर दी थी।
● सितम्बर, 1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में महात्मा गाँधी ने भी दूसरे नेताओं को इस बात पर राजी कर लिया कि खिलाफत आन्दोलन के समर्थन और स्वराज के लिए एक असहयोग आन्दोलन शुरू किया जाना चाहिए। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक हिन्दस्वराज (1909) में महात्मा गाँधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से ही स्थापित हुआ था और यह शासन इसी सहयोग के कारण चल पा रहा है। अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो साल भर के भीतर ब्रिटिश शासन ढह जाएगा और स्वराज की स्थापना हो जाएगी।
● दिसम्बर, 1920 में क्रांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में एक समझौता हुआ और असहयोग कार्यक्रम पर स्वीकृति की मोहर लगा दी गई।
● असहयोग-खिलाफत आन्दोलन जनवरी, 1921 में शुरू हुआ। इस आन्दोलन में विभिन्न सामाजिक समूहों ने हिस्सा लिया लेकिन
प्रत्येक की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं। सभी ने स्वराज के आह्वान को स्वीकार तो किया लेकिन उनके लिए उसके अर्थ अलग-अलग थे।
● आन्दोलन की शुरुआत शहरी मध्यमवर्ग की हिस्सेदारी के साथ हुई। हजारों विद्यार्थियों ने स्कूल-कॉलेज छोड़ दिए। हेडमास्टरों और शिक्षकों ने इस्तीफे सौंप दिए। वकीलों ने मुकदमें लड़ना बन्द कर दिया।
● कुछ समय बाद शहरों में यह आन्दोलन धीमा पड़ने लगा। इसके कई कारण थे। खादी का कपड़ा मिलों में भारी पैमाने पर बनने
वाले कपड़ों के मुकाबले प्रायः मँहगा होता था और गरीब उसे नहीं खरीद सकते थे।
● शहरों से बढ़कर असहयोग आन्दोलन देहात में भी फैल गया था। युद्ध के बाद देश के विभिन्न भागों में चले किसानों व आदिवासियों
के संघर्ष भी इस आन्दोलन में समा गए।
● अवध में संन्यासी बाबा रामचन्द्र किसानों का नेतृत्व कर रहे थे। बाबा रामचन्द्र इससे पहले फिजी में गिरमिटिया मजदूर के तौर पर काम कर चुके थे। उनका आन्दोलन तालुकादारों और जमींदारों के खिलाफ था जो किसानों से भारी-भरकम लगान और तरह-तरह के कर वसूल कर रहे थे।
● जून, 1920 में जवाहर लाल नेहरू ने अवध के गाँवों का दौरा किया, गाँववालों से बातचीत की और उनकी व्यथा समझने का प्रयास किया। अक्टूबर तक जवाहर लाल नेहरू, बाबा रामचन्द्र तथा कुछ अन्य लोगों के नेतृत्व मे अवध किसान सभा का गठन कर लिया गया। महीने भर में इस पूरे इलाके के गाँवों में संगठन की 300 से ज्यादा शाखाएँ बन चुकी थीं।
सविनय अवज्ञा की ओर
● फरवरी, 1922 में महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने का फैसला कर लिया। उनको लगता था कि आन्दोलन हिंसक होता जा रहा है और सत्याग्रहियों को व्यापक प्रशिक्षण की जरूरत है। कांग्रेस के कुछ नेता इस तरह के जनसंघर्षों से थक चुके थे। वे सन् 1919 के गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया एक्ट के तहत गठित की गई प्रान्तीय परिषदों के चुनाव में हिस्सा लेना चाहते थे।
● सी आर दास और मोतीलाल नेहरू ने परिषद् राजनीति में वापस लौटने के लिए कांग्रेस के भीतर ही स्वराज पार्टी का गठन कर डाला।
● जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस जैसे युवा नेता ज्यादा उग्र जनान्दोलन और पूर्ण स्वतन्त्रता के लिए दबाव बनाए हुए
● सन् 1930 तक ग्रामीण इलाके भारी उथल-पुथल से गुजरने लगे थे। इसी पृष्ठभूमि में ब्रिटेन की नई टोरी सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक वैधानिक आयोग का गठन कर दिया। राष्ट्रवादी आन्दोलन के जवाब में गठित किए गए इस आयोग को भारत में संवैधानिक व्यवस्था की कार्य शैली का अध्ययन करना था और उसके बारे में सुझाव देने थे। इस आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था सारे अंग्रेज थे।
● सन् 1928 में जब साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो उसका स्वागत 'साइमन कमीशन वापस जाओ' (साइमन कमीशन गो बैक) के
नारों से किया गया। काँग्रेस और मुस्लिम लीग, सभी पार्टियों ने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। इस विरोध को शान्त करने के लिए वायसरॉय लॉर्ड इरविन ने अक्टूबर, 1929 में भारत के लिए 'डोमीनियन स्टेटस' का गोलमोल सा ऐलान कर दिया। उन्होंने इस बारे में कोई समय सीमा भी नहीं बताई।
● मध्यमागी नेता ब्रिटिश डोमीनियन के भीतर ही संवैधानिक व्यवस्था के पक्ष में थे। लेकिन इस खेमे का प्रभाव घटता जा रहा था।
