विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की उपलब्ध | Achievements of department of science technology - DTS
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की उपलब्ध
राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन.
मार्च 2015 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन को मंजूरी दी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को विश्वस्तरीय कंप्यूटिंग शक्ति बनाना है। इस मिशन को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा C-DAC (Centre for Development of Advanced Computing) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू के माध्यम से कार्यान्वित किया जा रहा है। इसे 7 वर्ष की अवधि में ₹4500 करोड़ की अनुमानित लागत से पूरा किया जाएगा।
इम्प्रिंट इंडिया परियोजना
'इम्प्रिंट (Impacting Research Innovation and Technology IMPRINT) इंडिया परियोजना' 5 नवंबर, 2015 को भारत के तत्कालीन
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा लॉन्च की गई। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग इस स्कीम को लागू करने में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ साझेदार है। 'इम्प्रिंट इंडिया' भारत के लिये प्रासंगिक 10 तकनीकी क्षेत्र की प्रमुख इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी चुनौतियों से निपटने के लिये अनुसंधान का ख़ाका विकसित करने हेतु IIT और IISc की संयुक्त पहल है। ये 10 क्षेत्र निम्नलिखित IIT और IISc द्वारा समन्वित होंगे-
1. हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी - आईआईटी खड़गपुर
2. कंप्यूटर टेक्नोलॉजी - आईआईटी खड़गपुर
3. एडवांस मटेरियल्स - आईआईटी कानपुर
4. वाटर रिसोर्सेस - आईआईटी कानपुर
5. सस्टेनेबल हैबिटेट - आईआईटी रूड़की
6. सिक्योरिटी एंड डिफेंस - आईआईटी मद्रास
7. मैन्यूफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी - आईआईटी मद्रास
8. नैनो-टेक्नोलॉजी हार्डवेयर - आईआईटी बॉम्बे
9. एन्वायरनमेंट एंड क्लाइमेट - आईआईएससी, बंगलूरू
10. एनर्जी सिक्योरिटी - आईआईटी बॉम्ब
इस पहल का उद्देश्य है- समाज में नवाचार के लिये आवश्यक
क्षेत्रों की पहचान करना, पहचाने गए क्षेत्रों में प्रत्यक्ष वैज्ञानिक अनुसंधान
करना, इन क्षेत्रों में अनुसंधान के लिये उचित कोष की आपूर्ति सुनिश्चित
करना तथा इन अनुसंधानों के परिणामों को शहरी और ग्रामीण क्षेत्र पर
प्रभाव का आकलन करना आदि।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का भारतीय रेल को सहयोग
'सबका साथ, सबका विकास' के लिये माननीय प्रधानमंत्री के विज़न के अनुरूप एक अनूठे प्रयास के तहत भारतीय रेल के टेक्नोलॉजी
मिशन (Technology Mission for Indian Railways-TMIR) को आगे बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार के तीन मंत्रालय एक साथ आए हैं। 4 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के रेल भवन में रेल मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय) ने टीएमआईआर को संयुक्त रूप से वित्तपोषण करने के लिये एक सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये। इस परियोजना में रेल मंत्रालय 30 प्रतिशत, मानव संसाधन विकास मंत्रालय 25 प्रतिशत तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग 25 प्रतिशत निवेश करेगा। यह टेक्नोलॉजी मिशन माननीय प्रधानमंत्री के 'मेक इन इंडिया' मिशन को गति प्रदान करेगा। इससे सफलतापूर्वक स्वदेशी टेक्नोलॉजी विकसित की जा सकेगी। भारतीय रेल को जहाँ विश्वस्तरीय टेक्नोलॉजी मिलेगी, वहीं अकादमिक और अनुसंधान संस्थान अनेक अप्लाइड अनुसंधान परियोजना में शामिल होंगे और इससे उन्हें राष्ट्रीय उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान में मदद मिलेगी।
