पंचवर्षीय योजनाओं के दौर में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रगति | Progress in Science and Technology During Five Year Plans



स्वतंत्रता के बाद भारत ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की ओर कदम
बढ़ाया। इसके लिये आरंभ में परंपरागत ज्ञान और कौशल को प्रतिस्पर्धात्मक और प्रासंगिक बनाने का प्रयास किया गया तो वहीं विज्ञान और तकनीक के प्रमुख क्षेत्रों में उन्नत क्षमताओं को विकसित करने का प्रयास भी किया गया। नीति-निर्माताओं को विश्वास था कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत को एक आधुनिक और औद्योगिक समाज में बदला जा सकता है। भारत में आरंभ से लेकर अब तक सभी पंचवर्षीय योजनाओं में इस दृष्टि को ध्यान में रखकर ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास पर ध्यान दिया गया, जिसका विश्लेषण निम्नवत है-

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56)

प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिये अतिरिक्त सुविधाएं मुहैया कराने पर जोर
दिया गया। इस दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयास देश भर में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और शोध संस्थानों की स्थापना था। इन शोध संस्थानों के
माध्यम से शोध-सुविधाविहीन लघु एवं मध्यम स्तर के उद्योगों को लाभ पहुँचाने की नीति अपनाई गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान ही 1954 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की गई।

दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61)

जहाँ पहली पंचवर्षीय योजना में देश भर में राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं और शोध संस्थानों की स्थापना पर जोर दिया गया, वहीं दूसरी पंचवर्षीय
योजना का मुख्य उद्देश्य मौजूदा वैज्ञानिक सुविधाओं को और अधिक उन्नत बनाते हुए सभी शोध संस्थानों से प्राप्त शोध निष्कर्षों को राष्ट्रीय
विकास के विभिन्न क्षेत्रों में समायोजित करना था। इसके साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के शोध संस्थानों के क्षेत्रीय और राज्य स्तर के संस्थानों से
तालमेल स्थापित करने और बढ़ावा देने पर ध्यान दिया गया। इसी योजना के दौरान विज्ञान और उससे संबंधित अन्य क्षेत्रों में सरलता एवं मानकीकरण के लिये मीटर-किलोग्राम-सेकंड (M-K-S) पद्धति अपनाई गई। इसी योजना के अंतर्गत देश की पहली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति, 1958 संसद में पारित की गई।

तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-66)

तीसरी पंचवर्षीय योजना के समय भारत ने महसूस किया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में प्रगति के मामले में विकसित और विकासशील
देशों के बीच अंतर निरंतर बढ़ता जा रहा है। भारत के समक्ष लक्ष्य, इस अंतर को पाटते हुए अपने विकास कार्यों और नीतियों में विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक अनुप्रयोग करना था। देश की समग्र वैज्ञानिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तीसरी पंचवर्षीय योजना में मुख्य रूप से निम्न क्षेत्रों पर ध्यान दिया गया-
● मौजूदा शोध संस्थाओं को मजबूत बनाना और उनकी क्षमता को वृहद् और विस्तृत रूप देना;
● विश्वविद्यालयों में बुनियादी विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देना;
●प्रौद्योगिकी क्षेत्र में शोध पर विशेष ध्यान देना;
● शोधार्थियों को प्रशिक्षण देना और शोध फेलोशिप और स्कॉलरशिप आदि से जुड़े कार्यक्रमों को विस्तृत करना;
● वैज्ञानिक और औद्योगिक उपकरणों के विकास और विनिर्माण के लिये शोध कार्यों को बढ़ावा देना;
● सरकारी विभागों, विश्वविद्यालयों, शोध संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के शोध कार्यों और गतिविधियों के बीच तालमेल स्थापित करना।

नोट: तीसरी पंचवर्षीय योजना के बाद देश में 1966-67, 1967-68 एवं 1968-69 में तीन वार्षिक योजनाएँ चलाई गई जिनमें विज्ञान एवं
प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कोई विशेष कार्य नहीं किया गया, बल्कि तीसरी पंचवर्षीय योजना की नीति ही चलती रही।

चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-74)

चौथी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक शोध और औद्योगिकी विकास में समन्वय स्थापित करने पर जोर दिया गया। प्रौद्योगिकी विकास के
अतिरिक्त इस्पात, रसायन, उपकरण जैसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी गई। इस योजना में इस बात का खयाल रखा गया कि एक ही विषय पर एक ही प्रकार के अनुसंधान की गतिविधियाँ एक से अधिक प्रयोगशालाओं या अनुसंधान संस्थानों में न चलाई जाएँ। आणविक ऊर्जा के क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक को विकसित करने पर बल दिया गया। चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान ही परमाणु ऊर्जा विभाग ने तारापुर में पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन का संचालन आरंभ किया। इस योजना काल में अंतरिक्ष-अनुसंधान को भी पर्याप्त महत्त्व दिया गया और इस क्षेत्र में
सक्रियता लाने की दिशा में प्रयत्न किये गए। 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO), जो भारत का राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान है,
की स्थापना की गई। इसरो का मुख्य कार्य भारत के लिये अंतरिक्ष संबंधी तकनीक उपलब्ध करवाना है।