दिसम्बर, 1929 में जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' की माँग को औपचारिक रूप
से मान लिया गया। तय किया गया कि 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा और उस दिन लोग पूर्ण
स्वराज के लिए संघर्ष की शपथ लेंगे।
● देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गाँधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया।
● 22 मार्च, 1930 को महात्मा गाँधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलेंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी। यह यात्रा साबरमती में गाँधीजी के आश्रम से 240 किमी दूर दाण्डी नामक गुजराती तटीय कस्बे में जाकर खत्म होनी थी। गाँधीजी की टोली 24 दिनों तक, हर रोज लगभग 10 मील का सफर तय करने के बाद 6 अप्रैल को दाण्डी पहुँची, जहाँ गाँधीजी ने नमक बनाकर नमक
कानून को तोड़ा।
● सुभाषचन्द्र बोस ने गाँधीजी के नमक सत्याग्रह की तुलना नेपोलियन की पेरिस यात्रा से की।
● 8 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ इसके बाद गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस ले लिया।
● गाँधी-इरविन समझौते के जरिए गाँधीजी ने लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में हिस्सा लेने पर अपनी सहमति व्यक्त
कर दी (पहले गोलमेज सम्मेलन का कांग्रेस बहिष्कार कर चुकी थी)। इसके बदले सरकार राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर
राजी हो गई।
● दिसम्बर, 1931 में दूसरे गोलमेज सम्मेलन के लिए गाँधीजी लन्दन गए। यह वार्ता बीच में ही टूट गई और उन्हें निराश वापस
लौटना पड़ा।
● दूसरे गोलमेज सम्मेलन की असफलता के बाद गाँधीजी ने 3 जनवरी, 1932 को पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर
दिया। इस आन्दोलन को अन्तिम रूप से 7 अप्रैल, 1934 को वापस लिया गया।
भारत छोड़ो आन्दोलन (1942 ई.)
● कांग्रेस ने बम्बई अधिवेशन में 8 अगस्त, 1942 को 'भारत छोड़ो' प्रस्ताव पारित किया।
● गाँधी जी ने लोगों को 'करो या मरो' का नारा दिया।
कैबिनेट मिशन (1946 ई.)
● ब्रिटिश प्रधानमन्त्री एटली ने 15 फरवरी, 1946 को भारतीय संविधान सभा की स्थापना एवं तत्कालीन ज्वलन्त समस्याओं पर
भारतीयों से विचार विमर्श के लिए कैबिनेट मिशन' को भारत भेजने की घोषणा की।
● 24 मार्च, 1946 को दिल्ली पहुंचे कैबिनेट मिशन के सदस्य थे-स्टेफोर्ड क्रिप्स, पैथिक लारेंस और ए. वी. एलेक्जेण्डर।
● जुलाई, 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत संविधान सभा के लिए चुनाव हुआ।
● मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन योजना को अस्वीकार कर दिया तथा पाकिस्तान को प्राप्त करने के लिए 16 अगस्त, 1946 को
'प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस' के रूप में मनाया।
माउन्टबेटन योजना और स्वतन्त्रता प्राप्ति (1947 ई.)
● 22 मार्च, 1947 ई. को भारत के अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउन्टबेटन भारत आये।
● 3 जून, 1947 ई. को लॉर्ड माउन्टबेटन द्वारा एक योजना की घोषणा की गयी, जिसे 'माउन्टबेटन योजना' के नाम से जाना जाता है।
● माउन्टबेटन योजना को स्वीकार कर देश का विभाजन होना तय हुआ। इस प्रकार 15 अगस्त, 1947 को 'भारत तथा पाकिस्तान'
नामक दो नये राष्ट्र अस्तित्व में आये।
कुछ महत्त्वपूर्ण तिथियाँ
● सन् 1918-19 बाबा रामचन्द्र ने उत्तर प्रदेश के किसानों को संगठित किया।
● अप्रैल 1919 रॉलेट एक्ट के खिलाफ गाँधीवादी हड़ताल, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड
● जनवरी, 1921 असहयोग और खिलाफत आन्दोलन शुरू
● फरवरी, 1922 चौरी चौरा काण्ड, गाँधीजी ने असहयोग आन्दोलन वापस लिया।
● मई, 1924 अल्लूरी सीताराम राजू की गिरफ्तारी तथा दो वर्ष से चला आ रहा हथियारबन्द आदिवासी संघर्ष समाप्त!
● दिसम्बर, 1929 लाहौर अधिवेशन, कांग्रेस ने 'पूर्ण स्वराज' की माँग को स्वीकार किया।
● सन् 1930 अम्बेडकर द्वारा दलित वर्ग एसोसिएशन की स्थापना।
● मार्च, 1930 गाँधीजी ने दाण्डी में नमक कानून का उल्लंघन करके सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया।
● मार्च, 1931 गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन वापस लिया।
● दिसम्बर, 1931 दूसरा गोलमेज सम्मेलन
● सन् 1932 सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः प्रारम्भ