नवाचार विकास और दोहन के लिये राष्ट्रीय पहल (निधि)
नेशनल इनिसिएटिव फॉर डेवलपिंग एंड हार्नेसिंग इनोवेशंस (NIDHI) कार्यक्रम की शुरुआत 2016-17 में की गई। यह कार्यक्रम देश में
स्टार्ट-अप के तहत नवाचार के तंत्र को मजूबत करने के लिये खोज से लेकर उत्पाद को बाजार में लाने तक की पूरी प्रक्रिया में मदद करता
है। इसके लिये ₹ 90 करोड़ की लागत से आईआईटी गांधीनगर में एक अनुसंधान पार्क की स्थापना की गई है।
वज्र फैकल्टी स्कीम
देश से प्रतिभा पलायन (ब्रेन ड्रेन) की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिये जनवरी 2017 में केंद्र सरकार द्वारा 'विजिटिंग एडवांस्ड ज्वॉइंट रिसर्च फैकल्टी स्कीम' की शुरुआत की गई। वैसे तो यह योजना विदेशी वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों के लिये है, लेकिन सारा ज़ोर एनआरआई और भारतीय मूल के वैज्ञानिकों पर है। इन्हें सरकारी शोध एवं शिक्षण संस्थानों में काम करने की पेशकश की गई है।
योजना के तहत ये वैज्ञानिक सरकारी शोध एवं शिक्षण संस्थानों में है, जो भारत-बेल्जियम के संयुक्त प्रयास से निर्मित है। 1-3 महीने तक अपनी सेवाएं दे सकते हैं। इसके एवज़ में सरकार उन्हें तनख्वाह के रूप में पहले महीने एकमुश्त राशि के रूप में 15,000 अमेरिकी डॉलर प्रदान करेगी। बाकी दो महीनों में वैज्ञानिको को दस-दस हजार अमेरिकी डॉलर मिलेंगे। इस योजना को विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का एक सांविधिक निकाय, ने शुरू किया है। वज्र फैकल्टी स्कीम शुरू करने का उद्देश्य दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों को भारत लाना और देश में अनुसंधान का संचालन करना है।
किरण-आईपीआर योजना
इस योजना में बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights-IPRs) प्रशिक्षण के तहत शोध एवं विकास (R&D) के ज़रिये
महिलाओं को सशक्त बनाया जाता है। विदित है कि भारत में विज्ञान की अर्हता रखने वाली महिलाओं की एक बड़ी संख्या है। इनमें से
अधिकतर महिलाएं घरेलू और सामाजिक कारणों से विज्ञान के क्षेत्र में अपना कॅरियर आगे नहीं बढ़ा पातीं। अतः देश में महिला वैज्ञानिकों को सही माहौल देने और उन्हें शोध में आगे बढ़ाने के लिये 'किरण-आईपीआर योजना' (Knowledge Involvement in Research Advancement through Nurturing-Intellectual Property Rights) की शुरुआत की गई। इस योजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से प्रौद्योगिकी, सूचना, पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन परिषद् (Technology, Information, Forecasting and Assessment Council-TIFAC) के पेटेंट सुगम केंद्र (PFC) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।उल्लेखनीय है कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिये स्थायी समिति का गठन किया है। महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों को आधारभूत या अप्लाइड साइंस में शोध करने के अवसर उपलब्ध कराने के लिये 225 से अधिक परियोजनाओं की सिफारिश की गई है।
सूर्य ज्योति
कम लागत वाली पर्यावरण अनुकूल माइक्रो सोलर डोम ‘सूर्य ज्योति' उपकरण को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तत्त्वावधान में विकसित