पाँचवी पंचवर्षीय योजना (1974-79)

पाँचवी पंचवर्षीय योजना में पहले से चले आ रहे शोध कार्यक्रमों की संरचना को निश्चित लागत और लाभों के उद्देश्य से एक पूर्व निर्धारित
समय-सीमा में खत्म करने के लिये फिर से तैयार करने पर ध्यान दिया गया। पिछली पंचवर्षीय योजनाओं के विपरीत पाँचवी पंचवर्षीय योजना में विभिन्न मंत्रालयों से जुड़े शोध और प्रौद्योगिकी के कार्यों को समन्वित करने के बजाय अलग-अलग चर्चा करने के विचार पर बल दिया गया।
इसके साथ-साथ शोध संस्थाओं और शोध से लाभ पाने वाले समूहों के बीच संपर्क बढ़ाने के प्रयास किये गए, ताकि समस्याओं को ज्यादा सटीक ढंग से परिभाषित किया जा सके और उसी अनुसार समस्याओं का समाधान निकाला जा सके। पाँचवी पंचवर्षीय योजना में ही कृषि के क्षेत्र में कीटनाशक उपायों, ड्राई फार्मिंग और सहायक उपकरणों के विकास पर ध्यान दिया गया। नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्रों, जैसे- सौर ऊर्जा, बायोगैस तकनीक, पवन ऊर्जा पर भी इसी अवधि में प्रयास आरंभ हुए। अंतरिक्ष कार्यक्रमों और इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़े विभिन्न प्रयास किये गए जिनमें 'राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सूचना प्रणाली' (NISSAT) की स्थापना विशेष उल्लेखनीय रही है।

नोटः पाँचवी पंचवर्षीय योजना, जिसकी रूपरेखा डी.पी. धर ने तैयार की थी, एक वर्ष पहले ही समाप्त हो गई और 1978-79 में अनवरत
योजना (Rolling Plan) तथा 1979-80 में वार्षिक योजना बनाई गई। इस दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिये कुछ विशेष नहीं किया गया
एवं पाँचवी पंचवर्षीय योजना की नीतियाँ ही चलती रहीं।

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85)

इस पंचवर्षीय योजना में विकास कार्यों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की उपयोगिता को बढ़ाने के लिये वैज्ञानिक सोच विकसित करने का लक्ष्य बनाया गया। इसके लिये विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में बुनियादी विज्ञान और तकनीकी सुविधाओं में सुधार के माध्यम से प्रतिभाओं
को निखारने पर बल दिया गया। इस योजना में आधुनिक क्षेत्रों, जैसे- प्लाज्मा भौतिकी, प्रतिरक्षा विज्ञान, अप्लाइड माइक्रोबायोलॉजी आदि
व्यापक अनुसंधान के लिये योजनाएँ निर्मित की गई। इस योजनावधि में ही 1983 में दूसरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी नीति जारी की गई। विज्ञान
- एवं प्रौद्योगिकी के विभिन्न उपयोगी परिणामों से मानव संसाधन विशेषतया समाज के कमजोर वर्गों व महिलाओं के विकास को और अधिक गति देने की बात इस योजना में की गई।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90)


सातवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, रोबोटिक्स, जैव प्रौद्योगिकी, समुद्र विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, रसायन शास्त्र के विभिन्न
क्षेत्रों, आधुनिक जीव विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान और आधुनिक अंतरिक्ष । तकनीकों जैसे नवीन क्षेत्रों पर जोर दिया गया। इन सभी नवीन क्षेत्रों में हो रहे विकास ने नई तकनीकों और अवधारणाओं का मार्ग प्रशस्त कर दिया था जो न सिर्फ तत्कालीन राष्ट्रीय विकास के लिये आवश्यक थी,
बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के नजरिये से भी आवश्यक हो चली थी। इस कारण से इन नवीन और उभर रहे क्षेत्रों को प्राथमिकता देने वाले कार्यक्रमों को आरंभ करना और संबंधित विज्ञान और तकनीक की शिक्षा प्रदान करना समय की मांग थी। इस योजना के आरंभ में 'केंद्रीय गंगा प्राधिकरण' की भी स्थापना हुई थी। इसके अलावा सातवीं पंचवर्षीय योजना में खाद्य उत्पादन और रोजगार के अवसरों को बढ़ाने पर भी जोर दिया गया।

नोटः 1990-91 तथा 1991-92 में वार्षिक योजनाएँ चलती रहीं जिनमें सातवीं पंचवर्षीय योजना के लक्ष्यों को ही पाने का प्रयास चलता रहा।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97)

आठवीं पंचवर्षीय योजना के समय भारत में आर्थिक सुधारों के दौर के बाद कृषि और औद्योगिक विकास की चुनौतियाँ नया स्वरूप ले चुकी
थीं। साथ ही वैश्विक वातावरण भी काफी बदल चुका था। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियाँ इस नए माहौल को ध्यान में रखकर ही
लागू की गई। इस योजना में शोध और विकास कार्यों में निवेश के माध्यम से घरेलू प्रौद्योगिकी के विकास और नवीन प्रौद्योगिकियों को
अपनाने पर जोर दिया गया। इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया गया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से सभी संभावित संसाधनों का अधिकतम उपयोग संभव हो ताकि लोगों को उनका लाभ मिले। इस योजनावधि में एक तरफ जहाँ जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं,
जैसे-पेयजल, खाद्यान्न, पोषाहार, स्वास्थ्य, स्वच्छता, आवास, शिक्षा, ऊर्जा, वस्त्र, रोज़गार आदि के क्षेत्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता एवं नियोजित स्तर प्राप्त करने पर बल दिया गया तो दूसरी तरफ अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं आणविक ऊर्जा जैसे उच्च प्रौद्योगिकी-प्रक्षेत्रों में विकास को महत्त्व दिया गया। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में प्रक्षेपण यानों और उपग्रहों के निर्माण में आत्मनिर्भरता और अधिकतम स्वदेशीकरण की परिकल्पना की गई।

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002)

नौवीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य देश के सामाजिक-आर्थिक विकास को व्यवस्थित और संतुलित रूप प्रदान करना था। इस योजना
में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संसाधनों का समुचित उपयोग करने के अलावा भारत में जनसंख्या नियंत्रण और खाद्य सुरक्षा जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया। नौवीं पंचवर्षीय योजना में हरित पर्यावरण तकनीकों के उपयोग पर भी जोर दिया गया। शैक्षिक संस्थाओं में नई प्रबंधन तकनीकों और बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे नए मुद्दे से जुड़ा अकादमिक वातावरण तैयार करने पर भी बल दिया गया।

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-2007)

दसवीं पंचवर्षीय योजना में घरेलू तकनीकों के विकास और नवीन तकनीकों को अपनाने पर अधिक जोर दिया गया। नई वैश्विक व्यवस्था
को ध्यान में रखते हुए दसवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गए-
● अनुप्रयोग आधारित शोध कार्यों को मजबूत करना;
●  मानव संसाधन विकास को बढ़ावा देना;
●  राष्ट्रीय आपदाओं के नियंत्रण, बचाव और अनुमान के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों को बढ़ावा देना;
● समस्त राष्ट्रीय गतिविधियों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रगति को समन्वित करना ताकि उनका उपयोग लोगों का जीवन  स्तर ऊँचा उठाने, रोज़गार प्रदान करने और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में किया जा सके। इसके अलावा, दसवीं पंचवर्षीय योजना में सूचना प्रौद्योगिकी और जैव प्रौद्योगिकी जैसे नवीन क्षेत्रों में प्रगति के साथ-साथ कृषि आधारित उद्योगों पर विशेष जोर दिया गया। ऊर्जा, यातायात, संचार जैसे आधारभूत क्षेत्रों के विकास हेतु पर्याप्त ध्यान दिया गया।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012)

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा अपने कार्यों और योजनाओं में दीर्घकालिक प्रभाव वाले भारतीय
विज्ञान और तकनीकी आधार को मजबूती देने का प्रयास किया गया। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिये ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना की प्रमुख प्राथमिकताएँ निम्न थीं-
● बुनियादी अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय स्तर के प्रक्रम का विकास करना;
● वैज्ञानिक मानव शक्ति के दायरे को विस्तृत करना, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से जुड़ी आधारभूत संरचना को मजबूत बनाना तथा युवा
वर्ग को विज्ञान में आजीविका हेतु आकर्षित करना;
● कुछ चुने हुए राष्ट्रीय फ्लैगशिप कार्यक्रमों को मिशन के रूप में संचालित करना ताकि देश की प्रौद्योगिकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता बढ़े;
● वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी अनुसंधान सुविधाएँ और उच्च गुणवत्ता के केंद्र स्थापित करना;
●  उच्च शिक्षण केंद्रों और संस्थानों में सरकारी-निजी भागीदारी के नवीन मॉडल विकसित करना। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के उत्तरोत्तर विकास पर बल दिया गया। इस योजना के अंतर्गत विज्ञान एवं अभियांत्रिकी शोध परिषद् (SERC) के स्थान पर उसकी भूमिका निभाने के लिये संसद के अधिनियम के माध्यम से एक स्वायत्त वित्तीयन निकाय, राष्ट्रीय विज्ञान एवं अभियांत्रिकी बोर्ड (NSEB) स्थापित किया गया। कुछ प्रमुख नवीन संस्थाएँ भी स्थापित की गई, जो निम्नलिखित हैं-
● नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन- इंडिया, अहमदाबाद
● नेशनल एग्री-फूड बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, मोहाली
● इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल बायोलॉजी एंड रिजेनेरेटिव मेडिसिन, बंगलूरू
● नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जिनोमिक्स, कल्याणी ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के दौरान भारत ने शोध एवं विकास में महत्त्वपूर्ण निवेश किया और देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के अद्वितीय एवं बहुआयामी निर्माण के लिये सशक्त आधारशिला रखी।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)

बारहवीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य भारत में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के संपूर्ण परिदृश्य को एक नए मुकाम पर पहुँचाते हुए उसे
उभरती वैश्विक व्यवस्था और उसकी चुनौतियों के अनुकूल बनाना था। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बारहवीं पंचवर्षीय योजना में
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का ऐसा ढाँचा विकसित करने पर जोर दिया गया जिसमें राष्ट्रीय प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए और शिक्षा, अनुसंधान और कॉर्पोरेट क्षेत्र को साथ लेते हुए समावेशी, त्वरित और टिकाऊ विकास दर कायम रखी जा सके। इस योजना में विशेष तौर पर कॉर्पोरेट जगत् से अनुसंधान और शोध गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने पर जोर दिया गया। योजना में प्रतिस्पर्धी ज्ञान अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिये वैश्विक स्तर और रोजगारपरक मानव संसाधन पैदा करने वाली शैक्षणिक व्यवस्था को आधारभूत स्तंभ बताया गया। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए बारहवीं पंचवर्षीय योजना में निम्न मुख्य लक्ष्य निर्धारित किये गए-
● देश में अनुसंधान और विकास क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद के एक प्रतिशत खर्च को बढ़ाकर 2 प्रतिशत करना। इसमें निजी क्षेत्र की
भागीदारी 50 फीसदी तक सुनिश्चित करना।
● सामाजिक और रणनीतिक रूप से अनुकूल नवोन्मेष परियोजनाओं और गतिविधियों का राष्ट्र-स्तर पर विकास करना। सरकारी और
निजी क्षेत्रों को इस दिशा में आकर्षित करने के लिये एक नवीन विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष नीति को विकसित करना। उल्लेखनीय है कि जनवरी 2013 में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष नीति-2013 प्रस्तुत की गई।
● वैज्ञानिकों के युवा वर्ग को आकर्षित करने के लिये अकादमिक क्षेत्र, विभिन्न अनुसंधान और विकास संस्थाओं तथा विभिन्न उद्योगों
के बीच समन्वय स्थापित करना। महिला पुनर्प्रवेश कार्यक्रमों के माध्यम से अनुसंधान और विकास क्षेत्र में महिला-पुरुष समानता को
प्रोत्साहित करना।
● स्वास्थ्य, जल और खाद्य पदार्थों के साथ विभिन्न विकास संबंधी क्षेत्रों में राष्ट्र स्तर के अभियान और चुनौती कार्यक्रम आरंभ करना।
● जलवायु मॉडलिंग, मौसम पूर्वानुमान, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, नाभिकीय अनुप्रयोगों, भूकंप अनुरूपण आदि से जुड़ी उच्च तकनीकों का
विकास करना।
● इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विज़न और बहुआयामी कार्यनीति के ज़रिये भारत का ई-विकास करना।

ग्यारहवीं और बारहवीं पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान केंद्रीय वैज्ञानिक मंत्रालयों/विभागों/एजेंसियों के योजनागत परिव्यय
(Plan Outlays/Expenditures of Central Scientific Ministries/Departments/Agencies During llth and 12th Five Year Plans)

संघ हैं, जो अपनी प्रौद्योगिकी और डिजाइन का खुलासा नहीं करते। सीएसआईआर ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के साथ मिलकर
भारत का पहला जायरोट्रॉन विकसित किया है। इसका गांधीनगर स्थित प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान ने परीक्षण किया है। परियोजना में
यह संस्थान भी भागीदार है। सीएसआईआर ने 'ध्वनि' (Detection and Hit Visualization using Acoustic N-wave Identification-
DHVANI) का भी विकास किया है जिसके तहत सटीक निशाना लगाने के लिये प्रणाली तैयार की गई है। इसे भारतीय सेना में तैनात
किया जाएगा।
●  स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सीएसआईआर के प्रयास सराहनीय हैं। उसने बीजीआर-34 नामक मधुमेह की दवा बनाई है, जिसमें जड़ी-बूटियों
का इस्तेमाल किया गया है। 

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