किया गया है। यह सौर उपकरण देश के उन शहरी और ग्रामीण परिवारों के लिये एक वरदान साबित होगा, जहाँ बिजली की विश्वसनीय पहुँच नहीं है। प्राथमिक अनुमानों के अनुसार, यदि इस प्रौद्योगिकी को केवल 10 मिलियन परिवार भी अपना लेते हैं तो इससे 1750 मिलियन यूनिट ऊर्जा की बचत होगी। इसके अलावा लगभग 12.5 मिलियन टन CO, का कम उत्सर्जन होगा, जिससे 'स्वच्छ भारत, हरित भारत' के मिशन को बढ़ावा मिलेगा। इसकी विनिर्माण प्रक्रिया श्रम प्रधान होने से अर्थव्यवस्था में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप
ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित करने के एक और प्रयास के तहत आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (ARIES) द्वारा 30 मार्च, 2016 को उत्तराखंड के देवस्थल में 3.6 मीटर व्यास वाली ऑप्टिकल टेलीस्कोप करने की पेशकश की गई है। यह एशिया की सबसे बड़ी ऑप्टिकल टेलीस्कोप योजना के तहत ये वैज्ञानिक सरकारी शोध एवं शिक्षण संस्थानों में है, जो भारत-बेल्जियम के संयुक्त प्रयास से निर्मित है। यह टेलीस्कोप आकाशगंगाओं की उत्पत्ति पर मौलिक अनुसंधान को और आगे ले जाने हेतु इस्तेमाल की जाएगी। इससे तारों के जीवन-चक्र,
शक्तिशाली ब्लैक होल्स की जाँच के अतिरिक्त ब्रह्मांड के कई अन्य रहस्यों को सुलझाने में मदद मिलेगी। ध्यातव्य है कि आर्यभट्ट प्रेक्षण
विज्ञान शोध संस्थान (ARIES) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है।
योग एवं ध्यान के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी (सत्यम)
योग एवं ध्यान के क्षेत्र में अनुसंधान दोबारा शुरू करने के लिये 2015-16 में डीएसटी ने एक नया कार्यक्रम 'साइंस एंड टेक्नोलॉजी ऑफ
योग एंड मेडीटेशन (SATYAM)' शुरू किया है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के मद्देनज़र योग और ध्यान को बेहतरीन उपचार के रूप में स्वीकार किया जाता है। 'सत्यम' इस दिशा में काम करेगा। इसके अलावा इस परियोजना के तहत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर योग और ध्यान के प्रभाव पर भी अनुसंधान किया जाएगा।
उद्योग आधारित अनुसंधान एवं विकास के लिये वित्तपोषण योजना
विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड मानता है कि वित्तपोषण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी जरूरी है। इस परियोजना को शुरू करने का उद्देश्य है कि अकादमिक संस्थानों और उद्योगों के बीच अनुसंधान के क्षेत्र में सहयोग बढ़े। इस परियोजना को यह दोनों क्षेत्र मिलकर क्रियान्वित करेंगे जिसमें कुल बजट का 50 प्रतिशत हिस्सा उद्योग वहन करेंगे। सभी छोटे और मझोले उद्यमों तथा औद्योगिक अनुसंधान तथा विकास केंद्रों को इस योजना में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जाता है |
हाई रिस्क-हाई रिवार्ड अनुसंधान के लिये वित्तपोषण योजना
हाई रिस्क - हाई रिवार्ड अनुसंधान के लिये वित्तपोषण योजना को विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड ने शुरू किया है ताकि विज्ञान
एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विकास हो सके।
नेशनल पोस्ट-डॉक्टोरल फेलोशिप (एन-पीडीएफ) योजना
युवा वैज्ञानिकों को आकर्षित करने और ब्रेन-ड्रेन को हतोत्साहित इस करने के लिये अकादमिक/अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के मद्देनज़र एन-पीडीएफ योजना शुरू की गई है। इसके तहत विज्ञान और इंजीनियरिंग इन के अग्रणी क्षेत्रों में अनुसंधान करने के लिये युवा अनुसंधानकर्ताओं को प्रेरित किया जाएगा। योजना के तहत 2 वर्षों के लिये प्रतिमाह ₹ 55,000 की फेलोशिप तथा प्रतिवर्ष ₹ 2 लाख का अनुसंधान अनुदान दिया जाएगा।
तकनीकी अनुसंधान केंद्र (टीआरसी)
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के मौजूदा स्वायत्त संस्थानों में 5 तकनीकी अनुसंधान केंद्र स्थापित किये गए हैं। इन केंद्रों की स्थापना के
लिये विभाग ने एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है।
नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी), मोहाली द्वारा प्रौद्योगिकी एप्लीकेशन
अपशिष्ट जलशोधन
डीएसटी की स्वायत्तशासी संस्था नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology-INST), मोहाली
अपशिष्ट जलशोधन के सस्ते फिल्टर को विकसित कर रहा है। इस संबंध में पानी के जैविक प्रदूषण और अम्लीय तत्त्वों को दूर करने के लिये नैनो तकनीक का विकास किया गया है। घरों के पानी को शोधित करने का आरंभिक परीक्षण पूरा कर लिया गया है। आगे की योजना में
निम्नलिखित जलशोधन यंत्र प्रस्तावित है-
>> नौकाओं की तली में लौह तत्त्वों को सोखने के लिये पैडः : आईएनएसटी ने जैविक प्रदूषक तत्त्वों और लौह तत्त्वों को सोखने
के लिये पैड विकसित किये हैं। इस पैड को नौकाओं की तलियों में लगाया जाएगा ताकि नदी साफ रहे।
>> घरेलू अपशिष्ट शोधन: आईएनएसटी की योजना है कि एक छोटा और सस्ता कार्टरेज बनाया जाए और उसे सफाई करने के स्थान या
कपड़ा धोने की मशीनों में लगाकर पानी को साफ किया जाए। यह नदी के पानी को साफ रखने की दृष्टि से किया जाएगा क्योंकि अधिकतर गंदा पानी घरों से निकल कर नदियों में जाता है। यदि पानी के स्रोत को ही साफ कर दिया जाए तो नदी का पानी भी साफ रहेगा।
>> औद्योगिक अपशिष्ट शोधन: आईएनएसटी द्वारा विकसित पैडों की सफलता के मद्देनजर विचार किया जा रहा है कि इन्हें औद्योगिक
अपशिष्टों को छानने के लिये भी इस्तेमाल किया जाए।
क्लिनिकल बायोमार्कर का विकास
आइएनएसटी ने कार्डियक सिरम मार्कर (मायोग्लोबिन, ट्रोपोनिन-1, बीएनपी, एफएबीपी आदि) और प्रोस्टेट कैंसर मार्कर जैसे सस्ते क्लिनिकल बायोमार्कर विकसित किये हैं।
अपशिष्ट प्रबंधन प्रौद्योगिकी विकास
स्वच्छ भारत के उद्देश्य को पूरा करने के लिये प्रौद्योगिकी विकास योजना के तहत एक नया कार्यक्रम शुरू किया गया है, ताकि अपशिष्ट
प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिये प्रौद्योगिकीय उपाय किये जा सकें। इत इसके अंतर्गत अस्पतालों का कचरा, प्लास्टिक कचरा, ई-कचरा आदि जर शामिल हैं। प्रस्ताव को ज़ोरदार समर्थन मिला है।
इनोवेशन इन साइंस परस्यूट फॉर इन्सपायर्ड रिसर्च ( इन्सपायर) योजना का पुनर्गठन
इन्सपायर योजना कक्षा 6 से 10 तक के स्कूली बच्चों के लिये है जिसे पुनर्गठित करके माननीय प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप
राष्ट्रीय एजेंडा में शामिल किया गया है। कार्यक्रम को इस तरह पुनर्गठित किया गया है कि बच्चों को राष्ट्र की आवश्यकताओं को समझने और उनकी विवेचना करने के लिये प्रोत्साहित किया जाए, राष्ट्रीय मुद्दों पर समझ विकसित की जाए और रोज़मर्रा जीवन की समस्याओं को समझने की क्षमता बढ़ाई जाए। इन्सपायर योजना के दूसरे अंग के मद्देनजर कक्षा 11 के विज्ञान के विद्यार्थियों के लिये कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में उनके प्रदर्शन के आधार पर विज्ञान शिविरों का आयोजन किया जाएगा। इन विज्ञान शिविरों में विद्यार्थियों को नोबेल पुरस्कार विजेताओं सहित अन्य वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के साथ बातचीत करने का अवसर मिलेगा। इसके अलावा इस कार्यक्रम में सरकार के मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत आदि मौजूदा पहलों को ध्यान में रखते हुए जल, ऊर्जा, सुरक्षा आदि विषयों पर मौलिक आलेखन को भी जोड़ा गया है।